Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 03
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Catalog link: https://jainqq.org/explore/010611/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्त्वाचार्य [ससमान्य सञ्चालक, राजस्थान पाच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर] ग्रन्थाङ्क ७२ मंहता नैणासीरी ख्यात Eel [भूतपूर्व मारवाड राज्य के महाराजा जसवंतसिंह प्रथम के दीवान मुहता नैणसी द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखित राजस्थान और उससे सबधित एवं सलग्न गुजरात, सौराष्ट्र और मध्य भारत आदि स्थित भू०पू० राज्यो का मध्यकालीन मूल इतिहास] भाग ३ प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T राजस्थाज पुरातन छात्थ माला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित मामान्यत: अखिल भारतीय तथा विशेपत राजस्थानदेशीय पुरातनकालोन सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषानिबद्ध विविध वाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट गन्थावली प्रधान सम्पादक पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्त्वाचार्य सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ; ऑनरेरि मेम्वर श्रॉफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी, निवृत्त सम्मान्य नियामक (यॉनरेरि डायरेक्टर ), भारतीय विद्याभवन, वम्बई, प्रधान सम्पादक, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, इत्यादि ग्रन्थाङ्क ७२ PART मुंहता नैवासीरी ख्यात EPAL भाग ३ प्रकायाक राम्यान राण्यानानुसार नचालक. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंहता नैणसीरी ख्यात Jb भूतपूर्व मारवाड राज्य के महाराजा जसवतसिंह प्रथम के दीवान मुहता नैणसी द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखित राजस्थान और उससे सबंधित एवं संलग्न गुजरात, सौराष्ट्र और मध्यभारत आदि स्थित भू० पू० राज्यो का मध्यकालीन मूल इतिहास] भाग ३ सम्पादक प्रा० श्री बदरीप्रसाद साकरिया प्रकाशनकर्ता राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान) विक्रमाव्द २०२० । प्रथमावृत्ति ७५० भारतराष्ट्रिय कान्द १८८५ (ख्रिस्ताब्द १६६४ { मूल्य- ८.०० मुद्रक- श्री हरिप्रसाद पारीका, साधना प्रेस, जोधपुर । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAJASTHAN PURATANA GRANTHAMALA PUBLISHED BY THE GOVERNMENT OF RAJASTHAN A series devoted to the Publication of Samskrit, Prakrit, Apabhramsa, Old Rajasthani-Gujarati and Old Hindi works pertaining to India in general and Rajasthani in particular GENERAL EDITOR PADMASHREE JINAVIJAYA MUNI, PURATATTVACHARYA Honorary Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur, Honorary Member of the German Oriental Society, Germany, Retired Honorary Director, Bharatiya Vidya Bhawan, Bombay; General Editor, Singhi Jain Series etc. etc. No. 72 MUNHATA NAINSI RI KHYAT [ A medieaval history of Rajasthan and adjoining erstwhile states as Gujarat, Saulashtra and Malva etc in Rajasthani language, written by Munhata Nainsi, Diwan (Prime Minister ) of Maharaja Jaswantsingh I of Marwar State ] Part 1 Edited with Hindı annotation by A Badriprasad Sacariya D . Published Under the Orders of the Government of Rajaethan By The Hon Director, Rajasthan Prachya Vidya Pratisthapa ( Rajasthan Oriental Research Institute ) JODHPUR (RAJASTHAN ) V. S. 2020 ] All Rights Reserved { 1964 A.D. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचालकीय वक्तव्य मुहता नैणसी री ख्यात के भाग-१ सन् १९६० ई० मे व भाग-२ सन् १९६२ ई० में राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के क्रमशः ग्रन्थांक ४८ और ६२ के रूप मे प्रकाशित हो चुके हैं । अब इस ग्रन्थ का तीसरा भाग ग्रन्थांक ७२ के रूप में प्रकाश में आ रहा है। इस ख्यात मे बातो के रूप मे अनेक ऐसे ऐतिहासिक आख्यान सकलित है जो ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकट करने के साथ-साथ अत्यन्त रोचक भी है। इन कथानकों में प्रयुक्त राजस्थानी गद्य का आदर्श भी द्रष्टव्य और अध्ययनीय है। जैसा कि दूसरे भाग के संचालकीय वक्तव्य मे सूचित किया गया था कि तीसरे भाग में ग्रन्थगत-नामानुक्रमणिका और सपादकीय प्रस्तावना भी प्रकाशित की जावेगी, वह प्रस्तुत ग्रन्थ के कलेवर-विस्तार के भय से इसमें नहीं दी जा रही है। विद्वान् सम्पादक की विस्तृत तथ्य-गर्भित एवं अध्ययनात्मक प्रस्तावना, ग्रन्थगत विशिष्ट ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं स्थलों की नामानुक्रमणिका तथा शब्द-कोष आदि का समावेश चतुर्थ भाग मे किया जा रहा है, जिसको यथाशक्य शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करने का प्रयत्न जारी है । यह सामग्री इतिहास और राजस्थानी भाषा के अनुसंधान-कर्ताओ के लिए विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। मुहता नैणसी री ख्यात के इस तृतीय भाग के प्रकाशन मे भारत सरकार के शिक्षा मत्रालय से 'अाधुनिक भारतीय भाषाविकास-योजना' के अन्तर्गत राजस्थानी भाषा के विकासार्थ सहायता-अनुदान प्राप्त हुआ है, तदर्थ हम भारत सरकार, केन्द्रीय शिक्षा-मत्रालय के प्रति आभार प्रकट करते है । दि० १६ सितम्बर, १९६४ मुनि जिनविजय सम्मान्य सचालक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॐ शिष ॥ मुंहता नैणसीरी ख्यात भाग ३री विषयानुक्रमणिका - AC १. वात राव रणमलजी पर महमदर आपस में लड़ाई हुई ते समैरी २. रावळ जगमालरी वात ३ वात राव जोधाजीरी (पिछोले घोडा पाया ने मेवाड़री घरती लोवी तिणरी) ४ घात राव बीकाजीरी (नरसिंघ जाटू मारियो ने अरडकमल कांधळोत भटनेर फतै कियौ तरी) ५. भटनेररी घात ६ वात राब पीकनीरी। बीकानेर वसायौ ते समैरी ७. वात कांपळजीरी । कांधळजी काम पायो तै समैरी ८ पात राव तोडेरी पर रावळ सावतसी सोनगर इया दोनार भीनमाळ वेढ हुई तं समैरी ६ वात पताई रावळ साको फियो तरी (पावागढर धेरैरी) १० वात रावळ सलखजीरी ११. गढ सझिया तरी ख्यात १२ घात राव सीहोजी (रै वंश)री १३. जेसळमेररी पात १४. पूगळ राव १५. वीकूपुर राव १६ वैरसलपुर राव १७ मुगल-चकता-माटी कहै छ १५. सारबाररा भाटी १६. वात दूर्व जोधावत मेघो नरसिंघदासोत सींधळ मारियो ते समरी २० घात खेतमीह रतनसीहोत सीसोदिय चूंडावतरी ६ GmW Mn ३७ ३८ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] ॐ ० १४१ १४६ १५१ १५३ १५८ २१. गुजरात-देश राज्य-वर्णनम् २२. वात मकवाणा रजपूतांरी (झाला कहाणा तेरी) २३ वात पाबूजीरी २४ वात गांगे वीरमदेरी २५ धात हरदास ऊहड़रा २६. वात राठोड़ नरै सूजावत, खीमै पोकरणरी २७. जैमल वीरमदेवोत नै राव मालदेरी वात २८. वात सोहै सींधळ री २६. वात रिणमलजीरी ३०. नरवद सत्तावतरी वात सुपियारदे लायो तै समैरी ३१. वात नरबद राणजीनू पाख दीवी तिय समैरी ३२. वात राव लूणकर्णजीरी ३३ वात मोहिलारी (चहुवांणा वागड़ियां सूं द्रोणपुर लियो तिणरी) ३४. मोहिलारै पीढियारी हकीकत (नै छापर द्रोणपुररी घरती राव जोघाजी लोवी तिगरी वात) ३५. छद बे-प्रखरी ने दूहा (मोहिला री पीढियांरा ने राव जोधाजी छापर द्रोणपुर लियो तिण भावरा) राठोड़ रामदेव नै चाप सामोररा कहिया ३६. छत्तीस राजकुळी इतर गढे राज कर ३७. परमारांरी वसावळी ३८ राठोड़ारी वसावळी ३६. टोकै बैठारो विगत (बीकानेररी) ४०. जोधपुररी पीढियां (टीकै बैठारी विगत) ४१. भिन्न-भिन्न वाकारा समत । गढ लियांरी विगत ४२. दिली राजा बैठा तियारी विगत । राज कियो तिका विगत ४३. वात सेतरांम वरदाई सेनोत राठोड़री ४४. बीकानेररी हकीकत (वीकानेर राजापार कवरांरा नाम) ४५. सतियां हई (बीकानेररा राजानां लार) ४६. जोधपुररा राजापारी ख्यात (ननिर्माणारी विगत) ४७. फिसनगढरी विगत (नानांणांरी) ४८. राठोड़ारी तेरहै साखाप्रांरी विगत ४६. जेसळमेररी ख्यात (नानाणा, भाई तथा बेटा प्रादिरी विगत) ५०. सिरगोतारी पीढी (२. किसनसिंघोतां ३. रूपावतां. ४ नारणोता ५ रतनदासोता ६ राधतोता ७. वीदावतां--इणारा ६३ गांवारी पीढियारी जुदी-जुदी विगत) ५१. जोधपुर रा सिरदारा री पीढिया (१४ गांवारी) ५२. विगत (टीप) १६७ १७३ १७५ १७७ U७ ०० ० MMor our md xam 9७ ०. २२३ २३५ २३८ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ २४७ २५० २५६ ५३. वात चद्रावतारी ५४ पीढियारी हकीकत । पाट बैठा त्यांरा माम (चंद्रावतारा) ५५. वात सिखरो वहलवै रहे तेरी ५६ वात ऊदै ऊगमणावतरी ५७ बूदीरी वारता (दूदा ने भोजरी वात) ५८. क्यामखान्यां री उतपत नै फतेपुर जूझणू वसायो तेरी वात ५६. दौलताबादरा उमरावांरी वात ६०. प्रादिदास्त (टीप) ६१. प्रादिदास्त (टीप) ६२. सांगमराव राठोड़री वात २७३ २७६ २७८ २७६ २८० Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात भाग ३ वात राव रिणमलजी अर महमंदारै] आपसमें लड़ाई हुई तै ससैरी महमद मांडवरो पातस्याह । महिपो पमार पहीरा डूंगरसू नीसरियो सु माडवरै पातसाहरै पूठ आयो । ताहरां रांणो कुभो माडवरै पातसाह ऊपर आयो। तद रिणमलजी पण हुतो। सु पातसाह महिपैनू राख अर हद ऊपर सांम्हां आयो । लडाई हुई पातसाहसू । सु पातसाह तो हाथी असवार, ऊपरा लोहरै कोठेमें हुतो। सु साथ तो सारो ही काम आयो। नाहरा रिणमलजी जांणियो-बरछी सिलारैसू काढि मनमें प्राणी ज्यु हाथी ऊपर जाऊ । सु पातसाह माहै बैठे रिणमलजीरो छोह जांणियो-'जुईयैरी बरछी आगै कोठो वचणरो नही। प्रो संको राख पातसाह खवासरी ठोड बैठो नै खवासनू आगै बैसाणियो।' तितरै तो रिणमलजी आय बरछीरी दीवी कोठेरै । कोठो फोड़ खवासनूं मारियो ।' ताहरां खवास कह्यो-'हजरत ! मैं तो मरा।' ताहरा उण वैण रिणमलजी सुणियो । ताहरां रिणमलजी जाणियोपातसाह वचियो।10 रिणमलजी पूठा फिर देखे तो हाथीरी पाछली, ___ I महिपा पंवार पहीके पहाडसे निकला सो माडवके बादशाहकी शरणमे आया। . 2 तव राणा कुभा माडवके बादशाहके ऊपर चढ कर पाया। 3 तब रिणमलजी भी साथमे - थे। 4 वादशाहने महिपेको तो पीछे रख दिया और खुद सीमा ऊपर सामने आया । 5 सो बादशाह तो हाथी पर सवार, परन्तु उसके ऊपर एक लोहेका कोठा था, उसमे बैठा हुया था। 6 एक वरछीको शस्त्रागारसे (?) निकाल कर सोचा कि हाथी पर आक्रमण , कर दूं। 7 सो बादशाहने अदर बैठे हुए रिणमलजीके क्रोधावेशको भाप लिया कि . इसकी वरछीके प्रहारसे कोठा बचनेका नहीं। 8 सो यह भय मान बादशाह तो खवासको ___“जगह बैठ गया और खवासको आगे बैठा दिया। 9 कोठा फोड कर खवासको मार दिया। - 10 तब रिणमलजीने उसके शब्द सुने और जाना कि बादशाह बच गया। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ] मुहता नैणसीरी ख्यात पीठ दिया पातसाह बैठो छ । नं रिणमलजीर ग्राखडी हुती जो पुठ दियै ताहरा वार वाहै नही । ताहरां घोड़ो डकाय हाथीरी वरावर प्राय फेटसू पातसाहनू उठाय लियो । लेने कनै सिला थी तै ऊपर पटकियो । सुपातसाहरो जीव नीसर गयो । सुपातसाह ईयँ विध मारियो । पछे राणो कुभो, रिणमलजी मांडवगढ ऊपर ग्राया । ताहरां भीतरला पण साको राखियो । ताहरां महिषै पमारनू वा कह्यो - 'हमै म्हासू राखियो न जावै ।" ताहरां महिप कह्यो - 'हमें मोनू पकड मता देवो ।” ताहरां इहा कह्यो राव रिणमलजीनू - 'म्हे पकड न देवा ।" ताहरा रावजी कह्यो - ' म्हानू देखाळ देवो ।" ताहरां कोटरं दरवाजे फोज प्राय ऊभी रही । श्रर महिपो घोडै चढि दर 18 वाजे डाव कानी घोडे चढियो हीज कूदियो । 10 जिकै ठोड़सू कूदियो हुतो, तिकण ठोडरो नांम पाखड कहीजै छै ।" पछै गयो । पछे महिपैनू सिकोतरीरो वर हुन । 22 । इति वात महमद राव रिणमलजी मारियो तं समेरी वात सपूर्ण ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ रिमलजी पोछेको और फिर कर देखते है तो हाथी पर पोछेकी ओर पीठ दिए हुए बादशाह बैठा हुआ है । 2 रिगमलजीकी यह प्रतिज्ञा थी कि जो पीठ दे दे तो उस पर वार नही करना । 3 तब उन्होंने घोडेको लंघवा कर और हाथीके बराबर आकर वरछीकी एक फेटसे बादशाहको उठा लिया । 4 लेकर के पासकी एक सिला पर दे पटका सो उसका तो प्राणान हो गया। इस प्रकार वादशाहको मार दिया। 5 तब प्रदर वालोको भी भय हुआ । 6 ग्रब हमने तुम नही रखे जा मकते । 7 श्रव मुझे पकड कर उनके सुपुर्द नही करना । 8 तब इन्होंने रात्र रिगमलजीको कहा - 'हम महिपेको पकड कर आपको नहीं देंगे ।' 6 तव गवजीने कहा 'हमको उसे दिखा दो ।' 10 महिपा घोड पर चढ कर दरवाजेकी वायी ग्रीरमे घोड पर चढा हुग्रा ही कूद गया । II जिस जगह से वह कूदा था उस जगह का नाम 'पास' कहा जाता है । 12 बादमे महिपेको सिकोतरीका वरदान मिला था । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L अथ रावल जगमालजीरी वात 3 रावळ जगमाल मालावत मेहवै राज करै । त्यांरै महळ चहुवाण बेटा ३ ' । वडो मंडळीक, दूसरो भारमल, तीजोर रिणमल । सु पछै जगमालजी वळ गेहलोत परणिया । ताहरां चहुवांणी रीस कीवी । गांम छोडियो । बेटा ले तलवाड़े जाय रही मेहवैरै नजीक' । तद रजपूतां रावळ जगमालजीनूं ले चहुवांणरै घरे गया । पण चहुबांण मानी नही' । तद तलवाडैथी चहुवांण पीहर गई बाहडमेर " । लोक साथै घणो हुतो, सु चहुवाणारै उजाड रोज घणो करै । तद चहुवांण सूजो बाहडमेर धणी तिके दीठो-' बुरा' ।' 'भाणेज ! और ठोड़ा रहो । थे म्हारो देस छाडो नही' । 5 तद कोऔ छाड़े ।' सु 11 तद चहवाण मडळीकरी घोडियारा पूछ वाढिया, अर भैसियारा मगर तेलसू बाळिया ' ' । तरै ओ किसो मनमे राखि अर पर लोकामे समचो कर अर आापरा मामासू चूक कियो सु भूजाई जीमता ऊपर - मडळीक जाय पडियो । सु स्रब चहुवांण मारिया । बाहडमेर कोटडो लिया 12 1 अर जगमालजीनू खबर पोहचाई - 'जु म्हां ओकांम 6 साथमे बहुत मनुष्य थे, I रावल जगमाल मालावत मेहवेमे राज्य करते है । उनकी स्त्री चौहान ( रानी ) जिससे जगमालजीके तीन पुत्र हुए । 22 तीसरा । 3 जगमालजीने गहलोतोके यहा दूसरा विवाह किया, जिससे चौहान ( रानी) नाराज हो गई । उसने गाव छोड दिया । अपने वेटोको साथमे लेकर मेहवेके नजदीक तिलवाडामे जा रही । 4 तब जगमालजीको साथमे लेकर राजपूत लोग चौहान ( रानी) के घर उसे मनानेको गये, परतु चौहानीने नही माना । 5 तव चौहानी तिलवाडासे अपनी पीहर बाडमेर चली गई । चे चौहानो नित्य बहुत नुकसान करते हैं । 7 बाहडमेरका स्वामी सूजा चौहान - उसने देखा ये लोग तो बुरे 1 8 तब उसने कहा- 'भानजो | तुम लोग दूसरी जगह जा रहो, हमारा देश छोड दो । 9 परतु ये छोड़ते नही 10 तव चौहानोने मडलीककी घोडियोके पूछ काट दिये श्रोर भैसो (भैंसियो ) की पीठें गरम तेलसे जला दी । II तव इन्होने (भानजोने) इस वातको अपने मनमे रखा और अपने आदमियोको सकेत करके मामाके ऊपर धोखे श्रमण कर दिया । 12 भोजन करते हुए पर मडलीक जा पडा और उसके साथ सव चोहानोको मार दिया । वाहडमेर श्रीर कोटड़े पर अधिकार कर लिया । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात कियो' । जगमालजी सुण राजी हुआ । जगमालजी पछ मंडळीक मेहवै राज कियो । भारमल बाहड़मेर राज कियो। रिणमल कोटड़े राज कियो । ॥ इति रावळ जगमालजोरी वात सपूर्ण ।। 1 और इन्होने जगमालजीको सूचना दी कि हमने यह काम कर दिया है। 2 जगमालजी मुंन कर प्रसन्न हुए। 3 जगमालजीके वाद मेहवेमे मडलीकने राज्य किया। 4 भारमलने वाहडमेरमे राज्य किया और रिणमलने कोटडेमे राज्य किया। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामजी ।। अथ वात राव जोधाजीरी लिख्यते राव जोधो काहूनी गाडै वास कियां विराजै । तद नापो सांखलो ईयां थको चीतोड राणैजी गोठै हुतो, सु नापै कहाय म्हेलियो-'जु श्रीरावजी पछ ही कदै राव रिणमलजीरै वैर पधारसो तो आज पधारज्यो ।' तद रावजी तयारी कर असवार हुआ। तद पूछियो-'जु मेहवै जावतान वसती कठे-कठे आवसी ?' लोकै वीनती कीवी-'जु, श्रीरावजी ! वसती ठिकाणे थोड़े छ । पण ठिकाणे आगे से मोढी मूळवाणीरा गाडा छ । तद उठारा चढिया मोढी मूळवाणीरै गाडां आया। मोढीनं खबर हुई। तद मोढी घणा वांना किया', आय उतरिया तद मोढी विचारयो-'परमेश्वर ! राव जोधै सरीखो प्रांहणों अठै कद-कद श्रावसी ? भगत किसू कीजै ?' सु किणहीक साहूकाररी मजीठ अर फळ खाड थांपणू थकी पडी हुती' । अर घी गायांरो घणो ही हुतो। तद विचारियो-'जु आ मजीठ पर खांड पछै कद काम आसी11 ?' अबै मजीठ खोटी अर मैदो करायो । घी खांड घात _I राव जोधा काहूनी गावके पास गाडोमे घर वना कर रह रहे है। 2 उन दिनोमे नापा साखला इनकी ओरसे चित्तौडमे राणाजीके पास रहता था। नापाने सदेश भेजा कि 'यदि रावजी (जोधाजी) राव रिणमलके वैरका वदला लेनेको कभी पानेका विचार हो तो आज आ जायें ।' 3 मेहवे जानेके मार्गमे कौन-कौनसे गाव आयेंगे ? 4 लोगोने अर्ज किया कि रावजी ! 'मार्गमे वस्ती बहुत कम स्थानो पर है ।' 5 परतु आगे सब जगह (जहा-जहा वस्ती है) मोढी मूलवानीकी गाडा वस्ती है। 6 तव वहाके चढे हुए मोढी मूलवानीकी गाडा-बस्तीमे आये। 7 मोढीने बहुत खातिर की। 8 आकर ठहरे तव मोढीने विचार किया कि 'भला परमेश्वर । राव जोधा जैसा अतिथि यहा कव-कव आयेगा?' 9 किस भाति इनका आतिथ्य किया जाय ? 10 किसी साहूकारकी मजीठ, सूखा मेवा और खाड उसके यहा गिरवी रखे हुए थे। II यह मजीठ और खाड फिर कव काम प्रायेगी? 12 अब (तब) मजीठको कूट करके उसका मैदा वनवाया। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात अर सीरो वणायो' । कैर-बाटो हुतो तिणरी तरकारियाँ वणाई । भगतरी तैयारी हुई। प्रांण वीनती कीवी-'श्रीरावजी ! आरोगण तैयार छै ।' . पछै आप सारा लोकासू आरोगण पधारिया । त्या परीसारो हुप्रो । सारै साथनू सीरो, तरकारिया, भाजी, इण भाति परीसारो हुयो । लोक जीमियो । आप ही आरोगिया।" रातरी भगत हुई। पाछली रात रावजीरो कूच हुो । परभात हुवो, त्या सारा ठाकुरां हाथ दीठा' । राता-लाल दीसण लागा1 । तद सारा ठाकुरारा आप-आप माहै देखण लागा' । त्यु किणी हेक कह्यो'जु इण वातरी खवर मोढीनू पूछाया पडे ।' तद रावजी असवार दोय मोढीनू पूछणनू म्हेलिया । त्या मोढी असवार आवता देख सांम्ही आइ कह्यो-'जिक वई पाया सु जाणियो।' कह्यो-'श्री रावजी रिणमलजीरै वैर पधारै छै स परमेसरजी थॉनू रग चाढियो । अर अठै खेती काई न होवै छै सु धान थोडो पाईजै" । सु मजीठ पड़ी हुती तियेरो सीरो कियो हुतो। सु परमेसरजी थानू रंग चाढियो । श्रीरावजीनू पासीस कहिज्यो । अर मालम करजो; भोजन थांने अमृत हुसी।' 1 घृत और खाड डाल कर हलुमा वनवाया। 2 कैर-वाटा था जिसके साग बनवाये । (कर-वाटा = करीलके कच्चे और ताजे फल) 3 भोजनकी तैयारी हुई । प्रा करके विनती की, 'श्री रावजी | भोजन तैयार है।' 5 तव आप सब लोगोके साथ भोजन करने को पधारे । 6 फिर परोसगारी हुई। 7 स्वय (राव जोधाजी)ने भी भोजन किया। 8 यह भोजनकी तैयारी सब रात्रीको हुई थी। 9 पिछली रातको रावजीने वहाने पूत्र कर लिया। 10 ज्योही प्रभात हुआ तो सभी ठाकुरोने अपने हाथोको देखा। 11 एकदम लाल दिखने लगे। 12 तव सभी ठाकुर परस्पर एक दूसरेके हाथोको देखने लगे। 13 तव क्सिी एकने कहा । 14 तव रावजीने दो सवारोको पूछने के लिये मोटीके पास भेजा। 15 जिसके लिये आये हो सो मैंने जान लिया। 16 उमने कहा'धी गवनी रिणमलजीगे वैरका बदला लेनेके लिये जा रहे है सो परमेश्वरने तुम पर रग कठाया है ।' 17 यहा पर खेती नहीं-जैसी होती है अतः घान्य थोडा प्राप्त होता है । 18 मह गोजन प्रापको अमृतके समान होगा। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ मुहता नैणसीरी ख्यात यांआय रावजीनू मालम करी। रावजी सुण बोहत राजी हुवा । पछै उठारा चढिया सांखला हरभौरै गाव बैहगटी आया । हरभौजी सौणी हुता । सु हरभौरो भाणेज जेसो भाटी आपरै गोडै ऊभो हुतो', सु हुकम कर भेळो बेसाँणियो । सो सलाम कर भेळो बैठो त्यां हरभौ माथो धूणियो' । तद अरज कीवी-'जु रावळे रिजकरो सीरवी ओ हुसी । अर म्हे धरतीरा हीज सीरवी हूस्या ?' रावजी आरोग अर सौण पूछिया । त्या हरभौ अरज कीवी-'जु सौण इसडा छ जु आज जितरी धरतीमे श्रीरावजी घोडो फेरै इतरी धरती श्री रावजीरा पूत पोतरानू हुसी' । रावजीरो वडो इकबाल हुसी ।' तदी' रावजी बोहत राजी हुवा । असवार हुवा । असवार होताँ भुवर ढोल हरभौ कना माग लियो । अठारा असवार हुवा सेतरावै रावत लूणेरै पधारिया | रावत लूणो भली भात मिळियो नही । तैसौ श्री रावजी मन मांहै क्यौहीक अतराज सा हुवा । त्यां रावतरै महिळ सोनगरी । सो रावजीरै नांनाणे दिसासौ साख हुतो, सु रावजी जुहार कहायो । त्यां श्री रावजीन भीतर बोलाया। निछरावळां कीवी । अर कह्यो-'बाबा ! रिजक, विसायत दीसै छै सु थाहरी छ। भोजन करो । सर्व भला __I इन्होने। 2 पीछे वहासे चढे हुए साखला हरभूके गाव वैहगटीको आये। 3 हरभूजी शकुनी थे। 4 हरभूका भानजा भाटी जैसा आपके (राव जोधाजीके) पास खडा था। 5 सो आज्ञा देकर अपने साथ बैठाया। 6 सो सलाम करके भोजन करनेको साथ बैठ गया। 7 उस समय हरभूने सिर धुना। 8 आपकी सम्पत्तिका भागीदार यह होगा और हम धरतीके ही भागीदार होगे? 9 रावजीने भोजन करके शकुनका फल पूछा। 10 ये शकुन ऐसे है कि आज जितनी धरतीमे रावजी अपना घोडा फिरा देंगे उतनी धरती रावजीके पुत्र-पोतोके अधिकारमे हो जायगी। II रावजीका वडा प्रताप बढेगा। 12 तब। 13 सवार होते समय हरभूके पास जो भँवर ढोल था वह उससे मांग कर ले लिया । 14 यहासे सवार हो कर सेतरावा गावमे रावत लूणाके यहा पधारे। 15 रावत लूणा रावजीसे अच्छी प्रकार नही मिला, इससे रावजीके मनमें कुछ नाराजी हुई। 16 रावतकी स्त्री सोनगरी, जिसके साथ रावजीका ननिहालकी ओरसे कुछ सम्बन्ध था सो रावजीने उसे जुहार कहलवाया। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात हुसी' ।' तहरां श्री रावजी उतरिया । भगत हुई | रोगिया । पण मन माहिलो गुस्सोमिटियो नही । त्यां रावत लूणो रावजीसू सीख कर जाय पोढियो । पाछा सोनगरी जाय महल कुलफ कर लीन्हो । रावजीनै खबर दराई । ' श्री रावजी सर्व घोडा, विसाइत, माल - मता लूटी' । यां करतां और पण सर्व लोग भोमिया डरिया' । आय सलामी हुवा | अठाहू असवार हुआ सो विचमे जिके भोमिया हुता सरब सलांमी करी' । साथ लिया । 8 9 0 ८ ] 11 .12 पछै रूण साखलांरै पधारिया । सांखला नाळेर ले रावजीर साम्हां आया" | साखलो टीकायत रावत कहावतो तिगरी वेटी श्राया' रावजीनू परणाई" । अर रावजी पण खरा मैहरवान हुय व्याह कियो । या खवर राणोजीनू जाय पोहती 14 | 15 तद नापै सांखलने रांणोजी हजूर बुलायो । बुलायने पूछियो " 'थांहरै कार्ड रावजी दिसिलि खबर श्राई" ?' आगे पूछता तद कहतो घणों सो- 'ग्रावण वाळो समान काई न छै"।' अर ईयँ वेळा पूछियो 18 तद कह्यो''-'जु दीवांण ! वात साची छै । श्रा खबर म्हारे पण उनने श्री रावजीको प्रदर बुलवाया, निछरावले की और कहा - ' बावा ! जो कुछ भी वन-माल और धरती आदि प्राप देखते हो, वह सब आपका है। भोजन करिये । सव ठीक होगा । 2 तव रावजी ठहर गये । भोजनकी तैयारी हुई, भोजन किया, परंतु मनका कोव मिटा नहीं । 3 फिर रावत लूगा तो रावजीसे प्राज्ञा प्राप्त कर जा सोया । 4 बाद उनकी पत्नी मोनगरीने जा कर महलके ताला लगा दिया । 5 रावजीको इसकी खबर करवा दी । 6 तव रावजीने नव घोडे और माल मता एव सामग्री लूट ली । 7 इम प्रकार करनेसे दूसरे नभी लोग और भोमिये भी डर गये । 8 श्राधीनता स्वीकार कर और सलानी वन हाजिर हुए । 9 यहाने चढकर चले तो वीचमे जो भोमिये थे उन सनीने सलामी बनना (आधीनता) स्वीकार किया । 10 ( उन सबको अपने ) साथ लेते 11 फिर ने नाखनो के यहा आये ( गये) । 12 ( रावजीको अपने यहा तुन) साले नारियल लेकर रावजीके स्वागतार्य सामने आये । गये 3 टीका माराला जो सब बहलाना था, जिसकी बेटी रावजीको व्याही गई । 14 और रावजीने मदान होणार विवाह किया। यह उवर राणाजीको जा पहुची | 15 बुलवाकर पृच्छा । 16 तुम्हारे पास की ओर कोई खवर बाई है क्या ? 17 पहले कभी जाता तो यही कहना - 'जो समाचार काने वाले थे (आये है ) वे सामान्य है, नहीं है। 18 और इस बार पूछा गया तो उसने कहा । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , मुहता नैणसीरी ख्यात आई छै ।" इतरो सुणतां दीवांण रै मुहडैरो रंग फुर गयो।' सांखलै नापै न कह्यो-'किणही भांत सुलह पण हुवै ? तद नापै अरज करी-- 'दोवाण सलामत, राठोडारे वैररो मामलो खरो जोरावर छ । अर वळे वैर ही राव रिणमलरो।' त्यां-त्यां दीवांण खरा डरण लागा। तद नापै अरज कीवी--'जु दीवांण ! वैर जोरावर छै । किणही भांत धरती दीन्हा टळे तो दीवाण । धरतो दीजै । श्रा वात दीवाणरै पण मनमें आई ।' नापै दरबार सौ डेरै आय तुरत रावजी सांम्हां कासीद दोडाया। __'जु श्रीरावजी ! अठै बळ काई न छ। वेगा पधारो सु विध करज्यो। पछै श्री रावजीरी फोजां ठोड-ठोड मेवाडमें आय लूबी' । देसरो जळळ जादा दीवांणजीनू पहुतो। दीवांणजीनै फिकर सबळो हुवो। सांखलै नापैनै कह्यो-'जो किणी भांत वात होवै तो भलो हुवै ।तद नापै अरज कीवी-'श्री दीवांण । परधानो करावो । मोटो माणस मेल्यां वात हुसी।14 तद राणैजीरा परधान श्री रावजी कनै15 आया, अरज कीवी । 'श्री रावजी ! हूणी हुती सु हुई।" अर प्रो तो मुलक ही थाहरो वसायो छै । थे मारस्यो तो कुण राखसी ?18 तद रावजी बोल्या-'जु या वात तो खरी पण वैर ही करणा पासांण छ, 1 'जी, दीवान । वात सत्य है । यह खवर मेरे पास भी आई है। 2 इतना सुनते ही दीवानके चेहरेका रग फिर गया। 3 किसी भी प्रकार सुलह भी हो सकती है 4 दीवोन दीर्घायु हो | राठौडोके बैर का मामला निश्चय ही दुष्कर है। 5 और जिसमे वैर भी राव रिणमल का? ) यदि धरती (देशका कोई भाग) देनेसे यह सकट किसी भांति टल जाय तो (मेरी प्रार्थना है कि) धरती दे दीजिये। 7 यह वात दीवान को भी जंच गई। -8 यहा कुछ शक्ति (करामात) नहीं है। आप यहा जल्दी पहुँच जायं ऐसा उपाय करे । 9 आकर फैल गई। (आकर लूट पाट करने लगी) 10 देशकी इस दुर्दशाका दीवानजी (राणा)को अधिक दुख हुआ। II बहुत ज्यादा। 12 यदि किसी भी प्रकार परस्पर सुलहकी बात हो तो ठीक हो। 13 प्रधान मनुष्योको भेज कर सुलह की वात करवाइये। 14 बडे श्रादमीको भेजने पर ही बात हो सकेगी। 15 पास। 16 अर्ज की। 17 जो बात होनी थी सो हो गई। 18 और यह देश तो आपका ही वसाया हा है। श्राप ही मारेंगे तो फिर रक्षा कौन करेगा ? Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] मुहता नैणसीरी ख्यात वैर छूटणा मुसकल छ । ताहरा फेर दीवांणरा परधांना अरज कीवी नै रावजीरा उमरावां-परधानाने कह्यो-' , धरती दीवी । अर सरतरी वेढ करो।" या वात दीवांणरा परधाना कबूल कीवी' । पाछा दीवांण पासै आया। दीवांण निपट राजी हुआ।' या करता फोजा अाय निजीक लागी।' वीच खेत वुहारांणों। खंभो रोपियो ।' रावजीरी फोज लडाईनू खरी आगमनी, दीवांणरी फ़ोज पाछमनी।" पण श्री रावजीरा परधानारै मनमे आई-'जु धरती लीज तो भली छै' । तद परधाना रावजी सौ भात-भांत अरज कीवी1-जु बोल-वधांणा कर धरती मडोवर वांस घातीजे तो भला छै । लडाईमे तो थीरावजी आगै अ टिग सकै नहीं।13 'धरती लेणरी वात रावजीर पण मनमे आई। परधाना अरज कीवी-'जु, रावजी हुकम करै तो लड़ाई परी थापा । एक सावंत रावजीरो ही ऊंतरै; पर एक सावत वांरो ऊतरै । जिकांरो सावत जीपै जिकरी हीज जीत।16 अर परधान फेर अरज कीवी,-'जु रावजी | थाहरो नक्षत्र इसड़ी दीसै छै; श्रीरावजीरो सामत जीपसी।' अरज रावजी मीनी ।18 अर दीवांणरा पर - . I यह बात तो ठीक है। वैर करना तो आसान है परतु वैरं मिटना कठिन है । 2 तव । 3 फिर। 4 (वैरके वदलेमे) धरती दी और (अथवा) शतकी लडाई करना स्वीकार। 5 फिर दीवान (राणा)के पास आये। 6 दीवान बहुँत प्रसन्न हुए। 7 इतनेमें सेनाए परस्पर निकट आ लगी। .. 8 रणक्षेत्र साफ किया गया। 9 सीमा-स्तम्भ गोडा गया। 10 रावजीकी सेना 'ठीक पूर्वकी और और राणाजीकी सेना पश्चिमकी और । आगमनी-पाछमनी=(१) आगे-पीछे । (२) पूर्वाभिमुख और अपराभिमुख । (३) पूर्व-पश्चिमं । (४) पूर्वमे और पश्चिममे। II तब प्रधान लोगोंने अनेक प्रकार रावजीसे अंज की। 12 वचन-बंद करवा कर धरती (मेवाड़ राज्यका भू-भाग) ले ली जाय और उसे मडोर (मारवाड राज्य) में मिला दी जाय तो अच्छा है। 13 लडाईमें तो श्री रावजीके सम्मुख ये (मेवाड़के महाराणा). टिक नहीं सकते। . 14 धरती लेनेकी वात रोवजीको भी जेंच गई। 15 प्रधान लोगोने अरन की कि यदि श्री रावजी अाजा करे तो लडाई करनेको वातका भी परस्पर निश्चय करलें 16 एक योद्धा रावजीका और एक उनको (मेवाडके राणाजीका) मैदानमें उतर जायें और (आप दोनोमे से) जिनकी सामंत जोत जाय उसोकी जीत समझी जाय। 17 और प्रधानोने फिर अर्ज कीकि रावजी ! आपका नक्षत्र ऐसा दिखता है कि श्री रावजीका सामत जीतेगा। 18 रावजीने उसकी अर्ज मान ली। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात धांनां पण दीवाणसौ याही वात ठहराई छ। तदी दीवांणरै वड़ो सांमत विक्रमायत झालो हुतो, तिको आय ऊभो रह्यो।' अर अठीसू, विज. ऊदावतनू श्री रावजी हुकम कियो। ताहरां विजो सलाम करविक्रमायत सांम्है हुवो। सु विजै गोढे ढाल हुती नही । तद रावजी. कह्यो-'वारै सामंत कनै ढाल छ ।' विजेनं पण कह्यो-'ढोल लै ।' सु विजौ पाछौ घिरियो ही नहीं । जावतै हीज मुह प्रागै रावजीरो अराबो खडो हुतो सु एकै रहकळेरो पहोड़ो चढिय हीज काढि अर हाथ कर लियो । जाइ भेळो हुवो।' दीवाणरै सांमतनू कह्यो--'जु पैहला थे वाहो। ईयै पण मरणासू डरत पैहला घाव कियो । स पहियो आडो दीन्हो सु पहियो आधोहेक वढियो । अर विजै तरवार काढी त्यां पांच झालै सौ झल सगी नहीं। सु अँवळे हीज पागड़े उतरण लागो ।11 इतरै पैहली ऊदावत विज वाही सु दोय सूत हुवा । तिसड़े सांखलो नापो दीवांण गोढे ऊभो हुतो सु अरज कीवी-'जु, दीवांण सलामत ! खांडो एकै धारो हीज वाहै।13 -- दीवांणरै सांमत माहै जिका हुई सु दीवांण माहै पण होत । पण दीवाणरो भाग वडो। धरती दे लडाई टाळी। इतरै कहता वीच रावजीरै फोजांरी वागां ऊपड़ी।14 त्या दीवांणरी फोज पाछी मुड़ी। इतरै 1 और दीवानके प्रधानोने भी दीवानसे यही बात नक्की की है। 2 तव दीवानका वडा सामत विक्रमायत (विक्रमादित्य) झाला था सो आकर खडा हुआ। 3 और इधरसे विजय ऊदावतको श्री रावजीने हुक्म किया। 4 विजयके पास ढाल नही थी। 5 सो विजय (ढाल लेनेको) वापिस लौटा नही। 6 जिघरको जा रहा था उघर सामने ही रावजीका अरावा खडा था, उसमेसे एक रहकलेका पहिया सवारी किये हुए ही निकाल लिया और हाथमे थाम लिया । 7 जा करके (विक्रमादित्यसे) मिला । 8 पहले तुम प्रहार करो। 9 इसने मर जानेके भयसे पहले प्रहार कर दिया। 10 विजयने ढालकी जगह पहिया आडा कर दिया, विक्रमादित्यके प्रहारसे पहिया आधाइक कट गया । IT फिर जव विजयने तलवार निकाली तो उसके तेजको विक्रमादित्य झाला सहन नही कर सका, वह घोडे परसे पीठकी ओर मुड़ कर उलटा उतरने लगा। जवळ पागडे उतरणो (मुहा०)-सामने की ओर नही उतर कर पीछेकी ओर उतरना । उलटा उतरना। 12 इसके पहले ही विजय ऊदावतने प्रहार किया सो विक्रमादित्य दो टुकड़े हो गया । 13 उस समय साखला नापा. दीवान (राणाजी) के पास खड़ा था, उसने अर्ज की-दीवान चिरायु हो । देखिये, खड्ग एक प्रवाहकी तरह ही चला रहा है ।', 14 इतना कहते ही रावजीकी, सेनाको वागें उठी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात केइक वडेरा ठाकुर वीच पडिया, जु कयो - 'ठाकुरां ! भागां पाछै कांई जावौ ? 12 तद फोजां श्राधी ही चलाई सु पोछोले जाय घोडा पाया ।" देस दीवाणरो मार पैमाल कियो । फेर पाछा मंडोहर पधार अर जोधपुर बसायो । राज कियो । ॥ इति राव जोवाजीरी वात संपूर्ण ॥ 1 इतनेमे कई एक बडे-बुड्ढे ठाकुर बीचमे पडे और कहा ठाकुरो । भागते हुग्रोके पीछे क्यों जा रहे हो ? 2 तव फौजोंको मोड कर आगे चलाया और पीछोला तालाव पर जा कर घोडोको पानी पिलाया । 3 दीवानका देश (मेवाड ) लूट कर उसे पैमाल कर दिया । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , अथ वात राव वीकाजीरी लिख्यते जाट साहरण भाड़ग' माहै रहै । अर गोदारो पाडो लाधड़ियै रहै, सु वडो दातार । अर साहरणरै बैर वैहणीवाळ मलकी। सु मलकी मांटीनू कह्यो -'गोदारो धणी कहावै छै सू चोधरी इसो दे जिसो गोदारैसू ऊपनो हुवै ।' सु जाट दारूरो छाकियो' हुतो सु चोधरणरै चाबखैरी दीवो। कह्यो-'जाह पांडैके, जो रीझी छ । ताहरा1० जाटणी कह्यो--'घरबूडा11 ! म्है तो वात कही थी।12 पछै जाटणी कह्यो- 'जो थारै मांचे प्रावू तो भाईरै आवू ।'13 जाटसू अवोलणो घातियो । मास १ सू पांडै गोदारैनू कहाव मेल्हियो15-'जु ते वदळे म्हनै ताजणो वाह्यो ।16 पांडै कह्यो--'आवै तो हूं प्राय ले जाऊं।' यूं रहतां मास ६ हुआ। तद साहरण सरब भेळा हुआ—'जु चोधरी चोधरण अबोलणो छ सु भांजां।18 अठै साहरणां बाकरा मराया । दारू मगायो । भगत हुई छै ।2 इतरै पांडो गोदारो ऊंठा साठेक ६० सौ आय, गांमरै गोरमै उतरियो। जाटणी साळ माहै गोलीनूं सुवांण भीतर कांहटो दरायो । अर कह्यो--'तनै मारै तो कहै पाडो ले गयो ।' यु कहि मलकी तो पांडेरै साथ हालती हुई ।२३ जाटां भगत I एक गावका नाम । 2 गोदारा शाखाका पाडा नामक व्यक्ति। 3 गावका नाम। 4 साहरणकी पत्नी मलकी बेनीवाल शाखाकी। 5 मलकीने अपने पतिसे कहा। .6 उत्पन्न। 7 शरावके नशेमे छका हुआ। 8 चाबुककी। 9 यदि उस पर मुग्ध हो गई है तो चली जा पांडेके यहा। 10 तव। II घर-घालक, घरको डुवाने वाला । 12 मैने तो यो ही बात कही थी। 13 तेरेसे हम-विस्तर होऊं तो भाईसे होऊ । 14 जाटसे नही बोलनेकी प्रतिज्ञा ले ली। 15 एक मासके बाद गोदारा पाडेको सदेश भेजा। 16 तेरी खातिर मुझे चावुकसे मारा है। 17 इकट्ठे हुए। II जाट जाटनीके परस्पर नाराजी (बोलना-चालना बद) है उसे तुडवा दे। 19 यहा साहरण जाटोने बकरे मरवाये। 20 भोजनकी तैयारी हुई है। 21 इतनेमें पाडा गोदारा भी ६० ऊटोंके साथ गावके किनारे आ कर ठहरा। 22 जाटनीने साल (कमरे) मे अपने स्थान पर एक गोलीको सुला कर भीतर साकल-कुंडी दिलवा दी। 23 यो कह करके मलकी तो पाडेके साथ चलती बनी। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] मुहता नैणसीरी त्यात जीमी। अर मलकीन माणस म्हेलिया । कह्यो-'चोधरणन ले आवो ।' जाय घर माहै साद कियो । बोले कोई नही। जाट पायर कह्यो--'चोधरण तो प्राडो जडके सुय रही।' कह्यो-'जावो, किंवाड़ भाज जगाय ले प्रावो ।' वे जाट जाय किवाड भाजि माहि जाय देखै तो गोली बैठी छ । गोली मारी । तद गोली कह्यो-'म्हने क्यु मारो ? पांडो ले गयो। ताहरां जाटां पग लिया। जठ' चढिया तठे' सूधा देख पाया। तद साहरणा कह्यो--'प्रांपां पहुंच सगां नही।' गोदारा राव वीकैजी मगरै छ । ताहरा भाडगरा जाट सिवांणी गया। नरसिंघदास जाट सिवाणी रहै । तद नरसिबदासतूं जाटां जायनै कह्यो--'मांहरो देस तोनू दीन्ही'' तू साहरणारी ऊपर कर । तद नरसिंघदास आपरी फोज ले अर चढियो । लाधड़ियो गाम मारियो ।14 सात-बीस गोदारा काम आया। मारने पाछा. वळिया, ताहरा नकोदर पाडैरो बेटो राव वीकेजी पास गयो । आयनै रावजीनू कह्यो--'थाहरो जाट नरसिघदास जाटू मारियो जाय छ ।' तद राव वोकोजी सिधमुख सौ चढिया, सु सिधमुखसौ दोए कोसै ढाका छै, तेथ जाय पुहता । साथ सारो तळाव ऊपर उतरियो हतो ।1 अर नरसिंघदास जाटू प्राय गांम माह सासरै. ___I इधर जाटोने भोजन कर लिया । 2 और मलकीको बुलानेके लिये मनुष्य भेजे । 3 घरमे जा कर आवाज मारी। 4 चौधरन तो किंवाड बद करके सो गई है। 5 तव जाटोने (मलकीके पावोको देख कर) खोज की। 6 जहा । 7 तहा, वहा । 8 तक । 9 अपन (पांडेके पीछे) नही पहुच सकते (अपने वशकी बात नही है। 10 राव वीकाजी गोदारोके पीछे (सहायक) है। I हमारा देश तेरेको दिया। 12 तु . सहारणोकी सहायता कर । 13 अपनी। 14 लाघडिया गावको लूट लिया । 15 (१) सत्ताईस । (२) 'सातवीस'से तात्पर्य-सात वार वीस अर्थात् एकसौ चालीस भी हो सकता राजस्थानमे दशमास गिनतीके लिये 'विंशति-पद्धति' (बीसकी सख्या के प्रयोगकी पद्धति) दी है। गांवों में अव भी है। इसे 'वीसी' भी कहते हैं । वीस वस्तुओके समूहको पांच भागोमे विभाजित करके बीससे गुणा करनेसे जो गुणनफल आता हैं उसे 'पाँच-वीस' या 'पाव-वीसी' कहते है। एक सौ दशको 'साढी पाच-वीसी' और तीन सौ को 'पन्द्रह-वीसी' कहते है। इसी प्रकार और भी। 16 मार-काट करके या लूट करके वापिस लौटे। 17 तुम्हारे जाटको नरसिंहदास जाट्र मार कर जा रहा है। 18 गांवका नाम । 10 से। 20 वटा र जा पहुंचे। 21 था । 22 ससुराल में । - -- Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १५ उतरियो हंतो। आधी रातरी समै हुती; तद भाडंगरा आधा जाट रावजीसी आय मिळिया। कह्यो-'म्हे नरसिघनू मरावां ।' तदी जाट राव वीकैजीन ले गया। जठे नरसिंघ सूतो हुतो, त? ऊपर ले गया । नरसिंघ ऊठियो। घोड़ो भुवर काढण लागो।' कांधळजी आडा हुवा । जितरै मांहि नरसिंघनू मार लियो । जाटुवांरी फोज भागी। धन वित हुतो सु खोस लियो। राव वीकैजीरी फतै हुई। तद जाटो डूम दूहो कहै वीको वाहर नावड्यो, भुवर नकोदर हाथ। . हम तुम झगडो नीवड्यो, नरसिंघ जाटू साथ।। १ । पछ प्राण' सिधमुख मांहै डेरो कियो । पाछा फतै कर वळिया। पाछा प्रावतांन दासू वैहणीवाळ आय मिळियो। दासू कह्यो-'राज म्हारो वैर छै । जो लरावो तो धरती थांहरी छै, सो लेवो।' तद राव वीकोजी हालिया1 सुं, हाराणी-खेडे. सौंहर जाट रहतो हो! सु मारियो । दासुरै वैर माहै दासू मारियो । दासू छोकरियां पासै गुण गवाया । पाछा हालिया । अरंडकमल कांधळोत भटनेरन दोडियो । मार, माल-वित बीकानेर ले आयो।18 फतै कर आयो। धरती सारी ही लीवी। ॥ इति श्री राव वीकाजीरी वात संपूर्ण ॥ . I तव । 2 मुंवर घोडेको निकालने लगा। 3 इतनेमें नरसिंहको,मार दिया। 4 पशु और धन-माल था सो खोस कर ले लिया। 5 उस समय। 6 भुवर घोड़े को और पाडेके बेटे नकोदरको अपने अधिकार मे करके राव वीका नरसिंह जाटूके विरुद्ध वाहर चढ़ा। नरसिंहको मार करके सफलता प्राप्त की। नरसिंह जाटूके साथ जो तुम्हारा वैमनस्य था वह हमने निपटा दिया ।., 7 फिर आ करके ! 8 प्राते हुएको। 9 ले लें। 10 तुम्हारी। II चले। 12 गोवका नाम। 13 था। 14 दासूने अपने वैरमें-उसे मार दिया। 15 दासूने अपनी इस सफलतामे, (सौंहरको) दासियोंसे अपनी प्रशसाके गीत गवाये । 16 वापिस लौटे। 17 अरड़कमल कांघलोतने भटनेर पर चढ़ाई की। 18 भटनेरको लूट कर पशु और धन बीकानेर ले आया। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ भटनेररी वात 15 8 भटनेर पातसाह हमाऊरो' थाणो रहे । तद खेतसी रकमलोत काळोत, सु तैनू एक कानूगो प्राय मिळियो । को- 'तर्न कोट दरावा । जो तू म्हारौ वासो राखे तो तद इयै कानूगानू वीजो कानूगो धकाय काढियो हुतो सु पर्छ खेतसी कनै प्रायो । तद खेनसी कह्यो - 'वाह, वाह । म्हने इतरोई जोइजै छे ।" तद खेतसी, कानूगी हेरै साथै चढि खडिया ।' खेतसीरें साथै काको' नीवो पर पूरणमल काळोत | और ही ग्रापरं साथसू भटनेर गया । तद मारग मे जावतांनू सवण हुवा - 'जु नाहरी जिनावररो माथी लिये जाय छै ।' तद सवणी आय कह्यो - 'कोट तो थे लेसो; पण थांसू ही जासी ।" तद खेतसी कह्यो–'हेकरसौ जाय बैसा । 10 पछै जाय 2, कोटनू जाय लागा । 12 ऊपरसौ कानूगै वरत नाखी । 23 खेतसी सारे ही साथसौं ऊपर चढियो । कोट लियो । वरस १० भटनेर इँयारै रह्यो । 24 अर जती १ वडगच्छौ वीकानेर रहे । " तियै कने- " एक भली वस्तु हुती सु राव जैतसी जाय मांगी । जती दीवी नही । तद जतीने मारने वस्तु लीवी । पर्छ कुवरो पातसाह " सोवो पाणीपथ सौ हिन्दुस्तान ऊपर चढियो । तै समै वै जतीरो चेलो सांम्हां जाय मिळियो । को'जु थे चालो, भटनेर लेवा ।' तद कुवरं कह्यो - 'पाणी नही ।"" ताहरां 11 1 15 16 17 1 1 118 13 1 हुमायु वादशाहका । 2 उसको 1 3 यदि तू मेरी सहायता करे तो । 4 उस समय इस कानूगोको एक दूसरे कानूगोने निकलवा दिया था, इसका बदला लेनेके लिये वह खेतसीके 1 5 वाह, वाह मुझे तो यही चाहिये । 6 तब खेतसी और कानूगो साथ ले कर चढ चले । 7 चचो । 8 तव मार्गमे जाते हुएको शकुन हुए । पास आया । । 9 तव शकुनीने श्राकर कहा कि कोट तो तुम ले लोगे परतु तुमसे भी चला जायेगा । 10 एक बार तो जा बैठें | फिर जाये तो जाय । 12 कोटके पास जा पहुचे 13 कानूगोने ऊपरसे रस्सा डाल दिया । 14 दश वर्ष तक भटनेर इनके पास रहा । 15 वडे गच्छका एक जती बीकानेरमे रहता है । वडगच्छ— जैन सम्प्रदायके चौरासी गच्छोमे से एक । 16 उसके पास | 17 काम बादशाह । 18 कामराने तव कहा कि इधर पानी नही है । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १७ • जती कह्यो-'पांणीरी हूं जांणू ।। तद कुवरो जतीनू सोथ लेनै भटनेरनू चालियो। मारग माहै पाणी नही। कटक मरण लागो । तद जतीनं कह्यो-'पाणी पैदा कर ।' सु जतीनू खेतपाळरो वर हुँतो, सु रोही माहै जाइ खेत्रपाळजीरी आराधना करी। तद मेह हुवो। तद चालियाचालिया भटनेर गया। तद खेतसी सांम्हां जाय मिळियो । खेतसी कनां आगू मांगियो सु आगू खेतसी दियो।' राह छोड रोही माहै चलाया सु आगै कुंवरो चाले, अर पाछै खेतसी चाले । तद साथरां लोकां कह्यो-'वासै गनीम आवै छ। तद पाछां फिर खेतसीन मारियो। मुंहर हुवो । लोक घणो काम प्रायो । पछै कुवर भटनेर थांणो राख, आप वीकानेर आयो। - आगै राव जैतसीजीसू लडाई हुई। रातीवाहो हुवो।' कुंवरो भागो । तुरक बुरी तरै नाठा । तद बांडीरो चढियो राव अहमद चाहिल भटनेर आयो । कोट झालियो । थाणो हुतो सु नाठो ।10 पछै11 भटनेरमे अहमंद राज कियो। तद ठाकुरसीजीनू राव कल्याणमलजी सात-बीस सीह वाग दिया। तद ठाकुरसी जैतसीजीरै नांव जैतपुरो वसायो।13। एक दिन, भटनेरमे भद्रकाळीरो देहरो छ, तठे ठाकुरसीजी अहमंद मिळिया। गोठ कीवी ।15 उठे देवी प्राग भैसौ वकर करणनं तयार कियो छै" तद सांगै भाटीनूं ठाकुरसीजी कह्यो-'भैसैनूं ठरको करो"17 भाटी ठरको कियो। भैसैरो सिर लटक पडियो। तद ठाकूरसी ' I तव जतीने कहा कि पानीका मुझे पता है। 2 जतीको क्षेत्रपालका वरदान दिया हुआ था। 3 जगल। 4 खेतसीके पास अगुआ मागा सो उसने दे दिया। 5 पीछे दुश्मन आ रहा है। 6 जौहर हुआ। 7 रात्रि-अाक्रमण किया। 8 कामरा भाग गया और उसके साथके मुसलमान भी बुरी हालतमे भाग गये। 9 इधर वाडी से रवाना हो कर राव अहमद चाहिल भटनेर पर चढ कर पा गया। 10 उसने कोट पर अधिकार कर लिया और वहा जो थाना कामराने रख छोडा था, उस थानेके श्रादमी भी भाग गये। II पीछे. फिर। 12 नामसे, नाम पर। 13 वसाया। 14 भद्रकाली देवीका मदिर। 15 दावत की। 16 वहा देवीके आगे वलि देनेके लिये एक भैसा ला कर खडा किया गया है। 17 भैसे पर प्रहार करो। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात सौण वांदियो ।' कह्यो-'कोट लेईस । पछै ठाकुरसी पाछी जैतपुर प्रायो। जैतपुर भटनेररो तेली १ परणियो हुतौ । तद ठाकुरसीजी तेलीरा होडा कराया । राजी कियो । एक दिन अहमद ईयैरो' बेटो परणावण गयो । वास' भाई पीरोजनू राख गयो हुतो । तदो' ठाकुरसी उठासू चढियो, भटनेर गयो। रान पडी। कोट नीचे जाय ऊभो रह्यो। तेलीसू सारत हुती। तद तेली हेढ़ लाव नाखी । तद ठाकुरसी सारा साथसू ऊपर चढ़ियो । भीतर गयो। लडाई हुई। पीरोज काम आयो । कोट लियो। राव श्री कल्याणमलजीरो प्राण फेरी । कूची गढरी राव कल्याणमलजीनूं मेल्हाई 13 तद कोट रावजी ठाकुरसीन बगसियो । पछै कितरहेक दिने ठाकुरसी देवलोक हुवो। वाघ टोके बैठौ । वाघसौ जैतपुर उतार लियो । पछै वाघ भटनेर रह्यो। पातसाही चाकर हुवो। वाघ पण देवलोक हुवो। पछै वाघरा बेटां कन' महाराज श्री रायसिंघजी पधारिया। अर' कह्यो-'थे छांडो अठैस, ज्यौ या धरती वीकानेर वासै घातां । तद ईया छाड भाठवा21 प्राय गूढो2 वसाय रह्या । भटनेर, नोहर वीकानेर वास घातिया । भटनेर महाराजा श्री रायसिंघजीरै हुवो। महाराजा श्री सूरसिंघजोरै हुवो । अर महाराजा श्री करणसिंघजीरै हुतौ । तद साहजहां पातसाहरै अमलमे सवत १६६.''खालसै हुवो। ताहरां लडाई हुई । जोगीदास काधळोत, कल्याणदास भाटी काम आया। पछै भटनेर खालसै रह्यो । ॥ इति भटनेर री वात सपूर्ण । 1 तव ठाकुरसीने इसे शकुन समझ कर वदन किया अर्थात् इसे शुभ शकुनके रूपमें माना। 2 कोट लगा। 3 जैतपुरमें भटनेरका एक तेली व्याहा हुआ था। 4 तव ठाकुरसीने तेलीकी बहुत खातिर की और उसे प्रसन्न किया। 5 इसका। 6 व्याहनेको। 7 पीछे। 8 उस समय । 9 कोट नीचे जा कर खडा रहा। 10 तेलीसे पहिले वातचीत हो ही चुकी थी। I तेलीने रस्सा नीचे डाल दिया। 12 ठाकुरसीने राव कल्याणमलजीको पानदुहाई फिरवा दी। 13 गढको चाबी राव कल्याणमलजीके पास भिजवा दी। 14 रावजीने तब उम गढको ठाकुरसीको वक्ष दिया। 15 कितनेक दिनोके बाद ठाकुरसी मर गया। 16 बाघके पाससे जैतपुर जब्त कर लिया गया। 17 पास। 18 और । 19 तुम इस धरती परसे अपना अधिकार छोड दो सो इसे वीकानेरके अधिकारमे ले लें। 20 इन्होने। 21 एक म्यानका नाम। 22 गुप्त रक्षास्थान। 23 भटनेर और नोहर बीकानेरके अधिकारमे लिये। 24 भटनेर महाराजा रायसिंहजीके अधिकारमे रहा, महाराजा सूरसिंहजीके भी अधिकारमे रहा और जिसके बाद जव महाराजा करणसिंहजीके अधिकारमे था। 25 तत्र बादशाह शाहजहाके शासन कालमे संम्वत् १६६ वह खालसे हो गया। 26 फिर भटनेर खालसे ही रहा । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात राव वीकैजीरी, बीकानेर वसायो तै समैरी 13 4 8 11 पहली तो गढ कोडमदेसररी ठोड़ मांडणरो विचार कियो हतो, पण उठे तो टिग सगिया नही । तद राव सेखैनूं जाय पूछियो । को'म्हांने काई वसणनू जागा वतावो । " तद सेखै कह्यो - 'परैरी सी मांडी जागा ।" तद इंयां कह्यो- 'परा तो म्हे नही जावां । # ईयै मगर जागा देख वसस्या ।" तद सेखै कह्यो - ' तो थांहरी दाय आवै जठ रहो ।" तद जायगा देखता फिरता हुता ।' तद सांखलै नापै आ जागा दीठी' । अठै एक गाडर व्याई हती । 2° तैनू नाहर लागो है, पण ऊरणैर्ने गाडर ले रही । " तद नापै सांखलै राव वीकैजीनू बोलाय कह्यो - 'आ जायगा देखो ।' दद रावजी पधारिया । जायगा दीठी । आ जायगा खुस कीवी । तद अठे कोटरी नीव भराई । सवण ' * लैणनू नापो सांखलो अर कांन्हो गया । " श्राया । जठै हणै कोट छै तठे आया । " ग्रठे खुडियैरो उनाव हंतौ सुठे प्राय रातो-रात सूता 1 27 तद सवणी तो सरब भेळा हुवा । 18 घडी ४ चारैहेक अ सूता ।" तठै सिरांण इयांरै एक नाग आय, एक मुरटरो बूटो हुतो, तियेरै श्रोछो-दोळो हुई, अर पूछ हुती सु मुह में झाली अर इयै भांत बैठो छै । 22 औ परभात ऊठिया । तद नाप इयै" नागनू देख 12 13 16 20 22 था, I राव वीकाजीने पहिलेतो कोडमदेसर गावकी जगह गढ बनवाने का विचार किया पर वहा तो यह टिक नही सके । 2 हमे बसनेके लिये कोई स्थान बतलाओ । 3 यहा से कुछ दूर जा कर वसनेका स्थान बनालो । 4 दूर तो हम नही जायेगे । 5 इसी समतल भूमिमे कोई ठौर देख कर बस जायेंगे । 6 तो जहा तुम्हारी इच्छा हो वहा जा कर रह जाओ । 7 ये स्थान देखते फिर रहे थे । 8 यह । 9 देखी । 10 यहा एक भेडने वच्चा दिया था । II एक नाहर उसके पीछे पड़ा हुआ है, परंतु भेड़ बच्चे को बचा रही है । 12 स्थान देखा । 13 यह जगह पसद की । 14 शकुन | I5 यहा । 16 जिस जगह इस समय कोट बना हुआ है उस जगह ग्राये । 17 यहां खुड्डोंका उनाव था यहा ही रातोरात था कर सो गये । 18 तब सर्व शकुनी भी यहा इकट्ठे हो गये । 19 चार घड़ी अनुमान ये सोये । 20 वहा इनके सिरहानेकी और मुरट नामक घासका एक क्षुप था जिसके चारो ओर गोलाकार रूपमे मुहमे पूछ पकडे हुए एक सर्प बैठा हुआ है। 21 ये प्रभातमे जग कर उठे । 22 इस 1 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] मुहता नैणसीरी ख्यात कान्हैयूँ कह्यो-'छेड़ो मती। अर नागनू देखो। तो सारा उठैसू नीसरिया, पण सरप उवै ही जागां ते भांत बैठी रह्यो।' इयांरी' निजर पडियो इतरै ताई वै होज भांत बैठौ दोठी । तद इया उठसू लीक टोरो।' देखा, कठेसू आयो छै ?" जिकै' लीक गया। सु नाग पुरांण कोटसू अायो । तद नापै कह्यो-'पाखर कोट उठे हुसी, जठै सरप कुडाळो कर बैठौ । ते इतरौ कह्यो- 'कोट पुराण कोटरी जायगा करावो ।' पछ कोट करायो । सहर वसायो। वीकानेर नाम दियो। तद केल्हण भाटीनूं खबर हुई, जु उठ कोट करायो । तद केल्हण सेखैनू कह्यो। तद सेखै कह्यो-'हू तो कोई हालू नही । ताहरां भाटी कळकरण वीकैजी ऊपर साथ कर आयो। तद नापै सांखलै रावजीतू कह्यो-' म्है सवण जोयो छ । प्रांपणो अठै थिरचिक राज छै।18 घणी पीढी ताई थाहरै पूतारै रहसी।4 प्रांपा15 भाटियांसू लडाई करस्यां। आपणी फतै हुसी 116 तद साथ थोडो हीज हुतो, पण लडाई कीवी, घोडा नाखिया।" कलकरणनू मार लियो। सारो ही साथ भागो। राव वीकैजीरी फतै हुई। तठा पछै18 भाटी कोई नही आयो। ॥ इति श्री राव वीकेजीरी वात, बीकानेर वसायो तै समरी सपूर्ण । । ये तो वहासे निकले परतु सर्प उसी जगह उसी प्रकार बैठा रहा। 2 इनकी। 3 इतने समय तक। 4 उसी प्रकार बैठा देखा। 5 तब इन्होने इसकी लीककी तलाश की। 6 देखें, कहांमे आया है ? 7 उस। 8 जहा सर्प कुडली बना कर बैठा है, (सव जगह तलाश करने पर) पाखिर कोट वहां ही बनेगा। 9 तब उसने इतना कहा। 10 मैं तो कोई चलू नहीं। II तब भाटी कलिकरण बीकाजीके ऊपर अपनी सेनाके साथ चढ कर पाया। 12 मैंने शकुन देखा है। 13 अपना राज्य यहा स्थिर रहेगा। 14 बहुतसी पीढियो तक तुम्हारे वराजोका अधिकार रहेगा। 15 अपन। 16 अपनी फतह होगी। 17 उस समय साथमे मनुष्य थोड़े ही थे, परतु घोडो को झोक कर लड़ाई की। 18 जिसके बाद । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात कांधलजीरी । कांधलजी काम आयो तै समैरी कांधळजीरो साथ गाडां सूधो' गांम सेरडै जाय रह्यो । पर्छ हासाररै फोजदार सारंगखांनरो जोर आकरो' हुवो। ताहरां उठे ठहर सगिया नही। ताहरां उठसू गाडा लेनै राजासर आय रह्या । पछै राजासरसू साथ करनै काधळजी दोडिया सु हांसाररो काठो' -सरव मारियो ।' घणो उजाड़ कियो।' उठारा चढिया पछै साहबैरै तळाव आय उतरिया। वासैसू हांसाररो फोजदार सारगखान प्राप' फोज कर आयो । ताहरा इयांनूखबर हुई । ताहरा काधळजी पण चढ साम्हां ऊभा रह्या । 1 चलती लड़ाई कीवी । ताहरां साथ फोजदाररो नजीक अाय लागो। ताहरा घोडैनू खुरी कराई । कांधळजी घोडो खुरी करावता ताहरां सदा तग, पुस्तंग, दुमची, आगबध। तूट जावता, सु तूट गया । ताहरां दीकरा राजो, सूरो, नीबो, बीजो ही साथ. हुतो तैनूं कह्यो कै-'थे फोजरो मुहडो झालो', जितरै हूं तंग सुवार ल्यां18 सु साथ ठहराय न सक्यो । पासैसू कर वध गयौ।19 ताहरां कांधळजी कह्यो-'जावोरे कपूतां ! म्हे तो थानू वाधैरै भरोसै पछवाहीरो कह्यो हुतो, के वाघो सदा ही पछवाई करतो हुतो।' पर्छ कांधळजी वांस ऊभा रहि सारंगखांनसू लडाई कर काम आया। प्रा खबर राव वीकैजीनू हुई । ताहरां चढण लागा। तद सांखलै नापै कह्यो-'रावजी ! जोधैजीनू खबर करण देवो, पछै चढ़ो ।' तद नापो राव जोधै कनै गयो। तद जोधैजी कह्यो-'कांधळरो वैर हूं लेईस ।' तै ऊपर राव जोधो उठसू वडी खेड कर I सहित। 2 तीन, बहुत अधिक। 3 तव वहा नही ठहर सके। 4 आक्रमण किया। 5 सीमा। 6 लूट-मार की। 7 बहुत नुकसान किया। 8 पीछेसे । 9 स्वय। 10 इनको। II तव काधलजी भी चढ कर के सामने आ कर खडे रहे। 12 निकट । 13 पीछेका तग। 14 घोडे के साजकी चमडेकी पट्टी जो उसकी दुमके नीचे दवी रहती है। 15 श्रागेका बध। 16 बेटे। 17 तुम फौजको आगेसे रोको। 18 जितने में मैं तंग दुरुस्त करलू | 19 पासमे होकर आगे बढ़ गया। 20 फौजका पीछेका भाग। 21 पीछे। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात चढिया। हिंसारसू सारंगखांन चढियो । गांव झासलरै ताई हाके हापह पूछणां जाह पांखां लारथा लडाई हुई। हरोळ राव वीकोजी हुता । वडी लड़ाई हुई। उठे सारंगखाननू मारियो और ही सारंगखांनरो घणो साथ मारियो । डियो । गांव झालरै नार्कहाली ॥ इति कांधळजी काम पाया ते समरी वात सपूर्ण । I जिसके ऊपर राव जोधा वडी सेना लेकर चढा। 2 एक गांवका नाम । 3 यह वाक्य स्पष्ट नहीं है। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात राव तीडैरी अर रावल सांवतसी सोनगरै इयां दोनारै भीलमाल वेढ हुई तै समैरी सोनगरां पर राव तीडैजीरै वेढ' हुई। सोनगरारा पग छूटा।' तरै राठोडां वासो कियो । सु सोनगरांरी सीसोदणी सुवळी नांम साथ हुती। सु सीसोदणीरी वैहल दोळा तीडैजीरा असवार आय फिरिया। तीडोजी पण" आय फिरिया। कह्यो-'थे वैहल फेरो।' तद सीसोदणी सुवळी कह्यो-'कासू करसो ?' तद कह्यो-'घरवासो' ।' तद सीसोदणी कह्यो-'एक कोल द्यौ ज्यु हालू ।'10 तद तीडैजी कह्यो-'मांगो।' तद कह्यो-'म्हारो जायो पाटवी हुवै ।'11 तद तीडैजी कह्यो-'भलां, पाटवी थाहरो जायोडायूँ करस्यां ।। तद सीसोदणी सुवळीनू घरे लाया । तठे अोखांणो दूहो कहै छै 'सुवळी ती. भिळ गई, सो सबळ सो सत्थ ।' । पछ सुख कियो, तरै बेटौ कान्हड़देव जायो ।14 म्होटो हुवो। कुवरपदो कान्हडदेजीनू दियो। सलखो रुळियो फिरियो ।16 अर सीसोदणी तीडोजीरे राजरी धणियांणी' हुई । जिकू सीसोदणी कियो सो प्रमाण हुवो । तर कान्हड़देजी बेटो टीकायत हुवो। _इतरै करतां गुजरातरै पातसाहरी फोज आई ।२० तद मेहवो I लडाई । 2 सोनगरे हार कर भाग गये। 3 पीछा। 4 थी। 5 वहली। 6 इधर-उधर, चारो ओर। 7 भी। 8 क्या करोगे? 9 पुनर्लग्न । 10 एक बात का वचन दो तो मैं चलू । II मेरा पुत्र पाटवी (राज्याधिकारी) हो। 12 तब तीडेजीने कहा-'अच्छी बात है । तुम्हारेसे उत्पन्न पुत्रको पाटवी बनायेंगे।' 13 ऐसे आख्यान पर यह कहावत रूप (प्राधा) दोहा कहा जाता है । अोखाणो= (१) आख्यान । (२) कहावत । इस अोखाणोका भावार्थ यह है कि-'सुवली तीडेके साथ हो गई और बहली और भोजन आदिकी जो सामग्री साथमे थी वह भी साथमे लेती गई।' 14 सुवलीके साथ सहवास किया जिससे उसके कान्हडदे नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। 15 राज्याधिकारी कुंवर (पाटवी कुंवर)का पद कान्हड़देको दिया गया। 16 सलखा रुलता फिरा। 17 स्वामिनी, मालकिन । 18 जो सोसोदनीने कर लिया या कह दिया सो सही हुआ। प्रमाण सही, प्रामाणिक । 19 इसलिये (सलखेसे छोटा होते हुए भी) टीकायत पुत्र कान्हडदे हुआ। 20 इतनेमें गुजरातके वादशाहकी फौज चढ़ कर आई । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात तोडैजीनू हुतो।' झगड़ो हुवो पातसाहसू तद तीडोजी काम आया। सलखोजी पकडीजिया। फोज परी गई। पछै राव कान्हडदेजी टीकै वैठा । वीजां राठोड़ा सलखैजीरो घणो ही कह्यो, पण इलाज कोई हुवो नही । ताहरां प्रोहित वाहड़, विजड़ औ दोनू भाईया विचार कियो। और तो किही भांत जाय सगीजै नहीं। तद कोया हुय जोगी हुवा। मुद्रा घाती।' गुजरात गया। अ प्रोहित दीदारू सखरा पण ।' अर वीण आछी वजावै । तद सहर माहै वखाण हुवो,-10'जु जोगी पण भला, वीण पाछी वजावै ।' तद पातसाहजी ताई मालम हुई।"पातसाहजी बोलाया। तद पातसाहरी हजूर गया । इंयां कने विद्या हुती सु दिखाई। पातसाह रीझियो। तद पातसाह कह्यो'मांगो ।' तद इंया हाथ जोड अरज कीवी-'जु म्हारो भोमियो कैद माहै छ सु पावा।14 तद पातसाहुजी कह्यो-'कोणसो है ? 15 इयां कह्यो'महेवैरो सलखै नामै छै ।15 तद पातसाहजी कह्यो-'छोड द्यौ।' तद सलखैनू छुडायनै महेवै लाया। कान्हडदेजी पटो दियो ।” उमरा कियो ।18 त कान्हडदेजीरै त्रिभुवणसी हुवो । अर त्रिभुवणसीरै ऊदो हुवो । तैसों (ऊदावत) राठोड हुवा । ॥ वात राव तोडेजीरी सपूर्ण ॥ शुभ भवतु 1 तव मेहवा तीडेजीके अधिकारमे था। 2 फौज चली गई। 3 दूसरे राठोडोने सलखाजीको टीका देनेके सवघमे वहुत कहा, परतु कोई उपाय काम नही आया। 4 तव पुरोहित वाहट और विजड, इन दोनो भाईयोने विचार किया। 5 और तो किसी भी प्रकार (सललेको वापित्त लानेके लिये) जाना नही हो सकता। 6 तव हैरान होकर ये दोनो भाई जोगी हो गये। 7 कानोमे मुद्रायें डाल दी। 8 ये पुरोहित दोनो भाई रग-रूपमे दीदार वाले थे। 9 और वीणा अच्छी वजाते है। 10 तव शहरमे प्रशसा हुई। 11 तव बादलायो भी खबर लगी। 12 इनके पास जो कला थी मो वहा दिखलाई। 13 वादमाह प्रमान हुना। 14 हमारा भोमिया-मरदार आपकी कैदमे है । सो हमे मिल जाय । पर मौनमा है? 16 उन्होने कहा-'मेहदेवा निवासी और सलखा उसका नाम है।' 1 माहलजीने जागीर दी। 18 अपने दरवारका उमराव बनाया। 19 जिसमे ऊदावत राठासीमावा चली। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात पताई रावल साको कियो तेरी वेगड़ो महमद गुजरात पातसाही करै ।' सु पताई रावळ ऊपर मुहीम कीवी। सु पावैगढनूं वरस १२ तांई घेरियो। पछै पताई रावळरै साळो सइयो वांकलियो तिकेरो वडो मामलो, वडो इतबार; गढीरी कूची तै वसू । तद पातस्याहसू स्याजस कीवी । कह्यो जु'म्हने सगळां ऊपर करो तो हूं गढरी कूची देऊ । तद पातस्याह कोल दियो । गढरी कूच्यां पातस्याहनूं दीवी। तद पताई रावळनू खबर हुई जु-'गढ पालटियो।" तद पताई रावळ भीतर रांणियांन पर बीजाही जनांन सारैनू कह्यो-'थे ज्युहर करो।" तद राणिया कह्यो-'म्हे ही रजपूतांणियां छां,1° म्हे ऊंची चढस्यां; अर नीचे लकड़ियारो झूपो करो।' ज्यु-ज्यु थे काम आस्यो, त्यु-त्यु म्हे कूद पड़स्यां ।' पछै गढ भिळियो, अर काम आवण लागा; तद झै रजपूतांणियां आग माहै कूद-कूद पड़वा लागी। तद सइयो वांकलियो पातस्याह कनै ऊभो पातस्याहनूं दिखावै छै-13 'प्रो फलांणो रजपूत काम आयो अर आ रजपूतांणी कूद पड़ी।14 तद पातस्याह देख अर कह्यो जु-'साबास में रजपूत, रजपूतांण्यां कू ।' पछ सरब काम प्राय चुका । सर्व रजपूतांण्यां प्राग माहै पड़ी, तद पातस्याह सइये वांकलियेनू साबास दीवी । अर ___I गुजरातकी बादशाहत महमूद वेगडा कर रहा है। 2 वह पताई रावल के ऊपर सेना लेकर चढ आया। पताई रावल का नाम यशवतसिंह था, पर इसका प्रसिद्ध नाम यही था। यशवतसिंह बडा प्रतापी वीर पुरुष हुआ है। 3 पावागढको १२ वर्ष तक घेरे रहा। पावागढ, बडोदाके निकट बडोदा-रतलाम रेलवे लाइन पर चापानेरसे पावागढको जाने वाली एक शाखा लाइन पर स्थित है। 4 रावल पताईका एक सइयो वांकलियो नामका साला, जिसका वडा रोव, बडा एतवार वाला, गढकी चाबियां उसके अधिकारमें। 5 उसने बादशाहसे मिल करके साज़िश कर ली। 6 मुझको सबसे ऊपरी (ओहदेदार) करो तो मैं गढकी चाबी दे दू। 7 गढ (का अधिकारी) बदल गया। 8 दूसरेभी। , तुम जौहर करो। 10 हम भी राजपूतानियां है। II नीचे सुलगती हुई लकड़ियोंका गज लगा दो। 12 फिर गढ पर अधिकार हो गया। 13 तब सइयो वाकलियो बादशाह के पास खडा रह फर बादशाहको दिखा रहा है। 14 यह अमुक राजपूत मरा और यह उसकी (पत्नी) राजपूतानीने ऊपरसे अग्नि मे कूद कर जौहर किया। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] मुंहता नेणसीरी ख्यात __ गढ माहै आप आयो तद कह्यो-'अबै माल-मता वताय ? 'पछै वताई।1 __ पछै काम आया था, जितरारा माथा काटनै भेळा किया। पछै सइयै वांकलियेरो माथो काट सगळां माथा ऊपर मेलियो। कह्यो'हमारा कोल था वह पूरा किया। इसने जिसका वहुत खाया, तिसका _ही हुवा नही, सु हमारा क्या होयगा ?' पातस्याह गढ लियो। पताई रावळ काम आयो । अर सइयो वाकलियो ही मारियो। गढ पालटियो। वात पताई रावळरी सपूर्ण अथ वात राव सलखंजीरी राव सलजीर पुत्र नही सु एक दिन सिकार पधारिया तद दूर पधारिया अर असवारी हुती सु सर्व वासै रह गई। पर आप सिकाररै वास्तै एकल असवार कोस ४ तथा ५ प्रागै पधारिया । सु तृखा' लागी। तद जळरी ठोड जोवण लागा। तद आगै दरखतारो झाडो दीठौ, तपधारिया । तद वळे देखै तो एकै ठोड धुवो नीसरै छै। तपधारिया।' उठे देखे तो तपस्वी १ जोगी रावळ बैठो छ। उठ जाय ऊभा रह्या, नै जोगीरै पगै लागा। तद जोगी कह्यो'वावा ! थारी किसी ठोड़ ?'' तद कह्यो-'बाबाजी ! हूं सिकार आयो थो सु म्हारो साथ वास रहि गयो । अर हूं सिकाररै वासै लागो थको आगे आय नीसरियो । सु म्हनै तृखा लागी छै सु पाणी 1 अब माल-मता बता दे ? तब बता दी। 2 उन सबके। 3 इकटू किये। 4 सभी कटे हुए मस्तकोके ढेरके ऊपर रखा। 5 उसका भी नही हुआ। 6 और जो वाहन और उनके सवार थे सो पीछे रह गये। 7 तृपा। 8 तब पानीका स्थान देखने लगे। 9 आगे वृक्ष-समूह दिखाई दिया वहां गये। 10 पुन' उस ओर देखते है तो देखा कि एक जगहमे घूत्रां निकल रहा है। II वहा गये। 12 वहा जा कर खडे रहे और योगीका चरण स्पर्श किया। 13 तुम्हारा कौन स्थान ? (कहा रहते हो?) 14 पीछे । 15 और मैं शिकारके पीछे लगा हुआ याने आ निकला। 16 मुझे। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २७ पावो ।' तद जोगी कह्यो - ' इयै कमंडळ मांहि पांणी छै, थे पीवो, अर घोड़ो तिसियो हुवै तो घोडानूं ही पावो ।" पछै सलखैजी आप ही पीयो, र घोड़ेनू ही पायो । पण कमंडळ खाली नही हुवो तद सलखैजी दीठो' जु 'प्रो अतीत सिद्ध ।" तद आप अरज कीवी । 'और तो सर्व थोक छै, पण म्हारै पुत्र नही छै । तद सिद्ध मेखळी माहे हाथ घातने गोटो १ बभूतरो, सोपारी ४ काढ दीवी ।" 'श्रो बभूतरो गोटो राणीनू देई, तेरे वडो पुत्र हुसी । तैरो नांम मलीनाथ काढे ।" और च्यार पुत्र बीजा हुसी ।" वडै बेटेनू टीको देई । " तद पाछा घरे पधारनै जे भात' जोगी कह्यो हतो ते भांत राणियांनू बभूतरो गोटो, सोपारिया विहच दीवी । " पछै कित रैकै दिने पुत्र हुवो । फेर ४ पुत्र बीजा हुवा । पछे कित रैके" दिने वडै बेटैन टीको दियो । जोगीनू बोलाय, जोगीरा ग्राभरण पैहराय रावळ मलीनाथ नांम दियो ।” पछै सुख सौ राज कियो । तपो बळी हुवो । ॥ वात राव सलखैजीरी संपूपं ॥ I इस कमंडल मे पानी है सो तुम पी लो और यदि घोडा प्यासा हो तो उसको भी पिला दो । 2 देखा, जाना । 3 यह साघु सिद्ध है । 4 श्रीर तो सव वातें हैं, परंतु मेरे पुत्र नही है । 5 तब सिद्धने झोलीमे हाथ डाल कर उसमेंसे विभूति ( भस्मी ) का एक गोला और चार सुपारियां निकाल कर दी। 6 भस्मी का यह गोला वडी रानी को देना, उसके वडा पुत्र होगा और उसका नाम मल्लिनाथ दिलवाना । 7 और चार पुत्र दूसरे और होगे । 8 वडे बेटे (मल्लिनाथ) को टीका देना । 9 जिस प्रकार | 10 वॉट दी । II कितने एक । 12 योगीको उस समय बुला कर (वर्ड वेटेको) योगीके वस्त्र पहिना कर उसका नाम रावल मल्लिनाथ रखा गया । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ गढ सझिया* तैरी ख्यात लिख्यते' समत ११०० नाहडराव पड़िहार मंडोवर वसायो । समत १३०० जाळोर मंडायो । समत १३७ · · · अलावदीन पातस्याह आयो । कान्हडदेजी अलोप हुवा । वीरमदे काम प्रायो।। समत १६१८ मालदेवजी लियो । बीजै फेरै समत १६७४ कुवर गज सिंघजी लियो। समत १५१५ ज्येष्ट सुदि ११ दोपहर सनिवार राव श्री जोधैजी जोधपुर वसायो। संमत · · चित्रागद मोरी चीतोड वसायो । समत १३१० फागण वदी १३ महमद पातस्याह महमदावाद वसायो। समत १०७७ भोज पंवार रै वेटै वीरनारायण सिवांणो वसायो। समत १५१५ वरसिंघ जोधावत मेड़तो वसायो । संमत १६११ राव मालदेवजो लियो ।" समत १५२५ वीको कुवर जोधपुरसू आय जांगळू बसियो। समत १६४५ फळोधीरो कोट राव हमीर करायो। समत · · · राव वीदै मेहवो वसायो। पैहला भिरड़ रहता।' समत १६१२ अकबर पातसाह आगरो वसायो । * अनूप सस्कृत लाइब्रेरीकी प्रतिमे 'सझिया' के स्थान पर 'मडिया' लिखा है। 1 गढ वनाये गये अथवा विजय किये गये उनका वृत्तान्त । 2 सम्वत् १३००मे जालोरका किला बनवाया गया। 3 सम्वत् १३७ मे वादशाह अलाउद्दीन जालोरमें पाया, उस समय कान्हडदे तो अलोप हो गया और वीरमदे लडाईमे काम आ गया। 4 सम्वत् १६१८मे मालदेवजीने जालोर ले लिया। दूसरी बार सम्बत् १६७४ कुत्रर गजसिंहजीने ले लिया। (एक प्रतिमे सवत् १६७४के स्थान पर सवत् १६४४ लिखा है।) 5 राव मालदेवजीने सम्वत् १६११मे मेडता पर अपना अधिकार कर लिया। 6 राव वीदेने मेहवा नगर वसाया, पहले भिरडकोटमे रहते थे। मेहवा नगर और भिरडकोट मारवाड़ देशके मालानी प्रान्तमें बसे हुए थे। दोनो सदियो पूर्व उजड गये। मेहवा नगर पहाडोसे घिरा हुआ था। इस समय वहां एक विष्णु मदिर और एक शिव मदिर तथा तीन बडे-बडे जैन मदिर स्थित हैं। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ૨e मुंहता नैणसीरी ख्यात संमत १२१२ श्रावण सुदि १२ मूळ नक्षत्र भाटी जेसळ जेसळमेर वसायो संमत ८०२ वैसाख सुदि ३ वनराज चावड़े पाटण वसायो।' संमत १११५ कमास दाहिम नागोर वसायो । समत १५७६ रावळ जांम नवोनगर वसायो। संमत १४५२ वैसोख वदि ७ देवड़े सहसमल सिरोही वसाई। अथ वात राव सीहोजी (रै वंश )री सोहेजीरो अंतेवर सोळंकणी, सिद्धराव जैसिघदेरी बेटी । तेरो बेटो पासथांन-१। दूजो वीमाह चावड़ी सोभागदे मूळराज वाघनाथोतरी बेटी। जिणरै बेटो-अज-१, सोनग-२ । आसथांनजीरै संणी उछरंगदे ईदी, बूढ मेघराजोतरी बेटी । तिणरा' बेटा-१. धूहड़-१, १ धांधळ-२, १ चाचग-३ । धूहडजीरी रांणी द्रोपदा चहवांण, लखमसेन प्रेमसेनोत्तरी बेटी । तैरै बेटा-१. रायपाळजी १, १ पीथड-~~-२, १ वाघमार---३, १. कीरतपाळ-४, १ जगहथ-५ । रायपाळजीरै अतेवर रांणी रतनादे भटियांणी रावळ जेसळ दुसाझोतरी बेटी । तैरा बेटा-१ कान्ह १ । १ साडो २ । १ लखमणसेन ३ । १ सहणपाळ ४। कान्हरो अंतेवर किल्याणदे देवड़ी। सलखा लूभावतरी वेटी। तैरा बेटा-१ राव जालणसी १ । वीजैपाळ २ । वनराज चावडाने वि० सवत् ८०२ वैशाख शुदि ३को 'अरणहिलपुर-पट्टन' बसाया। यह नगर सरस्वती नदीके किनारे पर उत्तर गुजरातमें बसा हुआ है। यह कभी 'पीरानपाटण' भी कहा जाता था। अब तो केवल 'पाटण' नामसे ही प्रसिद्ध है। 2 सम्वत् १११५में फैमास दाहिमाने नागोर बसाया। [एक प्रतिमे १२१५ सम्वत्मे बसाया जाना लिखा है। 3 आधुनिक जामनगर । 4 पत्नी, अन्त.पुर। 5 दूसरा विवाह मूलराज वाघनायोतकी पुत्री सौभाग्यदेवी चावडीसे हुआ। 6 जिसके। 7 उसके। 8 उसके । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात राव जालणसीरो अतेवर रांणी सरूपदे गोहिलांणी, गोदा गजसिंघोतरी ___ बेटी। तैरो बेटो छाडो १ । राव छाडैरो अतेवर रांणी वीरां हुलणी । तैरो बेटो तीडो १ । राव तीडैरो अतेवर चहुवांण राणी तारादे, राण वरजांगोतरी बेटी। तैरो बेटो सळखो १ । राव सळखैजीरो अतेवर राणी जाणदे, चहुवांण मजुपाळ हेमराजोतरी बेटी। तरा बेटा-१ रावळ मलीनाथ–१ । १ जैतमाल-२। बीजो वीमाह जोईयांणी, राव वीरमजीरी मा। जोईया धारदे मदोतरी बेटी ।' तीजो वीमाह गोरज्या गोहिलाणी, गैमल गजसिघोतरी बेटी। तिकैरो* बेटो सोभत-१। राव वीरमजीरो अतेवर भटियाणी जसहड़ रांणादे। तैरो बेटो राव चूडोजी-१ । दूजी रांणी मागळियाणी लाला, कान्ह केल्हणोतरी बेटी। तेरो बेटो जैसिघ-१ । तीजो विमाह चांदण पासराव रिणमलोतरी वेटी। तैरो' बेटो गोगादेजी-१। चोथो वीमाह ईंदी लाछां, उगमणसीह सिखरावतरी बेटी। जिकणरो वेटो १. देवराज-१, विजैराव-२ । रावजी चवडैरै अतेवर साखली सूरमदे, वीसळरी बेटी। तिकणरो' वेटो रिणमलजी-१। दूजी राणी तारादे गेहलोतणी, सोहड साह्न सूरावतरी. बेटी । तैरो बेटो सतो-२। तीजी राणी भटियाणी लाडा, कुंतळ केल्हणोतरी वेटी। तेरो बेटो अरडकमल-३ । 1 नय तीडेके अन्त पुरने चहुवान राग वरजागोतकी पुत्री तारादेवी रानी जिसका पुन गालमा। 2 दूसग विवाह जोईया धारदेव मदोतकी पुत्री जोईयानी जो राव वीरमजीवी माता थी। 3 तीसरा विवाह । 4 जिसका। 5 दूसरी। 6 जिसका। 7 जिगणा! 8 जिमका, उनका। 9 उनका। 10 तीसरी। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात चोथो महळ' सोनां, मोहिल ईसरदासरी बेटी । तैरो बेटो कान्हो-४। पांचमो. महळ ईंदी केसर, गोगादे उगमणोतरी बेटी। तैरा बेटा १ भीम । २ सहसमल । ३ वरजाग। ४ रुदो। ५ चादो। .