Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गाथा सं.
१६३
१६४-१६९
१७०-१७७
१७८-१७९
१८०
१८१
१८२
१८५
१८६
१८७
१८८
१८९
१९०
१९१
१९२-१९५
१९६
१९७ - २०४
पृष्ठ सं.
१४३
१८३-१८४ १४२
२०५
२०६
१३३
१३४- १३५ उत्कृष्ट अनुभागबन्धके स्वामी
१३७ - १३९ | जधन्य अनुभागबन्धके स्वामी
१३९
१४०
१४१
१४२
( २९ )
१५२
१५२ - १६६
१६५
१६७
१६८
अनुभागबन्धप्रकरण
शुभ-अशुभप्रकृतियोंके अनुभागबन्धके कारण विशुद्ध व संक्लेशपरिणाम
विषय
परिवर्तमान व अपरिवर्तमान मध्यमपरिणाम
एकक्षेत्र
एकक्षेत्र का लक्षण
अनुभागबन्धसम्बन्धी ध्रुव, अध्रुव, सादि, अनादि
अनुभागका लक्षण तथा घातिया कर्मोंका अनुभाग लता आदिरूप दर्शनमोहनीयसम्बन्धी देशघाति तथा लता आदि विभाजन
देशघाति व सर्वघाति प्रकृतियाँ
अघातियाकमका अनुभाग, पुण्य व पापरूप प्रकृतियाँ
नि अनुभागप्रकाण
प्रदेशबन्ध
स्थित कबर्गणाओंको आत्मा अपने सर्वप्रदेशोंसे बाँधता है
१.४४
१४५
१४५
१४६
૬૪
१४७
१४८
समयप्रबद्धका स्वरूप
१४८ - १५० कर्मप्रदेशोंका आठकमोंमें बँटवारा
पुद्गलद्रव्यका अनंतबभाग कर्मरूप होने बोग्य है, शेष अनंतबहुभाग अयोग्य है. भूतकालमें सर्वजीवों के द्वारा बाँधागया पुद्गलद्रव्य सादि है
एक क्षेत्रसंबंधी तथा अनेक क्षेत्रसम्बन्धी सादि योग्य व अयोग्यपुद्गल द्रव्यका प्रमाण
जीव सादि, अनादि व उभवरूप कर्मयुद्गलको ग्रहण करता है
उत्तरप्रकृतियोंमें बँटवारेका क्रम
सर्वघाति तथा देशघातिमें बँटवारा
| मिथ्यात्व व बारहकषायका द्रव्य सर्वघातिरूप ही है
नोकषायोका बन्ध कितने कालतक होता है, तत्सम्बन्धी अल्पबहुत्व
नामकर्मसम्बन्धी पिण्ड व अपिण्ड प्रकृतियों तथा अन्तरायकर्मकी प्रकृतियों में विपरीतक्रमसे द्रव्य देनेका कथन