Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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गाथा सं.
८९
मार्गदर्शक:- आचार्य श्री त्रिसर जी महाराज
९०
११
९२-९३
९४-६०२
१०३ - १०४
१०५-१०७
१०८-१०९
११५ उत्तरार्ध ने ११९ पूर्वार्ध
पृष्ठ सं.
४८
४८
re
४९-५०
५०-५४
५६
५८
१६१-६२
६३
६६-६८
११०
१११ - ११२
११३
११४- ११५ ७४-७५
का पूर्वार्ध
७२
13-60
११९ उत्तरार्ध ८१-११
से १२१
१२२-१२६
१२५
२९-१०२
१०१
(२७)
विषय
प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके भेदसे बंध चारप्रकारका, इनमें से भी प्रत्येक के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य व अजयन्यरूप चार-चार भेद
उत्कृष्ट आदिके भी सादि, अनादि, ध्रुव, अध्ध्रुवरूप चार भेद
जिन कर्मो का मिथ्यात्वादिगुणस्थानवर्ती जीवों के उत्कृष्टस्थिति, अनुभाग व प्रदेशबन्ध होता है उन कर्मोंका अनुत्कृष्ट व अजघन्यस्थिति आदि बन्ध सादि इत्यादि चारप्रकारका होता है।
प्रकृतिबन्ध
तीर्थंकरप्रकृतिकं बन्धका विशेष नियम
गुणस्थानोंमें बन्धव्युच्छिति
गुणस्थानोंमें बन्ध व अबन्धप्रकृतियोंकी संख्य नरकगतिमें बन्ध व बन्धव्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ तिर्यञ्चगतिमें बन्ध व अन्धव्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ मनुष्यगति बन्ध व बन्धव्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ देवगति बन्ध व बन्धव्युच्छित्तिरूप प्रकृतियाँ | इन्द्रियमागंणासम्बन्धी बन्ध-अबन्ध और अन्धत्युच्छित्ति कायमार्गणासम्बन्धी बन्ध, अबन्ध व बन्धव्युच्छित्ति
योगमार्गण में बन्ध- अबन्ध व बन्धव्युच्छिन्न प्रकृतियाँ
शेष भार्गणाओंमें बन्ध-अबन्ध व बन्धव्युच्छिन्न प्रकृतियाँ
सादि अनादि ध्रुव व अध्रुव बन्ध
प्रतिपक्ष व अप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ
॥ इति प्रकृतिबन्धप्रकरण ||