६ अजो। राव रिणमलजीरो अंतेवर रांणी भटियाणी । तिकैरो बेटो जोधोजी। - राव जोधैजीरो अंतेवर रांणी सांखली नवरंगदे, रांणे मांडण रुणावतरी बेटी । तैरो बेटो राव श्री वीकोजी-~१ वीदोजी-२ । बीजो महळ हाडी जसमादेजी। तेरा बेटा-१ राव सातळ-११ १ राव सूजो-२ । १ नीबो-३।। तीजो महळ जाणादे हुलणी । बेटी भारमल जोगावतरी। राव वीकैजीरो अतेवर भटियाणी रगादे, राव सेखैरी बेटी पूगळरै धणीरी । तेरो बेटो रावजी श्री लूणकरणजी। राव लूणकरणजीरै अतेउर देवडी रांणी लाला । देवडै सहसमलरी बेटी । तेरो बेटो रावजी श्री जैतसीजी। जैतसीजीरै राव श्री कल्याणमलजी। सोढे जैतमालरा दोहीता। रांणी श्री कसमीरदेजीरा बेटा । महाराजा श्री रायसिघजी सोनगरै अखैराजरा दोहीता। राणी श्री भगतादेजीरै पेटरा।' महाराजा श्री सूरसिंघजी भाटी रावळ हरराजग दोहीता । रांणी श्री ___गगाजीरो बेटो । सासरैरो नाम सोभागदेजी। महाराजा श्री दलपतसिघजी सीसोदिय राणे श्री उदैसिघजीरा दोहीता। मा रो नाम रांणी श्री जसवंतदेजी। महाराजा श्री करणसिघजी कछवाहै हिमतसिंघजीरा दोहितरा। ___ मा रो नाम रांणी सरूपदेजी। 1 पत्नी । 2. पूगल के स्वामी राव सेखाकी पुत्री भटियानी रगादेवी राव बीकाजीके . अन्त.पुरकी रानी । 3 महाराजा रायसिंहजी सोनगरा अखैराजके दोहिते । भक्तादेवीजी रानीकी कोखसे उत्पन्न । -4 रानी श्री गगाजीका पुत्र । जिसका ससुरालमे दिया गया नाम सौभाग्य देवीजी। 5 माताका नाम रानी श्री जसवतदेवीजी। 6 दोहिता। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] मुंहता नैणसीरी ख्यात महाराजा श्री अनूपसिघजी चंद्रावत रुखमांगदजीरा दोहितरा। मा ____ रो नाम रांणी श्री कसतूरदेजी। पीहररो नाम इंद्रकुकर । महाराजा श्री सुजाणसिघजी, राजावत श्री अमरसिंघजीरा दोहीता। मा रो नाम रांणी श्री चंद्रकुंवरजी। महाराजा श्री जोरावरसिघजी, रांणावत इद्रसिघजीरा दोहीतरा। ___ माजी रो नाम रांणीजी श्री रतनकुवरजी। महाराजा श्री गजसिंघजी, सेखावत सांवतसिंघजीरा दोहितरा । माजी रो नाम राणी श्री अतभागदेजी। पीहररो नाम व्रजवरजी। महाराजा श्री सूरतसिंघजी, कछवाहै रायसिंघजीरा दोहितरा। माजी रो नाम राणीजी श्री गाहिड़देजी। 1 महाराजा घी अनूपसिंहजी रुक्मागदजी चन्द्रावतके दोहिते । माताका नाम रानी पी कस्तूरदेवीजी और पीहरका नाम इन्द्रकुंवरि। 2 माताजीका नाम रानी श्री अति भाग्यदेवीजी । पीहरका नाम ब्रजवरजी। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ जेसलमेर वात संमत १२१२ श्रावण सुदि १२ मूळ नक्षत्रे रावळ जेसळ जेसळमेर स्थापितं ॥ १. रावळ जेसळ वरस ५ राज कियो । २. रावळ सालिवाहन जेसळरो । जेसळमेर वरस १२ राज कियो । ३. रावळ वैजल सालिवाहन । मास २ दिन १५ राज कियो । ४. रावळ काल्हण जेसळरो बेटो । वैजलनू काढिनै राज लियो । वरस १८ राज कियो । 1 ५. रावळ चाचगदे काल्हणरो बेटो । वरस ३२ दिन २० वीस राज कियो । ६. रावळ कर्ण चाचगदेरो । वरस २६ मास ५ दिन २० राज कियो । ७ रावळ लखणसेन कर्णरो । वरस १८ राज कियो । ८. रावळ पुनपाळ लखण सेंनरो । मात्रे हीसूं चूको । पछे भाटिए मिळनै पुनपाळनू कोटसू उतारियो । मास ६ राज कियो । पर्छ भाटिया जैतसीनू टीको दियो । जैतसी तेजरावरो । तेजराव चाचगदेरो, तिण गढ लियो । पछै पुनपाळ पूगळ गयों । 4 ६. रावळ जैतसी तेजरावरो वर्ष १८ मास ६ दिन ६ राज कियो । पछे जैतसी वृद्ध हुवो तद काष्ट भक्षण कियो । १०. रावळ मूळराज जैतसीहरो टीकै बैठो । वरस ११ मास ८ राज कियो । पछे तुरक' आया । जेसळमेर विग्रह' हुवो । वरस १२ कमालदीन रह्यो । पर्छ सामान तूटो ।" ताहरां 1 वैजलको निकाल करके राज्य हस्तगत किया । 2 किसी विमातृसे अनुचित संबध हो गया 1 3 भाटियोने मिल करके पुण्यपालको गढसे नीचे उतरवा दिया । 4 जिसने गढ पर अधिकार कर लिया। 5 जैतसी वृद्ध हुया तव कालाकृष्ट हो गया (काष्ठने जलाकर भक्षरण कर लिया ) 1 6 मुसलमान, तुर्क | 7 युद्ध 1 8 फिर सामान समाप्त हो गया। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात रावळ जैतसी, भाई रांणो रतनसी मुंहर कर बे भाई काम आया। रावळ दूदो जसहड़रो । जसहड़ पाल्हणरो। पाल्हण काल्हणरो पोतरो। तिण आयनं जेसळमेर सूनो पडियो हुतो सु लेने टीक बैठो। वरस १० दिन ७ राज कियो। पछै पातसाही फोजां आई तद बेऊं भाई ज्युहर कर काम आया। १२. रावळ घड़सी.। रावळ जैतसीहरो बेटो घड़सी टीक बैठो ॥ वरस ३ मास ६ दिन १२ राजा कियो । तिण रावळना जसहड़े मारियो ।' १३. रावळ केहर देवरो। देवराज मूळ राजरो। मूळराज जैतसीरो। केहर वरस ३४ मास १० दिन ६ राज कियो। रावळ केहररै बेटा ४-१ लखमण । १ केल्हण । १ सोम । १ कलिवर्ण । सु लखमण टीकै बैठो। केल्हण पूगळ, मरोठ, वोकूपुर लिया ।" सोम देरावर लियो । जेसा जोधपुररी धरती माहै वडा ठाकुर जेसा-भाटी कहीजै ।" १४. रावळ लखमण केहररो । वरस ३१ दिन २३ राज कियो। १५. रात्रळ वैरसी लखमणरो। वरस १६ मास ६ दिन १७ राज कियो। १६. रावळ चाचो वैरसी रो। वरस १८ मास १ राज कियो । पर्छ अमरकोट ऊपर गयो हुतो, त? सोढे माडण कूड कर परणावणरो, नै परणायो। पछ राते सूतैन मारियो । I जोहर। 2 दोनों। 3 पौत्र । 4 जैसलमेर मूना पड़ा था सो उसने पा कर अधिकार कर लिया और राज्य-तिलक कढवा लिया। 5 फिर जब वादशाही फौजोने माझमण पिया तव दोनो भाई जौहर करके काम आ गये। 6 इस रावल (घडसी)को जमहल-भाटियोने मार दिया। 7 केल्हणने पूगल, मारोठ और विकूपुर पर अधिकार किया। 8 मोगने देगवर पर अधिकार पिया। 9 जैसा भाटीके वराज भाटी-राजपूत जोधपुनको घरनीमे बडे ठाकुर है और वे जमा-भाटी कहलाते है। 10 फिर वह अमरकोट पर चट कर गण या, किन्तु वहा सोटे माइणने विवाह कर देनेवा कपट कर उसका विवाह नदिया पार रातको मोते हुएको मार दिया। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३५ मुहता नैणसीरी ख्यात १७. रावळ देवीदास चाचैरो बेटो। तिये बापरै वैर उमरकोट पाड़ियो। सोढे मांडणन मारियो।' पछै टीक बैठो। वरस २५ मास ४ राज कियो। १८ रावळ तेजसी देवीदासरो। वरस ३५ मास ४ दिन १० राज कियो। १६. रावळ लूणकर्ण जैतसीरो। वरस २२ मास १० दिन ३ राज कियो। २०. रावळ मालदे लूणकर्णरो। वरस १० मास ७ दिन २० राज कियो। २१. रावळ हरराज मालदेरो । वरस १६ दिन १८ राज कियो । २२. रावळ भीम हरराजोत । वरस ३५ मास ११ दिन १२ राज कियो। २३. रावळ कल्याणदास हरराजरो। वरस १४ मास ६ दिन १५ राज कियो। २४. रावळ मनोहरदास कल्याणदासोत । वरस २२ राज कियो। निसंतत । २५. रावळ रामचद सिंघरो। सिंघ भांनीदासरो । भांनीदास हर राजरो टीकै बैठो। मास १० दिन २० राज कियो । पर्छ राज फिरियो। २६. रावळ सबळसिघ दयाळदासरो । दयाळदास खेतसीहरो।खेत सीह मालदेरो। रावळ सबळसिंघ रामचंदन काढिनै टीक बैठो। वरस ... मास ... दिन ... राज कियो। २७. रावळ असरसिघ सबळसिंघरो बंटो । वरस ... मास ... दिन • राज कियो। I उसने (देवीदासने) अपने वापको मार देनेकी शत्रुनाके वदलेमें अमरकोटका विध्वस किया और सोढे मांडणको मार दिया। 2 नि.सतति रहा। 3 बादमे (रावल रामचन्दके जीते-जी ही) राज्य-गद्दी बदल गई। 4 रावल सबलसिंह, रामचदको निकाल करके राज्य-गद्दी पर बैठा था । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात २८. रावळ जसवंतसिंघरै वडो कुमर जगतसिंघ हुतौ । कुवरपदै ही कटारी मार मुंवो।' तैरो बेटो बुधसिंघ टीक बैठो। पर्छ बुधसिंघनै दादी विष दे मारियो। राज तेजसिघ जसवतसिंघोतनै दियो । पछै तेजसिंघसू हरिसिंघ अमरसिंघोत तळाव घड़सीसर ऊपर चूक कर राज रावळ अखैसिघन दियो। पूगल राव १. राव केल्हण । ह राव आसकरण । २. राव चाचो। १०. राव जगदेव । ३. राव वैरसल । ११. राव सुदरसण । ४. राव सेखो। १२. राव गणेसदास। ५. राव हरो। १३. राव विजैसिंघ । ६. राव हरसिंघ । (राव वरसिंघ) १४. राव दलकरण । ७. राव जेसो। १५. राव अमरसिंघ । ८. राव कान्ह । वीकूपुर राव राव वरसिंघ कुवरपदै राव गोपै कान्हां वीकूपुर लियो। राव हरै जीवतां । जाहरा राव वरसिघ पूगळ टीकै बैठो, जाहरा बेटै दुरजणसलनू वीकूपुर दियो ।" १. राव दुरजणसल । ५. राव मोहणदास । २. राव डूगरसीह । ६. राव जैसिंघ । पाछै जै३. राव उदेसिंघ। सिघन विहारी सूरसिंघोत ४. राव सूरसिघ । सबळसिंघ रावळसूं मिळनै ___। वह कुमारपदमे ही अपने हाथो पेटमे कटारी मार कर मर गया। 2 उसका। 3 फिर हरिसिंह अमरसिंहोतने घटसीसर तालाबके ऊपर तेजसिंहको धोखेसे मार डाला और राज्य रावल असिंहको दे दिया। 4 किसी प्रतिमे हरिसिंह और किसीमे वरसिंह है। , 'वरसिंह ठीक जान पड़ता है । 5 पूगलके राव हराके वेटे वरसिंहने अपने बाप हरेके जीते-जी ही कुमारपदमे राव गोपाके पासमे विकूपुर ले लिया। लेकिन हरेके मरनेके बाद जब वरसिंह पूगलमें टीके बैग तो विकूपुर अपने पुत्र दुर्जनसलको दे दिया। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३७ जैसिघन काढियो। पछै ८. राव जैतसी। विहारीदास टीकै बैठो। ६. राव सुदरदास । पछै विहारीदासन किसने १०. राव लाडखांन । . मारियो । ११. राव हरनाथ । ७. राव विहारी। - वैरसलपुर राव राव वैरसल वैरसलपुर वसायो ।' १. राव खीवो। राव सेखैरो बेटो। ८. राव करणसिंघ । २. राव तेजसीह। ६. राव भांनीदास । (राव ३. राव मालदे। भवानीदास) ४. राव मंडळीक । १० राव केसरीसिंघ। ५. राव नेतसीह। ११. राव लखधीर । ६. राव प्रिथीराज । १२. राव अमरसिघ । ७. राव दयाळदास १३. राव मानसिंघ। मुगल-चकता-भाटी कहै छै १ चकतो भोपतरो बेटो। १ राजा रिसाळू सालवाहनरो। १ भोपत बाळवधरो। १ भाटी सालवाहनरो। १ बाळबंध सालवाहनरो। १ सालवाहन अरबिंबरो। (बाळवध) . खारबारैरा भाटी १ वाघो राव सेखैरो बेटो। ६ कुंभकरण नाथावत । २ किसनो वाघावत । ७ विहारी भैरो। ३ तेजमाल किसनावत । ८ जोध विहारीरो। ४ खगार तेजमालोत । ९ जैतो जोधैरो। ५. नाथो खगारोत I विहारीदास सूरसिंहोतने रावल सवलसिंहसे मिल कर राव जयसिंहको निकाल दिया और' बिहारीदास गद्दी पर बैठ गया, लेकिन विहारी दासको किशनने मार दिया। 2 राव वैरसलने वैरसलपुरको बसाया । 3 भानीदास और भवानीदास दोनो नाम प्रतियोमे लिखे मिलते है। 4 ये मुगल-चकता भाटी कहे जाते हैं। 5 इन दो नामोके सिवा 'वाळाववध', 'वाळंद' और 'वाळव' पाठान्तर भी लिखे मिलते है। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामजी ॥ अथ वात दूदै जोधावत मेघो नरसिंघदासोत सीधल मारियो तै समैरी राव जोधो पोढ़ियो हुतो।' वातपोस वात करता हुता।' राजवियांरी वातां करता हुता । ताहरां एक कह्यो-'एकण भाटियांरो वैर न रह्यो। एक बोलियो-'राठोडारो वैर है।' ताहरां एक बोलियो'राठोड़ारै वैर एक रह्यो-कह्यो 'किसो ?' कह्यो-'पासकरण सतावतरो वैर रह्यो । नरबदजी सुपियारदे ल्याया तदरो वैर रह्यो।' ताहरां राव जोधाजी वात सुणी। ताहरां वांनू पूछियो -'थे कासू कहो छौ ?" कह्यो 'जी-क्यूही नही। ताहरा बोलिया-'ना । ना ! कहो । ताहरां कह्यो 'जी-आसकरणर ही छोरू नही नै नरबदजीरै पण छोरू नही, तै वैर युंही रह्यो।1 आ वात सूणने राव जोधैजी मनमे राखी । प्रभात दरबार वैठा छ, तितरै कुवर दूदै मुजरो कियो प्रायन ।11 सु दूदैसू रावजी कुमया करता । ताहरां रावजी कह्यो-'दूदा ! मेघो सीधळ मारियो जोइजै ।13 ताहरां दूदै सलाम कीवी। ताहरां रावजी वोलिया-'दूदा ! आसकरण सतावतनू नरसिंघदास सीधळ मारियो हतो; 14 नरबदजी सुपियारदे ल्याया, तिय वदळे, सु नरसिंघदासरो बेटो मेघो, तियनू जाह मार । ताहरा दूदो सलाम करने I राव जोधा सोया हुअा था। 2 वातपोश लोग वातें (चर्चा) कह रहे थे। 3 एक भाटियोका वैर अव नहीं रहा। 4 कौनसा? 5 नरवदजी सुपियारदेको लाये उस समयका बैर रह गया। 6 तव उनको पूछा। 7 तुम क्या कहते हो? 8 कुछ भी नही। 9 तब कहा – नही - नहीं । कहो। 10 आसकरणके भी कोई पुत्र नहीं, और न नरददजीके भी कोई पुत्र, वह वैर यो हो रह गया। II इतनेमे कुमार दूदाने आ कर मृजरा क्यिा । 12 रावजी दूदासे नाराजगी रखते थे। 13 तव रावजीने कहा-दूदा ! मेघा सीघल मारा जाना चाहिये। 14-15 दूदा। नरवदजी सुपियारदेको ले आये थे उसके बदलेमे प्रासकरण नत्तावतको नरसिंहदास सीवलने मार दिया था। 16 सो उस नरसिंहदासका बेटा मेघा है उसको तू जा कर मारदे ।। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३६ चालियो । ताहरां रावजी कह्यो - ' दूदा ! युं जा नांह, सराजांम कर थू । आगे मेघो सींधळ छै । तै मेघो कांने नहीं सुणियो छे । ताहरां दूदो कहै - ' का तो दो मेघै; का मेघो दूदै ।" 12 ताहरां दो डेरै आयने आपरो साथ लेने चढियो । जायने जंतारणहूं * कोस ३ उतरियो । आदमी मेलियो । जायनै मेघन को'दूदो जोधावत आयो छे । श्रासकरण सतावतनू मांगै छै ।" आदमियो जाय मेनू कह्यो । ताहरां मेघै कह्यो- 'मोड़ा क्युं श्राया ?" ताहरा कह्यो - 'समझ पडी पछै तो दूदै पांणी ग्रागै प्राय पीयो छै । 8 11 ताहरां मेघो माळिये' चढियो । को- 'रे घोड्यां ईयै तरफ मता उछेरो ! ° दूदो जोधावत आयो छे, घोड्यां ले जासी, ताहरां दो बोलियो | कह्यो- 'ओ कुण बोलै ? 12 कह्यो 'जी, मेघो बोलै छै । ताहरा कह्यो - ' रे ! इतरी भुंय सुणीजै छै ? 13 ताहरां कह्यो - 'जी, मेघो सीधळ कांने सुणियो छे किना नही ? 24 ताहरा मेघैन कहाड़ियो - 'म्हारै घोड़ियांसूं कांम नही। 25 मालसू कांम नही | म्हारे थारै माथैसू कांम छै ।" परतरी वेढ करस्यां । 22 15 117 ताहरां बीजै दिन मेघो साथ करने आयो । इयै तरफसू दूदो आयो । ताहरां मेघो कहे- ' दूदाजी ! थां अवसर लाधो, रजपूत तो म्हारा सरब म्हारैं बेटैरी जांन गया । अठै तो हूं छू ।'28 ताहरा दो 118 1 Iबत रावजीने कहा- दूदा इस प्रकार मत जा; तू सरजाम कर, आगे मेघा सील है । 2 या तो दूदा मेघाके हाथ, या मेघा दूदाके हाथ । 3 अपना । 4 जैतारणसे । 5 श्रादमीको भेजा । 6 आसकरण सत्तावतको मारनेके बैरका बदला मागता है । 7 देरी से क्यो प्राये ? 8 मालूम हो जाने के बाद तो दूदाने पानी भी (अपने घर पर नही पी कर, मार्गमे) श्रागे श्राकर पिया है । 9 महल पर । म्हाळियो माळियो, माळियो =छत पर बना हुआ शयन-गृह । 10 अरे घोडियोको इस घोर चरनेको मत ले जाओ । उछेरणो= गाय, भैंस श्रादि चौपायोंके समूहको जगलमें चरनेको ले जाना । II घोडियोको ले जायगा । 12 यह कौन बोल रहा है ? 13 अरे ! इतनी दूरी पर सुना जाता है ? 14 जी यह मेघा सीधल है, कानोंसे कभी सुना है कि नही ? IS तव मेघेको कहलवायामेरेको घोडियोसे कोई सरोकार नही है । 16 मेरेको तो तेरे सिरसे प्रयोजन है ! 17 अपन अकेले ही परस्पर दावकी लडाई करेंगे । 18 दूदाजी ! श्रापको यह मौका मिला, है, मेरे राजपूत तो सभी मेरे बेटेकी बारात मे गये हुए हैं, यहां तो केवल मैं ही हूं । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात कहै-'मेघाजी ! आपां परतरी वेढ करस्यां, रजपूतांनूं क्युं मारा ? का दूदो मेघे, का मेघौ दूदै। प्रांपाहीज सांफळ हुसी। ताहरां साथ दोनां, सिरदारांरो अळगो ऊभो रह्यो। एकी तरफ मेघो आयो, एकी तरफसू दूदो आयो । ताहरां दूदै कह्यो-'मेघा ! कर घाव । ताहरां मेघो कहै-'दूदा ! थे करो घाव । ताहरां दूदै फेर' कह्यो-'मेघा ! थे घाव करो।' ताहरां मेधै घाव कियो, सु दूदै ढालतूं टाळ दियो । दूदै पाबूजीन समरन मेघैन घाव कियो सु माथो धडसू अळगो जाय पडियो । मेघो काम आयो। ताहरा मेधैरो माथो दूदो ले हालियो। ताहरां आपरा रजपूतां कह्यो-'मेघरो माथो धड़ ऊपरा मेलो। वडो रजपूत छै ।” ताहरां माथो दूदै धड़ ऊपर मेलियो। पछै दूदैजी कह्यो-'कोई गांमरो उजाड़ मतां करो।' आपणे मेघेसू काम हतो।'10 मेघेनूं मार दूदोजी अपूठा फिरिया ।11 प्रायन रावजी श्री जोधैजीनू तसलीम कीधी। रावजी बोहत राजी हुवा । रावजी दूदाने घोडो सिरपाव दियौ ।13 ॥ इति श्री दूदै जोधावतरी पात संपूर्ण ॥ I प्रपदी परस्परमे ही झडप होगी। 2 तव दोनोका साथ (राजपूत सैनिक समूह) दूर सडा रहा। 3 मेघा । तू प्रहार कर। 4 दूदा! तुम प्रहार करो। 5 फिर। 6 तब मेपेका सिर दूदा लेकर चला। 7 तव अपने (उनके) राजपूतोंने कहा-मेघेका निर घट ल्पर रख दो, वडा राजपूत है। 8 तव दूदाने सिरको घडके ऊपर रख दिया। कोई भी गांवफा युछ भी नुकसान नहीं करना । 10 अपना काम मेघेसे था। II मेघेको मार फर दूदानी वापिस लौटे। 12 पा करके रावजी श्री जोधाजीको प्रणाम किया। 13 रावजी (जोधाजी)ने दूदाको घोडा और सिरोपाव दिये । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात खेतसीह रतनसीहोत सीसोदियै चूडातरी लिख्यते 14 6 रतनसी नाढावत सीधळ, सीधळावटीरो गांम जाखोरो, तिण मांहै रहै।' तेरे बेटी मोटी हुई । " ताहरां कह्यो - 'राज ! नाळेर मेलो। " तो कह्यो - "रावळ रतनसीहरो बेटो खेतसीह छै, तैनू नाळेर मेलो । * अर भांनो सोनगरो वीदणीरें" मामो हुवै तिकैनू को - 'भाना ! जानो, नाळेर रावत रतनसीहरै बेर्ट खेतसीहनै देराडिज्यो ।" ताहसं भांने कह्यो - ' वाह वाह ! रावत साहिबीरो धणी छै । आज तो भूखो छं; पण साहिबी छै ।' नाळेर खेतसीहनू भलायो । पनरै दिनांरो साहो थापियो । ब्राह्मणानू सीख दीवी | 10 7 रावत तो बेटैसू बुरो हुतो, अर खेतसीहरै घरमें क्यु देणनै हुतो नही । 1 सुब्राह्मणांनू दियो क्युही नही । ताहरा ब्राह्मणां कह्यो - 'बाबा ! घरमे उरमे ऊंदरा थिड़ी करै छ । 12 भूखा मरे छे । ' 'तो कहियो'म्हारी दीकरी भूख मे दईस ? 12 हूं कुवै पड़ पण देवू नही | 25 13 4 15 ताहरां सगरो बालीसो सूरजमल बालीसैरो बेटो, उवैनू पनरे दिनांरो साहो थापि नाळेर मेलियो । " ताह। बालीसां जानरी तैयारी कीवी ।" ग्रठे भांने सौनगरे कह्यो - 'रावनजी ! साहो नैड़ो प्रायो, I सीधल रतनसी नाढावत, सीधलावाटीके गाव जाखोरोमे रहता है । 22 उसके एक वेटी है जो वयस्क हो गई । 3 तब कहा - श्रीमान् | इसके विवाह सम्बन्ध के लिये कही नारियल भेजिये | 4 रावल रतनसिंहका बेटा खेतसिंह है उसको नारियल भेजिये । S दुलहिन । 6 जिसको । 7 भाना । जाओ और यह नारियल रावत रतनसिंहके वेटे खेतसिंहको दिलवा देना । 8 ग्रहरण करवाया, दिया । 9 पन्द्रह दिनो (के वाद ) का लग्न निश्चित किया । 10 ब्राह्मणोको रवाना किया । II रावत तो बेटेसे नाराज था प्रोर खेतसिंहके घरमे देनेको कुछ था नही । 13 भूखो मरते है । गरीवी भुगतते है । 4 मेरी लडकी क्या में ऐसे दरिद्रावस्था वालेको दूगा 15 में कुएंमे पड जाऊ परतु ऐसे को नही दूं । 16 तब सूरजमल वालीसेके लडके मगरा वालीसेको पन्द्रह दिनोका लग्न निश्चित कर नारियल भेजा । वालीसोने बारात की तैयारी की । 12 घरमे-वरमें तो चूहे थिडी करते हैं । 4 ? 17 तव Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] महता नैणसीरी ख्यात खेतसीहनू परणावस्या । ताहरा रावतजी कह्यो-'यो खेतसीह छै, ले जाय परणावो । __ ताहरा कह्यो-'वोदरै चढणनू घोडो नही छ, सु आपरो असवारोरो घोडो देरावो। ताहरां रावतजी कह्यो-'भांना ! यो घोडो द्यु नही। पण तोईज कनै राखीजै जाहरां तोरण वादै ताहरा चढणनू देई ।" ताहरां भानै कह्यो-'भलां, राज ' मो कने हीज राखीस।" जणा ४० साथै दिया। कई ऊंठ चढिया, कई घोड़े चढिया। भानो साथै हुवो। हालिया।' प्रागै घाटो उतर घाणोरा गाव छै तठं' डेरो कियो। उठ गोठरी तैयारी हुई छै । 10 बाकरा11 मारिया छ । तठे तळाव ऊपर वावडी12 छ । तिण ऊपरा वड छै ।13 तगांमरो पणघट1 लाग छ । भानौ अर खेतसीह जगळ चालिया। 15 जगळ जायन खेतसीह वै वड़री साख झाल ऊभो छै।18 जितरै वै वावडी माहै एकै बैर एक बरसू कहै छै'-'यो वीद परणीजण हालियो छै, तिकै ऊपर एक वळे ही प्रावै छै । पछै ओ परणीजसी, कना ऊ परणीजसी ?'2° आ वात खेतसीह साभळी।21 इतरेमे भांनो आयो । ताहरां खेतसीह बोलियो-'भांनाजी ! आवो, वधाई देवां।' ताहरां कह्यो- 'सखरी वधाई देई । कहियो-जिकी आपां वीदणी परणीजण हालिया छां. तिकैन और पण वीद परणीजण I इधर भाना सोनगरेने कहा-'रावतजी ! लग्न नजदीक आ गया है, खेतसिंहकी शादी करेंगे। 2 यह खेतसिंह है, लेजा कर ब्याह दो। 3 अपनी सवारीका घोडा दिलवाइये। 4 भाना! यह घोडा इसे नही दू । 5 लेकिन तेरे पास ही रखना, जव तोरण-वदन करे, तब इसे चढनेको दे देना। 6 अच्छा श्रीमान् ! मेरे पास ही रखूगा। 7 रवाना हुए, चले। 8 पहाडका तग मार्ग, दर्रा। 9 वहा। 10 वहा पर भोजनकी तैयारी हुई है। II वकरे। 12 बावली, वापी। 13 जिसके ऊपर एक वट-वृक्ष है। 14 पनघट । IS भाना और खेतसिंह शौच निवृत्तिको चले। 16 शौच-निवृत्तिसे पा कर खेतसिंह उस वरगदकी एक वरोहको पकड कर खडा है । वडरी साख=वट-वृक्षकी जटा, वरोह। 17 उस समय उस बावलीमे एक स्त्री एक अन्य स्त्रीसे कहती है। 18 यह दूल्हा विवाह करनेको चला है | 19 इसके ऊपर एक और (दूल्हा) भी आ रहा है। 20 तव फिर यह व्याहेगा किंवा वह व्याहेगा ? 21 यह वात खेतसिंहने सुनी। 22 इतनेमे। 23 अच्छी वधाई देना। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ४३ आवै छै । कह्यो-'जी, थांन किण कह्यो? -'जी, यां बैरां कह्यो। ताहरां भांनो रीस कर कहण लागो-'क्यु जी रांडां ! थे काहू कहो छो ?'4 ताहरा नैरां कह्यो-'जी, इयै गाम माहै कुंभार नही छै, वेह म्हां घडी छै। म्हांन चोकस समचार छ । ताहरा भांन कह्यो-'थानू' चोकस खबर छ ?' ताहरा पिणहारिया कह्यो-'सगरो सूजावत आवसी।' ताहरा भांने कह्यो-'हू जाईस, म्हारे बहनेई छ । तियांनू पूछिस। प्रो कास् ?' ताहरा भांनै चढि खड़िया। गांम आयो। आगै ढोल वाजै छ। न्यौतिहार आवै छै ।° भांनाजी तोरण जाय खड़ा रह्या। कहियो'भानोजी ही आया।' ताहरां कोई न कहै 'श्रावो न जावो।' - ताहरा भांनो भीतर मेहन, हनेई कनै आयो, कह्यो-'जान चूडावतारी आई छ ।' ताहरां कहियो-'भाना ! चवंडावत नू दीकरी परणावा नही ।' ताहरां भांने कह्यो-'ठाकुरां! थे बुरी करो छो; 12 अर म्है मांहि हुयनै सगाई कीवी छ । हू थाहरै प्रागै पेट मारनै मरस्य ।14 ताहरां बोलियो-'भाना | थारी कटारी मैली छै, आ ले म्हारी कटारी ।16 म्हैं काले ही वाढ दरायो छ ।' 16 ताहरा भान कह्यो-'समधा जी !'17 , भान तो चढ खडिया। पाछौ खेतसीह कनै आयो। रोटा हुवा जिस दुल्हिनको अपन व्याहनेको चले है, उसको और भी कोई दूल्हा व्याहनेको श्रा रहा है । 2 तुमको किसने कहा? 3 इन स्त्रियोने कहा। 4 क्यो हे रडायो । तुम क्या कह रही हो? 5 इस गावमे कोई कुम्हार नही है अत. वेह हमने वनाई है। वेह-विवाह-मडपके चारो कोनोमे रखे जाने वाले (वडे घडेके ऊपर क्रमसे छोटा इस प्रकार) समायुत सात-सात मिट्टीके घडोका एक मगल-कलश-समूह। 6 हमको सही पता है। 7 तुमको। 8 मैं जाऊंगा, वह मेरा बहनोई है, उनसे पूछू गा, यह क्या (कबाडा) ? 9 तव भाना चढ करके रवाना हुआ। 10 निमत्रित लोग आ रहे हैं। 11 चूडावतको वेटी नही व्याहेगे। 12 ठाकुरो । तुम बुरा कर रहे हो। 13 मैने अदर रह कर सगाई की है (मेरी मौजूदगीमें सगाई हुई है ।) 14 मैं तुमारे सामने पेटमे कटारी मार कर मरूगा। 15 तेरी कटारी मैली (कुद) है, यह ले मेरी कटारी। 16 मैने कल ही इसके धार लगवाई है। 17 समझ गये जी । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात हुता, रोटा जीमिया।' जीम'र कह्यो-'चालो पाछा जावां ।' ताहरां खेतसीह कह्यो-'वाह, वाह । भावे थे परणाय ले जावो, भाव थे कवारो ले जावो ।' चढि खडिया । पाछली थापो।। ताहरा कह्यो-'भानाजी । प्रो त्रैराकी तो द्यो, कोस २ चढां। रावतजी कह्यो-'था तोरणरी वेळा चढण देज्यौ , सु तोरण ही रह्यो। ताहरा भांनो घोडो देण मे न हुती, पण साथ सारो ही कहै-'घोडो द्यो ।" ताहरा भानै घोडो दियो। खेतसीह घोड़े चढियो। ताहरां भांनै दोय जलेवदारानै कह्यो-'घोडैरी वाग झालो।" ताहरां 4 गावरी बावडी कनै आया। ताहरा खेतसीह बोलियो-'हो गाना | अ नैरां कहै छ, जु शो वीद रोवतो जावै छै; सु थे म्हानू काय भांडौ ।' इतरै माहै जलेबदारा वाग छोड़ी। ताहरां दोय तीन गज्यदा नखाय1 घोड़ेन, मूछा हाथ फेरनै कह्यो-'इसडो कुण छ मा-जायो, सु म्हारी माग परणीजसी ?12 यु कहै बापडां पाछा खडिया ।" ताहरा भांने कह्यो सगळे ही साथनू 4 -'ज्यो थे पाछा पधारो, हू खेतसीहनूं मनाय ले अावू छू ।' ताहरां भांनै आपडियो वासांसू खेतसीहनू । वतळायो, खेतसीह बोले नही । ताहरां खेतसीहनू कह्यो-'तूं तो पाछौ नी घिरै, पण मोनूं मुवैही सरत ।' तो कहियो-'हवे !'17 ताहरां कह्यो-'आवा मिळा ।' ताहरा मिळिया। . I रोटा (एक भोजन) हो गये थे अतः रोटे खा लिये। 2 चाहे विवाह करके ले जानो चाहे कवारा ही ले जायो। 3 लौटनेका निश्चय किया। 4 यह ऐराकी घोडा तो दे दें, दो कोम तो इस पर चढ लू । 5 रावतजीने कहा था कि तुम इसे तोरन-वदनके समय चढने को देना, सो तोरन-वदनकी वात तो अब नहीं रही। 6 तव भानाकी मर्जी घोडा देनेकी नहीं थी, लेकिन सभी साथ वाले कहते है कि घोडा दे दो। 7 घोडे की बाग पकड़े रहो। 8 तव उस गावकी वावलीके पास आये। 9 ये औरतें कहती है कि यह दूल्हा तो रोता हुआ जा रहा है सो तुम मुझे क्यो वदनाम करवा रहे हो। 10 इतनेमे जलेवदारोने लगाम छोड दी। 11 कुदवा कर । छलागें भरवा कर। 12 ऐसा कौन अपनी माताका वीर पुत्र है सो मेरी मगेतरको व्याह लेगा ? 13 यो कह कर तेज दौड़ा कर लौट चले (पापडाघोडे कट प्रादिकी तेज दौड) 14 तव भानाने सभी साथ वालोको कहा। तब पीछेमे तेज चल कर भाना खेतसिंहको पहुंच गया। 16 परतु मुझेतो मरना ही - पडेगा। 17 हा। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ४५ . . ताहरां खेतसीह कह्यो-'भांनाजी ! थे आगे खड़ौ, भूमिया छौ।'' पछै बेहू भेळा हुयनै खड़िया ।" तितरै दीह प्राथम्यौ। ताहरां कह्यो__“जी, इयै धरतीमें जाळा हुवै छै, कोई आगू लीजै तो भलौ । ताहरा उवै धरती मांहै आगू सरगरा हुवै छै । ताहरा सरगरैनू कहियो। ताहरा सरगरै कहियो-'च्यार फदिया लेइस ।" ताहरा कहियो–'त्रै च्यार फदिया, एक दुपटो।' तितरै एक ऊठि आयो, इंयांरो पटेल । पटेल कहियो-'अठै जानरो ऊठ भागो छ,' सु वसत गाडै घालने प्रांणता हता। ताहरा ईयां पूछियो'-'जान करी ?'10 ताहरा कहियो-'जांन बालीसांरी छै ।11 कहियो-'भैही जाय मुह आगे • हाथी असवार हुवा ।12 पर्छ अ ठाकुर आय भेळा हुवा।13 खड़िया पांच सै असवारांरी गाठ चाली जावै छै । अर अ उतर हाथी सौ अर जीणपोस नाखनै प्याला ३ दारूरा पिया। ___इतरै सांमेळो सांमो आयो 115 जानी, मांढी भेळा हुवा । पछ खडिया पाच सौ असवारारी गांठ चाली जावै छै । ताहरा भानै कह्यो'खेतसीह ! खाथो मतां हुवै ।17 कहियो– 'नां, जी, खाथो कोई हुवू नही । ___अठै तोरण हेठे आय ऊभा रहा छै पागड़ा छाडि नै ।18 कई - - I तुम जानकार हो आगे चलायो। 2 तब दोनो सामिल होकर चले। 3 इस वरतीमे जालोके वृक्ष बहुत होते हैं। 4 उस। 5 चार फदिये लूगा (फदिया एक छोटा सिक्का) 6 इतनेमे एक ऊंट-सवार आया। 7 यहा वारातका ऊट टूट गया है। 8 सो उस परकी चीज-वस्तु गाडे मे डाल करके ला रहे थे। 9 तव इन्होने पूछा। 10 वरात किसकी है ? JI वारात वालीसा राजपूतोकी है। 12 ये मुहके आगे (थोड़ीही दूरी पर) ही हाथी पर सवार होकर जा रहे है। 13 पीछे ये ठाकुर आ कर सामिल हो गये। 14 पाचसौ सवारोका समूह अपने वाहनोको चलाते हुए चला जा रहा है। 15 इतनेमे सामेला सामने आया। (सामेळो=कन्या पक्षकी पोरसे किया जाने वाला वरातका एक स्वागत-आयोजन) 16 वराती और कन्या पक्ष वाले इकट्ठे हुए। 17 उतावला मत हो। 18 वाहनोसे उतर करके यहां तोरनके नीचे श्रा कर सडे हुए है। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] मुँहता नेणसीरी ख्यात 2 6 चढिया खडा छै । वरहेड सांमो श्रावै छै । वीद तोरण हेठ ऊभी छै ।' वरहेडौ आयो । इतरे माहै खेतसीह वाहीज । ताहरां वीदनू 'खमा' कहियौ । * ताहरा खेतसीह कहियौ - 'खमा मो खेतसीहनू ।" केही न वाहता दीठी न म्यान करता दीठो ।" इम हीज घोडो डकायो । ' कहियो - 'भाना | आवौ । हमें ज्यो उतरिया सु उतरिया । अर चढिया ऊभा हुता तिकै उवारे वास हालिया । कह्यो - 'हा, जावण न पावै, ग्रापड़िया । 8 खेतसीह तो मोहरै छै । " र भानैनू लोहडा हुवा | 10 भानो मारियो । मार अर पाछा श्राया । ग्राय ग्रर कह्यो - 'हो ठाकुरे । मांहरै कोई वैर नही । म्रो खेतसीह कुण ? ताहरा कह्यो - ' जी, श्र खेतसोह चूडावत । ग्रा सगाई इयै भांत कीवी हुती ।"" ताहरां कहियो'फिटो, या वात म्हानू पैहली कही हुवत, जु वीदणी प्रांट भरी है, ज्यु म्हे जतन करत । " पण हिवै म्हा खेतसीह मारियो छे । श्रवो जोवां 15 जाय अर जोयो । ताहरां कह्यो- 'जी, श्री भानो सोनगरो छ । प्रो खेतसीह न हुवै । 13 14 116 11י? 1 1 साम्हने से वरहेडा ग्रा रहा है । ( वरहेडो = वरके लिये स्वागत - पूजा श्रादिकी सामग्री | इसे वरवेडो या वरदेहडो भी कहते है | कही कही तोरन पर ग्राये हुए वरको पुखनेके लिये आरती आदि मांगलिक उपकरणो के साथ वरवेहडो भी होता है । वरके साथ बारातका स्वागत करनेके समय तो इसका उपयोग सर्वत्र होता है । वरवेहडो प्राय सुराही जितना मिट्टीका छोटा घडा होता है जिसके ऊपर एक इससे भी छोटी मिट्टीकी लुटिया रखी रहती है । वरवेह्डो अनेक रगोसे चित्रित होता है और उसमे दूव ग्रक्षत आदि मागलिक वस्तुएँ रखी रहती हैं । यह एक मंगल कलश है, जिसे विवाहादि अवसरो पर गीत गाती हुई अनेक स्त्रियोके साथ एक सधवा स्त्री इसे अपने सिर पर उठा कर मंगल शकुनोके रूपमे वर श्रर वारातका स्वागत करती है ।) 2 दुल्हा तोरनके नीचे खडा है । 3 इतनेमे खेतसोहने प्रहार कर ही दिया । 4 उम समय पासके खडे लोगोने दुल्हेको 'खमा' कहा । ('खमा' शब्दका श्रर्थ - क्षमा होता है, परंतु राजस्थानमे इसका 'आयुष्मान्' जैसा प्राशीर्वादात्मक अर्थ होता है । राजात्रोको अभिवादन के समय इसका प्रयोग किया जाता रहा है | ) 5 तव खेतसिंह ने कहा - खमा तो मुझ खेतसिंह को है । 6 किमीने न तो प्रहार न तलवारको म्यान करते ही किसीने देखा । 7 इसी प्रकार उसने घोडे को भी लॅघवा ( कुदवा ) दिया | 8 कहा- हा, जाने न पावे, पकड लेना । 9 खेतसिंह तो मव से आगे है । 10 और भानाको तलवारके प्रहार लगे । II यह खेत सिंह कौन ? 12 यह सगाई इस प्रकार इनके साथ की हुई थी । था सो हो गया, यह वात हमे पहले कह दी होती कि यह दुल्हिन टटेकी है तो हम प्रवन्ध 13 अस्तु, जो होना करते | 14 परंतु अव तो हमने खेतसिंहवो मार दिया है। 15 आयो देख लें । 16 यह मह नहीं है । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नेणसीरी ख्यात [ ४७ 2 4 6 ताहरां को - 'ठाकुरे ! म्हे खेतसीह पावा ।" कहियो - 'खेतसीह तो नहीं पावौ । पण खेतसीहरो भाई जगौ चूडावत, सात वोस गामारी धणी, 3 म्रिगासर परणीजणनू प्रायो छे, सु - जावी, जगौ थांहरै हाथ ग्रावसी ।" इयां दोय से ग्रसवारां खड़िया । " पण खेतसीह तो पैहली जगै कनै' प्रायो, प्रायनै कहियो - 'मै सगरौ वालीसौ मारियो; और बालीसा सारा ही छै, सो हालो' आपां कूभळमेर जावां ।' ये चढि र घाटो उतरिया । 10 असवार औ पाछै आया। आयनै ऊभा रहिया । " मारे किणनू ? 12 कहियो - 11 'ठाकुरे ! अठै जगो न प्रायो हुतौ ? म्हे न्यौतिहार आया छा । 13 कहियो - 'जी, खेतसीह सगरी बालीसी मारियो, सु जगैनू ले र कुभळमेररै घाटै उतरिया ।' 8 ताहरां ग्रै असवार पाछा आया । आयनै देखें तो सगरौ तोरण नीचे पडियो छे । ताहरा को - 'जी, सती हुवी, सगरैनू लेने | 24 सतीनू कहौ जु बाहिर आवै, ज्यु सगरैनू दाग देवा । " ताहरां वीदणीनू भीतर जाय कहियो । ताहरां वीदणी कह्यो - 'खेतसीह मारियो 1 16 117 18 हव तो हूं सती न हवू । 1" सगरैनू घीसने नाख देवौ । ” पाछे प्रायने कहियो - 'जी, संभै नही ।" ताहरां कहियो - 'जी, म्है एकलै ही सगरैनू बाळा ?" तो कही - 'म्हे प्रणसंभाही ही सती करा ? '20 ताहरां कह्यो– 'आवौ बारै ।" ताहरां जांनी ही सिलह पहरै छै, मांढी ही सिलह पहरे छे । बेहुं हथियार बांधे छै, सिलह पैहरीजै छ 21 22 । " 10 ये चढ करके हमे खेतसिंह मिलना चाहिये । 2 सत्ताइस ( १४० १ ) 13 स्वामी । 4 मृगासंर गावमे व्याहनेको श्राया है। 5 जगा तुम्हारे हाथ आ जायेगा । 6 ये दोय सौ सवारोके साथ चले । 7 पास । 8 और सभी वालीसे यहा है । 9 चलो । घाटी पार हो गये । II आ करके खडे रहे । 12 किसको मारे ? होकर आये है । 14 तब कहा कि सगरेको ले करके सती हो । 15 16 तव दुल्हिनने कहा – इसे खेतसिंहने मारा है प्रत मै श्रव 17 सगरेको घसीट कर फेंक दो हम अकेले ही सगरे को जलायें ? व्याही हुई) को भी सती कर दें ? 22 तव वराती भी सिलह पहिन रहे 13 हम निमंत्रित तो सगरेको जला दें । । सती नही होऊगी | 18 तैयार नही हो रही है । 19 तब कहा कि क्या 20 तो उत्तर दिया कि क्या हम विना तैयार हुई ( विना 21 तब कहा - लड़नेके लिये बाहर आ जाओ । हैं और माढी ( कन्या पक्ष वाले) सिलह पहिन रहे है । दोनो र शस्त्र बाघे जा रहे है और सिलह पहिने जा रहे है | Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] मुहता नैणसीरी ख्यात तत्पट्टे चंदगिर वर्ष १० राज्यं कृतं । तेहनै पाट राजा कर्ण वर्ष ३० राज्यं कृत । [पृष्ठ ४६ की टिप्पणी चालू ] परतु 'वात अरगहलवाडा-पाटगरी' (प्रथम भाग, पृ २५६) मे इन आठो गासकोके शासककालका योग १६८ वर्ष ६ मास ही होता है। वहा जो इन शासकोकी सूचीके नीचे जो कवित्त दिये गये है उनके हिसावसे भी इन आठोका शासन-काल १६८ वर्ष होता है, परतु प्रथम कवित्तकी प्रतिम झड चावडा राज अपहलनयर, कीव वरस सौ छीनवह ॥ और दूसरे कवित्तको प्रथम और दूमरी झडमे भी पाठ छत्र चावडा, कीव पाटण घर रज्जह । वरस एकसौ छिनु, गया भोगवी सकज्जह ।। के अनुसार १६६ वर्ष ही होते है। इसी प्रकार चावडोके वाद सोलकियो और वाघेलोके शासको और उनके शासन-कालमे भी इन दोनो स्थानोमे परस्पर बहुत अधिक अतर है। वातमे सोलकियोके शासक १० है जिनका शासन-काल २६६ वर्ष है और यहा ६ शासकोके शासनके २५१ वर्ष ३ मास और २८ दिन है। __ वाघेलोंके वातमे पाच शासक है और १०६ वर्ष उनके शासन-कालके बताये गये है। देवराजके समय माधव ब्राह्मण अलाउद्दीनको ले आता है। इवर दो पीढियोके ७० वर्ष ७ मास और ४ दिनके बाद तीसरे शासक करण गेहलेके समयमे माधव अलाउद्दीनको ले आता है। ख्यातो, विगतो तथा हकीकतो एव वगावलियोंमे शासकोके राज्य-काल और नगरो और गढ़ों आदिके निर्माण-कालका अनेक विध विवरण गद्य-पद्योमे मिलता है, परतु उनमे समानता वहुत कम पाई जाती है। हमारे सग्रहकी अनेक विगतकी प्रतियोमे से, एक प्रतिकी, जिसमें मास, दिनका विशेप विवरण होने के कारण, उक्त दोनो विगतोकी तुलनाके लिये केवल अरणहलपुर पाटणकी विगत यहा दे रहे है, जिससे सही बात जाननेका आधार मिल सके। 'सवत् ८०२ वर्षे वैशाख सुदि ३ रवौ रोहिणी, तत्काल मृगशिर नक्षत्रे वृषस्थे चद्रे, साध्य योगे, गर करणे सिंह लग्ने, मध्यान्ह ममये अरणहिल्लपुरस्य शिलानिवेशस्तस्यायुर्वद्ध वर्ष ५२०० मास ७ दिन ६ घटी ४४ । तत्रपूर्व वरणराज स्थिति, वर्ष १८६ मास ६ दिन १६ चाउदा छा व्यक्तित । तत्रपूवं स्थिति १. वृद्ध वणराज राज्य वर्ष ६५ मास २ दिन १ २. जोगराज राज्य वर्प १० मास १ दिन १ ३ राणादित्य राज्य वर्ष ३ मास ३ दिन ४ ४ वयरसीह राज्य वर्ष ११ मास x दिन २ ५. क्षीमराज राज्य वर्ष ३८ मास ३ दिन १७ ६ चामुडराय राज्य वर्ष ३४ मास ४ दिन १७ I जिसके, उमके। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ मुंहता नैणसीरी ख्यात ___ संमत ११५० वर्ष सिद्धराज जैसिघदे वर्ष ४६ राज्यं कृतं । पर्छ वर्ष ३ सिद्धराजरी पावडी राखिन सरब अमराव कांमती दरबार करता। [ पृष्ठ ४६ की टिप्पणी चालू ] ७ याकडराय राज्य वर्ष २६ मास १० दिन २० ८. राय भूवड राज्य वर्ष २७ मास ६ दिन ५ ततो वर्ष २६९ मास १ दिन २० सोलकी राज्य १२ तेषा व्यक्ति १ वृद्ध मूलराज राज्य पूर्वं वर्ष ५६ मास १ दिन २४ २ बलभराज राज्य वर्ष 'मास ५ दिन २६ ३ दुल्लभराज राज्य वर्ष १२ मास'' दिन ५ ४ वृद्ध भीमदेव राज्य वर्ष ४२ मास १० दिन ६ ५ वृद्ध कर्णदेव राज्य वर्ष २६ मास ८ दिन १२ ६ जयसिंहदेव राज्य वर्ष ४८ मास ८ दिन १५ पाट शून्या ततो वर्ष 'मास २ दिन १२ ७. कुमारपाल राज्य वर्ष ३० मास १ दिन २७ ८ अजयपाल राज्य वर्ष ३ मास १ दिन २८ ६ लघु मूलराज राज्य वर्ष २ मास • दिन ४ १० लघु भीमदेव राज्य वर्ष ६५ मास २ दिन २० ११ लघु जयसिंघदेव वर्ष ३ मास ६ दिन... १२ तिहुणपालदेव वर्ष २ मास' दिन १२ एव द्वादस छत्रारिण। तदनुवर्प ५८ मास ३ दिन ४ वाघेला छत्र ४ पूर्व १. वीसलदेव वर्ष १६ मास ७ दिन ११ २ अर्जनदेव वर्ष १३ मास ७ दिन २३ ३. सारगदेव वर्ष १० ४ कर्णदेव वर्ष ८ एव २४ छत्र जातानि अणहिलपुर शिलानिवेश तदनुगत वर्ष ५४७ मास १ दिन २५ यावत् तत सवत् १३४६ वर्षे मास ८ दिन २६ छत्र २४ ततो वर्षे १ मास ४ दिन १० राज भय अस्त रह्यउ । एव सवत् १३५१ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे दशम्या तिथी गुरुवारे महः माघवेन म्लेचा आनीना । वातमे कोटकी नीव भरनेका सम्वत् १०१ वैशाख सुदि ३ है, तो यहा सम्वत् ८५२ सावन सुदि २को स्थापना होना लिखा है। अनूप सस्कृत लाइन्नरी वीकानेरकी ख्यातकी प्रति I पीछे तीन वर्ष तक सिद्धराजकी खडाऊ सिंहासन पर रख कर सभी उमराव कामेती दरबार भरते। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरा वीदणी दीठो, अर मा अर बापने कहियो - 'हे ठाकुरांरजपूता ! हू वैर खेतसीहरी छ; श्रर एकलीरें वास्तं घरणा जीव मरं छे, ते हूं सगरे साथ बळीस ।" वीदणी बाहिर प्राय सगरे साथै वळी ।" बाळ अर बालीसा हुता तिके नाडूल आया । सीधळ सीधळावटी ग्राया । ॥ इति खेतसीहरी वात सपूर्ण || 1 तत्र दुल्हिनने देखा और अपने माता-पिता से कहा ( और राजपूतोंसे भी कहा ) कि राजपूत ठाकुरो | मैं खेतसिंहकी पत्नी हूं, परंतु मुझ एकके लिये कई प्राणी मरनेको तैयार हुए हैं त मैं मगरेके साथमे जल जाऊगी | 2 सगरेके साथ मे जल गई । 3 जला करके वालीसा राजपूत थे दो नाडोलको चले गये । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || श्री गुणेशाय नमः ॥ अथ गुजरात देश राज्य वर्णनम् संमत ८५२ वर्षे श्रावण सुदि २ गुरुवार चावड़े वणराज अणहलपुर-पाटण वसायो । पाटणनी स्थापना कीधी।' वणराज वर्ष ६० राज कियो। तत्पट्टे वणराज पुत्र योगराजेन राज्यकृत वर्ष ६ । संमत ८६१ वर्षे शलादित्य वर्ष ३ राज्यं कृतं । संमत ८९४ वर्षे राजा वैरसिघ राज बैठो। वर्ष ११ राज्यं कृत। तत्पट्टे राजा खेमराज राज्यं कृत वर्ष ३६ । तत्पट्टे राजा चामंड वर्ष २७ राज्य कृत। तत्पट्टे राजा घाघड़दे वर्ष ३५ राज्यं कृत । तत्पट्टे अड़राज' वर्ष २६ राज्यं कृतं । समत १०१७ वर्षे एतले चावड़ा वंश राज्य पूरो हुवो। वरस १६६ चावडा अणहलपुर-पाटण राज कियो । पछै दोहीतरै मूळ राज राज लियो । , समत १०१७ मूळदेव अणहलपुर-पाटण राज बैठो। दोहीतरनू राज ओयो। वर्ष ४५ राज कियो। ५रलादित्य और राणादित्य पाठ भी कई प्रतियोमे लिखे है। दूगडजीने 'रत्नादित्य' नाम लिखा है। 'वात अणहलवाड़ा पाटणरी' (प्रथम भाग, पृ २५६ मे) नैणसी ही ने 'राजादित' लिखा है। * कई प्रतियोमे घायडदे, गाहडदे और गाहडदेव नाम लिखे है । अरणहलवाडा पाटणकी वातमे 'गूडराज' नाम है। ___+वात अणहलवाडा पाटगरी मे ८वा शासक 'भोवडराज' लिखा है। और छठा शासक चामडकी जगह 'चूडराव' लिखा है। सम्वत् १०१७ तक चावडोके राज्यको १६६ वर्ष ही होते है, परतु जिन आठ . चावडे शासकोका राज्य-काल लिखा है, उनका योग २१३ होता है । ४७ वोका अतर है। पाटणकी स्थापना की। 2 जिसके पाट पर वरणराजके पुत्र योगराजने ६ वर्ष राज्य क्यिा। 3 जिसके पाट पर । उसके बाद उसके पाट पर। 4 सम्बत् १०१७में इतने चावडा वशके शासकोके वाद चावडोका राज्य समाप्त हुआ। 5 दोहिते। 6 सम्वत् १०१७मे मूलदेव अरणहरापुर-पाटणके राज्य-सिंहासन पर बैठा । दोहितेको राज्य प्राप्त हुआ। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] पछै वरस ३ राज्य चलायो । पर्छ जैसिघदेरो भाई राणो तिहुयणपाळ, तेरो बेटो कुवरपाळ टीकै वैठो । संवत १९६६ काती सुदि ३ कुंवरपाळ टीकै बैठो । वर्प ३० मास १ दिन ७ राज्यं कृतं । 2 तियेरै पाट छोटो भाई महिपाळदे वर्ष १३ मास २ दिन ७ राज कियो । ७ तत्पुत्र अजयपाळ वर्ष ३ मास 8 राज्य कृतं । तत्पट्टे लघु मूळदेव वर्प ३२ मास ४ दिन ६ राज्यं कृतं । तत्पट्टे राजा भीम वर्ष ३४ मास ११ दिन ८ राज्य कृत । तठा पर्छ वाघेला पाटणनो राज लियो । सवत् १२५३ राज फुरियो । 4 [ पृष्ठ ४६ की टिप्परगी चालू ] पत्र ६७मे पाटरणकी कुडलीके साथ सम्वत् १०२ वैशाख सुदि ३ लिखा है और विगतोमे सर्वत्र ८०२ मवत है। अनूप संस्कृत लाइब्रेरीकी कुंडली और हमारे पास एक विगतकी कुंडली मे भी साधारण प्रतर है । लाइब्रेरीकी कुंडलीमे शनि तीसरे घरमे और मगल छठे घरमे स्थित है और हमारे पासकी विगतमे शनि दगवें घरमे, शुक्र चद्रमाके साथमे और मगल ११वे घरमे राहुके साथ बैठा हुआ है । अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेरकी स्यातमें लिखी हुई कुडली इस प्रकार है श ७ के. ८ १० मुंहता नैणसीरी ख्यात ४ ११ श्री ॥ २शु च १ र १२ रा वि. स ६०२रा वैसाख सुद ३ रोहणी नक्षत्र मध्यान विजय मुहूर्त्त पाटणरा कोटरी राग भरी । म स्यातकी अन्य हस्तलिखित प्रतियोंमे कुडली नही लिखी हुई है । परंतु 'श्ररणहलवाडा पाटणरी वात' मे यह लिखा हुआ सभी प्रतियोमे पाया जाता है कि- 'प्रणहलवाडा पाटणरी जन्मपत्रिका लिख्यते ।' (दे० प्रथम भाग, पृ० २५८, प्रतिम पंक्ति ) 1 जिसके बाद जयसिंहके भाई रारणा तिहुरणपालके बेटे कुवरपालको टीका हुआ । 2 तीस वर्ष १ मात और सात दिन राज्य किया। 3 उसका पुत्र, जिसका पुत्र । 4 जिसके वाद वाचेलोंने पाटगका राज्य लिया । सम्वत् १२५३ मे राज्य- परिवर्तन हुग्रा । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात [ ५३ राजा धीरधवळ* पाटण लियो। वर्ष ४५ मास ३ दिन १ राज्य कियो। तेहिनै' पाट वीसळदे हुवो। वर्ष २५ मास ४ दिन ३ राज कियो। तेहन पाट गैहलू कर्ण ।' राजा कर्ण माधव बांभण नागर तियरी पुत्री घर माहै घाती।' तिको जायनै पातस्याह अलावदीन आगे पुकारियो । पातसाही फोजा लायो। पछै गुजरात तुरकै लियो। पछै तुरकाणी राज हुवो। हिदवांणो मिटियो ।' पातस्याह अलावदीन अमराव ४ गुजरात माहै राखिया । १ मदफ्फरखांन, २ ततारखांन, ३ अहमदखांन, ४ महमदखांन । अहमदखान अहमदाबाद वसायो। पैहला आसै भीलरी प्रासलवासी हुती, तठे अहमंदावाद वसायौ ।' ___पछै पातसाह अलावदीन बेटो कुतबदीन, तिकैनू अहमदावाद दियो। सतर खांन बोहतर उमराव साथै दिया ।' सुरताण कुतबदीन भंद्र मंडाया । राज बैसी इयां मस्तक २१ छत्र धारिया। तिहां मदन-भेर वजावी। तिवारा पछै बीजा वाजा वजाया । ढिलीसू लक्ष्मीनी मूरत प्रांणी।14 ते भद्र माहि लाख टका खरचनै लक्ष्मी मूरत बैसारी । ते आगळ पहलो नांणो कुतबस्याही करायो। इसो नाणो (कोई न) नीपजायो । तिवारै पछै गुजरात बीजो नाणो प्रवर्तायो । पछै जलाला आद देने नांणा प्रवर्तिया 17 *वीरधवल और धारधवल नाम भी लिखे मिलते है । I उसके, जिसके। 2 जिसके पाट गहला-कर्ण बैठा। 3 राजा कर्णने नागर ब्राह्मण माधवकी पुत्रीको घरमे डाल दिया। 4 उसने बादशाह अलाउद्दीनसे पुकार की। 5 वादशाही सेनाको चढा लाया। 6 पीछे गुजरात तुर्कोन ले लिया। हिंदुआना राज्य मिट गया और तर्कानी राज्य हो गया। 7 अहमदखानने, जहां पहले पासा भीलका श्रासलवासी गांव था, उस स्थान पर अहमदावाद वसाया। 8 जिसको। 9 सत्तर खान और बहत्तर उमराव भी साथमे दिये। 10 सुल्तान कुतबउद्दीनने दुर्गा देवीके मागलिक भद्रा कृतियोका निर्माण करवाया। II इस प्रकार सिंहासनासीन होने पर उसने २१ छत्रोको धारण किया। 12 फिर वहा उसने विख्यात कल्याणप्रद मदन-भेरी नामक वाद्य बजवाया। 13 उसके बाद दूसरे वाद्य बजवाये गये। 14/15 दिल्लीसे लक्ष्मीकी मूर्तिको लाया और लाख टके खर्च करके भद्र मे स्थापित की। 16 उसने सबसे पहले कुतुबशाही रुपया प्रवर्त किया। इसके पहले ऐसा सिक्का किसीने नही चलाया। 17 जिसके बाद जलालशाही आदि दूसरे सिक्के गुजरातमें प्रवर्त हुए। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात सुरताण कुतबदीनन पाट सुरताण महमंद वैठो। महमंद वारै लोकांनै १८ कर लागा। ते कही १ (प्रथम) दांण । १० बळ । २ (वीजौ) पूछी। ११ लांचो। ३ हळगत। १२ घोडा-चारण । ४ मोभ । १३ कवारनी सूखडी। ५ भेट । १४ पाघड़ी - वरोड़। ६ तलार। १५ ढोरनी चराई। ७ सूखडी। १६ वाडीनी लाग। ८ वर्धामणो लाग। १७ काटी वाळी लाग। ६ मळवो लाग। १८ काजीनी लाग । समत १५१६ कर इतरी रकम अधिकी व्है छै । वर्ष ५२ महमंद राज कियो। (1) दारण-उपार्जित धन पर लिया जाने वाला राज्य-भाग। (2) पूछी= चौपायो पर लिया जाने वाला कर। (3) हळगत खेत को जोतने पर हलोके हिसावसे लिया जाने वाला कर। (4) मोभ= मकान बनाने पर लिया जाने वाला कर । (प्रथम पुत्रसे भी तात्पर्य हो सकता है ।) एक प्रतिमे इसके स्थान पर भोम लिखा है । (5) भेट= उत्सव आदि अवसरो पर अनिवार्य रूपसे लिया जाने वाला कर। (6) तलार नगर रक्षक (कोटवाल) के खर्चेके रूपमे लिया जाने वाला कर। (7) सूखडी-अतिरिक्त कर (सर चार्ज), दस्तूरी। (8) वधामणो लाग-पुत्र जन्म और विवाहादि पर वधाईके रूपमे लिया जाने वाला कर। (9) मळवो लाग=गावकी सफाईके लिये लिया जाने वाला कर। (10) वळ = बलि या भोज पर लिया जाने वाला कर। (11) लाचो खर्चमे कमीकी पत्तिके लिये लिया जाने वाला कर। (12) घोडा-चारण घोडेकी चराईका कर। (13) कवारनी सूखडी-राजाके पाटवी पुत्रको दिया जाने वाला नजराना । इसके कुवर सूखडी, कुवर नजराणो, कुंवर पठेवडो, पुवर पामरी, कुवर मागो ग्रादि कई भेद होते थे। (14) पाघडी-वरोड-व्यक्ति कर । इसको मूडका-वेरो भी कहते है। (15) ढोरनी चराई=पगुयोकी चराई का कर । (16) बाडीनी लाग=साग सब्जी ग्रादिका कर। (17) काटी वाळी लागतोलनेकी छोटी काटी पर लिया जाने वाला कर (?) (18) काजीनी लाग= काजीके नाम पर लिया जाने वाला कर । ] __1 कुतबुट्टीनके । 2 मुहम्मदने १२ (कृपक) जातियो पर १८ कर लगाये। कोनसे ?। सम्बत् १५१६से इन करो में इतनी अधिक रकम प्राप्त होती है। वे Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ५५ संमत १५६७ सुरतांण मुदाफर टीकै वैठौ । वडो पातस्याह हुवौ । बेटा तीन हुवा - १ सिकंदर । २ महमंद | ३ बहादुर । समत १५८१ सिकदरस्याह पाट बैठो । मास २ दिन १७ राज कियो । पछे भाई महमद टीकै बैठो। मास ३ दिन ५ राज कियो । 3 समत १५८२ सुरतांण बहादुर पाट बैठो । बहादुर वडो पातस्याह हुवौ । खुरसाण लगै धाक हुई । पछे बहादुर पातस्याह चीत्रोड़ ऊपर कटक कियो । 2 समत १५८६ फागण सुदे १ चीत्रोडगढ गळी । लाखूटानी पोळ घोडा १८०००० अनै हाथी १४००० एतलो दळ लाखोटानी पोळे थौ । ' चीत्रोड़ भंग हुवौ । तठे रांण राणी करमेतीनू " जुहर किया ।" आदमी हजार ४००० जुहर हुवौ । " सरोवर, कुवा, वाव, एतलां मांहैसू बाळक ३००० जाळ नखावै काढिया ।' अस्त्री ७००० पोताना लघु तीत साथै अफीम घोळ पीधौ । अवर लोकाने बांद पड़ीनी संख्या नी । इसौ उपद्रव रोमीखांन करायो । पछे बाहदरसाह गुजरात गयौ । 6 8 10 11 पछे चीत्रौड मांहै तुरक हुता सु सीसोदियां कूट काढिया | 2 पछै मुगल आया । मुगले दिली लीधी । " 1 पछै समत १५९२ श्रावण सुदे ११ चापानेर मुगल आया, पर्छ चांपानेर पालटियौ । 23 13 I खुरासान (फारस ) तक धाक जमाई । 2 पीछे वादशाह वहादुरने चित्तौड़ पर श्रामरण किया । 3 सम्वत् १५८६ फागुन सुदी १को चित्तोडगढका पतन हुआ । 4 घोडे १८०००० और हाथी १४००० - इतना दल लाखोटाकी पोलमे जमा था । 5 वहां राणाने राणी करमेतीको जोहर करवाया । 6 ४००० ग्रादमी जौहर कर जल मरे । 7 सरोवर, कुएँ श्रीर बावडिये इनमेसे ३००० बालकोको जाल डाल कर निकलवाया गया । 8 मात हजार स्त्रियोने अपने छोटे बच्चोके साथ ग्रफीम घोल कर पी लिया । 9 और वदी कितने लोग बनाये गये इसकी कोई सख्या ही नही । 10 यह इस प्रकारका उपद्रव रोमीसानने करवाया । II बादमे चित्तौडमे जो तुर्क थे उन्हें शिशोदियो मार कर भगा दिया । 12, मुगलोंने दिल्ली पर अधिकार किया । 13 फिर सम्वत् १५६२ की सावन सुदी ११ को मुगल चापानेर (गुजरात) पर चढ कर प्राये, चापानेरका राज्य पलटा । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात पछै समत १५९३ जेष्ट मास माहै मुगल ग्रहमदावाद ग्राया । आसोज वद १४ बाहदर पातस्याह नाठी, दीव गयौ ।' आगे वाहदर पातस्याह उमराव २ वसाया हुता - हिंदु खाट माडण वरसौ पाटणरा भूमिया छमीछाना धणी, तियानूं । गांव १२ माडणनू दिया था । गाव १२ बारै वरसैनू दिया था । तिका, बीजां भूमिया, हिंदु, तुरक भेळा होयनै मुगल मार काढिया । नै पादस्यानू दीव माहै फिरगीए मार खाडी समुद्ररी माहै नाख दियो ।' संमत १५६३ फागण सुदे ५ बादर मारियो । 3 4 6 पछै अमरावा मिळ महमंद बेगडी पाट वैसा रियो, ग्रहमदाबादमे पातस्याह कियौ । ' 8 10 पातसाह महमद वडो धरमात्मा हुवौ । यो ग्रोखदांरी हाट ४ मडावी, वैद्य राखिया । वेमारानू दारू धरमरो दीजै ।" रोगियानू खावान् दीजै, प्रोढण- विछावण दीजै ।" वैद्य नाड जोवै, प्रोखद देव गरीवनं । सिरदार दावैसू फकीरानू रजाया, बिहाल्या दीजै ।" जिकू ग्राप जीमती तिसड़ौ खाणी फकीरानू दीजै ।" इसो धर्मात्मा पात - स्याह हुवी । 13 11 12 समत् १६१० फागण वदे १३ वार गुरु रात पोहर १ गया पात श्रामोज वदी १४को वादशाह वहादुर भाग कर दीव वदरको चला गया । 2 पहले वादशाह बहादुरने छमीछाके स्वामी पाटनके दो खाट जातिके हिंदू भोमिये माडण और दरमाको उमराव बना कर बसाया था । 3 वारह गाव माडरणको और बारह गाव वरसाको दिये थे । । उन्होने दूसरे भोमिये, हिंदू और तुर्कोंने मिल कर मुगलोंको मार निकाल दिया | 5 फिरगियो (पुर्तगालियो ) ने बादशाह बहादुरको मार करके दीव वदर की ममुद्रकी खाडीमे डाल दिया । 6 सम्वत् १५६३ की फागुन सुदी ५को वादशाह बहादुरको मारा। 7 फिर उमरावोने मिल कर मुहम्मद वेगडेको सिंहासन पर बिठाकर श्रमदावादका बादशाह बनाया । 8 इसने श्रीपधियोकी चार दुकानें खुलवा कर उनमे वैद्यको नियत किया । 9 बीमारोको श्रीपधिया मुफ्त मे दी जाती हैं । 10 रोगियोको खाना और प्रोढना - विछोना दिये जाने है । 11 सरदारोकी भांति ही फको रोको भी रजाई विछोने दिये जाते है । 12 जैसा स्वय भोजन करता वैसा ही फकीरोको दिया जाता है । 13 'ऐसा धर्मात्मा दिशाह हुआ। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात í ५७ स्याह महमंदनॆ ब्रहांनखां मारियो । 2 उमराव ३५ भला भला छा सु ब्रहांनखां मारिया ।" 2 पछै ब्रहांननै भाटी सिरवान ब्रहांनदीननूं मारियो । 3 पातस्याह महमंदरौ वैर लियौ । पछै पातस्याह महमंदरो बेटो अहमद टीकै बैठौ । तठा पर्छे संमत १६२६ मुगल पातस्याह अकबर गुजरात लीधी हिवै मुगलारै गुजरात देस हुवौ । " पातस्याह अहमदनूं मारियो । ॥ इति गुजरातरै देशरी ख्यात सपूर्ण || अथ वात मकवांणा रजपूतांरी ईयार माहुती सु कोई देव अस हुती, सु धारेचो कियो हुतो । " सु वा कहण लागी - 'जाहां हू प्रगट हुई ताहरा नही रहू । ' तद कितरैके दिने ईयेरें बेटो जायो । खेलण सरीखी हुवी, तद खेलतो थो।' आ ऊची झरोखे बैठी हती, तद नीचे बैठे बेटैनू हाथ लाबो पसारने भाल लियौ । " तद ईयै देव अस प्रगट करने अतर्ध्यान हुई । तँ दिनसू पर्छ झाला कहाया । 12 10 ॥ इति भालांरी वात सपूर्ण || I सम्वत् १६१०की फाल्गुन वदी १३ गुरुवारको एक पहर रात गये वादशाह मुहम्मदको बुरहानखाने मार दिया 1 2 अच्छे-अच्छे ३५ उमराव थे जिनको भी बुरहानखाने मार दिया । 3 फिर भाटी सिरवानने बुरहानखाको मार दिया । 4 जिसके वाद सम्वत् १६२६ मे मुगल बादशाह अकबरने गुजरातके ऊपर अधिकार किया । 5 अव मुगलोके अधिकार मे गुजरात देश हो गया । 6 इनकी (मकवाणा - राजपूतोकी) मा कोई देवाशी थी, जिसने धारेचा कर लिया था । (धारेचो = १ विधवा होने पर किसी अन्यके यहा पत्नी वन कर रहना । २ अपने पतिको छोड कर दूसरेके घरमे रहना) 7 जिस समय मैं प्रगट हो गई तब नही रहूगी । 8 तब कितने एक दिनोके बाद इसके एक पुत्र हुआ । 9 खेलने जैसा हुआ तब वह एक दिन खेल रहा था । 10 यह ऊची झरोखे में बैठी हुई थी, तब उसने नीचे बैठे हुए अपने बेटेको अपना हाथ लवा वढा करके पकड लिया । II तब अपने इस देवाशको प्रगट करनेके कारण अतर्द्धान हो गई । 12 इसके बाद ये (मकवाणे - राजपूत) 'झाला' कहाये । ( बच्चे की माँने बच्चेको हाथसे 'झाल' लिया, इसलिये वह बच्चा और उसकी सतान झाला कहाई । मारवाडी भाषामे 'झालरगो' शब्दका अर्थपकडना, थामना, सभालना इत्यादि होता है | ) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात पाबूजीरी लिख्यते धाधळजी महेवै रहै। सु उठसू छोड़ अर अठ पाटणरै तळाव प्राय उतरिया।' सु अठ तळाव ऊपर अपछरा उतरै । ताहरा धाधळजीरा डेरा थकां अपछरा उतरी। ताहरां धाधळजी अपछरावा देखनै एकै अपछरानू आपड राखी। ताहरां अपछरा बोली-'वडा रजपूत ! ते बुरो कियो । मो अपछरानै अापडणी न हुती।" ताहरा धाधळजी कही-'तू म्हारै घरवास रहि । तद अपछरा बोली। कही-'जे थे म्हारो पोछो सभाळियो तो जाईस ।" ताहरा धाधळजी कही-'थारो पोछो कोई सभाळां नही ।' ए बोल करनै रही ।' नै उठे पाटणसू चालिया सु अठ कोळू पाया। अठ पमो घोरधार राज करै। ताहरा धांधळजी पमै पास तो न गया । अर कोळू आया, गाडा छोडिया, तठे रहै । यू करता अपछरार पेटरा दोय टावर हुग्रा-एक बेटी, एक बेटो। बेटीरो नाम तो सोनाबाई, बेटारो नाम पाबूजी। तद अपछरारो महल एकात कियो। उठे अपछरा रहै । धाघळजी अपछरा घरै नित जावै। ___ तद एक दिन धांधळजी विचारियो-'देखां, अपछरा कह्यो हुँतो, म्हारो पीछो मती सभाळजे, सु आज तो जायनै देखीस, देखा, कासू करै छै ?'11 ताहरां पाछले पोहर धाधळजी अपछरारै महल गया। तठे आगै अपछरा तो सीहणीरै12 रूप हुई छ, अर पावू सीहरै रूप 1 सो वहां (महेव) से रवाना होकर पाटनके तालाव पर आकर ठहरे। 2 जव वधिलजीके डेरे तालाव पर लगे हुए थे उस समय वही अप्सराएँ उतरी 3 एक अप्सराको 'पकड कर रख लिया। 4 मुझ अप्सराको पकडना नही था। 5 तू मेरे घर वास (पत्नी रूपमे) रह। 6 जो तुमने मेरा पीछा किया (भेद जानना चाहा) तो मैं चली जाऊगी। ये कौल करके धाधलजीके साथ रह गई। 8 जिस जगह कोलूमे गाडे छोडे थे, वही रह रहे। 9 इस प्रकार अप्सराकी कोखसे दो बच्चे उत्पन्न हुए~-एक लडकी और एक लडका। 10 तव अप्सराका महल एकान्तमै बनवाया। II तव एक दिन धाधलजीने विचार किया कि अप्सराने कहा था कि मेरा भेद जाननेकी कोशिश नहीं करना, परतु आज तो जाकर देखूगा कि वह क्या कर रही है ? 12 सिंहिनी। . Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ५६ सीहणीनू चूधै छ। तद धांधळजी दीठौ; ताहरां अपछरा आपरो रूप कियो। पाबू टाबर हुवो। ताहरा धांधळजी महल भीतर गया। तोहरा अपछरा कह्यो-'राज ! म्हां थां सू कवल कियो हुतो जु 'जेही दिन था पीछी सभाळियौ जेही दिन हूं जाईस, सो हू जाऊं छु ।" इतरो कहिन अपछरा तो उड़ती हुई, सु आकास चढ गई। धाधळजी देखता ही रह्या। तठा पछै धांधळजी पाबूनै उठे हीज राखियो । धाय पास रही। और छोकरी हुती सु राखी। पछै धांधळजी तो कितरेक दिने देवलोक हुवा। ____ अर पाबू अर बूडो दोय बेटा । तद बूड़ोजी टीके बैठा । लोक चाकर सरब बूडैजीरा हुवा। पाबूजी पास कोई न रह्यौ। तदें धाधळजीरै बेटी दोय हुती, सु पेमाबाई तो जीदराव खीचीनूं परणाई । अर सोनाबाई देवड़े सीरोहीरै धणीनू परणाई ।' तद बूडोजी तो राज करै । अर पाबूजी वरस पांचेकमे, पण करामातीक । एकै सिकार चढियो एकै सांढ चढियो सिकार लावै । ईयै भात रहै।' _____ताहरां सात थोरी भाई, मा-जाया, चांदियो १, देवियो २, खापू ३, पेमलो ४, खलमल ५, खघारो ६. चासळ ७ । औ सात भाई सु औ आना वाघेलेरै चाकर।" सु आनैरै देस माहै काळ पड़े, तद थोरीए एक १ जिनावर वणासियो ।1 ताहरां अांनैरै कुवरनू खबर गई जु थोरिये जिनावर मारियो छ । ताहरां कुवर आयो। थोरियान ___1 और पाबू सिंहका रूप बन कर सिंहिनीको चूध रहा है। 2 तब धाधलजीने देखा। 3 पाबू बच्चेके रूपमे हो गया। 4 तव अप्सराने कहा-'राजन् । हमने तुमसे कौल करवाया था कि जिस दिन तुमने मेरा भेद जानने की कोशिश की उस दिन मैं चली जाऊगी, सो मैं जा रही है। 5 और एक दासी थी जिसको पासमे रखा। 6 प्रजा और सेवकादि सव बड़ेजीके अधीन हुए। 7 धाधलजीके दो कन्याएँ थी; एक ऐमाबाई जिसको जीदराव खीचीको व्याही और दूसरी सोनाबाई जिसे सिरोहीके स्वामी देवडेको व्याही। 8 करामाती। -अकेला और अपनी एक ही ऊटिनी पर चढ कर शिकार लाता है, इस प्रकार वीरताके काम करता है। 10 ये सातो भाई आना वाघेलाके यहा चाकर। II सो आनाके देशमे दुकाल पड़ जाता है, उस दुकालमे थोरियोने एक दिन एक जानवरको मार दिया। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] मुहता नैणसीरी ख्यात हटकिया । थोरियां पर कुवर खानाजगी हुई। ताहरां' कुवर काम प्रायो। तद अ थोरो कुवरनू मार, अर गाडा जोडन, टावर ले नाठा। ताहा आनैनू खबर गई, जु 'थोरी कुवरनू मार नाठा जादै छ।' ताहरा आनो चढियो, प्राय पहुतो। ताहरां में लडिया। ताहरा ईया थोरियारो बाप हतो सु काम आयो।' आनो ईयारो बाप मारने पाछो वळियो। पछै थोरी झै जेहीरै वास जावै सो राखे नही। कहै-'प्रांनै वाघेलैसं पोहचां नही। तद अ थोरी चालिया चालिया पमै घोरधाररै आया; तद पमै थोरियानू राखिया । ताहरां कांमदारा परधाना कही-'राज ! अ थोरी आनैर बेटेनू मार अर पाया छै । जो था राखिया तो अांनसू वैर पड़सी। पापा आननै पोहच सगां नही ।' तदी पमै पण अनैसू डरतो थोरियाने विदा दीवी। कही-'धाधळारै जावौ; थानै राखसी।' ताहरा झै थोरो गाडा लेनै बूडैजी पास आया । प्राय बूडैजीसू मुजरो कियो1 ने कही-'राज! म्हांनै राखो तो रहा।' ताहरा बूडैजी तो नीछो दियो। कह्यो-'म्हारै तो दरकार नही, अर पाबू भाईरै चाकर नी रहै छै सु थाने राखसी ।13। ___तद अ थोरो गाडा छोड़नै पाबूजीरै आया । तद पूछियो'पाबूजी कठे ?'16 तद धाय कह्यो जु-'पाबूजी सिकार गया छ ।' तद अं थोरी पण वांस सिकार गया। आगै पाबूजी हिरणनू तीर साधियो छ। साढ बैठी छै ।" इतरै थोरिया पूछियो-'रे छोकरा ! पाबूजी कठ । थोरियोको डाटा। 2 थोरियो और कुवरके आपसमे लडाई हो गई। 3 तब ये थोरी कुवरको मार, अपने गाडे जोड कर और अपने बाल-बच्चोको लेकर भाग गये। 4 तव आना इनके पीछे चढा और इन्हे जा पहुचा। 5 थोरियोका बाप था सो इस लडाईमे काम आ गया। 6 आना इनके बापको मार करके वापिस लौटा। 7 आना वाघेलेसे पहुच (जीत) नही सकते। 8 जो तुमने इनको रख लिया तो आनासे शत्रुता हो जायेगी। 9 अपन प्रानाको नही जीत सकते। 10 तब पमेने भी पानाके डरके मारे थोरियोको छुट्टी दी। 11 आकरके वूडोजीको प्रणाम किया। 12 तब दूंडोजीने मना कर दिया । 13 मेरे तो जरूरत नहीं है, परतु पावू भाईके पास कोई चाकर रहता नहीं है सो तुमको रख लेगा। 14 तव ये थोरी अपने गांडोको छोड कर पावूजीके पास आये। 15 पाबूजी कहा ? 16 तव ये थोरी भी इनके पीछे शिकारको गये। 17 मॅटिनी बैठी हुई है। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात छ ?'1 तद पाबूजी बोलिया-'पाबूजी तो आघा' सिकार खेलणनू पधारिया छ । ताहरां थोरिया आ समस्या कोवी जु-'यो छोकरो उभो छ,' आप पा सांढ. ले जावां, तो आपां आजरी वळ करां ।" इतरी' थोरिया विचारो । ताहरा पाबूजी तो कारणीक मरद ।' तद पाबूजी ईंयारै जीवरी लखी। ताहरा पाबूजी बोलिया । कही-'रे थोरिया ! थे या सांढ ले जावो, आज री वळ करो। पाबूजी आवसी11 ताहरा हूं कहि लेइस ।'12 ताहरा थोरी साढ लेन डेरै आया । उठै ईहा13 सांढ मारनै डेरै वळ कोवी। ____अर पाबूजी हिरण लेने पाछलै पोहर डेरै आया। ताहरां पाछले पोहररा थोरी पण पाबूजोरै मुजरै पाया । आगै पाबूजी बैठा छ । तठे थोरियां विचारियो। कही, रे ! ओ तो ऊही, जे प्रांपांनू साढ दीवी हती।" तद थोरियां धायनू पूछियो-जी ! पाबूजी कठै ?' ताहरां धाय कह्यो-'रे वोरा ! ओ बैठौ, तू अोळखै नही ?' तद ईयां पाबूजीसू सलामी कीवी । तद पाबूजी चादैनू कही-'रे चादा ! म्है म्हारी सांढ थांने झलाई हती सु कठे ?19 ताहरां चादै कही-'राज ! थां म्हांनै वळ माहै दीवी हुती, स म्हां खाधी छै ।20 ताहरां पाबूजी कही-'का रे ! आ काई हुई छ जु साढ खाधी ? वळनू सीधो दरावस्यां । पण साढ किसी तरै खावो ?'21 ताहरां पाबूजी कही'साढ थां खाधी नहीं । 22 ताहरां थोरिया कह्यो-'साढ तो म्हां खाधी, हमै कठा लावां ?23 I इतनेमे थोरियोने जाकर पूछा कि रे छोकरे । पाबूजी कहा है ? 2 दूर। 3 गये हुए है। 4 परामर्श, सलाह। 5 खडा है। 6 अपन। 7 आजके भोजनकी तैयारी करें। 8 इतनी। 9 सिद्ध पुरुष। 10 पावूजीने इनके मनकी बात जानी। II आयेंगे। 12 कह दूंगा। 13 इन्होने। 14 यह। 15 वही। 16 जिसने अपनेको ऊटिनी दी थी। 17 अरे भाई । यह बैठा है, तू पहचानता नही? 18 तव इन्होने पावूजीको प्रणाम किया। 19 अरे चादा । मैने मेरी ऊटिनी तुमको सुपुर्द की थी वह कहा ? 20 आपने हमको वलिके लिये दी थी, सो हमतो उसे खा गये है। 21 क्यो रे ! यह कभी हुआ है जो ऊटिनीको ही खा गये ? भोजनके लिये सीधा दिलवायेंगे, लेकिन साढ किस तरह खा जाओ ? 22 ऊँटिनी को तुमने खाया नही। 23 अब कहासे लायें ? Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नेणसीरी स्यात ___ताहरा पाबूजी साथै माणस' देने कही-'ईयारे डेरै जाय खबर तो करो।' ताहरा थोरी माणसरै साथै डेरै जाय देखे तो काटूं ? जठे हाड पडिया हुता तठे सागे साढ कसाणो किया प्रोगाढ छै । तद अ जाय देखै तो काढूं ? साढ वैठो छै । तद थोपियां आपरी बैरानू' पूछियो । कह्यो-'या साढ अठै के विध ?3. ताहरा बैरा पण कही'राज ! आगै नो नही हती, माहरैही निजर हणां पाई । ताहरा थोरिया विचारी जु-'यो वडो करामाती रजपूत छ । प्रापान प्रो राखसी। तद अ सांढ लियां-लिया पावूजी पास आया। ताहरां पाबूजी कह्यो-'रे ! थे कहता साढ खाधी।' ताहरा थोरियां कह्यो'राज | समधा 111 म्हांनू राज परचो दिखायो ।12 ताहरा पाबूजी कह्यो-'तो थे रहस्यो ?13 ताहरा थोरिया कह्यो-'राज ! म्हे रहस्या।' . ताहरां थोरी पावूजी पासै चाकर रह्या । इयै भात रहतां हता। तद गोगजीन बूडैजीरी वेटी परणाई। ताहरां बाई₹14 दायजैरी15 वखत किहि 36 गायां सकळपो," किही क्युहो संकळपियो । ताहरां पाबूजी कह्यो-'बाई ! हू तोनू दोदै सूमरैरी साढारा वरग प्राण देईस।19 ताहरा गोगोजी हसिया। कही-'अाजै दोदो सूमरो वोढो-रावण कहीजै । तेरो साढा किसी भात ले आवसी ?' ताहरां पाबूजी वोलिया-'साढां ले आईस ।21 पछै गोगाजी तो हलांणो लेनै आपरै ठिकाणै गया ।' वांसें पाबूजी हरियै थोरीनूं कही-'रे हरिया ! दोदरी सांढिया हेर आव, ज्यु बाईनूं सांढियां प्रांण देवा ।“ बाईरा ___मनुप्य। 2 इनके। 3 यह क्या ? 4 जहा हड्डिया पडी थी वहा वही ऊटनी कनी हुई वैठी है और घास खा कर जुगाली कर रही है। 5 ये। 6 अपनी स्त्रियोको। 7 यह साढनी यहा किस प्रकार ? 8 हमारे भी नजरमे अव पाई है। 9 अपनेको यह रखेगा। 10 लिये-लिये। 1 समझ गये। 12 हमको आपने चमत्कार दिखाया। 13 तो तुम हमारे यहा नौकर रहोगे ? 14 कन्याके। 15 दहेजकी। 16 किमीने । 17 सकल्प की। 18 किसीने कुछ और वस्तु सकल्प की। 19 तव पावूजीने कहा'बाई ! मैं तेरेवो दोदे मूमरेकी साढनियोका वर्ग लाकर दूगा। 20 आज दोदा सूमरा एक दूसरा रावण वहा जाता है। 21 साढनिया ले पाऊगा। 22 फिर गोगोजी तो ववू और दहेज लेकर अपने स्यान गये। 23 पीछे, वादमे। 24 हरिया । तू जाकर दोदेकी साढनियोको घेर कर ले आ सो वाईको साढनिये लेजा कर देदें। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ६३ सासरिया हससी; कहसी-काको साढियां कद प्राण देसी ?1 ताहरां हरियो तो साढ़ियारै हेरै गयो । अर अठे चादियो नित पाबूजीनू कहै-'पाने वाघेलै माथै म्हारो वैर छै, सु राज म्हारो वैर घेरावौ । ताहरा कह्यो-'रे घेरावस्या । ____ यु करता पाबूजीरी बहन सोनाबाई अर* सोनाबाईरै एक सोक' वाघेली तिके चोपड़ रमती ही, सु वाघेलीरै बाप गहणो घणो दियो हुँतो,' सु वाघेली आपरै गैहणैरो वडाई करै, गहणरो वखाण घणो करै। ताहरा झै आपसमें बोल उठी। ताहरां वाघेली सोनांनू मेहणो दियो । कह्यो-'थारो भाई थोरियासू भेळो जीमै ।11 ताहरा सोनां रीस कीवी। ताहरा राव कही जु-‘राठोड़ ! रीस क्यु करो, साच कहै छ, जु पाबू थोरियांरै भेळो तो बसै छ । ताहरा सोना कही'थे कहो सो खरी, पण जिसा म्हारै भाईरै थोरी छै जिसा थाहरै उमराव कोयनी।' इतरो कह्यो सोना, तैसू राव पण रीस कर ऊठियो। ताहरा ताजणो रावरै हाथ हुतो, सु राव तीन ताजणा वाह्या ।। _____ ताहरां सोनांबाई कागद लिखनै पाबूजीन मेलियो। ईयै भांत लिखियो-'वाघेलीरै कहै रावजी म्हारै चोट वाही ।'1सु ऊ कागद ले जायनै आदमो पाबूजीर हाथ दियो ।' पाबूजो कागद वाचनै चादैनूं ___बाईकी ससुराल वाले हँसेंगे और कहेगे कि इसका काका साढनिया कब लाकर देगा ? 2 आना वाघेलाके सिर मेरे वापको मारने का वैर चढा हुआ है सो आप उस वैरका वदला लिवावे । 3 अरे । घेर लेगे। 4 और। 5 सौत। 6 खेलती थी। 7 सो वाघेलीके बापने दहेजमे गहने बहुत दिये थे। 8 गहनेकी प्रशसा बहुत करे। 9 तब अापसमे बोला-चाली (विवाद) हो गई। 10 तव वाघेलीने सोनाको ताना मारा। II तेरा भाई थोरियोंके सामिल खाना खाता है। 12 राठोड | रीस क्यो कर रही हो, यह सच कह रही है, पाबू थोरियोके सामिल बैठते तो है। (क्षत्रियोमे रानिया, ठकुरानिया आदि सम्मानित स्त्रियोको उनकी पित-जातिके नामसे सबोधित किया जाता है, जिनमे कुछ वश या जातियोके नाम तो. ऐसे है जिनमे कोई परिवर्तन नही होता, स्त्रीलिंग बनानेकी आवश्यकता नही रहती जैसे-शेखावतजी, चहुआणजी, राठोडजी इत्यादि ।) 13 जैसे। 14 वैसे । IS तुम्हारे। 18 सोनांने इतना कहा तो राव रीस करके उठा। 17 उस समय रावके हाथ मे ताजना था सो तीन ताजने सोनाको मार दिये। 18 तव सोनाबाईने पत्र लिख कर पावूजीको भेजा। 19 उसमे इस प्रकार लिखा कि वाघेलीके कहनेसे रावजीने मुझे चोठ प्रहार की। 20 सो वह पत्र एक प्रादमीने ले जा कर पाबूजीके हाथमे दिया। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात बुलायौ; अर कह्यो-'तयारी करो। आपा सीरोही राव ऊपर जास्यां । बाईरो कागद आयौ छ ।' ताहरा सात असवार थोरी, एक पाबूजीरै चढण काळवी घोड़ी। सु काछेला चारण समुद्र खेप भरण गया हुता, सु ईया एक घोडी लीवी। लेन समुद्ररै काठ' आय उतरिया । ताहरां तेजल घोड़ो नीसरनै घोडीनू लागो । तरी काळवी वछेरी नीपनी । सु आ घोड़ी जीदराव काछेलां कना मागी, तद चारणां न दीवी। अर बूडेजी मागी तद पण न दीवी । ताहरा पाबूजी मांगी। ताहरां चारणा पाबूजीन घोडी दोवी । तद कही 'राज | घोडी था दीवी छै, जो म्हारै काम पड़े तद म्हारी वाहर करज्यो ।" ताहरां पाबूजी कही'थाहरै काम पडिये जूती पैहरा नही। प्रो बोल कर घोड़ी लीवी छी । तद जीदराव खीची नै बूडंजी रीस कीवी चारणास् । पछै पाबूजी असवार हुवै नै बूडैजीरै आया।' बूडैजी सौं मुजरो कियो। पछै पावूजी भोतर भाभीजीनू मुजरो कहियो । ताहरां छोकरी भीतर जायनै डोड-गेहलीनू कह्यो-'बाईजी! थांनू पाबूजी जुहार कहायो छै ।' ताहरा छोकरीनू डोड-गेहली कह्यो जु-'तू देवरनं जायनै कहि, वाईजी भीतर बोलावै छ ।' ताहरा छोकरी जाय अर कह्यो। तद पाबूजी भीतर गया। तद डोड-गेहली कह्यो-'पाबूजी! थान चारण पासे घोड़ी न लेणी हतो । घोडी थारै भाई मांगी हती, तेसू था न लेणो । ताहरां पाबूजी कही 'जो भाईजीरै घोड़ी लेणी छ तो या हाजर छ ।' ताहरा भोजाई कही, हमै काहिणनू लै ?17 । काले-चारणोका कारवां ममुद्र (के किनारे किसी बदर) पर माल भरनेके लिये गया हया था। 2 किनारे पर। 3 तव तेजल घोडा उस घोडीसे लग गया। 4 जिससे यह कारवी बछेरी उत्पन्न हुई। 5 से, पाम। 6 तुमको। 