Book Title: Dravya Gun Paryaya no Ras Part 1
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Dhirajlal D Mehta
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat
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॥ अहम् नमः ॥
मंगल कामना के दो
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सरस्वती के वरद पुत्र न्यायविशारद महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी म. रचित द्रव्य गुण पर्याय रास का संपादन एवं विवेचन समर्थ जैन विद्वान् पं. श्री धीरजलाल डाह्यालालभाई महेता ने किया हे । ग्रंथ के रचनाकार महामहोपाध्याय श्री प्रसिद्ध-प्रखर विद्वान थे । काशी के विद्वान् पंडितोंने जिनको अभिनंदित किया है। जिसकी साहित्य-काव्य-न्याय-दर्शन आदि साहित्य की रचना अद्वितीय है । तदुपरांत बालजीवों को तत्त्व का बोध सरलता से हो सके इस भावना से लोकभाषा में भी रास-चउपाई-स्तवन-पद-सज्झाय आदि की रचना करके महत् उपकार किया है । उनकी रचनाएं तत्त्वसभर एवं भावपूर्ण है । शब्द की रचना अपूर्व प्रकार की है। रचनाओं में प्रभु को पाने की प्यास छिपी है । संयम रस के आनंद का भाव भी पदों में व्यक्त किया है। वे अपने समय के प्रभावक एक महापुरुष थे । चलते-फिरते विश्व विद्यालय जैसे थे । द्रव्य-गुण-पर्याय रास उनकी श्रेष्ठ रचना है । आत्मद्रव्य की परिपूर्णता का परिचय इस ग्रन्थमें मिलता है । भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से आत्मादि द्रव्य-गुण और उसके पर्याय को समझाने का सुंदर प्रयास किया गया है । अलग अलग ढालों में द्रव्यार्थिक -पर्यायार्थिक नयों के द्वारा दार्शनिक दृष्टि से द्रव्य-गुण-पर्याय का सुंदर निरुपण किया है। आत्मा और आत्मा से संबंधित गुण-पर्याय के अस्तित्व का बोध यह ग्रन्थ देता है । सम्यक् विचारों से समृद्ध-सुसज्जित यह ग्रन्थ है । ग्रन्थ के स्वाध्याय करनेवाले व्यक्ति को अपूर्व स्वाद की अनुभूति प्रदान करता है । मुझे विश्वास है कि यह ग्रन्थ तत्त्वजिज्ञासु आत्माओं की प्यास को बुझायेगा ।
इस ग्रन्थ के विद्वान् विवेचक पं. श्री धीरजलालभाई महेता ने बहुत सुंदर सरल तरीके से ग्रन्थ के तत्त्व रहस्य को समझाने का प्रयास किया है, जो अभिनंदनीय है । वे स्वयं अच्छे लेखक एवं विवेचनकार हैं । देश-विदेश में अनेक आत्माओं को ज्ञानामृत का पान करा रहे हैं । स्वभाव से विनम्र-ज्ञान दान में उदार आचारसंपन्न धार्मिक शिक्षक हैं । इस ग्रन्थ के लिए किया गया उनका प्रयास सफल हो यही मंगल कामना.... ।
आचार्य पद्मसागरसूरि दि. १६-१-२००५