Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् ५१ प्रज्ञप्ता, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहे पन्नत्ते' द्विविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा-'पडिसेवणकुसीले य कसायकुसीले य' प्रति. सेवना कुशीलश्च कषायकुशीलश्च तत्र सेवना सम्यगाराधना तत् प्रतिपक्षस्तु प्रतिसेवना-विराधना-तया प्रतिसेवनया कुशीलश्चारित्रविराधकः प्रतिसेवना कुशीला । कषायैः-संज्वलनकषायैश्चारित्रपिराधकः कषायकुशीलः । प्रतिसेवना कुशीलमधिकृत्याह-'पडिसेवणाकुसीले गं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' प्रतिसेवना कुशीलः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नत्ते' पञ्चविधा-पञ्चपकारः प्रतिसेवनाकुशील प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तद्यथा-'नाणपडि सेवणाकुसीछे-दसणपडिसेवणाकुसीले प्रकारका कहा गया है इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा दुविहे पन्नत्ते' है गौतम कुशील दो प्रकार का कहा गया है। 'तँ जहा' जैसे'पडिसेवणाकुसीले य कसायकुशीले य' प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील सम्यक् आराधना का नाम सेवना है और इस अराधना की प्रतिपक्ष विराधना का नाम प्रतिसेवना है। इस प्रतिसेवना से मूलव उत्तर गुणों की विराधना से जो अपने चारित्र का विराधक होता है वह प्रतिसेवना कुशील है जो मात्र संज्वल कषायों से ही दूषित चारित्र वाला है वह कषाय कुशील है 'पडिसेवणाकुसीले णं भंते काविहे पन्नत्ते' हे भदन्त ! प्रतिसेवना कुशील कितने प्रकार का कहा गया है। इसके उत्तरमें प्रभु श्री कहते हैं-गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे-'नाण पडिसेवणा कुसीले दसण, ४छ ? 24प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामी ने छ -'गोयमा! दुविहे पन्नत्ते गौतम! शीर मे प्रारना डे छ 'तं जहा' त प्रमाणे छ 'पडिसेवणाकुमीले य कसायकुमीले य' प्रतिसेवन शीत भने पाय शीत સમ્યગ આરાધનાનું નામ લેવાના છે, અને તે આરાધનાની પ્રતિપક્ષ રૂપ વિશધનાનું નામ પ્રતિસેવના છે. આ પ્રતિસેવનાથી–ઉત્તરગુણેની વિરાધનાથી જે પોતાના ચારિત્રને વિરાધક હોય છે, તે પ્રતિસેવન કુશીલ છે અને જે સંજવલન पायोथी पारित्रमा विरा५४ डाय छे. ते पाय अशी वाय छ 'पडिसेवणा कुसीले ण भंते ! कइविहे पन्नत्ते' उलगवन् प्रतिसेवनाशी प्रारना छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतभाभी ने ४ छ -'गोयमा पंच. विहे पणत्ते गौतम ! प्रतिसेवनsale in Pun 'तं जहा'
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