7 यदि हमारे काम पड जाय (कोई नस्ट उत्पन्न हो जाय) तो हमारी सहायताके लिये चढ कर पाना। 8 तुमारे पाम परने पर पांवोमे जूती नही पहनगा। 9 पीछे पाबूजी उस घोडी पर सवार होकर दडे जीके पाम प्रायें। 10 से. दो। I दासी। 12 डोड-गेहली, डेजीकी स्त्रीका मला 13 त्व दामीने जाकर कहा। 14 पावूजी ! चारणके पासमे तुम्हे यह घोडी नहीं देनी चाहिये था। 15 म घोडीको तुमारे भाईने मागा था, इसलिये तुमको इमे नही सनी नाहिये पी। 16 यह। 17 अब कितलिये लें? Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात । ६५ पण तू घोडीनू कासू करीस ?,' खेती वाहो, मैठा खावो । पण दीसै छ, घोडी लीवी छ तो धाड़ा करसी। ताहरां पाबूजी कह्यो'बूडेजीरै घोडी लेणी हुवै तो लो। अर थे मेहणो बोलो छो तो म्हे ई रजपूत छां, घोड़ो म्हानू ई चाहीजै छै । अर धाडैरी कहो छो तो डीडवांणैरी होज घोडिया ले आईस। इतरी पाबूजी कही, तद डोडगहेली कह्यो-'जी, इसा भाई तो म्हारा ई न छ सु थाने धाडो ले प्रावण दियै, का तो पहुच अर मारग मे ही राखै, अर जाणे बैहने ईरो भाई छै, मारै नही तो अँवळे....' 'पासवै रोवावै । ताहरा पाबूजी कह्यो-'म्हे राठोड छा, डोड कदै कोई राठोड़ मारियो सुणियौ हुतौ ?'' डीडवांण डोड राज करता तठै बूडोजी परणिया हुता। तद पावूजी भोजाईसू वाद करनै ऊठ डेरै आया। ताहरां चादैनूं बुलायो, कह्यो- 'चांदा ! आपां देवडार पछ जास्यां; पैहली डीडवांणरो धाड़ो लास्यां । ताहरां पाबूजी असवार हुवा । थोरी सातै10 भाई असवार हुवा। ताहरां चालिया चालिया डीडवाणैरै निजीक11 पाया । ताहरां पाबूजी तो एक थळ माथै तरकस नाखनै बैठा । घोड़ी कनै छोडी। अर थोरिया साढियांरो वरग लियो। तठे थोरियां सांढियानू चलाई। ताहरां रवारी डोडा प्रागै जाय पुकारियो। कह्यो-'राज ! सांढियां लीवी, वाहर चढो ।'15 ताहरा 1 परतु तू घोडीको करेगा क्या ? 2 खेती खडो और बैठे-बैठे खायो। २ परत दिखता है कि घोडी ली है तो अव धाडे मारेगा। 4 और जो तुम ताना मारती हो तो हम भी राजपूत है, घोडी हमको भी चाहिये । 5 और जो धाडे मारनेकी कह रही हो तो अव पहले डीडवानेकी ही घोडियां ले आऊगा। 6 ऐसे तो मेरे भाई भी नही है सो तुम्हे घाडा करके घोडिया ले पाने दे, या तो पीछे पहुच कर मार्गमे ही तुम्हें रख दें या यह जानकर कि बहनोईका भाई है, इसलिये मारे नहीं तो (ौंधी मुश्कोसे बांधकर) खूब रुलावे । 7 तव पाबूजी ने कहा- 'हम राठौड़ है, डोडोने कभी किसी राठौडको मार दिया हो; ऐसा कभी सुना था तुमने ? 8 डीडवानामे डोड राज्य करते थे वहा वूडोजी व्याहे थे । 9 चादा ! अपन देवडोके यहा पीछे जायेंगे, पहले डीडवानेका धाडा लायेगे। 10 मातो ही। 1 नजदीक । 12 तव पावूजी तो एक धोरे पर तरकश डालकर बैठ गये । -13 घोडीको पासमे छोड दिया । 14 और थोरियोने साढनियोका वर्ग छीन लिया। 15 साढनिया लेली है, पीछा करो । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात डोडा पूछियो, कह्यो-'रे । कितराइक असवार छै ? ताहरा ईयै कही-राज ! सात प्यादा थोरी चोरटा लिया जाय छै । ताहरा वाहर चढिया, सु थोरी तो साढिया लेने आघा नीसरिया । अर वासैसू वाहररा असवार जे थळ पाबूजी बैठा हता, ते थळरी गरावर आया । ताहरा पाबूजी तीरकारी करी ।' तिकणसू डोडांरा माणस १० काम आया । ताहरां पाबूजी चादैन, नीजा ही थोरियान साद कियो ।' कह्यो-'पाछा पावो। ताहरा थोरी पाछा घिरिया 111 त? घोडा लेनै थोरी चढिया। इतर वांसासू डोडारो सिरदार आय पुहतो । ताहरां ईहां पावूजीरै साथरा थोरिया डोड सिरदारनू आपडियो ।14 ताहरा बाकीरो साथ डोडांरो पाछो फिरियो । ताहरां पावूजी कह्यो-'रे ! सांढिया छोड दियो । आपण इहा डोडासू काम हुतो सु ले हालो ।15 ताहरां औ" डोडांनू लेने रातो-रात चालिया सु कोळू पाया । ताहरा डोडान तो कोटडी माहै राखिया । अर'' आप महल माहै जाय पोढिया । तद प्रभात हुवो, ताहरां पाबूजी जागिया। ताहरा धायनू कही- 'धायजी | थे डोडगेहलीन जाय अठ बुलाय लावो। कहो, जु पाबूजी कह्यो छ जु थे भाभीजी आयनै मांहरो माळियो देखो। म्हे नवौ करायो छै ।21 ताहरां धाय बूडैजी री वहू नै बुलावणनै गई। अर थोरिया पाबूजी कही-'चादा । थे डोडानू पाघासू मुसक्यां बांधिनै चुहटियासू तोड रोवायनै झरोखै नीचे प्राण ऊभा राखी । ताहरां चांदी डोडांनू लेने पाबूजीरै झरोखै नीचे प्राण __1 कितनेक । 2 सात पैदल थोरी चोर लेकर जा रहे है । 3 सो थोरी तो साढनिया लेकर आगे निकल गये । 4 और पीछेसे । 5 थे । 6 उस । 7 तव पाबूजीने तीर चलाने शुरू किये। 8 दूसरे भी। 9 आवाज दी। 10 पीछे लौट प्रायो । II पीछे लौट आये। 12 आ पहुचे । 13 इन । 14 पकड लिया । IS अपनेको इन डोडोसे काम था सो इन्हें ले चलो। I ये । 17 और । 18 सो गये। 19 घायजी! तुम डोड-गहलीको जा कर यहा वुला लायो। 20 महल । 21 हमने नया वनवाया है। 22 तुम डोडोको उनकी पघडियोसे मुश्के वाघ कर, चुटकियोसे तोड-तोड कर, रुला कर और झरोखेके नीचे ला कर खडा रखो। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ६७ ऊभौ छै । इतरै धायजी डोड-गेहलीनं जाय कही-'राज थांन पाबूजी बोलावै । कहै छै जु-'म्हारै नवो माळियौ करायौ छै सु थां पधारनै देखो। ताहरां डोड-गेहली वैहल बैसनै पाबूजीरो मोहल देखणनूं आई। प्रागै पाबूजी बैठा हुता सु ऊठ मुजरो कियो । कह्यो-'भाभीजी ! राज ! झरोखे नीचे तमासौ छै सु देखीजै । ताहरां आ झरोखे माहै देखण लागी, ताहरा थोरियां डोडानै चुहटिया तोडिया; ताहरां रोवण लागा। ताहरां डोड-गेहली देखै तो कासू ? " भाई नीचे बाधौ __'छै अर रोवै छै । ताहरां डोड-गेहली कह्यौ-'पाबूजी ! ओ कास सूल छै ?' म्है तो था हसती वात कही हती। ताहरां पाबूजी कह्यो'भाभीजी ! हूं पण हसतो ले आयो छू ।' पण रजपूतांनू वैण बोलीजें नही । मैहणा कपूतांनूं कहीजै ।1 ताहरां डोड-गेहली कह्यौ-'भली कीवी । हमै तो छोडो । ताहरां पाबूजी डोड भोजाईरै कहै छोड़िया । पछै डोड-गेहली आपरा भायांनू ले जाय दिन ४ राखनै घरांनू सीख दीवी । तठा पछै हरियै सांढियारी हेरप जोयनै आय पाबूजीन कही16'राज | दोदरी साढिया पारै हाथ आवणरी नही । " दोदो जोरावर छै। दोदैरो राज वडो। अर वीचमें पंच नद वहै छै ।18 प्रो अोढो 1 तव चादा डोडोको ऐसी दशामे लाकर पाबूजीके झरोखेके नीचे खडा है। 2 तब डोड-गेहली वहलीमे बैठ करके पाबूजीका महल देखनेको पाई। 3 झरोखेके नीचे तमाशा है सो देखिये। 4 तव थोरियो ने डोडो को चिहु टियोसे तोडा, तब वे रोने लगे। 5 यह क्या ? 6 भाई नीचे बँधा हुआ है और रो रहा है। 7 पाबूजी । यह क्या कोई ढग की बात है ? 8 मैंने तो तुमको हँसीमे बात कही थी। 9 में भी इन्हे हँसता-हँसता ही ले आया हूँ। 10 परन्तु राजपूतोको व्यग्य वचन नही बोलना चाहिये। II ताने कुपूतोको मारे जाते है। 12 अच्छा किया ? 13 अब तो छोड दो। 14 अपने। 15 विदा किया। 16 जिसके बाद हरियेने साढनियोकी खोज-भाल करके पावूजीको कहा। 17 दोदेकी साढनिया अपने हाथ आनेकी नही। 18 और बीच मे पचनद बहती है। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] ___ मुहता नैणसीरी ख्यात रावण वाजै छै । ग्रांपा उठे पोहच सगां नही 12 इतरी हरिय आयनै कही। ताहरा पाबूजी कह्यो-'तो भला ! फिरता समझ लेस्या । हमार तो देवडा ऊपर हालो । ताहरा अ पाठ असवार, नवमौ हरियो प्यादो, अ सारा सीरोही ऊपर चढिया ।' तठे वीच प्रांनो वाघेलो रहतो । अनैिरी वडी साहबी हुती । पण अ सारा ही करामातीक ।' ताहरां चांदै कही-'राज ! अांनी अठ रहै छै । अर मांहरौ वैर छै । ताहरां ग्रे चलायन यांनैरै गाव अानेरै वागमे आय उतरिया। ताहरां प्रांनैनूं माळी जाय पुकारियो जु-'राज ! केई असवार आय उतरिया छै, सु वाग सर्व खोसी खाधौ। ताहरां आने इतरी11 सुणनै असवारी कर चढियो। वाहरा पाबूजी नै पाने वाघेलै आपसमे लडाई हुई । ताहरा अानैरो सर्व साथ माराणो । अानो पण काम प्रायो। तद पावूजी आनैनू मारनै आनैरै कुवरनू कही-'तने पण मारीस ।13 ताहरा आनरै वेटै प्रापरी मारो गहणौ पाबूजीरी नजर कियौ । ताहरा पाबूजी अानैरै बेटैनू टीकै सांणियो । अानैर बेटैनू टीकै सांणनै आप सीरोहीनू चढिया, सु रातोरात सीरोही गया। रावनू कह्यो जु-'थे जाणसो पाबूजी म्हैसू मिलणनै अाया छै सो मिलणनू हू नही आयो छू।" ते बाईनू चाबखा वाया तिकै कारण प्रायो छू ।18 ताहरा राव पण आपरो साथ एकठो करनै चढियो। ताहरां लडाई हुई । ताहरां पाबूजी चांदैनूं कही'चादा | रावनू पापां मारो मती, नै पापड लिया 12 ताहरां लडाई _I यह ग्रोढा-रावण कहलाता है। 2 अपन उघर पहुँच सकते नही। 3 इतनी बात हरियेने श्रापर कही। 4 अच्छा, लौटते हुए समझ लेंगे। 5 अभी तो देवडोके पर चलो। 6 ये सभी सिरोही ऊपर चढे । 7 करामाती। 8 आना यहाँ रहता है। 9 और मेरा वर उससे लेना है। 10 और सारा वाग तोड करके खा गये है। (उजाड दिया है) I इतनी। 12 मारा गया। 13 तेरेको भी मारू गा। 14 तब अानेके बेटेने अपनी माँका गहना लाकर पाबूजीकी नजर किया। IS तव पावूजीने प्रानके वेटेको टीका करके गद्दी पर विठाया। 16 विठा कर। 17 तुम जानोगे कि पाबूजी मेरेसे मिलने के लिए लाये है, परन्तु मैं मिलनेको नही पाया हूँ। 18 तुमने मेरी बाई चादुक मारे इसलिये आया हूँ। 19 अपना। 20 चादा ] रावको अपन मारे नहीं परन्तु पकट लेना। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात 2 [ ६६ हुई सु देवडारो साथ घणो माराणो, अर रावनू हाथ पडिया, पकड लियो ।' नै पाबूजी कह्यो - ' मारो मतां । देवीजीरो जायो छै । ताहरा पाबूजीरी वैहन बैहल बैसने पाबूजी पास आई, कह्यो, 'भाई ! तू म्ड़्नैं ग्रमर कांचळी दे, रावजीनू छोड । ताहरा पाबूजी बहन कहै रावनू छोडियो । र ग्राने वाघेलैरी लुगाईरो गहणो पाबूजी वैहनने दियो नै कह्यो - 'बाई ! श्रो गहणो तनै दायजारो छै ।" ताहरां साळं बैहनेई आपसमे रस हुन । राव पाबूजीनू लेने सीरोहीरा गढ मांही आयो । 13 6 ताहरां बाईने साथै लेने पाबूजी वाघेलीनू बापरो सुणावणनू गया ।' ताहरा सोनां वाघेलीनू कही जु - ' बाईजी । थे लोकाचार करो ।' थारै ग्राने वाघेलै बापनू म्हारो भाई मार प्रायो छै, थोरियारे वैर माहै ।" ताहरां वाघेली गोडो वाळियो । 20 8 10 अर पाबूजी ठे बैहनरे जीम अर चढिया ", तद चांदैनू कही'चांदा ! थार वापरो वैर लियो छै, अर बाईरो पण वैण वाळियो छै ।" हमे चालो, दोदरी साढियां ले अर भातीजीनू देवा । 13 उठे पण सगा हससी, मैहणा देसी । 24 12 14 सु हमे असू चढिया सु दोदैरे चालिया । हरियैनै प्रागै कियो । ग्रा मारग वीच मिरजै खानरो राज, तठै मै ग्राय नीसरिया । 15 I तव लडाई हुई उसमें देवडोके श्रादमी बहुत मारे गये, रावको भी कुछ हाथ ( घाव ) लगे और पकड लिया । 2 मारो मत, देवीजीका ( समधिनका ) पुत्र है । 3 उस समय पावूजीकी बहिन बहलीमे बैठ करके पाबूजी के पास आई श्रीर कहा कि भाई । तू मुझे ग्रमरकचुकी (सौभाग्य) दे, रावजीको मारना मत, छोड दे । 4 कहने से । 5 यह गहना तुझे दहेज दे रहा हूँ । 6 फिर साला-बहनोईके ग्रापसमे प्रेम हो गया । 7 तब वहिनको साथ मे लेकर पाबूजी वाघेलीको उसके वापके मारे जानेका मृत्यु- सन्देश सुनानेको गये । 8 वाईजी ! तुम लोकाचार करो । 9 तुमारे वाप याना वाघेलेको मेरा भाई थोरियोके वैरका वदला लेने के लिए मार करके आया है । 10 तब वाघेली रोने बैठी । II और पाबूजी बहिन के यहा भोजन करके रवाना हुए । 12 चादा । तेरे बापको मारा जिसके वैरका बदला लिया और बहिनको जो वचन दिया था सो भी पूरा किया । 13 व चले सो दोदेकी साढनिया लेकर भतीजीको देदें । 14 वहां भी समधी हँसेंगे और ताने मारेंगे । 15 ये वहा श्राये । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] मुहता नैणसीरी ख्यात सु एक मिरजैरो वाग, तैमे कोई उतर सगै नहीं।' जो उतर सो मारियो जाय । अणरो पण वडो राज । ताहरां पाबूजी मिरजखानरै वागमे डेरो कियो, सो वाग सोह तोड़ खुवार कियो। ताहरां माळी जाय खाननू पुकारियो-'राज ! कोई रजपूत वागमें उतरियो छ, सो वाग सर्व विधूसियो ।' तद खांन पूछियो-'कैसाक रजपूत है ?' ताहरां माळी कहीं-'राज ! हिन्दु छै। डावी पाघ वाधियां छै ।" ताहरां खान कह्यो'-जी, येसूं आपां पोहचा नहीं । तिय प्रांनो वाघेलो मारियो ।” सो खान साम्हां रसाळ ले हालियो । ताहरा मीय घोडा, कपडो, मेवो सांम्हां लेने वाग आयो । प्रायनै पाबूजीसू मिळियो । ताहरां पावूजी इयैसू राजी हुवा। तद बीजो तो सर्व पाछो दियो नै एक घोडो राखियो, सु घोड़ो पावजी हरियेनू वगसियो। अठ खांनसू मिळनै पाबूजो चढिया सु अठै पचनद ऊपर पाया।" ताहरा पाबूजी चादैनू कह्यो-'चांदा। देखा, पांणीरो थाग लै ।11 कितरोहेक ऊंडो छ ? 12 ताहरां चांदै थाग लियो सु पाणी वासां-डोब ।13 ताहरां चादै कह्यो-'राज ! पार हुय सगां नही पर अठ डेरो कर दां 115 कदै ऊलै पार सांढियां अासी तद पापा लेस्यां।" __I उसमे कोई नहीं उतर (ठहर) सके। 2 इसका राज्य भी वडा। 3 सो सव वाग तोड कर नाश कर दिया। 4 सो तमाम बाग विध्वस कर दिया। 5 वामी पगडीके पेच वाला है। (राठौड वायें हायसे पगडी बांधते है इसलिये राठौड़ 'वामीवध' कहलाते है ) 6 इससे अपन नही पहुच सकते। 7 उसने श्राना वाघेलाको मार दिया है । 8 सो वह खान रसाल लेकर माम्हने गया । (राजस्थानमे सभी प्रकारके ताजे फलोको रसाल कहते है ।) 9 तव दूसरी मब सामग्री तो पाबूजीने वापिस कर दी, केवल एक घोडा रखा जो उन्होने हरियेको वख्म दिया। 10 यहा खानसे मिल करके पाबूजी रवाना हुए और यहाँ पचनद पर आये । ('पचनद' से तात्पर्य यहाँ सिन्धु नदी ही समझना चाहिए, जिसमे १ सतलज (गतद्र) २ व्यास (विपासा) ३ रावी (इरावती) ४ चिनाव (चन्द्रभागा) और ५ झेलम (वितस्था) ये पांच नदिया मिली हैं) I देखें, पानीका थाह तो लें। 12 कितनाक गहरा है ? 13 तव चादाने पानीका थाह देखा तो वासोडूब गहरा। 14 पार नही हो सकते। 15 और यहाँ ही डेरा लगादें। 16 कभी इस पार साढिया आ जायेंगी तव ले लेंगे। Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ७१ ईये भांत वात करता वीच पाबूजी माया फेरी सु पैलै पार जाय ऊभा ।' ताहरां चादै फेर परचो पायो। ताहरा चादैनू कह्यो-'चांदा । साढियारो वरग घेरो।' तद थोरियां जायनै वरग सर्व घेरियो । रबारी ढीलन बांध लियो। औ साढिया लेने पाबूजी पास आया। ताहरां ढील रबारीनू पाबूजी छोडनै बांडै ऊंठ चाढनै कही-'रे ! तू दोदरै वाहर घात ।' कहे, सांढियारा टोळा लियां जावै छै।' जे घेर सगै तो वेगो पावै ।' _____ ताहरां रबारी जाय पुकारियो, कही-'मेहरबान सलामत ! साढियांरा वरग सर्व हकाळिया, वाहर करो। ताहरां दोदै कही-'अरे | भांग खाधी छै नही ?' असो आज कुण छै जो दोदै सूमरैरी सांढां लियै ? 10 ताहरां रबारी कही-'राज ! राठोड़े साढियां लीवी छै नै कह्यो छै-आय सके तो वेगो आया ।11 इतरो सुणत समां12 दोदो सूमरो साथ भेळो करनै चढियो । अर पाबूजी तो सांढियान दाकळी13 सु पाणी माहैसू तिरने 4 पैलै पार हुई नै आपरो15 साथ पार करने चलाया आघा। वांसैसू दोदो वाहर चढियो', सु मिरजै खांनरै गांम आयनै मिरजैनू कह्यो जु-'राठोड़ा सांढिया लीवी, तू पण वाहर आव ।' मिरजो दोदैरो चाकर हुतो18, सु मिरजो पण चढ दोदैरै सांमल हुवो। ताहरा मिरजै कही जु-'पाघा मती जावो। सांढियां पाबू राठोड़ I इस प्रकार बातें करनेके बीचहीमें पावूजीने ऐसी माया फिराई सो उस पार जाकर खडे हो गये। 2 तब चादेने फिर पाबूजीके चमत्कारका परिचय प्राप्त किया। 3 तव थोरियोने जाकर साढनियोका सव वर्ग घेर लिया। 4 और रबारी ढीलको बाँध दिया। 5 तब ढील रवारीको पावूजीने छोड दिया और उसे एक बाडे (पूछ-कटा) कट पर चढा कर कहा कि तू दोदेको वाहर करने की सूचना दे दे। 6 कहना कि साढनियोके वर्गको लिये जा रहे हैं। 7 जो घेर कर ले जा सके तो जल्दी आ जाये ।'8 साढनियोके सभी वर्ग हाक करके लिये जा रहे है, पीछा करो। 9 अरे कही भाग तो नही खाई है ? 10 ऐसा आज कौन है जो दोदे समरेकी साढनियोको ले जाये? II यदि आ सके तो जल्दी पाना। 12 सुनते ही। 13 तेजीसे हाक दी। 14 तैर करके। 15 अपना। 16 दूर। 17 पीछेसे दोदाने पीछा कया। 18 था। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] मुहता नेणमीरी ख्यात लीवी। आपा घोडा मारिया ही पोहचां नहीं।' पाछा फिरो।' जे प्रानो वाघेलो मारियो छ सु थांसू' मर नही । सु राज ! थे पछै सर्व साथ भेळो करने जावज्यो। ताहरां मिरजे इतरी" कहो, ताहरा दोदो तो पाछो फिरियौ सु प्रापरै' ठिकाणे पायो। पर पाबूजी साढिया लेने सोढारै उमरकोट माहै कर नीसरिया ताहरां कोटरै हेढ़ कर वूया, ताहरां सोढी झरोखा माहै बैठी हुती, सु पाबूजीनू दीठा' । तद सोढी मानू कहाई-'जु पछै ही म्हनं परणावस्यो, पाबूजी राठोड जावै, परणावो । ताहरा ईये सोलै सिरदारनू कहियो ।” ताहरां सोढे वासै अादमी मेलियो, नै पावूजीने कहियो-'राज ! म्हारै परणीजने पधारो । ताहरा पाबूजो कही-राज ! आज तो साढिया लिया जावां छा । पाछै आय परणीजस्या ।' ताहरा सोढां आदमियां साथै नारेळ मेलियो छ । ताहरा आदमियां पावूजीरै टीको कर नारेळ पाबूजीरै हाथ देनै सगाई कर पाछा फिरिया । पाबूजी आघा पधारिया सो ददरैरै पाया ।" आगे गोगाजी विराजिया, ताहरा सदा वाईसू केलण हसतो-'जु काको दोदरी साढिया कद प्राण देसी ?'19 इतरै हरियो आयो । प्रायन कही-'भीतर बाईसू मालम करावो, जु पाबूजी पधारिया छै। दोदरी साढियां रा वरग तनै सकळपाया हुता मुलायो छ । संभाळ लेवो । ताहरां गोगाजी बाहिर आयनै पाबूजीसू मिळिया । ताहरा साढिया सरव सभाळ भतीजीनू दीवी छ । अर कह्यो-'एकै बाडै ऊठ विना सरब वरग 1 अपन घोडोको पीछे देकर भी पहुच नही सकेंगे। 2 वापिस लौट जायो। 3 जिसने। 4 तुमारेसे। 5 इकट्ठा करके। 6 इतनी। 7 अपने। 8 और पावजी साढनियोको लेकरके सोढोके उमरकोट नगरके अदर होकर निकले। 9 जव कोटके नीचे होकर चले तव सोढी झरोखेमे बैठी हुई थी, सो उसने पावूजीको देखा। 10 तब सोढीने अपनी माको कहलवाया कि पीछे भी मेरा विवाह करोगे, पावूजी राठौड जा रहे है, अभी व्याह दो। II तव इसने सोढे सरदारको कहा। 12 पीछे। 13 भेजा। I मेरे यहाँ व्याह करके पधारें। 15 आज तो साढनिया लिये जा रहे है। 16 देकरके। 17 पावजी पागे पधार कर ददरेरे (ददरेवे) आये। 18 बैठे हैं। 19 काका दोदेकी सानिया कब ला देगा? 20 कि पाबूजी आये है। 21 दोदेकी साढनियोंके वर्ग कन्यादानके ममय तुम्हें लाकर देनेके लिए संकल्प किया था सो ले आये हैं। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ७३ छ । ताहरां सारी सांढियां गोगाजी संभाही । पण गोगाजीरै मनमें विसवास रह्यो नहीं-'ज दोदो आज जोर बळ छै । तैरी सांढिया कैसू लीवी जावै ?' पण कठे बीजी जायगासू ले आयो छ ।' ताहरां गोगोजी पाबूजी भगत करी नै विचारी-'जु पाबूरी करामात पण देखीस ।” ताहरां गोगोजी पाबूजी आरोगिया। आरोगनै बैठा, ताहरां गोगोजी पाबूजीनू कही-'पाबूजी ! म्हारै केईरो नामलियो वैर छ । सो थे अठे रहो तो वैर लिया'० ताहरा पावूजी कही-'बोहत भला, रहिस्यां ।11 ___पछै रात पड़ी । ताहरां गोगैजी पाबूजीन कही-'श्रांपै परभाते सौण लेस्यां । जो सौण आछा हुआ तो चढस्यां ।13 ताहरां पाबूजी कह्यो-'सवण किसा लेस्यां ?14 आप जठी चढस्यो तठी फतै कर आवस्यां । ताहरां गोगोजी कही-'राज ! अापणी धरती माहै स तो सवण मांनीजै छै ।16 ताहरां रात तो अ पोढि रह्या ।” - अर परभात हुवौ ताहरां गोगोजी पाबूजी दोनू घोडां चढि सवण लेणनू हालिया । तठे सवण तो कोई हुवी नही। ताहरां एक रूंख हेठे ही जाजम विछायनै दोनूं सिरदार सूता ।20 घोडा दोन चरणनू ढाळिया ।1 इतरै ठंडो वगत हुवौ । ताहरां औ जागिया। ___ ताहरां गोगैजी कह्यो-'घोड़ा हू ले आऊं छू, ज्यु प्रांपा घरै हालां । ताहरां पाबूजी कह्यो-'राज ! आप विराजो । ह ले ____ I एक वाडे (कटी हुई पूछके) ऊटके विना तमाम वर्ग मौजूद है। 2 सभाल ली। 1 उसकी साढनिया किससे ली जायें? 4 कही दूसरी जगहसे ले आया है। 5 भोजन आदिकी तैयारी की। 6 और। 7 देखूगा। 8 भोजन किया। 9 मेरे किसीके साथ साधारण-सा वैर है। 10 सो तुम यहाँ रहो तो वैरका बदला लू । II रहेगे। 12 अपन प्रभातमे शकुन लेगे। 13 चढेंगे, चलेंगे। 14 शकुन क्या लेंगे ? IS आप जिघर चलेंगे उधर ही फतह कर पायेंगे। 16 अपने देशमे तो शकुन देख कर ही काम करना अच्छा माना जाता है। 17 तवरात तो ये सो रहे। 18 चले। 10 वहा । 20 तब एक वृक्षके नीचे जाजम विछा करके दोनो सरदार सो गये। 21 दोनो घोडे चरनेको छोड दिये। 22 इतनेमे ठडा वक्त हो गया। 23 तब ये जगे। 24 घोडे में ले आता हू, फिर अपन घरको चले। 25 आप वैठिये। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 3 4 5 आईस ।" ताहरां गोगंजी कही - 'थे वडेरा छो", छोटा तोई सुसरा छो, पग वडा छो, थे बैसो, हू ले ग्राईस ।' ताहरा पावूजी कही - 'ग्रा तो साची, पण थे बूढा छो, र म्हे मोटियार छा" ताहरां पाबूजी घोडारी खबर करण गया । श्रागे जाय देखे तो कासू ? नाग २ र्छ, तिके तो सेखड़ हुआ घोड़ा चारै छै । श्रर दोय नागांरा घोडांरं पगे दावणा छै ।' ताहरां पाबूजी देखने विचारी जु-'ग्रा म्हने गोगोजीकरामात देखाळी छे ।' ताहरा पाबूजी पाछा आया । श्रायने गोगेजी नू कही - 'राज ! घोडा तो दीसे नही । कठीने नीसर गया । म्हन तो मिळिया नही | 20 6 12 3 ताहरां पावूजी तो जाय जाजम बैठा ने गोगोजी हाथमें बरछी लेनै घोडांरी खबर करण गया। आगे देखे तो कासू ? पाणीरो वडो हवद भरियो छै । 11 तैरं मांहे " एक नाव छे, ते नावमें घोड़ा दोन तिरै छै । हवद ऊंडो बोहत । 14 गोगोजी विचारी जु-प्रा म्हन पाबू करामात दिखाळी छै । आ जाणने 25 गोगोजी पाछा पावूजी पास आया । ताहरा पावूजी कही - 'राज ! घोडो लाधा ताहां गोगोजी कह्यो - 'राज ! म्हारै मनमे सदेह हुतो, सु हमै मिटियो । " म्है लाधा था 1218 15 7116 ताहरा पाबूजी गोगोजी भेळा हुयनै घोडांनू गया । आगे देखे तो कासू १ ऊभा छूटा चरै छे ।" तद घोडा लेय लगामा देने असवार हुयनं गोगोजीरी कोटडी आया । पछे पाबूजीनू भगत जीमायनै विदा दीवी | 20 मैं ले आऊगा । 2 तुम वडेरे हो । 3 छोटे हो तो भी ससुरे हो, पदमे बडे हो, 9 कही निकल गये । तुम बैठो । 4 यह तो सच है, परंतु तुम वृद्ध हो और मैं जवान हू । 5 वे तो साथ खडे हुए (फनोको उठाए हुए ?) घोडे चरा रहे हैं । 6 और दो सर्पोंकी घोड़ोके पावोंगे रज्जु (दामर) बँधी है । 7 दिखाई है । 8 दिखाई नही देते । 10 मुझे तो मिले नही । II पानीका वडा होज भरा हुआ है । उस 1 14 हौज वहुत गहरा । 15 यह जान कर 1 16 घोडे मिल गये ? 17 सो अब मिटा । 18 मैंने आपको अब पहिचाना | 19 छूटे खड े हुए चर रहे है । पावूजीको भोजन करवा कर रवाना किया | 12 जिसमे । I3 20 फिर Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ७५ पाबूजी अर हरियो थोरी असवार हुयनै सांढियां देनै कोळ आया । ताहरां वसेक हुवो।' ताहरां पाबूजो वरस १२रा हुवा। ताहरां सोढा साहो लिख मेलियो । कह्यो-'जांन कर वेगा अावज्यो। ताहरा पाबूजी जांनरी तैयारी कीवी । जीदराव खीची बोलायो। गोगजीनू बोलाया। बड़ेजी बोलाया । जानरी तैयारी कीवी । अर सीरोही रै रावनू पण बोलायो, सो आयो नही । ताहरां जान चढी ।। ताहरां चांदेरी बेटीरो पण दीमाह हुतो। चादो विखैमें नीसरियो तद सात गांव बेटी दीवी हती। तैरी सातेई जाना आई। ताहरा चांदैनू पाबूजी कही-'चादा ! थारे पण वीमाह छै; तू अठं रहि ।' ताहरा चांदो तो अठै रह्यो । अर डांवो साथै गयो। ताहरां जाननू मारगमे जावतां वडाकारो सवण हुवौ। ताहरा सवणियां कही-'राज ! सवण भला न हुवा छ, पाछा फिरो।10 बीजै साहै परणीजस्यां ।'11 ताहरा कहीं-'थे पाछी फिरो। ह तो कोई फिरूं नही । लोक कहै जु पाबूजीरी तेल चढी रही। ताहरा पाबूजी तो आघा चढिया अर साथै एक डांबियो हुवो।13 अर बीजो14 साथ सर्व पाछो फिरियो। ताहरा पाबूजी घडी २ रात गयां धाट जाय पुहता ।15 उठे सोढा भली भातसू वीमाह कियो । ताहरां पाबूजी फेरा लेने हालण लागा। ताहरां सोढां कही-'राज ! म्हांमें चूक किसी, सु न जीमो, न कोई भगत लिवो, सु किसै वासतै ?17 दिन दोय चार रहो, ज्या ____ I तव वडी विशेप वात मानी गई (होत्सव हुआ) 2 सोढोने तव विवाहका लग्न लिख कर भेज दिया। 3 वारात बना कर जल्दी आना। 4 पावूजीने बारातकी तैयारी की। 5 गदेकी लडकीका भी विवाह था। 6 चादा सकटमे था तब उसने अपनी बेटीका सवध सात गावोंमे कर दिया था। 7 यहा। 8 मार्गमे जाते हुए बरातको अपशकुन हुआ। 9 शकुनियोने। 10 पीछे लौट जानो। II दूसरे साहे पर व्याह करना। 12 लोग कहेगे कि पावूजीकी तेल चढी हुई ही रह गई। 13 और साथमे केवल एक डाविया थोरी चला। 14 दूसरा। 15 पावूजी दो घड़ी रात गये धाट देश (उमरकोट) मे जा पहुचे। 16 पावूजी भाँवर लेनेके वाद चलने लगे। 17 हमारेमे कौनसी भूल जिससे न तो आप भोजन करो और न आप भात (वडा भोज) लेयो, सो किस कारण से ? Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] मुँहता नैणसीरी ख्यात 2 दायजो देने विदा करां ।" ताहरा पाबूजी कह्यो जु - 'म्हांनू सुगन लाचा हुआ है । " तेसू म्हे रातोरात घरा जावस्यां । पाछा मासेकनू श्रावस्था । भगत दायजो जदो करज्यो ।" ताहरां सोढा कही 'मरजी 4 ताहरां सोढी कह्यो - 'हूं 8 रावळी, चढो ।" ताहरां पाबूजी चढिया । पण न रहू, साथै हालीस ।" ताहरा सोढी पण वैहल वेसने साथै हुवा, सु पाबूजी रातोरात हलाणो लेने कोळू प्राया । ग्रठे हरख बधाई हुई | पाबूजी सोढी जाय महल माहे पोढिया छे ।" आप₹10 घरै गयो । 9 डांवो 12 14 । 15 16 ताहरा जीदराव खीची ग्रायो हुतो " सु पाबूजी वूडैजी जीदरावनू सीख दीवी । 22 ताहरां जीदराव मारगमे जावता काछेलां चारणारी वित्त लियो । 13 ताहरा गोहरी " आय पुकारियो । को'जी । खीची जीदराव धण चरतो हतो, तठेसू" सर्व लियां जावै छे ।' ताहरां बिरवड़ी चारण श्रायने बुडै आगे कूकी । " कह्यो'बूडा ! वाहर धाय'", खीची गाया घेरियां जाय छै ।' ताहरां वृड़ैजी कही- 'बाई | म्हारी आख दूखै छै । ग्राज तो चढियो ना जाय । .18 T 19 ताहरा चारण कूकती - कूकती पाबूजीरे महल आई । आयनै चादेनू कही - 'चांदा | पाबूजी नही, अर खीची म्हारो धण सर्व लियो, सो तू चढ ।”° ताहरा चांदै कही 'हे । कूक ना"" पाबूजी पधारिया छै ।'' इतरै पाबूजी पण झरोखे कर दीठो । " कह्यो - ' कासू छे ? '24 120 21 | ' 122 23 । I सो दहेज देकरके विदा करें । हम रातो-रात घरको चले जायेंगे । ( वडा भोज) और दहेज उस समय 7 मैं भी नही रहू, साथमे चलूगी । रातो-रात हलाएगा ( सोढी ) को साथ II श्राया था । 12 विदा किया चारणोंके गो-समूह को घेर लिया । वहासे । 17 तव चारणी विरवडीने आकर बूडेसे पुकार की । । ( पीछा कर ) । 19 आज तो वाहर नही चढा जाता । चढ | 21 श्ररी । शोर मत मचा । 22 पाबूजी आ ने भी झरोखेमे हो करके देखा । 24 क्या है ? 20 सो तू गये है । 2 हमको शकुन अच्छे नही हुए है । 3 इसलिये 4 मास एकके लगभग फिर आयेंगे । 5 भगत देना । 6 तव सोढोने कहा - मर्जी श्रापकी, पधारो । 8 सोढी भी बहलीमे बैठ कर साथमे हो गई, पाबूजी लेकर कोलू श्राये । 9 सो गये है । IO अपने । | 13 तब जीदरावने मार्गमे जाते हुए काछेला 14 गाये चराने वाला IS गो-समूह | 16 18 वाहरको दौड उसके पीछे वाहरको 23 इतनेमे पाबूजी 7 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ७७ ताहरां कही-'राज ! काछेली विरवडीरो धण खीची जींदराव लियो। अर वूडोजी चढे नही।' ____ताहरां पाबूजी कह्यो-'घोडां जीण करावो। ताहरां पाबूजी असवार हुवा । थोरी सर्व असवार हुवा । सात-वीस जानी नै सात चांदैरा भाई, साराई चढिया । निकै खीचीनू पुहता। तठे लडाई हुई। खीचीरो लोक घणो मारीजियो। धण सर्व पाबूजी घेर लियो । लेने तो कोळू आवै । गूजवो कोहर तो, तठे चारणरो वित पावण वेई, सु कोहर चाढियो, सु पांणी नीसरै नही । ताहरां चारण विरवडी कही-'वडा राठोड घेरी छै ज्यु पाय ।" ताहरां पाबूजी कोहर तेवण श्राप लागा। ताहरा एक वारो काढियो । तेसू कोठा, कूड्यां, खेळियां सर्व भरी । विरवडी चारणरो धण सर्व पायो । ___अर वास11 विरवड़ीरी छोटी बहन वूडेजीनू जाय पुकारी । कह्यो-'वूडा ! हमै तो कितराइक काळ जीवीस । पाबूजी तो काम आया।' इतरी इयै कही। ताहरां बूडैजीन रीस आई। ताहरां बूडैजी चढिया सो खीचीनू जाय पुहता।" ताहरा बूडैजी कह्यो-'रे खीची ! पाबून मार कठे हालियो ? 15 पग माड ! 26 ताहरां खीची सकियो। कह्यो-'राज | पाबूजी तो धण लेनै पाछा फिरिया, थे लडो मती18 ___ I घोडो पर जीन कसवा दो। 2 एक सौ चालीस वराती और सातो ही चादेके भाई, सभी चढे । 3 वे सभी खीची के पीछे पहुचे। 4 खीचीके बहुत मनुष्य मारे गये। 5 ले करके ये तो कोलूको आ रहे है। 6 मार्गमे गूजवो नामका कुआ था, वहा चारणीके गो-समूहको पानी पिलानेके लिये चरसको चढ़ाया, किन्तु पानी निकलता नही। 7 बडे राठोड | जिस प्रकार अपने हाथोसे इन्हे घेर कर लाये हो, उसी प्रकार अपने हाथसे ही इन्हे पानी पिलायो। 8 तब पाबूजी स्वय चरस खीच कर निकालने लगे और उन्होने एक वारा निकाला। [कोहर=पशुयो आदिके पीनेके लिये चरस द्वारा पानी निकाला जाने वाला कुआँ ! वारो चरस (प्रायः बिना सड वाला)का कुएमेसे पानी भर करके एक वार निकाला जाना एक 'वारा' कहलाता है।] 9 उस एक वारासे पानीके कोठे, कूडिये और खेलिया आदि सब भर गये। 10 विरवडी चारणीके सभी गो-समूहको पिला दिया। II पीछे से। 12 बूडा | अव तू कितने काल तक जीयेगा। 13 इतनी बात इसने कही। 14 जा पहुचे। 15 पावूको मार करके कहा चल दिया ? 16 पांव रोप (ठहरजा)। 17 डर गया। 18 पावूजी तो गो-समूह लेकर लौट गये है, तुम लड़ाई मत करो। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] मुंहतो नैणसीरी ख्यात तोई वडोजी माने नही। ताहरा लड़ाई हुई । बुडो काम आयो। __ ताहरां खीची आपरा' साथसू कही-'जो आज आपा पाबून मारियो नही तो पाछै पापांने नही छोडसी । ताहरां खीचीरो साथ पाछो फिरियो । सो कूडळ पमै घोरंधाररै आयो। ताहरा पमैन कही जु- 'ब, राठोड थारी धरती दबावता-दबावता आसी', सो जे तू आज म्हारै सांमल हुवै तो दाव छ, पावूजीनू मारां ।' ताहरां पमो पण चढ सामल हुवी। चढनै पावूजी ऊपर पाया । त' पाबूजी गायां पाइनै10 छोडी छै। इतरै खेह दीठी 17 ताहरा पाबूजी कह्यो- रे चांदा । श्रा खेह करी ?'12 ताहरां चांदै कह्यो-'राज ! खीची आयो।' अर पैहलडी लड़ाई माहै चांदै खीचीनू तरवार वाही हुती', तद पाबूजी तरवार आपड़ लीवी 14 कही-'मारो मतां, बाई राड हुसी।15 ताहरा चादै कही-'राज ! अाप तरवार आपडी सु बुरी कीवी।16 अ छोडै छै ?" मराया भला ताहरां चादै कही-'हरामखोर आयो।' ताहरा पाबूजी खेत वुहारनै लडाई कीवी 119 वडो -रोठ वाजियो।२० ताहरा पाबूजी काम आया। सात भाई आहेडी21 काम आया । जाना सात पाई ही, जिणमे सात-वीस आहेड़ी छा सो सर्व काम पाया । वडी लडाई हुई। खीचीरा पण माणस घणा I फिर भी वूडोजी मानते नही है। 2 अपने। 3 जो आज अपनने पावको मारा नही, तो फिर वह अपनेको नही छोडेगा। 4 सो वह कुडल में पमे घोरधारके पास आया। 5 ये। 6 तेरी। 7 श्रायेंगे। 8 यदि। 9 वहाँ। 10 पानी पिला करके। II इतनेमे गर्द उड़ती हुई देखी। 12 यह खेह किस बातकी ? 13 पहलेकी लडाईमे चादेने खीचीके ऊपर तलवारको प्रहार करनेके लिए उठाई थी। 14 तव पावजीने तलवार पकडली थी। 15 कहा कि मारो मत, बाई विधवा हो जायगी। 16 अापने तलवार पकडली यह बुरा किया। 17 ये अब कही छोडने वाले हैं ? 18 मार देना ही अच्छा था। 19 तव पावूजीने मैदान तैयार करके लडाई की। 20 बढे जो कि प्रहारोंमे लडाई हुई। 21 शिकारी (थोरी)। 22 सात वरातें आई थी, जिनमे १४० चोरी थे सो नभी काम आ गये । 'सात-वीसका प्रयोग प्राय 'सात-वीसीकी' भांति ही १४० के लिये ही होता है। केवल २७के लिए 'सात-वीस'का प्रयोग नहीं होता। बीनने पर दस या वीम समाहार मल्यायोंके योगके लिए उन ममाहार सख्यायोकी इकाईमे गुगिन कर अभिलपित नंख्याको बतानेको परम्परा आज भी अपठित समाजमे देखी जाती है। दशका ममाहार वीमका आधा, पांचको चौथाई और १५ को पौना समझा जाता है। पत्रानको 'अढाई-बीनी', पचपनको 'पूणा तोन-वीसी' और साठको 'तीन-बीसी'कहा जाता है। इपराठको 'तीन-धीमी ने एक' कहा जाता है। इसी प्रकार सत्ताईमको 'सात-वीस' न छह फर एक वीसी ने मात' कहा जाता है। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [७६ कांम आया।' खीची तो लड़ाई करनै आपरै ठिकाण गयो। पमो आपरै ठिकाणै गयो। पाबूजी लारै सोढी सती हुई । बूडैजी लारै डोड-गेहली सती हुवण लागी । तद डोड-गेहलीरै सात मासरो गर्भ हुतो। तद लोकै कही-'आपरै पेट माहै गर्भ छै सु थे सती मता हुवो । ताहरां डोड-गेहली छुरी लेने पेट झरडैनै वेटो काटियो अर धायनै दियो।' कह्यो-'इौनू आछी तरतूं पाळे ।' प्रो वडो देवनीक मरद हुसी ।' ताहरां इणरो नाम झरड़ो दियो। पछै झरड़ो वरस १२रो हुवो । ताहरां झरड़े काकै बापरो वैर लियो ।' जीदराव खीचीनू मारियो । पछै राज कियो । तिको झरडो अजू ताई जोवै छ । गोरखनाथजी मिळिया। सिद्ध मरद हुवो।1 ।। इति पाबूजी री वात सपूर्ण ।। ॥ शुभं भवतु ।। कल्याणमस्तु । - - - - - - - I खीचीके भी वहुत मनुप्य काम आये। 2 पावूजीके पीछे सोढी सती हुई । 3 उस समय । 4 आपके पेटमे गर्भ है सो तुम सती मत हो। 5 तव डोड-गहलीने छुरीसे पेटको चीर करके भ्र णको बाहर निकाला और धायके सुपुर्द किया। 6 इसका पालन अच्छी तरहसे करना। 7 यह देवांशी और वीर होगा। 8 इसका नाम झरडा रखा। [छुरीसे झरड कर (एक झटकेसे चीर कर) पेटमेसे बाहर निकाला इसलिये 'झरडा' नाम रखा।] 9 तब झरडेने अपने काके और वाप के मारने वाले जीदराव खोचीको मार करके बदला लिया। 10 वह झरडा अभी तक जीवित है। II सिद्ध और वीर पुरुप हुआ। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीरांमनी सत छ । अथ वात गांगै वीरमदेरी लिख्यते च्यार ठाकुर मारू, सु अ जोधपुर पाया । इयांमे रायमल घरे छै, वीजा जोधपुररै दरोखानै छै। इतरै मेह पायो । ताहरां इंया ठाकुरां वीरमदेरी मा सीसोदणी, तिणनू कहाडियो -'जी, म्हांनू मेह रोकिया छै', मांहरी खबर लेज्यो। ताहरां रांणी कहाडियो-'चकमा अोढनै ठाकुर डेरै पधारो।' अठे थांनं कुण जीमाडसी 110 __ताहरा इंया ठाकुरा कह्यो-'श्रावो, गागैरी मानू कहावा ।'11 ताहरा गांगरी मानू कहाड़ियो। ताहरा भीतरसू कहाड़ियो-'ठाकुर ! दरीखानै विराजो। घणा हीडा करस्यां। ताहरा गांगरी मा ठाकुररा घणा वाना किया। ठाकुर सारा राजी हुवा । वळे आपरी धाय मेलनै खवर कराई, ने कह्यो'-'जी, क्युं ही न पहुतो हुवै सो पहुंचावा 11' ताहरा ठाकुरां कह्यो-'जी, सारा थोक आया । ____ ताहरां इया ठाकुरां वहूजीनूं भीतर कहाड़ियो-'थारै बेट गांगनूं. जोधपुररी ममारखो छै।19 ताहरां धाय भीतर जायनं वहूजीनू कह्यो-'ठाकुर थारै वेटेनू जोधपुररी ममारखी दीवी छ । ताहरां राणी पासीस कहाड़ी 121 पर कह्यो-'जी, जोधपुर म्हां पायो । I चार मारू ठाकुर थे सो ये जोधपुर रहनेके लिये प्राये। 2 इनमेसे। 3 दूसरे जोधपुरके दरीखानेमे है। 4 इतनेमे वरसात पा गया। 5 इन। 6 जिसको कहलवाया। 7 हमको वरसातने घर जानेसे रोक लिया है। 8 हमारी सम्हाल लेना जी। 9 चकमे प्रोढ कर अपने डेरोको चले जायें। 10 यहां तुमको कौन भोजन करायेगा। 11 गागेकी गाको पहलायें। 12 दरीखानेमे बैठे। 13 ययागक्ति सेवा करेंगे। 14 अनेक प्रकार सेवा की। 15 पुन अपनी घायको भेज कर खवर करवाई। 16 और कहा। 17 कोई वस्तु नहीं पहनी हो वह पहुचा दें। 18 सब वस्तुएँ मिल गई है। 19 तुमारे पुत्र गागेको जोवपुरकी मुबारिकवादी है। 20 ठाकुरोने तुमारे बेटेको जोधपुरवो मुबारिकवादी दी है। 21 तब रानीने आशिप कहलवाई। 22 (आपने कहा है तो) जोधपुर ही मिल गया। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [८१ थांईज सारै छ', थे देवो जिकेन हीज पावै ।'' अर कहाडियो-'भला जी, म्हां पायो । यु करता राव सूजोजो कितरै हेकै दिने विसरामियो । ताहरा टीकैरी तयारी हुई। ताहरा इया ठाकुरां वोरमदेनू पकड बाह पर गंढसू हेठो उतारियो', नै गांगैनू टोको दियो । जाहरा' वीरमदे गढ हू उतरतां विचै रायमल मुंहतो मिळियो, कह्यो-'रे, ओ पाटवी कुंवर गढसू क्यु उतारो ? ताहरां रायमल वीरमदेनू अपूठो ले पायो ।' ताहरा सिगळा ही मिळनै कह्यो11'जी सोझत वीरमनू द्यो ।1 सोझतरो राव वीरमदेन कियो ।13 ताहरां वीरमदे गेहलो हुवो।14 मुहडैसू वकै-'रे, प्रो जोधपुर हुवै ?15 ताहरां रायमल मुहतो सोझत रखवाळे । वीरमदे ढोलियै बैठी रहै। जो गांगो सोभतरो १ गाम मारै तो रायमल जोधपुर रा २ गांम मारै ।। यु रहतां थकां इयारो वेध चालियो जाइ 119 जैतो जोधपुर चाकरी करै । कूपो सोझत चाकरी करै । सु जैतै री वसी वगडी मांहै। सु वगडी वीरमदेरै वाटै मे आई 121 वीस हजाररो गांम । सु जैतैनू वीरमदे काढ नही ।23 सु किसे वासते ? कह्यौ-'जी जैतो फोज माहै सिरदार, सु जैतो वगड़ी ___ I तुम्हारे ही अधिकारकी बात है। 2 तुम जिसको देदो उसको ही मिले । 3 और उन्हे कहलवाया कि अच्छी बात है, हमे प्राप्त हुआ। 4 इस प्रकार कितनेक दिनोके वाद सूजोजी देवलोक हुआ। 5 वीरमदेको वाह पकड कर गढसे नीचे उतार दिया। 6 और गागेको टीका कर दिया। जब। 8 से। 9 अरे । इस पाटवी कुवरको गढसे क्यो उतार रहे हो? 10 तव रायमल वीरमदेको वापिस ले आया । II तव सभीने मिल कर कहा। 12 सोजत वीरमको देदो। 13 तव सोजतका राव वीरमदेको बनाया। 14 तव वीरमदे पागल हो गया। 15 मुहसे वकता है-अरे ।यह जोधपुर है क्या ? 16 उस समय मुहता रायमल सोजतका रखवाला बना। 17 वीरमदे पलग पर बैठा रहे। 18 यदि गागा सोजतका एक गांव लूटता है तो रायमल जोधपुरके दो गाव लूट लेता है। 19 इस प्रकार इनका झगडा चलता रहता है। 20 जैतेकी वसी (जागीरी) बगडी मे। 21 वगडी वीरमदेके वटमे पाई हुई थी। 22 वगडी वीस हजारकी आमदनीका गाव। 23 जैतेको वीरमदे निकालना नही चाहता। 24 सो किसलिये ? Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२] मुहता नैणसीरी ख्यात भोगवे, सोझतरो भलो चाहै। ताहरां राव गांग कह्यो-'जैताजी ! थाहरा गाडा बोलाड़े प्राणो ।' वगड़ो छाडो। ताहरा जैतेजी कागळ मेलिया ।' वगड़ी माहै धायभाई रेड़ो हुतो। तिकैन कहाडियो-'रेडाजी ! गाडा बीलाई ले जावो ।' ताहरा रेडै कहाडियो-'वगडी वीरमदे छोडावे नही, तो म्हे क्यु छोडा ?' ताहरा रेडै वगडी छाडी नही। यु करता वळे' वीरमदेरो साथ नै गांगैरो साथ लडियो, गांगजीरो साथ भागो। ताहरां गागजी कहै-'म्हारौ साथ भागै, सु 'कातूं छै ? 10 ताहरा कहणवाळां कह्यौ-'जी, जैतो वगडी भोगवं जितरै थे जीपो नही।11 ताहरां राव गागैजी जैतैन तेडनै अोळभो दियो । ताहरा जैतै रेडैन कहाडियो-'रे, मोनै थां रावजी कना अोळभो दरायो । हिवै वगडी वेगी छाडज्यो ।14 ___ ताहरा रेड़े दीठो 5- रायमलनू मारू तो भलो छ ।' ताहरा रेडै दीठो-सोझत जायन रायमलनं मारू । ताहरा रेडो सोझत गयो । जायनै रायमलसू मिळियो ।। । रायमल वागो पहरनै मुजरै जावतो हुतो।' ताहरा कह्यो-'रेडाजी ! हालो, मुजरै हालां।18 ताहरा रेडैनू ले अर रांणीरै मुजरै गयो। जायनै रायमल मुजरो कियो । ताहरा कह्यो-'जी, वीरा ! ओ कुण छै ? 19 कह्यो-'जी, जैतैजीरो धाय भाई छ । ताहरा पगे लगायो । बाहुडता रायमलनू छान लेने जैता फौजका सरदार और सोजतका हितैपी है इसलिये वह वगडीको भोगता है। 2/3 राव गागाने कहा-'जैताजी | तुमारे गाडे विलाडे ले पायो (वगडी छोडकर विलाहे चले पायो) । वगडी छोड दो। 4 तव जैतेजीने पत्र भेजा। 5 बगडीमे घायभाई रेडा था। 6 उसको कहलवाया। 7 तो हम क्यो छोडे? 8 तव रेडेने वगडी छोडी नही । 9 फिर। 10 सो यह क्या बात है ? II जैता जब तक बगडी भोगता है तब तक तुम जीतनेके नही । 12 तव राव गागेजीने जैतेको बुला कर उपालभ दिया। 13 अरे । मुझे तुमने रावजीसे उपालभ दिलवाया। 14 अब वगडी जल्दी छोड दो । 15 तव रेडे ने देखा। 16 जाकरके रायमलसे मिला। 17 रायमल वागा पहन कर मुजरा करनेको जा रहा था। 18 चलो, मुजरे चलें। 19 भाई ! यह कौन है ? 20 तब उसे पांवो लगाया। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसी ख्यात वेसास मता करें ।' कह्यौ - वीरा ! इयैरो देख छू । 2 ताहरां रायमल कह्यो- 'जी, पिणं सीसोदणी कह्यो - 'वीरा ! इणरो वेसास मतां करे ।' [ ८३ हू इयैरी निजर भूडी तो आपणाहीज छै ।" 4 5 ताहरां रायमल दरीखांनैनू हालियो छै । ताहरां धाय भाई रेड़ै जांणियो ।' दरीखाने तो हजार आदमी छै । उठे तो रायमल मरसी नही ।" अठै कलो छै, मारूं ताहरां रेड़ें तो मारणरी घात कीनी, तरवार वाही । अर रायमल भाटो लेणनू नीचो हुप्रो, सवळी मेहलै वैठी हुती, तियैरै उडावणनू । ताहरां तरवार वाही, सो खाली पडी । थोड़ी-सी मोरै लागी ।' ताहरां रायमल पाछो फिर अरवाही सु रेडनू भोठ परहो कियो । 1° रेडो मारै रायमल ऊभी रह्यो ।" ताहरां वगड़ीरा लोक सारा नाठा सु उबरे गया । 22 12 17 .16 हिवै राव गांगोजी कहै - 'जैताजी ! कूपानू उरहो त्यो । 13 ताहरा जैतैजी कह्यो - 'राज ! हूं ही कागळ दईस, अर आपही कागळ द्यो । ' 14 तारा कागळ दे श्रादमी मूकियो । " कहाड़ियो- 'रे भाई । वीरमदेर छोरू'" नही छै; पछै ही जोधपुर ग्रावणो छे । अर लाख रुपियांरो पटो कूपैनूं रावळे" देवै छ । सखरा- सखरा गांम मारवाडरा कहै । 18 छै, ल्यो ।' ताहरां कूपही दीठो- “भलां कहै छै ।" जाहरां कूप राव गांगजीनू कहाड़ियो - ' जो एक वरस ताई सोझत ऊपर कटकी न करो तोह थाह आऊं । 2 ताहरां रावजीसौ कह्यो । ताहरा दीठो 17 20 121 । लौटते हुए रानीने रायमलको एकान्तमे लेकर कहा कि 'वीरा ! इसका विश्वास मत करना | 2 मैं इसकी नजर बुरी देख रही हू । 3 यह तो अपना ही है । 4 चला जा रहा है । 5 विचार किया । 6 वहाँ तो रायमल मारा नही जा सकेगा । 7 यहाँ केला है, मार दूं । 8 महल पर एक चील बैठी हुई थी उसको उडाने के लिये ककर लेनेको नीचे झुका, उस समय तलवारसे प्रहार कर दिया, परंतु वह खाली चली गई । 9 थोडी-सी पीठमे लग कर रह गई । TO तव रायमलने पीछेकी ओर मुड कर प्रहार किया सो रेडेका सिर दूर जा पडा । II रेडेको मार करके रायमल खडा रहा । 12 बगडीके सभी लोग भयके मारे बचने के लिये भाग गये । 13 कूपाको भी इधर ले लो । 14 में भी पत्र दूगा और आप भी पत्र दें । 15 तब पत्र देकर ग्रादमी भेजा । 16 पुत्र, सतान । 17 रावजीकी ओरसे । 18 अच्छे-अच्छे । 19 देखा, विचारा | 20 बात तो ठीक कह रहे हैं । 21 जो एक वर्ष तक सोजत पर आक्रमण नही करो तो मैं तुम्हारे पास श्रा जाऊ । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात वरस उरहो पावतो जासी ।' कूपो परहो नही जावै ।" कह्यो'कूपाजी पधारो। वरस एक ताई सोझत ऊपर कटकी नहीं करां ।' ताहरा कूपै रायमल कनै जाय विदा मांगी। 'म्है जोधपुर जावां छा। वीरमदेरै छोरू नही, पछै ही जोधपुर जावणो हुमी । ताहरां रायमल कह्यो-'कपाजी ! वीरमदेरो ढोलियो खेतावतर हीये पग है अर सोझतहू उतारसी, थे पधारो छो?" ताहरा कूपोजी तो जोधपुर गया। कूपै जावतां रिणमल सर्व गया । वासै सात से असवार सोझतमे रह्या। ताहरा कृपजी मसलत की । सोझतरा गांम वरसो-वरस' दो-दो चार-चार लेता जावो । ताहरा धौळहरै प्राण पायगा बाधी। राव गांगरा च्यार हजार चीधड थाणे राखिया ।1 इतरा अमराव साथै दिया । १ मानो रूपावत, २ साडो सांखलो, ३ रायपाळ साहणी, ४ गांगो डूगरसीप्रोत, इतरा ठाकुर घोड़ां पासै राखिया। यु करता होळी आई । होळीर दिहाड़े, ताहरां मांडावो अरहट छ, एथ सारो दीह रायमल रह्यो, गोठ कीवी । अर हेरा लगाया 14 अाज होळीरो दिन छै सु चोपड़ां गाव छ उठ गागैरी वसी छ । सु रायमल कह्यो-'गांगो घरे जासी । सु ताहरा गांगो घरे जावै, ताहरां मोनू" खबर देज्यो। हेरा धौळहर गया। ताहरा होळीनै मंगळावै नै पहोर १ रात गई, ताहरा गांगो साहणी कनै गयो । कह्यो-'साहणीजी ! कहो तो घरे जावां । ताहरा साहणी बोलियो-'नही ।' कह्यो-'जी, क्यु, ना वोलो?1' कह्यो-'जी, रायमल ___ I एक वर्प यो ही वीत जायगा । 2 कूपा कही हायसे चला नही जाये। 3 कूपाजी त्रले आयो। 4 हम जोधपुर जा रहे है। 5 बादमे भी जोधपुर तो जाना ही पड़ेगा। 6 कू पाजी । वीरमदेके पलगको खेतावतोकी छाती पर पर देकर सोजतसे उन्हें उतारनेकी वात थी और श्राप जा रहे है ? 7 कू पेके जानेसे रिणमलोत सभी चले गये । 8 पीछे सिर्फ सात सौ सवार सोजतमे रहे। 9 प्रति वर्प। 10 तव घोलहरे गावमें अाकर घुड-सेनाकी पायगा वाँधी। II राव गागेके चार हजार चीघड-सैनिकोको इस थानामे रखा। 12 इस प्रकार उमराव साथमे दिये। 13 माडावा नामका एक रहंट है, होलीके दिन रायमल दिन भर यहा रहा और वहा गोठ की। 14 वहा उसने जासूस लगाये। 15 चोपडा गाव है उसमे गागेकी वसी है। 16 मुझको। 17 जासूस घोलहरेपो गये। 18 होलीको मगलानेके वाद जव एक पहर रात वीती तो गागा साहनीके पान आया। 19 क्यो, मना क्यो कर रहे हो ? Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात [ ८५ सातै कोसै बैठो छ, अर थे घरे जावो ?'1 ताहरां गागो वोलियो'साहणीजी ! वांणियो गेहर रमै छै, | कठा यावै ?' ताहरां साहणी कह्यो-'च्यार ४ हजार प्रादमियांन थे सवारै प्राविनै दाग देस्यो । ताहरां गांगो हँसनै चढियो, घरे गयो। ताहरां हेरा दोडिया, रायमलनू जाय कह्यो-'गांगो घरे गयो।' ताहरा रायमल चढियो । प्रायन चार ४ हजार माणस तरवार माहै काढिया । घोडा ले गयो। जायनै वीरमदेजीनें कह्यो-' आपरै वाप-दादैरा घोडा लायो छू । वाणिय इसौ ज्यांन कियो, सो वरस दो २ ताई तो राव गांगोजी सभ ही नही सकियो। ____ एथ हरदास ऊहड़ राव गागैजीरै सौ छाडि नै आयो।' ताहरां हरदास कहै-'राव गांगाजीसू लडाई करो तो हूं थांहरै वास रहू ।' ताहरा इया कह्यो-'लड़ाई करस्यां ।' ताहरां हरदास रह्यो। ताहरां लड़ाई मांडी। ताहरां वीरमदेरी असवारीरो घोड़ो हरदासन दियो। ताहरां लडाई हुई। हरदास घावै पड़ियो । घोड़ेरै पण घाव लागा। ताहरां हरदासनू डोहळी घाति सोझत ले आया। घाव वंधाया।11 ___ताहरा वीरमदे बोलियो-'जाहरे, हरदास ! ते म्हारो घोड़ो गमायो ।' ताहरां कह्यो-'जी, हरदास ऊभा घोड़ो गयो हुवै तो ओळभो द्यो ।12 ताहरां हरदास उण वगत ३ वीरमदेजीरो वास छाडियो ।14 नागोरनू हालियो, सरखेलखां वास रहणनू ।। I रायमल सात कोस पर बैठा हुआ है और तुम घरको जा रहे हो? 2 वनिया गेहर रम रहा है, ये कहाँ पाने के ? 3 चार हजार आदमियोका कल प्राकरके दाहसस्कार करोगे। 4 आकरके चार हजार आदमियोको सलवारके घाट उतार दिया। 5 ये आपके वाप-दादेके घोडे ले आया हूँ। 6 बनियेने इतनी जबरदस्त बरवादीकी कि फिर दो वर्ष तक राव गागोजी सम्हल नही सका। 7 इधर हरदास ऊहड राव गागाजीके यहांसे छोड कर इनके पास आ गया। 8 लड़ाई शुरू की। 9 हरदास घायल हुआ। 10 तव हरदासको डोहलीमे डाल कर सोजत ले आये। (डोहळी, डोळी घायलोको उठा कर ले जानेकी एक टिकची।) II घावो पर पट्टे बंधवाये। 12 हरदासके आहत हुए विना घोडा गया हो तो मुझे उपालभ दो। 13 उस समय। 14 छोड दिया । 15 नागौरमे सरखेलखाके पास रहनेको चल दिया। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___८६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात ताहरा सेखो सूजावत वीरमदेजीरे जो गोत-भाई हुतो, सु प्रायो' आयनै सीसोदणीसू मिळियो । कह्यो-'मोनू थे सांमल ल्यो, ज्यु थांहरो चेळो भारी हुवै। राव गागो न पहुचे । ताहरा सीसोदणी रायमलनू पूछियो । ताहरा रायमल कह्यो-'मता लेवो । ताहरा सीसोदणी रायमलरो कह्यो न कियो । सेखा सूजावतनू सांमल कियो। ताहरा रायमल जाणियो-'म्हारो धर्म नहीं हमै । ताहरां राव गागैजीन रायमल कहायो'-'अब थे प्रावो, ह लडीस ।' वाघेरै घरै तो धरती रहै, सूजारै धरती न जावै । हू काम आईस, धरती थानू देईस । ताहरां राव गांगो, मालदे बेहु कटक कर पाया । ताहरां रायमल जाय वीरमदेरै ढोलियै प्रदक्षिणा दे, पगे । लाग बाहिर आयो ।1 आपरो साथ एकठो कर सांम्हां जाय लडियो ।रायमल काम आयो। सोझत राव गागै लई।13 वीरमदेनू काढियो । इति राव गांग वीरमदेरी वात सपूर्ण 1 तव सेखा सूजावत जो वीरमदे का गोत्र-भाई (द्विमात-भाई) था सो आया । 2. मुझको तुम गामिल ले लो जिससे तुम्हारा पलडा भारी हो जाये। 3 फिर राव गागा तुम्हें नहीं पहुच सकेगा। 4 मत लेप्रो। 5 तव रायमलने देखा कि अव उसका यहा रहना धर्म नही। 6 कहलवाया। 7 अव तुम आ जाओ, मैं लड़ गा। 8 मैं चाहता है कि घरती वाघाके घरमे रहे, सूजाके घरमे न जाने पाये। 9 में काम पा जाऊगा और धरती तुमको दे दूगा। 10 तव राव गागा और मालदे दोनो कटक लेकर पाये । 11 तव रायमलने जाकर वीरमदेके पलगकी प्रदक्षिणा दी और चरण स्पर्श कर वाहर प्राया। 12 अपना साथ इकट्ठा करके सामने गया और लडा। 13 राव गागाने सोजत पर अविकार कर लिया। 14 वीरमदेको निकाल दिया। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात हरदास ऊहड़री लिख्यते हरदास मोकळोतनू कोढणों सात-वीस गावांसू । तिको हरदास लाकड़ चाकरी न करै, दसराहै पाइनै सलाम करै ।' सु मालदेव कुंवर खोट सांसह नही, ताहरां भांणनू कोढणो दियो । ताहरां हरदास इसडी बलाय नही जो कोई इयन कहै । ताहरा चाकरी भाण करै, कोढणां हरदास भोगवै। यु करतां तीन वरस हुआ । ताहरां हुजदार लडिया, भाणरा नै हरदासरा। भांणरा हुजदारां कह्यो-'जी, थे ठकुराई करो। पण म्हानू कहो नांही। साबास, जु उतरियै पटै थानै गांम माहै रैहण देवां छां।" ताहरा हरदास सुणियो। कह्यो-'रे, कासू छै?" ताहरां कह्यो-'पटो थासू उतरियो।" ताहरां या वात सुणनै हरदास कह्यो-'रे, म्है बुरी वसत खाधी, उतरिय पटै हूं गाम माहै रहू ?1° ताहरां हरदास छाडियो । ताहरां जायनै सोझत रायमल मुह तैसूं मिळियो। हरदास वीरमदेरै वास वसियो। ताहरां हरदास रायमलनू कहै-'जे थे राव गांगैसू वेढ करो तो हू थांर रहीस, नहीं तो नही रहू ।12 ताहरां रायमल कह्यो-'जी, म्हारै तो पाठ पोहर लड़ाईज छै ।13। I हरदास मोकलोतको सात-बीस गावोके साथ कोढणा पट्टे मे दिया हुआ था। 2 हरदास इतना अक्खड कि चाकरीका काम नहीं करता, केवल दशहरेके दिन मुजरा करनेको ही पाता है। 3 सो कुवर मालदेव ऐसी भूलको सहन नहीं करता, उसने कोढरणो गावका पट्टा भाणको कर दिया। 4 परतु हरदास ऐसी बलाय कि यह बात उससे कहनेकी किसीकी हिम्मत नहीं होती। 5 तब भाण और हरदासके हुजदार परस्पर एक दिन लड पडे । 6 परतु हमको बात भी नही करो। 7 सावाश हमको है, जो पट्टा उतरने पर भी हम तुमको गावमे रहने देते है। 8 अरे | क्या बात है ? 9 कोढणाका पट्टा तुमारेसे उतर गया है। 10 यह बात सुन करके हरदासने कहा कि यह तो मैंने अखज खाया, जो पट्टा उतरने पर भी गाव मे रह रहा हूँ। II तव हरदास जाकर वीरमदेके यहा रहा। 12 यदि तुम राव गांगासे लडाई करो तो मैं तुमारे यहा रहू, नही तो नही रहूगा। 13 हमारे तो पाठो पहर उनसे लडाई चल ही रही है । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरा एक दिन लडाई हुई, सो वीरमजोरै असवारीरो घोडो हरदासन चढणन दियो हुतो, सु अठै हरदास नै घोड़ो बेऊ घावै पूर हुवा । ताहरां हरदासनू भाण उपाडियो, सोझत पहुचतो कियो।' हरदास सोझत पायो। घाव बधाया। ताहरां वीरमदे कह्यो-'जाह रे हरदास ! तं म्हारो पांच हजाररो घोडो वढायो । ताहरा हरदास कह्यो-'कुरजपूत ! म्है म्हारी पिंड ही वढायो ।' ताहरां हरदास विना घाव सारा हुवा रुसायनै हालियो।' वास छाडियो।' सरखेलखां दिसा हालियो । ताहरां सेखो सूजावत पीपाड रहै ।' ताहरा सेखो हरदासरै प्राडो फिरियो, कहियो-'कहसी, मारवाड माहै कोई रजपूत छै ही नही, जु हरदासरा घाव बधाया नही ?'10 ताहरां हरदास कहै'सेखा ! समझि पर मोनू राखै ?11 जो राव गागैसूं लडै तो मोनू राखै, नही तो मोनू मता राखै ।12 ताहरां सेखै कह्यो-'परमेश्वर भलां करसी, थे रहो। ताहरां हरदास पीपाड़ सेखैरै वास रह्यो। हिवे हरदासन सेखो च्यार पोहर मैहला माहै आलोच करै । 4 सु सेझरी वहुवां च्यार पोहर साड़ी ओढियां बैठी रहै । आछे कपड़े. सं सीयां मरै ।16 ताहरां एक दिन सेखैरी वहुवां कह्यो-'सासूजी ! म्हे तो सीयां मर गई।' ताहरां कह्यो-'बहू ! क्यु ?' कह्योसासूजी ! थाहरो” वेटो हरदासजीसू आलोच करै । म्हे चार पोहर I नो यहां हरदास और घोडा दोनो घायल हुए। 2 तव हरदासको भागने उठाया और सोजत पहुचा दिया। 3 घावोकी मरहम-पट्टी हुई। 4 जारे हरदास | तूने मेरे पांच हजारका घोड़ा कटवा दिया। 5 अरे कुक्षत्री । मैंने भी तो अपना शरीर कटवा दिवा है? 6 तब हरदाम घाव ठीक नहीं होने पर भी रिमा करके चल दिया। 7 वहा रहना छोड दिया। 8 सरखेलखांकी भोर चला। 9 सेखा सूजावत पीपाडमे - रहता है। 10 मेवा हरदामके ग्राडा फिरा और कहा कि 'लोग कहेंगे कि मारवाड़मे पोर्ड गणपून ही नही, जो हरदासके घाव नहीं बधाये गये। II सेखा | समझ करके मुझको रखना। 12 नहीं तो मुझे मत रखना। 13 परमेश्वर ठीक करेंगे, तुम रह जायो। 14 तव हरदास और मेखा रातको चारो ही पहर महलमे परामर्ग करते है। 15 सेते पी पलियां चारो पहर नाडिया पहनी हुई बैठी रहें। 16 महीन कपडे पहिने रहनेसे उदमें मग्नी हैं। 17 तुमारा । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ह सोयां मरती बैठी रहां ।' ताहरां कह्यो - ' वहू आज हरदास बाहुड़े ताहरां मोनूं खबर दिया । " 2 4 5 ताहरां जियै वहूरो वारो हुतो, सु मारग रोकि ऊभी । ' ज्यू हरदास पाछली रातरो वाहुडियो, ताहरां कह्यो - 'सासूजी ! हरदास बाहुडै छै ।" सासू पण ऊभी हती । सु ऊपरासू हरदास उतरियो । सु राय प्रांगण मांहै मारग । ताहरा राय- श्रागणमे हरदास प्रायो, ताहरा सेखैरी मा भीतर तेड़ायो ।' ताहरां जायने सलाम कीवी । ताहरां कहियो - ' बेटा हरदास ! देख, सेखरी मारो टापरो उपाडतो हवै नी ? " ताहरां कहियो- 'माजी ! पेहली हरदासरी मारो टापरो उपड़सी, ता पर्छ सेखरी मारो टापरो उपडसी । टापरो उपडियां विना, माजी ! जोधपुर श्रावै नही । काय टापरो उपड़सी, काय जोधपुर वसी 18 ताहरां राव गांगैरा परधांन सेखै कनै आया ने सेखैनू कह्यो'सेखा ! जितरी धरती मांहै करड़, इतरी धरती थांरी नै जितरी धरती माहे भुरट, उतरी म्हांरी ।" ताहरा से कह्यो - 'भला ।' ताहरां हरदास प्रायो । सेख को - ' हरदास ! धरती वाट भलो कहै छै ।" ताहरा हरदास वात माने नही । 110 ताहरां झूटो प्रासियो दूहो कहै " ऊहड मन प्राण नही, हेक वचन हरदास । सेख सिगळो सामठो, (का) गार्गं सिगळो ग्रास ॥ I आज हरदास जब वे मुझे । खवर देना । 2 तव जिस पत्नीकी उस दिन बारी थी वह मार्ग रोक कर खडी रही 3 जैसे ही हरदास पिछली रातको लौटा, तब उसने कहा, 'सासूजी । हरदास लौट रहा है।' 4 सासू भी वही खडी थी । प्रागनमे होकर मार्ग जाता है । 6 तव सेखेकी माने अदर बुलवाया । 8 या तो टापरे हरदास | देखना, कही सेखेकी माका टापरा उजाड नही हो जाय ? उजड़ेंगे या जोधपुर श्रायेगा । 9 सेखा | जितनी धरतीमे करडी उगी हुई है उतनी धरती तुम्हारी और जितनी धरती मे भुरट उगी हुई है उतनी धरती हमारी ( इस प्रकार धरतीका वट करलें ।) 10 हरदास 1 धरती वाट लेनेकी बात ठीक कर रहे है । इस पर श्रासिया चारण झूटेने एक दोहा कहा है, इसका भावार्थ इस प्रकार है II 'हरदास ऊहड एक भी बात नही मानता । वह कहता है कि या तो समस्त धरती सेखा ही लेगा या फिर गांगा ही लेगा ।' The 1 5 राय 7 बेटा | Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] मुहता नेणसोरी ख्यात ताहरां हरदास कहै-'एकै जोधपुररा कासू दो वांट करा ? एक डूगरी छै जोधपुर प्रोय बरछीमें नै थारै पूठे आणीस ?'' ताहरां परधान अपूठो गयो।' कह्यो-'जी ! वात मांनै नही, लडाई करसी।' ___ताहरा राव गांगजी साथ भेळो कियो। वीकानेरसू राव जैतसीहजीनू बोलाया । बीजो ही साथ घणी एकठो कियो। सेखो नै हरदास नागोर सरखेलखा कन्हैं आया। सरखेलखानू कह्यो-'तोनू ने दोलतखाननै परणावस्यां । म्हारी थे मदत आवौ ।' ताहरां सेखो . वोलियो-'रे हरदास | बेटिया किणरी देईस ? " म्हारै बेटी नही, थारै वेटी नही।" ताहरा हरदास बोलियो-'केरी बेटियां ? 8 तरवारारा माथै भोठ पडसी ।' जे जीपस्या तो घणाही रिणमल छै', तियारी दोय डावडिया परणावस्या पर जो काम आया तो कुण परणीजसी ? कैरी वात 11 यु करनै वैराईरा द्रह तठे आय सेखो दोलतखांन उतरिया। जाणाऊ आयो । ताहरा रोव गांगै पूछियो-'दोलतियो कठै आयो ?13 कह्यो-'राज बैराई आय पडियो ।14 राजरी जैतहथ ।33 राव गागोजी घाघाणी पाय उतरिया । कोस दोयरो बीच छ ।' तठा उपरंत राव गागजी कहाडियो-'राज ! आप प्राय उतरिया, पाहीज आपां सीम । राज| इतरी राजरी। राज वडा छो, काका छो।18 इसौ परधानगो कियो ।' परधान फिरिया पण ___I एक जोधपुरके क्या दो भाग करे ? एक पहाडी है सो जोधपुरके पीछे वरछीमे पिरोकर तेरे पीछे लाऊगा क्या? 2 वापिस लौट गया। 3 दूसरा भी बहुत साथ सट्ठा किया। 4 पास। 5 तुझे और दौलतखानको व्याह देंगे। 6 अरे हरदास । क्सिको लदपिये व्याहोगे? 7 मेरे कोई लडकी नही और तेरे भी कोई नही। 8 किमकी वैटिये देना है? 9 तलवारोमे मिर उड़ेगे। 10 यदि जीत गये तो रणमलोत बहुत है। 1 उनमसे किसीकी दो लडकियें व्याह देंगे और जो काम आ गये तो कौन ध्याह करेगा, किनकी वात ? 12 गुप्तचर प्राया। 13 दौलतखा कहा तक आ गया ? 14 बंग: गांवमे पाकर पड़े हैं। 15 आपकी विजय है। 16 राव गागाजी घाघारपी मागर ठहरे। 17 दो कोसका अतर है। 18 पाप जहां आकरके ठहरे है, यही अपनी द, यहाँ तक घरती प्रापकी, आप बड़े है और काका है। 19 प्रधान द्वारा इस प्रकार रहारवाया। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६१ - मुंहता नैणसीरी ख्यात __ अ तो न मान ।' कह्यो-'जी, भात्रीजो भुय भोगवै काकै बैठे ? यो तो मोनूं नीद नही आवै ।' राव गांगैजोनू कहाडियो-'सेवकीरो खेत्र म्हे बुहारियो छ । प्रांपै वेढ करस्यां । राव गांगै कह्यो-'ठीक छ । _हू छू जिसो हाजर छू।" राजि कह्यो-'सवारै लड़ाई छ । ताहरां गागनू जोसिये कह्यो-'राज सवारै तो जोगणी आपांनं - सांम्ही छै, उवानू पूठ छै।" ताहरां राव गागैजी राव जैतसीहजीनू पूछियो-'रावजो ! सवारै तो जोगणी आपार्ने साम्हा छै। उवांनू पूठी छ ।' ताहरां राव जैतसोजी कह्यो-'राज ! लड़ाई तो आपां सारै नही छ, उवा सारै छै । वे सवार हीज लडे छै ।' ताहरां चारण खेमो किनियो बोलियो-'राज ! जोगणी छ, पण योगणी असवार कांई छ ? ताहरां कह्यो-'जी, जोगणी सीह असवार छ।' कह्यो-'जी, बांभण बोलावो, पूछो, योगणी बीजैही वाहण' असवारी करै छ ?' ताहरा कह्यो बाभण-'योगणी सवारै काग13 असवार छै । ताहरां कह्यो-'काग सरांसू भाजि जाय ।14 लड़ाई माहै सर छै सु सेव गांगरे बिहु सरे भाजसी ।'15 यु करतां दिन ऊगो।" सरखेलखानरै एक हाथी छ, तिकणरो? दरियाजोईस नाम छै । तियैरै चाळीस हाथी एकै बगल18 चाळीस हाथो बीजो19 बगल । सु हाथी पाखरिया कर, लोह बांध, गरक किया छै । सु हाथी फोजरै मुहडै छै ।21 ___ अठासू राव गागौ अावै छै । राव गागौजी फोज वणाय सांम्हा आया। 1 प्रधान प्राये-गये, परतु ये नही मानते । 2 काकाके बैठे भतीजा धरती भोगता है, इस प्रकार तो मुझे नीद नही आती। 3 सेवकीमे रणक्षेत्र तैयार करा दिया है, अपन लडाई करेंगे। 4 मैं जैसा हू वैसा हाजर हू। 5 कल लडाई निश्चित है। 6 ज्योतिषियोने। 7 योगिनी अपने सामने है और उनको पीठकी ओर है। 8 लडाई तो अपने हाथमे नही है, उनके हाथमे है। 9 ब्राह्मण। 10 दूसरे भी। II वाहन । 12 कल (आने वाला) 13 कौमा। 14 कौआ वाणोसे भग जाता है। IS लडाई मे शर है सो सेखा और गागा दोनोके शरोसे भाग जायेंगे। 16 उदय हुआ। 17 जिसका। 18 वाजू। 19 दूसरी। 20 सो हाथियोके पाखर डाल कर लोहेसे गर्क कर दिये है। 21 वे हाथी फौजके आगे है। 22 यहाँसे, इधरसे । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] मुंहता नैणसीरो ख्यात सेखै दोलतखांनन कहो हुतो-'दीवांण भाज जास्यै ।' सवारै लोह वजाय सारै साथ हाथ दिखाया , त्यो दोलतखान कह्यो-'सेखाजी ! तुम कहते थे, वे भाजि जांहिगे। ताहरां सेखोजी बोलिया-'तो खांन साहिव । जोधपुर छै, यु क्युकर भाजै ?" ताहरां जाणियो-'चूक न छै ?'' मन माहे चमकियो दौलतखान । तितरै राव बोलियो-'कहो तो हाथीर सररी, कहो तो महावतेरै धु' सररी ?' हाथी आवै छै । महावत पुकारै छै । ताहरां दै महावतरै सररी, महावत पड़ियो। अर दूसरी दै हाथीरै कूभाथळ' मे सररी, अर हाथी भागो, अर दौलतखान ही भागो। अर सेखो मडियो। सेखो भाज न जाण ।' सात सै आदमियांसू सेखै पागडा छाडिया, अर वेढ हुई 110 सेखो बेटे सहित काम प्रायो। हरदास वेटै सूधो काम आयो । तुरक भागा । घणा मरिया । घणा पाछा वळिया ।12 सेखोजी खेतमे ससक छै ।13 ताहरां राव गागै पूछियो'सेखाजी ! धरती कैरी ?'14 ताहरा राव जैतसीहजी सेखैजी ऊपर छाह कराई 115 अमल करायो। पाणी पायो। ताहरा सेखंजी पूछियो-'तू कुण छ ?'17 ताहरा कह्यो-हू राव जैतसोह छू 118 ताहरा सेखै कह्यो-'रावजी । म्है थाहरौ कासू उजाडियो हुतौ ?19 म्हे तो काको भतीजो धरतीरे पगा विढता हुता।20 ताहरां सेखै कह्यो'जैतसीहजी | मो गत हुई छै, सो तो गत हसी ।21 यु करतां सेखैरो जीव नीसर गयो। 22 8 दीवान (राव) भाग जायगा। 2 दूसरे दिन तलवारें चला कर सभी साथने अच्छे हाथ दिखाये। 3 तुम कहते थे कि वे भाग जायेंगे। 4 खान साहिब । आगे जोधपुर है, यो कैसे भाग जायेंगे ? 5 तव ख्याल किया-कही घोखा न हो ? 6 दू । 7 कुभन्थन। 8 और तव मेतेने पाँव रोपे। 9 सेखा भागना नही जानता। 30 मान सो आदमियों के माथ मेखा घोडोंमे उतरा और लडाई की। 11 सहित। 12 बहुतसे मार दिये और बहुतने पीठ दिखा कर पीछे लौटे। 13 मेखोजी रणखेतमे सिसक रहे है। 1 घन्ती किनी ? 15 राव जैवसिंहजीने मेखोजीके ऊपर छाया करवाई। 16 अफीम दिया। 17 तू कौन है ? 18 मैं नव जतसिंह है। 19 मैंने तुम्हारा क्या विगाड किया गा। 20 हम तो काया भनीज अपनी जमीनके लिए लड रहे थे। 21 जैतनिहजी | मेरी जो गति हुई है यही गति प्रापनी होगी। 22 ऐमा कहते ही सेखाका जी निकल गया । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ६३ हाथो हुता सु सखरा-सखरा तो कुवर मालदे लिया । अर वडो हाथी खांनरी असवारीरो नाठो सो मेड़तै गयो।' ताहरां मेड़तियां लियो । तियै हाथी वेई मेड़तियांसू राव मालदे विरुद्ध हुवो। अथ घूमर बीबी पूछ रे दोलतिया !, तें हाथी केथा किया। रूड़ा रूड़ा रावै लिया, पाडा पाछा दिया ।। १ बीबी पूछ रै दोलतिया !, ते मीया केथा किया । ऊचै मगरै घोर खणाई, बाथै बाथै दिया ॥*२ हिवै हाथी मेडतियारै गयो। ताहरा मेड़तियां हाथीरा घाव बाधा।' हाथीन माहै आंणे सु प्रोळमें हाथो मावै नही ।' ताहरां प्रोळ खणायने हाथी मांहै लियो। ताहरां सवणियां' कह्यो-'जु, थां आ बुरी कीधी', प्रोळ खणी।11 कहियो-'सु तो हुई । हमै कासू ?'12 करतां राव गांगोजी नै मालदे सुणियो-'जु हाथी मेड़ते वीरमदेरै गयो।' ताहरां हाथी मालदेजी मगायो । कह्यो-'जी, हाथी मांहरो छै3, म्हां लड़नै लियो छै ।14 ताहरां मेडतिया हाथी न दै । ताहरां वीरमदेजी कह्यो-'राव गांगनू हाथी परहो द्यौ। ताहरां मेडतिया कह्यो-'म्हे तो हाथी न देवां ।16 जे म्हारै प्राहुणौ हुवै तो जीमायनै हाथी देवां।" ताहरां मालदे चढिनै आयो । ईयार भगत हुई मालदे । I अच्छे-अच्छे हाथी जो लडाईमे हाथ पाए थे सो उन्हे कुवर मालदेवने ले लिये। 2 और जो खानकी सवारीका बडा हाथी था जो भाग कर मेडते चला गया। 3 उस। 4 के लिये। 5 अव। 6 तव मेडतियोने हाथीकी मरहम पट्टी की। 7 हाथीको अदर ले जाना परतु पौलिमे हाथी समाता नही। 8 तव पौलिको तुडवा कर हाथीको अदर लिया। 9 शकुनियोने। 10 तुमने यह बुरा काम किया। II पौलिको तुडवा दी। 12 जो होनी थी सो तो हो गई, अब क्या हो? 13 हाथी हमारा है। 14 हमने लड़ करके लिया है। 15 राव गागाको हाथी दे दो। 16 हम तो हाथी नही दें। 17 जो हमारे यहाँ महमान हो जाये तो उन्हे भोजन करवा कर हाथी दें। *घूमर का भावार्थ- 'दोलतखान जब भाग कर घर गया तो उसकी बीवी पूछती है कि अरे दौलतिया ! तूने लड़ाईमे कितने हाथियोको जीत कर इकट्ठा किया है ? तो उत्तर देता है कि अच्छे-अच्छे हाथियोको तो रावने ले लिया है और पाडेके समान वापिस किए है। फिर बीबी दौलतियासे पूछती है कि तूने कितने मुसलमान वनाये है ? तो कहता है कि जो मेरे साथ थे उन्हें वाथें भर-भर कर रावको लडाईमें भेंट कर पाया हू और उनके लिये ऊचे मगरे पर कबरें खुदवा दी हैं। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] मुंहतो नैणमीरी ख्यात सारू ।' ताहरां हाथी रेया हुतो। ताहरा भगत तयार हुई। ताहरा कह्यो-'कुवरजी | थे पधारो, भगत आरोगो। तितरै हाथी रेयां छै सु हमार आवै छै । ताहरां कह्यो-'जी, हाथी पैहला लेने पछै भगत आरोगस्यां । ताहरा रायसल दूदावत बोलियो-'जी, इसडा डावडा अडीला म्हारै ई छ, म्है हाथी नी द्यां ।' थे पधारो।" ___ताहरां कुवर रीसायनै कहियो-'जु हाथी तो न द्यो छो, पण म्हारो नाम मालदे छै । मेड़तेरी ठोड़ मूळा वुहाऊं तो मालदे।" पछै मालदेजी पाछा जोधपुर आया। ताहरा राव गांगजी कहाडियो वीरमदेजीनू-'जु थे प्रो कासू कियो ?10 जितरै हू जीवू तितरै तो थे म्हारै परमेश्वर छौ,' पण हु पुहतो न | ताहरां मालदे थांसू भूडो छ, थानू दुख देसी । ओ हाथी इयरै सिर देवो ।18 ताहरा वीरमदेजी कहायो-'भला, जो थारै दाय आई तो हाथी परहो मेल देस्यां ।14 ताहरां घोड़ा राव गांगैजो सारू15, हाथी मालदेजी सारू मेल दिया । ताहरां हाथी पीपाड़ आयो, ताहरा घाव फाटिनै हाथो मुवो।" ताहरां आदमिया घोड़ा ले जाय निजर किया । अर कह्यो-'जी हाथी तो पीपाड़ माहै आवतो मुवो ।' ताहरा राव गांगैजो कह्यी-'हाथी म्हारी धरती माहै प्राय मुवो, सो म्हारै आयो । ___ ताहरा कुवर मालदे बोलियो-'जी, हाथी थांहरै आयो, पण म्हारै हाथी न पायो । जाहरां हाथी ले सकीस ताहरां लेईस ।'21 तठा पछै वरस १ हीज राव गांगोजी जीवियो। ___ I मालदेवके लिये इन्होने भोजनकी तैयारी की। 2 हाथी रीया गावमे था। 3 कुवरजी ! पधारिये, भोजन अरोगिये। 4 इतनेमे हाथी रीयासे अभी पा जाता है। 5 हाथी पहले लेकर फिर भोजन करेंगे। 6 ऐसे अडियल कुवर हमारे भी है, हम हाथी नही देते। 7 श्राप जाये। 8 हाथी नही दे रहे हो, परतु मेरा नाम मालदेव है। 9 मेहतेकी जगह मूले वुवाऊ तो मैं मालदेव। 10 तुमने यह क्या किया? II जब तक मैं जिन्दा हू तब तक तो श्राप मेरे लिये परमेश्वरके समान है। 12 तुमको तकलीफ देगा। 13 यह हाथी इसके सिर दे दो। 14 अच्छा, यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो हाथी भेज देगे। 15 के लिए। 16 भेज दिये। 17 तव घावोंके फट जानेसे हाथी मर गया। 18 मेरी। 19 हमारे पा गया। 20 तुम्हारे । 21 जब भी हाथी ले सकूगा तव ही ले लगा। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ६५ जाहरां राव गांगोजी देवलोक हुवा, ताहरा मालदेजी टोकै बैठा । हमै मालदेजी वीरमदेनूं लागो सु इसो लागो सु इयांनू सास न खावण दै । कहै-'मेड़तो छाडो, अर अजमेर जाय वसौ।' ताहरां वीरमदेजी मेड़तो छोडियो । अजमेर माहै परमार रहता, तिकांनू मार अजमेर वीरमदेजी लियो। ताहरां सहिसो नासनै मालदे कनै आयो । मालदे पाचां गांवांसू रेयां दीवी। ___ जाहरां रायसल आनासागर ऊपर गोठ कीवी, ताहरा साथ सगळो ही बोलायो । ताहरां खीमै मुहतैनू कह्यो- 'जावा छा गोठ जीमण ।' थे रावनूं वीटळी मतां चढण देज्यो । जाहरा वीटळी चढसी ताहरां रेयांरी डूगरी देखसी, ताहरां सहसो चीता आवसी ।' ताहरा कहसी-'सहसैनू मारियां विगर पाणी नही पोऊ।' मुहतैनू कहिन रायसल गोठ जीमण गयो। अर (राव) खीमै मुहतैनू कहियो-'प्रांपां वीटळी जाविनै मिठाई मंगाविस्या । वार १--२ मुंहत खीमै वरजिया, पण रहै नही ।' पछै वीटळी जाय चढिया । चढिनै मारवाड साम्हा जोयो । जोयनै कह्यो-'या रेयांरी भाखरी नही हुवै ? 11 कहियो-'पा भाखरी तो नैड़ी। इयै सहसैनूं न मारू तो म्हारो बाप छै ।13 पछै साथै रायसल ही आयो । परधांने तो घणो ही कहियो । अर राव मालदेवजी हुतो नागोर । ताहरा राव मालदेवजी कहै'वोरमदे म्हारी छाती माथै छै ।'15 ताहरा दस हजार घोड़ो रडोद थाणे हुतो', नै17 माहै जैतो, कूपो, अखैराज सोनगरो, वीदो भार । अब मालदेव वीरमदेके पीछे लगा सो ऐसा लगा कि इन्हें स्वास न लेने दे । 2 उनको। 3 भाग कर। 4 मालदेवने पाच गावोके साथ रीयाका पट्टा कर दिया। 5 गोठ जीमनेको जा रहे हैं। 6 पहाडी । 7 याद आ जायेगा। 8 और रावने खीमे मुहतेको कहा कि अपन भी वीटली गढ पर जाकरके मिठाई मगायेंगे। ('वीटली' अजमेरके तारागढका नाम है ।) 9 मुहते खीमे एक दो वार मना किया, परन्तु उसका कहना माना नहीं। 10 गढ पर चढ़ करके मारवाड़की ओर देखा। II यह रीयाकी पहाडी तो नही हो? 12 यह पहाड़ी तो नजदीक है। 13 इस सहसेको न मारू तो यह मेरा वाप है। 14 था। 15 वीरमदेमेरी छाती पर पड़ा है। 16 उस समय रडोदके थानेमे मालदेवके पास दस हजार घोडो का समूह था। 17 और । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात मलोत } ठाकुर। अ आइनै रेयां उतरिया ।' यांनू हुकम हुतो जु'अजमेरसू वीरमदेनू परहो काढो । तिको रातिरो खड़ियो वीरमदे रेयां प्रायो। अर प्रागै अणजांणियो साथ तयार हुतो हीज । पछै लड़ाई हुई । वीरमदेन अळवी पडी। वीरमदेरो साथ घणो काम आयो । तीन घोड़ा वीरमदे हेठे कटिया ।' छुरी कार घोड़े चढियो छै । दस वरछी आगलांरी खोस वाग भेळी झाली छै। माथै माहै घावांरी चौकड़ी पडी छ ।' लोहीरा प्रवाह डाढी माहै उतरिया छै ।10 वेज फोजां जुद्धसौ धापिनै उवै उवे कांनी ऊभी छै ।11 वीरमदे घायल आपरा सभाळे छै ।12 पर्छ पचायण आयो। आयनै कहियो-'इसड़ौ वीरमदे कठै लहस्यो; ' - ज आज थे नही मारो छो ?'13 ताहरां सिरदारां कहियो-'भाई । म्हे तो एकरसौ छाती ऊपरासौ गिजा नीठ परही कीवी छ । भाई ! म्हारै किये तो वोरमदे मरै नही । अर16 जो तू मारै तो यो वीरमदे छ ।' ताहरां पचाइण तीसा असवारासू वीरमदेजोरै ऊपर आयो । ने वीरमदेजीनू वतळायो।" ताहरां वीरमदेजी कहियो-'रे पंचायण ! त छ ? भला, पाव । पचायण ! तो सरीखा छोकरा मारवाड़ माहै घणा छ, जो वीरैरी पूठ केहीसौ चापी जाय तो ?18 ताहरां पंचायण I ये। 2 इन्होने आकर रीयामे मुकाम किया। 3 इनको हुकम हुआ था कि वीरमदेको अजमेरसे निकाल दो। 4 इधर वीरमदे भी रातको चल कर रीया पाया। 5 और आगे अज्ञान सेना तैयार ही थी। 6 वीरमदेको यह लडाई दुसह हुई। 7 वीरमदेके नीचे (मवारीके) तीन घोडे कट गये। 8 शत्रुयोकी दस वछिया खोस कर वागके माथ हाथमे पकह रखी हैं। 9 गिरमे घावोकी चौकडी पड गई है। 10 दाढीमे रक्त के प्रवाह वह कर उतर रहे हैं। II दोनो सेनाएँ युद्धसे तृप्त होकर अलग अलग खड़ी है। 12 वीरमदे अपने घायलोको संभाल रहा है। 13 वीरमदेको ऐसी दशामे फिर कब पानोगे, जो अाज तुन उसे नहीं मार रहे हो ? 14 हमने तो एक वार वडी कठिनतामे छाती ऊपर आई ग्राफतको दूर किया है। 15 हमारेसे तो। 16 और। 17 ललकात। 18 पत्रायण । तेरे समान मारवाड़मे वहुत छोकरे हैं, परतु वीरमकी पीठ चापने वाला भी तो कोई हो? (लकिन मुझे कोई दिखाई नहीं देता।) Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नेणसीरी ख्यात [ ६७ उठै हीज वाग खांच ऊभी रह्यो । ताहरां वीरमदेजी कह्यो - 'इसडो छै सु उठे ऊभैतू हीज मारूं, पण परहो जा।" ताहरां पंचायण पाछी हीज वाग फेरी । 3 4 ताहरां कूपजी कह्यो - 'राज ! वीरमदे यु सहज सौं नही मरे । पछै वीरमदे आपरा' घायल उपाड़ने' अजमेर आयो । आा' फोज पण नागोर आई । वीरमदेनू घणी अळही पडी । साथ सोह' कांम आयो । 8 1 2 13 15 16 ताहरां रायसलरो रावनू घणो अत भौ, सदा धमक राखै " 1 को'' कहै रायसल कांम आयो, को कहै काम नही आयो । ताहरां मूळ प्रोहितनू मेलियो । आयो, वीरमदेनू मिळियो | कहण लागो - 'बळो, आ धरती ज, थांहीनू ज्यांन आयो । 14 रायसल मराडियो । ताहरां कह्यो - 'ऊभा रहिज्यो । 26 जु, रायसल रे तो आछा सा लोह छै, इसड़ो तो लोह को न छै भारी । 17 अर रायसलनू कहाड़ियो - "थे तकियो देनै बैसज्यो ।" मूळो थां कनै मूकां छा । 20 ताहरां प्रोहित मूळानू कह्यो - 'रायसल कनै थेई पधारो ।" ताहरां रायसल कछो पलाण मडायने, आप हथियार बाधनं असवार हुय घोडो नखाड़तो-नखाड़तो ईयां कनै आयो । " ताहरा मै चढने राव मालदे कनै आया | आयनै कह्यो - 'जी, रायसल तो घोडो नखाडतो फिरै छै ।' 18 19 22 3 तव I - तब पचायरण वही अपने घोडेकी बाग खीच कर खडा रहा । 2 लगता तो ऐसा है कि वहाँ खडेको ही खत्म कर दू, परन्तु आँखो के सामनेसे दूर चला जा | पचायणने बाग मोड दी । 4 वीरमदे इस प्रकार सहजमे मरने वाला नही है । S अपने । 6 उठा कर । 7 यह । 8 दुसह । 9 सब | 10 रायसलका रावको अत्यन्त भय । II सदा धाक जमाये रखता है । 12 कोई । 13 भेजा । 14 जलो, यह धरती ही तुम्हें वला वन करके श्राई है । IS रायसलको मरवाया । 16 ठहर जायो । 17 रायसलके साधारणसे घाव है, ऐसे घाव कोई बहुत भारी तो नही हैं । 18 कहलवाया । 19 बैठ जाना | 20 मूलाको तुम्हारे पास भेज रहे है । 21 रायसलके पाम तुम ही चले जाओ । 22 तव रायसल कच्छी घोडेके ऊपर जीन कसवा कर स्वयं हथियार वाध करके और घोडे पर सवार हो करके उसे कुदाना- कुदाता इनके पास जाया । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरां रायसल अपूठो आयो । ताहरां घाव फाटा ।' रायसल मुवो । जाहरा रायसल मुवैरी खबर गई, ताहरां फोजा वळे आई। आयनै वीरमदेजीनू परहा काढिया ।' ताहरा रायमल कछवाहो सेखावत, तिण ग्रागै गया। ताहरां रायमल इणारा घणा हीडा किया।' वरस १ ताई रायमल रै रह्या । घणी जाबता कीवी ।' जिण विधरा ईंयारा चाकर हुता, तिण तिण विधरा हीडा किया ।1 ताहरा वीरमदेजी कह्यो-'रायमलजी ! थे म्हारै वडा सगा, थां माहरा वडा हीडा किया ।11 पछै वीरमदेजी उठासू सीख कीवी । पछै वीरमदेजी बौळी लीवी, वणहटो लियो, वरवाड़ो लियो ।13 लेनै अठै बैठा रहा। ताहरा मालदेजीन खबर हुई। कह्यो-'वीरमदेजीरै अधिकी साहिबी हुई ।15 ताहरा वळे फोजां विदा कीवी वीरमदेजी ऊपर । ताहरा फोजा मौजाबाद आई । ताहरां वीरमदेजीनू खबर हुई, फोजां मोजाबाद आई। ताहरा वीरमदेजी कह्यो-'हमकै हू काम आइस । हमकै नीसरू नही, घणी ही वार नीसरियो ।” पण हमकै हू छाडै नहीं । घणी ही वार चांडू नही, हमकै काम आइस । ___ ताहरा मुहत खीमै कहियो-'खेतरी ठोड़ तो देखो । जेथ लडाई करस्यां सु ठोड तो देखो। ताहरां वीरमदेजी, मुहतो खीमो चढनै ठोड देखणनू आया । ताहरा खीमो मुहतो आघो ही हालियो । ___I तव रायसल वापिस लौटा। 2 तव घाव फट गये। 3 मर जाने की। 4 फिर। 5 आकरके वीरमदेजीको निकाल दिया। 6 उसके आगे गये। 7 तव रायमलने इनकी बहुत सेवा की। 8 तक। 9 बहुत यन्न किया। 10 जिस-जिस प्रकार (दर्जे)के इनके चाकर थे उनकी उस-उस प्रकारसे सेवा की। । तुम हमारे बडे सम्बन्धी हो, तुमने हमारी वडी सेवा की है। 12 फिर वीरमदेवजीने वहाँसे विदा ली। 13 पीछे वीरमदेजीने बौळी, वरणहटो और वरवाडो गावो पर अधिकार किया। 14 इनको अधिकारमे कर यहाँ ही बैठे रहे। 15 वीरमदेजीके राज्य-वैभव अधिक हो गया। 16 इस वार में काम पा जाऊगा। 17 इस बार निकलू (वचू) नही, बहुत वार वच गया। 18 इस वार मैं अपनेको छोड़ गा नही। 19 जहां लडाई करेंगे वह स्थान तो देखलें। 20 तव मुहता खीमा उन्हें दूर ले चला। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ ६६ ताहरां खीमै कह्यो-'मरणो हुतो तो मेडतैरी वेढ मरंत, पारकी धरती मांहै क्यु मरो ?'' ताहरां खांचनै आधो ले वहीर हुवो। ताहरा मलारणे थांणैदार हुतो कोई मुसलमान, तैसौ जाय मिळिया। ताहरा वे मुसलमान कह्यो-'हू थांनू रिणथंभोररै किलेदारसू मिळाइस । ऊ थांनूं पातसाहसू मिळासी । पछै रिणथभोररै किलेदारसू मिळिया। पछै वीरमदेजीनू अपातसाहरी हजूर ले गयो। पातसाहसू मिळायो। पछै वीरमदेजीसौ पातसाहजी महरबान हुवा । पछै वीरमदेजी मालदेजी ऊपर सूर पातसाहनू ले आया। पछै असी हजार घोड़ासू मालदे सांम्हां अजमेर आयो। ताहरां वीरमदेजी एक वुध उपाई।' वीस हजार रुपिया कूपैरै डेरै मेलिया । कह्यो-'म्हांन कावळा मेल देज्यो ।' अर वीस हजार रुपिया जैतैरै डेरै मेलिया । कह्यो-'म्हानू सीरोहीरी तरवारचा मूक देज्यो।" इसडा सा चिन्ह किया ।1 अर मालदेन कहाडियो-'जैतो कूपो पातसाहसू मिळिया छ । थांतू पकड़नै पातसाहनू देसी।1 तैरो द्रष्टात-'जे सवाया रुपिया यांरै डेरै देखो तो जांणज्यौ ।' ईयारै खरची घाली छै ।13 इतरैमे जलाल जळूको कहण लागो-पातसाह सलामत ! एक ऊवारी तरफरो तेड़ावो", पातसाहरी तरफसू हू हुईस'", अर उंवांरी" तरफरो सिपाही तेड़स्या, तै ऊपर हार-जीप थापो ।19 I मरना ही विचार लिया है तो मेडतेकी लडाईमे मर जाना था, दूसरोकी धरतीमे क्यो मरते हो ? 2 तव खीच करके दूर ले चला। 3 मलारण में कोई मुसलमान थानेदार था उससे जा मिले। 4 मैं तुमको रणथभोरके किलेदारसे मिलाऊगा। वह तुमको बादशाहसे मिलायेगा। 6 वह। 7 तब वीरमदेवजीने एक युक्ति विचारी। 8 हमको कवले भेज देना। 9 हमको सिरोहीकी तलवारें भेज देना। 10 इस प्रकार चालवाजी की। II तुमको पकड कर बादशाहके सुपुर्द कर देंगे। 12 जिसका प्रमाण यह है कि इनके डेरोमे यदि अतिरिक्त रुपये मिल जायें तो हमारी वात सच जानना। 13 इनको (बादशाहने) खर्च के लिए भेजे है। 14 इतनेमे। 15 एक उनकी अोरका आदमी बुलाया जाय । 16 वादशाहकी ओरका में हूगा। 17 उनकी। 18 बुलायेगे । 19 इसी बात पर हार-जीत तै कर लीजिये। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात __ताहरां पातसाह वीरमदेन कहियो-'जु, म्हारै एक पठाण कहै छ, या वात थारै दाय आवै के नही। ताहरां वीरमदेजी कह्योपातसाह सलामत ! पठाणनू म्हें एक वार दीठो छ । एकर वळे पठाणनू बुलायजै, ज्युं हूं देखू ।' ताहरां पठाणन बुलायो । पछै पठाण आयो । ताहरा वीरमदेजी देखनै कह्यो-'पातसाह सलामत ! दोय पठाण इसडा वळे तेडो। आपणी तरफरा झै तीन मेलो।' अर पराया वीदो भारमलोत मेलसी।' तिको ईयां तीनाहीनू मारनै, हथियार लेन, साजो-साबतो परहो जासी । आ तो पातसाह सलामत ! आप थापो ही मतां । पछै वीरमदेजो समचार कहाड़िया मालदेवजीनू । ताहरा राव मालदेवजीरै मनमे हुई । खबर कराई, सु अमरावांरै डेरै सवाया" रुपिया हुअा । ताहरा मालदेवरै मनमे तो भय हीज ऊठियो । वीरमदेजी के वातां ठहराई, तिकासू भय हुवो।1 पछै प्राथणरो पहोर छै, ताहरा जैतो, कूपो, अखैराज सोनगरो कपाजीरै डेरैमे बैठा छै। जैतो ऊदावत अर खीमो ऊदावत रावजीर विचै फिरै छै । जिकू रावजी कहै छै जिकू ईंयानू14 प्राय कहै छ । अ कहै छै सु रावजीनू जाय कहै छै । 'जु म्हे थानू जोधपुर पुहचता करस्या ।16 उणारो” जबाब सुणनै रावजी सुखपाळ वैसिनै हालिया । तरै रावजीरो हाथ खीमैरै हाथरै ऊपर छै, अर चालिया जावै छै । ताहरां जैतसी ऊदावत बोलियो-'सीख करो", लोग अापणी वाट जोवै छै । ताहरां खीमोजी बोलिया नही। ताहरा 1 यह बात तुम्हारे ऊँचती है कि नहीं। देखा है। 3 -एक बार पुन.। 4 दो पठान ऐसे और बुला लिये जायें। 5 अपनी पोरके ऐसे तीन आदमियोको भेज दें। 6 और सामने वाले (शत्रु) वीदा भारमलोतको भेज देंगे। 7 वह ऐसा है जो इन तीनो को ही मार कर के इनके हथियार लेकर सकुशल निकल जायेगा। 8 बादशाह सलामत । यह पत्रायती तो श्राप मुकर्रर करें ही नहीं। 9 अधिक। 10 भय उत्पन्न हुा । II वीरमदेवजीने कई बातें ऐसी बनाईं जिससे भय उत्पन्न हो गया। 12 सध्याका समय है। 13 जो वात। 14 इनको। 15 तुमको। 16 पहुँचा देंगे। 17 उनका। 18 रावजी सुखपालमे बैठ कर चले। 19 रवाना हो जाओ। 20 लोग अपनी प्रतीक्षा कर रहे है। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १०१ वळे' जैतसीजी बोलिया, कहियो - 'खीमाजी ! इतरी भाँय नहीं लाभो, जोधपुर नै समेळ विचै पावड़ी घणी छे ।" ताहरां खेमोजी हाथ मुरड़ने पाछा आया । ताहरां राव कहियो - 'भला, जिकी हुसी सु दीससी ।" ताहरां परभात' लड़ाई हुई । लोक कांम आयो । 2 ताहरा रावजी तो घूघरोटरा पहाड़ां मोह जायनै रह्या । सूर पातसाह जोधपुर आयो । ताहरां जोधपुर तिलोकसीह वरजांगोत किलेदार हुतो । सुतिको ३०० रजपूतासू कांम आयो । सूर पातसाह च्यार मास जोधपुर रह्यो । मालदेजी मेडतारा बावळ वाढिया ' ताहरां वीरमदेनूं कहियो । ताहरां वीरमदे कहै - ' जोधपुररा प्रांबा वाढीस ।" ताहरां लोके कह्यो - 'आ श्रापनू हैसाब नही ।" ताहरा छुरी लेने काबडी वासतै आंबारी एक डाहळी वाढी । " पछै सहु कोई आपो-आपरै ठिकाण गया । 12 अर पातसाह सूर दिली गयो । ' 11 12 23 14 पछे थांणो हरवाड़े राखियो । थांणो जिकैमे पठाण राखिया हंता" और वीरमदे दूदावत, कल्यांणमल दूणपुररो धणी । 13 ताहरा एक दिने ॐ चढनै घूघरोटरा पाहाड़ा मांहै राव मालदेजीरी वसी हुती, तिकैनू बध कीवी । 24 बंध करने हरवाडे आयो । ताहरां कोई डोकरी हुंती, - तिका कहण लागी - ' कुण छै ?" ताहरा कही - 'कल्याणमल दूणपुररो धणी ।' ताहरां डोकरी को - 'साबास, म्हारी दादिया- काकिया बंधाने भलो हालियो, माथा ऊपर ओढणो घातने । 26 ताहरा श्रो जाब कल्याणमल साभळियो ।” ताहरां धांनरो सूस घातियो | 128 16 17 पीछे सभी कोई अपने-अपने फिर 12 इतनी दूरी नही काट सकते, जोधपुर और समेळके बीच तर बहुत है । 3 मरोड करके | 4 जो होगी सो देख लेंगे । 5 दूसरे दिन प्रभातमे । 6 जोधपुरमे तिलोकसी वरजाग का पुत्र किलेदार था । 7 मालदेजीने मेड़तेके बबूलोको कटवा दिया । 8 मैं जोधपुरके नामके वृक्षोको कटवा दूगा । 9 यह आपको उचित नही । 10 तब छुरी लेकर एक श्रमकी टहनी छडीके लिये काट ली | 11 स्थानोको चले गये । 12 रखे थे । 13 द्रोणपुरका स्वामी । घूघरोटके पहाडोंमे जहाँ मालदेजीकी वसी थी उसे वद कर दिया । IS एक बुढिया थी सो कहने लगी- यह कौन है ?" 16 शाबाश है ! हमारी दादियो- काकियोको बँधवा कर और सिर पर श्रोढना डाल करके भला चला जा रहा है । 17 तब यह जवाब ( उपालभ, व्यग्य) कल्याणमलने सुना । 18 तव अन्न ग्रहण न करनेकी शपथ ली । 14 तब एक दिन इन्होने Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात कहियो-'बध छुड़ायने जमीस ।' ताहरा वीरमदे कहण लागो-'ये ।। तो आपणा दुसमण हुता, अर थे कहो तो भला 12 ताहरा सातमै दिन दूध आरोगायो, अर ऊठिया । जठे वीरमदे कहण लागो-'ज, ह उठ पठाणरै जाय अर वध वेई अरज करू ।' ताहरां कल्याणमल सवणां माहै' समझतो हुतो; ताहरा कह्यो-'राज | बंध वेई अरज मता करो।' परभातै राव मालदेरी फोज दोड़सी, बध सारा छूटसी। मरणो छ जिको मरस्यै ।' अर पठाण भाजसी 20 ताहरा वीरमदेजी कहियो-'तो राज आरोगो काई नही ?11 ताहरा कल्याणदास कह्योवीरमदेजी ! हू काम आईस ।12 यू करता दिन ऊगो । राव मालदेजीरी फोज थाणे ऊपर दोडी। ताहरां पठाण तो भागा । कल्याण सांम्हां प्रायो। ताहरा राव मोलदेजी कह्यो-'कल्याणमलजी ! थे काई मरो ? म्हे तो थारै हीज वासतै आया छा । ताहरा कह्यो-'ना साहिब ! पातसाहरा थाणा भाजै, ताहरां कईक रूडा माणस मरै ।14 ताहरां उठ कल्याणमल काम प्रायो। उदैकरण रायमलोत काम आयो । पठांण भागा सु दिल्ली गया। __ राव मालदेजी बंध लेने घूघरोटरा पाहाडा गया। वीरमदेजी मेडतै आय रह्या । पछै राव मालदेजी जोधपुर पाया। कईक तुरक छा सु नास गण 115 ॥ इति सम्पूर्णम् ॥ 1 ववन ढुडा करके भोजन करू गा। 2 ये तो अपने दुश्मन थे, और तुम इन्हींके लिए गपथ लेते हो, यह अच्छी रही । 3 तब सातवें दिन दूध पिलाया और उठे। - 4 जहाँ! 5 वहाँ। 6 लिये, वास्ते। 7 शकुनोमे। 8 वधनोके लिये अर्ज मत करो। 9 जित्तको मरना है वह मर जायगा। 10 और पठान भाग जायेंगे। II तो फिर श्राप भोजन क्यो नहीं करते ? 12 में काम पाऊगा। 13 कल्याणमलजी आप क्यो मर रहे हो ? हम लोग तो अापके लिए ही आये है। 14 बादशाहके थानोको जहां तोडना होता है, वहीं कई अच्छे आदमी काम आते है। 15 कई तुर्क वहा थे सो भाग गये। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात राठोड़ नरै सूजावत, खीमै पोकरणैरी राठोड़ खींवो पोकरण राज करें। पोकरण बाळनाथ जोगीरो आसण छ ।' अर अठै बैहाटी हरभौ मेहराजोत सांखलो राज करै । 2 कलिकरण केहोत जैसळमेररो भाटी हरभौ सांखलैरै परणियो हुतो । * 5 बाई अठै पीहर हीज रहती सांखलेरै ।' सो बाईरे पेट ग्रासा हुती ।" कितरेक दिने बेटी जाई ।' वडे नखत्रै जाई । ताहरा जंगळमें नांखि आया । ' 6 8 हरभी सांखलो फळोधी गयो हुतो । प्रावतां थळ माथै रोवतो टाबर दीठो | 10 ताहरा हरभौजी पूछियो - 'रे, टावर कठै रोवै छै ? 11 ताहरां कहियौ - 'राज ! एक टाबर कहिके नांखियो छ, सो रोव छै ।' ताहरां आप कहियो - ' टाबर उठाइ लावो ।' ताहरां एक सवण बोलियो | 13 आप सर्वणी हुता यु कर आप डावडीनू " घरे ले आया, आणने मांहै मूक दी । 26 कहियो - 'इयै छोकरीनू धाय राखो । न भली जिनस राखज्यो । 12s 16 17 ज्यां मांह डावड़ी ले गया त्यां तो कपडो ओळखियो; " कह्यो'जी ! श्रा डावड़ी क्युं लाया ? भूडा नखत्रे जाई हुती "सु म्हा तो नांख दोनी । 20 ताहरां हरभूजी कहियो- 'प्रा भले नखत्रे जाई छै । । I पोकरणमे वालनाथ योगीका श्रासन है । 2 और यहा वैहगटी गावमे मेहराजका वेटा हरभू साखला राज्य करता है । 3 केहरका वेटा कलिकर्ण । 4 व्याहा था । 5 बाई (हरभूजीकी वेटी) उस समय साखलेके यहाँ पीहरमे ही रहती थी 6 बाईको गर्भ था । 7 कितनेक दिनोके बाद पुत्री उत्पन्न हुई । 8 बडे नक्षत्र ( मूल नक्षत्र) मे उत्पन्न हुई । 9 तब उसे जगलमे डाल दी । 10 लोटते हुए मार्ग मे एक बच्चेको एक टीवे पर रोते हुए देखा । II बच्चा कहां रो रहा है ? डाल दिया है । 13 उस समय एक शकुन हुआ । 14 स्वय शकुनी थे । IS बच्चीको । 16 ला करके अदर भेज दी । 17 इस छोकरीके लिए एक धाय रखो और अच्छी तरह रखना ! 18 जैसे ही बच्चीको अदर ले गये वैसे ही उसके कपडेको पहचान लिया । 19 इस लडकी को क्यो लाये ? यह तो बुरे नक्षत्रों में उत्पन्न हुई थी । 12 एक बच्चा किसीने लाकर 20 सो महने तो डाल दी । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] महता नैणमीरी ख्यात अर कडूवेनू अोठभो होसो।' सासरै पीहर वडा दोन कुळ ठांमसी।'' ताहरां बाईन राखो । बाईरो नाम लिखमी दियो। तिके हीज रात १ बेटो हरभूजीरै जाई । दोनं ही वायां मोटी हुई। मासी-भांणजी ज्यु मोटी हुई, त्युं सगाईरो अटकळ करीजण लागी । ताहरां तेड बांभणनू नारळ दियो ।' हरभूजी कहियो-'बाई लिखमीरो नाळेर पोकरणरा राव खीवैनें ले जाइन द्यो। ताहरां वाभण नाळेर ले जायने राव खीवैनू वंदायो ।' ताहरां खीवै कहियो'कैरो नाळेर?' ताहरा बांभण कह्यो-'जी ! कलिकर्ण भाटीरी बेटी, हरभू साखलेरी दोहितरी ।" ताहरां खीवै कहियो-'जी, आ सगाई म्हे नही करा । सुणां छां, वीदणीरा दांत मोटा छै।11 ताहरां नाळेर अपूठो दियो। अर राव खीवै कहियो-'जो हरभूजोरी बेटो परणावो तो परणीज्या ।13 इतरी वात कही, ताहरां आदमी अपूठा पाया। प्रायनै हकीकत हरभूजीनू कही । ताहरा हरभूजी कहै-'बेटी जाई जिणरो जनम हारियो । कासू कीजै ?16 ___ ताहरा हरभूजी आपरो” बेटीरो नारळ खीवैनं मेलियो ।18 खीवै नारेळ वाद लियो । भलै मुहूरत जान कर आयनै परणियो। हमै लिखमी कुंवारी रह गई । ठोड़ २-३ नारेळ मेलिया, सु नारळ अपूठा आया। ताहरा राव सातळ जोधपुर राज करै। I कुटुम्बको सहारा-रूप होगी। 2 ससुराल और पीहर दोनो कुलोका मान बढाने वाली होगी। 3 उसी रात ! 4 मौसी और भानजी जैसे ही वयस्क हुई उनकी सगाई की अटकलें लगाई जाने लगीं। 5 तव ब्राह्मणको बुला करके नारियल दिया। 6 लक्ष्मीबाईकी सगाईके लिए पोकरणके राव सीवेको यह नारियल ले जाकर दे दो। 7 तव ब्राह्मणने नारियल ले जाकर राव खींवसे उसे वदन करवाया। 8 नारियल किससे सवंच किये जानेका है ? 9 कलिकर्ण भाटीकी पुत्री और हरभू साखलेकी दोहितीका। 10 यह सगाई हम नहीं करते । II सुनते है कि वधू (मगेतर)के दात वडे हैं। 12 तव नारियल लौटा दिया। 13 हरभूजीकी वेटी व्याहें तो व्याह कर लेंगे। 14 इतनी। 15 जिसके पुत्री उत्पन्न हुई उसने जन्मको हारा। 16 क्या किया जाय ? 17 अपनी। 18 भेजा। 19 अच्छे मुहूर्तमे वरात बना कर और पाकर विवाह किया। 20 श्रव। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १०५ सूजो सिकार खेलतो फिरै । सो एक दिनर समाजोग' सूजोजी सिकार खेलता बैंहगटी कनै प्राय नीसरिया । ताहरां हरभूजी सांखलै सूजै जोधावतन लिखमी आपरी दोहितरी परणाई ।। लिखमीरै बेटा दोय हुआ-वाघो, नरो। वडा जोरावर हुआ । सातळरै छोरू न हुवो। ताहरां टीको सूजैजीन दियो। राणीपदो लिखमीन दियो ।' लिखमीरो भाई जैसो आय सूजैरै वास रह्यो। तैरा जैसा-भाटी कहीजै । ___ताहरां राव सूजै मारवाड़ सरब साझी ।' बेटो वाघो वगड़ी राखियो ।' नरो फळोधी राखियो। रांणी लिखमी फळोधी नरै कनै रहै । असवार ५०० नरैरै ताबीन रहै ।। . एक दिनरो समाजोग छै । रात घडी ४-५ गई छै । वरसातरा दिन छ । नरो अरोगणनू मा कनै आयन बैठो छ । तिस.10 चाकर झरोखै आय अर दीठो', अर कहियो-'या आजरी खिवण'' पोकरण ऊपर छ ।' ताहरां लिखमी निसासो मूकियो ।13 ताहरां नरो बोलियो'मा ! निसासो क्यु मकियो ? थाहरै वाघे नरै सरीखा बेटा, अर रावजी पण समादिया ।14 था रांणीपदो पायो ।15 ताहरां कह्यो'बेटा ! पूछ मती-ना । ताहरां नरै कह्यो-'माजी ! मोनू तो कहो। ताहरा लिखमी कह्यो-'बेटा ! ईयै पोकरण वाळे मोनू कवारी थकीन निंदी हुती। परणीज अर दुहाग देता आया छै; पण ईयै मोनू कवारी थकीनू निंदी। ताहरां नरै कह्यो-'माजी ! हूं ईयैसू गुदरू छू थाहरै I समयका योग, समयकी वात। 2 तव हरभूजी साखलेने जोधाके पुत्र सूजाको अपनी दोहिती लक्ष्मीको व्याह दी। 3 सातलके कोई पुत्र नही हुअा। 4 लक्ष्मीको पट्टगनीका पद दिया। 5 जिसके वशज जैसा-भाटी प्रसिद्ध है। 6 सम्पादन की, प्राप्तकी, जीत ली। 7 अपने बेटे वाघेको वगडीमे रखा। 8 नरेकी तावेदारीमे ५०० सवार रहते है। 9 नरा भोजन करनेके लिए अपनी माके पास आकर बैठा हुआ है । 10 इतने मे। II आकर देखा। 12 विजली। 13 तव लक्ष्मीने नि स्वास छोडा। I चिरायू, विद्यमान। 15 आपने रानी पद प्राप्त किया। 16 विवाह करने के बाद तो अमान्य करते आये है, परन्तु इसने मेरी क्वारेपनमे ही निंदा की थी। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ मुहता नैणसीरी ख्यात वास्तै । ' जाणू छू थांहरी मासी छे ईयरै घरै । नही तर हूं ईये कने हमारू कोट खोस लू । ताहरां लिखमी कह्यो - ' बेटा ! ढील न करो, वेगा हुवो ।" 10 ताहरां नरं प्रापरै प्रोहितनू कह्यो - 'तू जो एक बात करें तो आपां पोकरण त्या ।" ताहरां प्रोहित कहियो - 'हू हेरो करीस ।' ताहरा नरै प्रोहितनू कहियो - 'हूं तोनू सवारं वुरो वोलीस ।" तू मोनू" बुरो वोले अर पर्छ काले ऊंठ चढने पोकरण जाए परो ।" 8 0 12 13 ताहरा वीजे" दिन दरबार वेळा प्रोहित दरवार प्रायो । ताहरा नरो वोलियो- 'ह्रामखोर । मुहडो दिखाळो नां । 11 राज मांहै ये दुभाता घालो । " मांहरै थे न जोईजो । ग्रठासूं परहा जावो । 18 ताहरा प्रोहित वोलियो - 'हो नरा ! तू कियै भांत बोलै छै ? 15 अजू तो" रावजी जीवं छै, र कुवर पण घणा छै । तूं किसे वागरी मूळी छै ? 17 ताहरां प्रोहित चाकर कनां छागळ लेने कह्यो-नरा ! तोनूं जुहार करे सो बैरनू करें । 18 ताहरा प्राहित जायने कोटडी माहे ऊठ ऊपर कूची माडैनै हालियो । ताहरां चाकरा नरैनू कह्यो - असवारी रै खासै ऊठ ऊपर प्रोहित कूची मांडी छे ।' ताहरां नरं कह्यो - ' रे ! हरामखोरनू परहो जावण दो । 20 ऊंठ, घोडा ले अर परहो जावो । मुहडो दीठ करो । ताहरां प्रोहित ऊंठ चढि पोकरण गयो । 9 10 मैं आपके लिए ही इससे निभा रहा हू । 2 स्याल करता हूँ कि श्रापकी मौसी इसके घर है । 3 नही तो मैं अभी इसके पाससे कोटको छीन कर ले लू | 4 विलव मत करो जल्दी करो । 5 तो अपन पोकरण ले लें । 6 मैं जाँच करू गा । 7 मैं तुझको कल बुरा वोलू गा ( अपशब्द कहूगा ) । 8 मुझको । 9 तू मुझको बुरा बोलना और फिर कल ऊँट पर चढ कर पोकररण चले जाना । दूसरे 1 II हराम खोर | मुह मत दिखा। 12 राज्यमे तुम विरोघ टाल रहे हो 13 हमको तुम्हारी जरूरत नही है । 14 यहासे चले जाश्रो । रहा है ? 16 अभी तक तो । 17 तू किस बागकी मूली है ? 18 फिर पुरोहितने चाकरके पाससे छागल ले करके (हाथमे पानी ले करके) कहा कि नरा । तेरेको अव जो जुहार करे सो अपनी स्त्रीको करे । (छागल =वकरीके वच्चेके चमडेका वना हुग्रा जल - पात्र, दीवडी ) 19 तच पुरोहित कोटडीमे जाकर ऊट पर पलान कस करके रवाना हुआ। 20 अरे । हरामखोरको जाने दो । । 15 तू किस प्रकार वोल Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १०७ पोकरण प्रोहित परणियो हुतो ।' सो सासरै रहै। घर माहैसू निकळे नही, रात-दिन घर मांहै बैठो रहै। ताहरा सुसरो-साळा कहण लागा-'थे बाहिर निकळो नही, घर माहै बैठा रहो, सो किस वासते ? ताहरां प्रोहित कह्यो-'हूं नरैसू विढ अर आयो छू ।' ताहरां सासरियां राव खीवसू कह्यो-' म्हारो जमाई नरासौ विढ अर अठे पायो छै ।' ताहरां राव खीवै प्रोहितनू तेडायनै कह्यो-'थे नरैसू रीसाणा तो कासू हुवो ?' थे अठै आवो ।' दरबार माहै बैसो, कुवरसौ रमो।' खरची ल्यो। खुशियावळ थका रहो। एको घर छै ।11 कह्यो-'राज ! खरची रावळी12 हीज छै। अजू रावजी विराजै छ।13 बेटा घणा छ । रावजीर अकै नरै सारू कासू छै ?'14 जेठ मास माहै प्रोहित पण हेरो करण आयो, इस समइयै अांबली पण फळी हुती । जोगीरै पासण माहै हुती सु कुवर आवली पाइ चढै नै अांबली नित प्रत तोड़े। ताहरां चेलां बाळनाथनू कह्यो'कुंवर नांबली चढे, तोड़े।' ताहरां बाळनाथ आयो । बाळनाथरै प्रावणसौ कुंवर उतर गया। ताहरां बाळनाथ प्रांबली सरापी-'निर्फळ होणा । तुमसौ गढ जायगा । हमारे चेलांसू मठ जायगा । चेला हमारा घरबारी होयगा । यूं कहेनै बाळनाय चालतो हुप्रो दिखणाधनू" । प्राडा आदमी घणा ही फिरिया, पण घिरै नहीं।18 ईंदी जीमती ताहरां पेहली बाळनाथनू जीमण मेलती, पछै आप जीमती । सु नाथरो इसो भाव । युं करतां जीमण तयार हो, ___I पुरोहित पोकरणमे व्याहा था। 2 सो किस लिए? 3 मैं नरासे लड कर आया हूँ। 4 दामाद । ' 5 बुलवा कर । 6 तुम नरासे नाराज हो गये तो क्या हुआ ? 7 तुम यहाँ आ जायो। 8 दरवारमे वैठो, कुवरके साथ खेलो। " खर्चा हमारेसे लो। 10 बडे अानदसे रहो। II एक ही घर है। 12 अापकी। 13 अभी तक रावजी विद्यमान है। 14 रावजीके भी एक नरेके ऊपर ही थोडा ही है ? 15 जेठ मासमे पुरोहित जासूसी करनेको पाया था, उन्ही दिनो इमली भी फलित हो गई थी। 16 तव वालनाथने इमलीको शाप दिया कि 'निष्फल हो जाना' । और उन कुवरोको शाप दिया कि तुमसे गढ जायगा और हमारे चेलोसे यह मठ जायगा और चेले घरवारी (गृहस्थी) हो जायेंगे। 17 दक्षिणकी ओर। 18 परन्तु वापिस नहीं लौटता। 19 इंदी भोजन करने के पहले बालनाथको भोजन भेजती, फिर आप भोजन करती। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] महता नैणसीरी ख्यात L 5 8 ताहरां नाथनू भांणो मेलियो । आदमी ले नाथरै प्रसण आायो । आयने पूछियो । ताहरां कह्यो - 'जी, नाथजी रमिया । " कहियो - ' रे ! करां ?" कह्यो - 'जी, आज रमिया ।' कह्यो - ' रे ! किस वासते ?' 4 कह्यो - जी, कुंवरां दुख दियो । अर जावतां यु कहि गया है । ताहरा इंदी बिना जीमी ऊभरांणे पगे दोडी । पगो पग गई । " आगे सात कोस लग' नाथ गयो । जायनै जाळ हे नाथ सूतो, सो नाथनूं तो नीद आ गई । इतरै ईंदी जाय पुहती | 20 देखे तो नाथ पोढिया छै । ताहरा ईदी जायने पगे हाथ दियो । 12 ताहरां नाथ | जागियो । को- 'माता ! तू क्यो आई ?' ताहरां कह्यो - 'नाथजी ! थे मोनूं बोयनं हालिया । 12 नाहरा नाथ को वेटी ! वचन फुरणेका नही । ताहरां कह्यो - 'नाथजी । म्हे केथ रहां ?14 म्हारी किसी गत हुसी ? " ताहरां नाथ कह्यो - 'बेटी ! तेरे आसा है" सो तेरै बेटा होगा। बड़ा सामंत होयगा । उसका नाम लूको देई । 12 जब बारह बरसोंका होयगा तब धरती आवेगी । पण इस जाळ से पैली आवेगी । 18 अब मैं और तरफ जाऊगा ।' - 19 ताहरा ईदी अपूठी आई। 29 ऊनाळो उतरियो", वरसाळो उतरियो,” सीयाळो" आयो । न्याळा" हुवै छे । रावनू न्याळारो बुलावो प्रायो । ताहरां राव न्याळे आवै । एक दिन श्रोगरास गांम तिकण माहे न्याळो हुवो। ताहरां बुलावो प्रायो रावनू । ताहरां राव तयार हुवो छै । प्रसवार ८० सू चढि राव कोट माहैसू I नित्य इम प्रकार करते, जव उस दिन भोजन तैयार हुआ तव नाथके लिए भारणा ( थाल) परोस कर भेजा । 2 नाथजी चले गये । 3 रे । कव ? 4 अरे । किस लिये ? 5 तब ईदी विना भोजन किए ही नगे पाँव उसके पीछे दोडी । 6 पैरोके चिन्ह देखती देखती गई । 7 तक 1 8 पीलू वृक्ष 9 नीचे । IO इतनेमे ई दी जा पहुँची । 11 तब ई दीने जाकर चरण स्पर्श किये । 12 नाथजी । आप तो हमको हटा कर चल दिए । 13 वचन पलटनेका नही । 14 हम कहाँ रहे ? 15 हमारी क्या गति होगी ? 10 वेटी । तेरे गर्भ है । 17 देना । 18 परन्तु इस जाल (वृक्ष) से उघर उबर तक ही मिलेगी । 21 वर्षा ऋतु बीत गई । 19 ईदी लौट आयी । 20 ग्रीष्म ऋतु समाप्त हुई । 22 शीत ऋतु । 23 मास गोष्ठी का एक विशेष प्रायोजन । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १०६ नोसरियो।' ताहरां प्रोहित पण ऊभो हुतो। ताहरां राव कह्यो'प्रोहित ! आवस्यो ?' ताहरां प्रोहित कह्यो-'राज ! म्हा बांभणारो कासू काम छै ?* ताहरां राव तो चढि खड़िया ।' तितरै प्रोळियो कटोरो लियै ऊभो हुतो। ताहरां प्रोहित कह्यो'जी, कासू जोवो ?" ताहरां प्रोळिये कह्यो-'प्रोहितजी ! कहीकैनू कटोरो सांपस्यां, ज्युं पुरसाय ल्यावै । ताहरां कह्यो-'जी, उरहो यो, ज्युं म्हे परुसाय लाय देस्यां ।' कहियो-'जी, प्रोहितजी ! आपने कटोरो क्युकर दीजै ?10 ताहरां प्रोहित कह्यो-'भय कोई नही, चाकर उठाय लेसी।11 थांहरो तो काम कियो जोईजै ।' थांसू लाख कांम छ ।'13 ताहरा प्रोळियेरो कटोरो प्रोहित लियो। ____पछै चाकरनू कह्यो-'रे ! ऊठ ल्याव, सीरख ल्याव, ताहरां चाकर ऊंठ पलांण मांड ल्यायो । सीरख ल्यायो । चाकरनू राखियो । आप ऊठ चढ अर देहरैरै मारग घालि अर फेरिया । आगै बिटड़यां कनै जाय नीसरियो । प्रागै एक पलीवाळ ऊभो हुतो, तियेनू कह्यो'-'रे ! फळोधी जाय, वाहर घाल, वाहर कर । ताहरां बांभण पुकारियो। आगै राव नरैरा जासूस बैठा हीज हुतो । सांमांन तयार कियो। वारह ऊठा माथै सिलह लदियोड़ो हुतो। अर पाचसै ५०० असवारसूं नरो चढियो आयो । प्रागै बांभण ऊठ तांणियो मारग आवतो दीठो । ताहरां रांमो सोहड बोलियो। कह्यो-'जी, बाभण आवै छ । मत क्युं ही कहो।३० वाहर _I निकला। 2 खडा था। 3 अायोगे? 4 हम ब्राह्मणोका क्या काम है ? 5 तव राव तो चढ कर चल दिया। 6 उस समय प्रौलिया कटोरा लिए खडा था। 7 क्या देख रहे हो? 8 किसीको कटोरा देना है जो परोसवा कर ले आये। 9 इधर दे दो, सो हम परोसवा कर ला देगे। 10 आपको कटोरा कैसे दिया जाय? II कोई भयकी वात नही है, चाकर उठा लेंगा। 12 तुम्हारा काम तो करना ही होगा। 13 तुम्हारेसे लाखो काम हैं। 14 तव चाकर ऊट पर पलान रख कर ले आया। रजाई भी ले पाया। 15 चाकरको वही रखा। 16 आगे एक पालीवाल ब्राह्मण खडा था, उसको कहा। 17 अरे ! फलोधी जाकर खबर दे कि वाहर करे। 18 बारह ऊँटो पर सिलह-शस्त्र आदि लदे हुए थे। 19 आगे ऊटको खीचते हुए ब्राह्मणको आते देखा 20 इसे कुछ मत कहो।। Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] मुंहता नैणसीरो ख्यात रो मामलो छ । ताहरां नरो वोलियो-'म्हे क्यु ही कहां नही, आवो। ताहरा वांभण पिण चढ आयो, साथ हुवो। जाहरा विटड्या कनै गया, ताहरां रामो बोलियो । कह्यो-'जी, घस को दीस नही, मारग कोई पग दीसै नही ।' आपां जास्या केथ ?" ताहरा नरो प्रोहितसौ बाथा घातनै मिळियो । रांमैन कह्यो-'म्हे पोकरण लेस्या ।" ताहरां रांमै कह्यो-'कोडीधज घोड़ेरो मुहडो कुहटो।' ताहरां कोडीधजरो मुहडो कुहटता कोडीधज फरडको कियो", सो गाम उगरास माहै केरडू मगरै ताई सुणियो। ताहरां राव खीवो न्याळे माहै बैठो हुतो, कोळी हाथ माहै लीवी छ, छाट घालतो हुतो।' ताहरा कोड़ीधजरो फरडको सुणियो ताहरा राव खीवो बोलियो-'भाई । कोड़ीधज घोडैरा फरडका सुणीजै छै, कोट पण एकलो छै, वांभणियो पण मास ५-६ हुवा आयो बैठो छै, उपद्रव दीसै छै । आजे कुसळ विहावै । ताहरां असवार पांच छव चाढिया, 'खबर करो' । ताहरां औ असवार मगर जायनै खडा रह्या । अटकळ करण लागा। 'देखा, कुण छै ? कुण वहै छै?1 ताहरांअसवार आय, मारग मायै ऊभा रह्या। जितरै साथ आयनै नीसरियो ।' ताहरां असवारां पूछियो-'कुण ठाकुर छै ? 18 ताहरां कह्यो-'साथ नरै वीकावतरो छै। अमरकोट परणीजण जावै छै ।14 ताहरा कह्यो-'घोड़ो कोडीधज तो नरै सूजावतरो छै ।' ताहरा कह्यो-'माहरै घोड़ो सखरो कोई हुतो नही, तिकण पगा 1 न तो कोई सेना दिखती है और न मार्गमे किसीका खोज ही दिखाई देता है। 2 अपन जायेंगे विधर? 3 तव नरा पुरोहितसे भुजा पसार कर मिला। 4 हम पोकरण - लगे। 5 तव कोडीघज घोडेका मुह वाचते समय कोडीघजने अपना मुह और नथुना फडफडाया। 6 सो वहासे उगरास गावमे और केरडू की पहाडी तक सुनाई दिया। 7 तब राव खीवा न्यालेमे बैठा हुअा था और ग्रास हाथमे लेकर छांट डाल रहा था। (कोढी= देवार्पण निमित्त अजलिमे लिया जाने वाला या लिया हुआ ग्रास परिमारण जितना पक्वान्न प्रादि खाद्य-पदार्थ) 8 कोडीधज घोडेके फरडके सुने जाते है, कोट सूना है और ब्राह्मण भी ५-६ मान हुए पाया बैठा है, कोई उपद्रव दिखाई देता है। 9 अाज कुशल नहीं है। 10 देखें, कौन है ? कौन जा रहे है ? II मार्ग पर जाकर खडे रहे। 12 इतने में दल या निकला। 13 कौनसे ठाकुर है ? 14 उमरकोट व्याहनेको जा रहे हैं। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १११ मांग लियो छ । ते आग ऊमरकोट सोढांरै वडा वडा घोडा छ ।' तै भाभैजो कनां मांग लियो छ । ताहरा कह्यो-'इतरै ऊठे सिलह क्युं छै ?' ताहरां कहियो-'म्हारै वैर-वाढ छ । राजा छां, साथै सिलह चाहीजै हीज ।' इतरो पूछि अर असवारां जाय राव खींवैनू कह्यो-'जु, कोई उपद्रव छै, साथ वहै छ। कहै-नरो वीकावत अमरकोट परणीजण जावै छै । मौड़ बांध, केसरिया कियां, खंभायच गाईजै छै । इण तरहसू वहै छै। घोड़ो पण कोड़ीधज छै । कहै-'म्है माग ल्याया छा।" यु विचार करै छै । तितरै नरो पोकरण जाय पुहतो ।' आगे प्रोहित जायनै प्रोळियैनू साद कियो। कह्यो-'वेगो थारो कटोरो ल्यै ।' उतावळसू ऊठण लागो, त्युं उतावळा साद किया 110 ताहरां प्रोळियो ऊठियो । नींदाळ थक हीज खिड़की खोली।1 कह्यो-'कटोरो दो उरहो।12 ताहरां प्रोहित कह्यो-'बाळ रे भाई ! थारो कटोरो। म्हारै मांसरै हाथ लगावै कुण ?13 ताहरा प्रोळियो बोलियो-'राज ! निवाजिया म्हानू ।' जिसड़े हाथ आघो काढियो, तिसडै नरै बरछी वाही सु पूठ माहै जाती नीसरी । धरती ढह पड़ियो । __नरो प्रोळि खोलि माहै जाय पैठो।" कह्यो-'नरै सूजावतरी प्रांण । सहर माहै आंण फिरै छै नरै सूजावतरो प्राण । इतरै __ I हमारे पास कोई अच्छा घोडा था नही, इसलिए माग लाये है। 2 क्योकि आगे सोढोके पास बडे बडे घोडे है। 3 इसलिए वावाजी (ताऊजी)से माग कर लिया है। 4 हमारे शत्रु ता और लडाई है। 5 इतना। 6 मौर बाँधे हुए, केशरिया किये हुए है और खभाइच राग गाई जा रही है । 7 हम माग कर लाये है। 8 इतनेमे नरा पोकरण जा पहुचा। 9 पुरोहितने आगे जा करके पौलियेको पुकारा। 10 वह उतावलीसे उठने लगा त्यो उसने उतावलीसे पुकारा। H निद्रालु होते हुए ही खिडकी खोली। 12 लाओ कटोरा दे दो। 13 यह ले रे भाई | तेरा कटोरा, मेरे कौन मासके हाथ लगाये ? 14 महाराज | मेरे पर बड़ी कृपा की। 15 ज्योही हाथ बाहर निकाला त्योही नरेने वर्चीका प्रहार किया सो पीठमे जा निकली। 16 धरती पर गिर पड़ा। 17 नरा पोलि ' खोल कर अदर जा घुसा। 18 नरे सूजावतकी प्रान-दुहाई (विजय-घोषणा)। 19 - शहर में विजयकी घोषणा (आन दुहाई ) हो रही है। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात राव खीवै असवार पोकरण किया। सो असवार जायनै देखै तो नरै सूजावतरी प्रांण फिर छै । असवारां आयनै राव खीवेनूं कह्यो'पोकरण नरै सूजावत लीधी। ताहरा खीमो पसवाडै चालियो पोकरणसौ कोसै तीने च्यारे।' पसवाड़े वहता हुता, तिसडै मारगमे एक एवाळियो मिळियो। लारै वकरो मारियो हुतो' । जीव नीसरियो हुतो, पण साबतो हतो । सो काधै लिये प्रावतो हुतो ।' उण आण वकरो दियो। ताहरा खीवै चाचैनं पूछियो। कहियो-'चाचा ! प्रो कासू कहै छ ? ताहरां चाच कहियो-'खीवाजी | ओ बकरो आपां जितरै कोसे जाय खावां, तितरै वरसे आपा नरो मारा ।30 ताहरां वाकरो लियो अर पाच छकड़ एवाळियनू दिया।' एवाळियो ल्यै नही । ताहरां कह्यो-'रे ! ल्य, माहरै सवण छ । ताहरा उवै लिया ।14 भिणीयाणे बारह कोसे जायनै बाकरो खाधो । लोचा-लाचो घणो ही कियो पण उरै बाकरो खावण न पाया। नरैरी चोकिया ठांम-ठाम बैठी छै ।16 नरो कोट माहै पैठो, ताहरां खीवैरी बैर कह्यो-'बेटा | कासूं म्हानू काळे, कैर-कांटो खावता हुता?” ताहरां कह्यो-'नांनीजी ! थे कैर-कांटो जाय अर खावो। म्हे अठे गेहू खावस्यां ।'18 ताहरां ___ इतनेमे राव खीवेने भी अपने सवारोको पोकरण भेजा। 2 पोकरण पर नरे सूजावतने अधिक र कर लिया। 3 तब खोमा (खीवा) पोकरणसे तीन-चार कोस दूर वाजूमे होकर चला। 4 वाजमे चले जा रहे थे कि मागमे एक गडरिया मिला। 5 पीठ पीछे एक बकरा मारा हुआ था। 6 प्राण तो निकल गया था परन्तु था सावित । 7 सो कये पर लिए हुए पा रहा था। 8 उसने लाकरके वकरा दिया। 9 यह क्या कह रहा है ? 10 यह वकरा अपन जितने कोसो पर जाकर खायेगे, उतने ही वो मे अपन नरेको मार सकेंगे। ॥ तव बकरा ले लिया और उसकी कीमतके पाच छकड गडरियेको दिये । (छकडएक पुराना सिक्का) J2 गडरिया लेता नहीं। 13 अरे ! लेले, हमारे लिये शकुन है। 14 तव उसने ले लिये। 15 वारह कोस पर भिणियाणे गावमे जाकर बकरा खाया। 16 खानेकी जल्दी वहुत की परन्तु उघर पूरी तरह खा नही पाय । नरेकी चौकियां जगह-जगह पर बैठी हुई है। 17 नराने जव गढ मे प्रवेश दिया तव खींवकी स्त्रीने कहा कि वेटा । कैर-काटा खाते हुमोको क्यो निकाल रहा है ? (कैर-काटो खावणो= महा० १ जैसे तैसे गुजारा करना। २ साधारण व हलके भोजन पर निर्वाह करना। ३ सुन्वते निर्वाह करना।) 18 हम यहां गेहूं खायेगे (मीज करेंगे)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात राजलोक बाहर काढियो ।' पोकरणारा लोक सर्व वाहडमेर जाय रह्या । वाहडमेर जायनै दोड़-धाव करण लागा। पोकरणरो देस नरै वसायो । सातलमेर कोट करायो । नरासर तळाव करायो। देस प्राछो रस आयो। ईया दोडां घणी ही कीवी , पण दखल न पहुचियो । यु करता लूको बारह वरसरो हुवो। भालै राव , घोड़े असवार हुवौ। ताहरा पोकरणरै देसनू पोकरणा दखल कीवी। एकरसू सिगळा ही' पोकरणा बाहडमेरसू चढिनै अाया। राव खीवो, चाचो, वरजांग, लूको प्राय नै पोकरणरो वित लियो। ताहरा वासै' चढियो। नरो जाय पुहतो। ताहरां लडाई हुई। साथ काम प्रायो। राव खीवैरा रजपूत ही काम पाया। नरैरा ही रजपूत काम आया। ताहरा पोकरणा नीसरिया, ताहरा नरै लूकैरै वासै घोडो दियो । ताहरा लूकेन जाय पुहतो। लूकै वहत हीज तरवार वाही। इसडी पळसेटी पसवाडे हुय नै वुही, धड सौं माथौ अळगो जाय पडियो। धड घोडो लिये हीज गयो। पांवड़ा दोय सौ ऊपरा जावतो धड पडियो । पोकरणा सारा ही नरानू मार, भिणीयाण जाय उतरिया ।13 ____नरैरो साथ पोकरण आयो। नरै वासै सतियां हुवण लागी4, ताहरा नरैरो माथो नही, ताहरां सतिया पण हुवै नही । ताहरा पोकरणां कना नरारो माथो मगायो। ताहरां पोकरणां कह्यो-'म्हे नरैरो माथो ल्याया नही। धड़हू परै पावडा सौ दोय माथो पडियो छै । एक कैर, एक गागवण, एक झाड़रो पेड छ, उवा झासा माहै नरैरो माथो पड़ियो छै ।" थे जाय नै ल्यो ।' ताहरां I तव स्त्रियोको बाहर निकाल दिया। 2 बाडमेर जाकर दौडे-धावे करने लगे। 3 देश भली प्रकार आधीन हुआ। 4 इन्होने दौड-धूप बहुत ही की। 5 भाला चलाने मे कुगल। 6 एक वार। 7 सभी। 8 गो-धन। 9 पीछे। 10 जा पहुचा। 11 चलते हुए ही लकेने तलवारका प्रहार किया। 12 वाजूमे होकर ऐसी आडी तलवार चली जिससे घडसे सिर अलग होकर जा गिरा। 13 भिणियाणे गांवमे जोकर ठहरे। 14 नरेके पीछे उसकी स्त्रिये सती होने लगी। 15 पासमे। 16 एक करील, एक गागवण इन क्षुपोके अतिरिक्त एक वृक्ष और है उन झाडियोके अन्दर नरेका सिर पड़ा हुआ है। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात उठ गया।' उठाहू माथो लेनै पोकरण पाया ।' वांस सतियां हुई। पछै नरैरै टीके गोयद बैठी। हमै रोज लडायां पड़े। धरती वसै नही। ताहरां राव सूजैजी गोयदनू तेडायो। पोकरणान् तेडाया। धरती प्राधो-आध वैहच दीवी। कोट नरैरै माथै साटै कियो ।' उवै जाळसौ सीम पडी।' ___ अजेस पोकरणां कनै तदरी सीम छ । राव नरो सवत् १५५१ चैत्र वदे २ काम पायो । गोयदरै बेटा जैतमाल नै' हमीर हुवा। आधी फळोधीरी धरती हमीरनू दीवी । जैतमालनै सातळमेर दियो। पछै कितरेहेक दिने दोन्युई कनांसू गढ राव मालदेजी लिया । ॥ इति नर खीमैरी वात सपूर्ण ॥ I तब वहां गये। 2 वहांसे सिरको लेकर पोकरण आये। 3 घरती आवाद नहीं होती। 4 बुलाया। 5 वरावर प्राधी-साधी धरती दोनोंमे वांट दी। 6 गढको नरेको सिरके बदले दिया गया। 7 उस जाल वृक्षकी सीमा निर्धारित हुई। 8 पोकरणोके पास अभी तक उन समयकी निर्धारित सीमा है। 9 और । 10 पीछे कितने ही समयके बाद दोनोंके पाससे गव मालदेवने गढ ले लिये। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ।। अथ जैमल वीरमदेवोत नै राव मालदेरी वात लिख्यते वीरमदे देवलोक हुवो, ताहरां मेडतैरो टीको जैमलन हुवो। ताहरां राव मालदेजी जोधपुरसौ कहाडियो। जैमलन कह्यो-'मो सारीखा थारे दुसमण छ, अर तू चाकरानू सोह पडगनो मतां दे । क्युही खालसै हो राख । ताहरा जैमलरै ईडवो पावै अरजण रायमलोत । ताहरा जैमलजी अरजणनू आदमी मेलियो', कह्यो-'भाईनू बोलाय ल्यावो।' अर अरजणनू पण हुतो 'तेआये घरे नावतो, जैमलजी कनै जावतो।" आदमी आयो ताहरां अरजण गांव हुतो। ताहरां आदमी आयनै कह्यो-'अरजणजी थांनै जैमलजी बोलाया छ। रावजीरो जोधपुरसू कागद आयो छै, सु आप हालो । ताहरा अरजणजी बोलिया, कह्यो-'राज ! रावजी कागद मे काढूं लिखियो छै ?'10 ताहरां कह्यो-'रावजी लिखियो छ, सगळो ही मुलक चाकरांनूं देवै छै, पर क्युही खालस ही राखै छै ? अर वळे इसड़ो कोई छ जु कोई विचे ही ऊभो रहै ?'12 ताहरां अरजणजी कह्यो‘राज ! म्हारै पटो सबळो छै, हूं ऊभो रहीस ।13 ताहरां वळे कह्यो-'इसड़ो कोई छै जु विचमें ऊभो रहै ?' ताहरां अरजनजी वुरो मानियो 14 एकरसौ तो न रहै ।" यु कहै-'रावजी ! म्हे अर थे लडा ताहरा कोई बीच ऊभो रहै ?' ताहरो अरजणजी कह्यो-'जी, राज । हूं ऊभो रहीस । म्हारो ईज पटो सबळो छ। I कहलवाया। 2 मेरे समान तेरे दुश्मन है और तू अपना सभी परगना चाकरोको मत दे। 3 कुछ खालसेमे भी रख । 4 तब जैमलके अधिकारका ईडवा गांव अर्जुन रायमलोतको मिला हुआ था। 5 भेजा। 6 और अर्जनको यह प्रतिज्ञा थी। ? बुलाने पर घर पर नही जाता, जैमलजीके पास जाता। 8 अर्जुन गाँव गया हुआ था। 9 सो आप चलिये। 10 रावजीने पत्रमे क्या लिखा है ? II सभी। 12 और फिर कोई ऐसा भी है जो वीचमे खडा रहे। 13 मेरे पट्टा वडा है, अत मै खडा रहूंगा। 14 तव अर्जुनजीको कुरा मालूम हुआ। 15 एक बार तो ऐसा विचारा कि नहीं रहें। 16 मैं खडा रहूँगा। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरां अरजणजी डेरै आयने कह्यो-'जु म्है म्होटो (बोल) बोलियो छ कहै छै-'रिणकताल पलकेकमे भलो छ जकणरो भलो। भूडो छ जैरो भूडो भूल जाय छ । ताहरा साखलो १ जाळसूरो वास हुतो। ताहरां उदै कहियो-'जी, याद हू करावोस । ताहरा कहियो-'सावास, वडा रजपूत ।' ताहरा कहियो-'सावधान हुवो।' ईयारै प्रा लागी हुतीज । आसोजी दसराहो पूजि अर मुहिम कीधी।' 'ताहरां वडी फोज कर मालदेजी आया हीज । गाम गंगार. प्राय डेरा किया ।' फोज च्यारू ही तर्फ दोड़ो छ । मेडतैगे रैत लोग खसीजै छै । देस मारीजै छ। देस विध्वंसीजै छै ।10 अर अचळो रायमलोत कहै छै-'जु जैमलजी मोनू बोलावै छै, पिण हू विहाणरो दिन अठै बैंठो छू अर जैमलजी घणो गाढ करै छै ।11 अचळा | तू पाव, पण वेगो आव ।' ताहरा अचळे कहाडियो-'जु प्रथीराज जो, अखैराजजीनू बोलावो, जु विहाणरो दिन ऊभौ रहीस । जे म्हातूं मया करो तो भली करो, नही तर सवारै हू जैमलजी भेळो होईस 112 ___ ताहरा ईंया कह्यो-'पैहली जैमलनू मार पछै अचळानू 'मारस्या ।1 अर जो भेळा हूसी तो भेळा हो मारस्या ।16 तरै जैमल कहै छ-'ज रावस्यू अर म्हारी सधै तो भला ।” ईयारै परधान जैतमलरै ऊपर मुदार ।18 अखैराज भादावत, चांदराज जोधावत, भादो ही मोकळरो, जोधो ही मोकळरो, काका-बाबारा।' ईंयारै ____ I मैंने अहकारपूर्ण कहा है। 2 भलेका परिणाम भला और बुरे का दुरा, इस बातको भी पल भर मे भूल जाता है। 3 जालसूका एक साखला इनके यहां रहता था । 4 में याद दिलाळगा। 5 इनको यह खटक गई थी। 6 आश्विनके दशहरा की पूजन करके गेना तैयार की। 7 गगारडे गाव मे पाकर डेरा डाला। 8 मेडतेकी प्रजा भाग रही है। 9 देशमे लूट-पाट की जा रही है। 10 देशका विध्वम किया जा रहा है। Hोर जैमनजी बहुत गर्व कर रहे है । (यहा 'गार'का अर्थ 'मनुहार' या 'खुशामद' होना चाहिंग)। 12 आप हमारे पर कृपा करते है तो विशेष प्रकारसे करिये, नही तो मैं कल मलजीये माय हो डाऊगा। 13 इन्होने। 14 मार करके। 15 मार देंगे। 16 पौर जो मापने हुया तो उसे भी साथ में मार देंगे। 17 रावमे हमारी पट जाय तो प्रच्छी बात है। 18 दारोमदार । 19 काका-बाबाके वराज । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ११७ माथै मेडतैरीमुदार। ताहरांजैमलजी कह्यो-'अखैराजजी ! थे' जावो।' ताहरां अखैराजजी कह्यो-'राज ! मोन काहिणन मेलो ? अर जे मोनू मेलो छो तो लड़ाईरो सराजाम करो। ताहरा अखैराजजी, चांदराजजी हालिया। ताहरा प्रथीराजरै अस्वैराजसौं क्युहेक नातरो हुतो ।' ताहरां } ठाकुर प्रथीराजजीरै डेरै पाया । प्रायनै प्रथीराजजीनू राम राम कहाडिया । ताहरां प्रथोराजजी कहाडियो-'हू सपाडो करू छू', पछ हूई दरबार आईस ।" प्रथीराजजोरै डेरै तरवारयांन वाढ लागै छ । केई रजपूत बदूकारी चोटा करै छ ।' घणू ऊधम होय रह्यो छै ।10 ताहरा झै सिरदार देखनै 1 हैरान हुवा। इतरै माहै प्रथीराजजी पैहर वागो नै तैयार हुय, बाहर पधारिया। ईया ठाकुरानू लेनै दरवार आया । प्रागै राव मालदेजीरो दरबार जुडियो छै । ईंयां सिरदारां जाय राव मालदेवजीसू मुजरो कियो । एकै खवै नगो भारमलोत बैठो छ, एकै खवै प्रथीराजजी बैठा छै।15 ईयां सिरदारानू सनमुख बैसांणिया। ताहरां प्रथीराज बोलियो-'रावजी सलामत | 17 मेड़तेरा प्रधांन आया छ ।' ताहरा रावजी कहै छै । कह्यो-'परधान कासू कहै छै ?'18 ताहरा प्रथीराज बोलियो-'इयु कहै छै महाराज ! 19 म्हानू मेडतो दीजै । म्हे रावळी चाकरी करस्या । ताहरा रावजी कह्यो'मेडतो न देवा । दूजो पटो देस्यां ।'21 इतरै माहै अखैराज बोलियो'राज कहो छो, किना किहीरो कहियो कहो छो ? 22 जु मेडतो दे I तुम । 2 मुझे क्यो भेज रहे हो? । 3 और जो मुझे भेज रहे हो तो लडाईकी तैयारी करो। 4 कुछ नाता था। 5 ये। 6 मैं स्नान कर रहा हूँ। 7 फिर मैं भी दरवारमे आऊगा। 8 पृथ्वीराजजीके डेरेमे तलवारोको शान चढाकर उनकी धारे तेज की जा रही है। 9 कई राजपूत बदूकोसे निशाने लगा रहे है। 10 बहुत ऊधम मच रहा है। II देख करके। 12 इतनेमे। 13 इन । 14 प्रणाम किया। 15 एक बाजू नगा भारमलोत बैठा हुआ है, तो दूसरी एक वाजू पृथ्वीराजजी वैठे है। 16 विठलाया। 17 रावजी चिरजीवी हो। 18 प्रधान क्या कह रहे हैं ? 19 महाराज । ये यो कह रहे हैं। 20 हम आपको चाकरी करेंगे। 21 दूसरी किसी जागीरीका पट्टा कर देंगे। 22 आप स्वय ही विचार करके कह रहे है अथवा किसीके कहनेसे कह रहे हैं ? Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात 1 कुण, अर ले कुण ?± थानू जोधपुर दियो छे, तिकै म्हांनू मेड़तो दियो छै ।" ताहरां नगो भारमलोत बोलियो - 'जु थानू रावरा पांडव ही मारसी, थे चेतो करो । ताहरा चादराज बोलियो, कह्यो - 'जी, रावजीरा पांडव जैमलजीरा पाडवानू मारसी, क जैमलजीरा पाडव रावजीरा पाडवानू मारसी । * म्हांनू थे मारस्यो, कम्हे थानू मारस्या ।" इतर मालदेजी बोलिया - 'हो प्रथीराज | मेडतैरा प्रधान हीज छै, कना और ही छै ?" ताहरा प्रथीराज को- 'जीवे महाकह्योहीज छै । 8 तरं रावजी कह्यो - 'मेड़ते प्रधांनारा पग 4 18 राज ! पातळा भाई | 9 औ इतर मांहै खीज अर ऊठिया । " ताहरां अखैराज दुपटो झाटकियो, सु दुपटो ताग ताग न्यारो हुय गयो, पर चादराज घोड़ैरो ऊकटो खांचियो, सु च्यारे ही पग घोड़ेरा ऊचा आया । 11 ताहरा तो ठाकुर चढ मेड आया । वासँ रावजी आापरै लोका कना दुपटा घणा ही झाटकाया, पण इसो तो जैमलजीरै रजपूत ही भाटकियो । 12 ग्रै 13 ताहरा ठाकुर जैमलजी कनै आया। आयन जैमलजी ग्रा वात कही । ताहरां जैमलजी कह्यो - 'मोनू मरणसौ क्युं डरावो ? 18 या वात हवणकी नही । ताहरा रावजीरा घोडा गगारडे तळाव पाणी पीवणनू आया हुता सु ईसरदास ले आयो । ताहरा जैमलजी 114 मेडता कौन तो दे और उसके देने से ले कौन ? 2 तुमको जिसने जोधपुर दिया है उमीने हमको मेडता दिया है । 3 तुमको तो रावके सईम मारेंगे, होगमे श्राकर बात करो । 4 या तो रावजीके नईम जैमलजीके सईसोको मारेंगे या जैमलजीके सईम रावजी के सोको मागे | 5 हमको तो तुम मारोगे या हम तुमको मारेंगे । 6 इतनेमे । 7 मे प्रधान ये ही है अथवा घोर कोई है 8 चिरजीश्रो महाराज । ये ही हैं । प्रवान पाव पतले है भाई । (कमजोर हैं) 11 राजने दुपट्टा भटका मो उसके ताग ताग घोटा तग सीचा नो घोडेके चारों ही पाँव ऊपर उठ गये । 12 परतु ऐसा (वैसा ) तो के राजपूत ही लगा सके थे। 13 मुझको मरनेसे क्यों डरा रहे हो ? 14 यह वान होने को नहीं । 9 10 इतनेमे ये गुस्से होकर उठे । अलग हो गये और चादराजने Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसोरी ख्यात [ ११६ कह्यो-'वडो चौड़े पाडियो।' ताहरा थे जांणो नही, राव थांसू टळे नही ?'2 बीजै दिन लगती ही फोज आई । पछै बेऊ फोजांरी अणी मिळी । गोळी दारू छूट छै ।' ताहरां अरजन रायमलोतनू उवै" रजपूत बोल याद करायो । अर कहियो-'राज । थे कहता हुंता 'जुम्होटो बोल बोलियो छ,” सु तिका वेळा आज छ ।” ताहरां अरजनजी नगै भारमलोतरै मुंहडै आयो।' नै इतरैमें अखैराज वधनै रावरा हाथी हुता तिकार मुहडै आगै आयो । ताहरां अखैराज हाथियां दोळौ हुवो। ताहरां अखैराजरै घावसू हाथीरी दोय पासळी भागी।11 ताहरा अखैराज कहियो-'म्हारै तो प्रथीराजसौ काम छै ।' इतरै मांहै प्रथीराज बोलियो । कहियो-'खाटरा ! मोडौ क्यु आयो ?'12 ताहरा अखैराज बोलियो-'रावजीरा हाथियांरी चाकरी कीधी।' इतरै माहै प्रयागदास भैराकी चढियो थको आयो। घोड़ो सरवरतां थको हीज जैमलजीनू प्राय सलाम कीधी।14 इतर जैमलजी बोलिया-'पार्व प्रयागियो । इतरै वास्तै ईयेरा गुना ही माफ करतो थो। इतरै मांहै तो राव मालदेजीरी फोजरा माटी आया। अर प्रयागदासरै माथै माहै घावारी चौकडी पडी छ, अर उवै फोजांरो वांसो कियो।" इतरै मांहै जाय पहुतो अर बरछी तोली ।18 कहियो-'रावरै माथैमे धू ।' इतरै मांहै तो बरछी कसीसी।1' ताहरां ___I खूब चौडेमे धाडा डाला। 2 अब भी आप नही समझे कि राव प्रापसे टलेगा नहीं। 3 दूसरे। 4 फिर दोनो सेनाप्रोकी अनियें मिली। 5 गोलियें बारूद छूट रहे है। 6 उस । र सो वह समय आज है। 8 सम्मुख आया । 9 और इतनेमे अखैराज जहा रावके हाथी थे आगे बढ कर उनके सामने आया । 10 तब अक्षराजने हाथियोका पीछा किया । II अखैराजके घावसे एक हाथीकी दो पसलियां टूट गई । 12 खटरे । देरीसे क्यो आया ? 13 इतनेमे प्रयागदास ऐराकी घोडे पर चढा हुआ आया। 14 घोडे पर सवार और सरपट दौडते हुए पाकर जैमलजीको जुहार किया । 15 इतनेमे जैमलजी बोले--'प्रयाग आ रहा है। इसीलिये तो मैं इसके दोष माफ कर दिया करता था। 16 इतनेमे तो राव मालदेजीकी सेनाके मनुष्य आ गये। 17 और उसने फोजोका पीछा किया। 18 इतनेमे तो जा पहु चा और बर्थी उठाई। 19 इतनेमे तो वर्ची फिसल गई। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] __ महता नणसोरी ख्यात कोई परमेश्वररो ख्याल हुवो, जु कबाण काढनै रावजोरै गळे माह घालण करै । ताहरा एक वेळा तो कबांण ऊपर सै रहो गळारै ।। बीजै फेरै घोडैरै चावखो मारने कवाण गढ माहै घाती । तरै किहीके वासासू आयनै प्रयागदासनू घाव कियो । ताहरा प्रयाग दोय टुकडा होय पडियो । अर कवाण राव मालदेजीरै गळे माहै हीज रही। अर उवै अाघा होज गया । अर प्रो हेठो पडियो। प्रथोराज लडै छ, नगो भारमलोत लडै छ। राव मालदेजीरी गकीरी फोज सरव भागी। दोय सिरनार लडै छ । ताहरा हीगोळो पीपाडो प्रथोराजजीरै चाकर हुतो, तिकणनू प्रथीराजजी तरवार बगसी हुती । ताहरा हीगोळे कहियो-'प्रथीराजजी ! आप तरवार बगसी म्हनै, सो द्यो।' ताहरा प्रथोराजजी कह्यो-'रे, हीगोळा । रूडी वेळा माहै मागो ।' पण नीलैरो असवार श्रावै छै, सु सही सुरताण जैमलोत आयो ।' प्रायन, प्रावतै ही प्रथीराजन वग्छी वाही।10 ताहरा प्रथीराज बरछी टाळ नाखी ।। कहियो-'गीगा | तू नाव, थारै बापन कहि, ज्यु प्रथीराजन घाव करै ।2 पाछै प्रथीराज कडियासू तरवार तोड़नै हीगोळे पीपाडनूं बगसी । ताहरां कहियो-'भलो प्रथीराज । मारवाड़रो सोमत ! 14 ताहरां प्रथीराजजी कहियो-'ना भाई | कुवर मेडतेरो ही भलो ।' प्रथीराज बडो रजपूत । सु प्रथीराजजीरै साम्हा लोह न लागतो, जोगीरो वरदान हुतो। ताहरा अखैराज भादावत वांसासू I तब परमेश्वरने उसे क्या सुझाई सो कमान निकाल कर रावजीके गलेमे डालने लगा । सो एक वार तो वह गलेके ऊपर ही रह गई। 2 दूसरी वार घोडेके चावुक मार कर गलेमे डाल दी। 3 सत्र किमीने पीछेमे आकर प्रयागदास पर प्रहार कर दिया । 1 और वे लोग दूर चले गये। 5 और यह नीचे गिर गया। 6 पीपाडा हीगोला पृथ्वीराजजीका वाकर या। 7 उसको। 8 रे हीगोला । अच्छे समय पर तैने तलवार मागी। 9 परतु नीले घोडे पर सवार निश्चय ही मुरतान जैमलोत पाया दिखता है। 10 वींका प्रहार किया। । पृथ्वीराजने बीको टाल दिया। 12 और कहा- वत्स | तू मत श्रा, तेरे वापको जाकर कह मो वह आकर पृथ्वीराज पर घाव करे। 13 पीछे पृथ्वीराजने अपनी कमरमे वंची तलवारके पट्टे को तोड कर हीगोले पीपाडेको वकसीम करदी । 14 हीगोलाने कहा- 'वाहरे पृथ्वीराज । मारवाड़के सामत ! 15 पृथ्वीराजजीके सम्मुख कोई घाव नहीं कर सकता था, उसे योगीका वरदान था। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात . [ १२१ आय अर प्रथीराजजीन लोह वाह्यो।' ताहरां प्रथीराजजी कह्यो'फिट रे भादैवाळा ! भी हांडी चाटी । ताहरां कहियो-'हांडी तो वडे घररी चाटो । महैि खीच घणो। ताहरां प्रथीराजजी उठे काम आया। नगो भारमलोत पण काम आयो। राव मालदेजीरी फोज भागो। ___ ताहरां जैमलजीनू वधाई दीधी। कहियो-'जी ! राव मालदे भागो।' ताहरां जैमलजी कहियो-'रे छाती आगासू खिसियो छै, मेडतै गयेरी वधाई द्यो।' ताहरां नगारा राव मालदेजीरा पडाऊ हाथ आया। ताहरां जुगलो मेडतेरो बांभी हुतो, तिण साथ नगारा देनै मेलियो ।' जाहरां ऊ बाभी गाम लाबियारै कनारै सै गयो।' ताहरां बांभी दीठो'नगारा तो बजाय लेवां । भै तो राव मालदेवरा नगारा छ, सो परहा जासी । ताहरां बाभी नगारो बजायो तरै झै दीठो जाईयैरै जे जाइजै ।' ____ ताहरां चादै कहियो-'म्हारो भाई छै। थे इतरा किहाणनू खडभड़ो । झै हू समझाईस 11 तरै कहियो राव मालदे-'चांदा ! म्हानू जोधपुर पुहचाय किणही तरह ।'12 ताहरां चांदै कहियो-'थे भोमता मानो, कोई ईश्वर तो न छै ।13 जैमलरो भय थे मता14 करो। आपनू जोधपुररै कोट दाखल हू कर देईस । ताहरा चांदौ I अखैराज भादावतने पीछेसे पाकर प्रहार किया। 2 धिक्कार है रे भादवाला। अच्छी हडिया चाटी रे | 3 उसने कहा--'हडिया तो वडे घरकी चाटी है और उसमे खीच वहुत है । 4 छाती पागेसे दूर हुया है, मेडते गया होगा, वहाकी वधाई दो। 5 राव मालदेजीके नगारे भागते हुअोके पीछे पडे रह गये थे सो हाथ लगे। 6 तव जुगला नामका मेडतेका एक भाभी था उसके साथ नगारे वापिस भेजे। 7 तव वह भाभी लाविया गावके पासमे होकर लिकला। 8 भाभीने देखा नगारे तो वजाले। 9 नगारे राव मालदेके है सो तो उनके यहा जायेगे ही। 10 तुम इतने काहेको घबराते हो ? II इन्हे मैं समझा दूगा। 12 चादा । मुझे किसी प्रकार जोधपुर पहु चा दे। 13 तुम उससे इतने डरते हो वह कोई ईश्वर तो है नही? 14 मत। 15 आपका जोधपुर गढके भीतर प्रवेश मैं करा दूगा। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] मुहता नैणसोरो ख्यात राव मालदेजीरै साथै हुयनै घोडा, हाथी, घायल हुवा हुता' सु जिके सरब साथै लेनै राव मालदेजीनू जोधपुर पहुचाया । राव मालदेजी जोधपुर जाय बैठा । जमलजी मेडतमे सुखसौ राज कियो । ॥ इति मालदेजी जमालरी वात सपूर्ण ।। I जो घायल हो गये थे। 2 उन सवको । Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीगणेशायनम ॥ अथ वात सोहै सींधलरी सीहो सीघळ कमळां-पावा रहै ।' सीहैरै घोड़ा सरब मर गया। एक दिन सीहो बैठो छ । राजपूत सरब बैठा छ। ताहरां सीहो बोलियो-' ठाकुर | घोडा तो नही। ताहरां सीहै पूछियो-'केही घोड़ा छै ही ?' ताहरा राजपूता कह्यो-'राज ! गाम धूळहरै घोड़ा छ ? पिण गोयद कूपावत अोथकै रहै छै । कहियो-'गोयंद मारो तो घोड़ा हाथ आवै ?' ताहरां सीहो कहै-'घोडा तो प्रांणणा। ताहरां सीहो चढियो । चढनै गांम घूळ हरै आयो । प्रायने गोयंद कूपावतनू मारियो । २०० घोडा आणिया ।" _____ ताहरां बीजै दिन सीहो चढिनै माडहै सोझतरै गांम गयो। उठे महेस कूपावत रहतो हुतो। ताहरां सीहो प्रोथकै गयो ।' हथियार छोडिनै कहियो-'म्हानू खीच जीमावो।' मोसौ तो प्रो काम वण आयो । ताहरा महेस खीच जीमायो नही ।' ताहरां आ वात माडण सुणी। ताहरा माडण कहियो-'महेस मूडो काम कियो । जे सीहो आयो हुतो तो खीच जीमावणो हुतो।10 महेस बुरो कियो। हिवै माडण ही दीवाणरो चाकर अर सीहो ई दीवाणरो चाकर ।11 ताहरा भांमैसाह दीवांणनू गोठ कीधी । सु पुडियो एक १ मोतियासू भर भरनै पातळा माहै मेलियो । सु मेवाड़ा अमराव ___ I सीहा सीधल कमला-पावा गावमे रहता है। 2 किसीके घोडे है भी ? 3 परतु गोविंद कूपावत वहाँ रहता है। 4 घोडे तो लाना ही। 5 दोय सौ घोडोको ले पाया। 6 तब सीहा वहाँ गया। 7 शस्त्रोको छोड करके बोला-मुझे खीच जमाइये (दड दीजिये)। 8 मेरेसे तो यह काम बन गया है। 9 तब महेशने उसको खीच खिलाया नही (कोई दड नही दिया)। 10 महेशने बुरा काम किया । जो सीहा पा गया था तो उसे जरूर खीच खिला देना चाहिये था। II मांडण भी दीवारण (राणाजी)का चाकर और सीहा भी दीवारणका चाकर | 12 भामाशाहने दीवारणको गोठ दी। 13 एक एक पत्तलमे एक एक पुडा मोतियोका भर-भर करके रखा। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात मोतियारा पुडिया ले ले गया। सीहै सीधळ पुड़ियो लियो नही । ताहरा दीवांण बारियांनू पूछियो-'रे पातळा मे क्युही लाधो ही ?'2 कहियो-'जी, और तो पातळा माहै क्युही लाधो नही, अर सीहैजीरी पातळमे मोती लाधा ।' ताहरां अमराव जीम-जीम ऊठिया। ताहरा सीहैरो जोडो' माडण साम्है कियो। ताहरां सीधळ सारा ही बोलिया'भला, हो सीहा । थारा भाग, मांडण ही घस करण लागो ? 4 ताहरा सीहो बोलियो-'माडण मोनू मारसी ।" या वात चौकस हुई।' __यु करता कितरेके दिने सीहै दीवाणरो वास छोडियो। ताहरा सीहो जायनै जाळोर गजनीखानरै वास रहियो । डोडियाळ पटै दीधी। ताहरा मांडण जाणियो-'हिवै' सीहो गयो। ताहरा माडण पण दीवाणरो वास छाडियो। ____ ताहरा मांडण मारवाड आयो। कले वीदावत कनै गयो । जायनै कटारी छोडी । माडणजी कहियो-'कला ! तू वीदैरो बेटो, जे तू कटारी बधाडै तो बाधू ।'10 ताहरां कलो जितरो11 आपरो12 साथ हुँतो, तितरेसी' चढिनै साथै हुवो । ___अठै मारगमे विचे उदेसी देवडो रहै बाहरली-पालडी ! ईयै देवडै सिरदाररै साथ घणो । भला भला राजपूत । सो सीहैरै परणियो अर माडणरै ही उदैसी परणियो।16 माडणरी बेटी सुहागण, सीहैरी बेटी दुहागण ।” ताहरी मांडण उदैसी कनै चारण मेलियो अर कहियो-'बाईनू कहजै ज्यु उदैसोनू गुदरावै ।" थाहरै निलाड दही ___1 केवल सीहे मीधलने पुडिया नही लिया। 2 अरे । पत्तलोमे कुछ मिला भी ? 3 जूतियोका जोडा। 4 धन्य, यो सीहा | तेरा भाग्य | मांडण भी युद्धकी तैयारी करने लगा? 5 मांडण मेरेको मारेगा। 6 डोडियाल गांव पट्टे मे कर दिया। 7 अव । 8 पास। 9 जाकरके कटारी छोड दी। 10 मांडणने कहा-'कला । तू वीदेका पुत्र है, शव यह कटारी यदि तू बंधाएगा तो बांधूग।। " जितना। 12 अपना। 13 उतनेके नाय। 14 यहां रास्ते मे बाहरली-पालडी गाँवमे उदयसिंह देवडा रहता है। 15 इस देवटा सरदारके पाम मैन्य दल बहुत । 16 उदयसिंह सीहेके यहाँ व्याहा था और उदयसिंहके यहा भी व्याहा था। 17 मांडणकी वेटी समादृता और सीहेकी वेटी अनादृता। 18 भेजा। 19 वाईको कहना मो उदपसिंहको हमारी ओरसे गुजारिश करे। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२५ मुंहता नैणसीरी ख्यात दियो छ । म्है अठै सै दोडां छां। मांहरै वैर छै । आप मोटा सिरदार छो। आप टाळो करीजसी ।' तितरै सीहैरा गुढा डोडियाळन जावै छै, सीधळावटी छाडी छ। तितरैमे च्यार रजपूत बोड़ा सीहैरा चाकर, तिके रीसांणा छ, तियां सीहो मनावण आयो छै । सीहो आय उतरियो छै। रजपूत आयनै मिळिया । कहियो-'जो, भगत करा, उतरो।" ताहरां सीहै रजपूतांन कहियो-'अठै मांडण नैडो छ। हालो, आपां जाय साथ भेळा हुवां ।" ताहरां रजपूत बोलिया-'सीहाजी ! तोनू चांदनू कुण गोदमे राखै ?10 ताहरा सीहोजी उतरिया । भगतरी तयारी करण लागा रजपूत । ताहरा एक बाकरानू गयो, एक गोहूं, चावळ, घीनू दोडियो । कहियो-'सीहाजी ! पाप म्हारै डेरै पधारो, अर म्हे भगत कियां विना क्युं कर मेल्हां 14 ताहरां उवां15 राजपूतांरी मा साकरन16 गाडै चढी हुती, सो देखै तो बरछियारी झळोमळ हुय रही छै ।” ___अठै माडण टळतो हो, अर बांभणांरा गाडा वेहता हुता,18 तेथ जायनै पूछियो'-'मै गजनीखांनका चाकर हूँ। सीहा सीधळ कहां है सो मुझको बतलायो ?' ताहरा बाभण बोलिया-'पो म्हारो धणी वड़ हेठे बैठो छै, सीहमाल झळहळाट करै ।2° त्यु मांडण घोडो फेरण लागो । त्यु सूरजरी किरणसौ बरछी भळहळी ।। ____ तुमारी ललाट पर दहीका तिलक किया है (हमारे यहाँ व्याहे हो)। 2 यहाँ हमारी शत्रुता है, इसलिये हम यहाँ लूटमार कर रहे हैं। 3 श्राप उसे टाल देंगे (उस ओर ध्यान नही दें)। 4 इधर सीहेके गुढेके लोगोने सीघलावाटी छोड दी है और डोडियालको जा रहे है। 5-6 और इधर सीहेके चार वोडा राजपूत चाकर रिसा गये थे, जिन्हे सीहा मनानेको आया है। 7 यहाँ ठहरें, हम आपके लिये भोजनकी तैयारी करें। 8 निकट । 9 चले, अपन जाकर अपने लोगोके सामिल हो जायें। 10 तुझ चाँदको कौन गोदमे रख सकता है (तुझको कौन शरण दे) ? II ठहरे। 12 भोजनकी। 13 तव एक आदमी बकरे लेने गया और एक दूसरा आदमी गेहू, चावल और घी लेनेको भागा। 14 आप हमारे डेरे पधारे और हम आपकी महमानी किये बिना आपको कैसे जाने दें? 15 उन। 16 शक्करके लिये (?) 17 बछियें चमक रही है। 18 यहाँ मांडण जिस मार्ग पर टल रहा था वहाँ ब्राह्मणोके गाडे चल रहे थे। 19 वहाँ जा करके पूछा । 20 तव ब्राह्मण वोले-यह प्रकाशमान हमारा स्वामी सीहमाल बड वृक्षके नीचे बैठा हुआ है। 21 मांडण अपना घोडा वापिस लौटाने लगा। 22 त्योही सूरजकी किरणसे वर्थी चमकी। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] महता नैणसीरो ख्यात ताहरा वाभण बोलियो-'म्हे मांहरो धणी मरायो। रे वाप । तूं माडण कूपावत, म्है अोळखियो।' पण होणी ।। ताहरा माडण कटक भेळो होयनै सीहै ऊपर नांखिया । इतरैमें रजपूताणी गाडाहू उतर कहियो-'मनाया, मनाया, मनाया रे बाप !' ताहरा डोकरी आपरा वेटान कहियो-'वाला ! सीहो घणा रजपूतांरो ठाकुर छ, भाई । देखो । किसडा हुवो छो ?" ताहरा रजपूत सभिया। भली भात लडिया । सीहो काम प्रायो। राघो वालो ताहरा सीहै कनै हुतो।' पगै खोड़ो हुतो। काठरी घोडी चढियो फिरतो ।11 सु नव आदमी राधैरै हाथा रहिया। ताहरा वरछिये घायो,13 ताहरा घोड़ी नाख दियो । कहियो-'जी, इतरा दिन दाळपाहोरो इण घोडीनू म्है दियो छ, अवै थे देज्यो ।15 राघे वडो पराक्रम कियो। सीहैनू मार माडण कूपावत पाछो वळियो। उठे उदेसी देवडैरो डर । तितरैनू रजपूत चोथो प्रायो।" आयनै कहियो-'मा ! थारो कासू गयो ?'18 कहियो-'जी, महारो क्युही नही गयो, जे वेटा ! तू रहियो तो ?'19 ताहरा रजपूत कहियो-'थारो साबतो ही गयो। हू ____I-2-3 तव ब्राह्मण वोला-'अरे वाप रे 1 मैने अव पहिचाना तू माडरण कूपावत है । हमने हमारे स्वामीको मरवा दिया। लेकिन भवितव्यताको वात है। 4 माडणने अपने कटकके सामिल होकरके मीहाके ऊपर आक्रमण कर दिया। 5 गाडेसे । 6 अरे बाप । मनाना, मनाना, मनाना रे इन्हे (रोकना, रोकना, रोकना रे इन्हे)। 7 तव बुढियाने अपने वेटोसे कहा-रे प्रिय पुत्रो । सीहा अनेक राजपूतोका ठाकुर है, देखना इस वातका है भाई । कि तुम इस समय अपना कर्तव्य कैसा निभा रहे हो? 8 तव राजपूत । तैयार हुए। 9 राघव वाला उस समय मीहेके पास था। 10 लगडा था। I लकडेकी घोडी पर चढा फिरता (लकडीकी बनी हुई टागके सहारे चलता-फिरता था)। 12 नौ आदमी राघवके हायमे मारे गये। 13 तव वछियोके लगनेसे घायल हुअा। 15 तव उसकी घोडीने उसे नीचे डाल दिया। 15 इतने दिन घोडीको दालका पाहुरा मैने दिया है, अब तुम देना । (पाहोरो-बोडेको चनेकी दाल आदि खिलाने के लिए चमडेका वना हुया एक थैला, जिसमे दाल भर कर घोडेके मुह पर चढा दिया जाता है।) 16 पीछा लौटा। 17 इतनेमे चौथा (चौथसिंह) राजपूतं आया। 18 आकरके कहा'म । तेरे क्या गया ? 19 (माने व्यग्य मे) कहा-'वेटा तू वच गया तो मेरा तो कुछ नही गया | 20 'माँ ! अव तेरा सब कुछ गया।' Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १२७ ___ तो काम आईस । ताहरां ऊ रजपूत वांस जायनै काम आयो । · हूक फूटो। मांडण कूपावत सीहो सीधळ मारियो। ___इतरैमे उदैसी पण सुणियो। ताहरां उदैसी कहियो-'मा जाड मांडणरी ! अम्हारी तळहटी सीहो मारियो ?' ताहरा मांडणरी बेटी उदैसीरो पलो झालनं कहियो-'थां कासू करणो ? आपरै वैर फिरै छै ? आपरै माथै दही दियो हुतो। ताहरां उदैसीन पलो पकड बैसाणियो।' ताहरां कहे-'साड मारूं मांडणरो (?) म्हांनं कुरजपूत किया !" ताहरा उदैसीरा रजपूत सारा कोटड़ी प्राण भेळा हुवा छै । ऊभा वाट जोवै छै सिलह किया । धणी प्राव अर चढा । तितरै सीहारी डीकरी निकळी, कह्यो-'रे कुरजपूतां! उवैरा जमाई छ । माडणरी बेटी रोकियो छै ।1 अर थांहीमे कोई रजपूतांणी-जायो छै, किना नही, इण कोटरी लाजरो रखवाळो ?'12 ताहरां ८२ घोडा पायगहरा छोडिनै एके घोडै बे-बे चढिया।13 आठ-वोसी जणां बगतरिया जाय पुहता।" उतर घोड़ाहूं नै घोडा तो छोड़ दिया । प्रागै प्राय साथरै दे हथवासै ढालां नै उतर पडिया, सारो साथ मारियो। कलो वीदावत काम आयो । ५० रजपूतांसू मांडणरो साथ काम आयो । माडण घावै पडियो।” रजपूतां हेठे ___1 में काम आ जाऊगा। 2 फिर वह राजपूत पीछे जाकर काम आ गया। 3 साश्चर्य वात फैली। 4 'माडणरी मा जाड' (एक गाली) हमारी तलहटीमे उसने सीहाको मार दिया? 5 तब माडणकी बेटी (उदयसिंहकी पत्नी)ने उदयसिंहके पल्लेको पकडकर कहा-~~-'तुमको क्या करना है ? अपनी दुश्मनीका बदला लेने को फिरते है ? आपके माथे पर तो उसने दहीका तिलक निकाला है ?' 6 विठा दिया। 7 माडणके सांडको मारू गा । इसने हमको कलकित राजपूत बना दिया । 8 तव उदयसिंहके सभी राजपूत आकर कोटडीमे इकट्ठे हुए है। 9 सिलह किए हुए खडे प्रतीक्षा कर रहे है। 10 मालिक आ जाये और चढाई करे। I इतनेमे सीहेकी पुत्री निकल कर आई और उसने कहा-रे कुराजपूतो | वे तो उसके दामाद है अत माडणकी बेटीने उन्हें रोक दिया है। 12 और तुममे कोई राजपूतानीका जाया है कि नही जो इस कोटकी लाजका रक्षक हो? 13 तव घुडशालाके ८२ घोडोको खोल करके एक एक घोडे पर दो-दो जने सवार हुए। 14 १६० कवचधारी जा पहुँचे। 15 घोडोंसे । 16 और । 17 माडण घायल हुआ। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 2 कर लियो । इसो रजपूतांरो साथरो हुवो । उवै सावता ऊभा छं । 3 1 ताहरा राव चंद्रसेण घूघरोटरा पाहडां हुंतो " सु रावरो साथ आयो । आयनै देवड़ारो साथ सरब मारियो । इसड़ो' मामलो हुवो । जिकण दिनसूहीज' कलैरी सायवी' तूट गई । ताहरा सीधळांसू वेढ करी, तद कलो पनरै वरसारो हुतो । 8 माडरणरा पाटा बाधा । ऊवरियो । 20 सीनू मारियो । ॥ इति सोहे माडणरी वात सपूर्ण ॥ 1 राजपूतोने उसको नीचे दवा दिया । 2 राजपूतोंके सहारसे ढेर लग गया | 3 वे लोग सभी सकुशल खडे हैं । 4 घूघरोटके पहाडोमे था । S ऐसा । 6 उसी दिन से | 7 माहिवी । 8 सीबलोने लडाई की तब कला केवल १५ वर्षका था । मरहम-पट्टी हुई | Io बच गया । 9 माडणके Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। श्री गणेशाय नमः ।। अथ वात रिसलजीरी लिख्यते जद राव चूडोजी काम पाया, ताहरा टोकैरो वखत हुवो। ताहरा राव रिणमलजीनू टीको देता हुंता । इतरै' रिणधीर चूडावत दरबार आयो नै सतो चूडावत बैठो हुतो। रिणधीर सतैनू देख, कह्यो-'सता । तनै टीको देवा, जो क्यु ही देवै तो।' ताहरां सतो वोलियो-'राज | टोको रिणमलजीरो छ । ताहरा रिणधीर कह्यो'राज | दुहाई छ ।" तद' सतै रणधीरन कही-'धरती मा अाध थाने देवां ।' ताहरा रिणधीर पागड़ो छाड आयनै सतैरै टीको कियो । रिणमलजीन कह्यो-'जो पटो लेवो तो प्रावो।' ताहरा रिणमलजी पटो नाकार नीसरिया ।1० रांण मोकल पासै गया। रांण मोकल रिणमलजीरो ऊपर कियो ।1 कह्यो-'सतैनू दूर कर तनै टीको दिरावस्या। तद रांणो मोकल, राव रिणमल चढिया ।12 ताहरा सतो साम्हो आयो अर रणधीर नागोरीखाननू ले आयो। प्रायनै सीम माथै वेढ हुई। नागोरीखांनरै मुहडै आया रिणमलजी 114 अर सतो नै रिणधीर राणे सांम्हा आया। 15 रिणधीर, सते प्रागै राणोजी भागा। नागोरीखान रिणमलजी आग भागो। तद सतरा लोकां कह्यो-'फतै सतैरी ।'16 रिणमलजीरा लोगा कह्यो-'फतै रिणमलजीरी ।' पछे दोनाई भाईया रांम-राम किया । आपस माहै वतळावण हुई।18 रिणमलजी कह्यो-'नागोरोखाननू वळे ले आवज्यो ।'1° ताहरां सतै कह्यो-'थेई रिणमलजी ! राणैजीन पूछज्यो।' I इतनेमे। 2 और। 3 बैठा हुआ था। 4 कुछ। 5 टीकेका अधिकार तो रणमलजीका है। 6 दुहाई देकर कहता हू। 7 तब । 8 धरतीमे आधा भाग तुमको देता हू। 9 घोडेसे उतर कर। 10 इनकार करके निकल गये । II सहायता की। 12 तब राना मोकल और राव रिणमल चढ कर पाये। 13 सीमा ऊपर लडाई हुई । 14 नागोरीखानके सम्मुख रिणमलजी हुए। 15 और सत्ता रणधीर राणाके सम्मुख भिडे। 16 तव सत्तेके लोगोने कहा-'विजय स तेकी।' 17 फिर दोनो भाईयोने परस्पर मिल कर एक दूसरेको राम-राम किये। 18 परस्पर बातचीत हुई। 10 रिणमलजीने कहा-'नागोरीखानको और लाना। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] " मुहता नैणसोरी ख्यात रिणमलजी फेर पाछा रांण मोकल हीज गया। सतो मंडोवर जाय बैठो। राज कियो। कितराहेक दिना दोन भायारै कुवर हुवा।' सतारै नरबद हुदो । रिणधीररै नापो हुवो । कुवर राज करै। ताहरा हेक दिन नरवद विचारियो जु-रिणधीर धरतीरो आध लेवे सो किस वास्तै ? रिणधीरन दूर करीस ।* ताहरा हेक दिन रुपिया ४००) आया। ताहरां नरवद प्राध दियो नहीं। नरबद दाव बैठो। ताहरा एक दिन नापो वैठो हुतो, ताहरा कमाण १ कठाई सौ पेस पाई ।' ताहरा कमाण नापै खांचन तोड नाखी । ताहरा नरबद कह्यो-'भाई! भांजी क्यु ?" ताहरां नापै कह्यो-'देसरो हासल आवे तेमे प्राध मांग । कालि थेली आई, ते मोनू दीवी क्यु नही ?" ताहरा नरबद थेली काढि वाट लीवी । ऊठ घरै गया। नरबद पालीरा सोनगरारो भाणेजो । नापो सोनगरार मुंवाई।13 ताहरां नरबद कह्यो-'मामाजी! थांन हूं व्हालो के नापो?'14 ताहरां कह्यो-'म्हारै तो थे बिन्है बराबर ।15 पिण तू विशेष, जु थारै वास रहा।16 ताहरा नरबद कह्यो-'नाप विस देवो ।' तद कह्यो-'म्हांसू तो ओ काम कोई हुवै नही।17 ताहरा एक छोकरी हुती । तिणनू नरबद लोभ दिखाय, विस दिरायो । नापोजी मुवा ।1 1 कितनेक दिनोके वाद दोनो भाइयोंके कुवर उत्पन्न हुए। 2 एक। 3 रिणवीर धरतीकी आमदनीमे प्राधा भाग लेता है सो किसलिए ? 4 रिणवीरको दूर करू गा। 5 एक कमान कहींसे भेट में आई। 6 नापाने कमानको खींच करके तोड डाला। 7 भाई । इसको क्यो तोडा? 8 उसमें। 9 कल थेली आई थी, उसमेंसे मुझको क्यो नही दिया ? 10 तब नरवदने थेली निकाल कर वांट ली। II फिर वहाँसे उठ कर घरको गये। 12 नरवद पालीके सोनगरोका भानजा। 13 नापा सोनगरोका दामाद। 14 तुमको मैं प्रिय हू कि नापा ? 15 मेरे तो तुम दोनो वरावर हो। 16 लेकिन तू विशेप है, क्योकि मैं तेरे यहाँ रह रहा हू। 17 मेरेसे यह काम नही होनेका । 18 तव एक दामी थी। 19 उसको। 20 विष दिलवाया। 21 नापाजी मारे गये। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरा नरबद रिणधीर मारणनू कटक भेळो कियो ।' ताहरां रिणधीर आपरा आदमी मेलिया ।' खबर करो जु 'कठन कटक भेळो करै छ ? तद आदमिया आय पूछियो कामदार मुसद्दियानू जु'कटक के ऊपर छै ? 4 ताहरां वां' कह्यो-महान तो खबर काई नही।' तद आदमी मोदी आया, बैठा। दयाळ डोड तैसौ नरबदरै आलोच ।' दयाळन रिणधीर छोटै थकैन पाळियो हुतो ।' तद दयाळ मोदीरै रिणधीररा आदमी आया । मोदी वा आदमियानै सारी ही वसत तोल दीधी ; पण मोदी घी देवै नही । ताहरां कह्यो-'रे दयाळ मोदी ! घी दे ।' ताहरां दयाळ मोदी कह्यो-'काळेरै पीळो घणो हो छ ।'10 इतरो1 कहि मोदी घी दियो। पछै रिणधीररा परधान पाछा रिणधीर कन' प्राया। आयनै कह्यो-'राज ! कटकरी खबर काई नही जु किण ऊपर कटक छै ?'13 तद रिणधीर कह्यो-'रे, क्य हो दयाळ मोदी ही कह्यो?' ताहरां कह्यो- राज ! बीजो तो क्यु ही कह्यो नही ।14 म्हे इतरो कह्यो –'मोदी घिरत देवै नही ?' तद मोदी कह्यो-'काळेरै पीळो घणो ही छै ।' ताहरां रिणधीर कह्यो'रे ! दयाळियो बीजो कासू कहै ?16 काळो हू, पीळो म्हारै सोनो, तिक ऊपर कटक ।' प्रो कटक म्हारै ऊपर छ ।'18 ताहरां रिणधीर पण कटक कियो । रोजगार सारानू चुकायो । रजपूता साराही कह्यो-'थाहरै साथ छा ।'19 ___I सेना इकट्ठी की। 2 रिणधीरने अपने आदमी भेजे | 3 किधरके लिए सेना इकट्ठी कर रहा है ? 4 कटक किसके ऊपर है ? 5 उन्होने। 6 कुछ। 7 दयाल डोड जिसमे नरवदका परामर्श (मित्रता) । 8 दयालका रणधीरने उसकी छोटी अवस्थामे पालन किया था। 9 सभी वस्तुएँ तोल कर दे दी। 10 कालेके यहा पीला बहुत है । (साकेतिक भापाका सदेश) II इतना। 12 पास। 13 सेनाकी तयारीके सम्बन्धमे कुछ भी पता नही लगा सका कि किसके ऊपर चढाई करनेके लिए यह सेना तैयार की गई है ? 14 दूसरा तो कुछ नहीं कहा। 15 हमने इतना कहा। 16 अरे । दयालिया दूसरी क्या बात कहे ? 17 काला तो मै हूं और पीला मेरे पासका सोना (धन-माल) है, जिमके ऊपर यह धावा है। 18 अतः यह सेनाकी तैयारी मेरे ऊपर है। 19 सभी राजपूतोने कहा कि हम तुमारे साथ हैं । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात पर्छ रिणधीरजी पण रागैरै गया, रिणमलजी पासै । रिणमलजीनू कह्यो - 'हालो, थाने मडोवररो टीको देराऊ ।" ताहरां रातरा रांणजी पास गया। रिणधीरजी रांणोजी मिळिया । ताहरां राजी को- 'मामोजी । क्यु श्राया ?' ताहरां रिणमलजी कह्यो'म्हानू मडोवर देण श्राया छे । ताहरां रांजी कह्यो- 'म्हे ई आवस्या ।' ताहरा राणजीनू ले 13 4 5 र सतै ऊपर गया । 16 ताहरा नरवदनू सतै कह्यो - 'तू पण नागोरीखांनन् ले आव | " नरवद कूच कर कोस १ गयो, ताहरां रात पडी । हेकलो ही फिर नै पूठो सतैजी पासै प्रायो ।' छानै लुक, ग्रर मा बापरी वात मुणणनू लागो । 8 9 J1 ताहरा सतो सोनगरान कहण लागो - 'सोनगरीजी । नरवद जांणियो, वाप कपूत हुवो, जु रिणधीरजीनू प्राध देवं । पण रिणधीर विना मडोहर रहै नही । 20 हमै ' 1 नागोरीखाननू लेवण गयो छै । सु नागोरीखांन हमे ग्रावै नही । रिणमलजीरा हाथ देख गयो छै ।" भली हुई, हूं कांम ग्राईस । 13 2 14 इतरै नरवद वोलियो - 'जु म्हनै नागोरीखांनरै किसै वास्तै मेल्हो ? हूई लडीस । " म्हें पण पण कियो छै, हूई काम ग्राईस । 15 ताहरां सतै कह्यो - 'हू ग्राही कहतो हुतो । 2" ताहरा नरबद प्राय नगारो दरायो । र लडाई कीवी । नरबद खेत पडियो । 18 साथै इतरा 17 8 छिप करके फिर रिणधीरजी भी रिणमलजीके पास राणाके यहाँ गये । मडोरका टीका दिलवाऊ । 3 मुझे मडोर देनेके लिए आये हैं । 5 तब राणाजीको साथमे लेकर मत्ते पर आक्रमण करनेको गये । को ले था । 7 अकेला ही लौट करके वापिस सत्ताजी के पास था गया । माता-पिता की बातें सुनने लगा । ० सोनगरीजी ! नरवदने जाना है कि उसका बाप भी ऐसा कुपून (कु वाप) हो गया सो रिणवीरको श्रावा राज्य दे रहा है । IO परन्तु रणरके दिना मंडोर ग्रविकारमे रहनेका नही । II श्रव । 12 नागोरीखान व ग्रानेका नहीं, क्योंकि वह रिणमलजीके हाथोका चमत्कार देख गया है । 13 प्रच्छा हुआ, में श्रव कान श्रा जाऊंगा | इननेमें नरवद प्रगट होकर बोला- तो फिर मुझे नागोरीखानके पास किसलिए भेज रहे हो ? 14 में भी लड़ूंगा ।' IS मैंने भी प्रतिज्ञा करली है कि मैं भी काम मा जाऊगा । 16 में यही कहता था । 17 तव नरवदने ग्राकर नगारा वडवाया । 18 नरवद घायल होकर धराशायी हुआ । 6 2 चलिये, आपको 4 हम भी आयेंगे । भी नागोरीखान तू Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १३३ रजपूत भला-भला काम पाया। चौहथ इंदो काम आयो' , पण हुता सु सारा ही निरवाया। जीयो ईदो काम आयो । बीजा' ही घणा रजपूत काम आया। नरबदजीरै घाव लागा, एक प्राख फूटी । नरबदजीनू रांणोजी उठाय ले गया। रिणमलजीनू मडोवर बैसाण, टीको दे, राणाजी पधारिया ।' ताहरा सतोजी पण रांणजीरै गया। उठे जाय देवलोक हुवा ।' तठा पछै रिणमलजी नित-री-नित गोठा करै । तै ऊपर सोनगरांरा परधान देखणनू आया । सोनगरांरी ठकुराई नाडूल ।' ताहरा परधानां पाछा जायनै कह्यो-'का तो राठोड़नू परणाईजै, नही तो राठोड़ थांसू आघो नहीं काढे । राठोड थान मारसी ।1 इसो दीसै छै ।12 तद सोनगरा राव रिणमलजीन परणाइया ।13 लोलैजी सोनगरैरी बेटी परणाई ।14 परणायां पछ ही सोनगरां दीठो-'रिणमल भलो नही ।'15 ताहरां सोनगरां रिणमलजीतूं चूक तेवडियो । सोणहर रिणमलजी पोढिया हुता।" तद लोलैजी रिणमलजीरी सासूनू कह्यो-'आज रामीबाई रांड हुसी । ताहरां रिणमलजीरी सासू कह्यो-'भली हुई। एक दीकरी मुई लागी तो कासू हुवै छै ?'19 इतरै लोलजीनू प्यालो दारूरो दियो ।२० ताहरां लोलोजी तो पोढ रह्या ।।1 1-2 चोहथ ईंदा काम आया, इसने जो पन ले रखे थे सब निबाहे। 3 दूसरे । 4 नरबदजीके घाव लगे, एक प्राख फूट गई। 5 नरबदजीको राणाजी उठवा कर ले गये। 6 रिणमलजीको मंडोरमे टीका देकर राणाजी वापिस गये। 7 वहा जाकर मर गये। 8 जिसके बाद रिणमलजी नित्य प्रति दावतें करते हैं। 9 सोनगरोको ठकुराई नाडोलमे। 10 या तो राठौड़को व्याह दें नही तो राठोड तुमको छोडेंगे नही। II राठौड तुमको मार देंगे। 12 ऐसा ढंग दिखाई देता है। 13 तब सोनगरोने राव रिणमलजीको व्याहा। 14 लोलाजी सोनगरेकी वैटी व्याह दी। 15 व्याह देनेके बाद भी सोनगरोंने देखा कि रिणमलका व्यवहार अच्छा नही है। 16 तब सोनगरोंने रिणमलजी को घोखेमे मारनेकी ठानी। 17 शयनघरमे रिणमलजी सोए हुए थे। 18 आज रामीबाई विधवा हो जायेगी। 19 अच्छा हुआ, एक लड़की मृतककी स्त्री (विधवा) हो गई तो क्या बिगड जाता है ? 20 इतनेमे उसने लोलेजीको शराबका प्याला दिया। 21 तव लोलोजी नशेमें सो गये। Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरां रामीनू आय कह्यो-'जु रिणमलजीसू चूक छै तू कहि, नीसरो।'1 ताहरां रामी आयनै रिणमलजीन कह्यो-'थे नीसरो, था सू चूक छै । ताहरां रिणमलजी ऊपर घावड़िया आया । ताहरां रिणमलजी नीसर गया। ताहरा सासू कह्यो-'म्हारारी ऊपर राखै ।' __ पछै रिणमलजी घरै गया । सवै जायनै सोनगरासू वर मांडियो।' पण' सोनगरा हाथ पावै नही । तद सोमवाररै दिन सोनगरा आसापुरीरै देहरै प्राय गोठ करै, सोमवारिया अमल करें। अमलांसू छकै सु माचा घातियां सूता घोरावै । ताहरा हेक दिन हेरो कर सारां ही सोनगरानू माचा सूतांनू मारिया । मार अर नाडूळाईरै कोहर अखा वेरै माहि नांख दिया ।11 नीचे और सारांहीनू दिया ।12 ऊपर सगा साळानू दिया । कह्यो-'जी, सासूसू कौल छै, ऐ ऊपर देवो' कह्यो हुतो-'म्हारारो ऊपर करै, सु ऊपर देवो ।'15 पछै धरती सारी ही लीवी। __ पछै फेर राणे मोकलसू मिलण गया। रिणमलजी रांणा पास रहै । उठ रहितां चाचे सीसोदियै, महिपै पमार राणैजीसौ चक कियो। तद चूक रिणमलजी लाधो।" पण रांणैनू खबर काई18 नही पडी । हेक दिन चाचो, महिपो मलेसी डोडियेरै घरे गया। ___I तब रामीके पास आकर उसने कहा कि अाज रिणमलजीके साथ चूक है, तू उन्हें कह दे कि यहाँमे निकल जानो। 2 प्रार निकल जाओ, तुमारे साथ प्राज धोखा है। 3 घातक लोग। 4 रिणमलजी निकल गये 1- 5 मेरे वालोको सहायता करना। 6 अब मोनगरोंसे शत्रुता ठानी। 7 परन्तु । 8 प्रति सोमवारको आशापुरी देवीके मदिर जाकर दावतें करते हैं और नियमित रूपमे प्रति सोमवार वहाँ अफीम गोष्ठी करते हैं। 9 अफीमके नगमे चूर होकर खाटोमे सोये हुए खुरटि मारते है । 10 माचो पर सोते हुप्रोको मार डाला II मार करके नाडूलाई के घाखा-वेरे नामक कुएँ मे डाल दिये। 12-13 दूसरे सभी को तो सबके नीचे डाला और सगे-सम्बन्धियो और सालोको सबके ऊपर डाला। 14 कहा कि सासूसे कोल किया है नो इनको ऊपर देयो। IS सामने कहा था कि हमारे बालोंको ऊपर करना प्रत. इनको सबके ऊपर देयो। 16 वहा रहते थे, उस ममय चाचा मिसोदिये और महिपा पंवारने राणाजीसे चूक करनेका विचार किया। 17 रिणमलजीको इस चूकका भेद मालूम हो गया। 18 कुछ भी । 19 एक दिन चाचा और महिरा मलेसी डोडियाके घर पर गये । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १३५ मलेसी रांणजीरो खवास । ताहरां रिणमलजी पण जासूस लगायो हुतो।' कह्यो-'जु देखां, अ किसी वात करै छै ?'' ताहरां मलेसीनूं औ तो घणा ही कह रहिया-3 'जु तू म्हां में भिळ ।' पण मलेसी भिळे नही। ताहरा जासूसा प्राय रिणमलजीनू कह्यो, ताहरा रांणोजी मानै नही। यू करता रिणमलजी तो पूठा मंडोहर पधारिया। वांस राणैजीनू चूक कियो ।' तद राणोजी अचळदास खीचीरी मदतनू गढसू उतरिया अर नीचे डेरो कियो ।' तद महिपै चाचैनू कह्यो-'जु आज राणो मरै तोमरै; नही तो पछै मरणरो नही । ताहरां चाचो, मेरो, महिपो साथ कर आया। तद रांणोजी कह्यो-' खातणवाळा प्रावै सु भला नही, जो गोहुवाळ मांहै आवै ?'' इतरी मरजाद हुँती, झै गोहुवाळां मांहै आवण पावता नही, सो आया ।10 ताहरां मलेसी डोडिय कह्यो-'जु थानू प्रागै रिणमलजी कह्यो हुतो जु ईयार थांसू चूक छै ।11 ताहरां रांणोजी कह्यो-' हरामखोर हणा क्यु ?' ताहरां मलेसी कह्यो-'पागै म्है न तो कह्यो हुतो ? पण हमै तो देखोईज छो।13 पछ वडी लडाई हुई । नव जणा रांणाजीरै हाथ रह्या ।14 पाच जणा राणीजी हाडीजीरै हाथ रह्या ।15 पाच जणा मलेसी डोडियारै हाथां रह्या । राणोजी काम आया। चाचा महीपैरै हळका सा घाव लागा। _1 रिणमलजीने भी उनके पीछे जासूस लगा रखा था। - 2 देखें, ये लोग क्या बातें करते है। 3-4 मलेसीको बहुत कहा कि तू हमारे शामिल हो जा। इस बीच रिणमलजी तो वापिस मडोर चले गये। 6 इनके जानेके पीछे राणाजीको चूक किया । 7 राणाजी अचलदास खीचीकी मददको जानेके लिये गढसे उतरे और नीचे आकर डेरा डाला। 8 तब महिपेने चाचासे कहा कि राणाको आज मारें तो मरे, नही तो फिर मरनेका नहीं। 9-10 ये खातिन वाले आ रहे हैं सो खैर नही, जौ वाले (निम्न वर्गवाले) गेहू वालो (उच्च वर्ग वालो) के साथ आ रहे हैं ? यह मर्यादा थी कि ये (निम्न वर्ग वाले) गेहू वालो (उच्च वर्ग वालो) के साथ पा नहीं सकते सो पा रहे है। II मलेसी डोडियेने कहा कि आपको रिणमलजीने कहा था कि इन लोगोका आपके साथ चूक है। 12 पर ये हरामखोर इस समय क्यो? 13 मलेसीने कहा कि मैंने आपको कहा नही था ? और अव तो आप देख ही रहे हो। 14-15 नौ व्यक्ति राणाजीके हाथ रहे और पाच जने राणी हाडीजीके हाथ काम आये । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ] मुहतो नैणमीरी ख्यात ___कुवर कुभो नोसरियो । वासां वाहर हुई ।' कुंभो पटेलरै घरे गयो । पटेलरै घोडी दोय हुंती । ताहरां पटेल कह्यो-'हेके घोड़ी तू चढि चाल, नै हेक वीजी घोडी वाढि जा। नही तर तनै ईयै घोड़ी चढियो पहुंचसी । ये घोडी वाढो पछै कोई न पहुंचे। ताहरा हेके घोड़ी चढियो, हेक वाढि गयो। लारांसू वाहर आई ।' पटेलनू पूछियो-'कुभो कठे 18 ताहरा पटेल कह्यो-'अठै घोड़ी २ हुती, सु एकण घोडी चढ गयो ।' ताहरां दूसरी घोडी जाय देख तो वाढी पडी छै । ताहरा वाहर पाछी फिरी । रांणो चाचो हुवो।1 महिपो परधान हुवो। कुभो विखै नीसरियो ।13 ___ इतरै रावजी रिणमलजीनू खवर हुई-'जू राणोजी मारिया ।15 ताहरा रिणमलजी घणा सूस लिया ।16 ताहरा रावजी फोज कर मेवाड़ आया । चाचैसू लड़ाई हुई । चाचो भागो। रिणमलजीरी फतै हुई। चाचो मेरो भाग अर पहियडरै भाखरै चढ गया ।” ताहरां राव रिणमलजी रांण कुभैनू टीको दियो।18 ____ अ पण पहियडरै डूगरी चढिया ।19 दौडा करे, पण जोर कोई लागो नही । विचाळे एक भील रहै । तेरो बाप रिणमलजी मारियो हुतो।21 तिकरणरी पीठ वै राखै ।2 1 कंवर कुभा भाग निकला। 2 उसके पीछे वाहर गई। 3 एक घोडी पर तू चढ कर चला,जा और दूसरी घोडीको काट कर चला जा। 4 नही तो इस दूसरी घोडी पर चढ कर दे तुझे पहुंच जायेंगे। 5 इस घोडीको काट दी तो फिर तुझे कोई नही पहुंच सकेगा। 6 तब एक घोडीको काट कर और दूसरी पर चढ कर चला गया। 7 पीछेसे वाहर चढ कर प्राई। 8 कुना कहाँ है ? 9 यहाँ दो घोड़िये थी जिनमे से एक घोडी पर चढ कर चला गया। 10 कटी हुई पड़ी है। If-I 2 चाचा राणा वन गया। महिपा उमका प्रधान हो गया। 13 कुभा मकटावस्थामें भाग निकला। 14 इतनेमे | 15 राणाजी मारे गये। 16 तब रिणमलजीने कई प्रतिज्ञाएं की। 17 चाचा और मेरा भाग कर पहियडके पहाडो पर चट गये। 18 तव राव रिणमलजीने राणा कुभाको टीका किया। 16 ये (राव रिणमल) भी पबिडके पहाडो पर चढे। 20 (पहाडोके) वीचमे एक भील रहता है। 21 जिनके वापको रिणमलजीने मारा था। 23 जिससे वह उनकी (चाचा मेरापी) महायता करता है। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 माह पादिया। मुंहता नैणसीरो ख्यात [ १३७ __यो रहतां हेक दिन रिणमलजी एकल असवार भीलरै घरै जाय नीसरिया ! भील घरै हुतो नही। भीलरी मा बैठी हुती। तैन बैहन कह जाय बैठा । भीलणी कह्यो-वीरा! थे बुरी कीवी, पण थे घरै प्राया । अबै कासू हुवै ? ताहरां कह्यो-'वीरो ! थे घर माहै पोढो । ताहरा घर माहै पोढिया । ___ यू करतां पाचे ही भाई भील आया। आयनै मा नागै जीमणनू आया ।' ताहरां भीलांनू मा पूछियो-'जु, बेटा ! हमार रिणमल राठोड़ आवै तो कासू करो ?' तद कह्यो-'कासू करा? मारां ।' ताहरा वडो बेटो बोलियो। कह्यो-'मा ! जे घरे आवै रिणमल, तो न मारां ।'10 ताहरा कह्यो-'सावांस बेटा ! वैरीनू ही घरा आया न मारिजै ।11 इतरै तो रिणमलजीनू साद कियो-'जु वीरा ! प्राव !'' ताहरा रिणमलजी बाहिर आया। भीलातूं मिळिया। भीलां वडी मनुहार करी । वडी जाबता करी । भीला पूछियो-'जु थे मरणनू अठ किसै वास्तै आया ?14 तद कह्यो-'भाणेज ! म्हन तो खण छै, जु धान चाचै मारियै खाऊं, पण थां आगै मार सकू नही।15 ताहरा भीलां कह्यो-'जु थाने म्है हमै क्यु ही कहां नही।16। ताहरां रिणमलजी पाछा आया । आपरो कटक ले अर पहियडरै भाखरा नीचे आया।' ताहरां भीलां कह्यो-'पहियडरे भाखरां वीच 1 ऐसी स्थितिमे एक दिन रिणमलजी अकेले सवार होकर उस भीलके घर जा पहचे। 2 भील घर पर नही था। 3 उसको 'बहिन' सवोधन करके उसके पास जा बैठे। 4-5 भीलनीने कहा कि भाई । तुमने बुरा किया, पर अब तुम हमारे घर पर आ गये हो, अव क्या हो ? (अव तुमारा कुछ नही विगड सकता।) 6 भाई । अब तुम घरमे जाकर सो जाओ। 7 पाकरके अपनी मा के पास खाना खानेको गये। 8 वेटा । अभी रिणमल राठौड यदि यहा आ जाय तो क्या करो ? 9 तब कहा-'करें क्या ? मार देंगे।' 10 मा । यदि रिणमल अपने घर पर आ जाय तो नही मारेंगे । II शत्रु भी हो, पर यदि वह घर पर आ जाय तो नही मारा जाना चाहिये। 12 इतनेमे तो भीलनीने पुकारा-'वीरा ! प्राजाओ'। 13 बडी रखवाली की। 14 आप मरनेके लिये यहा किसलिये आ गये ? 15 तव कहा-भानजो । मैने यह वाधा ले रखी है (प्रतिज्ञा की है। कि चाचाको मार करके ही अन्न खाऊगा, परन्तु तुमारे होते हुए मार सकता नही। 16 अव हम आपको कुछ नही कहेंगे। 17 अपना कटक लेकर पहियड पहाडके नीचे पाये । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात एक सोहणी छ, सो माणस आवतां देख गाजसी, तद उवै सावधान हुसी। ताहरा राव रिणमलजी हेकाहेक पगडांडी चढिया। वांस' फोज चढी । ताहरां सोहणोरी थह बराबर गया । तद सोहणी बोलो । तद अडमाल तरवाररी दीवी, सो दोय धड हुई पड़ी।" सीहणी मारी। तितरै ऊपरलां कह्यो-'जु सावधान ! सुणज्यो ! सीहणी गाजे छ।" पण सोहणी हेक वार हीज बोली।' तैसू ऊपरलानै वेसास हुवो, कह्यो-'जु हेक वार हीज बोली। किही जिनावरसू बोली हुसी।" इतरै रिणमलजी घोडा नीचै राख, आप ऊपर चढिया ।" चढिनै दरवाजे गया। तद बरछी दरवाजेनं वाही।11 ताहरां भीतरला कह्यो-'ठाकुरा ! रिणमलजीरी बरछी हुवै ?'12 ताहरा सारांही कह्यो-'ठाकुरां ! रिणमलजी छै ।13 ताहरा चाचै मेरैसू लडाई हुई। सीसोदियानू मार पगा नीचे दीना। चाचो मारियो । महिपो जनानी पोसाख कर पहाड़सू कूद गयो । रिणमलजी चाचैरी बेटी परणिया (16 धड़ बाजोट किया।" बरछियारी चंवरी कीवी । और कोई सोसोदियांरी कुवारी बेटी हुती, रिणमलजी आपरा भायानू परणाई। रिणमलजी पाछा पधारिया। I पहिवडके पहाडोमे एक सिहिनी है सो मनुष्यको प्राता हुआ देख कर दहाडेगी, तद वे लोग सावणन हो जायेंगे। 2 तब राव रिणमलजी एकाएक पगडडीसे ही चढ गये। 3 पीछे। 4 तव सिंहिनीके गुफाके वरावरमे गये। 5 तब अडमाल (अडकमल)ने तलबारसे प्रहार किया सो घडके दो टुकडे होकर पड गई। 6 तव ऊपर वालोने (चाचा पादिने) कहा कि सावधान, सुनना, सिंहिनी दहाड रही है। 7 पर सिंहनी एक बार ही बोली। 8-9 जिनसे ऊपर वालोको विश्वास हुया कि एक ही बार बोली है, सो किसी जानवरको देख कर वोली होगी। 10 स्वय ऊपर चढे । I तब दरवाजेको बर्ची मारी। 12 नव भीतर वालोने कहा – 'ठाकुरो । यह बर्थीका प्रहार रिणमलजीके हाथका हो? 13 तब सब जनोने कहा- ठाकुरो । निश्चय रिणमलजी है। 14 सिसोदियोको मार कर पांवो तले दिये। 15 महिपा जनानी पोशाक पहिन कर बाहर निकल गया और पहाटगे कूद गया। 16 रिणमलजीने चाचा की बेटीसे विवाह किया । 17 घडोको (लागो को) विधाकर विवाह-मटपकी चौकी बनवाई गई। 18 बछियोकी चौरी वनवाई । 19 और भी सिसोदियोको क्वारी लडवियां थी उन्हें अपने भाईबन्धुप्रो को व्याह दी। Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नेणसीरी ख्यात ' [ १३९ महिपो ठेसू मांडवर पातसाह पासै गयो । राणोजीनू अर रिणमलजी खबर हुई, जु महिपो मांडव छै । ताहरां राणोजी नर रिणमलजी माडवरै पातसाहनू जोर घातियो जु 'म्हारो चोर देवो ।" ताहरां पातसाह महिपैनू कह्यो - 'महिपा ! हमै तू म्हासू रहै नही । " तद महिप कह्यो - 'म्हने बाँध देवो मतां ।' 13 14 तद महिपो घोड़े चढ नीसरियो । दरवाजे आयो तद घोडे सूधो गढसू कूदियो । घोडो तो पडता मुवो। आप नाठो ।' गुजरातरं पातसाहरै गयो । रांणोजी नैo रिणमलजी पाछा चीत्रोड़ आया । राणोजी सुखसू राज करै छै । रिणमलजी देसरो कांम करै छै । 9 यू करतां हेक दिन महिपो लाकड़ियांरो भारो ले चीत्रोड मां है आयो । महिपैरै एक बंर हुंती 12, अर एक बेटो हुतो । अर वा बैर दुहागण हुती ।" तियैरै घरै प्रायो महिपो । ताहरा बैर ओळखियो । 14 घर मांहै लियो । भीतर बैठो रहै । सूतरो काम करें ।" मोहरी ने जेवड़ा वटै । 16 सो एक मोहरी सवार अर बेटेर हाथ दीवी, कह्यो - ' राणोजीरै नजर करें ।" अर जो पूछे तो कहै, महिपो हाजर छै । तद बेटो हजूर गयो । 18, ताहरां राणोजी पूछियो । ताहरां कह्यो - 'दीवांण ! महिपो हाजर छँ ।' 20 पर्छ महिपो दीवांणसू मिळियो", श्रर कह्यो - 'दीवाण | धरती मेवाड़री राठोडा लीधी ।" दीवांणनू खबर नही ।' ताहरा राणेजीरें मन मे डर पैठो'–'कदास मोनू मार राज लेवै । 22 ताहरा राणजी 1 महिषा यहा माडवके वादशाहके पास चला गया । 2 तव राणोजी और रिमलजीने माडवके बादशाह पर जोर डाला कि हमारा चोर हमको देग्रो । 3 अब तू 5 दरवाजे पर ग्राया । 7 खुद भाग गया । । 12 और वह स्त्री । 15 सूत्रकी वस्तुएँ हमारेसे नही रखा जा सकता । 4 मुझे बदी बना कर मत दो । तव घोडे सहित गढसे कूद गया । 6 घोडा तो गिरते ही मर गया 8 और 1 9 चित्तोड । 10 एक । 11 महिपाके एक स्त्री थी तिरस्कृत थी । 13 उसके । 14 तव स्त्रीने उसे पहचान लिया बनाने का काम करता है । 16 मोहरी और जेवरी वटता है । सँवार करके वेटेके हाथ दी और कहा कि इसे लेजा कर राणाजीके नजर करदे । उसका बेटा राणाजीकी कचहरीको गया । 19 पीछे महिपा दीवान ( राणाजी) से मिला । 20 मेवाडकी धरती रोठोडोने लेली । 21 राणाजी के मनमे भय घुसा । 22 कदाचित् मुझे मार कर राज्य ले ले । 17 सो एक मोहरी 18 तव Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] मुहता नैणसीरी ख्यात साथ भेळो कियो। रिणमलजीसू चूक तेवड़ायो।' तद चूक रिणमलजोरै ड्रम लाधो।' तद डू म रावजीनू कह्यो-'जु राणैजीरै थांसू चूक छ । ताहरां रावजी मांनी नही । पण रावजी कुवर तो सारा ही गढरी तळहटी राखिया। यू करतां हेक दिन रावजीसू चूक कियो। पचीस गज पछेवड़ी रिणमलजीरै ढोलिये दोळी पळेटी। आप पोढिया हुंता ।' १७ जणा ऊपर घावडिया आया । सोळे जणा तो माचैरी फेटसू मुवा ।' अर महिपो भागो । रिणमलजी काम आया । रिणधीर चूडावत काम आयो, रांणजीरा मोहल जाय पडियो । सतो भाटी लूणकरणोत कांम आयो । रिणधीर सूरावत काम प्रायो। बीजो ही घणो साथ कांम आयो ।1 अर जोधाजी भायां समेत तळहटी हता, सु नीसरिया । वांसंसू फोजां वाहर चढी सो पाडेवळे जाती पुहती।13 त?14 चरडो, चांदराव अरड़कमलोत, प्रथीराज, तेजसीह बीजो ही घणो साथ काम प्रायो। रिणमलजीरा कुवर चोबीसै कुसळे मडोहर पुहता। ॥ इति राव रिणमलजीरी वात सम्पूर्ण ।। । तब राणाजीने अपने माथ वालोको इकट्ठा किया। 2 रिणमलजीसे चूक करनेकी तैयारी की। 3 नव धोखेके इस भेदका पतो रिणमलजीके एक डूमको लग गया। 4 राणाजीका अापके ऊपर चूक है। 5 रावजीने इस बात पर विश्वास नहीं किया, परंतु अपने सभी कुवरोको गढकी तलहटी ही मे रखा । 6-7 जिस पलग पर रिणमलजी सोये हुये थे उस पर पच्चीस गज लवी पछेवडी (वस्त्र) लपेट दी। 8 १७ घातक ऊपर पाये। 0 १६ जने तो पलगकी फेटमे मर गये । 10 रिणवीर चूडावत काम आया पर स्वास निकल जानेके पहले राणाजीके महलो तक जाकर गिर पड़ा। I दूसरा भी साथ बहुत काम आया । 12 और जोघाजी अपने भाईयोंके साथ तलहटीमे थे सो निकल भागे। 13 पीछेमे फौज वाहर चढी मो नाडाबला (अरावली) जाकर उन्हें पहुंची। 14 वहा । 15 रिगामलजीके चौबीसो ही कुवर सकुशल मडोर जा पहुचे । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ नरबद सतावत री वात सुपियारदे लायो तै समैरी __ नरबदजी सतावत मडोहर राज करै। ताहरां सीहड सांखलो रूंणरै धणी आपरी बेटी सुपियारदेरो नाळेर नरबदजीनू मेल्हियो।' ताहरां नरबदजी ऊपर राव रिणमलजी, राणो मोकळ पाया ।। तद लडाई हुई । नरबद घावै पडियो । रिणमलजी मडोहर लियो । जाय गादी बैठा । नरबदन रांणो मोकळ ले गयो। ताहरा नरबदरो इसो मामलो सुणियो, तद सांखलां सुपियारदेनू नरसिघ खीदावत जैतारणरो धणी सीधळ, तिणनू परणाई ।' तठा पछै नरबदजी राणैजी पासै रहै । राणैजीरै जीव-प्रांण ।' रांणो बहोत प्यार करै । ताहरा एकै दिन राणैजीरा अोळगवां रांणैजीसू मुजरो कियो, ताहरां खंभायची राग कियो । ताहरा नरबद नीसासो नाखियो । ताहरां दीवांण पूछियो । कह्यो-'क्युं नीसासो नाखियो !' ताहरा नरबद कह्यो-'यू ही ।' ताहरा दीवाण फुरमायो-'मडोहर वदळे ?10 ताहरां नरबद कह्यो-'मंडोहर तो म्हारै हीज छै, काकै पासै छै सु।11 पण और वात छै ।1 ताहरा दीवाण फुरमायो-'जिक छै सो कहो ताहरा नरबदजी कह्यो-'राज ! म्हारी माग नरसिघ परणियो। साखलै परणाई, तरो धोखो छ ।'15 ताहरा रांणजी तुरत सांखलै सीहडनू अोठी मेल्ह कहायो-'जु ____ I रूणके स्वामी साखला सीहडने अपनी बेटी सुपियारदेका नारियल नरबदजीको भेजा। 2 उस समय नरवदजी पर राव रिणमलजी और राणा मोकल चढकर आये । 3 नरबद आहत हुया। 4 नरवदको राणा मोकल अपने साथ ले गया। 5 जब नरबदके सवधमे यह बात सुनी तव साखलोने जैतारणके स्वामी नरसिंह खीदावतके साथ सुपियारदेका विवाह कर दिया। 6 जिसके बाद नरवदजी राणाजीके पास ही रहते है । 7 राणाजीके लिए जीव-प्राणकी भाति । 8 एक दिन राणाजीके गायकोने (ढाढियोने) पाकर मुजरा किया और खभायची राग पालापी। 9 नि श्वास क्यो छोडा? 10 क्या मडोरके लिए? II-12 मडोर तो मेरे काकाके पास है सो मेरे ही पास है, पर बात कुछ और है। 13 जो बात है सो कह दो। 14 मेरी मगेतरको नरसिंह सीघल व्याह गया है । 15 साखलोने उसे व्याह दी, इस बातका धोखा है। ) Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात नरबदजीरी माग देवो । ताहरा साखला कहायो- सुपियारदे तो परणाई, पण बीजी छोटी बेटी छै, सु लेवो । ताहरां नरबदनू राणोजी कह्यो-'वीजी छोटी बेटी सीहडजो थान दोवी छ, जावो, परणोजो। ताहरा नरवद कह्यो-'दीवाणजी! परणीजू, जे म्हनै सुपियारदे आरती करै तो परणीजू । तद दीवाण फुरमायो-'करली" पण नरवद कह्यो-'ना, दीवाण ! अोठी मेल्हीजै ।" ताहरा दीवांण अोठी फेर मेल्हियो।' ताहरा साखला कह्यो-'जु, आरती मुपियारदे करसी। तद नरवदजीरी जान' चढी ।। वासै दीवागरी सभा माहै वात हुई-'जु सुपियारदे पारतो करसो तो नरवदजी परणीजसी ।'11 ताहरा नरसिंघ सीधळ पण उठ बैठो हुतो ।' ताहरां नरसिघ पण वात सुणी । तद नरसिंघ कह्योइतरो कासू हुवो, जु नरवद जोरावरी भारती करासो ?13 तद राणोजीरा लोका कह्यो-'सु तो आरती करसी ?'14 ताहरा नरसिंघ पण उठसू चढियो । घरै आयो। साखलारा पण माणस आया-'जु सुपियारदेनू मेल्हो, वीमाह छै । तद नरसिंघ मेल्है नही ।" अर सुपियारदे कहै-'हू जाईस 128 ताहरां नरसिंघ कह्यो-' आरती न करै तो मेल्हा ।19 ताहरां सुपियारदे कह्यो । तब राणाजीने तुरत ही साखला सीहडको ऊंट सवार भेजकर कहलवाया कि नरवदजीकी मगेतर देप्रो। 2 साखलोने उत्तर में कहलवाया कि सुपियारदे तो व्याह दी, परतु दूसरी उसके छोटी वेटी और है सो व्याह लें। 3 दूसरी उसकी छोटी बेटी सीहडजीने तुमको दे दी है. सो जाकर विवाह करलो। 4 दीवानजी ! व्याह लगा, परंतु इम शत्तं पर कि यदि मेरी प्रारती सुपियारदे परे तो व्याहू । 5 करेगी।. 6 नही, दीवान ! ऊटसवार भेजिये। 7 तब दीवानने फिर अोठी भेजा। 8 आरती सुपियारदे करेगी। 9 बारात। 10 पीछे। II व्याहेंगे। 12 उस समय नरसिंघ सीघल भी वहा बैठा हया था। 13 ऐसी क्या बात होगई जो नरबद जबरदस्ती भारती करवायेगा। 14 सो तो आरती करेगी? 15 तब नरसिंह भी वहासे चढा। 16 सांखलोके आदमी भी आगये कि विवाह है, सो सुपियारदे को भेजों। 17 नरसिंह भेजता नही । 1 8 मै जाऊगी। 19 यदि ग्रारती तू नही करे तो भेज दू । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १४३ 'आरती न करा।'' ताहरां कवल वचन दे, गळे हाथ लाइ गई।' सुपियारदे पीहर आई। जितरै जांन पण आई। ताहरां नरबदजी तोरण आया। बाजोट ऊपर आय ऊभा ।' कह्यो-'पारतीरी तैयारी करावो ।' सुपियारदेनू कह्यो-'जु आरती करै ।' ताहरां सुपियारदे कह्यो-'हू आरती न करूं ।' तद छोटी बहन सुपियारदेरी आरती करणनू आई। नै नरबदजीनू कह्यो-'राज ! सुपियारदे आरती करै छै ।' तरा नरबदजी कह्यो-'म्हैसू रामत करो छो, जु, हूं आँधो ? आ सुपियारदे नही हुवै ? ताहरां आपरा लोकांनू कह्यो-'नगारो देरावो।" ताहरा सांखलै कह्यो-'बाई ! हणा कुण देखै छै ? म्हांनूं प्रो मारै छ ।'10 ताहरा सुपियारदे आरती करणनू आई। ताहरा नरबदजीनू कह्यो-'राज ! थे तो आरती करावो छो, पण उवै ठाकुर मनै कीवी छ, सु म्हनै दुख देसी तो ?11 ते ऊपर नरबदजो कह्यो-'यो वचन छ । ऊ तोनू दुख दै तो मोनू तू खबर करै, हू आय ले जाईस ।'12 ___ताहरां नरसिंघरो नाई हेरां ऊभो हुतो, तै साळूरै सहनाण __ I आरती नही करू गी। 2 कोल वचन दे और गले हाथ लगाकर गई । (“गळं हाथ लारणो' मारवाडी भापाका एक मुहावरा है, जिसका लक्ष्यार्थ होता है कि जिसके गलेके हाथ लगाया जाता है, उसकी शपथके साथ अमुक काम करने या नहीं करने की प्रतिज्ञा करना, होता है। गला काट देनेकी नृशस हत्याके पापका भागी होना भी इसका लक्ष्यार्थ है)। 3 इतनेमे बारात भी आ गई। 4 तव नरबदजी तोरन पर पाये। 5 बाजोट (पाटा) पर आकर खड़े हुए। 6 तब सुपियारदेकी छोटी वहिन आरती करनेको आई। 7 श्रीमान् ! सुपियारदे प्रारती कर रही है। 8 तब-नरबदजीने कहा कि मेरेसे ही मजाक कर रहे हो ? क्या मै अधा हू ? यह सुपियारदे नही हो सकती ? 9 तव (नरवदजीने) अपने लोगोसे कहा कि नगाड़ा बजवानो (युद्धकी तैयारी करो।) 10 तब साखलेने कहा कि बाई ! अब कोन देखता है ? हमको यह मार रहा है। II तब (सांखलेने) नरबदजी को कहा कि श्रीमन् ! आप (सुपियारदेसे) प्रारती तो करवा रहे हैं, परंतु उस ठाकुरने मना किया है और वह फिर मुझे दु ख देगा तो? (मेरी क्या गति होगी ?) -12 यदि वह तेरे को दुख दे तो मुझको खबर देना, मै आ करके इसे ले जाऊंगा, यह मेरा वचन है। . . Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात कियो। अर नरवदजीर खवास पासै पिचरको एक मुहगै मोलरै अतरसू भरियो तैयार हुतो। तद नरवदजी हाथ फेर कह्यो-'या सुपियारदे हुवै । तद खवास पिचरको छोड़ियो । सुपियारदेरै लागो। पछै आरती करी । वीमाह हुवो।' नरवदजी हलांणो ले घरै गया।' सुपियारदे पिण घरे गई। तद उवै नाई नरसिघन कह्यो'राज | आरती सुपियारदे कीधी ।' ताहरां सुपियारदेन नसिघ पूछियो-'क्यां सांखली ! आरती कीवी ?'8 ताहरां कह्यो-'मै न कीवी।' तद नाई कह्यो-'राज ? थां आरती कीवी। मैं साडीरै सहनांण कियो छ ।' अर अतररा पण छाटा लागा छ।10 ताहरां सुपियारदे कूडी हुई।11 तहरा नरसिंघ ताजणा वाह्या । मुसका बांध मात्रै नीचे नांखी।13 अर बीजी बैरनू माणस मेल्ह बुलाई । अर उवैनूं कह्यो-'पाव, माचे पण सूय । तद सुपियारदे कह्यो-'मोनै मार, वाढ, खुसी पड़े सु कर,. पण म्है ऊपर बीजी वैर मांचे ऊपर मती बुलावै ।16 तोई नरसिंघ मांचे ऊपर सोकनू” ले बैठो। ताहरां सुपियारदे माटीरो नाम लेने बोली। कह्यो-'नरसिंघ सीधळ ! तै करणी हुती सो कीवी,' पण जो मैं थारै मांचे आऊं तो भाईरै मांचे आऊं।20 _I तब वहा नरसिंहका नाई जासूमीके लिये प्राया हुआ खडा था, उसने सुपियारदेके सालूके निशान कर दिया। (माळ =लाल रग को एक कीमती प्रोढनी) 2 और नरवदजीके, खवासके पास महंगे मूल्य के अतरमे भरी हुई पिचकारी तैयार थी। 3 तव नरबदजीने हाथ फिराकर कहा-'यह सुपियारदे हो सकती है। 4 तव खवासने पिचकारी छोड दी । 5 विवाह होगया। 6 नरवदजी अपनी पत्नी और दहेज लेकर घर गये। 7 तव उस नाईने नरसिंहको कहा कि भारती सुपियारदेने की। 8 क्यो सांखली ! तूने भारती की ? 9 मैंने साडीके निशान किया है। 10 और प्रतरके छींटे भी लगे हैं। II तव सुपियारदे झूठी पही। 12 तव नरसिंहने चावुक मारे। 13 मुश्क वाघ कर खाटके नीचे डाल दिया। 14 दासीको भेजकर दूसरी स्त्रीको बुलाया। 15 और उसको कहा कि प्राव, खाट पर सो। 16 मुझे मारदो, काटदो, इच्छा हो सो कर, पर मेरे ऊपर खाट पर दूसरी स्त्रीको मत बुलाओ। 17 सौत को। 18 तव सुपियारदे अपने पतिका नाम लेकर बोली। 19/20 कहा कि नरसिंह सींधन ! तेरेको जो करना था सो कर लिया, पर अब जो तेरे साट पर पाक तो अपने भाईके खाट पर ग्राऊं। Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात । १४५ तद छोकरी हुती सु जाय सांखलीरी सासूनू कह्यो-'जु सांखली माहै इसी अवट हुई । ताहरां सासू तुरत आई। नरसिघ परहो हुवौ। सुपियारदेनू छोड़ाय लीयाई । हमै सुपियारदे गहणा उतार अबोलणे हुई थकी आपरै घरै रहै । ___ताहरां कागद १ लिखियो नरबदजी साम्हां-'जु थारी आरती रो फळ मोनू ओ मिळियो छ ।' ताहरां कागद नरबदजी पासै गयो। नरबदजी कागद वांचने कहयो-'हूं पाहीज चाहतो हुतो। हमै हू तयार छू।" ताहरा नरबदजी वैहलिया २ मोल लिया । सो वैहल जोडन' नित फेरै, भूय चाढे 110 रातिब दै। यू करतां तीस कोस जाय अर पाछा आवै, इसी भूय चाढिया। ताहरां जांणियो-'हमै पक्का हुवा ।13 ___ताहरां नरबदजी चालिया। अर जैतारणरी वाड़ीरो ठीक कियो हुतो14 सो दिन बीसमे तो जैतारणरै गोरमैं वाडो छै जेथ' आया। ताहरां जिको सुपियारदे रो कागळ ल्यायो हुतो, तै साथै मरदांनी पोसाख मेल्ही सुपियारदेनूं । ताहरां सुपियारदे वागो पैहर, पाघ बांध, हथियार बांध पर नीसरी ।।1 अर गांव माहै रावळिया रामत रमता हुता। सीधळांरो साथ रमत देखणनू गयो हुतो।23 पर तै वेळा सुपियारदे नीसरी। जाहरां सुसरो बैठो हु तो, सु आखियां अांधो हुतो, तैरै आगाकर नीसरी । ताहरा खीदै कह्यो I दासी। 2 साखलीकी ऐसी बुरी दशा हुई है। 3 नरसिंह दूर हो गया। 4 अब सुपियारदे सभी गहने उतार और अबोलना होकर अपने घरमे ही रहती है। 5 तुमारी । 6 यही। 7 अब मै तैयार हू। 8 बैल, नाटे कदके बैल । 9 बहलीमे जोडकर । 10 अधिक दूर जानेका अभ्यास कराते हैं। II रातब खिलाते हैं। 12 इतनी दूरी पर जाकर वापिस पाजानेके अभ्यस्त कर दिये। 13 तब जाना कि अब पूरे तैयार हो गये। 14 जैतारनकी वाडीमे ठहरनेका तय किया था। 15 बीसवें दिन। 16 गावके वाहरका वह मैदान जहा गावका गो-समूह जगलमे चरने जानेको इकट्ठा होता है। 17 जहा। 18 जो। 19 पत्र लाया था। 20 उसके साथमे सुपियारदेको मर्दानी पोशाक भेजी। 21 तव सुपियारदे बागा पहिन और पगडी और हथियार वाघ कर निकल गई। 22 गावमे रावल लोग तमाशा (खेल) कर रहे थे। 23 सभी सींघल खेल देखनेको गये हए थे । 24 प्राखोसे अघा उसका ससुर बैठा हुआ था, उसके आगे होकर निकली। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात 12 कुण गयो रे ?” ताहरां चरवैदार कह्यो - ' राज ! अठै तो को नही ।' ताहरा खीदै कह्यो - 'नही क्या ? कोई तो गयो ? ३ 13 4 6 यो कहि, खीदो तो भीतर रावळा माहे गयो । ग्रापरी वैर" पास गयो । र बैरनू कह्यो - 'ऊठि, घर वहू री खवर कर ।' ताहरा वैर कहयो- 'क्यु ?' ताहरा खीदै कह्यो - ' परणी ग्राई तद सुपियारदेरै पग रो मचको सुणियो हु तो, सु ग्राज वळ सुनियो । ताहरा जाणां छां, नीसरी ।' उसडो' पग सुणियो ।' तद छोकरी मेल्ही ।" कहयो'जु वहूरी खवर लै'" ।' ताहरा सुपियारदे जावती, चोरसौ मांचे ऊपर ढाळ, सीरखरो वीटो कर, तै ऊपर चोरसी ढाळियो हुतो । ताहरा छोकरी देख जायने कह्यो - 'बहुजी तो पोढिया छे ।" ताहरा खीर्द प्रापरी बैरनू कह्यो - 'छोकरीरो काम नही, तू जायने देख | 23 ताहरां सासू जायनै देखे तो सीरख पडी छे । पाछी गायनै कह्यो - 'वहू नीसरी ।' 11 5 र सुपियारदे नोसरी सु रावळियांरी रमत हुती तठे गई । 14 ताहरा रावळियो थाळी फेरें हुतो ।" ताहरा सुपियारदे श्राघी हुय थाळी माहे मोहर घाती, ग्रर चालती हुई । " ग्रागे नरबदजी वैहल लिया ऊभा हुता । " सुपियारदे तो जाय वैहल बैठी । 16 17 अर ग्रठे रावळिये आण थाळी सिरदार आगे मेल्ही । 118 ताहरा सिरदार को - 'ग्रा मोहर के घाती ।" ताहरां रावळिये कह्यो- 'राज | ? 1 रे ! कौन गया है 2 यहा तो कोई नही । 3 नही क्यो ? कोई तो गया 4 अन्त पुर । 5 अपनी स्त्री । 6 खीदेने कहा – विवाह करके जब प्रथम वार थाई थी तब उसके पावका झटका ( चलनेकी ठसक) सुना था, वही प्राज पुन सुनाई दिया । 7 इसलिए अनुमान होता है कि निकल गई । 8 वैसा । 9 तब दामीको भेजा । 10 बहूकी खबर कर । II सुपियारदेने जाते समय खाटके ऊपर रजाईका लवा वेप्टन बनाकर और उसके ऊपर चौरमा ( चद्दर) डाल दिया था । 12 बहूजी तो सोई हुई हैं । I3 दासीका काम नही, तू खुद जाकर देख | 34 सुपियारदे घर से निकल कर जहा रावलिये रमत कर रहे थे वहा गई । IS उस समय रावलिया पैसोके लिए थाली फिरा रहा था । 16 तब सुपियारदे, आगे बढकर रावलियेकी थाली में एक मुहर ( स्वर्ण मुद्रा ) डालकर चलती बनी । 17 आगे नरवदजी वहनी लिए खड़े ही थे । रावलिये पैने इक्टू की हुई थाली सरदार के सामने रखी । 19 यह मुहर किसने डाली 18 और इधर ¿ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १४७ हेकै मोटियार घाती। ताहरां सीधळ सारा ही ऊठिया। कह्यो'पा तो कोई भली वात नही ! रांमत पूरी कीवी । इतरै घरेसू आदमी पण आयो कह्यो-'सुपियारदे नीसरी ।' ताहरां गांम मे ढोल हुवो।' सीधळ चढिया । आगै वैहलरा चीला दीठा । ताहरां कह्यो-'नरबद लिये जावै छै ।' प्रागै सुपियारदे वैहल बैठी जावै । वांस वाहर हुई ।' प्राग जावतां लूणी नदी आई, सो नदी पूर । ताहरां नरबदजी कह्यो-'सुपियारदे ! नदी जोर छ, उतर सगां नही। ताहरां सुपियारदे कह्यो-'नदी मे नाखो 110 नदीरै सिर चढो, पण वासलानू पापड़ण न देवो।'11 ताहरां वैहल नदी मे नांखी । वैहलिया सूसाडा मारता पार नीसरिया ।12 ताहरा सींधळां पण घोडा नदी में घातिया । ताहरां भाख धिवती नरबदजी तो घर पाया 114 आसकरण चढियो हुतो-'जु नरबदजी अजू' न अाया।' सु आसकरणजी सौ सीधळां साफळो हुवो।16 वीच मे आसकरणजी नरबदजी सौं पण मिळिया हुता।" ताहरां नरवदजी कह्यो-'पासकरण तू सुपियारदेनू ले जा, अर हू काम प्राईस ।'18 ताहरां आसकरण कह्यो-'आप तो पधारो, हू काम आऊं छू।19 ताहरा आसकरणजी सीधळासू वेढ कर काम आया।20 नरबदजी घरै पाया। सीधळ पण पाछा घिरिया । । श्रीमन् । एक युवकने डाली थी। 2 यह तो कोई अच्छी वात नही हुई । 3 खेल समाप्त किया। 4 इतने मे । 5 तव गावमे ढोल बजवाकर ढिंढोरा पीटा गया। 6 आगे बहलीके चीले देखे । (चीला = ग्थ, गाडी आदिके चलनेसे जमीन पर बनी हुई पहियोकी रेखाए।) 7 पीछे वाहर चढी। 8 अागे जाते हुए लूनी नदीको पहुचे, सो नदी पूर वह रही है। 9 मुपियारदे । नदी पुर-जोर है, पार नहीं हो सकेंगे। 10 सुपियारदेने कहा- वहली नदीमे डाल दो। II नदीके भेंट चढ़ जाय, परतु पीछे वालोको पहचने न दे (उनके हाथ न लगें)। 12 तव वहलीको नदी में डाल दिया, बैल सूसाडा मारते हुए (पुरजोश और पुरजोरसे) पार निकल गये। 13 तब सीवलोने भी नदीमे घोडे डाले । 14 तव प्रभात होनेके समय नरवदजी तो घर आ गये। 15 अभी तक। 16 सो पासकरणजीसे सीधलोकी झपट हो गई। 17 मिले थे। 18 और मैं काम पाऊगा। 19 आप तो पधार जाय, मै काम आ रहा है। 20 लडाई कर काम पाये । 21 सीवल भी वापिस लौट गये ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ____ ताहरां अठै अासकरणजीरी वहू सती हुवण लागी। ताहरा कह्यो-'जु जेरै वदळे म्हारो धणी काम आयो, सु देखा तो खरी ?' ताहरा आसकरणजीरी बहू सुपियारदेनू दीठी । तद आसकरणजीरी वहू कह्यो-'जु रजपूताने मरणो देणो छै, पण जेठजी विसावण सखरी कीवी । पछै आसकरणजीरी वहू तो आसकरणजी वांस सती हुवा। __ अर सीधळ पाछा वळता एकै गामरै ताळाव आयनै उतरिया ।" ताहरां एक पिणिहारी तळाव आई, अर कह्यो-'वीरा ! बैर किण सिरदाररी गई ? ताहरा नरसिघ सीधळ घोड़ो पगा माहै घातनै वड़ री साख पकड अर हीडियो, अर कह्यो-'जु बैर म्हारी गई ।' जो बळ सौ जाहि तो न जावण देऊ, पण बैरारो सभाव छै, रोकी किणही री नही रहै। ताहरां एक वीजी कह्यो-'ना, वीरा ! बैर न जावै, पण ते माथै वाढ चाढी छ, अर घणी अवट कोवी छ । तैसू थाहरो बैर गई, नहीतर काहिणनू जावंत ?' पछै सीधळ घरै आया । नरबदजी कायलाणे राज कियो ।10 इति वात नरवदजी सुपियारदे लाया ते समै रो सपूर्णम् I जिस (स्त्री)के लिये मेरा पति काम आया है, उसे देख तो लू ? 2 देखा। 3 राजपूतोके लिये लटकर मरना तो एक ऋण (उतारने के) ममान है, परतु जेठजी (नरवदजीने) गन्ता भी अच्छी की है। 4 सीधल लौटते हुए एक गावके तालाब पर पाकर ठहरे। 5 बीग (भाई) 1 किस मरदारकी स्त्री घरमे भाग गई है ? 6-7 तब नरसिंह सीधलने, जिस घोडे पर मवार था उसको अपने दोनो पावोमे डालकर और बडकी शाखाको पकड कर घोडे नहित मूला (पेंग लिया) और कहा कि मेरी स्त्री भाग गई है। 8 यदि वल करके जाना चाहे तो नहीं जाने दू, पर स्त्री जातिका स्वभाव ही ऐसा होता है, जो किसी की रोकी रुकी नही रहती। 9 तव एक दूमरी स्त्रीने कहा-नही वीरा ! स्त्री कभी घरसे नहीं जाती, पर तूने उनका घातक अपमान और दुर्दशा की है, जिससे तेरी स्त्री गई है, नही तो किसलिये जाती ' 10 नरवदनीने कायलानामे राज्य किया। (कायलाना मेवाडका एक ठिकाना है) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात नरबद रांणैजीनू आंख दीवी तियै समै री लिख्यते जद राव रिणमलजी नै राणो मडोहर ऊपर आया, ताहरां नरबद सांम्है जाय लडाई कीवी । तद नरबदजी खेत पडिया । तद पडतारै तरवार डावी अाख ऊपर पड़ी, तैसू डावी अाख फूटी। इतरै' रांणो मोकल आयो । ताहरां नरबदनू घावा पड़ियो देख उठायो। रणमलजी मडोहर टीक बैठो। अर नरबदजीनू राणोजी चीतरोड' ले गया। पाटा बाधा । घाव सारा किया ।' अर नरबदजीन लाख रुपियारो पटो दियो कायलांणो ।' ताहरा नरबदजी कायलांण रहै । वांस रांणा मोकलनू पण चाचै मेरे मारियो, ताहरा रांणो कुंभो टीक बैठो।12 पछै कुभै राव रिणमलजीसू चूक कर, राव रिणमलजीनू मारिया । तद राठवड़ासू वैर पडियो । तद नरबदजी तो कुभै पास हीज रहिया । कुभो नरबद सौ वडो प्यार करै। - एक दिन दीवाण दरबार कर बैठा छ। ताहरां दरबार मांहै नरबदजीरी लोकां सुपारस कीधी।16 कहियो-'आज धरती माहै नरबदजी सारीखो रजपूत कोई नही ।" नरबद वडो रजपूत छ ।' ताहरा राणैजी कहियो-'इतरो कासू छै सो वखांणो छो ?18 ताहरां I जब । 2 और। 3 सम्मुख । 4 तव नरबदजी घायल होकर धराशायी हुए। 5 वाँई। 6 जिससे । 7 इतनेमे। 8 'तब नरबदको घायल पड़ा हुआ देखकर उठा लिया। 9 चित्तौड। 10 घाव अच्छे किये । II और नरवदजीको एक लाख रुपयेकी कायलाणाकी जागीरीका पट्टा कर दिया। 12 पीछे राणा मोकलको भी चाचा और मेरेने मार दिया, तव राणा कुभा गद्दी पर बैठा। 13 पीछे कुभेने राव रिणमलजीसे चूक करके उन्हे मार दिया। 14 तव राठोडोंमे शत्रुता हो गई। 15 तब नरवदजी तो कुभेके पास ही रह गये। 16 तव दरवारमे लोगोने नरबदजीकी सिफारिश (प्रशसा) की। 17 आज देशमे नरवदजीके समान कोई राजपूत नही है । 18 ऐसी क्या बात है सो इतनी प्रशसा कर रहे हो ? Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० ] मुहता नैणसीरी ख्यात लोकां कहियो-'दीवांण | नरबद मागिया क्यु ही राखै नही ।। ताहरा राणे कुभै कहियो-'म्हे मागा सो नरबद देसी ?" ताहरां फेर लोका कहियो-'जोवै दीवाण ! देसी । तिके दिन नरबदजी रांणोजीरै मुजरै ना पाया । डेरै हुता। ___ तद राणोजी प्रापरो खवास नरबदजोरै डेरै मेल्हियो नै खवासनू कहियो-तू यू कहीजै-'दीवाण था पासा आख मागी छै ।'' खवास नरवदजीनू कहियो-'दीवाण थां पासा प्राख मागी छै ।' ताहरां नरवदजी कहियो-'भला, देस्या ।" ताहरा खवासरी निजर टाळ पसवाड़े भळको पडियो हुतो, तैसू उकासनै डोळो रुमाल मे धाल दीन्हो । ताहरां खवासरो मुह भूडो हुवो।' दीवांण कहियो हुतो खवासनू–'नरबद आख काढे तो मतां काढण देई । सु नरवदजी तो प्रांख काढि हाथ दीधी । खवास ले जाय आख दोवाणनू दीधी।। ताहरा दीवाण अांख देखनै वडो सोच कियो । घणा पिछताया। पछै दीवाण नरवदजीरै डेरै पधारिया, वडो सिसटाचार पडवज कियो । पछै नरबदजोनू राणेजी दोढो पटो दियो । ईयै विध राणैजीनू नरवदजो आख दीधी।16 ___ इति नरवदजी राणे कुभेनू प्रख दीधी तिणरी वात सपूर्ण 1 तव लोगोने कहा कि दीवान | नरवद मागने पर कुछ भी अपने पास नही रखता। 2 हम मागें मो नरवद दे देगा? 3 तव लोगोने कहा चिरजीवी रहो दीवान । देगा। 4 उस दिन नरवदजी राणाजीको मुजरा करनेके लिये नही आये थे। 5 अपने डेरे (मकान) पर ही थे। 6 तव राणाजीने अपने खवासको नरवदजीके डेरे भेजा और खबासको कहा कि तू यो कहना कि दीवानने तुम्हारे पाससे आख मगवाई है। 7 अच्छी वात है, देगे। 8 तब खवामकी नजर बचाकर एक ओर जो भळका पडा था, जिससे पाखका कोया निकाल करके हमालमे डालकर दे दिया (भळको=एक शस्त्र)। 9 खवासका मुह उतर गया। 10 दीवान (राणाजीने) तो उमे कहा था कि यदि नरवद प्राव निकाले तो मत निकालने देना ! 11 सो नरबदाजीने तो प्राख निकाल कर हाथमे देदी। 12 दीवानने पास देयक बदा फिक्र किया। 13 बहुत पश्चाताप किया। 14 फिर दीवान नरवदजीके देरे पर गो, बडे गिण्टागर और महानुभूतिके माथ उनके वीरतापूर्ण त्यागकी प्रशसा एव दुन प्रगट किया। 15 पीछे राणाजीने नरवदजीका पट्टा ड्योढा कर दिया। 16 इस प्रसार नरबदलीने राणाजीको पास निकाल कर देदी । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात राव लूणकर्णजीरी लूणकर्णजो जेसळमेररी फतै कर पाछा पधारिया । ताहरां लोकां कह्यो-'हिवै एक वार वोकानेररै कोट माहै पधारो।' भला सवणां पधारिया छो। तद रावजी कह्यो-'न जावां ।'4 रावजी वात मांनी नही ।' दिलीन चढि चलाया। तद द्रूणपुर प्राय डेरा किया । पछै या जायगा देख पर कह्यो-'पा तो जायगा इसी छ जु अठ कोई कुवर राखीजै ।' ताहरा कल्याणमल उदैकरणोत वीदावत हुतो, तियै सुणियो ।' ताहरा जाणियो- 'जु आ वात तो बुरी हुई। यू करता राव लूणकर्णजी तो दिलीन आघा हालिया ।' कल्याणमल वीदावत हरोळ कियो ।' अर पठांणारी फोजा साम्ही पाई, तिय माहै रायमल कछवाहो हरोळ हुतो, सु रायमल कल्याणमलरो नानो हुंतो। अर दिली पातसाही पठाणारी हुती । ताहरा सीवाडो घातता हुता सु राव लूणकर्णजी मांनी नही। कह्यो-'नारनोळ सीव घातो, नोरनोळ लेस्या ।14 सु ईंया अापस माहै वात कर फोज में भगी घाती। कल्याणमल उदैकरणोत रायमल कछवाहैनू कह्यो-'जु थे घोडा घातो ।।" म्हे पालसा। पासो दे जास्या।1' ताहरा उवां घोड़ा राव लूणकर्ण जैसलमेरकी फतह कर वापिस पाये। 2-3 तब लोगोने कहा कि 'अच्छे शकूनोसे पधारे है तो अव एक वार बीकानेर के गढमे पधारे।' 4 तब रावजीने कहा-'नहीं जायेगे। 5 रावजीने लोगोकी बात मानी नही। 6 फिर इस जगहको देख कर कहा--'यह तो जगह ऐसी है सो यहा कोई अपने कुवरको रख देना चाहिये ।' 7 इस वातको वीदावत कल्याणमल उदयकरणोतने सुन लिया। 8 उसने विचारा 'यह बात तो बुरी हुई। 9 राव लूणकर्णजी तो दिल्लीके लिये आगे चले । 10 कल्याणमल बीदावतको अपनी सेनाके हरोलमे किया। II और उधर पठानोकी सेना सामने आई जिसमे रायमल कछवाहा हरोल में था। रायमल कल्याणमलका नाना था । 12 दिल्लीमे वादशाहत पठानोकी थी। 13 उस समय सीमाकन हो रहा था पर राव लूणकर्णजीने इस सीमावधीको स्वीकार नही किया। 14 और कहा कि 'नारनोल हम लेंगे नारनोल तक सीमा निश्चित करो।' 15 सो इन्होने (रायमल और कल्याणमलने) परस्पर परामर्श कर सेनामे फूट डाल दी। 16 कल्याणमल उदयकरणोतने रायमल कछवाहेको कहातुम घोडे (मीमा चिन्ह) गाड दो (तुम घोडे डाल दो)। 17 हम तुमको रोकेगे और तुम को मौकाभी देते जायेंगे । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात नाखिया। कल्याणमल टळ गयो, लडाई हुई। राव लूणकर्णजी काम आया। कुंवर प्रतापसिंघजी काम आया। __पछै राव जैतसिंघजी टीक बैठा, कछवाहा पवाडो गमायो।' ताहरां जैतसिंघजी फोजां कीवी। रायमल कछवाहै ऊपर गया । कछवाहा तो आगासू लड़ाई कर सगै नही । पछै कछवाहा राव जैतसिंघजोन वीमाह' ५ (पांच) दिया। राजा प्रथीराजरी बेटी कुवर ठाकुरसीनू दीनी । रायमलजी कछवाहै री वेटी रायमल मालदेवोतनू परणाई । वीमाह एक वैरसी लूणकरणोतनू दियो । वीमाह एक महेस प्रतापसिंघोतन दियो । । इति रावजी लूणकर्णजीरी वात सपूर्ण ॥ O । नयाने पोटे गाट दिये (घोडे भोक दिये) 2 लढाई हुई तब कत्यारणमल (ग) गया। पीने पर राव जैतसिंह टीके बैठा, तव कछवाहोने प्रवाडा नादिका सदरमर पनी मोत्ति सो दी)। 4 रायमन कछवाह पर चढ़ करके गये माजमितिम सात दिगति, वह फिर प्रागे नवाई कर ही नहीं सके। (करवाहे गिन 2 ने 15 विवाह । ८ व्याही । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात लोहिलारी मोहिल सुरजनोत चहुवाण छापुर-द्रोणपुर धणी हुवो तिणरी हकीकत । चहुवाण नै मोहिला विचे इतरी पीढी - १ चहुवांण । २ चाह, चहुवांण रो बेटो। ३ घणसूर* रांण चाह रो बेटो । गग पिण कहांणो। ४ रांणो इद्रवीर । ५ राणो अरजन । ६ रांणो सुरजन । ७ राणो मोहिल । रांणा सुरजनरो बेटो। मोहिलरै पेट रा मोहिल कहांणा । मोहिल छापर-द्रोणपुररो धणी हुवो। मोहिलसू आ धरती मोहिलावाटी कहांणी । सदा छापररो परगनो कहीजतो। पाडवा कैरवांरी वार मांहै, तद छापररै परगने द्रोणाचारज आयो ।' आपरै नांवै सहर छापर ता कोसै २ वसायो। काळोडूंगर कहीजै छै तिणरी जडा सहर वसायनै द्रोणपुर नाम दिरायो।' द्रोणपुररी बे हाटा सूधी प्रो ठोड लियै रहै द्रोण । द्रोणपुर काळे * चार अन्य प्रतियोमे से दो प्रतियो मे, घणर' एक मे 'धणसूर' और एक मे 'वणसूर' नाम भी लिखे मिलते है। .'वेहटा' और 'वहाटा' पाठ भी कई प्रतियोंमे मिलता है। ____ I सुरजनका बेटा मोहिल चौहान छापुर-द्रोणपुरका स्वामी हुआ उसके सम्बन्धकी हकीकत। 2 चौहान और मोहिलो के बीच (मोहिल और उसके वशजोमे) इतनी पीढियें है। 3 घणसूर राणा चाहका वेटा । इसका नाम गग भी कहलवाया। 4 मोहिल राणासे उत्पन्न उसके वशजोकी अल्ल मोहिल कहलाई। 5 मोहिलके नामसे इस धरतीका नाम 'मोहिलावाटी' प्रसिद्ध हुआ। 6 पहले इस धरतीको 'छापरका परगना' ही कहा जाता था। 7 पाडवो कौरवोके समयमे महर्षि द्रोणाचार्य छापरके परगनेमे पाये थे। 8 छापर मे दो कोस पर अपने नामसे शहर बसाया। 9 'काळो डूगर' (काला पहाड) के नामसे प्रसिद्ध पहाड है, उसकी तलहटीमे शहर बसा कर द्रोणपुर नाम रखा। 10 द्रोणने द्रोणपुरके दो बाजारो (दो उप-वस्तियो) जितनी इस जगहको घेर रखा है। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ मुहता नैणसीरी ख्यात डूंगरियां नव काळे-डूगर वसियो छै । सु काळे-डूगर लागती डूगरो ८ तथा ६ छ । डूगरिया ६ नव काळ-डूगर लागती द्रोणपुर वसायो। १ काळो-डूगर ५ देवीजीरी डूगरी २ विनायकरो डूगरो ६ कोढणोरी डूगरी 3 सालेररी डूगरी ७ चरलारी डूगरो ४ भैसे-सिरारी डूगरी ८ चिमररी डूगरी छापररै परगनै गाव १४०० लागै । छापररै परगनै माहै इतरी ठोड-'छापर, लाडणू, करणावटी ।' करणावटी रिणीरी पैली तरफ छ । किरतावटी -किरता आहेडोतरी ठोड ।' द्रोणपुर, भारद्वाजरो बेटो द्रोणाचारजनू थो, पाडवां कैरवारी वार माहै । पछै पमार डाहळियानू हुतो द्रोणपुर । डाळिया सिसपाळरांनू छापर-द्रोणपुर घणा दिन रह्यो । डाहळियारो छापर वडी साहिबी श्री। नै वागडी रजपूतारी भोम नागोर थी। सु नागोररी धरती माहै वागडियारो वडो मेवासो । वागडी वडा रजपूत ने वडा राहवेधी था । सु डाहळियां नै वागड़ियां माहो माहि खिसण थी। सु वागडिया डाळियांसू चूक विचारियो।1 वागडी कटक करनै डाहळिया ऊपर आया ।16 डाहळिया चलाय साम्हा I काले डूगरीकी नौ काली डगरियो (पहाडियो) मे द्रोणपुर बसाया गया है। 2 उस काले ड्रगरसे लगती हुई ड्रगरी (छोटी पहाडिये) ८ तथा ६ हैं। 3 काले डुगरसे लगती हुई उन नौ डू गरियोके पास द्रोणपुर बसाया गया। 4 गणेशजीकी पहाडी। 5-67 छापरके परगनेमे इतने स्थान प्रसिद्ध है- छापर, लाडनू , करणावटी और किरतावटी । करणावटी रिणी गाँवके उस ओर पाई हुई है और किरतावटी, आहेडके पुत्र किरताकी जागीरीकी ठोडको कहा जाता है। 8 पाडवो-कोरवो के समयमे द्रोणपुर भारद्वाज ऋषिके पुत्र महपि द्रोणाचार्य के अधिकारमे था। 9 फिर द्रोणपुर परमार डाहलियेके अधिकारमे हो गया था। 10 शिशुपालके वशज डाहलियेके अधिकारमे छापर और द्रोणपुर बहुत दिन तक रहे । । और नागोर वागडी राजपूतोकी भूमि थी। 12 नागोरकी धरतीमे वागडियोका बडा मेवासा । (मेवासो = घाडा डालने वालो व लूट-पाट करने वालोके लिये रहनेका सुरक्षित स्थान ।) 13 वागडी राजपूतोका वडा ममूह और सभी राहवेधी । (राहवेधी = १ दूरदी । २ युद्धागरणी । ३ युद्ध विशेषज्ञ ।) 14 डाहलियो और वागडियोमे परस्पर शत्रुता चल रही थी। 15 वागडियोने टाहलियोको मारनेका विचार किया। 16 यागही सेना लेघरके डाहलियोके ऊपर चढ़ पाये । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १५५ 3 4 आया । वडी वेढ कीवी ।" डाहळियारा मांणस ६०० कांम आया । बाकीरा नास गया । धरती वागड़िया लीवी । डाहलिया थी छूटी।" वागड़िया धरती सारी वसाई । " वडी जमीयत कीवी । वागड़ी जोर थका है । 2 6 हमे वागडिया तीरा धरती मोहिल सुरजनोत लीवी छै, तिणरी हकीकत : - चहुवांणारी चौवीस साख कहीजै । राणो सुरजन पूरब दक्षिण वीच श्रीमोररो परगनो कहीजे छे, तठे रांणे सुरजनरो राजस्थान ।' सुरजनरी वडी साहिबी छै । तद धरती मांहै चहुवांण घणी धरती भोगवं । सु रांणा सुरजनरो वडो बेटो मोहिल, तिणसू सुरजन मया न करें । 10 माहो माहि रस काइ नही । 11 ने मोहिल वडो रजपूत, सु बाप सौं वर्णं नही । 12 15 ताहरां मोहिल दीठो- 'काइक और नवी धरती खाटू । 13 तिण ऊपर मांणस दोय रूडा आपरा मेल्हिया । " कह्यो - ' इण तरफरी गिरवा जोइ श्रावो । " काय धरती आपण लेणरी काबू होय तो देख आवो । 26 सो उवै 17 रजपूत धरती जोवता - जोवता " इण तरफ आया । सु विचली ठोड़ देखी । क्यु ही एक " धरती भाया - बधां । 1 I डाहलिये भी सम्मुख चले प्राये । 2 वडी लडाई हुई | 3 डहलियोके ६०० आदमी काम आये । शेष भाग गये । 4 धरती पर वागडियोने अधिकार कर लिया । 5 डाहलियोके अधिकारसे धरती जाती रही । 6 वागडियोने सब धरतीको वसाया । 7 वागडियोकी स्थिति सबल हो गई है। 8 ग्रव वागडियोमे मोहिल सुरजनोतने धरती ले ली है, उसकी हकीकत इस प्रकार है । 9 पूर्व और दक्षिणके बीच जो श्रीमोरका परगना कहा जाता है, वहाँ राणा सुरजनकी राजधानी । 10 राणा सुग्जनका बड़ा बेटा मोहिल जिसके साथ सुरजन कृपा भाव नही रखता है II परस्पर प्रेम नही । 12 मोहिल बडा वीर राजपूत परतु वापसे बनता नही । 13 तब मोहिलने देखा कि कोई और नई धरती प्राप्त करें । 14 जिसके लिए अपने दो अच्छे आदमियोको भेजा । के इर्द-गिर्द का प्रदेश देख कर श्राम्री । 16 कोई धरती लेकर कब्जा करने देखो । 17 वे । 18 देखते देखते । 19 कुछ, कुछेक । । IS इस तरफ जैसी हो तो Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 2 4 हेठै ।' क्यु हेक जोरावरां हेठे । " नै छापर द्रोणपुर : रजपूत प्राया । श्र ठोड सखरी दीठी। अर सहल हीज दीठी । कोट मांहै घणा सा आदमी को नही । ताहरां रजपूता श्रा ठोड़ हेरी । " हेरनै पाछा गया ।' जायन मोहिलनू हकीकत मालम कीवी । 8 10 11 तथा । तिण ऊपर मोहिल धरतीरो साथ भेळो कियो । वागड़ी हजार पाच माणसारा धणी था । " नै मोहिल माणस हजार पनरै' सतरं भेळा किया। सु मोहिल तीरे खजानो नही, नै धरती अळगी । 14 तिणरो वडो सोच हुवो । 25 तिण ऊपर रांणा सुरजनरे दरबार माहे वोहरो सतन वडो माणस हुतो, तिणनू तेडने मोहिल को" - हे एक ठोड लेणी तेवडी छै", तिण सारू कटक भेळो 15 6 -- कियो छै, पिण खावणनू क्यु ही नही छे, थे म्हांरी गरज सारो, करज यो 18 ताहरा संतन वोहरै को- 'थाने पईसा कहसो सो देईस । " घे तयारी कर चढो ।' सतन वोहरे खत कियो । खरच दियो । हमे सतननू साथ लेने चालिया 120 उठारा चालिया ग्राणजकरा मोहिल छापर द्रोणपुर ऊपर थाया। 21 वागड़ी पण सारो साथ लेने बारे श्राया । वडी वेढ" हुई | माणस हजार १००० दोनू तरफांरा कांम ग्राया । तिण माहै" " वागडी घणा सिरदार कांम आया । वागडियां रा पग छूटा ।" वागडी नाठा ।" धरती मोहिलरं श्राई । " 22 27 । 1 भाईयों के विकार मे । 2 कुछेक बलवानोको दवाई हुई । 4 यह जगह अच्छी देखो । 5 और अधिकार करनेमे सरल दिखाई दी तीने इस जगह को लेना निश्चय किया । 7 निश्चय कर वापिस लौटे । 8 मोहिल पास जा करके उसे सब हकीकतने वाकिफ किया । 9 जिम पर मोहिलने अपनी धरती के यो इट्टा किया । 10 वागडी पांच हजार मनुष्योके स्वामी थे । 17 सत्रह | 13 के पास | 14 दूर | 15 इसकी वडी चिन्ता हुई । मैने एक जगह को लेने का इरादा किया है । 18 तुम कमोलिने कहा । 17 हमारी जरूरत पूरी करो और कर्जा देग्रो । 19 जितना कहोगे उतना पैसा तुमको दूगा । 20 मंतन योहरे ने सत लिखवाया । ग्रव संतनको साथ लेकर चले । ( वोहरो = ऋण शता गर्ने ऋण पत्र ) 21 यहां से चल कर प्रचानक छापर द्रोणपुर ऊपर मोहिल चढ 22 वारी भी प्रपना सद माय लेकर बाहर पाये । जिसमे 25 वाहियों पाव टूट गये । 26 वागही भाग गये । किरा गई। Lit 1 23 लडाई | 24 27 धरती मोहिलके ये । 3 6 तव 11 पन्द्रह | 16 जिसको Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसोरो ख्यात [ १५७ मोहिलरी फतै हुई। मोहिल सारी धरती मार मनाई ।। मोहिल छापर टीक बैठो। रांणारी पदवी दीवी । मोहिल प्रापरी वडी जमीयत कीवी । गांम १४०० वसाया । वडी धरती खाटी ।' वोहरै सतननू रांणै मोहिल सुरजनोत लाडणू परगना माहै छापरथी' कोस ७ गाम कसूबी छ, तिका गाम ५ सू दीधी ।' नै कह्यो-'थे कसूबी जायनै आपरी वसी करावो ।" वोहरो संतन कसूबी वसियो ।' वडी वसती कीवी। वोहरै संतन १ देहरो शिखरबंध श्री ठाकुरांरो करायो । न वावडी' १ वधाई छ । तिका वावड़ी अजेस तांही संतनरी कहीजै छै । वागडियां तीरा मोहिल धरती लीवी छ । मोहिल नै देवराम वोदावत माहोमांहि वेढ कीवी छ, तिणरी साखरा बे-खरी छंद चारण चांपै सामोररा कह्या छ, तिणमे साख प्रांणी छ ।' मोहिलरै पेटथी मोहिलारी साख चहुवाणां मांयसू नीसरी। ____ I मोहिलने सारी धरतीको बलपूर्वक अपने वशमे किया। 2 सुरक्षा और राज्य कारोवारके लिये घोडो और ऊटो सहित सवारोका मुकम्मल थाना । 3 बडी धरतीको प्राप्त किया। 4 छापरसे। 5 जिसको ५ गावोके साथ प्रदान किया। 6 तुम कसूवी गावमे जाकर अपनी बसी (वस्ती) कायम करो। 7 वोहरा सतन कसू बीमे जाकर बसा । 8 बोहरे सतनने एक शिखरवध मदिर श्री ठाकुरजी (श्रीकृष्ण)का वहा बनवाया। 9 वापिका । 10 वह वावली अभी तक 'सतनकी वावडी' कही जाती है। 1 मोहिल और देवराम वीदावतने आपसमे लडाईकी जिसकी साखके 'वे-प्रखरी' छद चारण चापेके रचे हुए है, जिनमे इस लडाईका प्रामाणिक वर्णन किया गया है। 12 मोहिलके वासे चौहानोमे मे मोहिलोकी शाखा निकली । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोहिलारै पीढियांरी हकीकत' १ मोहिल रांणा सुरजनरो बेटो २ रांणो हरदत्त ३ राणो वैरसी ४ राणो वालहर ५ राणो पासल ६ रांणो आहड ७ रांणो रैणसी ८ रांणो साहणपाळ ह राणो लोहट १० रांणो बोवी ११ राणो वेग १२ राणो माणकराव १३ रांणो सावतसी, अर १३ राणो सागो दोन भाई मांणकरावरा बेटा। सांगो राणो राव लखणसेनरो दोहीतरो।' १४ मोहिल अजीत सावतसीप्रोत । सांवतसी माणकरावरो। सु अजोत वडो रजपूत हुवो । मोहिल अजीतनू राव जोवैजी प्रापरी बेटी परणाई हुतो, नाम राजांवाई। सु अजीत सासरै मडोहर गयो हुतो।' सु राव जोधो तिणा दिना जोरावर वहै । सु मोहिल वडा सगा, नै या तीरे धरती घणी । सु राव जोधोजी मोहिलासू सदा खोट करणरो विचार करै'; पण मोहिलामे अजीत वडो रजपूत जोरावर । ईयै थकां धरती पावै नही। ताहरा दीठो-'ग्रजीत मारी तो धरती आवै ।11 'ताहरां अजीतन जोधैजी मारणरो विचार कियो । स् राव जोधजीरी राणो भटियाणी, I मोहिलोके वशक्रमका वृत्तान्त। 2 राणा सावतसी और राणा सागा (क्रम स. १३) दोनो भाई मारणकरावके वेटे। 3 राणा सागा राव लखणसेनका दोहिता । 4 मोहिल अजीत सावतसीका पुत्र। 5 और सावतसी माणकरावका वेटा। 6 राव जोधाजीने अपनी राजाबाई नामकी कन्या मोहिल अजीतको व्याही थी। 7 अजीत अपनी ममुराल मडोर गया हुआ था। 8 राव जोधा उन दिनो बडा जोरावर राजा और इधर मोहिल भी बडे मववी पोर इनके पास धरती भी बहुत। 9 अत राव जोधा मोहिलोसे नित्य दगा करनेका विचार करता है। 10 इसके रहते हुए धरती अपने अधिकारमे नही पा सकती। II तव विचार किया कि अजीत मारा जाय तो उसकी धरती अपने अधिकारमे पा जाये। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १५६ अजीतरी सासू, तिणनू खवर हुई', 'अजीतनू राव मारसी ।" ताहरां राणी जोतरा खवास परधांन, त्यांन कहाडियो – ' रावजी थांसू चूक कियो छै, ये रह्या तो दुख पावस्यो । - 6 तिण ऊपरा अमरावा परधांनां विचार कियो-'अजीत तो भाजण री परत * वहै छै, आ वान कहस्यो तो जांणसी नही ।' इण सौको तोत करने चाढां ।" ताहरा ईया सारां ही भेळा होयने कह्यो - 'छापर थी आदमी ग्रायो छे । जाटवांरो कटक राणा वछराज सागावत ऊपर आयो छै नै रांणो घेरा मांहै छै । कहाड़ियो छै, म्हा मुवां ऊपर ग्राय सको तो वेगा आवज्यो ।" ग्रा वात कही तिण ऊपरा चढणरी तयारी कीधी । नगारो हुवो, नै चढि खड़िया । ताहरा राव जोधै कह्यो'रे ! नगारो कठै ह्वै छै ?" ताहरा कह्यो - 'ग्रजीत चढि खडियो । '20 8 ताहरां राव जोधँजी दीठो- 'चूकरो जणाव हुबो; नै प्रो जीवतो गयो तो म्हांनू दुख देसी, तिण ऊपर रावजी वासै चढि खडिया । 11 ग्रागै अजीत जाय छै, वासै राव जोधोजी जाय छै । 12 सु द्रोणपुरसो कोसां ३ छापरसौ कोस ५ श्राया, तठे फोजा दोऊवा देठाळा हुवा 3 * एक प्रतिम' परग' पाठ है । 'परग वहै' का तात्पर्य होगा- 'रिश्ते के लिहाज से' वा 'रिश्ते का लिहाज करता है ।' 'परत न वहँ छै, पाठ होना चाहिये । 1- 2 राव जोधाजीकी राणी भटियारगी जो प्रजीतकी सास थी उसे इस बातका पता लग गया कि अजीतको राव मारेंगे । 3 तब राणीने अजीतके जो खवास और प्रधान थे जिनको कहलवाया । 4 रावजीने तुमारे साथमे घोखा विचारा है सो ग्रव यदि तुम यहा रहे तो दुख पाओगे । 5 इस पर उमरावो और प्रधानोने विचार किया कि ग्रजीत तो भागने की बात के विरुद्ध रहता है यह बात उसे कहेंगे तो इमे सत्य जानेगा ही नही । 6 इससे कोई अन्य वखेडेकी बात करके यहासे ले चले । 7 तब इन सवने इकट्ठे होकर कहा कि बछराज सागावत पर जाटवोका कटक ग्राया है और राणा घेरेमे फस गया है सो उसने कहलवाया है कि मैं मारे जानेकी स्थिति मे हू, यदि सहायता कर सको तो तुरत प्राग्रो । 8 यह बात कही तव चढनेकी तैयारी की। नगारा वजवाया और चढकर रवाना हुए । 9 अरे | नगारा कहा वज रहा है ? 10 अजीत रवाना हुआ है । II तब जोधाजीने देखा कि धोखे की जानकारी हो गई और यदि अव यह जीता निकल गया तो हमको दुख देगा। इस पर रावजीने उसके पीछे चढाई कर दी । 12 ग्रागे अजीत जा रहा है और उसके पीछे राव जोधाजी जा रहे हैं । 13 सो द्रोणपुर से तीन कोस और छापरमे पाच कोस उरे पहुचे तव दोनो फौजोको एक दूसरेकी फौज दिखाई दी । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] __ मुहता नैणसीरी ख्यात तर अजीत पूछियो-'यांपा वासै घणो सो साथ दीस तिको किणरो ?'1 तर या कह्यो-'थांसू राव जोधै चूक कियो थो, सुरांणीजी जांणियो।' ताहरा म्हानू कहाड़ियो-'थे जमाईनू लेने परहा चढो । ताहरा म्हे थासू तोत करनै थाने इतरी भुय आणियां ।' आ' वात कही, ताहरा अजीत घणो बुरो मानियो। कह्यो-'थे म्हारो सबळी पण* घटायो ।” ताहरां अजीत आपरा साथ सारैसू वान' वांस10 आया देख ऊभो रह्यो।। रावजी पण चलाय गया । दोनू तरफा लोह मिळियो ।12 मामलो हुवो 13 अजीत माणस ४५ सू काम आयो । गांम गणोडे वेढ हुई ।। राव जोधोजी अजीतन मार पाछा वळिया ।15 मडोवर पधारिया । बाई राजा अजीत वांस सती हुई।16 हमै राठोडा नै मोहिला माहोमाहि सबळो वैर पड़ियो ।” राठोड सबळा, मोहिलारी ठकुराई सबळी, पण भाईबधे मेळ घणो काई नही। यु करता वरस १ श्राघो नीसरियो ।19 नै मोहिलारी धरती ऊपर , राव जोधे डांण घातियो । सारा भाईबंध भेळा करनै राव जोधोजी चढ मोहिला ऊपर पाया। रांणो वछराज सांगावत माणस २६५ सू मारियो। मोहिल हारिया। पग छूटा 121 राव जोधैजीरी फतै हुई । * एक प्रतिमें 'सबळापण' पाठ है। 'म्हारो सवळापण घटायो' = १ मेरी वीरतामें कलक लगवा दिया। २ मेरी सवलता घटा दी । ____ 1 अपने पीछे वडीसी सेना पाती दिख रही है वह किसकी है ? 2 तव इन्होने कहा कि तुम्हारे साथ राव जोधेने चूक करनेका विचारा था, जिसका राणीजीको पता लग गया। 3 तव उन्होने हमको कहलवाया । 4 तुम मेरे दामादको लेकर रवाना हो जायो। 5 तब हम वनावटी वात करके आपको इतनी दूर ले आये। 6 यह। 7 तुम लोगोने मेरी जो नवल प्रतिना थी, उसको घटा दिया (उसमे वट्टा लगवा दिया।) 8 अपने । 9 उनको। 10 पीछे। I खडा रह गया । 12 दोनो ओरके शस्त्र मिले । 13 लडाई हुई। 14 गणोठे गावमें यह लडाई हुई। 15 पीछे लौटे। 16 राजाबाई अजीतके पीछे सती हुई। 17 परस्पर बहुत जबरदस्त शत्रुता बधी। 18 परन्तु उनके भाई-ययुगोमें परस्पर अधिक मेल नही। 19 इस प्रकार एक वर्ष निकल गया । 20 मौकेकी नाकमें रहा। 21 मोहिलोके पग छूट गये । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महता नैणसीरी ख्यात [ १६१ कुवर मेघो वछू रावरो बेटो नीसरियो । राव जोधैजी जाय छापर मारियो । राव जोधेजी धरती मांहे अमल कियो । सु मेघो जोरावर सुमेधै आगा धरती वस सगँ नही । नै कटकनू रातीवाहा दे । " ताहरा रावजी विचारियो - 'मेघा जीवतां धरती श्रावणरी नही ।' तिण ऊपर मास दोय अठै रहिने, धरती मारने' पाछा मंडोवर पधारिया । 4 8 1 13 14 मेघो कुवर पाछो द्रोणपुर छापर प्रायो । मेघो टीकै बैठो। रांणो मेघो हुवो । वडो रजपूत, वडो तरवारियो, वडो राहवेधी, वडो जोरावर । सु राव जोधोजी राणे मेघेनूं मारणरो तलास घणी ही करें, पण हाथ प्रवणरो नहीं । मेघो वडो भोमियो हुवो ।' पर्छ कित रेहेक वरसै मेघो काळ प्राप्त हुवो 20 ताहरां भाया धरती माहै धूळ माडियो ।22 ताहरां धरती भायां वंट हुई । ठकुराई निबळी पडी । 12 १६ भाग हुआ। रांणा मेघारे पाट रांणौ वैरसल हुवो, सु राणा कुंभै सीसोदियैरो दोहितरो । बीजो बेटो नरबद, तिको रावत काधळ रिणमलोतरो दोहितरो ।" वैरसल टीकै बैठो । रांणो वैरसल हुवो, सु निबळो सो ठाकुर हुवो । भाई बंध सगळा मांणस हुता सु धरती वंटाय लीवी ने माहोमांही भाइयां खसण लागी ।" रोजीना आपस मे वेढां हुवै, सु सारा डीलां कट निवडिया । 27 मोहिलारी ठकुराई निबळी पड़ी । 17 अर राव जोधोजी मंडोहर भोगवै, सुपाखती" जोरावर साहिबी । सु रावजी विचारियो जु, श्राज मोहिल निबळा पडिया छै राव वछूका वेटा कुवर मेघा बच करके निकल गया । 2 छापरको लूटा । 5 और कटकके 4 3 अपना श्रमल जमाया । 4 मेघेके आगे धरती वस नही सकती । ऊपर रातको हमला करे 1 6 यहा रह करके । 7 धरतीको लूट करके । 8 मेघा राणा हुआ । मेघा वड़ा वीर राजपूत, बड़ा तलवार चलाने वाला, बड़ा दूरदर्शी और वडा जोरावर । 9 मेघा बड़ा भोमिया हुआ । 10 पीछे कितनेक वर्षो वाद मेघा मर गया । 11 तब भाईयोने देशमें बड़ा उपद्रव मचायो । 12 - 13 देशके १६ भाग हो गये और ठकु राई निर्बल पड गई । 14 राणा मेघांकी गद्दों पर वैरसल राणा हुया । · IS दूसरा बेटा नरवद जो रावत काधल रिणमलोतका दोहिता था । 16 जितने भी भाई-बन्धुप्रोके मनुष्य थे उन्होने धरतीका वट करवा लिया और भाइयोमें परस्पर खीचातानी होने लग गई। 17 रोन युद्ध होते रहते हैं इसलिए सब ( मोहिल ) परिवार आपसमें ही कटकर खत्म हो गये । 18 पासमे । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात वडी वात छ । तिण ऊपर राव जोधोजी आपरा भाई बंध भेळा करनै राणा वैरसल, नरबद ऊपर आया।' वैरसल नरबद रावजी जोधैजीनू आवता सुणनै आपरी वसी लेने नीसर गया। धको झालियो नही । राव जोधाजी द्रोणपुर छापर मारियो। सारी धरती पजाई । वडो अमल कियो ।। ___मोहिल रांणै वैरसल नरवद धरती छाड कानो लियो ।' कितराहेक दिन तो फतैपुर, जूझणू, भटनेर रहिया । तठा पछै मेवाड राणा कुभारी तीरै गया ।' उठे पण कितराइक दिन रह्या। पछे यां विचारियो-'म्हांसू धरती छूटी । सबळी ठोड़ आणी । नै म्हारै प्रांण तो धरती वळणरी नही ।' तरै मोहिल नरबद मेघावत नै राठोड़ वाघो काधळोत मांमा भाणेज व्है ।11 या भेळा होय आलोच कियो। आपासू धरती छूटी। काहेक धरतीरी वाहर कीजै ।13 तिण उपरां या दोन जणा पातसाह कन दिली जावणरो विचार कियो । अ मामा भाणेज दिलीन हालिया । ताहरा दिली माहै लोदिया-पठाणारी साहिवी थो।" सु औ जाय मिळिया । पातसाहजीसू फरियाद कर अरज कीवी । ताहरां वान - पातसाहजी घणी दिलासा दीनी ।' यां मास दस इगियारह चाकरी कीवी। पातसाह या सू महरवान हुआ । यांरी कुमुखनू घोडा हजार पांच दिया । यारै ____I बहे अवसरकी बात है। 2 अपने भाई-बवुओको इकट्ठा करके राणा वैरसल नरवद पर चढ कर पाये। 3 वैरसल और नरवद, राव जोघाजीको प्राया सुन करके अपनी बमी (वस्ती) लेकरके निकल गये। 4 अाक्रमणका सामना नहीं किया। 5 राव जोधाजीने द्रोणपुर छापर लूटा। 6 सारी धरतीको हैरान किया। 7 मोहिल राणा वैरसल और नरबदने धरतीको छोड कर किनारा लिया। 8 कितनेक दिन तो फतहपुर, झझनू और भटनेर रहे। 9 जिसके बाद मेवाडमे राणा कुभाके पास गये। 10 हमारे अधिकारसे धरती गई, नवल जगह थी सो राव जोधाने अपने अधिकारमे ले ली और अव हमारे बल पर तो यह घग्नी वापिस हाथ आनेकी नहीं। II-12 तव मोहिल नरवद मेघावत और वाघा काधनोत, जो परस्पर मामा भानजे हैं, इन्होने मिल कर विचार किया। 13 किसी प्रौर धरतीकी तलाश की जाय। 14 इस पर इन दोनो जनोने वादशाहके पास दिल्ली जाने का विचार किया। 15 ये मामा-भानजे दिल्लीको चले। 16 उन दिनो दिल्लीमे लोदी पठानोकी बादशाहत पी। 17 तव वादशाहने उनको वहत श्राश्वासन दिया । 18 उन्होंने दस-ग्यारह माम तक बादशाहकी चाफरी की। 19 इनकी सैनिक सहायताके लिए पाच हजार घोडे दिये। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महता नेणसोरी ख्यात . [ १६३ साथै सारंगखान पठाणनू मेलियो। पछै सारगखांन पठाण, नरबद मोहिल, वाघो कांधळोत राठोड़ में सारा ही चलायनै फतैपुर जूझणूरी पाखती आया । रांणो वैरसल पण आय भेळो हुओ। ' राव जोधाजी पण आपरा मांणस हजार ६००० लेनै सामा आया। औ पण फतैपुर नै छापररी काकड माथै आया। दोनू फोजा दोनू तरफ आई । प्रायनै उतरिया । दोनू तरफां वेढरी तैयारी हुवै छै। ___ताहरां राव जोधजी राठोड वाघा कांधळोतनूं छांनै तेडायो।' तेडनै जोधैजी कह्यो-'साबास ! भतीजा तोनू ! म्हां ऊपरी मोहिलारै वासतै तरवार बांधी। भोजायां बैरानू बध कराईस ?' ताहरां ईयै वाघे विचार दीठो-'यां मोहिलारै वासतै पा करू छू भायातूं, पण भली नही। ____ ताहरां वाय रावजोनूं कह्यो-'हू थां माहै छू । कहो सु तरदोज करू । थांहरै फायदो होय सो करू ।10 ताहरा वाघे रावजीनू कह्यो'मोहिलारै घोड़ा दूबळा1 छै । घोडारा पग ऊपड़े न छै ।12 सो या तीरा हू पाळांरी वेढरो मतो कराड़ीस । नै पठांण कहसी-'म्है चढिया वेढ करस्यां । यां कनां हूं मतो कराऊ छू। मोहिल ___I इनके साथ सारंगखान पठानको भेजा। - 2 फिर सारगखा पठान, नरवद मोहिल और राठौड वाघा काधलोत-ये सभी चला करके फतहपुर झुझुनू के पास आये। 3 राव जोधाजी भी अपने ६००० प्रादमियोको लेकर सामने आये। 4 ये भी फतहपुर और छापरकी सीमा पर आये। 5-6 पाकरके ठहरे हैं और दोनो ओर लडाईकी तैयारियां हो रही हैं। 7 तब राव जोधाजीने राठौड वाघा काधलोतको गुप्त रीतिसे अपने पास बुलवाया। 8 वुला करके जोधाजीने कहा-'भतीज ! तेरेको शावास है. मोहिलोके लिए मेरे ऊपर तूने तलवार वाधी है, अपने कुल की भोजाईयां प्रादि स्त्रियोको कैद करवायेगा ? 9 इस पर वाघाने विचार कर देखा---'इन मोहिलोके लिए भाईयोके साथ ऐमी वात करूं यह तो वास्तवमें अच्छी बात नहीं। 10 मैं तुम्हारे साथ हू, जो तुम कहो सो तजवीज कारूं, तुमको जिस प्रकार लाभ हो वही करू II दुर्वल। 12 घोहोके पग नही 'उठते हैं।' I3 इसलिए मै इनसे पैदल लडाई करनेका निश्चय करवा दूगा । 14 और ‘पठान तो कहेंगे ही कि हम तो सवार होकर ही लडाई करेंगे 15 सो इनसे में इस प्रकार निश्चय करवाता हूँ। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 4 पाळा लडसी', तिको तमाचो डावै हुसी नै पठांणारो तमाचो जीमणो हुसी । 2 सु थे लोह मिळतै सारा मोहिलांरो साथ पाळो हुसी, तिणा ऊपर घोडा नाखज्यो । पाळो साथ हुसी सु नीसर जासी । तुरक चढिया छे, त्या ऊपर तरवारिया खेरज्यो । मरणहारा छै स मरसी सु बीजा तुरक भागजासी । 2 यू मचकूर करने वाघो उठ गयो । ' 5 6 8 10 या मोहिलासू मसलत वेढरी कीवी । ' मोहिल लोह मिळिया | 20 सु मोहिला ऊपर राठोडारो साथ तूट पडियो | 11 सु ग्रे पाळा धको झाल सगिया ही नही, नीसरता हुवा | 12 3 4 7 राव जोधंजोरै साथ नै सारगखान वडी वेढ** हुई | पठाण सारगखान माणस ५५५ सू खेत पडियो । " बाकीरा के घावै पड़िया, के नीसर गया।'' खेत राव जोधैजीरे हाथ आयो ।” राव जोधैजीरी वडी फतं हुई | राव जोधोजी द्रोणपुर पाछा श्राया । राव धरती माहै वडो जमाव कियो । 18 राणो वैरसल पाछो मेवाड नानाणे " गयो, नै, नरबद फतैपुर काठ पडियो रह्यो । 29 मोहिलाथा धरती छूटी 120 21 राठोडारी सायबी वडी जमीयत हुई । " राव जोधोजी कुवर जोगनू आ ठोड देखने दीधी । " पछे आप मडोहर पधारिया । 22 1-2 मोहिल पैदल लडेंगे सो उनको टुकडी वाई प्रोरको होगी और पठानोकी टुकडी दाहिनी ओर होगी । 3 सो भिडत शरू होने के समय मोहिलोंका साथ, जो पैदल होगा, उन पर अपने घोडे डाल देना । + जो सैनिक पैदल होगे सो भाग निकलेंगे । 5 तुर्क चढे हुए होंगे जिनके ऊपर तलवारोसे प्रहार कर देना । 6-7 मरने वाले हैं सो तो मर ही जायेगे और दूसरे तुर्क भाग जायेंगे । 8 इस प्रकार मजकूर (उक्त निश्चय ) - करके वाघा उधर चला गया । 9 मोहिलो के पास जाकर यही मसलहत (गूढ और हितकारक परामर्श ) लडाईके सम्बन्धमें की । 10 मोहिल शस्त्र लेकर भिडे । 11 सो मोहिलो के ऊपर राठोडोका साथ टूट पड़ा 1 12 सो ये लोग पैदल थे, प्राक्रमरणका धक्का नही सम्हाल सके, भाग खडे हुए 13 और 1 14 लडाई | IS - 16 पाचसौ पचपन आदमियो के साथ पठान सारगखान खेत रहा, शेष कई ग्राहत हुए और कई भाग निकले। 17 राव जोधाजीके हाथ खेत प्राया ! 18 ननिहाल । - 19 और नरवद फतहपुरके पास पडा रहा ! मोहिलोंसे धरती छूट गई । 21 राठौडोकी वहा बडी प्रभुता और जमीयत हुई । यह ठोड देख कर राव जोधाजीने इसे कुंवर जोगेको दे दी । - 20 22 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात 1 3 [ १६५ सु कुंवर जोगो भोळो सो ठाकुर हुतो । सु जोगासू धरती रस नहाई नै धरती मांह मोहिलांरो दखल हुवण लागो । धरतीरो मोहिल विगाड करण लागा । ठोड-ठोड़थी फरियाद आवरण लागी । ताहरा कुवर जोगेरै बहू झाली हुती, तिरण प्रापरा सुसरा रावजीसू कहायो – “जु, थाहरा वेटा मांहै लखण क्यु नही छै ।' नै धरती लीवी छै सुजाय छै ।" जांणों सु इलाज कीज्यो ।” तिरण ऊपरा कुवर वीदो वीकेजीरो छोटो भाई साखली नवरंगदेरो बेटो, तिणनू द्रोणपुर छापर दीधी र जोगानू बोलाय लियो । 4 8 रावजी वीदानं कह्यो - 'देखां, किसड़ो बंधेज करै छै नै किसडो सिरदार व्है छै ? " ताहरां वीदोजी रावजीरै पाय लागते" चढिया सु द्रोणपुर - छापर ग्राया । वडो बंधेज कियो । वडो अमल धरती माहै । मोहिल मांहो माही वडी खसण वहै । 12 सु मोहिलांनू राठोड़ वीदे पटो दे नै चाकर किया । 13 मोहिल चाकरी करै । जवो सीगटोत, सीगट जगरामरो, जगरांम जवरणसीत । 14 तिण जब वीदेजीनूं नारेळ मेलियो, बेटी परणाई ।" सु जबो मायाधारी ठाकुर हुतो नै भायांसू वडो वैर ।" ताहरां राव वीदेनूं परणायो ।” वीदो पेहलो वीमाह मोहिलै परणियो ।18 जबै वीदेजीनूं दायजो घणो दियो । घोड़ा १००, ॐठ २०० नै रुपिया लाख १ रो 19 1 कुंवर जोगा सीधा-सादा ठाकुर था । 2 सो जोगासे धरती सम्हल नही सकी श्रौर घरतीमे मोहिलोका दखल होने लगा । नुकसान । 4 तब कुवर जोगेकी पत्नी तुम्हारे पुत्रमे योग्यता कुछ 5 नही है । झालीने अपने ससुर रावजीसे कहलवाया । 6 और जो धरती ली है वह वापिस जा रही है । 7 उचित उपाय करें । 8 इस पर, वीकाजीका छोटा भाई कुवर वीदा साखली नबरगदेका बेटा, उसे द्रोणपुर छापर दी और जोगाको वापिस बुला लिया । 9 रावजीने वीदाको कहा कि देखें कैसी व्यवस्था करता है। श्रौर कैसा सरदार बनता है ? IO चरण स्पर्श करके । II 12 मोहिलोके परस्पर वडी खटपट चलती है । 13 इसलिए -मोहिलोको अपना चाकर बना लिया । 14 सीटका बेटा श्रीर जगराम जवरण सीका वेटा । IS उस जवेने वीदेजीको नारियल भेजा और अपनी बेटी व्याही । 16 जत्रा वढा धनवान परन्तु भाइयोसे उसकी शत्रुता थी । 17 इसलिए उसने बडी ग्रच्छी व्यवस्था की । # राठोड वीदेने पट्टे देकर के सीगट जगरामका बेटा जबा, 1 1 राव वीको व्याहा । 18 वीदेने अपना पहिला विवाह मोहिलोके यहाँ किया । 19 दहेज | 2 1 "I 3 भी Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसोरी ख्यात माल दियो। वडो व्याह कियो। वीदरै ठकुराई पगथी मडी। मोहिलाणीसू वीदो घणी मया करै । पछै जबै वीदासू कहिन कितराहेक मोहिलास जबरै वणतो नही, तिके सारा धरती माहेसू कढाया।' वीदै वडो अमल कियो । वीदै द्रोणपुर फेर वसायो । द्रोणपुर वडी वसती कीवी।' संमत ६३१ वागडियां तीरा मोहिले धरती लीवी थी, सु ६०० वरस ताई मोहिले धरती भोगवी। संमत १५३१ सूधी मोहिलारै धरती रही। समत १५२३ राव जोवै ी धरती लीवी थी, मास ४ तथा ५ रही।' पछै कुवर मेघो वछराजोत तिके फेर धरती अपूठो लीवी ।' मेघो टीकै बैठो। धरती वसाई। पछै मेघो मुंवो' ताहरां वैरसल नै नरबद पाट बैठा। ताहरां राव जोधोजी मडोवरसू कटक करनै छापर द्रोणपुर ऊपर पाया, ताहरां वैरसल नरबद नीसर गया। ताहरां राव धरती लीवो, तिणरी हकीकत ऊपर छ। राव जोधै धरती लेने कुवर वीदेनू दीधी हुती ।' सु अाज सूधी धरती वीदेजीरा पोत्रां वोदावतां हेठ छै ।12 राठोड रांमदेरा बे-अखरी छद, तिणां मांहै सारी हकीकत छै13 I वीदेकी ठकुराईको नीव जमी। 2 वीदा मोहिलाणीसे खून प्रेम करता है। 3 फिर जवेने वीदाको कह करके, कितनेक मोहिलोको, जिनका जवेसे वनता नहीं था, उन सवको धरतीमेसे निकलवा दिया। 4 वीदेने द्रोणपुर पुन वसाया। 5 द्रोणपुरको वडी वस्ती बना दिया। 6 सम्वत् ६३१मे वागडियोंसे मोहिलो ने धरती ली थी, उस धरतीको १०० वर्षों तक मोहिलोंने भोगी। सम्वत् १५३१ तक यह धरती मोहिलोंके अधिकारमे रही। 7 यद्यपि सम्वत् १५२३में राव जोधाजीने उस पर अधिकार कर लिया था, किन्तु केवल ४ या ५ महीनो तक ही उनके अधिकारमे रह सकी। 8 बादमे कुवर मेघा वछराजोतने वापिस छीन ली थी। 9 मर गया। 10 तब वैरसल और नरवद भाग कर निकल गये। II राव जोधाने इस घरतीको लेकर कुवर वीदेको देदी थी। 12 सो श्राज तक यह धरती वीदाजीके पौत्र वीदावतोके अधिकारमे है। 13 राठौड' रामदेव द्वारा रचित निम्नाकित वे-प्रखरी छद, जिनमे सारा वृत्तान्तं कहा गया है । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I १६७ मुँहता नैणसीरी ख्यात ॥ छंद बे-अखरी॥ (राठोड़ रामदेवरा कहिया) बागड़िय भोगवी वसाई, नमियर उवहीं' कळ' नह आई। बोळी* वळे मोहिले वरवा, धर रस चूप' इधक सन धरवा ॥१ धजवड़ पाण' लियां खत्र धोड़े, रेहिलिया मोहिल राठोड़। मेवासी राव जोधै मिळिया, दोमज13 भांज मिरी24 सिर दळिया15 ॥२ वहै अजीत जिसा16 वैराई1", वसुधा जोधै राव वसाई। रूक 8 बरछां सिंघार19 राणो, थाप जोधै छापर थांणो ॥३ वोदै वांको दुरग' वसायो , जैत हथो23 राव जोधे-जायो। सीर फेर घांस सत्रां सिर , गढ वीदो तपियो' द्रोणागिर ॥४ केवी वीद घरोघर कीधा' । लीया देस ग्रास डड लीधा 128 ....... ............... || ५ I वागडियोने। 2 पृथ्वी (पाठान्तर-'उरही', 'उरवी')। 3 युद्ध। 4 लौटाई (पाठान्तर-'बोली')। 5. फिर। 6 वरनेके लिये, वरण करनेके लिये। 7 अनुराग, उत्कट इच्छा। 8 अधिक । 9 तलवार। 10 के द्वारा, से। क्षत्रिय । 12 मार लिया, नाश कर दिया। 13 शत्रु (पाठान्तर-'दोयरण')। 14 मीर, मुसलमान (पाठान्तर-'मीर')। 15 नाश किया। 16 जैसे। 17 शत्रु। 18 तलवारोसे। 19 सहार कर दिया। 20 स्थापित किया, स्थापित करके । 21 वका, दुर्जेय। 22 दुर्ग। 23 विजयी, जिसके हाथोसे विजय प्राप्त हो। 24 जोधाका पुत्र । 25 १. युद्ध, २. सेना, ३. आक्रमण। 26 शत्रुओके। 27-28 वीदेने शत्रु प्रोको घर घरका बना दिया (उनको विसंगठित कर दिया।), उनका देश ले लिया और उनसे डड और ग्रास भी लिया। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ لي 11 मुंहता नैणसीरी ख्यात ॥ चारण चाप सामोररा कहिया ।। सेलहयां देवडारण सह, गोराहां गीलाह । वाघोड़ा वगाह वरण, एको गोत इताह ।। १ सोनगरा हाडा सकळ, राखसिया निरवांण। चाहिल मोहिल खीचियां, एता सोह चहुवांण ॥ २' I (१) सेलहथा सेलोत, (२) देवडाण = देवडे, (३) गोराहा = गोरा या गोराहा, (४) गीलाह = गीला, (५) वाघोडा-वाघोडे, (६) वगाह - वगा, (७) सोनगरा, (८) हाडा, (९) राखसिया, (१०) निरवाण, (११) चाहिल, (१२) मोहिल और (१३) खीची—ये सभी चौहान है। इनमेसे सेलोत, देवडे, गोराहे, गीले, वागोडे और बगा-ये एक गोत्रके है। ___चौहानोकी चौवीस शाखायें कही जाती हैं। यहा इन दो दोहोमे केवल १३ नाम आये है। इन दो दोहोमे दोहा प्रथमके वाद कदाचित एक दो दोहे और हो, जिनमे शेप शाखाग्रोका उल्लेख हो, परन्तु सभी प्रतियोमे ये दो दोहे ही प्राप्त है। ख्यात, भाग १, प० ८७मे चौहानोकी २४ शाखाप्रोकी जो सूची दी है, उसमे इन दोहोके गोराहा, वाघोडा, मोहिल और वगा-ये चार नाम नहीं हैं। ये नाम नैणसीकी निम्न सूचीके किन्ही नामोके पर्याय नही हो तो चौहानोकी शाखायोकी सख्या २८ हो जाती है। इन नामोके अतिरिक्त वागडिया (भाग १, पृ० ११७), पूरेचा (पृ० २२८), कापलिया (पृ० २४८) इत्यादि शाखाओके नाम और पीढ़ियोका विवरण ख्यातमे मिलता है। कायमखानी भी चौहानोमेसे ही निकले है। इस प्रकार शाखा-सूचीके नामोके अतिरिक्त कई शाखामोंके नाम और है अथवा शाखा-सूचीके अतिरिक्त जो नाम प्राप्त है वे या तो सूचीके नामोके पर्याय हैं या अतर शाखाये हैं। कर्नल टॉडने जो नाम दिये हैं, उनमे और इनमे भी बहुत अतर है । तुलनाके लिये दोनो सूचिया दे रहे हैंनणसी की सूची १ चहुवारण १३ वेहळ २ सोनगरा १४ बोडा ३ खीची १५ बालोत ४ देवडा १६ गोलासरण (गोळासणा) ५ राखसिया (साखसिया) १७ नहरवरण ६ गीला १८ वेस (वैस) ७ डेडरिया १६ निरवाण ८ वगसरिया -२० सेपटा ६ हाडा २१ ढीमडिया १० चीवा २२ हुरडा ११ चाहेल (चाहिल) २३ माल्हण (म्हालण) - १२ सेलोत २४ वकट Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 चाह हुवो चहुवाणरो', प्रथमी गढ जस-पूर । " चक्रवत' उदियो चाहरे, समवड़ मघवन सूर ॥ १ महि-पुड़ भोच' प्रवाडमल, भूबळ श्रापण भाव । सिंघ हुवो घणसूर, रूपक वँस इदराव ' ॥ २ पात वडा सारी प्रथी, जपै सदा जस जीह" " । रढवांवण 11 इंद्ररावरै, उदियो प्रजण पूरबली पळ पाळवा, तुड़ तांणग जण तणो वंस प्रोपियो, सुजन हुवो 10 अबीह 1 " ॥ ३ मुँहता नैणसीरी ख्यात दूहा पीढियारी विगतरा १ चौहान २ सोनगरा ३ खीची ४ देवडा [ पिछले पृष्ठ का शेष ] कर्नल टॉडने जो नाम दिये है, उनमे ६-७ नामोको छोड़ करके सब दूसरे है । टॉड की सूची इस प्रकार है ५ रोसिया ६ साचोरा ७ पविया भेदोरिया ६ हाडा १० चाट्दू ११ चाचेरा १२ सूरा 13 गहवत । सामत 24 ॥ ४ 14 १३ पूरबिया १४ मादडेचा १५ वालेचा १६ गोहिलवाल १७ भूरेचा १५ तसेरा १६ विरवास २० संकरेचा २१ निकुभ २२ भावर [ १६६ २३ मालग २४ वकट I चहुवान का पुत्र चाह हुआ । 2 पृथ्वीके गढ़पतियों में पूर्ण कीर्तिमान हुआ । 3 चक्रवर्ती । 4 उत्पन्न हुआ । 5 इन्द्रके समान शूरवीर, ( मघवन + सूर घन + सूर 7 घरणसूर ) 6 पृथ्वीतल 17 वीर । 8 यशप्राप्त वीरो मे वीराग्रणी । 9 घरणसूरके वशमे सिंहके समान नोज गुणो वाला इद्रराव ( इद्रवीर) उत्पन्न हुआ । 10 सारी पृथ्वी के बड़े-बडे चारण कवि उसका यश वर्णन करते हैं । 11 - 12 महाहठी इन्द्ररावके निर्भय पुत्र अर्जुन उत्पन्न हुआ । (रढरावण = रावणके समान वली और हठीला 1 ) 13 वह पूर्ण बलवान शूराभिमानी थोर उपकार प्रोर युद्धके अवसरोको तुरत साधनेवाला था । 14 अर्जुनका पुत्र सुजैन (सुर्जन) भी सामत और वशको सुशोभित करने वाला हुआ । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] मुहता नैणसीरी ख्यात सुवस किया' खेड़ा सकल, चक्रवत चवदै-चाल । मोहिल तपियो महपती', सुजन तणो सीगाळ ॥ ७ रेणा' कीधी प्रापरी, सह अत्रखा सत्त। मोहिल तरण उदियो मछर11, दीपक वस हरदत्त ॥८ रांग वडम'छळ रक्खवा, आपण पांण अबोहर । दळनायक हरदत्तरै, सोहै वस वरसोह1516 कुळ दीपक चढती कला, सुत वरसीह सुचाव । हाथाळी जुग-पुड़"हुवी, रांगो बालहराव ॥ १० राज वसरा रेहलो, चूको जाव सुचल्ल । वाहळरौटीको वडम, ले दीनौ प्रासल्ल20 ।। ११ अतुळीवळ राखण अचड़, भुज निरवाहण भार । आसलरै उदियो अभग, आहड़ वस-उदार23।। १२ सोह मेवासी सकिया24, भूप लियेवा भीह। पाहड़ तण तपियौ इळा2 , सादूळो रणसीह ॥ १३ सुर है' चवदै-चाळ सै, दोन्है कळप दुवाह। साहरणमल रणसीहरौ, पतगरियो पतसाह° ॥ १४ बळहट दव ... वडम, हुवा मुकत्ता हट्ट। पाट जु साहणपाळरै, लाज भुज लोहट्ट ॥१५ * 'चवदै-चाळ' (चौदहमी चालीस गावोका क्षेत्र)। गावोकी सख्याके उदाहरणके लिये देखिये त्यात भाग १, पृ० '२८७ I भली प्रकार वसाया (भली प्रकार वशमें किया)। 2 गाव। 3 चौदहसी चालीस गावोका प्रदेश। 4 शासन किया। 5 राजा। 6 सुर्जनका निर्भीक पुत्र । 7 पृथ्वी। 8 उदृ ड वीर। 9 पुत्र । 10 उत्पन्न हुआ। II चौहान । 12 वडा, श्रेष्ठ। 13 (१) युद्ध, (२) लिये, कारण। J4 निर्भय और शक्तिमान । IS सेनानायक हरदत्तके वरसिंह (वैरसीह) नामका पुत्र शोभायुक्त है। 16 वलगाली हाथो वाला। 17 पृथ्वीतल। 18 वालहराव (वालहर) राणा । १६ वालहराव (वालहर) की ऊन मजा । 20 बालहरावका उत्तराधिकारी राणा आसल । 21 अतुलित बलशाली। 22 कीत्ति । 23 पासलका पुत्र पाहड बडा अभग और वशमे उदार उत्पन्न हुया । 24 समस्त मेवानियोने भय खाया। 25 डर। 26-27 फिर पाहडके पुत्र सिंहके समान प्रलशाली रणसिंह (रणसी)ने पृथ्वी पर शासन किया। 28 गायें। 29 घोडे । 30 बादगाहको जिसने वरामे किया। 31 अपनी सुदृढ भुजाओंके वल राज्यकी लाजको गने वाला लोहट साहनालके पाट पर आसीन हुआ। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात अद्दल थरकै ' खळ दूर थका लोहट पाट विराजियो, राजन बोबौ 8 वरतै श्रांण । सिद्धां गृह साधक हवे', ज्ग - मालम' बैसे गादी बोब-उत, वेगो वंस 8 1 4 रांग ॥ १६ रांणो मांणकराव छापर धणी जु छत्रपति, सामंत वेग- सुजाव घर खागां बल धूप, साख चोवीसां सोहियो, नरां चढावै रांगा मांणकराव, सांगो पाट सोहै चवदे-चाळसे, लेखीजै भुज सांगारी गादी सुगह, रांग तर्फे साह सिकदर सकियो 16, रुप गादी बछराजरी, मेघो मोहिल दाता - मोहरी 19, जस गाहक सुकवि पालग वैरसल, मेघावत मोहिल दीघा मांगणां हित दाखे वैरावत कुळ वाचिज, दीपक दे पिसुणां खग- जैत' | वांत ।।१७ 9 10 11 सधीर 13 नीर - 2 | लाज 1 4 वछराज 15 [ १७१ 1 ॥ १८ 21 वरहास 22 । जाळपदास 2 2 ॥ १६ ॥ २० सिर दौड़ 17 .18 स सु मौड़ - 8 ।। २१ गुण जाण । महरांण 2 ° ॥ २२ ॥ २३ 6 1पित होते हैं । 2 दूरसे ही । 3 जिसकी अदल श्राज्ञा प्रवर्त होती है । 4 लोहटके पाट बोबा राणा वैठा । 5 सिद्धोके घरमे साधक ही उत्पन्न होते है । जग प्रसिद्ध | 7 खड्गके द्वारा विजय प्राप्त करने वाले । 8 बैठा, बैठता है । 9 वशमे ध्वजा-रूप वोवेका पुत्र वेगा । 10 वेगाका पुत्र । II राणा मारणकराव खड्ग-वलसे शत्रुश्रोको जीत कर उनकी धरतीको अपने अधिकार मे कर उसका उपभोग करता है । 12 मनुष्योमे प्रतिष्ठा बढानेवाला चौहानोकी चौबीस शाखाग्रोमे शोभित हुआ । 13 राणा माणकराव की गद्दीपर धैर्यवान सागा श्रासीन हुग्रा । 14 वीरोकी भुजाओ का लाजरूप माना जानेवाला चौदह-चालकी भूमि मे शोभित है । 15 सागाकी गद्दी पर उसका पुत्र बछराज राज्य करता है । 16 भय माना, डर गया । 17 शत्रु पर आक्रमण करता है । 18 बछराजकी गद्दी पर वशका मुकुट मेघा स्थापित हुआ । 19 मोहिल दानदाताग्रोमें प्रथम । 20 दानियो में महार्णवके समान विशाल हृदय वाला दानी मेघा जिसका पुत्र कवियोका पालन करने वाला वैरसल हुआ । 21 मोहिल (वैरसल) ने हितपूर्वक याचकोको घोडे दानमें दिये । 22 उस वैरसलके वशका कुल दीपक जालपदास हुआ । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात परविड़यां जागै प्रथी, कळह सँवारे काम । जाळपरै हद जोमर, वीणो वस वरियांम' ॥ २४ सीगाळौ कुलमे सदा, जुध वेला खग-जैत । चाव न चूकै रामचद, वेणावत वानेत ॥ २५ ।। इति मोहिलां री वात संपूर्ण ।। ॥ कल्याणमस्तु । I पृथ्वीके लिये जब युद्ध प्रारभ होता है तो उसमें प्रवाडे गाये जाने जैसी वीरतासे युद्ध करके विजय प्राप्त करता है। 2 असीम शक्ति वाले जालपके कुलश्रेष्ठ वीणा उत्पन्न हुआ। 3 कुलमे वीर पुरुष और सदा युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला (सीगाळो-3 १. उच्चाशय २ वीर) 4 विरुदधारी वीणाका पुत्र रामचद्र कभी अवसरको नहीं चूकता । (वानेत = १. विरुदधारी २ ध्वजाधारी, ३.भालाघारी।) . Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छत्तीस राजकुली इतरै गढेराज करै १. कनवजगढे राठोड । ८. रोहिरगढे* सोळंकी। २ धार नगर मालव देसै ६. मांडहड़गढे खैर ।' ___पमार । १०. चीत्रोडगढे मोरी। ३. नाडूलगढे चहुवांण । ११. मांडलगढे निकुंभ ।' ४. आहाड़ नगरे मोहिल । १२. आसेरगढे टाक। ५. साहिलगढे दहिया। १३. खेड़-पाटण गोहिल ।10 ६. थोहरगढे काबा । १४. मडोहर पड़िहार । ७. दुरगगढे सिणवार पांणेचा १५. अणहलपुर-पाटण चावोड़ा ।11 बोर । I छत्तीस राज्यवश इतने (निम्नाकित) गढ (तथा देशो पर) राज्य करते है। 2 कन्नौजगढ पर। 3 पंवार, परमार । 4 नाडोलगढ पर । (नाडोल मारवाडके गोडवाड प्रान्तका एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है।) 5 पाहाड नगर पर । (आहाडका प्राचीन नाम आघाट या आघाटपुर है। महाराणा उदयसिंहने इसके समीप ही अपने नाम पर उदयपुर नगर बसाया था। पुरातत्त्व विभाग, राजस्थानकी ओरसे पाहाडमें इस समय खुदाई करवाई जा रही है। इस खनन-कार्यसे राजस्थान और भारतकी प्रस्तर और ताम्रयुगकी सभ्यतापर महत्वपूर्ण प्रकाश पडा है । शोध और खनन अभी चालू है ।) 6 काबा परमारोकी एक शाखा है । 7 खैर, परमारोकी एक शाखा है। 8 चित्तौडगढ पर मौर्य राज्य । 9 माडलगढ पर निकुभ । (निकुभ, दहियोके वडेरे हैं । निकुभ ऋपिसे निकुभ शाखा चली और उनके पौत्र दधीचि ऋषिसे दहियो वश चला। किणसरिया गावके केवायदेवीके मन्दिरके वि० स० १०५६के शिलालेख में दहियोको दधीचि ऋषिका वशज होना बतलाया है ।) 10 खेडपाटण (मारवाड)में गोहिलोका शासन । (राठौड सीहोजी और उनके पुत्र प्रासथानने गोहिलोको मारभगा कर पहले-पहल खेडपाटणमें अपनी राजधानी स्थापित की जिससे राठौडोकी पहली शाखा 'खेड़चा' प्रसिद्ध हुई। इस समय खेडपाटणमे कोई घर नही है । भग्नावशेषोके वीच केवल २-३ टूटे-फूटे मदिर स्थित है । वड़े मदिरकी श्री रणछोडरायकी प्रतिमा डॉ. तैस्सितोरी द्वारा पल्लू (राजस्थान) में प्राप्त की हुई सरस्वतीकी समान प्राकृतिकी दो प्रसिद्ध प्रतिमाअोके समान आकार व समान कलापूर्ण है।) II अहिलपुर-पाटनमें चावड़े। (चावडोको वाट्सन, फास आदिने परमारोकी एक शाखा माना है। नैणसीने परमारोकी ३६ शाखाप्रोके जो नाम दिये हैं उनमे यह नाम नहीं है।) पाठान्तर-*रोहितगढ, रोहिलगढ । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात १६. पाटड़ी झाला। २८. कपडविणज डाभी । १७, करनेचगढे बूर । २६. हथणापुर कौरव। १८. कळहटगढे कागवा । ३०. मगरोपगढे मकवाणा।' १६, भूभळियागढे जेठवा । ३१. जूनगढ जादम । २०. नारगगढे रहवर । ३२. थोहरगढे कछवाहा । २१. लोहवैगढ बूया। ३३ लुद्र भाटी। २२ ब्राह्मणवाडै वारड़ ।' ३४. कच्छ देसे स्यांमा ।। २३. जायलवाडै खोची । ३५ सिंध देसे जांम । २४. वसहीगढे खरावड ।" ३६. अजमेरगढे गोड। २५. रोहितासगढे डोड ।' ३७ धाट देसे सोढा ।13 २६. हिरमजगढे हरियड़ ३८. देरावर दहिया। २७. दिलीगढे तुवर । I कागवा, परमारोकी एक शाखा। 2 जेठवा, प्रतिहारोकी शाखा है। 3 रहवर, सोलकियोकी एक शाखा। 4 वारड, परमारोकी एक शाखा। 5 खीची चौहानोकी एक शाखा। 6 प्रतिहारोकी एक शाखा। 7 परमारोकी एक शाखा। 8 डाभी, प्रतिहारोकी एक शाखा या प्रतिहारोका दूसरा नाम । (नैणसीने एक स्थान पर पाबूके अनलकुडसे उत्पन्न चार क्षत्रियोके नामोमें चौथा नाम पडिहारके स्थान पर 'डाभी'नाम लिखा है । (देखिये नैणसीरी ख्यात भाग १, पृ० १३४) कपडविणज, गुजरात के नडियाद जिलेका एक नगर है। नडियाद जकशनसे कपडविणजको एक रेलकी शाखा जाती है । अाजकल इसे कपडवज कहते है ।) 9 मकवाणा, झालाप्रोकी एक शाखा है। 10 यादव । IIस्यामा, श्रीकृष्णके पुत्र साम्बके नाम पर उसके वशज स्यामा (सम्मा) कहलाये। 12 जाम, यादवोकी एक शाखा । (जादम, स्यामा, जाम और भाटी-ये सब यादव है।) 13 सोढा परमारो की एक शाखा । पानान्तर-- भूमळियागढ । खरवड, खरवड, खराबड, खारावड । 'डोडा, डोडकाग। हरमल, हिरमल, हरिमड । शुद्ध नाम 'तोमर' है। *होरघ, होरड, होरवं । कायोहरगढ, ऊपर स० ६ मे पा चुका है । एक प्रतिमें नरवरगढ पाठ है, अतः नरवरगढ पाठ ही उचित है। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ।। अथ परमारांरी वंसावली जुगाद r m आबू स्थान, अनळ कुंड निकासाय, पच प्रवराय । वच्छस गोत्राय, मादधुनी साखाय, सचियाय कुळ देव्याय ।।' प्रथम, प्राद राजा इद्र राजा चित्रांगद २० कमळ राजा गंद्रपसेन10 ब्रह्मा राजा वीरविक्रमादित्य २२ मरीच राजा विक्रमचरित २३ कश्यप राणो अजै भूपाळ11 २४ धूमरिख राणो महपाळ राजा उपळ रांणो मधुर राजा परूराई रांणो चंद राजा धर्मागद रांणो गोसील13 राजा धरणीवराह राजा सिंघलसेन14 राजा धारगिर राजा-भोज राजा धाहड राजा उदैकरण राजा धीरसेन राजा देवकरण राजा पोहपसेन' राजा सत15 राजा लखसेन' १६ राजा सिवर ३४ राजा बुद्धसेन राजा सालवाहण" राजा काळसेन ur 9 ० ० ३२ ३५ परमारोका गोत्रोच्चार इस प्रकार है-प्राबू स्थान, अग्निकुंडसे निकास, पंच प्रवर, वच्छस (वत्स व वशिष्ठ) गोत्र, माध्यंदिनी शाखा और सचियाय कुलदेवी। 2 आदि पुरुष (परब्रह्म)। 3 युगादि (विष्णु) 4 मरीचि । 5 धूम्रऋषि । 6 उत्पल । 7 पुरुरुवा। 8 पुष्पसेन । 9 लक्षसेन । 10 गंधर्वसेन । II अजय भूपाल । 12 महिपाल । 13 गोशील । 14 सिंहलसेन। 15 सत्य । 16 शिविर। 17 शक सम्वत् प्रवर्तक राजा शालिवाहन । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नंणसीरी ख्यात ३७ U st w ० ४१ १७६ ] राजा हस राजा हरिवस राजा सिधा राजा मधु राजा धुझाळक* राजा बुध ईच' राजा माघ राजा उदयादीत राजा जगदेव राजा पातळसिघ राणो गुणराज रांणो लाखण रांणो जसपाळ राणो लखमसी' रावत कोदो रावत साघण om Gmc.ww ४२ रावत हमीर रावत हापो रावत महपो रावत राघवदास रावत करमचंद रावत पचायण राजा मालदेव राजा सादूळ राजा रायसल राजा जुझारसिंघजीरा भाई वखतसिंघजी ६१ ठाकुर जगरूपसिंघजी ६२ . ठाकुर सुरतांसघजी ६३ ठाकुर जैतसिंघजी ६४ ठाकुर केसरीसिंघजी ६५ ठाकुर माधोसिंघजी ६६ ४४ ४६ ४८ mr 6 I सिंधु। 2 घूम्रज्वालक । 3 उदयादित्य । 4 यशपाल। 5 लक्ष्मणसिंह । [आदि पुरुपसे ठाकुर माधोसिंह तक केवल ६६ पीढियें एक विचित्र-सी बात ज्ञात होती है। ख्यातके प्रथम भाग, पृ० ३३६ और पृ० ३३८ मे दो छोटी वशावलिये सोढो और साखलोसे सबध जोडने वाली और दी गई है, जो कोई किसीसे मेल खाती हुई प्रतीत नहीं होती। पिछली वशावलियें तोसे निकट जान पडती हैं। पाठान्तर-- *अनूप सम्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर की प्रतिमे 'राजा मालक' नाम लिखा है। - - बुधईस । वाघ | जयदेव । 'पताळसिंघ, पीथळसिंघ । - - - Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूर्य ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ राठोड़ारी वंसावली लिख्यते सूर्यवस प्रसूत-राठोडान्वयावतस-महाराजाधिराज-महाराजा श्री अनोपसिंघजी कस्य वसावळी । ___ महाराजाधिराज महाराजा श्री सूरतसिघजी परत लिखाई'श्री आदनारायण शावस्त ब्रह्मा वृहदश्व १४ मरीच कुवलयाश्व (अस्यैव कश्यप नामधुधुमार इति) १५ दृढाश्व श्राद्धदेव हरियश* इक्ष्वाकु निकुभ विकुक्षि १८ अनेना बर्हणाश्व विश्वगंध कृशाश्व इंद्र सेनजित युवनाश्व युवनाश्व (द्वितीय) २२ 1 सूर्यवशमे उत्पन्न राठोडान्वयावतंश महाराजाधिराज महाराजा श्री अनुपसिंहजीकी वशावली, जिसे महाराजाधिराज श्री सूरतसिंहजीकी प्रतिसे लिखवाई । [अन्वय=वश । अवतश=(१) भूषण, (२) सबसे श्रेष्ठ । परत = (१) स्वयं, (२) प्रति, नकल, (३) परतः, दूसरेसे । (४) पीछेसे । (५) पुनः, फिर । (६) किन्तु, इत्यादि ।] महाराजा सूरतसिंहका राज्यकाल वि० स० १८४४से प्रारभ होता है और ख्यात. लेखक नैणसीकी मृत्यु वि० स० १७२७मे हो जाती है। अत नैणसी महाराजा अनुपसिंह ( राज्यकाल वि० स० १७२६-१७५५) के आगे उल्लेख ही नही कर सकते । इमसे ऐसा प्रतीत होता है कि वशावली बादमे लिखी गई है। परन्तु यह मिलती सभी प्रतियो मे है। इससे मालूम होता है (और जैसा कि 'परत' शब्दके विभिन्न अर्थों पर विचार करते हैं तो यह अनुमान होता है) कि महाराजा सूरतसिंहके समय या बादमे वशावलीका मिलान किया गया है और तत्पश्चात् शीर्ष-वाक्यमे महाराजाधिराज महाराजा श्री सरतसिंहजी परत लिखाई' जोड कर वशावलीमे पागे नाम लिख दिये और लिखते गये। सभी प्रतियोकी मूल बीकानेरकी अनप सस्कृत लाइब्रेरीकी प्रतिमे तो ऐसा परिवर्धन (आगेके नामोका भी) स्पष्ट नजर पाता है । अतः यह स्पष्ट है कि नैणसीने यह वशावली महाराजा अनुपसिंह तक ही लिखी है।] 2 श्री आदिनारायण । पाठान्तर--(१) श्रावस्त, (२) श्रीवत्स । *(१) हरिप्रश्व, (२) हरिताश्य । rrr-dur D७ ० ० ० १२ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] is is मुहता नैणसीरी ख्यात नाभ सिंधुद्वीप अयुतायु ऋतपर्ण सर्वकाम in r सुदास r अरुमक r मूलक in n in माधाता चकवै पुरुकुत्स त्रिदस अनरण्य हर्यश्व प्रणव त्रिवंधन सत्यव्रत हरिश्चद्र रोहिताश्व हरित चप* सुदेव विजय भरुको वृक बाहक सगर महायश अजमजस अंगुमान दिलीप भागीरथ दशरथ (प्रथम) एलविल विश्वसह खटवांग दीर्घबाहु mr ñ ñ in रघु i m in x x अज दशरथ (द्वितीय) श्री रामचन्द्रजी कुश अतिथि निषध नल पुडरीक खेमधुनी देवनीक x x x x श्रुत I मान्धाता चक्रवर्ती। 2 विदस्यु । 3 कई प्रतियोमे स० ३० और ३१के दोनो नामोको 'सत्यव्रत हरिश्चन्द्र' एक करके लिखा है। 4 ऋतुपर्ण 5 बटवाग (षट्वाग) नामक एक राजपि । 6 दोमध्वनि । पानान्तर-- *(१) चंपक (२) पच । °(१) रुरुक,(२) रुरु । अतिथ । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १७६ गुरुक्रिय 9 9 अहीन पारियात्र वृहस्थल अर्क वत्सवृद्ध प्रतिव्योम भानु 9 9 वज्रनाभ विश्वक 9 छ वाहनीपति 9 सहदेव 9 सगण वृहत् हिरण्यनाभ पुष्य वीर 9 १०२ १०३ 9 ध्र वसविर S भव वृहदश्व भानुमान प्रतीक* सुप्रतिकाश मरुदेव १०४ १०५ १०६ iS सुदर्शन is १०७ क्षत्र is १०८ U १०४ ISIS अग्निवर्ण शीघ्र मरु प्रसयतु सिधु अमर्षण सहस्वान विश्वसक्त प्रसेनजित तक्षक वृहब्दल पुष्कर अतरिख वृहद्भानु IS ११० १११ ११२ ११३ ११४ ११५ S वह W w कृतजय रणजय संजय w w श्राव शुद्धोद* w वृहद्रण ___I अतरिक्ष । पाठान्तर-पारिजात्र। *ध्र वसिन्धु, ध्रुवसध। प्रशस्तनु। विश्वस्त विश्वस्तक, विश्वसिक्त । वृहदृण । *गुरुप्रिय । विशक, विथक । *प्रतीक्ष। "सुप्रतिकाम । 'पुष्य । "वहीं । *ऋतुजय । 'श्रीय । *शुद्धोदन । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ १४४ १४६ सुरथ १२६ १२७ १५२ ل ل भरत له الله १३२ الله १८० ] मुहता नैणसीरी ख्यात लांगल १० राव छाडोजी प्रसेनजित १२० ११ राव तीडोजी १४५ क्षद्रक १२१ १२ राव सलखोजी रुणक १२२ १३ राव वीरमदेजो १४७ १२३ १४ राव चूडोजी १४८ सुमित्र १२४ १५ राव रिणमलजी* १४६ महिमडल पालक १२५ १६ राव जोधोजी पदारथ १७ राव वीकोजी १५१ ज्ञानपति १८ राव लूणकरणजी तुगनाथ १२८ १६ राव जैतसीहजी १५३ १२६ २० राव कल्याणमलजी १५४ पजराज १३० २१ महा० श्री रायसिंघजी १५५ बम अजेचद २२ महा० श्री सूरसिघजी १५६ अभचद २३ महा० श्री करणसिंघजी १५७ १३३ विजेचद २४ महा० श्री अनोपसिंघजी १५८ १ जयचद १३५ २५ महा० श्रीसुजांणसिंघजी १५९ २ वरदायीसेनजो १३६ २६ महा० श्रीजोरावरसिंघजी १६० ३ सेतरामजी १३७ २७ महा० श्री गजसिंघजी १६१ ४ राव सीहोजी १३८ २८ महाराजाधिराज महा० ५ राव आसथानजी १३६ श्री सूरतसिंघजी १६२ ६ राव धूहडजी १४० २६ महाराजाधिराज महा० ७ राव रायपालजी १४१ श्री १०८ रतनसिंघजी १६३ ८ राव कान्ह १४२ . ३० महाराज कुंवर श्री १०८ ९ राव जालणसीजी १४३ श्री सरदारसिंघजी १६४ आदि स० १७ और पश्चात स० १५१ राव बीकासे बीकानेरके राठौड-शासकोको वशावली प्रारम्भ होती है। राव बीकाने स० १५४५मे बीकानेर नगर अपने नामसे बसा कर वहा अपनी राजधानी स्थापित की । इसके पूर्व राव जोधाने (स० १६ और १५०) सं० १५१५ मे अपने नामसे जोवपुर नगर बसा कर मडोरसे अपनी राजधानी उठा कर जोधपुरमै स्थापित की। पाठान्तर-~*रिडमलजी। १३४ الله الله Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ टीकै बेठांरी विगत संमत १५०० राव श्री जोधोजी टीकै बैठा गांम चूडासर में बीकानेर देस | 2 समत १५२६ रावजी श्री वीकोजी टीकै बैठा गांम कोडमदेसरमे ' । संमत १५५४ रावजो श्री लूणकरणजी टीकै बैठा । संमत १५८१ रावजी श्री जैतसिंघजी टीकेँ बैठा । समत १५६६ रावजी श्री कल्याणमलजी टीके बैठा । समत १६३० महाराजा श्री रायसिंघजी टोकं बैठा । संमत १६७० महाराजा श्री सूरसिंघजी टीकै बैठा । समत १६६८ दलपतसिंघजी टीकै बैठा । वरस २ राज कियो । पछे महाराजा श्री सूरसिंघजी टीके बैठा । समत १६८८ महाराजा श्री करणसिंघजी टीकै बैठा । संमत १७२६ महाराजाधिराज श्री अनोपसिंघजी टीकै बैठा । संमत १७५७ महाराजा श्री सुजाणसिंघजी टीकै बैठा सतारे में वैसाख सुदि ३ । 8 4 । समत १७६३ महाराजाधिराज श्री जोरावरसिघजी टीकै बैठा गढ वीकानेर । मिती आसोज सुदि १०, दिन घडी ११ चढिया बैठा । " संमत १८०३ मिती आसोज वदि १२ महाराजाधिराज महाराजाजी श्री गजसिंघजी राजतिलक विराजिया गढ बीकानेर ।" 5 संमत १८४४ वैसाख सुदि राजसिंघजी टीकै बैठा । दिन १२ । " समत १८४४ आसोज सुदि१० महाराजाधिराज महाराजा श्री सूरतसिंघजी राजतिलक विराजिया | I बीकानेर राज्य (अव राजस्थान राज्यका एक जिला ) के चूडासर गावमे सम्वत् १५०० मे राव जोधाजी सिंहासनासीन हुए । 2 बीकानेरके कोडमदेसर गाव मे राव वीकोजी सम्वत् १५२६ मे गद्दी बैठे । 3 सम्वत् १७५७की वैशाख शु० ३को महाराजा सुजानसिहजी सतारेमे टीके बैठे | 4 महाराजाधिराज जोरावरसिंह सम्वत् १७६३ के आश्विन शु० १० को ११ घडी दिन चढे बीकानेर के गढ़मे टीके बैठे। 5 महाराजाविराज महाराजा श्री गजसिहका सम्वत् १८०३ मिती प्रासोज वदि १२ को वीकानेरके गढ़मे राज्यतिलक हुआ । 6 सम्वत् १८४४ वैशाख सुदि को राजसिंहजीका राज्यतिलक हुआ । केवल १२ दिन राज्य किया । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ जोधपुररो पीढियां (टीकै बैठारी विगत') समत १५२९ राव सातल टीके वैठो मडोहरमें । समत १५४६ राव सूजो टीकै वैठो। समत १५७२ राव गागोजी टोकै बैठा । समत १५८२ राव मालदेवजी टीकै वैठा। समत १६१६ राव चद्रसेणजी टोकै बैठा। समत १६४० राव उदैसिंघजी टोकै बैठा । पछै राजाईरो टीको दियो। समत १६५२ राजा सूरसिंघजी टीकै बैठा। समत १६७६ राजा गजसिंघजी टीक बैठा। समत १६६५ राव अमरसिघनूं टीको देने नागोर दियो । समत १६६५ महाराजाधिराज श्री जसवतसिघजी टीक गैठा । । इति श्री पीढियारी टीक वैठारी विगत सपूर्ण ।। ॥ शुभ भवतु ।। ___ जोवपुरकी पीढिया और राज्यासीन हुए जिसका विवरण। 2 सम्वत् १५२६मे राव लातल मडोरमे टीके वैठा। (राव सातलके राज्यतिलकका समय सवत् १५४५ जेठ सुदि ३ का है। स० १५४५मे राव जोधाके देहान्तके वाद जोधपुरमे सातल उनके पट्टाधिकारी हुए।) 3 सम्वत् १६४० राव उदयसिंहजी टीके बैठे। पीछे राजाकी उपाधिका टीका दिया गया। 4 सम्वत् १६६५मे राव अमरसिंहको टीका देकरके नागोर दिया। Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामजी ॥ भिन्न भिन्न वाकांरा संमत' गढ, लियारी विगत समत १११७ दिली तुरकांणो हुवो। चहुवांण रतनसी जुहर कर कांम आयो । गजनीसू पातसाह साहिबदी लीधी। समत १६२४ मिगसर वदि२ पातसाह अकबर प्राय चीतोड घेरियो । चैत वदि११ गढ तूटो । राठोड़ जैमल काम आयो । पतो सीसोदियो, मालदे पमार, बीजो घणो ही साथ काम आयो । समत १५६२ श्रावण सुदि११ चांपानेर पातसाह हमाउ आयो । राव प्रतापसी चहुवांण जुहर कर काम आयो। समत १३६१ पातसाह अलावदीनरी फोजां जेसळमेर आई। वरस १२सू गढ तूटो। रावळ मूळराज रतनसिंघ काम प्राया।' संमत १३५२ पातसाह अलावदीनरी फोजां आई। गढ दोलतावाद तूटो। जादव रांम काम आयो।' समत १३५० गढ ग्वाळेर तूटो । राजा मांन तुवर पासा पातसाह अलावदीन गढ लियो । पछै पातसाह गढ चढियो। • I अलग अलग युद्धोके सम्वत् । 2 गढ विजय किये उनका वर्णन । 3 सम्वत् १११७मे दिल्लीमे तुर्कोका राज्य हुआ। चौहान रतनसी जौहर कर काम आया। गजनीमे बादशाह शाहबुद्दीनने आकर दिल्ली पर अधिकार किया। 4 सम्वत् १६२४ मृगशीर्ष कृष्ण २को वादशाह अकबरने चित्तौडको घेरा। चैत्र कृष्ण ११को गढ टूटा । राठौड जयमल काम आया। पत्ता शिशोदिया, मालदे, पँवार और दूसरा बहुत साथ काम आया। 5 सम्वत् १५६२ श्रावण शुक्ल ११ वादशाह हुमायु चापानेर पर चढ कर पाया। राव प्रतापसी चौहान जौहर कर काम पाया। 6 सम्वत् १३६१मे वादगाह अलाउद्दीन की फौजे जैनलमेर पर चढ आई। बारह वर्षोंमे गढ टूटा । रावल मूलराज और रतनसिंह काम आये। 7 सम्वत १३५२मे वादशाह अलाउद्दीनकी फौजे दौलतावाद पर चढ कर पाई। दौलताबादका गढ टूटा। यादव राम काम प्राया। 8 सम्वत् १३५० मे ग्वालियरका गढ टूटा । राजा मान तोमरसे वादशाह अलाउद्दीनने गढ लिया, फिर बादशाह गढ़ पर चढा । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात समत १३५३ अलावदीन पातसाह गुजरात लोधी करण गैहलड़ा पासा । नागर बाभण माधव ग्रागं हुय दिराई 12 समत १३५५ राणा रतनसेन ऊपरा पातसाह श्रलावदीन ग्रायो । भड लखमणसी बेटां १२सू कांम आयो । गढ राखियो । राणानू छडायो । संमत १३५८ गढ रिणथंभोर तूटो । राव हमीरदे चहुवांण कांम आयो । पातसाह अलावदीन आप आयो । 3 " समत १३६८ जाळोर तूटो । पातसाह अलावदीन आयो । चहुवांण कांन्हडदे वीरमदे सोनगरा काम आया । * 4 संमत १३६४ गढ सिवांणो तूटो । पातसाह अलावदीन आयो । चहुवांण सातल सोम काम आया । " 5 समत १३६५ अजमेर लियो । पातसाह ग्रलावदीन आप आयो । संमत १३६५ मडोहर लियो । पातसाह अलादीन प्रायो । संमत १३. रावळ दूदै तिलोकसीह जुंहर कियो । पातसाह पीरोजसाहरी फोजां नाई । जेसळमेर पालटियो । I सम्वत् १३५३में अलाउद्दीन बादशाहने कर्ण गहलडेसे गुजरात ली । नागर ब्राह्मण माधवने आगे होकर अधिकार करवाया | 2 सम्वत् १३५५में राणा रत्नसेन पर बादशाह अलाउद्दीन चढ कर श्राया । भड लखमरणसी अपने १२ पुत्रो सहित काम आया । गढको रख लिया और राणाको छुडाया । 3 बादशाह अलाउद्दीन स्वय चढ कर रणभोर पर प्राया । राव हमीरदे चौहान काम श्राया । सम्वत् १३५८ में ररणथभोरका गढ टूटा | (नैरगसीरी ख्यात भाग पृ २२०मे 'सवत् १३५२ श्रावण वदि ५ हमीरदेजी काम आया' लिखा है | ) 4 सम्वत् १३६८ में जालोरका गढ टूटा । वादशाह अलाउद्दीन चढ कर श्राया। चौहान कान्हडदे श्रौर वीरमदे सोनगरे काम श्राये । 5 सम्वत् १३६४में सिवानेका गढ टूटा । वादशाह अलाउद्दीन चढ कर श्राया । चौहान सातल और सोम काम आये । 6 सम्वत् १३६ . रावल दूदा और तिलोकसीने जोहर किया । बादशाह फिरोजशाहकी फौजे चढ़ कर आई । जैसलमेरका राज्य पलटा । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २॥ ४।। 9 X दिली राजा बैठा तियांरी विगत' राज कियो तिका विगत १. राजा जुधिष्ठिर वरस ६३ राज कियो। द्वापरमे वरस ६०,कळूमें वरस ३७ २. राजा परीक्षित वरस ६० ३. राजा जनमेजय वरस ८५ मास ४. राजा अश्वमेघ वरस ८२ मास ५. राजा अर्धसोम वरस ८० मास ६. राजा वर्ततेजस वरस ८१ मास ७. राजा आदिसथ वरस ७८ मास ८. राजा चित्ररथ वरस ७२ ६. राजा धृतस्यंद वरस ७५ मास १०. राजा सुविधि वरस ६६ मास ११. राजा सेन वरस ६८ मास १२. राजा रिष वरस ६५ मास १३. राजा मरु वरस ६४ मास १४ राजा सिहबल वरस ६३ मास १५ राजा परपाल* वरस ६१ मास १६. राजा कीर्त वरस ५० मास १७. राजा सन्न वरस ५६ मास १८. राजा मेढारि वरस ५२ मास १६. राजा बीज वरस ५१ मास मास nx ० " ० ० ar I दिल्लीमे राजा सिंहासनासीन हुए उन (हिन्दू) राजाओका वर्णन। 2 किसने कितने वर्ष राज्य किया उसका व्यौरा। 3 राजा युधिष्ठिरने ६३ वर्प राज्य किया। ६० वर्प द्वापरमे और ३ वर्ष कलियुगमे । 4 दो तीन प्रतियोमे राजा वर्ततेजस्के राज्यकोलके वर्प शब्दके आगे केवल दो वर्णोकी शीर्ष-रेखा है, पागे ११ मास लिखा हुया है । पाठान्तर--- *परिपाल । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ ] २०. राजा अंबुदेव २१. राजा निगम २२. राजा जोधरथ २३. राजा वमुदान २४. राजा सडोव * २५. राजा आदित्य २६. राजा हवनर २७. राजा डडपान स २८. राजा नीत २६. राजा देसावर ३०. राजा सूरसेन ३१. राजा वीरसेन नीतकूं मारकै राज लिया । ३२. राजा अनेकसिंघ ३३. राजा प्राछित " ३४ राजा विद्रुथ ३५ राजा विजय नेणसीरी ख्यात ३६. राजा श्रासावुद्धि ३७. राजा अनेकसाह ३८. राजा शत्रुजय ३६. राजा सुधन ४०. राजा परमपथ ४१ राजा जोधरथ ४२. राजा वीरवलसेन ४३. राजा बहुवै महता वरस ४८ वरस ४७ वरस ४५ वरस ४४ वरस ५१ वरस ५४ वरस ५१ वरस ४८ वरस ५८ वरस १७ वरस ४२ वरस ५२ वरस ४७ वरस ३५ वरस ४४ वरस ३२ वरस २७ वरस २२ वरस ४७ वरस ३० वरस ४४ सास मास मास मास राज्यम् मास मास मास मास मास वरस २५ वरस २१ १० राजा देसावरने राजा नीतको मार करके किया । 2 राजा बहुर्वने वीरवलसेनको मार करके एक दूसरी २७ वर्ष इसका राज्यकाल लिखा है । पाठान्तर - *नडीव । #डडपाल, दडपाल । ह ११ १० मास मास मास मास मास मास मास मास मास मास मास मास मास 2 राजा वीरबलसेनको मारकै राज लियो । or m ५ ८ १० १० c IS m ११ ह राज्य लिया । १७ वर्ष ३ मास राज्य राज्य लिया। एक प्रतिमे १७ और राति । विदूरथ 1 वडुवै ! Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9 . More. मुंहता नैणसीरी ख्यात [१८७ ४४. राजा जेसावर* वरस २७ मास ४५. राजा शत्रुघ्न वरस २७ मास ४६. राजा अहिपथ वरस १५ मास ४७ राजा महाबल वरस ४० मास ४८. राजा कीतिमत वरस १७ मास ४६. राजा चित्रसेन वरस २४ मास ५०. राजा अनंगपाल वरस १७ मास ५१. राजा अनतपाल वरस २८ मास ५२. राजा बलाहक वरस १६ मास ५३. राजा कलकी वरस ४२ मास ५४. राजा सेरमर्दन वरस ८ मास ५५. राजा जोवनजीत वरस २६ मास ५६ राजा हरिवंश वरस १३ मास ५७. राजा वीरधन' वरस ३५ मास ५८. राजा पोसत वरस २८ मास ५६ राजा डंडध ' वरस ४२ मास राजा ओसतकू मारकै राज लिया । ६०. राजा रसखडवीज वरस ५५ मास ६१. राजा महाजोध वरस ३० मास ६२. राजा वीरनाथ वरस २८ मास ६३. राजा जो वराज वरस ४५ मास ६४. राजा उदयसेन वरस ३७ ' मास ६५. राजा आणदचंद वरस ५२ मास . १० ६६. राजा जैपाल वरस २६ मास . ० ६७. राजा सुंकायत वरस १४ राज कियो। जैपालकू मार राज लियो।' 1 गजा उपने ४२ वर्ष ७ मास राज्य विधा । राजा पोसतको मार परके राज्य लिया। 2 राजा सुझायनने पालको मार फारको राज्य लिया। १४ वर्ष राज्य किया। पाठान्तर- *जैसा। वोरपना मास ..Mar 09 ०.ror us. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ ] " or orm मुहता नैणसीरी ख्यात ६८. राजा विक्रमादित्य वरस ३५ राज कियो। सुकायतकू मार राज लियो।' ६६. राजा समुद्रपाल वरस २४ राज कियो। विक्रमादित्यक मार राज लियो । ७०. राजा चद्रपाल वरस २६ मास ७१. राजा नयपाल वरस २१ मास ७२. राजा देसपाल वरस १६ मास ७३ राजा शिभूपाल वरस ४ मास ७४. राजा लछपाल वरस २३ मास ७५. राजा गोविदपाल वरस २८ मास ७६. राजा अमृतपाल वरस १६ मास ७७ राजा लद्धपाल* वरस २२ मास ७८ राजा महिपाल वरस ३१ मास ७६. राजा हरीपाल वरस १३ मास ८०. राजा भोमपाल वरस ११ मास ८१. राजा मदनपाल वरस १७ मास ८२. राजा वीरमपाल वरस १६ मास ८३. राजा विक्रमपाल । वरस १६ मास ८४. राजा मलूकचद। राजा विक्रमपालकू मार राज लियो। वरस २ राज्यम् । ८५ राजा विक्रमचद वरस १२ मास ८६. राजा कामकाचद वरस १ राज्यम् । । ८७. राजा रामचद्र वरस १३ मास . ८८. राजा सुंदरचद वरस १४ ___मास ८६. राजा कल्याणचंद वरस १० मास .. ५.. ६०, राजा भीमचंद वरस १६ मास 1 मुकायतको मार करके विक्रमादित्य ने राज्य लिया । ३५ वर्ष राज्य किया । 2 समुद्रपालने २४ वर्ष राज्य किया। विक्रमादित्यको मार कर राज्य पर अधिकार किया। 3 राजा मलूकचंदने राजा विक्रमपालको मार करके राज्य पर अधिकार किया । दो वर्ष राज्य क्यिा । ------- पाठान्तर- *वृद्धपाल । वीर्यपाल । 0.00 0. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात वरस २६ वरस २१ वरस १ वरस ४ मास राणी परमावतीकूं मार राज लियो । 2 ९१ राजा लोहचद* ६२ राजा गोविंदचंद ३ राणी परमावती * ६४ राजा हरभीम ६५ राजा गोविद ६६ राजा गोपीचद ६७ राजा किसनचद ६८ राजा विजैसेन वरस २० मास वरस १५ मास वरस ६ मास वरस १८ मास 2 बगाळासू आयो । किसनचदक मार राज लियो । ० ६६ राजा धनालसेन ܕ १०० राजा केसोसेन १०१ राजा लछमणसेन १०२ राजा महादेव सेन १०३ राजा सुखसेन १०४ राजा सिवसेन १०५ राजा कांतिसेन " १०६ राजा हरिसेन १०७ राजा दससेन १०८ राजा नारायणसेन १०६ राजा दामोदरसेन ११० राजा माधोसेन वरस १२ मास वरस १५ मास वरस ३६ मास वरस ११ मास वरस २० मास वरस ५ मास वरस ४ मास वरस १२ मास वरस ८ मास वरस २ मास वरस २१ मास वरस १२ मास 3 दामोदरसेनकू मार राज लियो । मास मास राज्यम् । राणी पदमावती (पद्मावती) को मार करके विजयसेन वगालसे श्राया । किशनचदको मार करके दामोदरसेनको मार करके राज्य प्राप्त किया। वर्ष पाठान्तर -- लोढचद, लोदचद | * पदमावती । कीर्तिसेन । [ १८६ धनपालसेन | २ 19 ७ গ ܡ ७ १० १० os -- ११ २ ५ २ 2 राजा राज्य पर अधिकार किया । राज्य किया । 3 राजा माघोसेनने १२ माम २ राज्य किया । माधवसेन । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ c m -UG x ० ! - १६० ] ___ मुहता नैणसीरी ख्यात १११ राजा लीला माधो वरस ११ । मास ११२ राजा माधव माधो वरस है। मास ११३ राजा सुचद माधो' वरस १० मास १० ११४ सक्र माधो वरस ३ मास ११५ राजा देसावल माधो वरस ३ । मास ११६ राजा दससक माधो वरस २ मास ११७ राजा हरिसिंघ वरस १७ मास दससक्र माधोकू मार राज कियो ।' ११८ राजा रणसिंघ वरस १४ मास .. ११६ राजा राज्यासघ वरस ७ मास . १२० राजा वीरसिघ वरस ४५ मास . . १२१ राजा नरसिघ वरस १८ मास १२२ राजा कलोलसिंघ वरस ८ मास १२३ राजा पिथोरा वरस १० मास १२४ राजा अभैमल पिथोरा वरस १४ __ .मास १२५ राजा दुर्जनमल , वरस १५ मास . ६ १२६ राजा उदमल वरस १३ मास १२७ राजा विजयमल , वरस ३६ मास ७, . - मुसलमान १२८ राजा सुलतांण सांगो वरस ३२ “मासः - ३ १२६ सुलताण कुतवदीन वरस ४ : मास · ·० १३० सुलताण अलावदोन वरस १ मास १३१ बेटो कुतबदीन । , १३२ समसदीन* सुलतांण वरस २६ मास . ० . १३३ सुलताण रुकनदीन . वरस ३ दिन १८ 1 दशतक माधोको मार करके राज्य प्राप्त किया। 2 कुतबुद्दीन-1 • 3 अलाउद्दीन 4 शम्नुई।न। 5 रुकनुद्दीन । .. पाठान्तर- सुरचद मोधो, सुवचद, सुखचद मावो। *सकर माघो। . . 0 9 ० 5. 4 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात [ १६१ १३४ साहिजादी आछी, जोरू रुकनदीन को', वरस ६ १३५ सुलतांण मोजदोन, बेटो विरामसाहको वरस २ मास १ १३६ सुलतांण अलावदीन वि० वरस ४ मास १ १३७ सुलतांण नासरदीन वरस १६ मास ३ १३८ सुलतांण गयासुदीन बलबंड वरस २१ मास ५ १३६ सुलतांण कुदाद वरस ३ मास १० १४० सुलताण जलालदी' वरस ७ १४१ सुलतांण अलावदीन वरस २० मास ४ १४२ सुलतांण कुतबदीन ममारख वरस ३ १४३ सुलताण खुसरू' वरस ० मास ६ १४४ सुलताण गयासुदीन तुगलकसाह १४५ सुलतांण महमदी आदल' वरस २७ १४६ सुलतांण पीरोसाह वरस ६ मास ८ १४.१ सुलताण तुगलसाह बेटा खिलचखां10 मास ६ दिन १६ १४८ सुलतांण अबाबकर'1 वरस १ मास ६ १४६ सुलतांण महमदसाह वरस १६ मास ६ १५० सुलतांण अलावदीन वरस १ मास १ दिन ६ १५१ सुलतांण अहमदसाह* वरस १६ मास ६ .१५२ खिजरखा लोदी वरस ७ मास २ १५३ सुलताण-ममारखसाह वरस १३ मास ० दिन २६ १५४ सुलतांण अहमदसाह वरस १० मास ४ १५५ सुलतांण अलावदीन वरस ७ मास ३ १५६ सलतांण बहलोल वरस ३८ मास ५ I रुकनुद्दीनकी जोरू शाहजादी पाछी। 2 सुलतान मौजुद्दीन विरामशाहका बेटा । 3 नासिरुद्दीन। 4 गयासुद्दीन बलवंड (वलवन)। 5 जलालुद्दीन । 6 सुलतान कुतबुद्दीन मुबारक। 7 खुशरो। 8 मुहमुद्दीन आदिल । 9 सुलतान पिरोजशाहका एक प्रतिमे वर्पके आगे दो वर्णोकी शिरो-रेखा और आगे केवल ८ मास लिखे है। 10 खिलचखाका वेटा तुगलकशाह। II अबूबकर। 12 मुवारकशाह । पाठान्तर- महमदसाह (मुहम्मदशाद)। *महमदसाह । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात १५७ सुलतांण सिकदर लोदी वरस २८ मास ५ १५८ सुलताण वहिराम वरस ७ मास २ १५६ सुलताण वावर पातसाह वरस ३८ वरस २६ विलायत मे पातसाही करी । वरस ३ हिंदु स्तान बीच पातसाही कीधी । सर्व वरस ७० राज्य ।' १६० पातसाह हमाऊनू दिलीसू काढियो । पठाण सेरसाह पातसाही लीधी । हमाऊ विलायत गयो। वरस ५ मास ८ पातसाही कीधी। १६१ पातसाह सेरसाह वरस ५ मास ८ राज्यम् । १६२ पातसाह सलेमसाह वरस ६ राज्यम् । १६३ सुलतांण महमदअली वरस २ मास २ १६४ पातस्याह हमाऊ मास ६ १६५ पातस्याह अकबर जलालदीन वरस ५१ मास ३ दिन १३ १६६ पातसाह जहाँगीर' नूरदीन वरस २२ मास ६ दिन २५ १६७ पातसाह साहयार' मास २ दिन २५ १६८ पातसाह साहजहाँ सायवदीन वरस ३२ तठा पछै औरगसाह साहजहाँ जीवत दक्षिणसी आय दारासकरसौं श्रावण वद ६ राजास खेड़े समोगढ कनै लडाई कीवी । दारासाहको नसायकै, साहजहॉकू आगराके कोटमे निजर कैद करकै औरग दिलो जाय, संमत १७१५ श्रावण सुदी १३ शुक्रवार, तारीख १ जुलकादि सन् १०६८ दोय पोहर दिन घडी १ चढियो तव दिलीका मैहला जाय तखत बैठो। तब औरंगसाह आलमगीर कहाणी ।10 पाठान्तर- नूरदी। °समोगर । I वादशाह बावरने ३८ वर्प और फिर २६ वर्ष विलायतमे वादशाही की और हिंदुस्तानमे ३ वर्ष बादशाही की। कुल ७० वर्ष तक राज्य किया। 2 वादशाह हुमायूको पठान शेरशाहने दिल्लीसे निकाल कर वादशाही ले ली । मायू विलायत चलो गया। उसने पाँच वर्ष आठ मास बादशाही की। 3 सलीमशाह । 4 मुहम्मद अदली। 5 बादशाह हमायू। 6 जलालुद्दीन अकबर। 7 नूरुद्दीन जहागीर वादशाह। 8 शहरयार । 9 शाहजहां शहाबुद्दीन । १० जिसके बाद औरगशाहने शाहजहाँके जीते जी दक्षिणसे पाकर दाराशिकोहसे सावन वदी को राजाम खेडेके समोगढके पास लडाई की। दाराशाहको भगा कर गाहजहांको आगरेके किलेमे नजर कैद करके सम्वत् १७१५ श्रावण सुदी १३ शुक्रवार, तदनुसार तारीख १ जिलकाद, सन् १०६८को दो पहर और एक घडी दिन चढा तव दिल्लीके महलोमे जाकर तख्त पर बैठा । औरगशाह आलमगीरके नामसे प्रसिद्ध हुआ । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ।। अथ वात सेतरांम वरदाईसेनोत राठोड़री लिख्यते राजा वरदाईसेन कनवज माहै राज करै । सो वरदाईसेनजीरै सेतराम कुवर सो वडो सिरदार । पण नित्य-प्रत ३ पईसां भर अमल खावै तीनै वखते ।' पण डील बहोत चाक रहै । ताहरा कि हिकै राजानू कह्यो-'जु महाराज कुमार तो तीन पईसा भर अमल रोज खावै छै। ताहरां राजा वरदाईसेनजी कही-'दीस तो चाक छै, पण अमल खोवै छै तो उरहो बोलावो ज्यु पूछां। ताहरां सेतरांम वरदाईसेनजीरी हजूर आयो। ताहरां राजा पूछियो। कह्यो'कुमार ! तू अमल कितरोक खावै छै ?; ताहरां कुवर कही'महाराज ! हू तो अमल कोई खाऊ नही । ताहरां वरदाईसेनजी कह्यो-'तो म्हारी प्रांण छ, साच बोल ।” ताहरां कुवर सेतरांम कह्यो-'राज ! तीन वखतै तीन पईसां भर अमल खाऊ छू । ताहरा राजा अमल मगाय खवायनै देखियो ।' ताहरां राजा कह्यो-'वेटा ! जके तीन पईसा भर अमल रोजीना खाय, तिणसू काई भली होणहार नही । वेटा ! थे बेहवाल हुआ 110 तद कुवर कही-'राज ! अमल खाधो तो कासू हो ? पण कठै मेल जोवो, काय चाकरी भळाइ जोवो ?11 देखां, किसोइक काम करू छू।12 - परतु नित्य प्रति तीन पैसे भर (लगभग सवा पाच तोले) अफीम दिनमें तीन बार करके खा जाता है। 2 परतु गरीर बहुत तदुरुस्त रहता है। 3 तव किसीने राजाको कहा कि 'महाराज-कुमार तो तीन पैसे भर नित्य अफीम खाता है।' 4 दिखता तो निरोग है, परन्तु जो अफीम खाता ही हो तो यहा बुला लो सो पूछ कर देख ले। 5 कुमार । तू कितना अफीम खाता है? 6 मैं तो अफीम नही खाता। 7 तुझे मेरी शपथ है, सच कह दे। 8 महाराज | दिनमे तीन समय तीन पैसो भर अफीम खाता हूँ। 9 तब राजाने अफीम मगवा कर और खिला कर जाच की। 10 पुत्र | जो तीन पैसो भर अफीम नित्य खाता है, उससे कोई भला (पुरुपार्थ) होने वाला नही । पुत्र ! तुम बेहाल हो गये। II अफीम खाने लग गया तो क्या हुआ ? कही भेज कर देख लीजिये, कोई चाकरी जिम्मे देकर देख लीजिये ? 12 देख ले, कैसा काम बजा लाता है। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १६४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात अर जो परै दाय न ग्राऊं छू तो क्या गळं पड़िया छां नहीं ।" र वेटो थाह छू सो तो धोयो ही उतरां नही । 2 और कमाय खावस्यां । ताहरा रावजी कही- 'जु, ग्रजू तो कमायो नही है । कमावसो तद देखस्या ?" ताहरा कुवर तो ठासी ऊठ घर आपर रहवास ग्रायो, पण उदास बहोत हुयो ।" ताहरां रात पड़ी । 6 ताहरा सेतरामजी घोडै जीण कराय ग्रापरा हथियार बाध चढ चालतो हु ।' ताहरां सेतरांम चालतो चालतो एक राजारं प्रायो । सेतराम राजासू मिळियो ।' ताहरा राजा सेतरामनू जात पूछ र पर गोढ राखियो । अवै सेतराम ग्रठे रहे ।" 7 8 सु एक दिन राजा सिकार चढियो हुतो । 20 साथै सरव साथ छै । अर सेतराम पण साथ छै । तठे सिकार ग्राय कठै छाया 11 12 13 बैठा छे ।' अठै एक राकस रहे । 32 सुतिको राकस म्रगरो रूप कर राजार वीच कर नीसरियो ।" तद राजा कह्यो - 'हाँ, जावण न पावे | 24 तद श्रौर तो सरब बैठा रह्या, ग्रर सेतरांम घोड़े चढ र लारें हुवो। 25 आगै म्रग और वांस सेतरांम । " ताहरां आगे रोही में जावतां राकस गरी भैसो हुवो। 17 ताहरा भैसो सेतरामरै साम्हा ग्रायो । " ताहरां 16 - 1 और जो प्रापके पसद नही आता हू तो आपके कही गले तो नही पड़ा हू । 2 और आपका पुत्र हू सो तो घोनेसे भी नही मिट सकता । ( धोया ही नही उतरणोः १ असभव बात कभी सम्भव नहीं हो सकती । २ सम्वन्ध सम्बन्ध नही हो सकता ) । 3 और कही कमा खायेंगे | 4 अभी तक तो कुछ कमाया ( उपार्जन किया) नही है । कमानोगे तव देख लेंगे ? 5 तव कुमार यहाँसे उठ कर अपने निवासस्थान पर आ गया, परंतु उदास बहुत हो गया । 6 तव मेतरामजी घोडे पर जीन कसवा, शस्त्र वाँध और चढ़ कर 7 सेतरामजी राजामे मिला । 8 तत्र राजाने सेतरामको उसकी जाति यादि पूछ कर अपने पास रख लिया । 9 अव सेतराम यहाँ रह रहा है । JIO सो एक दिन राजा शिकारको चढ़ा था । 11 वहाँ ये शिकारके लिये आकर कही छायामे बैठे हुए है। 12 यहा एक राक्षस रहता है । 13 सो वह राक्षस मृगका रूप बना कर राजाके ( पडावके) वीचमे होकर निकला । 14 हा, सरदारो ! यह जाने नही पाये । चलता बना 15 और सेतराम घोडे पर चढ कर पीछे हुग्रा । 16 17 तब आगे जगलमें जाते-जाते राक्षस मृगमे भैंसा वन सम्मुख श्राया । धागे मृग और पीछे तेतराम । गया । 18 भैंसा सेतराम के Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाईसेनरो बेटो छ, न तो हू वर कह्यो-'जु परभा मुंहता नैणसीरो ख्यात [ १६५ सेतरांम पण ऊभो रह्यो। ताहरां भैंसो राकस रूप कर बोल्यो। कहियो-'वडा रजपूत ! ओ राजा तो केहो कामरो न छै अर तू वरदाईसेनरो बेटो छै, सो तू म्हनै सौ बाकरा, सौ भैसा अर सौ मण दारूरी म्हनै वळ दै तो तोनै हू वर देऊ । ताहरां सेतरांम कह्यो-'तो किस दिन दियां ?' ताहरां राकस कह्यो-'जु परभात देज्यो ।' ताहरां सेतरांम कह्यो-'पा म्हारी बाह छै । परभातै वळ ले आवां छां ।' ___ताहरा सेतराम पालो आयो । ताहरा राजा पूछियो। कह्योसेतराम ! कोसू हुतो ?" ताहरा सेतराम कह्यो-'महाराज ! हिरण थो सु नीसर गयो । ताहरां झै अठै गोठ जीम घरै आया छ ।' तद सेतरांम सौ भैसा, सौ बाकरा पर सौ मण दारू मंगायो। ताहरां रात आधीक गई, ताहरा सेतरांम वळ सरब ले अर अ राकसरै ठिकाण आयो । ताहरां बकरा, भैसा मार, दारू नाख अर राकसनू वळ दियो ।11 राकस त्रिपत हुओ। ताहरां राकस कही'जु, सेतरांम ! तू कहै तो तोनै द्रव्य वताऊं ?' ताहरा सेतराम कही-'द्रव्य तो म्हारै घणो ही छै, पण कोई इसो वर दै तैसू नाम रहै ।13 ताहरा राकस कही-'जा, तैमे पांच हाथियारो बळ हुसी।14 सेतरांम मे पाच हाथियांरो बळ हुयो । ताहरा सेतराम विचारियो'जु ईयै राजार तो न रहा, और कठे ही जायगा जावस्यां । ____ ताहरा सेतराम उठसू आपरो हक चुकाय अर चालियो सु केही I तब सेतराम भी खडा रह गया। 2 तव भैसेने राक्षसका रूप बना कर कहा। 3 यह राजा तो किसी कामका नही है और तू है वरदाईसेनका पुत्र, अत तू मुझे १०० वकरे, सौ भैसे और सौ मन मदिराकी वलि दे तो मैं तुझे वरदान दू । 4. कौनसे दिन दू? 5 कल प्रभातको देना। 6 यह मेरी वाह है (मेरी प्रतिज्ञा है), प्रभातको बलि ले पाता हूँ। 7 क्या था वह ? 8 हरिण था सो निकल गया। 9 तव ये गोठ जीम करके घर पर आ गये है। (गोठ=प्रीतिभोज)। 10 जब अाधी रातके लगभग हो गई तब सेतराम वलिका सब सामान लेकर राक्षसके ठिकाने पर आया । II तब वकरे और भैसोको मार कर और शराब डाल कर राक्षसको वलि दी। 12 राक्षस तृप्त हुआ। 13 द्रव्य तो मेरे पास बहुत है परन्तु ऐसा वर दे जिससे मेरा नाम प्रसिद्ध हो। 14 जायो, तेरेमे पाच हाथियोका बल होगा। 15 अव इस राजाके यहाँ तो नही रहे, और कही दूसरी जगह जायेंगे। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] मुहतो नैणमोरी ख्यात बीजै राजारै सहर आयो । तद सेतराम दरबार मांहे ग्राय बैठो । ताहरां दरबारी ईयारी पोसाख पर बळ देख अर भीतर जाय राजासूरज गुदराई । " कह्यो - 'महाराज ! एक इसो सिपाही ग्रायो छै सु देख्यो चाही । बडो सिरदार है ।" ताहरा राजा कही - ' तो । भीतर बुलावो ।' ताहरा दरबारी सेतरांमनू भीतर ले गयो । और जाय राजा मिळियो । राजा सेतरामरी पोसाख देखने बहोत ही राजी हुआ । विचारी - 'ग्रो कोई सिरदार दीसै छे ।" ताहरां राजा वडो आदर करने बैठायो । अर राजा पूछियो - 'जु कि - जातिया सिरदार छो ?" ताहरा सेतरामजी कह्यो - ' राठोड छा", चाकर राखो तो अठै रहीं ।" ताहरा राजा रुपिया चार रोजीना कर दिया अर चार राखियो । | 9 $ हमैं सेतराम श्रठे रहे चाकर वासै अर साथ भेळो करें, घोड़ा भेळा करें, वडे सैमानसू रहै । तठे सेतरांम राजारी हजूर श्राव सु बरछी लिया आवै तद मुजरो करै । राजा कहै - 'बैठो ।' ताहरा बरछी लेअर खड़ी कर दावे सु बिछायत माहे कर गढरो प्रांगणो तैमे हाथ एक बरछी गरक हुवै । 20 सु राजा तो काहिणनू मन हकरे, पण लोक देखे र राजारी राणी पण कही भांत देखें ", सु अँ हैरान रहै अर विचार - 'जु आज ई वराबर सामंत कोई नही | 2 1 1 तव सेतराम वहाँसे अपना हक अदा करके रवाना हुआ सो किसी दूसरे राजाके शहरमे आया । 2 तव दरवारीने इसकी पोशाक और वलका अनुमान कर और भीतर जाकर राजासे अर्ज पेश की । I 3 महाराज एक ऐसा सिपाही श्राया है सो देखना चाहिए (देखने योग्य है ।) वडा सरदार है । 4 यह कोई सरदार दिखता है 5 किस जातिके सरदार हो ? 6 राठोड है । 7 चाकर रखो तो यहाँ रहें । 8 अव सेतराम यहाँ चाकर वासमे रह रहा है, आदमी और घोडे इकट्ठे करता है और बडे ठाठसे रहता है । 9 वहाँ सेतराम मुजरेको त्राता है तब अपने साथ वर्धी लेकर आता है और बछ के साथ मुजरा करता है । 10 तव वर्धी खड़ी करके दवाता है सो विछायतमे होकर गढ के लागनमें एक हाथ ऊडी वर्धी प्रवेश हो जाती है । II सो राजा तो इधर ध्यान ही क्यो देने लगा, परन्तु दूसरे सभी लोग देखते ही हैं श्रौर राजाकी राणी भी किसी प्रकार देख लेती है 1 12 आज इसके समान सामंत कोई नही है । " 'काहिणनू मनह करें' पाठान्तर है । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १६७ सु प्रो रोज नवी नवी जायगा बरछी खो है सु आगणा में वेडा - वेडा हुय रह्या 12 ताहरा रांणी एक दिन सात तवा लोहरा, सवा-सवा मणरो एक-एक तवो, कराय पर जठै सेतराम प्राय बैसतो तठे गचमें तवा गडाया । ऊपर विछावणा विछाया ।" ताहरा प्रभातरा सेतरामजी राजाजीरी हजूर मुजरे या ताहरां वैसतां बरछी दावी ज्यु भूय करड़ी लखाई, ताहरां जोर कर दाबी, सु बरछी हाथ दोय गडी । ताहरां सेतरांमजी मनमे जाणियो- 'आज तो बरछी बळ करायो । 14 पर्छ सेतरांमजी बैठा । ताहरा राणी जाणियो- 'जु तवा तो फोडिया पण बरछी काडसी किसी भांत ? पर्छ सेतरांमजी कित रीहिक जेजसू बोहडण लागा; बरछीनू हाथ घातनै ज्युं खांची सु तवा साते ही साथै आया बरछीरै ।" प्रांगणो पण खुल गयो अर विछायत पण ऊपडी । ' ताहरा राजा कह्यो - 'प्रो कासू ? ताहरां सेतरांम कही - 'महाराज ! हूं बैठतो तठै बरछी गडती, सु दीसै छे आज कोई म्हारी मसकरी कीवी छै ।" तद राजा विछावणा परहा कराय देख तो कासू ? सारे ही वेडा-वेडा छै । 10 ताहरा राजा बहोत महरवान हुआ । वडो कारण कियो अर रिजक पण वडो कर दियो 111 18 अठै सेतरांमजीरो पण एक जुदो ही राज हुआ। 12 ताहरां यु करतां राजा एक दिन सिकार चढियो सरव साथ लेयर 123 साथै I यह नित्य नई-नई जगहोमे वर्धी घुसेडत । है सो श्रागनमे खड्डे ही खड्डे हो रहे हैं । 2 तव रानीने सवा-सवा मनके लोहे के सात तवे करवाये श्रौर जहाँ सेतराम श्रा करके बैठा करता था वहा गच के अदर तवे गडवा दिये श्रौर ऊपर बिछौने विछवा दिये । 3 प्रभातके समय जव सेतरामजी राजाजीकी हजूरमे मुजरा करनेको प्राये तच बैठते हुए वछको दबाया सो भूमि कठिन मालूम हुई, तो जोर करके दबाया सो वर्धी दो हाथ गहरी गड गई । 4 आज 'तो बछने जोर मागा है । 5 तवे तो फोड दिए परन्तु वर्धी निकालेगा कैसे ? 6 कितनी देरके बाद जब सेतरामजी लोटने लगे तो बछको हाथ डाल कर ज्यो खींचने लगे त्योही बके साथ सातो तवे उखड़ श्राये । 7 प्रांगन खुल गया भोर विछायत भी साथ की साथ उठाई | 8 यह क्या ? 9 महाराज | जहाँ मैं बैठता था वहां वर्धी गड जाया करती थी सो श्राज ऐसा मालूम होता है कि किसीने मेरी मजाक कर दी है । IO तव राजा विछायतको दूर करके क्या देखता है कि सभी जगह खड्डे हो खड्डे बने हुए हैं । वडा सम्मान किया श्रोर जीविका भी वढा दी । 12 यहा सेतरामजीका भी एक अलग राज्य कायम हो गया । 13 एक दिन राजा सभीको साघमे लेकर शिकारको चढ़ा । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात सेतरामजी पण हुअा।' सु कठक जावता सूअररो सिकार हाथ आयो । सु केई केहि पास सूअरा वांस दिया, केई केहि पास हुआ । सेतरामजी एकै सूअर वास घोडो दियो । सो सूअर कठे ही जाय नीसरियो । जठे' हाथियारो वन हुतो अर रात पडण लागी । ताहरा सेतरामजी एके रूख चढि वैठ रह्या छ अर घोडो रूख हेबाधियो हुतो", सु सीह खाय गयो । ताहरा प्रभात हुयो । ताहरा सेतरामजो विचारियो-'जु घोड़ो तो नही अर डील मे भारी सु पाळा चालियो न जाय । ताहरां मन मे विचारियो-'जु एकै हाथी चढ अर जावां ।' ___ ताहरा सेतरामजी एकै नाळेररै रूख चढि पर बैठा छ ।' तितरै एक वडो हाथी आय नाळेररै रूख नीचे नीसरियो । ताहरां सेतरांमजी उठसू धमक अर प्राय हाथी चढिया । ताहरा हाथी क्यु जोर करण लागो। ताहरा सेतरामजी दोय कटारी वाही तैसू सूधो हुयो । सु हाथो लियां-लिया सहर पाया । ताहरा सेतरामजी राजारी हजूर पाया। ताहरां हाथी लोहीसू ववाळियो राजा दीठो।” तद राजा पूछियो । कहियो-'यो कासू ?' ताहरा सेतरामजी कह्यो'जु सूअर तो नीसर गयो पर इण भांत रात वनमे रह्या । सु घोडो तो सिंघ मार गयो । ताहरां म्हे पाडो पकड अर चढ पाया।18 'ताहरा राजा वळे बहोत महरवान हुयो । I सेतरामजी भी साथ हो गये। 2 सो कही एक दूर जाते सूअरका शिकार हाथ पाया। 3-4 सो कईयोने किसी (एक) ओरसे और कईयोंने किसी (दूसरी) पोरसे सूपरो के पीछे अपने-अपने घोडे दिये। 5 सेतरामजीने भी अपना घोडा एक सूअरके पीछे दिया। 6 सो सूअर तो कहीं जा निकला। 7 जहाँ। 8 वृक्ष। 9 नीचे। Io था। II सो सिंह खा गया। 12 घोडा तो है नही और खुद शरीरमे भारी इसलिए पैदल तो चला नहीं जा सकता। 13 तब सेतरामजी एक नारियलके वृक्ष पर चढ कर बैठ गए हैं। 14 तब सेतरामजी उस परसे कूद कर हाथी पर सवार हो गए। 15 सेतरामजीने कटारीमे दो प्रहार किए जिससे सीधा हो गया। 16 मो हाथीको लिये लिये शहरमे पाये। 17 तब राजाने खूनसे लथ-पथ हाथीको देखा। 18 तव हम इस पाडेको पकड कर चढ पाये। 19 पुन । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ १६६ ताहरा तो अठै रहै छै ।' अर ईयै राजारो भाई सो दूसरै सहररो धणी । सु तेरो बेटो परणीजण कठक गयो हुतो सु हलांणो लियां पावतो। सु वीच आवतां महळरो डोल वेचाक हुो । ताहरां एकै सहर आय मुकाम कियो । ताहरां कुवर सहररै राजानू कह्यो'जु थाहरै कोई वैद हुवै तो मेलो। ताहरा राजारै नाई वैद हुतो, तियेनू राजा कुवररै डेरै मेलियो । ताहरा कुंवर नाईनू' भीतर ले गयो । आगै तम्बूरो कोटडी माहै महळ सूतो हुतो। ताहरां पड़दैसू हाथ बाहिर काढि अर नाड़ दिखाई । ताहरां नाई हाथ देख अर थकित हुओ।' विचारो-'जु जैरो ओ हाथ छै तो रूपरी निधान हुसी।10 ताहरां नाई तो नाड देख, ओखद वताय अर घरै आयो।11 ताहरा मास एक कुवर अठै रह्यो । महळ चाक हो । ताहरां नाईनू घोडो सिरोपाव दे विदा कियो। ताहरा नाई राजारी हजूर गयो । ताहरां राजा पूछियो। कह्यो'रे ! आयो ?14 ताहरा नाई कह्यो-'महाराज ! आयो तो सही, पण कुवररै महळ छै तैसो आज कहीरै नही । वडा वखांण किया । तद राजा कही-'तो कही भात आपण ही हाथ आवै ?17 ताहरा नाई कह्यो-'राज ! कुवरनू मारने लेवो तो हाथ आवै।' तद राजा अठसू19 चढ अर कुवररै डेरे पायो। ताहरां राजा कहियो-'जु कुवरजी ! राज प्रभात माहरी महमानी जीम पर चढो।20" ____ I यह तो यहाँ रह रहे है। 2 इस। 3 सो उसका बेटा कही शादी करनेको गया था सो वधूको ले करके पा रहा था। 4 सो पाते रास्तेमे वधू बीमार हो गई। 5 तुमारे यहां कोई वैद्य हो तो भेजिए। 6 राजाके पास एक नाई वैद्य था उसे राजाने कुंवरके डेरे पर भेजा। 7 नाईको। 8 तवूफी एक कोटरीमे स्त्री सोई हुई थी। 9 नाई हाय देख कर चकित हो गया। 10 जिसका यह हाथ है वह रूपकी तो निधान होगी। II तब नाई नाडी देख और प्रौषधि बता कर अपने घर पर पा गया। 12 स्त्री स्वस्थ हो गई। 13 तव नाईको घोड़ा और सिरोपा देकर विदा किया। 14 अरे ! आ गया । 15 महाराज ! ा तो गया ही हू , परतु उस कुवरकी जो स्त्री है ऐसी रूपावान स्त्री आज किसीके नही। 16 उसके बहुत बखान किए। 17 किसी प्रकार अपने हाथ वह लग सके ? 18 मार कर। 19 यहाँसे। 20 कुवरजी । पाप कल प्रभातमे हमारा मातिथ्य स्वीकार करें और भोजन करके रवाना होएं। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] मुहता नैणसीरी ख्यात 1 ताहरा इहां वडी हठ कियो आपस मे । " पण ग्राखर कुवर प्रारं हुम्रो ।' कह्यो - 'भला राज ! जीम ग्रर चढस्यां । " ताहस राजा महमांनी तयारी कीवी । श्रर दारू ग्रासो मगायो तं पियासू तुरत घूट हुवै । श्रर राजा श्रपरा चाकरांनू को - 'ग्राज सारत छ, जद हूं कहू - कुंवरजीनूं एक प्यालो वळं फेरो, ताहरां थे लोह कर मार लिया । 5 1 7 8 9 ताहरा गोठ तयार हुई । ग्रर कुवरनू, सारै साथनू कोट मे तेडि ले आया । अर वासै आदमी ५-१० राख ग्रर कुवर राजा पासे यायो । अर कुवरनू घर रजपूतानू इसा छकाया तैसू पग टेक सगँ नही ।° ताहरा कुवर राजानू कही - 'राज । ग्राप पण श्रावो जीमां । तद राजा कही- 'हू थाहरी चाकरी मे ऊभो छू ।" ताहरां सारै साथ परीसारो करण लागा । ताहरां राजा सारत वोलियो । * कह्यो - 'एक प्यालो वलै फेरो 25 ताहरां राजारो लोक ऊभो थो तिकै भच भचाय र कुवरनू र रजपूतानू मार लिया । 1 111 112 13 | 16 17 राजा चढ डेरै आयो । घर राजा महळनू लेग्रर घर घातियो । " र लोक नाठो सुईये राजा पास थायो अर कही - 'आ हकीकत हुई । कुवरजीनू मारिया श्रर महल ले गया । 128 तो इन्होने परस्पर बडा हठ किया । 2 परन्तु अन्तमे कुंवर विवश हुआ (स्वीकार किया 1 ) 3 अच्छा श्रीमान् ! भोजन करके रवाना होगे । 4 तव राजाने भोजनकी तैयारी की । 5 और ऐसा श्रामा मद्य मगवाया जिसके पीने से तुरन्त वेभान हो जाय । 6 राजाने अपने चाकरोसे कहा कि ग्राज यह सकेत है कि जब मैं कहूँ कि कुवरजी के लिए एक प्याला घोर फिराया जाय, तव तुम शस्त्रोके प्रहार कर मार देना । 7 अव गोठ (भोजन) तैयार हुई | 8 कुवरको श्रीर उसके समस्त साथको कोटमे बुला कर ले प्राये । 9 पीछे सिर्फ ५-१० आदमियोको रख कर कु वर राजाके पास आया । 10 यहाँ कुंवर प्रोर उसके राजपूतों को शराब पिलाकर ऐसा छकाया कि खडे हो तो पाँव भी नही टिक सके । 11 तब कुंवरने राजासे कहा कि राज ! आप भी श्राईये श्रौर भोजन करिये । 12 मे तुमारी चाकरीमे खड़ा हूं | 13 तव सबको परोसगारी की जाने लगी । 14 तब राजाने संकेत मे कहा । IS एक प्याला ओर फिराम्रो । 16 तब राजाके आदमी खड़े थे उन्होने भचाभच शस्त्र चला कर कुंवर और उसके राजपूतोको मार दिया । 17 राजाने उसकी स्त्रीको ले जाकर अपने घरमे डाल दो | 18 शेष लोग जो रह गए थे वे वहाँसे भागे सो इस राजा ( कु वरके वाप) के पास आये और कहा कि कुंवरजीको मार दिया है और वधू को वह राजा ले गया । यह हकीकत वोती है । 1 Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नेणसीरी ख्यात [ २०१ 13 4 ताहरा ईयै राजा साथ भेळो कियो र भाईनू कहायो - 'जु भाभोजी ! एक हजार असवार म्हांरी मदत मेलज्यो । कुवर रै वैरनूं चढां छां ।" ताहरां ईयै राजा कहाई - 'जु भावै हजार ग्रसवार लियो अर भावै एकलो सेतरांम ल्यो ।" तद आदमियां जाय कहियो - 'जु महाराज ! भावै हजार सवार ल्यो, भावै एक सेतरांम ल्यो ।' ताहरां राजा कहियो - 'सेतरांमनू ले आवो ।' ताहरा आदमी लेअर सेतरांमनू राजारी हजूर आया । ताहरा राजा ठेसू चढियो सु ईयै राजारै सह आयो । ताहरा ईयै राजा सहर तो उजड कियो ग्रर कोट सझियो ।' ताहरा ओ राजा अठै लड़ियो सु वरस २ अथवा ३ लड़ियो पण कोट भिळे नही ।" ताहरा राजा सेतरांमजोनू कही'कोट तो भिळे नही अर सांम्हो लोकरी ज्यांन है छै ।" ताहरा सेतरामजी कही - 'जु जो म्हारी पूठ राखो तो दरवाजैरा किवाड छे सुहू तोडू । र पछै भीतर थे वड़ज्यो ।" ताहरा राजा कही - 'बहोत भलां ।' ताहरां औ चढ हल्लो कर, अर दरवाजे प्राय लागा ।2° ताहरां सेतरामजी घोड़े उतर पर किवाडांनू टिल्लो दियो । 2 ताहरां किवाड़ हुता सु तूट गया और अठै राजा भीतर . वडियो । 12 अर सेतरांमजीरं पण घाव लागा | आगलै राजारो लोक सरब मार लियो । गढ लियो । 13 1 तब इस राजाने साथ जोडा और ग्रपने भाईको कहलवाया कि भाभाजी | एक हजार सवार हमारी मदद के लिए भेजिये । 2 कुवरको मार देनेके वैरका बदला लेने के लिए चढाई कर रहे हैं । 3 चाहे तो एक हजार सवार लेश्रो चाहे अकेले सेतरामको लो | 4 तब राजा यहाँसे चढा सो इस राजाके शहरको प्राया । 5 तत्र इस राजाने शहर दो खाली कर दिया और कोटमे युद्धकी तैयारी की ( कोटको युद्ध सामग्री से सज्जित किया ) | 6 यह राजा २ या ३ साल तक लडा परन्तु गढ कब्जे नही होता । 7 श्रौर उलटी लोगोकी वरवादी हो रही है । 8-9 जो मेरी मदद करो तो दरवाजेके किवाड तो मै तोड दू । और वादमे भीतर तुम लोग घुस जाना । 10 तब ये लोग एक साथ हल्ला करके दरवाजे तक ग्रा लगे । II तब उस समय सेतरामजीने घोडसे उतर कर किंवाडोको धक्का मारा । I 2 तब किंवाड थे सो टूट गये और राजा अदर घुस गया । 13 प्रगले राजा के सभी मनुष्योको मार दिया और गढ़ पर अधिकार कर लिया । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 3 4 ताहरा राजा सेतरामजीनू कही - 'जु वडा राठोड़ ! ते कीवी जिसी तू हीज करें । पण हमे बीजो तोनू कासू देऊ ? म्हे तने म्हारी बेटी दीवी ।" ताहरां सेतरांमजी ऊठ सलांम कीवी । अठै सेतराम - जीरा घाव साजा कर अर आपरा किलेदार बैठाय, अर राजा नै सेतराम श्रपरे घरे सहर आया । ताहरां राजा सेतरांमजीनू भलीभांत परणायो । आधो राज दियो । वडो दायजो दियो । घोड़ा, हाथी दिया । ताहरा सेतरांमजी मास १ अठै रह्या । ताहरां वै राजा सेतरांमजीनू तेडायो । ' 8 9 ताहरां सेतरांमजी सुसरेनू कही - 'महाराज ! हमे मोनूं विदा दीजै । म्हने राजा बोलायो छे । चाकर हूं उवांरो छू ।"" ताहरा राजा जवाईनू-बेटीनू विदा दीवी । 12 सेतरामजी हलांणो लेअर उवै राजा पास आया । " ताहरा राजा सांम्हां जाय ले आयो, अर वडी मनुहार कीवी । ताहरां राजा कह्यो - 'थां कीवी जिसी थांसू ही है।' 13 14 15 16 18 ताहरां सेतरांमजी अठे रहे छै । अर एक भोमियो धाड़े दोड़ियो' सुई " सहर आयो । आयनं सहररो वित घेरियो । 28 ताहरां खबर हुई - 'जु भोमियो सातवीसी असवारांसू आयो ने सहररो वित लियो ।19 ताहरां सेतरांमजी एकल सवार वांस चढ दोड़ियो । १° नै वांस राजा पण वाहर चढियो । ताहरां पहली कटकनू सेतरांमजी 20 1 तव राजाने सेतरामजीको कहा - बड़े राठोड ! तूने श्राज जो किया है वैसा तो तू ही कर सकता I 2 परन्तु इसके वदलेमे में तुझे और क्या वस्तु दू ? मैंने तुझे अपनी पुत्री दी । 3 तब सेतरामजीने उठ कर सलाम की । 4 यहां 5 ठीक, अच्छे, स्वस्थ | 6 अपने 1 7 विवाह किया। 8 बहुत दहेज दिया । 9 तव उस राजाने सेतरामजीको बुला लिया । 10 महाराज ! अव मुझे जानेकी श्राज्ञा दीजिये, मुझे राजाने वुलवाया है । II मैं उनका चाकर हूँ । 12 तत्र राजाने अपने दामाद और वेटीको रवाना किया | 13 सेतरामजी अपनी वबूको लेकर उस 14 तव राजा सामने जाकर ले आया और बढ़ा सत्कार किया । 15 तुमने जो विलक्षण शूर-वीरताका काम किया है, वह तुमसे ही हो सकता है | 16 एक भोमिया लूट-खसोटके लिए दोडा । 17 इम । 18 आकरके शहरका गोधन घेर ले गया । 19 कि भोमिया सात-वीसी (१४०) सवार के साथ श्राया और केला मवार होकर पीछे दोडा । राजा के पास आये । शहरका गोवन ले लिया है । 20 तब सेतरामजी Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २०३ 2 13 14 6 8 पुहता । ताहरां सारा ही असवार पूठा फिरिया । " कहियो - 'एक असवार छै ।' 'ताहरा भोमियै कह्यो - 'रजपूत ! हथियार दे अर जीवतो जा । ताहरां सेतरांमजी कह्यो - 'थे म्हांरो वित, हथियार दे अर जीवता जावो । पछे सेतरांमजी भोमियांनू कही - 'थे पहली लोह करो, ज्यु पछै हूं करूं ।" ताहरां पहली सातवीसी तीर छूटा सु सरब सेतरांमजीरै लागा ।' ताहरा सेतरामजी घोडो उपाड़ नाखियो; सु सिरदार थो जिणनू सेतरांमजी मार लियो बरछीसू ।' ताहरा भोमियारा असवार भागा । ताहरां सेतरांमजी यारं तीररी दै सुठोड रहै । ताह असवार ५०क तो मार लिया। ताहरां बीजा दीठो- 'जु मार सिगळानू ।" तद हथियार छोड़-छोड सेतरामजी श्रागे आया नै कहियो'म्हानू मारो मती । ' ताहरा सेतरामजी सारानू मुसका बांधिया अर घोडा, हथियार, वित सरब लेअर पाछा प्राया । 12 ताहरा राजा दीठो‘जु सेतरांम कांम ग्रायो र भोमियो पाछो आयो ! 32 ताहरा साहणी दोड़ आया, देखै तो सेतरांमजी आवै छै । ताहरा पाछा श्राया खबर दी कहियो- 'जु सेतरांमजी आवै छै । भोमियो मारियो र रजपूतानू बांधे लिया आवै छै ।" ताहरा राजा सांम्हा जाय अर सेतरामजीरी निछरावळ कर र घरे ले आयो छे । 24 घोडा, हाथी दिया । 110. 113 16 ताहरां सेतरामजी केइक दिन अठै रहिने राजासू विदा कीवी छै । 15 राजा वळे दत-दायजो घणो रिजक देवर विदा दीवी । सेतरांमजी वडी जलूसाईसू कनवज पधारिया । 17 पहुँचे। 2 तब दूसरे सभी सवार पीछे लोट गये । 3 राजपूत ! प्रपने शस्त्र हमे दे दे श्रौर जिंदा चला जा । 4 तुम हमारा गोधन और शस्त्र देकर जीवित चले जाश्रो । 5 तुम पहले प्रहार करो और पीछे मैं करूं । 6 तव पहले १४० तीर छूटे सो सभी सेतरामजीके लगे । 7 फिर सेतरामजीने अपना घोडा उठाया और जो घाडेतियोका सरदार था उसे वर्धीका प्रहार कर मार गिराया । 8 फिर सेतरामजी इन पर तीर चलाने लगे सो जिसके लगे सो उसी ठिकाने रहे । 9 तव दूसरोने देखा कि यह तो सबको मार देगा । 10 हमे मत मारो । II तब सेतरामजीने सबकी मुश्के बाँध दी और उन्हें उनके घोडे, शस्त्र और गोवन शादि सर्व लेकर पीछे लौटे। 12 तब राजाने देखा कि सेतराम तो काम आ गया और भोमिया वापिस लौट कर आ रहा है। I 13 कहा कि यह तो सेतरामजी श्रा रहे हैं । भोमिएको मार दिया है और उसके दूसरे राजपूतोंको वाघ कर लिए आ रहे हैं । 14 तब राजा सामने जाकर सेतरामजी पर निद्धरावल करता हुग्रा अपने घर ने घया है। [S कई दिन यहाँ रह करके सेतरामजीने राजासे विदाई ली । 16 राजाने चोर वहुत सा धन माल और दहेज देकर विदाई दी । 17 सेतरामजी बडे ठाटसे कन्नोज गये । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ } मुहता नैणसीरी स्यात ताहरां राजा वरदाईसेनजी सांम्हा जाय कुवरनं वदाय घरे ले । आया छ ।' राजा वरदाईसेनजी बेटैन देख बहोत राजी हुआ। विचारी-'जु वेटो सपूत, धरती भलीभांत राखसी।' ___ ताहरां कितरेहेक वरसे पछै वरदाईसेनजी देवलोक हुआ। नाहा सेतरामजी टीक बैठा । सेतरामजी वडो प्रतापीक राजा दुयो। ॥ इति मेतरांमनी वरदाईसेनोत री बात संपूर्ण ॥ :१६ Preratri -:::FT F : + orm a t परे कारनायर ( मेमो) AT.देशासमा Rai HT * Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामजी ।। वीकानेर री हकीकत रावजी श्री वीकैजोरै कंवरां रा नाम१. रावजी श्री लूणकरणजी। ५. मेघवीसो। २. नरोजी। ६. राजो। ३. घड़सीजी। ७. देवराज । ४. केल्हणजी। __रावजी श्री लूणकरणजीरे कंवरां रा नाम१. रावजी श्री जैतसीहजी ६. करमसी। २. परतापसी (परतापसिंघ) ७. रूपसी। ३. रतनसी। ८. रांम (रांमसी, रामसिघ) ४. वैरसी (वैरीसिंघ) ___६. सूरजमल । ५. तेजसी १०. किसनसिघ । __रावजी श्री जैसिंघजीरै कंवरांरा नाम१. रावजी श्री कल्याणमलजी ८. सिरंगजी (श्रीरंगजी, २. भीमरावजी (भीमराजजी, सिरंगसीजी) भीवराजजी) ६ सुरजनजी। ३. मालदेजी (मालदेवजी) १०, कांन्ह । . ४. ठाकुरसी। ११. भोजराज । ५. मानसिंघ। १२. करमचंद । ६. अचळदास । १३. तिलोकसी। ७. पूरणमल । ____I कई प्रतियोमे मेघवीसो और मेघसी नाम लिख करके वीकाजीके कुंवरोकी संख्या ७ वताई है. परन्तु कई प्रतियोमे मेघो और वीसो अलग अलग लिखे है इस प्रकार उनके कुवरोकी सख्या उनमें आठ बताई गई हैं। मेघो और वीसो अलग-अलग दो नाम होना ही ठीक प्रतीत होता है। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात रावजी श्री कल्याणमलजीर कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री रायसिंघजी ६. अमरो। २. रामसिंघजी। ७. गोपाळदास। ३. प्रिथीराजजी* । ८. राघवदास । ४. सुरताणजी। ६. डूगरसी (डूगरसिघ) ५. भांण । • राध कल्याणमलके दसवा भाखरसी और ग्यारहवां भगवानदास ये दो कुवर और पहे जाते हैं। * राठोड पृथ्वीराज कल्याणमलोत डिंगलके प्रसिद्ध रसिक और भक्त कवि हो गये है। ये काव्यमे 'पीथळ' उपनामसे भी प्रसिद्ध हैं। डिंगलके अतिरिक्त पिंगल छन्द शास्त्रके भी ये अच्छे ज्ञाता थे और दर्शन, ज्योतिष, सगीत, वाद्य और नृत्यकला इत्यादि शास्त्रो और सस्कृत तथा व्रज भाषाके वडे विद्वान थे । विद्वान और रसिक होनेके साथ यह वीर भी थे। अकबर बादशाहकी अोरसे इन्होने कई युद्ध भी लड़े थे। एक क्षत्रियमे ये तीनो गुराग एक साय इन्हींमे पाए जाते हैं। साहित्य ससारमे इनकी रची हुई 'वेलि किसन रुकमणीरी राठोड़ राज प्रिथीराजरी कही' साहित्य और काव्यको अद्वितीय कृति जगत्-प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त-. श्री गुरु प्रार्थना (गुरु विट्ठलनाथजीरा दूहा १२) श्री कृष्ण स्तुति (वसदेवरावउतरा दूहा १८५) श्री राम स्तुति (दशरथ रावउतरा दूहा ५४) और श्री गगा स्तुति (भागीरथी, जाह नवी और मंदाकिनी रा दूहा ८८) प्रादि अनेक गीत-छन्द, पद और प्रस्ताविक दूहे लोक-कठ पर खूब प्रसिद्ध हैं । 'प्रेम दीपिका' और 'श्याम लता' ग्रथ भी इनके रचे कहे जाते हैं, पर अभी प्राप्त नही हो सके हैं । पृथ्वीराजकी प्रथम पत्नी लालादेके मरनेके बाद उसकी बहन चापादेके साथ उन्होने दूसरा विवाह किया था । जैसलमेरकै रावल हरराज (नैणसीरी ख्यात, भाग २, पृ० ६२, ६७,६८, १०२ इत्यादि) की ये दोनो कन्याएँ विदुषी थी। पृथ्वीराजका जन्म वि० स० १६०६ मार्गशीर्ष कृष्ण १ को बीकानेरमे और मृत्यु वि० स. १६५७मे मथुरामे हुई थी। दपाळदाम सिंढायचने अपने लिखित 'दयाळदासरी त्यात' अथ मे इनका परिचय विस्तारसे लिखा है । 'नणसीरी ख्यात' प्रथम भाग, पृ० २५६ मे वादशाह अकबर द्वारा पृथ्वीराजको गागरोनगढ दिए जाने का उल्लेख किया गया है। विद्वानोफा अनुमान है कि 'वेलि'को रचना गागरोनगढ़मे हुई है । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसोरी ख्यात [ २०७ महाराजा श्री रायसिंघजीरै कंवरांरा नाम१. महाराजा श्री सूरसिंघजी। ३. भोपतजी (भूपतजी) । २. दळपतजी । ४. किसनसिंघजी। बीकानेरके महाराजा रायसिंहके द्वितीय पुत्र दलपतसिंहका जन्म वि० स० १६२१की फाल्गुन बदी ८को महाराणा उदयसिंहकी पुत्री जसमादेकी कोखसे हुआ था। यह बडी वीर प्रकृतिके थे। बचपनमे ही बडी वीरताके काम कर दिखाए थे । जावदीखाकी ८० हजार सेनाको सरसेमे इन्होने मार भगाया था। इनके चाची राठोड पृथ्वीराजने इनकी इस युद्ध वोरता पर बड़ा सुन्दर निम्न गीत-काव्य कहा है दला दियतां मोलभा जैतमालां दिसा , निस अरध जागवी थाट नमियो । साहिजादी तणे महल नवसाहसो , रायउत दुइ पहोर तेण रमियो ॥१ रौद घड़ राव रावल रमै प्राध रत , भाग सोभागणी कमध भीनो। मुगलणि प्रांगण प्रेम रस मांणवा , दल दीहां भलो मुहुत दीनो ॥२ हार सिणगार गजमीर खडत हुया , उर अरघ चुरिया लोह प्राडै । सेत संभ्रम तण तखत रार्यासघ सुव , लोद्र घड़ भोगवी भांजि लाडै ।। ३ जोर जोवण चढी अणी नख जोडली , पिलग पाधर पड़ी दलै पाली । जावदी तणी घड़ पूगड़ी जीव ले , होड ग्रहणा हसक छोड हाली ॥४ दलपतसिंहके पकड़े जाने पर, जो भाई बधु और सरदार आदि उनके साथमे थे, कुछ भी साहस न दिखा कर छोड कर भाग गए। इस पर एक कविने इन सरदारोको कितना अच्छा धिक्कारा है। फिट वीकां फिट कांवला, जगलधर लेडांह । दलपत हुड़ ज्यु पकड़ियो, भाज गई भेडाह ॥' • किसी अज्ञात लेखकने दलपतसिंहके वीर कृत्यो पर राजस्थानी गद्य में 'दलपत विलास' नामक एक पुस्तक लिखी है । अनूप संस्कृत लाइब्रेरीकी यह एक मात्र त्रुटित प्रति शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेरको पोरसे हिन्दी अनुवाद सहित अभी प्रकाशित ह चुकी है । ज्ञात होता है कि लेखक उसे पूर्ण नही कर सका है। भाषा-शैलीकी दृष्टिसे वह तत्कालीन (१७वी शतोकी) लिखी हुई प्रतीत होती है। राजस्थानी साहित्यकी सर्वोपरि व्यापक मारवाडी भाषाके गद्य-लेखनको परम्परा और प्राजलता पर यह छोटी ऐतिहासिक पुस्तक भी अच्छा प्रकाश डालती है। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ ] महता नैणसीरी ख्यात महाराजा श्री सूरसिंघजीरै कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री करणसिंघजी ३ सत्रसाल । ' २. अरजुणजी। महाराजा श्री करणसिंघजीर कंवरांरा नाम१. महाराजा श्री अनोप ६. उदैसिघजी। सिंघजी*। ७ मदनसिघजो। २. केसरीसिंघजी । ८. अमरसिंघजी। ३. पदमसिंघजी। ६ देवीसिघजी। ४ माहेणसिंघजी। १० माळीदासजी। ५. अजबसिंघजी। महाराजा श्री अनोपसिंघजीरै कंवरांरा नाम१. सुजाणसिंघजी। ४. रुद्रसिंघजी। २. अणदसिंघजी। ५. रूपसिघजी। ३ सरूपसिंघजी। ६. गजसिंघजी। अणंदसिंघजीरै कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री १०८ श्री ३. तारासिंघजी । गजसिंघजी। ४. गूदड़सिघजी (गोदडसिघजी)। २ अमरसिंघजी। -00-00 * महाराजा मनूपसिंघजी वडे विद्या रसिक हए हैं । इन्होने सस्कृत, राजस्थानी और व्रजभापाके सभी विषयोके सहनो हस्तलिखित ग्रथोका संग्रह किया था, जो आज अनूप सम्पत लाइब्रेरीके नामसे प्रसिद्ध है । 'नैणसीरी ख्यात' की भी सुलेख्य विश्वस्त हस्तलिवित प्रति हम पुस्तक मारमे मौजूद है । असली प्रतिकी यही पहली प्रति होनेका अनुमान दिया जाता है। महाराजा अनूपसिंघजीके बादके राजानोंके नाम पीछेमे लिखे गये हैं जो अनूप सस्कृत लारीकी इस प्रतिमे वीच-चीन भिन्न भिन्न रक्षरोंसे स्पष्ट मालूम होता है। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतियां हुई महाराजा श्री अनोपसिंघजी री सतियां, संमत १७५५ जेठ सुदी ६ नै हुई२. रांणियां दोय २. कपूरकळो। १. जेसळमेरी रतनकंवरजी। ७. सहेलियां सात सतियां हुई २. तुंवरजी अतरंगदेजी। ४. तैमे चार सहेलियां जेसळ____३. खवासां तीन मेरीजी साहिबां री१. सुघड़राय । १. रूपरेखा। २. रगराय । २. हररेखा (हरखरेखा) ३. गुलाबराय । ३. गुणजोत। ४. पातरियां च्यार ४ ४. मोतीराय । १. जैमोळा। १. तुवरजी साहिबां री २. नारगी। सहेली३. सरकसळी (सरसकळी) १. हरमाळा। ४. अनारकळी । २. खवासा री सहेलियां२. खालसा दोय २ १. कमोदी। १. रूपकळी। २. डगली। रावजी श्री कल्याणमलजीरै सतियां, समत १६३० मे हुई४. राणियां चार ४ ३. भटियाणियां तीन१. रांणी हांसांजी गहलोत । १. रामकवरजी। • एक प्रतिमे 'पवारजी अतरगदेजी' लिखा है। ___I वि० सं० १७५५ ज्येष्ठ शुक्ल को महाराजा श्री अनूपसिंहजी देवलोक हुए, तब उनके पीछे इस प्रकार (रानियाँ, खवासिने आदि १८ स्त्रिया जीवित जल कर) सतियें हुई। [पडदायत, पासवान, खवास, वडारण, डावडी, पोळगण, गायणी, पातर, खालसा और सहेली आदि दासियोके कई प्रकार और रिणयां है । इनमे पड़दायत और पासवानका दर्जा ऊंचा होता है । वे रानीकी तरह पर्दे मे रखी जाती है।] 2 वि० स० १६३० रावजी कल्याणमलजी देवलोक हुए तब उनके साथ इस प्रकार सतियें हुई। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] मुहता नैणसोरी ख्यात २. प्रेमकंवरजी। २. जैमाळा (अजमाळा) ३. लूग कंवरजी (लवग ३. बुधराय । कंवरजी) ४. कांमसेना। ३. खवासां तीन ३ ५. रगराय । ६. पदमावती। २.......... ७. सुघड़राय। ३. ... ...। ८. मांणवती (भाणवती, १. ओळगण' एक भानुमती) १. पोहपराय । ६. रूपमंजरी। १०. पातरियां १० १०. रगमाळा। १. जीऊ (जीवी, जीवू) महाराजा श्री रायसिंघजीरै सतियां, समत १६६८ में हुई३. राणियां तीन ३ ३. पातरिया तीन ३१. तुवरजी द्रोपदा। १ रगराय। २ सोढी मांणवदे २. नैणजवा (नैणजीवा) (भाणवदे, भानुदेवी) ३. कामरेखा। ३. भटियाणी अमोलकदे। महाराजा श्री सूरसिंघजीरै सतिया, समत १६८८ मे हुई - २ राणियां दोय २- २. पातरियां दोय१ भटियाणी मनरगदेजी। १. रंगरेखा। २ रांणी रतनावतीजी। २. गुणकळी । महाराजा श्री करणसिंघजीरै सतिया, संमत १७२६ मे हुई - ८. राणियां ८ आठ अजबदेजी। १. भटियाणी धनराजोत २. जेसळमेरी सिणगारदेजी। I (१) ढोली या ढाढी जातिकी गाने वाली स्त्री। ढोलिन, ढाढिन । (२) गायिका । 2 वि० स० १६६८ मे महाराजा श्री रायसिंहजोका देहान्त हुया तब इतनी सतियें हुई । 3 महाराजा श्री सूरसिंहजीकी मृत्यु वि० सं० १६८८ में हुई तब उनके पोछे इतनी सतियें हुई। 4 वि० सं० १७२६मे महाराजा श्री कर्णनिहजीकी मृत्यु हुई तव उनके साथ इतनी स्त्रियां जल पर सती हुई । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २११ ३. वीकूपुरी कोडमदेजी। ३. मेघमाळा । ४. वीकूपुरी मनसुखदेजी। ४. किसनाई (किसनराय) ५. सेखावत सोभागदेजी। ५. गुणमाळा । ६. सेखावत प्रतापदेजी। ६. चंपावती (चंपाकळी) ७. सोढी सुगणादेजी। ७. रूपकळी । ८. तुंवर साहिबदेजी। ८. पेमावती (प्रेमकळी) १०. खवास-पातरियां १० दस- ६. कुजकळी। १. कमोदकळा। १०. मृदंगराय । २. रामोती। महाराजा श्री सुजांणसिघजीरै सतिया, संमत १७६२ हुई१. रांणी १ एक १. वडारण १ एक१. देरावरी सुरताणदे १. हरजोतराय। ४. पातरियां ४ चार २ खालसा २ दोय१. गरुडराय । १ हसती (हसणी, हसणी) २. रगराय। २. चैनसुख (चैनसुखी, ३. नैणसुखराय । चैनसुखराय) ४. गुमानराय । महाराजा श्री जोरावरसिंघजीरै सतियां, समत १८०३ मे हुई२. रांणियां २ दोय २ सरूपां। १. देरावरी अखैकुवरजी ३ गुलावा । (अभैकुवरजी)। ४. तनतरग। २. तुंवरजी उमेदकुंवरजी। ५ रगनिरत (रगनृत) १. खवास १ एक ६. फत्तू। १. सदाजी। ७ वनां.। १२. पातरियां १२ बारह ८. सुखविलास १. गोरा (गवरा)। (सुभविलास) ___I महाराजा सुजानसिंहजीकी मृत्यु वि० सं० १७६२ मे हुई, उस समय ये स्त्रिया सती हुई। 2 वि० स० १८०३में महाराजा जोरावरसिंहजीके साथ ये स्त्रियां सती हुई। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात ६. राजां। १ तुवरजी री सहेली एक १०. गुमांनी। (कुवरांणीजीरी सहेली) ११. विजी (विजनां) राही। १२. महताब। २ पातरियांरी सहेली २ २. खालसा २ दोय दोय१ रामजोत । १ फत्तू। २. कपूरकळी । २ सकांमी (सदांमी) १ वडारण १ एक १. पातरियांरो रसोईदार १ १. गुणजोत । एक३. सहेलियां ३ तीन १. ब्राह्मणी राही १ एक । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीरामजी ॥ जोधपुररा राजाआरी ख्यात महाराजा श्री भीमसिघजी रावळोतारा दोहीतरा। भोमसिंघ, किसनसिंघ सादूळसिघोतरा दोहीता।' महाराजा श्री विजयसिंघजी भाटियांरा दोहीतरा । दौलतसिंघ गजसिंघोतरा दोहीतरा। महाराजा श्री वखतसिंघजी चहुवांणांरा दोहीतरा। चत्रभुज दयाळदासोतरा दोहीतरा।' महाराजा श्री अजीतसिंघजी जादवांरा दोहीतरा। जादव भीमपाळ छत्रमणोतरा दोहीतरा । मांजोरो नाम पोहपकंवर । I महाराजा भीमसिंहजी रावलोत भोमसिंह किशनसिंह सादूलसिंहोतके दोहिते थे । महाराजा भीमसिंह महाराजा विजयसिंहके पौत्र और उनके उत्तराधिकारी भी। इनकी मृत्यु वि० स० १८६० कार्तिक सुदि ४ को हुई । 2 महाराजा विजयसिंह भाटी दौलतसिंह गजसिंहोतके दोहिते । ये महाराजा परम वैष्णव थे। जोधपुरका विशाल गंगश्यामजीका मन्दिर और गिरदीकोट इन्होने बनवाये थे । इनकी पासवान गुलाबरायने बहुत ही भव्य श्री कु जविहारीजीका प्रसिद्ध मन्दिर और उसका फटला बाजार, गुलाब सागर, महिला बाग और उसका झालरा (चारो ओर सीढियों वाली वापिका) आदिका निर्माण कराया था। विजयशाही मुद्रा इन्ही महाराजाने चलाई थी। इनका, जन्म वि० सं० १७८६ मार्गशीर्ष कृष्णा ११, राज्यगद्दी वि० सं० १८०६ और मृत्यु स० १८५० आषाढ वदि १४ को हुई। 3 महाराजा बखतसिंह चौहान चतुर्भुज दयालदासोतके दोहिते । इनका जन्म सम्वत् १७६६ की भादी वदि ८ को और मृत्यु सम्वत् १८०६ भादौ सुदि ११ को हुई थी । जोधपुर और नागौरमे इन्होने अपने नामसे 'बखतसागर' नामके तालाब वनवाये थे। 4 महाराजा अजीतसिंह यादव भीमपाल छत्रमणोतके दोहिते। इनकी माजीका नाम पोहप कंवर (पुष्प कुंवरि) था। . जन्मसे मृत्यु पर्यन्त इनका जीवन और राज्यकाल बडा प्रशान्त रहा । युवा होने तक वीर दुर्गादास जैसे स्वामी-भक्त सरदारोकी देख-रेखमे इन्हें गुप्त रहना पडा । ये महाराजा वडे ही वीर-विद्वान और कवि थे। गुणसागर, गजउद्धार और गुण दोहे आदि इनके रचे हुए ग्रथ हैं । इनके सम्बन्धमें बने 'अजितोदय' और 'अजित प्रथ' भी है। मरुनायकजीका मदिर पंच देवलिया, मडोरमे इकथभिया महल. वडी-बडी मूर्तियो वाले देवतायोकी शाला प्रादि कई दर्शनीय स्थान इन्होने बनवाये । इनकी मृत्यु के ममय इनके साथ रानिया, दासिया और ५७ स्त्रिया सती हुई थी। इनके दाह-स्थान पर मडोरमे बना विशाल घडा (देवल) वास्तुविद्याका एक नमूना है। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात महाराजा श्री जसवंतसिंघजीरी मा गायड़ देवी सीसोदणी । भांण सगतावतरी बेटी । ' महाराजा श्री गजसिंघजीरो मा केसरदे कछवाही । रूमीखां करमसोतरी वेटी | 2 महाराजा श्री सूरसिघजीरी मा साहमती कछवाही । आसकरण भीमावतरी बेटी । 3 महाराजा श्री उदैसिंघजीरी मा सरूपदे झाली । स राजावतरी बेटी । " I महाराजा जसवन्तसिंहजी ( प्रथम ) की माता भाग शक्तावतकी पुत्री गाहडदेवा निशोदनी । इनका जन्म वि०स० १६८३ माघ वदि ४ को हुआ था और वि० स० १७३५ को पौष वदि १० को जमरूदमे मृत्यु हुई थी । ये महाराजा वडे वीर थे । औरगजेब भी इनसे सशकित रहता था । ये महाराजा वडे विद्वान और वेदान्ती थे । इन्होंने वेदान्त के अनेक ग्रथ लिखे हैं श्रानन्दविलास, अनुभवप्रकाश, सिद्धान्तसार, अपरोक्ष सिद्धान्त श्रोर सिद्धान्तबोध मुख्य है । भाषा-भूषण आदि अन्य प्रथ भी इनकी विद्वता के उच्चकोटिके ग्रंथ है । हमारे ख्यात लेखक मुहता नैणसी वि०स० १७१४मे इनके दीवान बने थे । श्रागे जाकर महाराजासे इनकी कुछ खटपट हो गई थी । जिम पर महाराजाने नेणसी और इनके भाई सुदरसीको जेलमे डाल दिया और एक लाख रुपये उड कर दिया । इस अपमानसे दोनो भाइयोने स० १७२७ मे श्रापघात कर दिया । नागोरके राव अमरसिंह राठोड इनके बड़े भाई थे । 3 महाराजा गर्जासिंहकी माता रूमीखा करमसोनोतकी पुत्री केशरदेवी कछवाही | इनका जन्म वि० त ० १६५२ कार्तिक सुदि ८ को हुआ था । इनकी वीरता पर बादशाह जहागीरने इन्हें 'दलयभन' का विरुद दिया था । इन्होने कुमारावस्थामे ही जालोरसे विहारीपठानोको भगा कर उस पर अपना अविकार कर लिया था । 3 महाराजा सूरसिंहकी माता आसकरण भीमावतकी पुत्री शाहमती कछवाही । इनका राज्यतिलक सम्वत् १६५२ सावन वदि १२ को लाहोर मे श्रीर इसी वर्ष माघ शु० ५ को फिर जोधपुरमे हुआ । जोधपुरके सूरसागर तालावको इन्होने बनवाया था । मारवाडमे वादशाही ढंग से राज्य प्रबंध इन्होने चालू किया। महकरमे सम्वत् १६७६की माद शु० ६ को इनकी मृत्यु हुई । 4 महाराजा उदयसिंहको माता सभं राजावतकी पुत्री स्वरूपदे झाली मोटा राजा उदयमिहका जन्म सम्वत् १५६४ माघ सुदि १२ को हुआ था । स० १६४०को भादों वदि १२ गद्दी बैठे । सं० १६५२की प्रापाठी पूनमको लाहोर मे मृत्यु हुई । सिवनेिका प्रसिद्ध वीर राठोड क्ल्ला रायमलोत जिनने वादशाही मनसबदारको मार डाला था, बादशाहूपी ग्रोरने ग्रान मरण करदेने श्रीर हार जाने पर इन महाराजाने पोलिया नामक नाई लेगा भेद मोर गुप्त मार्ग मालूम कर क्लिमे प्रवेश कर लिया । कल्ला रायमलोत दही वोरता से लट कर काम ग्राया । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २१५ राव मालदेवजीरी मा पदमां देवड़ी । जगमाल लाखावतरी बेटी। राव गागोजीरी मा उदैकवर चहुवांण । राम कँवरावतरी बेटी ।' राव वाघोजोरी मा लिखमादे भटियांणी । जेसै कलिकरणोतरी वहन । (पिछले पृष्ठकी टिप्पणीका शेषाश) इन महाराजाके द्वारा चारणोके गाव जन्त करने पर सवत् १६४३ का प्रसिद्ध धरणा आऊवामे हुआ था। I राव मालदेवकी माता (सिरोहीके राव) जगमाल लाखावतकी पुत्री पद्मा देवडी । इनका जन्म वि० सं० १५६८ पौष वदि १ को हुया था । सवत् १५८८ (विगतमें १५८२) प्रापाढ वदि ५ को सोजतमे गद्दी बैठे और सवत् १६१९की काती सुदि १२को देहान्त हुआ। ___ मालदेवजी बडे ही प्रतापी राजा हुए। इन्होने अपने समीपवर्ती सभी राजाप्रोको जीत करके अपने राज्यको सीमाका खूब विस्तार कर लिया था। ५२ परगनोके ५४ गढ़ और ६००० गाव इनके अधिकारमे थे। इसीलिए इनका विरूद 'नवसहँसा' हुआ और पश्चिमके वादशाह प्रसिद्ध हुए। जैसलमेरके रावल लणकर्णकी कन्या उमादेवी भटियानी उपनाम रूठीरानी इन्हीकी रानी थी। मेडतेका मालकोट और अजमेरका अपूर्ण वोटली किला और अन्य कई किले कोट इन्होने बनवाये थे। इनके २२ पुत्र थे। 2 राव गागेकी माता राम कँवरावतकी पुत्री उदयकुवरि चौहान । इनका जन्म वि० स० १५४० वैसाख सुदि ११, बडे भाई वीरमजीके उत्तराधिकारी होते हुए सरदारोने इन्हें सम्वत १५७२ मिगसर सुदि १२को गद्दी पर बिठाया। सवत १५८८ जेठ सुदि ५को अफीमके नशेमे झरोखेसे गिर कर मर गये। जोधपुरके प्रसिद्ध गंगश्यामजीके मन्दिरकी विष्णु भगवानको मूर्ति राव गागाजी सिरोहीसे लाये थे। गांगाजीने अपने नाम पर 'गग स्वामी' नाम रखा जो बादमे गगश्याम हो गया । उस समय यह मूर्ति किलेमे रखी गई थी। महाराजा विजयसिंहजीने तलहटीके महलोके पास भव्य मन्दिर बनवा कर सं० १८१८में उसमे स्थापित की । गागारी बावडी और गागेलाव तालाब इन्ही महाराजाने बनवाये । इनकी रानी (राणा सागाकी कन्या) पदमावतीने मेवाडके पदमा सेठ द्वारा वनवाये हुए पदमसर तालाबको अधिक वडा बनवाया । 3 राव वाघाजीकी माता भाटी जैसे कलिकोनकी बहिन लखमादे (लक्ष्मीदेवी) भटियानी। _ कुवर वाघा अपने पिता राव सूजाको विद्यमानतामे ५७ वर्षकी श्रायु प्राप्त कर सक्त १५७१को भादी सुदि १४को काल-कवलित हो गये। इनका जन्म वि० स० १५१४को वैशाख वदि ३०को हुआ था। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात राव सूजोजीरी मा हाडी जसमादे । अजीत मालदेवोतरी बेटी।। WHA I राव सूजाकी माता अजीत मालदेवोतकी पुत्री हाडी जसमादे । राव सूजाका जन्म वि० सं० १४६६ भादर्दी वदि को हुआ था । वि० सं० १५४८ (विगतमे १५४९) की वैशाख सुदि ३को गद्दी वैठे और सवत १५७२की काती वदि को देहान्त हुना। जोधपुर पर आक्रमण करके राव बीकाजी इन्हींसे जोधपुरके राज्य-चिन्ह ले गये थे। उपरोक्त नार्मोका क्रम उलटा लिखा हुआ है और कई नाम टूटे हुए हैं एवं महाराजा जसवन्तगिहजीके पोछेके नाम नैणसीके वादमें लिखे हुए हैं। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसनगढरी विगत राजा प्रतापसिंघ । उदोतसिघ उमेदसिंघोतरो दोहीतो। साहपुरारै राजावतारो। . राजा विरदसिंघ । सुखसिंघ सूरजमलोतरो दोहीतो । फतहगढ गौड । राजा वहादुरसिंघ । उदैसिंघ कीरतसिंघोतरो दोहीतरो। कांबा राजावत । राजा राजसिघ । हरीसिंघ जसवंतसिघोतरो दोहीतरो। देवळिय सीसोदियारो। राजा मानसिघ । बलू सांवतसिघोतरो दोहीतो। साचोरा चहुवांणांरो।' राजा रूपसिघ । हरीराम रायसलोतरो दोहीतो। सेखावत खडेलारा । राजा भारमल । दयाळदास खेतसीमोतरो दोहीतरो। जेसळमेर भाटियांरो।' राजा किसनसिंघ । प्रासकरण भीमावतरो दाहीतो। नरवरगढ कछवाहा ।' - - I राजा प्रतापसिंह-शाहपुराके राजावत उद्योतसिंह उम्मेदसिंहोतका दोहिता। 2 राजा विरुदसिंह-फतहगढ के गौड सुखसिंह सूरजमलोतका दोहिता। 3 राजा बहादुरसिंह-काबाके राजावत उदयसिंह कीरतसिंहोतका दोहिता। 4 राजा राजसिंह-देवलियाके सिसोदिया हरिसिंह जसवतसिंहोतका दोहिता । 5 राजा मानसिंह-साचोरा-चौहान बलू सामतसिंहोतका दोहिता । 6 राजा रूपसिंह-खडेलाके शेखावत हरीराम रायसलोतका दोहिता । 7 राजा भारमल-जैसलमेरके भाटी दयालदास खेतसीप्रोतका दोहितो। 8 राजा किशनसिंह-नरवरगढके कछवाहा आसकरण भीमावतका दोहिता । राजा किशनसिंहका जन्म वि० सं० १६३६की जेठ वदि २को हुआ था। इन्होने अपने नामसे दि० स० १६६६मे किसनगढ नामका नगर बसाया और बादशाह जहागोरसे जागीरी प्राप्त कर अलग राज्य स्थापित किया । राजा किशनसिंह जोधपुरके मोटा राजाके १७ पुत्रोमे से एक थे। इस विगतमे लिखे नामोका क्रम उलटा लिखा हुआ है। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राठोड़ारी तेहरै साखामारी विगत राजा धुधमाररै १३ पुत्र हुआ। तिणांसू जुदी - जुदी तेहरै साखाया हुई १ वडो पुत्र अभैराज, तिण अभैपुर वसायो, तिणसू अभेपुरा कहाणा ।" २ बीजो जयवत हुओ। तिणसू जयवत कहांणा । ३. तीजो बागुळ हुओ । बुगळाण देस वसायो, तिणसू बुगळांणा कहाणा । ४. चोथो अहिराव, तिण आहोरगढ वसायो, तिणसू अहिराव कहाणा । ५ पाचमो, करहो* हुओ। जिण करहेड़ोगढ करायो, तिणसू करहा कहाणा ।' ६ छठो जसचद हुो। तिण जळखेडपाटण वसायो, तिणसू जळखेडिया कहाणा ।' ७. सातमो कमधज हुो । तेरह साखारो राव कहाणो । ८ अाठमो चदेल हुो। तिण चदेरी वसाई, तिणसू चंदेल कहाणा । I गजा धुधमारके १३ पुत्र हुए जिनके नामोसे अलग-अलग तेरह शाखाएँ चली । 2 बडा पुत्र अभयराज हुआ जिसने अपने नामसे अभयपुर बसाया और उसके वशज अभयपुग कहलाये। 3 दूसरा जयवत हुआ जिसके वशज जयक्त कहलाये । 4 तीसरा बागुल हुया जिसने वुगलाना देश बसाया और उसके वशज बुगलाना लाये। 5 चौया पुत्र प्रहिराव हुमा जिमने ग्राहोरगढ व पाया । उसके वशज अहिराव कहलाये । 6 पानवा पुत्र रहा हुया जिमने करहेदोगढ बनवाया। उसके वंशज करहा कहलाये । 7ठा पुत्र जमचट हुआ जिमने जलखेडपाटन (जसखेडपाटण) बसाया। उसके वगज लिया (जसमेहिया) कहलाये । 8 मानवां पुत्र मघन हुना। यह तेरह दावापोका राव कहलाया। ___) माठ पुत्र चंदेल हुप्रा जिमने च देरी बसाई और उमसे चदेल प्रसिद्ध हुए। *टार-रतो! Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नणसोरी ख्यात | २१६ ६, नवमों अजवाराह हुनो। तिण पूरबमें अजैपुर वसायो, तिणसू अजबेरिया कहांणा ।' १०. दसमो सूरदेव हुप्रो । तिण सूरपुर वसायो, तिणसू सूरा कहाणा । ११. इग्यारवों धीर हुओ । तिण धीरावादगढ करायो, तिणसू धीरा कहांणा । १२. बारवो क्रपाळदेव हुो । तिण कँवळपुर वसायो, तिणसू कपाळिया* कहाणा । १३. तेहरवो खीमपाळ हुमो । तै खैरावाद नगर वसायो, तिणसू खैरूंदा कहाणा । I नौवां पुत्र अजवाराह (अजयवार) हुआ जिसने पूर्वमे अजयपुर बसाया। उसके वंशज अजवेरिया कहाये। 2 दशवा सूरदेव हुआ जिसने सूरपुर वसाया। उसके वशज सूरा कहलाये। 3 ग्यारहवां पुत्र धीर उत्पन्न हुआ जिसने धीरावदगढका निर्माण कराया । इसके वशज धीरा कहलाये। 4 बारहवां पुत्र कृपालदेव हुपा जिमने कमलपुर वसाया। इसके वंशज कपालिया कहलाये। 5 तेरहवां पुत्र खीमपाळ उत्पन्न हुआ। इसने खैरावाद नगर बसाया। इसके वशज खैरू दा कहलाये। पाठान्तर-प्रजवार, अजयवार कमळपुर । *कपलिया। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ru G अथ जेसलमेररी ख्यात १. रावळ मूळराजजी सोढारा दोहीतरा । रिणछोड गंगादासोतरा | 2 २. प्रसिघजी १ बुधसिंघजी २ जोरावरसिघजी ३, दोहीता खाबडियारा | 2 ३ जगतसिंघजी १, ईसरीसिंघजी २, दोहीता सोढांरा । ४. जसवंतसिंघजी १, पदमसिंघजी २, जैसिंघजी ३, विजैसिंघजी ४, दोहीता सोढारा | ५. जूझारसिंघजी दोहीता हळोदरा झालारा। ६ अमरसिंघजी १, रतनसिंघजी २, बाकीदासजी, ३ महासिघजी ४, दोहोता रूपनगर । * 4 ७. सवळसिंघजी १, विहारीदासजी २, दोहीता कलै रायमलोतसमियांणैरा । 3 सगतसिंघ ४, ८. दयाळदास १, पचायण २, ईसरीसिघ ३, वाघ ५, दोहीता सातळमेररा ।' 6 ६. खेतसी १, हरराज २, भानीदास ३, डूगर ४, सहसो ५, नारायण ६, ७। १० मालदेजी १, .1 7 8 ११ लूणकरणरै दूजा भाई मरोट । सरब भाई ११ मूळराजसू पीढी तीन जगतसिंघ रावळरा भाई हुना' - सरदारसिंघजी ३, तेजसिंघजी ४, दोहीतरा जसोलरै रावळरा । 9 6 दयालदास, रावल मूलराज सोटा रणछोड गंगादासोतका दोहिता । 2 सिंह वुधसिंह श्रौर जोरावरसिंह तीनो खावडियो के दोहिते । 3 जुझारसिंह हलवद (सौराष्ट्र) के झालोका दोहिता । 4 प्रमरसिंह, रतनसिंह वाकीदास और महासिंह रूपनगर वालोके दोहिते । 5 सवलसिंह और विहारीदास सिवाना के कल्ला रायमलोत के दोहिते । पचायन ईश्वरीमिह सगतसिंह और वाघ ये सातलमेर वालोके दोहिते । 7 लूणकरण के दूरे भाई मरोठ रहते हैं। सभी ११ भाई हैं । 8 मूलराजते जगतमिह तक तीन पीढी तक जो रावन हुए वे मूलराजके भाई ही हुए थे । 9 सरदारसिंह और तेजसिंह जसोल रावल के दोहिते । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सूरतसिंघजी ५, दोहीतो सोढांरो । गजसिघ ६, हरीसिंघ ७, इन्द्र सिघ ८, दोहीता महेचांरा जसोलरा । ' १२. जैतसीजी दोहीता सोढांरा । १३. देवीदास । १४ चाचगदे । १५ वैरसी १, रूपसी २, राजधर ३, ४। 2 १६ लखमण, संमत १४९४ श्री लक्ष्मीनाथ देहरो करायो । सोम २, केलण ३ । मुहता नैणसीरी ख्यात . # [ २२१ .... १७. केहर १, कळिकरण २, विजो ३, तणुराव ४ रा भटनेर । १. राजपाळ २, कीरतसिंघ ३ रा भटनेर तुरक .... हुआ । * १८ देवराज १, हमीर २, सत्तो ३, ... १६. मूळराज १, रतनसी २, राणो ३, तैरो बेटो घड़सी १, .४ । कान्हड २ । २० वडो जैतसी १, करण २, जसहडरा बेटा । दूदो रावळ वरस १० । २१. रावळ तेजरावजी १, तिलोकसी २, भीमदे ३, आसकरण ४, भोजनूं चूक कियो । * २२. रावळ चाचगदे १, जैचद २, ग्रासराव ३, पाल्हण * ४, सागण * ५, बागण ६, गांम कोहर । + २३. कालण १, सालवाहण २, राव वीजळ ३, वांदर ४ । समत ११३४ राज लायो हासू ३ सु रेतरा.. स लूणो १, उछरग २, मोकल ३, सुथार हुन । समत १२४६ कांम प्रायो, बलोचासू वेढ हुई । ' 3 I गजसिंह, हरीसिंह और इन्द्रसिंह - ये जसोल महेचाके दोहिते । सं० १४६४मे (जंसलमेर के किले मे ) श्री लक्ष्मीनाथजीका मंदिर बनवाया राजपाल और कीरतसिंघ के लडके भटनेरमे तुर्क हो गये । मारा। 5 मोकल सुथार हो गया। सवत् १२४६ मे बलोचोसे लडाई हुई जिसमे काम प्राया । 4 भोजको धोखे से वळकररण । * पाहुण । " सांगण | बागरण । 2 लखमरणने वि० । ... Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात २४. जेसळ १, विजैराव लंजो २, विजैराव लांजे लुद्रवै राज कियो वरस २५ । - विजैरावरा बेटा भोज १ 2 राजसीरो बेटो [रा]हुड़ | तैरी साख हुई । " विजैरावरी बेटी 3 लांग १, लाछ २, तिकै सगतियां हुई । २५. रावळ दुसाझ १, सिंघराव २, वापै रावरा पाहु-भाटी कहीजै । 4 5 उणंग रावरा भाटी ही ज वाजै । गांम गुड़ै । सिघरावरा सिंघराव वाजै । गांम खूहड़ी । फूलियो उतन सदामदसू । * मूळपसाव ३, उणंग ४, 2 राजसीका वेटा राहुड जिससे I विजयराव लजेने लोद्रवेमे २५ वर्ष राज किया । हडिया शाखा निकली । 3 विजयरावके दो पुत्रिया हुईं जो दोनो शक्ति रूप हुई । 4 वापा रावके वंशज पाहू -भाटी कहलाते हैं । 5 उरणगरावके वशज गुडा गावमे हैं और वे नाटो हो कहलाते हैं । 6 सिंहराव के वशज सिंहराव कहलाते हैं और गाव खूहडी में रहते हैं, परन्तु फूलिया गाव इनका सदामदने वतन रहा है । * यह वंशावली श्रशुद्ध, आगे पीछे और अस्पष्ट है । पहले की वशावलियोसे मेल नही खातो Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशाय नम ।। अथ सिरंगोतारी पीढी ठिकाणो भूकरी १. मदनसिघजी ६. करमसेनजी २. सवाईसिंघजी ७. मनोहरदासजी ३. कुसळसिंघजी ८ भगवानदासज ४. प्रथीराजजी ६ सिरंगजी ५. खडगसेनजी वाय*रा सरदारांरी पीढियां १. पेमसिंघजी ३ दौलतसिघजी २. बहादुरसिंघजी ४. प्रथीराजजी जासांणारै सिरदारांरी पीढियां १ लालसिघजी ५. सायबसिंघजी २. अनोपसिंघजी ६ अमरसिघजी ३. सगरामसिंघजी ७ खडगसेनजी ४. भांनीसिंघजी अजीतपुरैरी पीढियां १ दलसिंघजी ६. रामसिघजी २. सिवदानसिघजी ७ किसनसिंघजी ३. दीपसिंघजी ८. मनरदासजी (मनहरदासजी, ४. कीरतसिघजी मनोहरदासजी) ५ फतैसिंघजी सिधमुखरी पीढियां १. रुघनाथसिंघजी २ भवानीसिघजी पाठान्तर- भूकर; भूकरको। *वाप। 'जाणा। अजीतपुर । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कित २२४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ३. जालमसिंघजी ६. प्रतापसिंघजी ४. सुरताणसिंघजी ७. किसनसिंघजी ५. उत्तमसिंघजी गांम सिरंगसररी पीढियां १ धीरतसिंघजी ३. फतैसिंघजी २ हीमतसिघजी गांव भनाईरी पीढियां १ देवीसिंघजी ३. रूपसिंघजी २ जगमालसिंघजी ४ फतैसिंघजी किसनसिंघोतांरी पीढियां ठिकांणो सांखू १ नवलसिघजी, डूगरसीजी ५. जगतसिंघजी २ जगरूपसिंघजी ६ किसनसिंघजी ३. सुजाणसिघजी ७ महाराजा रायसिंघजी ४ दुरजणसिंघजी गांव बंधारी पीढियां १. फतैसिंघजी ५. रुघनायसिंघजी २. सवाईसिघजो ६. जगजीवणदासजी ३. अजबसिंघजी ७ किसनसिघजी ४. अमरसिघजी गांव करणीसररी पीढियां १ सुखसिघजी ४. रुघनाथसिघजी २. जैतसिंघजी ५. . ... .. .. ..... ३ इद्रसिंघजी ..... ..... ........ ...... १. जालमसिघजी २ सुरतसिबजी । ३. इंद्रसिंघजी ४ लालसिंघजो ५. पहाडसिंघजी ६, रुघनाथसिंघजी Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २२५ १. भोमसिंघजो २. पेमसिघजी ३. बाघसि वजी ४. रामसिघजी मुहता नैणसीरी ख्यात गांव नीबारी* पीढियां ५. भीमसिघजी ६. जगतसिघजी ७. किसनसिंघजी रूपावतारी पीढियां गांव भादलो १. सतीदानजी। २. भगवतसिंघजी। ३. पदमसिंघजी। ४. रामचदजी। ५. कल्याणदासजी। ६. दुरगदासजी। ७. भीमराजजी। ८. दयाळदासजी। ६. भोजराजजी। १०. सादुळसिघजी। गांव ढींगसरीरो पीढियां ४. करमसिंघजी। (करणसिघजी) ५. दयाळसिंघजी (दयाळदासजी) १. सवाईसिघजी। २. वखतसिंघजी। ३. फतसिंघजी। १. ऊमसिंघजी। ४. हररामसिंघजी। . (ऊमरसिंघजी) ५. जैतसिघजी। २. गजसिंघजी। ६. दयाळदासजी। ३. रुघनाथसिंघजी। - गांव भेलूरी पीढियां १. दळसिंघजी। ५. स्यांमदत्तजो २. चैनसिंघजी। (स्यांमदासजी) ३. भीमसिंघजी। ६ सुदरदासजी। ४. नरसिंघदासजी। ७ नारायणदासजी। पाठान्तर- *नीवावरी । नीवोवरी । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ८. जैमलजी। १०. भोजराज। 8. भाण । ११ सादूळ सिंघजी। गांव केलणसररी पीढियां १ भगवतदासजी। ३. उदैसिघजी। २ सांमतसिघजी। ४ जयसिघजी। (सांवतसिघजी) ५. सुदरदासजी। गांव कूदसूरी पीढियां १. हठीसिंघ। ४ उदैसिंघ। २ सूरतसिंघ । ५ जयसिंघ। ३ केसरोसिंघ। गांव रोहीणैरी* पीढियां १. तेजमाल (जैतमाल) ___३. भासिघ (भावसिघ) २. अणदसिंघ। __ गांव रोणवैरी पीढियां १. संग्रामसिघ । ३. देवीसिघ । २. गजसिंघ । ४ नरसिघदास । गांव अडसररा सिरदारांरी पीढियां १. सेरसिघजी। ४ भोजराजजी। २. देवीसिंघजी। ५ दुरजणसालजी। ३ भगवतसिघजी। ६. बळभद्रदासजी। गांव कांणांणरा सिरदारांरी पीढियां १. भारतसिंघजी। ४. भोजराजजी। २ सवाईसिघजी। ५ दुरजणसालजी। ३ रुघनाथसिंघजी। ६ बळभद्रदासजी। पाठान्तर- रोहीणी। वीर दुर्गादास राठोडके करणोतो के वंशका कणाणा गाव मारवाडमे वालोतराके पास एक अन्य ठिकाना है । राठोडोकी करणोत शाखा राव रणमलजीके पुत्र करणसे चली। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २२७ मुहता नैणसीरी ख्यात गांव करेझडोरा* सिरदारांरी पीढियां १ सुरतांणसिघजी। ६. सुदरदासजी। २ आईदानजी। ७ भोपतसिघजी। ३ हठीसिंघजी। ८ नारायणदासजी। ४. केसरीसिंघजी ६ वैरसीजी। ५ हररामदासजी। गांव कल्याणसररी पीढियां १. जसराजजी। • ३ हठीसिंघजी। २ गजसिंघजी। नारणोतांरी पीढियां गांव तिहांणदेसर १ सूरजमल। ७. सावळदास । २. मोबतसिघ । ८. जैमलदास। ३ दौलतसिघ । ६. नारायणदास। ४ आईदान । १० वरसिघ। ५. रामसिंघ। ११ लूणकरण । ६. उदैसिंघ । गांव कतररा सिरदारांरी पीढियां १. छत्रसिघ (छतरसिंघ) ३. गोरखदान २. लाडखांन (लाडखा) ४. रामसिंघ । गांव गैड़ापरै सिरदारांरी पीढियां १. बहादुरसिघ । ४. गोरखदांन । २. जोरावरसिंघ । ५. रामसिघ । ३. गुमानसिंघ । गांव मेदसररै सिरदारांरी पीढियां १ बहादुरसिघजी। २. उदेसिंघजी। पाठांतर- केरझडो, केरझड । Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] मुंहता नैणसोरी ख्यात गांव मलकासररी पीढियां १. रूपसिघ। ४. साहिबसिंघ। २ आणदसिघ। ५ किसनसिंघ । ३. मानसिघ। ६ जगतसिंघ । गांव कलासररी पीढियां १ भोपतसिंघ । ५ सुद्रसेन (सुदरसणसेन) २ हिमतसिघ। ६. दौलतखांन । ३. मोहकमसिंघ । ७ जसवतसिंघ। ४ सबळसिंघ। ८. उदैभाण। गांव दुणियासररी पीढियां १ भायसिघ (भावसिघ) ४. अखैसिंघ। २. जोरावरसिंघ । ५ सुद्रसेन (सुदरसणसेन) ३. केसरीसिंघ गांव जैतपुररी पीढियां १ पदमसिंघ । ६. चद्रसेण २. सपरूसिघ। ७. मनहरदास ३. सूरसिघ। (मनोहरदास) ४. अर्जुनसिंघ। ८. गोपाळदास ५. देवीसिंघ ६. उदैभाण गांव साहोररी पीढियां १ रामसिंघ ३. दुर्गादास (दुरगदास) २. अर्जुन सिंघ ४. देवीसिंघ वीदावतारी पीढियां ठिकांणो वोदासर २. अमेदसिंघ (उमेदसिंघ) १. रामसिंघ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. जालमसिघ ४. केसरीसिंघ ५. कुसळ सिंघ ६. धनराज ७. मांनसिंघ ८. गोविंददास १ हणूतसिंघ २. जैतसिंघ ३. सरदारसिघ ४ दीपसिंघ १. उदैसिघ २ दुर्गादास (दुरगदास ) ३. वीरभाण मुंहता नैणसीरी ख्यात ३ गुमानसिंघ ४ जोरावरसिंघ ५. फतैसिंघ ६ कुभकर्ण १ नवलसिघ २. वाघ (वाघो) ३ प्रतापसिंघ गांव वैणारी पीढियां र केसवदास १० गोपाळदास ११ सांगो १२. ससारचद १३. वीदोजी १४. राव जोधोजी १ दलजी ( दल्लूजी । दल्लोजी) २. नवलसिंघ गांव दुसारणैरी पीढियां ४. लखमीदास ५ गोविददास (गोयददास) गांव खूहड़ौरी पीढियां ५. किसन सिंघ ६ श्रचळदास ७. गोविंददास ( गोयददास ) ७ किसनदास ( किसन सिंघ ) खंगारजी ६. जाळपदास [ २३१ १०. सूरसेन ११. ससारचद गांव गोरीसररी पीढियां ४ मानसिंघ ५ किसनदास Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~r m. » * ur २२८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ३ जोरावरसिंघजी। ७ वळभद्रजी। ४. रुघनाथसिंघजी। ८ नारायणदासजी। ५ भागचंदजी। ६ वैरसीजी। ६ वीरमदेजी। रतनदासोतांरी पीढियां ठिकांणो महाजन १ ठाकुर अमरसिघजी। प्रतापसिघ। २ , वैरीसालजी। . ८. , उदैभाण । , सेरसिंघजी। ,, जसवंतसिंघ। ४. , सिवदानसिंघजी। १० , अर्जुनसिंघजी। ५. , भीमसिघजी। ११ , रतनसिंघ। , अभैरांम । १२. राव लूणकरणजी। गांव नाथवाणैरी पीढियां १ माधोसिंघ। ३ भायसिघ (भावसिंघ) २ वखतसिघ । ४. अभैरांम । गांव कुंभाणरी पीढियां १ किसनसिंघ। ४. केसरीसिघ। २. चैनसिघ। ५. अभैराम। ३. जोरावरसिंघ । गांव कालवासरी पीढियां १. भानीसिंघ (भवानीसिंघ) ४. लक्ष्मीदास (लखमदास, २ सायबसिंघ (साहेबसिंघ) लखमीदास) ३. खड़गसेन । ५. उदैभांण ( गांव ? नारसिंघ। २. सरूपसिघ। (नाहरसिंघ) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २२६ गांव रंगाईसररी पीढियां १. सुखरांमदास। ३ सावतसिघ । २. चतु भुज । ४. उदैभाण । रावतोतारी पीढियां ठिकांणो रावतसर १ नाहरसिघ । ८. जगतसिघ । २. विजैसिघ। ६ राघोदास। ३. हिमतसिंघ । १० उदैसिघ । ४. अणतसिंघ । ११ किसनदास। (अणदसिंघ) ' १२ राजो। ५ चतुरसिध। १३ कांधळजी। ६. लखधीरसिघ । १४. राव रिणमलजी। ७ राजसिंघ। गांव घांधूसररी पीढियां १. सेरसिंघ। ३ जोरावरसिघ। २ बहादुरसिंघ। ४. लखधीरसिघ । गांव रांणासररी पीढियां .१ अर्जुनसिंघ। ४. रुघनाथसिघ। २. इद्रसिंघ । ५ लखधीरसिंघ। ३. सवाईसिघ । गांव पलूरी* पीढियां १. जसवतसिघ । ४. केसरीसिघ। २ सूरतसिंघ। ५ जगतसिंघ। ३ मालदे (मालदेव) पाठान्तर- पळ । पल्लू । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ] १. दलपतसिंघ २. हरनाथसिघ ३ दीपसिंघ ४ नखतसिंघ १. बुधसिघ २. खडग सिंघ १. जुझारसिंघ २. सांवतसिंघ १ परसरांम २ धीरतसिघ ३. मोहकर्मासघ मुहता नैणसीरी ख्यात गांव कणवारीरी पीढियां १ रणजीतसिघ २ जैतसिंघ ३ भोमसिंघ ४. धीरतसिंघ ५. दांन सिंघ ● करणवारा । ५ फतै सिंघ ६. देवीदास ७ लाखणसी ८ खगारसीजी गांव जासाररी पीढियां १ कीरतसिंघ २ पृथ्वीसिंघ ( पिरथीसिंघ ) ३ भवानीसिंघ (भांनी सिंघ ) ३ मानसिघ ४ किसन सिंघ ( किसनदास ) गांव सेलेरी पीढियां ३ स्यांमसिघ ४ मांन सिंघ गांव लोवैरी पीढियां ४. वैरीसाल ५. बखतसिंघ गांव हरदेसररी पीढियां ४ मनरूप ५. सगत सिघ ६. खगारसिघ गांव सांडवैरी पीढियां ६ महोकमसिघ ७ जगमाल सिंघ मनहरदास ६ जसवंतसिंघ १०. गोपाळदास Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामुहती नैणसीसीख्यात गांवपिडिहारांरोऽपीढियां: १. जालमसिंघ (जमळघि) ३.(द्धांजसिंघा) Espifi .१ २. ईसरीसिंघई) मा । bf .. मागांव पातलासररी पीढियांमी १. जयसिघ ३ दानसिघ issify गि २ माधोसिघ गांव जाकरीरी* पीढियां शित . १ नाहरसिंघ पER .४ ३ प्रागदांन (प्रागदासी । २ कनीरांम (कान्हीरांम) ४ मोहकमसिंघ गांव चीमणवैरी पीढियां १ अभैसिंघ ३. प्रागदास २. रायसिंघ गांव ककुरी पीढियां १. ऊमजी ३ इद्रभाण २ हिमतसिंघ ४ मोहकमसिंघ गांव जीलीरी पीढियां १. पदमसिंघ ४ मालदे (मालदेव) २. जोधसिंघ ५. मनहरदास ३. अमरसिंघ गांव बमूरी पीढियां १. रायसिंघ ३ अमरसिंघ २ भगवंतसिंघ ४. मालदे (मालदेव) गांव लखमणसररी पीढियां १. जयसिंघ ४. डूगरसी २. फतैसिंघ ५. मनहरदास ३. आईदान पाठान्तर-पातळसर । *ज्याकरी । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] मुहता नैणसीरो ख्यात गांव कल्याणसररी पीढियां १. गोविंददास (गोयंददास) ४. अखैराज २. दौलतसिंघ ५. देईदास (देवीदास) ३. फतैसिघ ६. मनहरदास गांव चंडावैरी पीढियां १. पहाड़ो ३. प्रताप २ कुभो ४. जगमाल Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ जोधपुररा सिरदारांरी पीढियां ठिकांणो नींबाज १. सांवतसिंघ ६. विजैराम २. सुरताणसिघ १० मुकंददास ३. संभूसिंघ ११. कल्याणदास ४ दौलतसिघ १२. रतनसिंघ ५. कल्याणसिंघ १३. खीमो (खींवो) ६. अमरसिघ १४. ऊदो ७. कुसळसिंघ १५ राव सूजोजी ८. जगराम १६. राव जोधोजो ठिकांणो रासरी पीढियां १. जवानसिंघ ४. वखतसिंघ २. वनैसिंघ ५ सभुसिंघ ३. केसरीसिंघ ६. जगरांम ठिकाणो लांबियारी पीढियां १. चांदसिंघ ३. पेमसिंघ २ भारतसिंघ ४. सुभराम . गैमल्यावासरी पीढियां १. इद्रसिघ ३. चैनसिघ २ फतैसिंघ ४. सुभराम I नीमाज जोधपुर राज्यके जैतारण. परगनेमे राठौड़ोकी ऊदावत शाखाका ताजीमी ठिकाना था। राव सूजाके पुत्र ऊदासे ऊदावत शाखा चली । 2 रास ठिकाना भी ऊदावत राठौडोका जैतारण परगनेमे था। 3 लावियाके दो ठिकाने थे । एक पाली परगनेमे चापावतोका और दूसरा जैतारण परगनेमे ऊदावतोका । प्रस्तुत उल्लेख ऊदावतोका ही अधिक सम्भव है। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ ] मुहता नैणसोरी ख्यात ठिकांणो रायपुररी पीढियां १ केसरीसिंघ ५ वल्लभरांम (बळरांम) २. भाखरसिंघ ६. दयाळदास ३ हृदैनारायण ७ कल्याणदास ४ राजसी (राजसिघ) गांव नींबोलरी पीढियां १. नरसिधदास ३ उदरांम २. जगतसिंघ ४. जगराम गांव जुणलो १. रायसिंघ ३. उदरांम २. अनोपसिंघ ४. जगरांम गांव खारियारी पीढियां १. महासिंघ ३. मनरांम २. वैरीसाल ४. विजैरांम गांव खनावड़ीरी पीढियां १. दौलतसिंघ ४ विजैराम २. राजसिंघ ५ मुकनदास ३ मनरांम गांव बैरोलरी पीढियां १. सभुसिघ - ४. मनरांम २. वनैसिंघ ५. विजैरांम ३. हीरसिंघ (हीरासिंघ, ६. मुकुनदास हरीसिंघ) गांव छिपियैरा सिरदारांरी पीढियां १. अमरसिंघ २ जैतसिघ 1 रायपुर ठिकाना भी उदावत राठोड़ोका जैतारण परगनेमे था। 2 नीबोल भी जैतारण परगनेमें ऊदावतोका ठिकाना था। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३७ मुंहता नैणसीरी ख्यात ३. भांनीसिंघ (भवानीसिंघ) ७. राजसिंघ ४. जसकरण ८. बळरांम ५. सांवतसिघ ६ दयाळदास ६. प्रतापसिंघ गांव नीवाड़ारी पीढियां १. वनैसिघ ३. प्रतापसिंघ २. उदैसिंघ ४. राजसिंघ गांव बांसोरी पीढियां १. संभुसिंघ ३. जसकरण २. भावसिंघ गांव देवलीरी' पीढियां १. सिवसिंघ ४. राजसिंघ २. उदैसिंघ ५. बळरांम ३. प्रतापसिंघ +- + 1 देवली भी ऊदावतोका ठिकाना था जो ऊदावतोकी देवली कहलाता है । जोधपुर राज्यके ऊपर लिखे सभी ठिकाने ऊदावतोके ही हैं। मारवाडके अन्य ठिकानोकी पीढियोका और ऊदावतोकी भी सभी ठिकानोकी पीढियोका वर्णन नही दिया गया है । ___ इन सभी पीढियोके नामोका क्रम उलटा लिखा हुआ है। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विगत संमत ८०६ वैसाख सुदि १३ दिली वसी । संमत १५९८ पातसाह अकबर रो जनम* । समत १६१३ फागुण सुदि १२ टीक बैठो। समत १६६६ फोत हुवी। समत १६६२ पातसाह जहागीर टीकै बैठो। वर्ष २२ राज कियो । पातसाह जहांगीररी ऊमर वरस ६३ री हुई। संमत १६८४ पातसाह साहजाह टीकै बेठो । वरस ३१ पात साही कीवी। समत १७१५ औरंगजेब टीकै बैठो । बरस ४८ पातसाही कीवी। संमत १७६३ फोत हुवौ । एक विगतकी प्रतिमे-'स० ८२६ दिली खूटी गाडी। दिली वसाई अनगपाळ ।' एक दूसरी प्रतिमे भी 'समत ८२६ वैसाख सुद १३ सुकरवार नखत उतरा फालगणी तुवर अरणगपाल राज दिली मडी' लिखा है । *वर्ष प्रारभके मासान्तरोके कारण विगतोमे प्रायः अकबरका जन्म समत १५९६ लिखा मिलता है। एक विगतमे 'स० १५९६ काती सुद है' का जन्म होना लिखा है । एक दूसरी प्रतिमे 'स० १५६६ काती सुदी ६ शनिवार घटी २/७ पूर्वाषाढा नक्षत्रे २६/० दिन गत समस्त राति गत घटी २१/६ सुनि ६४६ मास रजब तुल सक्राति दिनगत १४/० भोग्य दिन १६ गमोतडी । अकवर पातिसाह जलालदीन मोहमद गाजीरी (जन्मकुडली) VAGR/ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीगणेशाय नमः ।। अथ वात चंद्रोवतांरी . रांमपुरैरा धणी, रांणा मेवाड़रा धणी, तिणां रांणां मांहै मिळे । राणे भवणसीरै बेटो चांदरो। तियरा चंद्रावत कहीजै ।' पीढी ११८ हुई, पाछ रांणो भवणसी हुवो। तैरै पेटरा चंद्रावत कहीजै। संमत १६८१ रांणो मैहपो रावळ श्रीकरणसें बेटो। आगे ईयार घरे रावळाई हुती, मैहपै राणाई पाई ।' नै सीसोदै गांवरै नांव सीसोदिया कहांणा । अठासू दोय साखां हुई-एक रांणा सीसोदै धणी तिका साख, नै एक रावळ बीजो भाई कहाणो, तिणरै रावळरी पदवी ___ चांदरारै पेट टीकायत पाट हुवा । तिण पाटवियांरा नाम चद्रावतांरी पीढी चाली १. रांणो भवणसी (भीवसी) २. चांदरो। ३. सजन । ४. झांझणसी। ५. भाखरसी। पैहली चांदरार पोत्रां माहै भाखरसी पाटवी थो । भाखरसी माथै मुदार थी। ईंयार भोम परगनो प्रांतरी थी। ___I रामपुराके स्वामी मेवाड़के अधिपति-राणाप्रोमे जाकर मिलते है। 2 उनमे राणा भवणसी हुआ जिसका बेटा चादरा हुआ और चादराके वशज चद्रावत कहे जाते है । 3 ११८ पीढियोके वाद राणा भवरणसी हुआ । उसके पेटके चद्रावत कहे जाते है। 4 सम्वत् १६८१ मे रावल श्रीकर्णका बेटा राणा महपा हुआ। 5 पहले इनको रावलकी पदवी थी, किन्तु महपने राणाकी पदवी प्राप्त की। 6 और शिशोदा गावके नामसे शिशोदिया कहलाए। 7 यहासे दो शाखायें प्रसिद्ध हुई –एक राणा शिशोदाके स्वामी जिनकी शाखा शिशोदिया और एक दूसरा भाई जो रावल कहलवाया जिसको रावलकी पदवी प्राप्त हुई। 8 चादराके वशज टीकायत और पट्टाधिकारी हुए । उन पट्टाधिकारियो के नामसे चंद्रावतोकी पीढिया चली। 9 इनकी भूमि प्रातरीका परगना थी। Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० ] मुहता नैणसीरी ख्यात प्रांतरीरो परगनो आमद देस माहै छ । तिण प्रांतरीरा परगना मांहै पठाररा गाम छ । त्यां पठाररा गांवां ईयारै उतनरी ठोड छ ।' भाखरसी नै भाखरसीरोकिाको छाजू दोनही वडा भूमिया, वडा रजपूत । 19 MIRRIAGE !! ITEPS माडवंरो पातसाह तिणेरी, हद महि प्रामंद देस माहै प्रातरीरो DILITIESrict परगनो गाव १४० लागे । वडो मुलक, वडी धरतो छ । सारा गाम दुफसला छ। आगै अांतरीरो कसबो कहीजतो। राजथान प्रांतरी हुतो। नै पातसाह अकबररी वार,मांहै, राव दूरग्रो हवो। तिण रामपुरो वसायो । हिवं रामपुरै चंद्रावतारो राजथान 'छ । चांद रावर पेट्ररा MER: THETITTE R Tipline चंद्रावत, प्रांतरीरा परंगना माहै वडा भोमिया । मांडवर पर्तिसाहर प्रातरोरो परगनो खालसे हुतों, सु परगनार हासलं माह चोथाई परापरीसौ भोमियार दाळरी लाग, सु अ परगना, माहै लेता, वखतI ITE' ori siriHIS PIPSTI गुदारी करता। -"AF fstri चद्रावत वडा रजपूत था, नै तिकां दिनां पातसाही पण हळकी IPTI) jjjण हुती; नै हिंदुवांरो दिन भलेरो हुतो । सु चंद्रावतां माहै भाखरसी झांझणोत ऊपर मुदार हुती । सह कोई चद्रावत भाखरसीर हुकम माहै हुता।' भाखरसीरो काको छाजू वडो रजपूत । छांजूर घरै वडो विभौ।' घोडिया, सांढियां, गायां, भैसिया । गायारा वडा धण हुता । चौपदो __ EFIST " प्रातरीका परगना, प्रामद देशमे प्राया. हुला, है, उस तरीके (परगनेमे जो पठारके गाव है, उन पठारके . गावोमे इनके निवासकी ठौर, है। 2 माडवके डादशाहकी हदमे प्रामद देश और उसमें प्रातरीका परगना जिसमे १४० गाव (लगते) है ।। राजधानी प्रातरी मेथी |ritrचदिशाह अकबरके समय राव। दुर्गा हुआ जिसने रामपुरा वसाया। अव (त्यात लेखनके समय) रामपुरा चद्रावतोकी राजधानी है। 15 राव चादक वंगज चन्द्रवित प्रांतरीके परगनेमे बडो मोमिये। 11116 माहवको नापणाहके पातरीका सरगना खालसे पा सो इस परगनेमेहासलका चौथा हिस्सा परम्परा में दाल की लाग' के नाम भोमियोका लगता था, सो ये वसूल' करके अपना गुजाराना करते 7 चन्द्रावत अच्छे राजपूत थे, उन दिनो (मांडव की) बादशाही निर्बल मडी। कई थी और हिन्दुओंका समय अच्या या चन्द्रावतीने दारोमदार मासरमीझामगोतके' अपर पीनभी चन्द्रावत मास की पाजामे घे" -8 भासरसीका 'चाचा 'छाजू अच्छा गजपन था, छारे परमे यदा वैभव था । - - .::.:75 ... ' Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४१ धण । सो ईयारो धण लोकांरा खेत खावै । वसीरा लोकांरा खेत ऊभा खाईजै ।' सु लोक वसीरो भाखरसी प्रागै नित-प्रत पुकार घालै । ताहरां भाखरसीन छाजू अोळा तो घणा ही दरावै, पण रुळियार धण हुवो सु रहै नही। लोक सारा पच थाका ।' तिण ऊपर छोजूसौ भाखरसी घणो बुरो मानियो, नै छाजूनू कहाड़ियोमै थाहरा घणा ही अोळभा टाळिया, थे मानो नही। थे म्हांसू कोस १० अाघेरा जायनै रहो। अठ रहितां था नै म्हां विगावो हुसी।' थे वेगा छोडणरी तयारी करज्यो । तिण ऊपर छाजू नै छाजूरो बेटो सिवो ईयां दीठो-'भाखरसी सबळ मांणस, नै काढण ऊपर आयो । रहियां थकां विगोवो हुसी। तिण ऊपरा छाजू छाडणरी तयारी कीवी नै ठोड जोवाड़ी सो औ बूदी चीत्रोड़, अांतरी विचै पठाररा गांव यांरी वसती; तठाथी छाडनै कोसे १२ प्रांतरीरो परगनो थो तिणरो कसबो थो, तिण कसवायी कोस १ नदी वेत वहै छै । तिण वेत नदी ऊपर वडो जगळ छ । तिण मे द्रोब, करड़री वडी ऊगम छै । तिका ठोड जोय आया 111 जांणियो-मांहरो हसम थाट अठ चरसी । सु नदीथा कोस १ ___ I घोडिया, साढिया, (ऊटनिया) गाये और भैसे इत्यादि वडा चौपद समूह इसके पास था और गायोके तो बड़े (बहुत) समूह थे । सो इनका यह चौपद-धन लोगोके खेतोको खा जाता है। 2 बसीके लोगोके खडे खेत खा लिये जाते हैं। 3 बसीकी प्रजा नित्य प्रति भाखरसीके आगे जाकर पुकार करती है। (बसी-१ निजकी बसाई हुई वस्ती या प्रजा। २ रियायतसे वसाये हुए लोग ।) 4 तब छाजू भाखरसीको उपालभ तो बहुत दिलवाता है, परन्तु छाजू क्या करे, धन (चौपद) ही ऐसा निषिद्ध हो गया कि रोकने पर भी रुकता नही। 5 सब लोग कोशिश करके थक गये। 6 जिस पर भाखरसीने छाजूसे बहुत बुरा माना और फिर छाजूको कहलवाया कि मैंने तुम्हारे अनेक अोलभे टाले, परन्त तुम मानते नही । सो अव तुम हमारेसे १० कोस दूर जाकर रहो। 7 यहा रहने से तुमारे और हमारे वीचमे टटा-फसाद होगा। 8 जिस पर छाजू और उसके बेटे शिवाने देखा कि भाखरसी जबरदस्त आदमी है और अपने को यहांसे निकालने पर तुल गया है, ऐसी दशामे यहां रहने पर फसाद होगा। इस पर छाजूने छोडनेकी तैयारी की और जगहकी तलाश करवाई। 10 उस कस्वेसे एक कोस दूर वेत नामकी नदी बहती है। 11 उसमे दूब और करड घासकी खूब उपज होती है। उस जगहको देख पाये। 12 विचारा कि हमारा चौपद-समूह यहां चर सकेगा। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ ] __ मुंहता नैणसीरी ख्यात तथा २ गांम मिळसियाखेडी छै, तठे छाजू अापरा हसम थाट लेने यायो।मिळसियाखेडी आसरा बाधिया । हसम थाट जगळ मांहै ढवै ! बडी ठोड। छाजू, सिवो वडा रजपूत, नै कनै वडो वित', तिण घर २० तथा २५ रजपूतारा वसाया। वडी वसती हुई। कसबो प्रांतरी वडो सहर छ, नै सहर माहै वडो महाजन हुंतो। सो कसबा माहै चोर घणा लाग। पातसाही किरोडीरो परगना माहै भोमियां वीच अमल को नही ।' महाजन चोरी कर वडा दिलगीर । तिण ऊपर महाजना विचारियो-'किरोड़ीमे घणी वरकत काई नही ।' नै सीसोदियो छाजू, सिवो चंद्रावत, अ वडा रजपूत छ, नै वडा भोमिया छै, यांन गांवरो सांसर सपा तो त्रै जतन करै ।10 ताहरां महाजनां विचारनै छाजूसू वात कराई । वात छाजू कबूल कीवी । महाजना रुपियो १) रोजीनो सांसररो कर दियो ।11 क्युही जायै-परणिये कर दियो । छाजूनै सिवो बाप बेटो कसबारी टहल करै । पाखती भाईवध छाजूरा भोमिया था, तिणांरा चोर कसबानू लागता सु छाजू मनह कराया ।13 वार वार चोरी कीवी थी, तिणां पापडनै मारिया ।14 सु उठासू ही हद पड गई।15 कसबै महाजनांनू वडो चैन हुवो। छाजू सिवैरो मामलो भारी पडियो। । सो नदीसे एक या दो कोस पर जहा मिलसियाखेडी नामका गाव है, वहा छाजू अपने चौपद-समूहको लेकर पाया। 2 मिलसियाखेडीमे झोपडे बनाये। 3 सपूर्ण ठट्ठ (थाट) जगलमे निभ सके ऐसी वडी ठौर। 4 और पासमे वडा गो-धन (चौपद-समूह)। 5 और शहरमे महाजनोकी वडी वस्ती थी। 6 स्वेमे चोर बहुत लगते थे। 7 वादशाही करोटीके परगनेमे भोमियोके ऊपर उसका कोई अमल नही । 8 महाजन लोग चोरियो के कारण वडे दुखी। 9 करोडीमे कोई योग्यता नही। 10 इनको गावकी रक्षाका भार सौंप दें तो ये प्रबन्ध कर देंगे। II महाजनोने प्रतिदिनका एक रुपया चोरो से रक्षाको जिम्मेवारीका कर दिया । 12 जन्म और विवाह पर भी कुछ लगान वाघ दिया। 13 पास-पडोसमे छाजूके भाई-बन्धु भोमिये थे, उनके यहाके जो चोर कस्वे को लगते थे, उन्हे छाजूने मना करके रोक दिया। 14 और जो कई बार चोरियां कर चुके ये उन्हें पकट करके मारा। 15 सो फिर तो वहीसे चोरी करनेकी हद पड गई अर्थात उनके बाद कोई चोरी नही हुई। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४३ 2 वडो कायदो हुवो । 2 घोड़ा, रजपूतांरी पण कनारै वडी जोड हुई । " छाजूरो बेटो सिवो वडो रजपूत, वडो जवान सु ग्राठ पोहर नदीरी पाखती सिकार खेलतो रहे। श्रधूळा करें। 3 4 5 6 तद मांडवरी पातसाही पातसाह गौरी हुसंग भोगवै । नै दिली तद लोदी पठाणांरी साहिबी, सु लोदी दिलीरी पातसाही भोगवै । ' सु मांडवरो पातसाह हुसंग दिलीरं पातसाहरी बेटी परणियो थो । " सु साहिजादी दिली हुती नै मांडवर पातसाहरो लोक साहिजादीनू लेण दिली गयो हुतो । सु साहिजादी दिलीसू चाली थी सुप्रातरी₹ कसबैरी नदी आई | पैडे चाली सु दिन भाद्रवा ग्रासोजरा हुंता । ' नदियां जोर हुतो, सु उतरणरो को घाट नही । ताहरां साहिजादी नदी माहे डूडो नखायने उतरती हुती', सु वीच जावतां डूंडो फूटो, सुतखता जुदा-जुदा हुय गया । ताहरां साहिजादी डूबती थकीरे हाथ पाटियो १ डूडारो आयो । 2° तिको भालने बैठी सु नदीरी धार मांहें वूही जावती हुती । " सु नदी ऊपर पातसाही लोक हुतो सु कूक ऊठियो " - 'साहिजादी डूबी जाती है ।' 8 10 11 ताहरा सिवो छाजूरो बेटो नदी थी निजीक सिकार खेलतो हुतो, सु कूकवो सुणनै दोड प्रायो । 23 साहिजादी नदी माहै वूही जावती दीठी | सुसिवो आप वडो तेरू हुंनो ! 24 सु प्रवाहो होयने नदी मांहै कूद पडियो ।" ताहरां तिरतो - तिरतो साहिजादीसौ निजीक 1 I छाजू और शिवाकी साख जम गई और मान- रुतवा बहुत वढ गया । 2 घोडे और राजपूतोका भी वडा समूह पास में हो गया । 3 मौज करता है । 4 उस समय मांडवकी वादशाही का उपभोग वादशाह हुराग गौरी करता है । 5 और दिल्लीमे लोदी - पठानोका राज्य सो लोदी वहाकी बादशाही भोगते हैं । 6 सो माडवके वादशाह हुशगने दिल्लीके बादशाहकी लडकीसे विवाह किया था । 7 पैदल रवाना हुई थी और भादो असोजके (वर्षा) दिन थे । 8 नदियोमे पानीके पूरका जोर था सो पार उतरने का कोई साधन नही था । 9 इसलिए नदीमे डोगी डाल करके पार उतर रही थी । 10 सो डूबती हुई शाहजादीके ढोगीका एक पाटा हाथ था गया । II उसे पकड करके उस पर बैठी हुई नदी की धारामे वही जा रही थी । 12 नदी पर बादशाही लोग थे उन्होने शोर मचाया । 13 सो शोर सुन करके दोड आया । 14 शिव स्वयं वडा तैराक था । 15 सो प्राडी नदीको पार करता हुआ उसमे कूद पड़ा । ( ग्राड वहाव तैरनेके लिए नदीमे कूद पडा ।) Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ । मुहता नैणसीरी ख्यात गयो । उठ जायनै साहिजादीनू सलाम कही। कह्यो-'कुण हुकम छ ?' तर साहिजादी कह्यो-'तू माहरो भाई छै नै हू थारी बहन छू । मोनू तू लेयनै नीसर गयो तो, तो सारोखो कोई नही । ताहरां सिवो साहिजादीरै निजीक गयो। जायनै कह्यो-'बाईजी सलामत ! म्हारै खवै हाथ द्यो ज्या हू राजनू लेयनै नीसरू ।' ताहरां साहजादी खत्रो झालियो। सिवो नदी तिरनै साहजादीनू ले नीसरियो । सारै वधाई वांटी ।' साहजादी सिवैसू बहोत राजी हुई। वहोत वधाई दीवी । घोड़ो सिरोपाव दियो। सिवानू साहजादी कह्यो-'तू म्हारो भाई छै। तू म्हां साथै माडव आवै तो तोनू पातसाहजीसू अरज करनै मुनसब दिराऊं।" तिण ऊपर सिवै ही दीठो'-'मोसू साहजादी मया करै छै । म्है खिजमत रूडी करी छै। जाऊ तो पाऊ। तिण ऊपर सिवै ही साथै श्रावणो कबूल कियो। घरे जायनै दस माणस आपरा लेयनै अायकर भेळो हो । साहिजादी साथै हुरो जोय । खावण-पीवणन रोजीनो कर दियो। बीजो ही माहेसू इनामरो पण क्युहेक मेल्है । सु साहिजादी चालो मांडव गई । उठे जायनै साहिजादी सिसोदिया सिवारो सैमान कराय दियो । नै पातसाहजीसू मालम कियो-'पातसाह सलामत ! मोनू नदी माहैसू वूडतीनू एकै सिसोदिय रांणारै भाई काढी छै ।12 तिणन म्है भाई कहि बोलायो छै, सु हजरत उसकू पावां लगावो नै चाकर करो ।'13 तिण ऊपर पातसाहजो फुरमायो-'प्राय पावां लागो ।'14 ताहरा सिवानू पांवां लगायो । मेरे लिए क्या प्राजा है ? 2 मुझको लेकरके बाहर निकल गया तो तेरे समान कोई (उपकारी) नही। 3 मेरे कवे पर हाथ दे दो (मेरा कघा पकडलो) सो मैं आपको लेकर बाहर निकल जाऊ। 4 तव शाहजादीने करा पकड लिया। 5 सवने वधाइया वाटी। 6 बहुत उपहार दिया । 7 तू मेरे साथ माडवको पाये तो वादशाहसे अर्ज करके तेरेखो मनमव दिलवाऊ। 8 इस पर शिवाने ही देखा (मोचा)। मेरे पर शाहजादी कृपा कर रही है, मैने भी अच्टी सेवा की है । साथमे जाक तो प्राप्त करू । 10 दाहजादी नाथ होकर जा रहा है। I साने-पीने के लिए रोजाना निश्चित कर दिया। 12 वादगाह सलामत ! मुझको नदी मे टूवती हुईको राणाके भाई एक शिशोदियाने बाहर निकाला। 13 उमको मैंने अपना भाई कहा है सो हजरत उसे अपने पावो लगाये और अपना चाकर वनाएं। 14 पाकरके पावां लगे। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४५ हमै सिवो पातसाहजीरी चाकरी करै । पोतसाहजी सिवै ऊपर घणी महरवानगी करै। एक दिन पातसाहजी सिवैनू फुरमायो-'तू मांग । तोनू मांगै सो __ ठोड़ द्यां । ताहरां सिवै अरज कीवी-'पातसाह सलामत ! महरवांन ' छो तो हं म्हारो उतन पाऊं । तिणं ऊपर पातसाह सिवैन उतनरी तसलीम कराई नै पातसाह कह्यो-'थारो उतन कासू छै ?'' ताहरां पातसाहजीसू सिवै अरज कीवी-'आमद देसमे आतरीरो परगनो छै सु माहरो उतन छै ।' तिण ऊपर सिवानूं उतनरो पटो करोय दियो । घोड़ो सिरपाव दियो। घणी दिलासा देनै देसन विदा कियो। साहजादी पण इणनू विदा हुतैनू घोड़ो सिरपाव देय, रुपिया हजार तीस-चाळीसरो माल देनै विदा कियो। फुरमायो-'हूं थारी बहन छू । तू म्हारो भाई छ । तू खातर जमै राखै । हू तोनू म्होटो करीस।' सिवानू रावरो खिताब देरायो । __ ताहरां सिवे उठासू देसनै चढ खडियो। वीच मे आवतै दस माणस रूड़ा चाकर राखिया। पटा लिख-लिख दिया। असवार ४००सू घरे आयो । पछै सारा परगना मांहै जायन वडो अमल कियो । 'धरती माहै राखण जोगो हुतो सु राखियो । काढण जोगो हुतो सु काढियो ।' धरतीरो वडो सलूक कियो । आपरो जमीयत खरी कीधी। सिसो ___तू मागे सो ही जगह तेरेको दे दें। 2 वादशाह सलामत ! आप यदि महरवान हैं तो मुझे मेरा वतन (देश) मिले । 3 इस पर बादशाहने शिवा के वतन (देश) की तसलीमकी और बादशाहने कहा कि तुमारा वतन कौनसा है ? 4 घोडा सिरोपाव दिया और खूब सान्त्वना देकर देशको विदा किया। 5 तू खातिरजमा रखना, मैं तुझे वडा बनाऊगी और शिवाको रावका खिताब दिलवाया। 6 तव शिवा वहासे देशको रवाना हुआ । वीचमे पाते हुए दस अच्छे आदमियोको चाकर रखा । गावोके पट्टे लिख-लिख कर दिए । इस प्रकार ४०० सवारोको साथ लेकर अपने घर आया । 7 फिर सारे परगनेमे जाकर वडा अमल जमाया। देशमे जो रखने योग्य था उसे रखा और निकालने योग्य था उसे निकाल दिया। 8 देशका वडा अच्छा प्रवन्ध किया। 9 अपने समुदाय को दृढ किया। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात दिये सिवै छाप्रोत बहोत साहिबी पाई । सिवैथी चंद्रावतारी साख ठकुराई हुई । 2 सिवै गांव १४००सूं प्रांतरी सिवो राव कहाणी | परगनो पायो । १. राव सिवो । 7 २. राव रायमल । ३. राव अचळो । 3 इतरी पीढी तो आतरी राज हुतो ।' पछै प्रचÖरो बेटो दुरगो टीकै बैठो । तिण राव दुरगे कसबो नवो वसायो नै श्री रामचद्रजीरं नांमसूं रामपुरो ठाकुरांरं हेत नांम दियो । राव वडो देसोत हुआ । राव दुरगो वडो दातार हुन । चंद्रावतारै घर मांहै वडो कारणीक ठाकुर हुन । हिवै चंद्रावतारं पाटवीरो राजथान रामपुरै छै । " रामपुरो वडी ठोड़ । सारी धरती दुफसळी छै । वडी जरायत धरती ।' 6 5 7 1 शिवासे चन्द्रावत शाखाकी ठकुराई हुई । 2 इतनी ( शिवा, रायमल श्रीर श्रचळा - ये तीन ) पीढी तक तो प्रातरी मे राज्य रहा । 3 राव दुर्गाने नया कस्वा घसाया और श्रीरामचन्द्रजीके नाम पर श्रीठाकुरजी श्रीरामचन्द्रजीके हेतु ( अर्पण करके) उसका नाम रामपुरा दिया । 4 देशपति । 5 चन्द्रावतोके घरमे राव दुर्गा वडा प्रतिष्ठित ( प्रामाणिक ) ठाकुर हुया | 6 ग्रव चन्द्रावतोंके पाटवी श्रधिपतियोकी राजधानी रामपुरा है । 17 खेती के लिए बहुत वढिया धरती । खेती । २ खेतीको भूमि । ३ कृषिकी बहुत बढिया भूमि । ४ पुष्कल वर्षा होने वाली कृषि योग्य भूमि । जरावत का विपरीत वागायत है । बागकी होती है ।) (जिराअत = १ द्वारा सिंचित सीचाई कु एसे 1 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीढियांरी हकीकत १. पाट बैठा त्यांरा' नांम १. रांणो भीमसी 3 भीमसी दस सहस मेवाडरो धणी । तिणरो बेटो चाँदरो । तिणरै पेटरा चंद्रावत कहीजै । उतन रामपुरो । रांणो भीमसी मेवाड़रो धणी । राणाजीरी पीढियांमें रांणो भीमसी पीढी ११८ मांहै छै ।" २ चांद सिसोदियो चांदरो रांणा भीमसीहरो बेटो | चांदरारा पोतरा ठाकुर गढपति हुआ । तिणरा चंद्रावत कहीजै । " 7 ३. सिसोदियो साजन चांदरारो बेटो चांदरा पछै पाट बैठो । साजन बेटा २ हुआ। जांझण टीकायत । छाजू छोटो बेटो । ४. सिसोदियो छाजू साजनरो बेटो 9 छाजू भोमियो को धरती मां रहतो हुतो पठार गांवां ।' ५ राव सिवो छाजूरो बेटो ठाकुर हुआ। मांडवरै पातसाह हुसग गोरीरो चाकर हुआ। प्रतरीरो परगनो पायो । गांम १४०० पाया । रावाईरो किताव पायो । 10 राव सिवैसू राव कहांणा । 22 कुंवर पृथ्वीराज रांणा रायमलरा बेटासू वडी वेढ कीधी | 12 11 I उनके । 2 भीमसी दस सहस्र मेवाड ( के गावो ) का स्वामी । 3 जिसके वशज चंद्रावत कहे जाते हैं । वतन (निवास) रामपुरा । 5 राणाजीकी पीढियोमे राणा भीमसी ११८वी पीढीमे है । (वात चन्द्रावतारी पृ० २३६ मे ११८ पीढीके वाद राणा भवराणसी [भीमसी ] का होना बताया है | ) 6 चादराके पौत्र ठाकुर गढपति हुए । 7 जिसके वशज चन्द्रावत कहे जाते हैं । 8 जारण 9 छाजू देशके पठारके गावो में भोमियाकी स्थितिमे रहता था । 10 रावाई (राव) का खिताब पाया । II राव शिवासे राव कहलाने लगे । 12 कुवर पृथ्वीराजने राणा रायमलके वेटेसे बड़ी लडाई लडी | टीकायत हुआ । Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ v २४८ मुहता नैणसीरी ख्यात ६. राव रायमल सिवारै पाट बैठो | मांडवरी पातसाही निबळी पड़ी ने रांणैरी वडी साहिबी । तरै राणे कूभै रायमलनू दबायो । चाकर कियो । " राव रायमल जाय राणेसू मिळियो । ७ राव श्रचलो रायमलोत पछै अचळो पाट बैठो। अचळ रांणे सांगेरी चाकरी कीधी । राणारा थको हुआ। रांणो सांगो वडो प्रतापीक हुयो । माडव दिलीरी धरती दबायनै लोधी । * ८. राव दुरगो 5 6 अचळारे पाट दुरगो बैठो । वडो देसोत हुआ । वडो ठाकुर हुम्रो । राव दुरगो जोरावर थको रहै । रांणास मिळे नही । रांणा नै राव दुरगै ग्रापसमे वांणक को नही ।' नै रांणैरी वडी साहिबी । ताहरा दुरंगी दिलीरा पातसाह अकबरसू जाय मिळियो । चाकर हुयो । राव दुरगो पातसाह अकबररी वार माह कारणीक ठाकुर हुम्रो । रामपुरा ऊपर च्यार ठोड पातसाह वीजी दीधो । राव दुरगं श्रातरीरो कसबो छाड नै नवो कसबो वसायो, रामपुरो नाव दियो । 7 8 9 ६. राव चंदो राव दुरंग पाट बैठो । • १०. नगजी नगजी राव चदैरो टीकायत बेटो थो, सु कुवरपदे राव चदै जीवतां हीज मुवो।" 0 I माडवकी वादशाही निर्वल हुई उस समय राणाकी वडी साहिवी हुई । 2 तब राणा कुभेने रायमलको दवा कर अपना चाकर बनाया । 3 चलाने राणा सागाकी चाकरी की । राणा के आधीन हुआ । 4 मांडव और दिल्लीकी धरती दवा कर ले ली । 5 वडा देशपति हुआ । 6 राणा और राव दुर्गाके परस्पर मेल-जोल नही । दुर्गा वादशाह श्रकवरके समयमे बडा प्रतिष्ठित ( प्रामाणिक ) ठाकुर हुआ । 8 रामपुरा के अतिरिक्त चार ठौर (परगने) और बादशाहने दीं । 9 राव दुर्गाने तरीका कस्वा छोड़ कर नया कस्वा वसाया, उसका नाम रामपुरा दिया । 10 नगजी राव चदेका टीकायत बेटा था सो राव चदाके जीतेजी कुवरपदे ही मर गया । 7 राव Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात ॥ २४६ ११. राव दूदो तिण नगजीरै बेटो दूदो हुतो, तिणन टीकायत कियो। टीक बैठो । राव दूदो वडो देसोत हुओ। पातसाह साहजहां दौलताबाद ऊपर मोहबतखाननू मेलियो, ताहरां दौलताबाद लेतो राव दूदो काम आयो।' राव दुदैरो काको गिरधर चांदावत पण दौलताबाद दूदा भेळो काम आयो। १२. राव हठीसिंघ पछ दूदैरै पाट राव हठीसिंघ बैठो। सु राव हठीसिंघरै छोरू नही हुो। मोटियार थको मुंवो।' १३. रूपसिंघ रुखमांगदोत राव हठीसिघरै पाट रूपसिंघ रुखमांगदोत । रुखमांगद चांदावत । सु रूपसिंघ पाट बैठो। १४. राव अमरसिंघ हरिसिंघोत राव रूपसिंघरै पाट राव अमरसिघ हरिसिघोत। हरिसिंघ चांदावत । सु अमरसिघ पाट बैठो। राव रूपसिंघरै छोरू को नहीं हुअो। पछै बेटो जायो। पातसाह साहजहां राव अमरसिंघन टीको दियो। वादशाह शाहजहाने महोबतखानको दौलतावादके ऊपर भेजा, तव दौलतावाद पर अधिकार करते समय दूदा काम पाया। 2 राव दूदेका चाचा गिरधर चांदावत भी दौलताबादमे दूदाके साथ काम आया। 3 राव हठीसिंहके कोई पुत्र नही हुआ । युवावस्थामे ही मर गया। 4 राव रूपसिंहके कोई पुत्र नही हुआ। 5 बादमें पुत्र उत्पन्न हुआ। 6 वादशाह शाहजहाने राव अमरसिंहको टीका दिया। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ वात सिखरो बहलवै रहै तैरी जेसळमेर सोढारै विचमें कोटेचा रजपूत रहै । कोटेचारै वडकुवार दीकरी सु पड़िहारैरो मोहिल परणीजणनू आयो। भलीभांतरो व्याव हुवो। व्याव कर तठासू चालिया। वीच मारगमें प्रावता भगत हुई, तेथ सोळे बाकरा किया था। सु बाकरारा माथा, खुरा चरू माहै राखिया हुता। पछै उठासू कूच हुवो। आगै मारगमे तळाव आयो। ताहरा वडेरा ठाकुर हुता" सु बोलिया-'जु सिनान करो, सेवा-पूजा कर अमल करो । सेजवाळो एक आंतरै छोड़ावो । ताहरा कोटेची छोकरीसू कह्यो-'दातण लाव ।' ताहरां छोकरी दातण लाई। दातण कर कागसी वाही ।' सिनांन कियो। श्री ठाकुरांरा नाम लिया। पछे सिरावण मांगियो। 1 ताहरां छोकरी कह्यो-'बाईजी ! एथ सिरांवण बीजो तो क्युही नही। बाकरारा पूचणा तो चरू माहै छ ।'12 ताहरां कह्यो-'चरू हेठो उतार 113 पछै छोकरी पुरसती गई । ठकुरांणी जीमती गई। वे पूचणा सैह ही आचमन किया। पछै ठाकुरां दातण सिनांन कर नाम ले1 सीस खुरा मंगाया । आयनै छोकरीनूं कह्यो-'प्रांचणांरो चरू दै।' ताहरां छोकरी कह्यो'चरूसौं कानूं करसो ?' कह्यो-'चरू माहै प्रांचणा छ।' ताहरां छोकरी कह्यो-'प्रांचणा सिगळांहोरो सिरांवण कियो।18 ताहरां ___ I जैसलमेर (भाटियो) और (उमरकोट) सोढोके बीचमे कोटेचा राजपूत रहते है। 2 कोटेचोके एक बड कुमारी पुत्री जिसको पडिहारेका मोहिल व्याहनेको अाया। 3 विवाह कर वहासे चले। 4 लौटते हुए मध्य मार्गमे खानेकी तैयारी हुई जहा सोलह वकरे मारे गये थे। 5 सो बकरोके सिर और खुर चरुआमे डाल रखे थे। 6 वडे-बुड्ढे । 7 थे। 8 स्नान करलो और सेवा-पूजा कर के अफीम लेलो। पालकीको एक ओर थोडी दूर छुडवा दो। 9 दांतुन कर कधी की। 10 श्री भगवानका नाम-स्मरण किया। II फिर नाश्ता मागा। 12 वाईजी । यहा कलेवाके लिए और तो कुछ नही है, बकरोके सिरसुर तो चरु मे रखे हैं। 13 चरूको नीचे उतार दे। 14 फिर दासी परोसती गई और ठकुरानी खाती गई। 15 उन सभी पूचनोंका आचमन कर गई। 16 भगवानके नामका सुमिरण कर। 17 चरूका क्या करेंगे? 18 सभी प्राचणोका नाश्ता कर लिया। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नेणसीरी ख्यात [ २५१ सारा ही ठाकुर बोला रह्या । मनमें सोच हुवो । पछे हालिया । पड़िहारे ग्राय पहुता । पडिहारे जायनै ठाकुर प्रधाननू कह्यो । ठाकुर प्रधान प्रलोच करनै कह्यो - 'जु ईयै ठाकुरांणीरा मोजडा म्हांसूं ऊपड़े नही ।" तिवारै रात कागळ लिख गांव बधायो नै कह्यो - ' ईयै रजपूतांणीरा गरजू म्हे नही ।'' प्रभात हुवै रजपूताणी कागळ वाचियो । कोटेची रजपूतांसू कहायो - 'ठे इसी वात छै ।" पछे कोटेचा सिरदारा आदमी मेल्ह आपरी दोकरी बुलाय लोधी ।" 14 8 पछै आ वात रावळ मालैजीरै हजूर हुई - 'जु खाधरै वई एक रजपूत रजपूतांणी छोडी ।" महेवरे दरबार मांहै इसी बात हुई । " ताहरां रावळ मालोजी कहै छै - 'ग्रो रजपूत चूको । ' उवै रजपूताणीरें पेटरा इसा बळवंत, नाड़ जोधा हुवत, जु कोटांरा किमाड़ भांजे । भूतां दईतांसू लडै । जीवता सीह पाकड़े ।' 110 1 ताहरां रांणो ऊगमड़ो ईदो बहेलवैरो धणी, रावळ मलीनाथरो चाकर । सु वै ठाकुर दरबार माहै वात सुणी । अर पछै ऊगमसी आदमी कोटेचां आगै मेल्हियो । वीनती कराई – 'थांहरी बेटी मोनू दो ।' ताहरां कोटेचा प्रापरी बेटी ऊगमसी ईंदैनू दीधी । ऊगमसी कोटेचीनू घरे घाली । 22* घणो हरख हुवो । 111 1 1 तब सभी ठाकुर चुप रह गये ( चकित हो गये । ) 2 फिकर हुथा । फिर रवाना हो गये और पडिहाराको आ पहुँचे । 3 ठाकुर और प्रधानने परामर्श करके कहा कि इस ठकुरानीकी जूतियें हमसे नही उठे ( इतना खाने वालीको हम वरदाश्त नही कर सकते । ) 4 उस दिन रातको पत्र लिख कर श्रादमीके साथ गावको बँधवाया और कहा कि इस राजपूतानीकी हमे श्रावश्यकता नही । 5 प्रभात होने पर ( उस श्रादमीसे लेकर ) राजपूतानीने भी उस पत्रको पढा, तव कोटेचीने भी राजपूतो ( पीहर वालों) को कहलवाया कि यहा ऐसी बात हो गई है । 6 फिर कोटेचा सरदाराने आदमी भेज कर अपनी पुत्रीको बुला लिया । 7 फिर यह बात रावल मल्लीनाथजी के पास पहुची (दरवारमे फैली ) कि खाने की बात के लिए एक राजपूतने, राजपूतानी ( अपनी पत्नी ) को छोड दिया है । महेवेके दरवार मे ऐसी चर्चा चली । 9 इस राजपूतने भूल की । TO उस राजपूतानीकी कोखसे ऐसे वलवान, नम्र जोधा उत्पन्न होते जो कोटोके किवाड़ तोडे, भूत और दैत्योसे लडे और जीवित सिंहोको पकडे | 11 और पीछे ऊगमसीने कोटेचोके पास श्रादमी भेजा और विनयपूर्वक कहलवाया कि तुमारी बेटीको मुझे दे दो । J2 ऊगमसीने कोटेचीको अपने घर मे डाली । 8 पाठान्तर -- * १ घरे वाळी । २ घरे वासी । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ मुंहता नैणसीरी ख्यात कोटीचीरै सात बेटा हुवा । तिकांरा नाम१. सिखरो। ५. लाखो। २. रोय धवळ। ६. ........... ३. ऊदो। ७. ............ .........। ४. राजो। एक दिन राय धवळ नै ऊदो नीसरिया हुता, रामत करता। जंगळ माहै रमता-रमता गया। ताहरा एक वघेरो दीठो। ताहरां लारै छोकरा हुता, तियां कह्यो-'यो किसो जिनावर छै ? तद उवा देखता सीह ऊठण पायो नही । ईंयां जाय कांनाहू पकड़ियो। पछै खाचियां-खांचियां गवाड" माहै ले आया। खूटो रोपनै बांधियो। छोडियो ताहरां लोक दीठो–'जु पो तो नाहर छै ।” ताहरां माणसै कहियो -जु रावळजीरो वचन साचो हुवो, जु ईयै रजपूतांणीरै पेटरा इसा हुसो, सु साच हुई।' हिवै बहेलवै11312 महेवै18 बीच झोटेळोव14 तळाव छ । तिण माहे1: एक झोटिंग रहै। दिन अस्त हुां पछै जिको17 तळाव ऊपर कर नीसरै, तिणन18 मारै । यू करता एक दिन जगमालजीन19 रावळ मलीनाथजीरो बोल: याद आयो-'जु ईयै रजपूतांणीरै पेटरो हुसी सु दैतां-भूतासू लडसी ।1 सु सिखरैरी परीक्षा कीजै । ___ चादणी चवदसरो दिन छ । सनि आदित्यवाररी सध छै ।23 ऊपर झड़ मंडियो छै । 4 सिणफिण मेह वरसै छै । जगमालजी I एक दिन रायधवल और ऊदा खेलते-खेलते बाहर निकल गये। 2 तब एक बघेरा देखा। 3 उनके पीछे जो छोकरे थे, उन्होंने कहा कि यह कौनसा जानवर है ? 4 इन्होने जाकर उसे कानोंसे पकड लिया। 5 गवाड= (१) वाडा (२) मोहल्ला, गली। 6-7 छोडा तव लोगोंने देखा कि यह तो नाहर है। 8 तव मनुष्योने कहा। 9 इस राजपूतानीके पेटके ऐसे (वली) होंगे, सो सच हुई। 10 अब । II एक गावका नाम । 12 और 13 एक गावका नाम । 14 एक तालावका नाम । 15 उसमे। 16 धने वालो वाला एक काला और दृढ भूत। 17 जो। 18 उसको। 19 जगमालजीको। 20 वचन। 21 इस राजपूतानीकी कोखसे जो उत्पन्न होगा वह दैत्यो और भूतोसे लटेगा (लटने वाला होगा।) 22 शुक्ल पक्षकी चौदसका दिन है। 23 शनि और रविवारकी सघि (मध्य) है। 24-25 ऊपर वर्षाकी झड़ी लगी हुई और थोडा-थोडा मेह परम रहा है। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २५३ झरोखै बैठा छ । ताहां दोय बळा हियां न हुकम कियो-'भारा २ लकड़ियांरा बहेलवैरै तळाव झोटेळाव ऊपर वड़ छ, तेथ जाय नांखो। ताहरां बळाहियां ले जाय लकड़ियां नांखी। जगमालजी खुसी थका बैठा छ । रात घडी ४ गई छ । खवास, प्रधान, उमराव मुहडै आगै ऊभा छ । ताहरां सिखरैजीनं जगमालजी कहियो-'आज राज घरे पधारो। एकै भाभी'नं कहियो-'सिखरैजीनं एक बाकरो आंण देजो। सिखरैजीनू कहियो-'सिखरोजी ! आज झोटेळाव ऊपर सूळा करै घरे जाईजो।" ताहरां सिखरैजी बाकरैरो कान चीरनै साथै बांध लियो नै जाय तळाव पुहुता।' चढियै ही वडरी साखसौ डोर बांधी ने घोड़ेसू नीचे उतरिया ।' पास दोवड़ थी तिका नीचे विछाई । घोड़ेरै दुबकी दीधी।11 ऊपर ढाल मेल्ही । ढाल ऊपर आपरा हथियार मेल्हिया ।13 चकमक झाड़ अगन कीवी।14 अगीठो जगायो।। सिनोन पोत काढी । आप तळाव माहै पैठा।" ताहरां झोटिंग भैसेरो रूप कर पर आयो। प्रो ठाकुर बोलियोहीज नहीं । सिखरो पाछो आयनै तरवार ले बाकरो मारियो । बाकरो मारियां पछै झोटिंग एक विपरीत रूप भूत करनै आयो । अकास सीस, पग धरती, इसो भूत आवतो दीठो।" चवदसरी चांदणी रात हुती । ___I वळाही = निम्न श्रेणीकी एक जाति का पुरुप। 2 झोटेलाव तालाबके ऊपर जहा वड वृक्ष है वहाँ जाकर लकडियोके दो भारे (गठ्ठड) डाल दो। 3 खवास (चाकर) प्रधान और उमराव मुहके सम्मुख खडे हैं। 4 आज आप घर पर पधारें। 5 भाभी (भावी, वाभी)= निम्न श्रेणीकी एक जाति का पुरुप। 6 सिखराजीको एक बकरा लाकर दे देना। 7 आज झोटेलाव तालाब पर शूले (कबाब) बना कर घर पर जाना । 8 पहुचे। 9 घोड़े पर चढे-चढे ही बडकी शाखा (जटा)से डोरको वात्र कर घोड़ेसे नीचे उतरे। 10 दोवड = दो परतो वाली चादर। I घोडोको दुमची दे दी। 12 रखी। 13 रख दिये। 14-15 चकमकको झाड कर अग्नि बनाई और अगीठी जगाई। 16-17 स्नान करनेके लिये घोती निकाली और तालावमे प्रवेश किया। 18 यह। 19 ऐसा भूत प्राता हुआ देखा। 20 उस दिन शुक्ल पक्ष चौदसकी चादनी रात थी। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात पर्छ असवार ४ वासै जगमालजी सेसू मेल्हिया - 'देखां सिखरो कासू करै छ ? सु थे जोय ग्रावो ।" ताहरा सेसू ऊभा जोवै छ । " ताहरा सिखरै भूतनू कह्यो - 'जु ते इतरो सरीर वधारियो सु हू डरूं नही । ' हूं ग्रादमी इतरै सरीरनू पोहचू ।" ताहरा भूत माणस जेवडो हुवो।" सिखरो बोलियो - 'जु तू ही श्राव । सूळा खाह । " आपा पर्छ लड़स्या ।' ताहरा भूत प्राय गोढं ' बैठो । 3 5 I 13 14 16 सिखरै काढि छुरी र बाकरारी खाल काढी । " वाकरो टांकर्ण कियो ।' पीडी तां" मास उतारियो । भीनी पोत ऊपर मांस सूड-सूड़ अर राखियो ।" तरगस मांहे सूळो काढियो । बोटी लूण लाय ग्रर सूळो उण झोटिंगरै हाथ दियो । 22 जित रे झीटोळिया भूत वीजा ही ग्राण बैठा । 23 सिखरोजी बोलिया - 'जु यांनू - " कहो जु लकड़ियां लावै ।' ताहरां भीटोळिया भूत लकड़िया प्रांगण लागा । 26 सिखरोजी सूलैरो बोटी आप ही खावै श्रर भूतनू ही हेक - हेक ' ' दै। इसी भात बाकरो खाधो । 27 वांसै वाकरारो सिरो रह्यो । 28 नाहरां एक लकडीरो चाहोलो कर बाकरारै नाक माहे देवर झोटिंगरै हाथ दियो ।' को - 'जु तू दुवि ।' ताहरां भोटिग दुवण लागो । 20 आप ऊठ र वागो पहरियो । हथियार बाधा । ताहरा झोटिंगनू कह्यो - 'जु बाकरैरा दात ढाक, मुहड़े तीव दे 16 19 21 । तीब लगाई । ताहरा दांत 22 3-4 तूने इतना शरीर (लवे) शरीरको पहुच I पीछे चार जासूस सवारोको जगमालजीने भेजा कि देखें, सिखरा क्या करता है सो तुम देख कर | 2 शेष (जासूस) खडे खडे देख रहे है ! वढा लिया है इससे मैं डरता नही; लेकिन मैं आदमी जितने सकता हू । 5 तव भूत मनुष्यके जितने शरीर वाला हो गया । 6 शूले खा । 7 पास 1 8 वकरेकी खाल निकाली । 9 वकको काटा | 10 से 1 II गीली धोती पर मासको उतार उतार कर रखा । 12 तरकशमेसे गूल (तीर) निकाल करके और उस पर बोटियोके नमक लगा कर शूले भोटिंगके हाथ दिये । भूत भी वहा आकर बैठ गये । 14 इनको । IS तब झोटोलिये भूत लकडिया लाने लगे । 16 एक-एक । 17 इस प्रकार बकरेको खाया । 18 पीछे बकरेका सिर रहा। 19-20 तब एक लकडीका चाहोला बना कर बकरेके नाकमे फँसा कर झोटिंगके हाथमे दिया और उसे कहा कि तू इसको इसमे खमोल दे । तव भोटिंग खसोलने लगा । 21 खुदने उठ कर बागा पहिना और हथियार बाँधे । 22 वकरेके दाँतोको ढक कर मुह पर तोव लगादे (सीदे) 1 13 इतनेमे दूसरे छोटे Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २५५ उघडै । ताहरां सिखरो तमकि अर घोड़े असवार हुवो।' ताहरां झोटिंग हाथी हुय प्राडो आय फिरियो । सबळा रोड़ा-झोड़ा हुआ । ताहरां सिखरै झटको वाह्यो सु हाथीरी सूड खिर पडी। बांठ-बांठ रूंख-रूख चीस हुई । असवार २ तो, वांसै मेल्हिया हुता त्यां माहिला मर गया ।' असवार २ मुरछागत हुवा।" ताहरां रावळजी असवार ४ प्रभाति वळे मेल्हिया।' आगै आइ देखै तो घोड़ा कायजै कियां फिरै छै अर असवार नही । जणा २ ससकता लाधा ।' उणांन आणिया । रावळ मालैजी परमेश्वररो नाम लेअर हाथ फेरियो । दिने दस-बारह बोलिया।11 ताहरां वात सारी ही जिसी दीठी तिसी कही ।12 रावळजी सिखरैजीनू पूछियो-'जु उण झोटिंगसू धको हुवो ?13 ताहरां सिखरै कह्यो-'मिळियो तो खरो पण धको काई हुवो नही।14 यु सिखरो बहेलवो गयो रहै ।। इति सिखररी वात सम्पूर्ण । I तब सिखरा लपक कर घोडे पर सवार हो गया। 2 जवरदस्त लडाई हुई। 3 तब सिखराने तलवारका प्रहार किया सो हाथीकी सूड कट कर गिर पडी। 4 (हाथीकी चिंघाड़ इतनी जोरसे हुई कि) जंगलका प्रत्येक वाठका (क्षुप) और वृक्ष चीस उठे (हिल गये।) 5-6 पीछे जो सवार भेजे थे उनमेसे दो तो मर गये और दो मूच्छित हो गये । 7 फिर भेजे । 8 आगे आकर देखते है तो घोडे तो कायजा किये हुए फिर रहे है परन्तु सवारोका पता नही। 9 दो जने सिसकते हुए मिले। 10 उनको घर ले प्राया। II रावल मल्लीनाथजीने परमेश्वरका नाम लेकर उनके ऊपर हाथ फेरा तव कही दम बारह दिनोंमें वोले। 12 तब सभी बात जैसी उन्होंने देखी वैसी कह सुनाई। 13 उस झोटिंगसे झपट हई क्या ? 14 मिला तो सही, परन्तु ऐसी कोई झपट नही हुई। 15 इस प्रकार सिखरा बहलवे गया हुआ रह रहा है । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। श्री गणेशाय नमः ॥ अथ वात ऊदै ऊगमणावतरी ऊदो ऊगमणावत इंदो' महेवै रावळ मलीनाथजीरी चाकरी करें । तद वाघ १ गोयांणारै भाखरां रहै सो देस मांहै विगाड़ करै।' ताहरां रावळजी रजपूतांन हुकम दियो-'चौकी घो।' ताहरां रजपूत चौकी दै, गोयाणारै डूगर दोळी । _____ ताहरां एक दिन ऊदैजीरी चौकीरी वारी आई। ताहरां ऊदैजीनू कहाडियो । ताहरां ऊदैजी कह्यो-'भलां राज ! ताहरां ऊदो गयो। भाखर रोकियो । घेरनै वाघ पकड़ियो ।' आणनै रावळजीनू सापियो ।” ताहरा रावळजी कह्यो-'सैबास ! ऊदा सैबास !!' ताहरां वाघ रावळजी ऊदैनू बगसियो । ताहरां ऊदै लियो। लेयनै गळटो कर बांधिनै छोडियो । कह्यो-जी, वाघ माहरो छ । जिको ईयैनं मारै तो तीयेसू मांहरो वैर छ । ताहरां वाघ फिरै, विगाड करै । कोई वाघ मारै नहीं। ताहरां वाघ फिरता-फिरता भाद्राजण जाय निकळियो।' ताहरां भाद्राजण सीधळां वाघ मारियो । तठे वैर हुवो। ईदा नै सीधळां माहोमांह वैर हुवो।° सीधळां इंदां लड़ाई हुई। सीधळ २५ कांम अाया। हिवै वैर पड़ियो ।11 भाद्राजण अर चौरासीरो मारग भागो। कोई मारग वहै नहीं। इसो वैर पडियो ।12 1 ईदा शाखाका ऊगमडेका बेटा ऊदा। 2 तव वाघ १ गोयणाके पहाडमे रहता है सो देशमे विगाड़ करता है । (गोयणा' मालानीके मेहवे और राडघरेका एक पहाड है जो भीतरसे खोखला बताया जाता है ।) 3 तब राजपूत गोयामणाके पहाडके चारो ओर चौकी देते हैं। 4 कहलवाया। 5 अच्छी बात है श्रीमान् । 6 पहाडको घेरा लगा करके रोक दिया और बाघको पकड लिया। 7 ला करके रावलजीके सुपुर्द कर दियो। 8 लेकरके गलेमे कपडा लपेट और बाघ करके छोड दिया और कहा कि यह वाघ मेरा है जो इसको मारेगा उससे मेरी दुश्मनी है। 9 तव बाघ फिरता-फिरता भाद्राजुन जा निकला। 10 तव भाद्राजुनमे सीधलोने वाघको मार दिया । ई दो और सीधलोके वापस में पात्रता हो गई। II अब शत्रुता और चेत गई। 12 भाद्राजुन अोर चौरासी (भाद्राजुनके ८४ गांवोका समूह) का मार्ग बन्द हो गया । कोई मार्ग चलता नही। ऐसी शता बंध गई। Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २५७ ईहड़ सोळंकी सींधळांरो चाकर । सु ईहरै ऊदोजी परणिया हुंता । सु कोई आवै नहीं। मारग न वहै। यु करतां वरस सात हुवा। एक दिनरो समाजोग छ । बाळसीसर तळाव ऊपर सिखरै ऊगमणावत गोठ कीवी छ । सारा ईंदा एकठा छ । अमल-पाणियां चाक हुवा छै ।" बाकरा मारिया छ । सोहिता हुवै छै । तिसै समईयै एक रजपूत बोलियो-'ऊदाजी ! कदै भाद्राजण ही जासो ?" ताहरां ऊदैजी कह्यो-'पाज जासां । जावणरी तो मन न हुती, पण थां कह्यो तो आज ही जावस्यां।" तद ऊदैरै चढणनूं काछण घोड़ी हुती तीयन रातब अणायो । जवांरो आटोअर गुळ घोड़ीनू दियो। ताहरां सिखरैजी उड़दावो देतां घोड़ीनू दीठो । ताहरां कह्यो-'घोडीनू उड़दावो क्युं ?'8 ताहरा कहियो-'जी, ऊदाजी भाद्राजण जावसी ।' ताहरां सिखरैजी कह्यो-'जेथ इवड़ो वैर पड़ियो, गाडां-गाडां मांटी मरे, तेथ क्यु जाईजै ?" ताहरां कह्यो-'जी, बोलिया तो दुगापचारी* ऑण छ। पाथवणरी विरिया, बीजै साथ तो घरानं खड़िया, ऊदैजी भाद्राजण- खड़िया । आधी रात आग, आधी रात पाछ, भाद्राजण जाय पुहुता। ताहरां उघाड फळसो मांहि हालिया। आगै सरगरै ___I सोलकी ईहड सीधलोका चाकर और इधर ईहड़के यहां ऊदोजी व्याहे थे। सो कोई आता जाता नही । मार्ग पर किसीका चलना भी बद हो गया। इस प्रकार सात वर्ष हो गये। 2 एक दिनका प्रसग है। 3 बालसीसर तालाबके ऊपर सिखर ऊगमणावत ( कदाका भाई) ने गोठ की है। 4 अफीम, शराव आदि लेकरके नशे में चूर हो गये है। 5 ऊदाजी ! कभी भाद्राजुन भी जानोगे ? 6 आज जायेंगे। जानेको तो मन में नही थी, परन्तु तुमने कह दिया है तो आज ही जायेंगे। 7 ऊदाके चढनेके लिए कच्छी घोडी थी उसके लिए रातिव मगवाई। 8 तव सिखरोजीने घोडीको अरदावा देते हुए देखा, तब कहा कि घोडीको अरदावा क्यो दिया जा रहा है ? 9 जहा इतनी अधिक शत्रु ता बनी हुई, गाडे-गाडे (अनेक गाडोंमें भरे जायें जितने, अर्थात् वहुत अधिक) मनष्य मरते हैं, वहा क्यो जाना चाहिये? 10 बोले तो (मना किया तो) आपको दगापचाकी (?) शपथ है। II संध्याके समय दूसरे सभी तो घरोको चले परन्तु ऊदाजी भाद्राजुनको रवाना हुए। 12 मध्य रात्रिको भाद्राजुन जा पहुचे। 13 फलसा खोल करके अदर चले। पाठान्तर-*दुगाय चा, दुर्गापंचा। 1 . Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] मुहता नैणमोरी ख्यात जाने ईहडदे जागविया । कह्यो - 'जी | ऊदोजी प्राया ।' ताहरां बारणो खोल माहे लिया । ढोलियो बिछाय दियो । ऊदोजी जाय पोढिया । 1 4 5 घोडी हुती सु काय कीवी ऊभी हीज रही । कायजो उखेलियो नही । वीसर गया ।" ताहरा ऊदोजीरो साळो जागियो | देख तो घोड़ी छ । प्रोळखी तो घोडी ऊदोजीरी । ताहरां ऊठनै घोड़ी पकडी दीठो - 'जायन पायगा माहे बाधू ।' ताहरा घोड़ी लेअर हालियो । जिसड़े घोडी ताणियां जाय छै, तिसड़े ऊदोजी जागिया ।" दीठो'घोडी चोर लिया जाय छे ।' जांणियो - 'भाद्राजण मांहै चोर घणा छै ।' वासांसू ऊदैजी तरवार काढ अर वाही सु बिधड़ हुआ । तितरं ओळगाणी जागी । कह्यो- 'जी ! कासू कियो ? म्हारो भाई मारियो ?” ताहरां ऊदैजी कह्यो - 'जो हुई सो हुई ।' ताहरां सासू जागवी । कह्यो-'जी, थे जायनें पोढो । हुवणहार हुई ।' आगे सीधळासूं वैर हुतो, हिव साळो मारियो, हिवं वैर वधियो ।' ताहरां ऊदैजी तो पाछली रातरा चढ परताळिया सो घरे गया 110 8 9 ताहरां मेळो सेपटो भाद्राजणरै काठ रहै । सु मेरो नायण एक दिन हड सोळकीरै घरे गई हुती । सु उठे ऊदैरी वैर सोळकणी दीठी | 12 नायण सिनांना करायो । ताहरा नायण जायने मेळेनू वात कही- 'जु ईहडरी बेटी पदमणी छै । मेळाजी | आप लायक छै । इसी नारी फूटरी कठै ही नही दोठी 13 ताहरां मेळे भाद्राजणमे श्रायने 1 लेकर चला । I सरगरेने ग्रागे जा कर ईहड़देको जगाया और कहा कि ऊदाजी प्राये है । तव द्वार खोल करके ऊदाजीको श्रदर लिया और पलग विछा दिया । ऊदोजी जाकर सो गये । 2 घोडी कायजा की हुई ही खडी रही । कायजा खोलना भूल गये । 3 पहिचान की तो घोड़ी ऊदोजी की मालूम हुई 4 तव घोडी खँचे हुए जा रहा है त्यो ही ऊदोजी जग गये । कर प्रहार किया सो धडके दो टुकडे हो गए यह क्या किया ? मेरे भाईको मार दिया ? शत्रुता थी ही, व मालेको मार दिया, अव तो पिछली रातको (घोडी पर ) चढ कर फटकारा सो घरको चले गये । के पास मेला सेपटा रहता है । 12 सो वहा ऊदेकी स्त्री सोलकिनीको उसने देखा । 13 ऐसी सुन्दर स्त्री कही नही देखी । । 5 ज्यो ही घोडी 6 पीछे जाकर ऊदाजीने तलवार निकाल 7 इतनेमे वियोगिनी जगी तो कहा कि जग गई, ( जगाई गई) । तो वैर और बढ़ गया । 8 9 आगे सीधलोंसे 10 तब ऊदोजीने 11 भाद्राजुन Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २५६ सोळकियांनू कह्यो - 'थांहरो वैर ऊदै कना लू, थांहरी बहन मोनू द्यो तो ।' ताहरां आा वात सोळकणी सुणी, ताहरां सोळकणी कहाडियो'मेळा ! म्हारो भरतार, जेठ इसड़ा नही सु तियारी बैर तूं ले जावँ अर उवान् पाल अर आवै । 2 ताहां सोळकणी सासरे बांभण मेल्है कहाडियो - 'ओ मेळो सेपटो ई विधवै छै । थे जेठजी ! ईयैरा भली विध हीडा करजो ।" ताहरा बांभण जाय वालसीसर मै समचार कह्या, ताहरां उवा ही ₹ सांजत हुवे छे। " 5 वालसीसर रै एक दिनरो समाजोग छै । सेपटो मंळो खानाजाद काछी चढिनै खडिया ।" एकल असवार चढ खडिया | तळाव जायने उतरियो । आगे एवाळिया आयनै तिकां एवाळियां हिमायचा भांगरा ( ? ) नाखिया छै । तीरधणियां मूकिया छै ।" ताहरा मेळं पूछियो - 'कठारा एवड ? 8 ' म्होटा बाकरा ? " अठै कोई रजपूत वसै छै किना नही ? 10 एवा - ळिया कह्यो - 'ऊगमड़ेरे बारह विरद । " काय खेडा बाकरा मरे छं, काय प्राणो प्रावे ताहरा मरे छे । बीजूं नहीं मरे छे । विके नही छे । 12 ताहरा मेळे कह्यो - 'ठाकुर ! बाकरो एक मोनू द्यो तो म्हे ही आज थांसू ं वातां करा, बैसा । 13 ताहरां एवाळां 14 कह्यो - 'लोजै राज !' 1 ऊभा छै । 6 I तुमारी वहिन मुझको दो तो तुमारा वैर मैं ऊदेसे ल । 2 तव सोलकिनीने कहलवाया कि मेला । मेरा पति और जेठ ऐसे नही हैं सो तू उनकी स्त्रीको ले जाये और उनके तेरे पीछे चढने पर तू उनको रोककर ( मारकर ) सकुशल चला जाये । 3 तव सोलकिनीने ब्राह्मणको ससुराल भेज कर कहलवाया कि मेला सेपटा इस इरादेसे श्रा रहा है सो जेठजी । श्राप इसकी खातिर भली प्रकार करे । 4 ब्राह्मणने वालसीसर जाकर जब यह समाचार कहे तब उधर भी तैयारी होने लग रही है । 5 मेला सेपटा खानाजाद कच्छी घोड़ी पर चढ कर चला । ० श्रागे गडरिये भी श्राकर खडे है ( जमीन पर ) रखे हैं । 8 रेवढ कहा के ? 9 ये इतने बडे करे ? राजपूत भी वसता है किम्वा नही ? II ऊगमड को बारह विरुद है । 12 या तो वाहर पर ( चढाई करने पर ) बकरे मारे जाते हैं या कोई पाहुना श्राये तो मारे जाते हैं, नही तो नही मारे जाते है और वेचे भी नही जाते है । 13 एक वकरा मुझको भी दो तो हम भी तुमसे यहा बैठ कर आज बातें करे । (तुमारे साथ बैठ कर उसे बनाएँ और खाएँ ।) 14 गडरियेने | । 7 तीर कमान TO यहा कोई Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० मुंहता नैणसीरी ख्यात मेळे कह्यो-'यू ही नहीं ल्यू। जो थे मोल ल्यो तो ल्यू 1 ताहरां एवाळां कह्यो-'दीजै राज !' ताहरां मेले सेपट नव फदिया पड़दी मांहैसू काढिनै दिया। ताहरां उवां कह्यो-'बाकरो लीजै राज !' ताहरां वडो जूह बाकरो जोयनै लियो। लेयनै मारियो। ताहरां हाड काढि-काढि जुदा किया । सुणियो हुतो सिखरैरै कूतरा दोय छै सु चोर ढकण नही पावतो। तै वासतै हाडांसू लेयनै कूरबांण भरियो ।' ऊपर कसो बाधो।' पछ बाजरी घातनै बाजरियो कियो।' ताहरां खीलोहरियां कह्यो-'राज ! जीमण तयार छै। आप हालो। जोमण विराजो।' ताहरा आपही जीमिया, खीलहरी पण जीमिया । __पछै ऊठ हथियार बांध, घोड़ेरा तंग खांच, खीलहरियांसू विदा कीवी !10 मेळे कह्यो-'मांहरै तो वीकपुर जावणो छ ।11 ताहरा खीलहरियां कह्यो-'राज ! बोहुड़ता आवो तो ईयै तळाव आवजो । पछै मेळे उठासू खड़िया सु गांम आय लागो । ताहरां कुत्ता सांम्हां दोडिया । ताहरां कुत्तांनू हाड नांखिया । कुत्ता तो हा. विलूबिया । आप आघो' गांम माहै चालियो। भाथै अफीमरो पोतो हुतो सु खिर पड़ियो । पछै कूतरांन मारनै गांम माहै 1 यदि तुम मूल्य लो तो लू, योही (मुफ्तमे) नही लू । 2 तब मेले सेपटेने पर्दीमेसे नौ फदिये निकाल करके दिये। (फदिया = रुपयेके आठवें भागका (दुअन्नी वरावर) एक छोटा सिक्का 1) 3 तव एक बहुत पुष्ट वकरा देख कर लिया। 4 तब हड्डियोको निकाल निकाल कर अलग किया। 5 सुन रखा था कि सिखरेके दो कुत्ते ऐसे हैं जिनके कारण कोई चोर लग नही सकता। 6 इसलिए हड्डियोको लेकर कूरबान भर दिया । (कूरवाण - एक पात्र 1) 7 ऊपर (वस्त्रसे ढक कर) कसना बांध दिया। 8 फिर (मासमे) वाजरी डाल करके बाजरिया बनाया। 9 तव गडरियोने कहा कि राजन् ! भोजन तैयार है । आईये ! जीमनेको वैठिये । तब खुद ही जीमे और गडरिये भी जीमे । 10 पीछे उठ कर शस्त्र वाघे, घोडेके तग खींचे और गडरियोसे विदा ली। I हमारे तो वीकूपुर जाना है। 12 तब खिलहरियोंने कहा-राजन् ! लौटते पायो तव इस तालाब पर फिर आईये। 13 फिर मेला वहाँसे रवाना हुआ सो गांवके पास आ गया। 14 तब कुत्ते सामने दौडे तो उनको हड्डियें डाल दी। 15 कुत्ते तो हड्डियोको चाटने लग गये। 16 आगे। 17 भाथेमे अफीमका पोतो था सो गिर गया। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २६१ धसियो। आगे जायन देखे तो ऊदाजी पोढिया छ । ताहरां मेळे जायन हथियारांरी वाधरयां वाढी । सेजबध वाढिया । अस्त्रीरी चोटी वाढी। तरगसारा पंखारा वाढिया। वाढनै मेळो पाछो वळियो ।' इतरै रजपूतांणी जागी। जागी अर कह्यो-चोरासिया ठाकुर ! सेपटो ठाकुर आयो हुतो । माथै हाथ लावै तो चोटी नही । इतर सिखरो जागियो। ऊठनै बरछी हाथ लेयनै घोड़े आयो । अपलांण घोड़े चढियो, हाथ एकै बरछी लियां ।। सिखरैरो घोडो नै ऊदैरी घोड़ी, बेऊ एकी छान में बझै ।' सु घोडीरी वा बछेरी मास ११री सु घोड़े ही आगै चरै नै घोडी ही प्रागै चरै। सिखरो चढि अर नीसरियो, ताहरां वा बछेरी घोड़ेरै लारै हुई।' हिवं सिखरो बाहिर आयो । देखै तो घोड़ेरा खुर, मेह वूठो हुतो सु दीखण लागा' आगे देखै तो कूतरा वढिया पड़िया छै । कूतरारै कनारै धवळो सो क्यु पड़ियो छ ।10 जोयो, देखै तो अमलरो पोतो छै ।11 ताहरां सिखरैजी उठाय लियो, घात घोड़ेरै ..............." पगै लगाय फिटा किया।12 पछै मेळो कोढणैरै तळाव गयो । प्रभात हुवो। ताहरां मेट पोतो सभाळियो। देखै तो पोतो नही । ताहरा उतर घोड़ेसू, बिछा 1 पीछे कुत्तोको मार करके गावमे घुसा। 2 आगे जाकर देखा तो ऊदाजी सोये हुए है। तव मेलेने जाकरके शस्त्रोकी डोरियें काट दी, सेजवध काट दिये, स्त्रीकी चोटी काट ली और तरकशोके पख काट लिये । ये सब काट करके मेला वापिस लौटा। 3 इतनेमे सिखरा जगा। 4 उठ करके बर्थीको हाथमे लेकरके घोडोंके पास आया। हाथमे एक वर्शी लेकर विना जीन कसे हुए घोडे पर चढ गया। 5 सिखरेका घोडा और ऊदेकी घोडी दोनो ही एक छप्परमे बँधते है। 6 सो घोडीकी ११ महीनोकी बछेरी घोडे और घोडी दोनो के साथ चरती है। 7 तव वह बछेरी घोडेके पीछे हो गई। 8 अब जब सिखरा वाहर पाया तो देखता है कि वर्षा हुई थी जिसमें घोडेके खुर मॅडे हुए दिखाई देने लगे। 9 आगे देखता है तो कुत्ते कटे हुए पडे है। 10 कुत्तोके पास सफेदसा कुछ और पड़ा है। I देखा तो अफीमका पोता है। 12 सिखरोजीने उसे उठा लिया और घोडेके (हानेमे डाल और घोड़ेको एडी मार ?) चल दिया। 13 फिर मेला' कोढणे गांवके तालाब पर गया। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] मुहता नेणसीरी ख्यात वणा कर सूतो। सिखरो वांस लागो थको ही प्रायो।' प्राय अर जोयो। देखै तो, कोई सूतो छ । जोयो, भाई ! असवार तो ऊ हीज । पण सूतो क्यु ?" ताहरां सिखरो घोड़ेसू उतरियो। उतरनै नैडौ आयो । प्रायने कपडो ताणियो ।' ताहरां मेळो जागियो। कहियो-'ठाकुरारो नाम ?' कह्यो-'मेळो सेपटो।' ताहरां सिखरो वोलियो-'मेळाजो ! चवरासी छेडी छै, ठांम-ठाम ढोल हुअा छ, ऊदै सारीखा रजपूत छेड़िया छै, अर थे पोढिया छो ? कासू जाणो छो?8 ताहरा मेळो बोलियो-'ठाकुरांरो नाम ?' कह्यो-'जो, म्हारो नाम सिखरो ।' ताहरां मेळे कह्यो-'सिखराजी ! हू तो बायड़ियो छू।" ताहरां कह्यो-'ऊठो ठाकुरां! अमल करो।' तोहरों कह्यो-'जी, अमल तो हू म्हारै पोतेरो खाऊ छू, सु म्हारो पोतो खिरियो।11 ताहरां सिखरै पोतो काढि अर हाजर कियो । कह्यो-'जी, प्रो ठाकुरारो पोतो छ, आरोगो । ताहरां सिखरैजी मेलेरै घोड़े छागळ हुती, तिका आणनै मेळेनू अमल करायो। ताहरा सिखरै कह्यो-'मेळाजी! आप पोढो, ज्यु हू ठाकुरांनू दाबू ।14 ताहरां मेळोजी पोढिया । सिखरोजी दुड़बड़ियां देण लागा, ज्यु मेळोजीनू अमल आयो, घोरांणो । ताहरां सिखरै मेळेजीनू जगाया । कह्यो-'जी, ठाकुरा ! उठो।' ताहरा मेळोजी जागिया । सिखरैजी अांख्यां छटाई, हथियार __I तब घोडेसे उतर कर और विछौना विछा कर सो गया। 2 सिखरा भी पीछे लगा हुआ था पहु चा। 3 आ करके देखा। 4-5 सवार तो वही है, परतु सोया क्यो है ? 6 उतर करके निकट आया। 7 आ करके कपडा खीचा। 8 मेलाजी ! चौरासी प्रदेशको छेडा है, जगह-जगह (वाहरके) ढोल बज रहे है, ऊदा जैसे राजपूतको छेड़ा है और तुम यहा पा कर सोये हुए हो? क्या जान रखा है तुमने। 9 सिखराजी । मैं तो अफीमका व्यसनी हू। 10 अफीम लेो। II अफीम तो मैं अपने ही पोतेका खाता हूँ और मेरा पोता कही गिर गया। 12 तव सिखरेने पोता निकाल कर हाजिर किया और कहा कि यह आपका पोता रहा, अफीम ले लीजिये (खाइये।) 18 मेलेके घोड़े पर छागल टंगी हुई थी जिसको लाकर सिखरेजीने मेलेको अमल-पानी कराया (अफीम खिलवाया) । (छागल=वकरीके बच्चेकी खालकी बनी हुई छोटी मशक)। 14 मेलाजी ! आप सो जाइये, सो मैं आपको चपी कर दू । 15 तब मेलाजी सो गये, सिखरोजी मुक्की देने (चपी करने) लगे, जैसे ही मेलोजीको अफीमका नशा आ गया और नीदमें पुराने लगा। Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २६३ बंधाया। कह्यो-'ऊठो मेळोजी ! किसी भांत जुधं करस्यां ?'2 ताहरां मेळोजी बोलिया-'घोड़े असवार हुयनै जुध करस्यां ।' तोहरां सिखरोजी,बोलिया-'मांहरै घोडो अपलांणो छ ।' पण थे कह्यो तो भलां, असवार हुवो। ताहरा मेळोजी घोड़े असवोर हुवा । घोड़ो तातो कर ताजणो लगायो नै मेळेजी तो आघा खड़िया ।' सिखरोजी देखता ही रह्यो । 'ऊ जाहि ! ऊजाहि !" ताहरां मेलेरै वांस सिखरै खड़िया ।' लारै घोड़ो लगाय फिटो कियो। घोड़ो सिखरैरो पहुचे नही, मेळेरै घोड़ेनू ।' सिखरैरै घोड़े लार वछेरी आई हुती, तिका वछरी दोड़ती-दोडती मेलेरै घोड़ेस आगै हयनै वळे वछेरी पूठी आई।' आय अर वळे वछेरी आधी जावै, अर वळे अंपूठी आवै । वार दोय वछेरी ईयै जिनस आई 111 ताहरां सिखरै दीठो-घोड़ो पहुंचै नहीं। ताहरां सिखरै बछेरी पाकड़ी, घोड़े कनारै आई ।। ताहरां लटी पकड़, सिखंरो वछेरी असवार हुवो। ताहरा वछेरी दोड़ी । जाय. मेळेरै घोड़े आगै नीसरी।14 ताहरां वछेरी अपूठी फिरी । ताहरा सिखरै साम्हां आय बरछो वाहो, सो मेळेरै बरछी दुसार हुई।15 मेळो घोड़ेसू खिर पड़ियो। सिखरोजी उतरिया । तितरै वाससू वाहर पण आई।" सिखरोजी ऊदैजीन वात कही। ताहरां ऊदैजो कह्यो-'मेलेनू दाग द्यो ।'18 ताहरा मेलेनू दाग दियो। I सिखराजीने आँखें छंटवाई और शस्त्र बंधवाये। 2 मेलाजी । उठो। किस प्रकार युद्ध करेंगे? 3 मेरा घोड़ा बिना जीनका है। 4 परतु तुमने कह दिया है तो अच्छी बात है, सवार हो जाओ। 5 घोडेको तांता करके चाबुक मारा और मेलोजीने तो दूर ही चला दिया। 6 वह जाय ! वह जाय । सिखरोजी तो देखते ही रह गये। 7 तव सिखराने भी मेलेके पीछे चलाया। 8 घोडा पीछे दे कर खूब जोर मारा, परन्तु सिखरेका घोडा मेलेके घोडेको नहीं पहुच पाता। 9 सिखरेके घोडेके पीछे जो बछेरी पाई थी, वह बछेरी दौडती-दौड़ती मेलेके घोडेसे आगे जाकर फिर बछेरी वापिस लौट आई। 10. आकर के फिर वछेरी (मेलेके घोडेसें) आगे निकल जायें और फिर लौट कर आ जाये। IT इस प्रकार बछरी दो बार आई और गई। 12 जव बछेरी घोडेके पास आई तो सिखरेने उसे पकड़ लिया। 13 तव (वछेरीकी) लटिया पकड करके सिखरा बछेरी पर सवार हो गया। 14 जाकरके मेलेके घोडेसे आगे निकल गई। 15 तब सिखरेने सामने आकर वर्चीका प्रहार किया सो मेलेके वर्ची प्रार-पार हो गई। 16 मेला घोडेसे गिर पड़ा। 17 इतनेमे पीछेसे वाहर भी आ गई। 18 मेलेका अग्नि संस्कार कर दो। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] . 60 मुंहता नैणसीरी ख्यात ताहरां सिखरैजी कह्यो-'हालो।' ताहरां ऊदो बोलियो-'मेळे सारीखा रजपूतरा समचार रड़वड़ता जावै, ताहरां कासू कोई जाणसी ? हं जायन मेळेरी पाघ देय आवीस 12 ताहरां ऊदो पाघ लेयनै चालियो। जाय, मेळेरै गांम पुहंतो। आगै मेळेरो बेटो कोटडी मांहै बैठो छ। घूधरियां पलै घातियां छै ।* आपरा रजपूत सारा बैठा छ। ताहरां ऊदो जायन कोटड़ीरै बारण ऊभो छ । ताहरां ऊदो बोलियो-'कुण ठाकुररी कोटड़ी छ ?? ताहरां रजपूत बोलिया-'मेळाजी सेपटारी कोटड़ी छ ।' ताहरां ऊदो बोलियो । कह्यो-'ठाकुरां ! आ मेळाजीरी पाघ छै, मेळोजी काम आया ।' सिखरैजोरै हाथरा घावां ठाकुर काम आयो छ ।' साकारिया छै म्हां । आ पाघ छै ।' ताहरां मेलेरो बेटो बोलियो'राज ! वैर म्हां थासू कोई छै नही, वैर सारीखो हुवो छ ।1 मेळो अन्याई हुरो हुतो, मेळे आपरो कियो पायो।12 राज पधारो, मांहर वैर कोई छ नही ।13 ताहरां ऊदै कह्यो-'अ कुण-कुण ठाकुर छ ?14 कह्यो-'जी, ओ15 मेळोजीरो बेटो छ। झै दूसरा भाई छ । बीजा' रजपूत छ ।' ताहरां ऊदोजी बोलिया-सिखरैजीरी बेटी मेळेजीरै बेटैनूं 1 मेले जैसे राजपूतका मृत्यु-सदेश इधर-उधर भटकता हुआ (उसके घर पर) पहुंचे, तब कोई क्या जानेगा? 2 मैं जाकरके मेलेकी पघड़ी दे पाऊगा। 3 जाकरके मेलेके गांव पहचा। 4 पल्लेमे घूघरिया डाले हुए हैं। (घूघरिया=उवाले हुए गेहूं और चनोका एक नाश्ता ।) 5 अपने (उसके) सभी राजपूत (भी पासमे ) बैठे है। 6 तव ऊदा जाकरके कोटड़ीके द्वार पर खड़ा है। 7 किस ठाकुरकी यह कोटडी है ? 8 यह मेलाजीकी पाघ है, मेलाजो काम आ गये हैं। 9 सिख रेजीके हाथोके घावोसे ठाकुर काम पाया है। 10 हमने अग्नि-सस्कार कर दिया है। II श्रीमान् । तुमारे हमारे अब कोई वैर नहीं है। वैर वरावर हो गया है। 12 मेला अन्यायी हो गया था सो उसने अपने किये का फल पा लिया। 13 आप पधारे, हमारा आपसे कोई वैर नही है । 14 ये (यहाँ बैठे हुए) कौन-कौन ठाकुर हैं। 15 यह। 16 ये। 17 दूसरे । 18 सिखरेजीकी वेटी मेलेजीके वेटेको दी (संवध किया।) Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २६५ दीनो 11 देव ऊठियां पछै बांभण मूकां छा।' वेगा पधारजो ज्यु परणावा । वैर वाढ अर ऊदोजी आपरै घरे आया छ । सखरा दिन हुवा ताहरां बाभण मेल्हन मेळ जीरै बेटेनू तेड़नै परणायो छै । वैर भागो छै । इति ऊदैजीरी वात सपूर्ण । Common - - I सिख रेजीकी बेटी मेले जीके बेटेको दी (वाग्दान-मवध कर दिया) (प० २६४की टिप्पणी संख्या १८, अतिम पक्ति डिलीट समझे) 2 देव उठ जानेके बाद (कार्तिक शु. ११के देवोत्थान पर्वके बाद) ब्राह्मणको भेजते है। 3 जल्दी पधारना सो व्याह देगे। 4 वैर मिटा कर ऊदोजी अपने घर आये है। 5 (वर्षा ऋतु मिट कर) अच्छे दिन हो गये तब ब्राह्मणको भेज मेलेजीके बेटेको बुला कर विवाह कर दिया। 6 शत्रुता मिट गई है। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणशाय नमः ॥ अथ वूदीरी वारता वदी राव सुरजन राज करै* । राव सुरजनरै दोय वेटा। एकैरो नाव दूदो, जैसे भैरवदासोत चांपावतरो दोहीतरो। दूसरो भोज, तिको रावळ सहसमलरो दोहीतरो डूगरपुररै धणोरो। यु करता, दोन भायां आपसमे दूदै अर भोज वडो वेध पड़ियो ।। ताहरा राव सुरजन वेटा बेऊ तेडिनै कह्यो-'थे मो ऊपर फिरिया। थे म्हारो कह्यो न मानो। म्हैं राजसू कोई काम नही । थे धरती वैहच ल्यो ।' ताहरां बूदी तो ३६० गांमांसू दूदैनूं दीनी । अर खडखटरो परगनो गाम ३६०सूं भोजनू दीधो' । __ *राव सुर्जन हाजा वि स १६११मे वृदीकी गद्दी पर बैठा था। यह राजनीति-चतुर होते हुए भी उदार और धार्मिक-प्रकृतिका शासक था। इनके समयसे वूदीका सवध मेवाटसे छूट कर मुगलोसे हो गया था। पर मुगलोकी अधीनता स्वीकार करते समयकी सधिमे बादगाह अकवरमे गवने यह गर्त ते करवा ली थी कि मेवाडके ऊपर शाही आक्रमणके समय दीकी सेना कोई माथ नही देगी। राव सुर्जनने द्वारकामे श्रीरणछोडरायका मदिर नया वनवाया था जो अभी तक स्थित है। काशीमे भी इन्होने कई घाट और महल बनवाये थे। काशीमे इनके निवासके समय गौड (वगाल) देशके एक कवि चन्द्रशेखरने चौहान वश और राव सुर्जनकी प्रशमामे 'सुजंन चरित' नामक एक सस्कृत काव्यकी रचना की थी। इनकी मृत्यु वि स १६४२मे काशीमे ही हुई थी जहा इनका और इनके साथ सती होने वाली गनियोके स्मारक बने हुए है। स्व श्रीजगदीगसिंह गहलोतने अपने 'राजपूतानेका इतिहास' द्वितीय भागमे वूदी राज्यके राव भोजके वर्णनमे 'वाकीदासको वात ११२६ के आधार पर (टिप्पणीमे उसका नरेत करते हुए) भोजको वासवाडाके रावल जगमाल उदयसिंहोतका दोहिता लिखा है। 1 एफका नाम दूदा जो चापावत जैसे भैरवदामोतका दोहिता और दूसरा भोज जो डूंगरपुरके स्वामी रावल नहनमलका दोहिता। 2 इस प्रकार चलते दूदा और भोज दोनो भावों में परम्पर वटी अनबन हो गई (परस्पर वडा विरोध हुआ)। 3 तब राव सुरजनने दोनों बेटोको बुला कर कहा कि तुम मेरे ऊपर फिर गये, मेरी प्राजाका पालन नहीं करते। मेरेसो उन राज्यसे अब कोई वास्ता नहीं। तुम धरतीका वट कर लो। 4 दूदेको दी। 5 भोजनो दिया। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नेणसीरी ख्यात [ २६७ ताहरां हमीर दहियो तिको भोजनूं कहै – 'तोनू मारियो । दूदा आगे टिक सगँ नही । दूदो तो काळ । दूदो तोनू गिणिया दिनामे मारसी ।" ताहरां भोज कहियो - ' तो हमीरजी । हूं कासू करू ? 12 ताहरां हमीर कहियो - 'तू अकबर पातसाह श्रागै जाह ।' ताहरां भोज कहियो-'रूडां, थे कहियो सुहू जाईस । पण मोनू खरच जुड़े नही ।" ताहरां हमीर कह्यो - 'हूं लाख रुपिया देईस यांनू । ताहरा हमीर दहियै लाखेरीरा वोहरा कना लाख रुपिया पटू होयनै देराया । " 5 8 पछै भोज अकबर पातसाह कर्न गयो । सीकरी - फतेहपुर अकबर पातसाह हुतो, तेथ भोज गयो ।' ताहरां वांसैसू दूदैनू खबर हुई - 'जु भोज पातसाह कनै गयो ।' ताहरा दूदो डकरियो' - 'भोजनू मारूं । पातसाहरै दरबार विचै मारू ।' ताहरा वांसैसू दूदो ही सीकरी - फतेह - पुर गयो । जायन हेरो करायो । 10 ताहरां हेरै" कह्यो- 'म्हां हेरियो 1 छै । " वागो घोडो हेरियो छे 12 13 । इसडो वागो ईयै रंग घोड़ो भोजनू चटणनू छै । 24 कह्यो - 'रे ! चोकस करें । 15 कह्यो - 'जी, म्हे चोकस कियो छै । 26 16 17 ताहरां भोज दरबारनू वागो पहर तयार हुवो । घोड़ो प्रांण हाजर कियो । " जाहरां भोज घोड़े प्रसवार हुवण लागो, ताहरां घोड़ो धूजियो । 28 ताहरां जोगो गौड़ बोलियो - 'दीवांण ईयै घोड़े प्रसवार न 6 पास । 7 अकबर तेरेको मार दिया । दूदाके श्रागे तु नही टिक सकता । दूदा तो तेरा काल है । दूदा तुझको गिने दिनोंमें मार देगा । 2 हमीरजी । तो में क्या करू ? 3 तब भोजने कहा – 'अच्छी बात है । तुमने कहा तो मैं जाऊगा, परन्तु मेरेको खर्च नही जुडता (खर्च करनेको मेरे पास पैसे नही हैं ) । 4 मैं तुमको लाख रुपये दूगा । 5 तब हमीर दहियेने जामिन होकरके लाखेरी के वोहरा के पाससे लाख रुपये दिलवाये । बादशाह फतहपुर सीकरी मे था वहा भोज गया । 8 पीछे से । हुआ । ( २ ) क्रोधित हुआ । (३) गुर्राया । II गुप्तचर । 12 हमने जांच कर ली है । है । 14 ऐसा वागा श्रीर इस रगका घोडा भोजके चढनेको है । IS | चौकस पता लगाना । 16 मैंने चौकस (ठीक) पता लगा लिया है । 17 घोडा लाकर हाजिर किया । 18 तब घोडेको कँपनी हुई । ( सवारी करते समय घोडेका कापना अपशकुन समझा जाता है और प्रस्थान रोक लिया जाता है ) | 9 ( १ ) भयभीत 10 जाकरके गुप्त रूप से खबर कराई । 3 वागा और घोड़े का पता लगा लिया Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात. हुईजै ।' ताहरा भोज ऊ घोड़ो, ऊ वागो खवासन बगसिया । श्राप बोजो' वागो पहरियो। बीजै घोडै असवार हुवा । उवै घोड़े खवास चढियो। पातसाहरै मुजरै गयो । अठै दूदो पण असवार हुवो। भोज पातसाहसू मुजरो कर पूठो बाहुडियो।' दूदै दरबार माहै नीसरतां उवै वागै खवास हुतो. सु खवासनू कटारी वाही ।' 'ताहरा खवास करकियो।' ताहरा दूदै अपूठो घोडो वाळ अर कह्यो-'रे । हेरो खोटो कियो। कह्यो-'जी, म्है हेरो खरो कियो हुतो।" ताहरा कह्यो-'रे । भोज राव सुरजनरो बेटो, कटारी लागां करके क्यु ?10 म्हारो भाई कटारी लागा क्यु करकै ?' ताहरा खबर कराई। ताहरा कह्यो-जी, ऊ वागो, घोड़ो खवासन दिया।' ताहरा दूदो अपूठो बूदी आयो। प्रायनै कह्यो'भोजनू पातसाह आगळ कुण मेल्हियो ?'11 ताहरा कह्यो-'जी, हमीर दहियै मेल्हियो।' ताहरा दूदो तीन हजार पाखरियासू हमीररै गाव किरवाड जाय उतरियो । उतरनै हमीरनू कह्यो-'भोजनू लाख रुपिया दीना, मोनू ही लाख रुपिया दे, काय मारिस ।13 म्हारै वापरी रजपूत छै। छाडू नहीं, नही तो मारू । तै भोजन क्यू मूकियो, पातसाह प्रागै ?14 ताहरा हमीर विचारियो-'कासू कीजै ?15 ताहरां हमीर छोटे भाई दौलतखाननू तेड़ियो । तेड़नै पूछियो- भाई ! कासू विचार की ? मुसकिल घणी ही आई छ। जे रुपिया द्या तो जाट-गूजर कहावां। हाडोतीमे भूडा दीसा । न द्या तो मारीजा ।'19 ___ I तब भोजने उस घोडे और उस वागेको खवासको बख्शिश कर दिया। 2 दूसरा। 3 दूसरे। 4 उस घोडे पर खवास चढा। 5 भोज वादशाहको मुजरा करके पीछा लौटा, 6 दूदेने दरबारसे निकलते हुए उस बागेको पहने हुए खवास था इसलिये, खवासको कटारी मार दी। 7 तब खवास चिल्लाया। 8 तव दूदेने घोडा अपूठा (उल्टा) लौटा कर कहा कि अरे | जाच गलत की। 9 मैंने जाच पक्की की थी। 10 राव सुरजनका वेटा होकरके कटारी लगनेसे क्यो करके ? II भोजको वादशाहके आगे किसने भेजा? 12 तब दूदा तीन हजार परवरेत सवारोंके साथ हमीरके गाव किरवाडमे जाकर उतरा। 13 मुझको भी लाख रुपये दे नही तो मारू गा। 14 तूने भोजको बादशाहके आगे क्यो भेजा ? 15 क्या किया जाय ? 16 बुलवाया। 17 बुला करके। 18 बहुत ही मुश्किल पा बनी है। 19 यदि रुपये दें तो जाट-गूजर कहलाएँ, हाडोतीमे बुरे दीखें और नही देते हैं तो मारे जाते है। Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [२६६ ताहां दौलतखांन कहै-'हमीरजी । थे यू करो। दूदैरै कटकमे पचीस अमराव छै अांपांनू मारणवाळा । तिके थे मारो तो दूदो अपूठो जावै। ताहरां हमीर कह्यो-'रे दोला ! सारो हाडोतीरा रजपूत मारणा ? सारी सगा-सैण क्यूकर मारीजै ?'3 ताहरां दोलो कहै'वडा ठाकुर समझ !' ताहरां हमीर कह्यो-'भलां भाई ।'4 ताहरा हमीर दूदैन परधांन मेल्हिया। कह्यो-जी, लाख रुपिया थांन ही दईस । भोजनू पटू हुयनै दरवाया छ, थांनू घररी दईस ।' पण यू करो', पचास हजार तो रोकडा दईस नै पचास हजारमे घोड़ा हाथी देईस ।' ताहरां दूदै कहियो-'वाह, वाह, भला ।' ताहरां परधानां वात थपाडी । ताहरां दूदै कहियो-'जावो, हमीरनू ल्यावो ।' ताहरां हमीररा परधानां कह्यो-'रावळे अमराव पचीस छ, तियारी मोनू बाह हुवै । आज पछै दूदोजी जे वळे हमीरनूं क्यु ही करै तो ईयारी बांह छ । ताहरां दूदै अमरावां साग ही न तेडिनै13 कह्यो-'जावो, हमीरनू बांह द्यो अर हाथी घोड़ा ल्यावो ।' ताहरा अमराव पचीसां चढ अर आया। हमीर आदमी ४०० जीनसालिया कर तयार एकै ठाम राखिया छ । उवांनू पण भेद न दीनो। कहियो- जी, लाख-लाख रुपियारो भरणो छ। कि-जाणां कासू नीवडै ? थे चोकस ऊभा रहिज्यो ।16 जे कोई वात विगड़े तो थे आय अणी भेळिया ।17 आपसमे भाईया ो आलोच कियो हुँतो के म्रग घोड़े ऊपर उपाव करस्यां।18 ____ I दूदेके कटकमे अपनेको मारने वाले पच्चीस उमराव है। 2 उनको तुम मार दो तो दूदा वापिस लौट जाये। 3 अरे दौला | समस्त हाडोतीके राजपूतोको मारना ? सभी सवा और सज्जनोको कैसे मारा जाय? 4 अच्छी बात है भाई। 5 भेजे । 6 लाख रुपये तुमको भी दूगा। 7 भोज को जामिन होकरके दिलवाये है, तुमको घरसे दूगा 8 परन्तु ऐसा करो। 9 वाह-वाह अच्छी बात । 10 तब प्रधानोने यह बात नक्की की। 11/12 श्रापके जो पच्चीस उमराव है, उनकी साक्षी मेरेको हो जाये। अाज पीछे दूदोजी हमीरके विरुद्ध फिर कुछ करे तो इनकी साक्षी है । (वाह (१) शपथ । (२) वचन । (३) साक्षी। (४) मत । (५) विश्वास, भरोसा ) 13 बुला करके। 14 हमीरने ४०० कवचधारी आदमी एक जगह (गुप्त स्थान) पर तैयार करके रखे हैं। 15 उनको भी भेद नही दिया। 16 क्या जानें क्या हो जाय, तुम सावधान रहना। 17 जो कोई बात विगड जाय तो तुम पाकर युद्ध कर लेना। 18 भाइयोने परस्पर यह परामर्श (निश्चय) किया था कि मृग-घोड़ेके (मूल्यके) लिये लडाई करेंगे। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ] मुहता नणसीरी ख्यात ताहरां वनो गौड और धनो गौड दूदैरे प्रधान छे, तिके ग्राया छै । घोडा हाथियारी कीमत मडै छै ।' कागळ' हाथ मांहै छे । घोडो जिको ४०० सौरो छै, तिकैरा ४० मांडै छै । हजाररो है तेरो सवहेक माडै छै । 4 7 8 19 .3 14 ताहरां हमीररी वेटी सदाकुवर, तिकै वात जांणी । तिका बोली- म्हारो देवर छै सु उबारो ।' कह्यो - 'हिवै क्युकर ऊवरे ?" ताहरा वा बोली- 'न उबारो तो हू कूकू छू - 'चूक छ', का उबारो ।" ताहरा दोल जायन उवैनू' कह्यो - 'थांनू बाई भीतर बुलावै छै ।' ताहरा कह्यो - 'जी, पछै प्राईस ।" ताहरा दोलै कह्यो- 'पर्छ नही, पहली आवो । काई माहरी वात कहसी । 20 ताहरा ग्रायो । ताहरां माहै तेनैि कह्यो - 'जी, वात सुणो ।' ताहरां वात सुणणनै प्राघो " ग्रायो। ताहरां तरवार कटारी काढि लीधी 12 ग्रर आप बाहिर आई । छोकरी कपाट ग्राडा दिया । ताहरां आफळियो ।1 कह्यो- 'भोजाई, कासूं कियो ? हू आपच कर मरीस । 25 ताहरां कह्यो - 'चुप करो ।' ताहरां गोविंद कवियो - चारण हूंतो मांहै। 16 ताहरां हमीर कह्यो–'रे दोला ! चारण ऊबरे ।' कह्यो – 'जी, क्युकर ऊबरे ? 17 कह्यो - 'ज्युं जांणै त्युं उबार ।" ताहरां दोले कह्यो– 'गोयंदजी थे सीरावणी करो ? 19 ताहरां चारण कह्यो - ' वाह वाह ।' ताहरां हमीर चारणनूं लेजायनै मिठाई पुरसी" । चारण तो जीमण बैठो । ताहरां मोहण दहियो वरस १५ मांहे छे, तिकै ढाल तरवार ले जायनै आपरी मा आगे नांखी । कह्यो – 'मा ! म्हे हथियार युंही 20 I घोडे और हाथियोंका मूल्य लिखो जा रहा है । 2 कागज । 3 जो घोड़ा चार सौ रुपयों की कीमतका है उसकी कीमत चालीस रुपये लिखते है और जो एक हजार की कीमतका है उसकी कीमत एक सौ रुपये लिखते हैं । 4 उसने बातको जान लिया । 5 अव कैसे बचे ? 6 नही बचाते हो तो मैं हल्ला करती हू कि धोखा है, नही तो उसे 7 उसको । 8 तुमको | 9 पीछे आऊगा । 10 हमारे सवधमे कुछ बात कहेगी । II आगे । 12 निकाल ली । 13 दासीने किंवाड़ जड़ दिये । पछडा ( तडफड़ाया ) 15 मैं पछाड खा कर ( तड़फडा कर) मर जाऊगा । कविया चारण गोविंद भी भीतर था । 19 गोविन्दजी ! तुम नाश्ता करो । वचा लो । 14 तब 16 तब 17 कैसे बचे ? 18 जैसे हो तैसे बचाओ । 20 परोसी, परोस दी । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २७१ बांधां? डंड जाट-गूजरां दाई भरां ?' ताहरां मा वोली-'बेटा ! हथियार नांख ना। हथियार सभाहि ।' बाई सदारो देवर हुतो, सु सदा अणायो, सो चूक छै । मृग घोड़ो कोई छ, तीये ऊपर उपाव हुसी। तू वेगो जाह । बैस ना। ताहिरा मोहण हथियार सबाहिनै ऊठियो। तितरै झै सिरदार घोडा मांडता-माडता मृग घोड़े आया। ताहरां कह्यो-'जी, मृग-घोडो छ, माडो।' ताहरा वनो गोंड बोलियो। कह्यो-'एक हजारमे मांडस्या ।' ताहरा कह्यो-'जी, मृग छ ।' वनो गौड़ बोलियो-'मृग छै तो कासू करां ? ताहरां कह्यो-'जी, वाध माडो। ताहरा वनो गौड कहै-सुण रे दहिया । का गाडर आपण भावसू मूडावे, नही तो पकड अर ऊधी नाखै, गुदी ऊपर पाव दै ऊंधी नांख मूडै, ताहरां मूडावै ।' ताहरा दोलो दहियो बोलियो-'सुण रे गौड ! का ? एक सेलो म्हाकै ही हाथको आवै छै । ताहरा कागळ-लेखण तो वनैरै हाथ माहै ही रहया ।' मृगघोडैरै पछाड्यां माहै पूदात्राणो जाय पडियो । 10 तितरै कूकवो हूवो। ताहरां घर माहैसू च्यार सै बगतरिया नीसरिया ।" लोह वाजियो । सारां ही नू झूड़ नांखिया । दूदैरो सारो ही साथ कूट मारियो । दूदै साभळियो'-'मारणहारा मारिया।' ताहरां हमीर दहियै साथ कर जायनै कह्यो-'म्हारा-म्हारा मारणहारा म्हां मारिया ।" हिवै दूदा तू परहो जायै, का म्हे तोनू 1 शस्त्र डाल मत, शस्त्र धारण कर 2 वाई सदा (सदा कुवरि)का देवर था जिसको सदाने बुला लिया है अत कोई धोखा है । कोइ मृग-घोडा है, जिसके ऊपर झगडा होगा, तू जल्दी जा, वैठ मत। 3 मोहन शस्त्र धारण करके खडा हुआ। 4 इतने मे सरदार भी घोडोका मूल्य लिखते-लिखते मृग-घोडेकी कीमत लिखनेके लिये उसके पास आये। 5 मृग है तो क्या करें? 6 अधिक (मूल्य) लिखो। 7 भेड़ या तो सीधी तरहसे मुडवा लेती है; नही तो पकड कर ओवी डाल देते है और गर्दन पर पाव देते है, इस प्रकार औधी डाल कर मूडते है तव मुडवाती है। 8 और नही तो ? यह देख, एक भाला हमारे हाथका भी प्राता है। 9 (ऐसा कह करके उसने भाला मार दिया सो) कागज कलम बनेके हाथ ही मे रह गये। 10 और मृग-घोडेकी पिछाडियोमे चूतडोके बल जा गिरा। (पिछाड़ी-घोडेको पिछले पांवोसे वाँधनेका रस्सा ।) II इतनेमे शोर हुया । 12 तव घरमेसे चार सौ कवचधारी निकले। 13 शस्त्रोके प्रहार हुए। 14 सबको मार डाला। 15 दूदेके सभी साथ वालोको मार कर खतम किया। 16 दूदेने सुना। 17 हमारे-हमारे मारनेके थे उनको हमने मार दिया। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ही मारस्या। जिस. तू इसडा रजपूत जोडीस, तितरै म्हे परहा नीसर जावस्यां । हिवै दूदा तू जाह। म्हे तोनू मारां नही। म्हे थारै बापरा रजपूत छां, तैसू काई न करां छा ।' ___ ताहरां दूदो तो चढनै बूदी गयो। हमीर सुखसौ घरै वैठे राज कियो। जाहरा कितरैहेके वरसै दूदो रामसरण हुवो, ताहरां भोज बूदो आयो । भोजनू पातसाह धरती दीधी। भोज देस मांहै आयो, ताहरा भोज, गौडां ने दहियारो वैर भागो। गोपाळदास गौड़ दहिय परणायो। वैर भागो।' भोज अमरावांरा वैर दहियांसू भजाया । देस माहै वडो चैन हुवो। ॥ इति दूर्द भोजरी वात सपूर्ण ॥ शुभ ।। * दूदाके मरनेके वाद उसका भाई भोज बूदीका शासक बना। इसने २२ वर्ष राज्य किया। यह वडा वीर था। अहमदनगरकी प्रसिद्ध वीरागना चादवीवीसे लड कर इसने अह्मदनगर पर विजय प्राप्त की थी। इसीलिये वादशाहने एक बुर्जका नाम 'भोज वुर्ज' रखा था। चादवीवी इस युद्ध मे अपनी सैकडो सैनिकायोके साथ वीरगतिको प्राप्त हुई। इसकी रूपवती कन्याको बादशाह अकदरने मागा था । तव उसने बिना सगाई किये हुए ही सिवानेके वीर राठौड राव कल्ला रायमलोतके साथ सगाई कर दी है, का कह दिया। इस पर वादशाहने कल्लाको सगाई छोड देनेको कहा । कल्लाने भोजके धर्म सकटको अपने ऊपर लेकर सगाई छोड देना स्वीकार नहीं किया और उसके साथ विवाह कर लिया । अक्वर कल्लासे बहुत विगडा और उसने सिवाने पर आक्रमण कर दिया। राव कल्ला बडी वीरतासे लड कर काम श्राया। भोजने अपनी दोहिती (आमेरके राजा जगतसिंहकी पुत्री)का विवाह जहागीरके साथ करने के प्रस्तावको भी अटका दिया था। इसलिये जहागीर भी इससे नाराज हो गया था। ___I अव दूदा तू चला जा नही तो तेरेको भी मार देगे। 2 जितनेमे तू ऐसे राजपूतोको जोडनेका प्रयत्न करेगा, इतनेमे तो हम दूर निकल जायेंगे। 3 हम तुमारे बापके राजपूत है, इमलिये अब तेरे माथ कुछ नहीं करते । 4 तव कितनेक वर्षोंके बाद दूदा जब मर गया। 5 दहियोने गोपालदास गौडको व्याह दिया तव वैर मिट गया। 6 दहियोंसे जो उमरावोली गत्रुता चलती थी उसे भोजने मिटा दिया। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामनी ।। अथ क्यांमखान्यांरी उत्पत नै फतेहपुर जूझणू वसायो तैरी वात दरैरैरा वासी चहुवाण; तिकां ऊपर हंसाररो फोजदार सैद नासर दोड़ियो। तद दरैरैरो मारियो अर लोक सरब भागो। पाछै बाळक २ पालणा माहै रहि गया-एक चहुवाणरो ने एक जाटरो।' पर्छ बाळक २ फोजदार नजर गुदराया। ताहरां फोजदार दोठा । हुकम कियो-'जु हाथीरै महावतनू सूपो अर दूध पावो । म्होटा करो।" __ताहरां दूसरे दिन फोजदार हसार आयो। ताहरां फोजदार सैद नासर दोनू बाळकानू आपरी बीबीनू सापिया अर कह्यो-'जु हम दो लडके लाये है, सो इनको तुम पाळो।' ताहरां दोन बाळकांन बीबी पाळिया । लड़का वरसै १० तथा १२रा हुवा। ताहरां हांसी सेखन सांपिया।' तद कितरैके दिनां सैद नासर फोत हुवो। तद सैद नासररा बेटो अर दानू पुतरेला पातसाह लोदी पठाण, नाम बहलोल, तैरी नजर गुदराया ।' ताहरां सैद नासररा बेटा पातसाहरी नजर उसड़ा न आया अर प्रो चहुवाण नजर आयो । तेरो नाम क्यांमखान हुवो, सु ईयैनू सैद नासररो मुनसब हुतो सु दियो ।11 पर जाटरो नाम जेनू हुतो, तैरा जेननदोत कहाया, सो जूझणूं-फतेहपुर I दरेरेके निवासी चौहानोके ऊपर हिसारका फौजदार सैयद नासिर चढ कर पाया। 2 तव दरेरेको लूटा और वहाके लोग सब भाग गये। 3 उस समय दो बालक पालनेमे रह गये। उनमेसे एक चौहानका था और एक जाटका। 4 फिर उन दोनो वालकोको फौजदारकी नजर पेश कर दिया। 5 हुक्म किया कि हाथीके महावतके सुपुर्द कर दो और दूध पिलानो। पालन-पोषण करो। 6 तब फौजदार सैयद नासिरने दोनो वालकोको अपनी बीबीके सुपुर्द कर दिया। 7 तब हासीके शेखको सुपुर्द कर दिया। 8 तव कितनेक दिनोंके बाद सैयद फौत हो गया। 9 तव सैयद नासिरके बेटे और इन दोनो पोपित पुत्रोको पठान-वादशाह बहलोल लोदीकी नजर पेश किया। 10 सैयद नासरके वेटे वैसे (योग्य) नजरमे नही पाये और यह चौहान नजरमें चढा। II उसका नाम क्यामखान दिया गया और सैयद नासिरका जो मनसब था वह इसे दे दिया । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात माहै केहेकि रहै छ।' अर पातसाह थोड़ो बीजांन पण दियो।' अर क्यांमखांनन हसाररी फोजदारी दीवी। तद ईयै दीठो-'जु कोइक रहणनू ठिकांणो की तो भलो। ताहरां जूझणू आछी दीठी।' ताहरा चोधरीनू तेडियो ।' कह्यो-चोधरी ! तू कहै तो म्हे ठिकाणो रहणनू करा।" ताहरां चोधरी बोलियो-'भला, ठोड़ वोवो, पण म्हारो नाम रहै त्यु करीज्यो। ताहरां कह्यो-'भला ।' ताहरां चोधरीरो नाम जूझो हुतो, सु तिकैरै नाम जूझणू वसायो।' अब जू झणू माहिली होज धरती काढनै फतेहपुर वसायो, नै झै भोमिया थका रहै ।10 पछै कितरैहेके दिनां अकबर पातसाह माडण कूपावतनूं जूझणू जागीरमे दीवी हुती।11 अर फतहपुर इण जूझणू माहिली हीज हुती सु फतेहपुर गोपाळदास सूजावत कछवाहैनू दीवी हुती सु भोमिया थको रहतो । मुकातो देतो। सु पर्छ जहागीर पातसाहरो चाकर हुवो। सु पहला तो समसखां जूझणू चाकर रह्यो नै पछै अलम[फ]खांरै रह्यो। 1 और जाटका नाम जेन था, इसके वशज जेननदोत (जैनदोत) कहाये, सो जूझन फतहपुरके प्रदेशमे कहीक रहते हैं। 2 और बादशाहने (उस का भाग) थोडा दूसरोको भी दिया। 3 और क्यामखानको हिसारकी फौजदारी दी। 4 तव इसने देखा कि कही रहने के लिये कोई ठिकाना अपने लिये भी किया जाय तो ठीक हो। 5 तव इसको जूझनू मच्छी लगी। 6 तव चौधरीको बुलाया। 7 चौधरी । तू कहे तो हमारे रहने के लिये कोई ठिकाना यहाँ बनायें। 8 अच्छी बात है, अपने लिये ठौर बना लो, परन्तु उसमे मेरा भी नाम रहे ऐसी बात करना। 9 चौधरीका नाम जूझा था सो उसके नाम पर जूझणू गाव वसाया। 10 अव जूझणू ही की धरतीका कुछ भाग निकाल कर फतहपुर वसाया और उसमे ये भोमियेकी हैसियतमे रह रहे हैं। II पीछे कितनेक दिनोके वाद अकवर बादशाहने माडण कूपावतको जूझनूं जागीरमे देदी थी। 12 और फतहपुर इस जूझनमे से ही था जिसको कछवाहा गोपालदास सूजावतको दे दिया था सो भोमिया बना हुआ रहता था। 13 सो पहले तो जूझणू मे शम्सखाका चाकर रहा और फिर अलफखाके यहाँ रहा । *यह अलफखा मभवत प्रसिद्ध कदि न्यामतखां उपनाम 'जान कवि'के पिता फतहपुर (शेखावाटी) क्यामलानी नवाब हो। जान कविका क्यामला रासा' क्यामखानियोंके (शेष टिप्पणी २७५ पर) Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २७५ दूहा पहली तो हिंदू हुता, पीछ भये तुरक्क । ता पीछे गोले भये, तातै वडपण तुक्क ॥ १ धाये काम न पावही, क्यांमखांनि गदेह । बंदी आद जुगाद के, सैद नासर हदेह ॥ २ ॥ इति क्यांमखान्यांरी वात सपूर्ण ।। ___दोहोका भावार्थ- पहले तो यह हिंदू थे और पीछे तुर्क हो गये । जिसके पीछे ये गोले हो गये । इसलिये बडप्पन तुक्के जितना ही (थोडा ही) रहा ॥शा क्यामखानी गदे है वे अधाये हुए काम मे नही पाते, क्योकि प्रारभसे ही वे सैयद नासिरके वदे (चाकर) रहे है। इतिहासका प्रसिद्ध और मूल्यवान ग्रथ है। राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानसे यह सर्व प्रथम प्रकाशित हो चुका है। जान कविके बुद्धि सागर, सतनावा और अलफखाकी पैडी आदि ७५ नथ जाननेमे पाये है। फदनखाकी पुत्री ताज बीवी भी इसी वशकी श्री कृष्णकी परम भक्त-कवयित्री थी और गोस्वामी विट्ठलनाथजीकी शिष्या थी। ताज सम्राट अकवरकी पत्नी थी । सम्राट इसकी इस भक्ति-भावनासे आकर्षित था। इसकी कोई दर्जन भरसे अधिक रचनाएँ जानने में आई है। दौलतखा आदि कई विद्यारसिक, भक्त और कवि इस वशमे हो गये है। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री रामजी ॥ अथ दौलताबादरा उमरावारी वात दौलतावादरा उमराव ईयै तरह आय मिळिया पातसाह जहांगोरसू ताहरा पैहली तो जहांगीरसू उदराम ब्राह्मण पच हजारी थो सु प्राय मिळियो। पछै जादूराय आय मिळियो । तठा पछै आकूतखा पच हजारी पातसाहसू आय मिळियो। सु यां सारां ही उमरावांनू पातसाह जहांगीर पच हजारी किया। ताहरां पछै मलकंबर निजामसाहनू कह्यो-'जु म्हारो बेटो फतैसाह छ तैसू दौलतावाद जासी, सु ईयैनू मारिस । ताहरां निजांमसाह कह्यो-'ओ म्हारो' मामो छ।' ताहरा मलकंबर कह्यो'थारो' मामो पण म्हारो वेटो छ ।' पछै मारियो नही अर कैद माह कर राखियो ।' अर कह्यो-'जु ईयैनू दीवानगीरी कदै देणी नही, जो देवो तो सिपाहीपणैरो रिजक दिया । पछ मलकबर सुवो।" तद ईयन दीवाण कियो । पछे कितरेहके दिनां निजामसाहनू मोतीमहल माहै मारियो । अर निजामसाहरो बेटो छोटो हुतो तीयन टीको दियो । पछै इतरा उमरावांनू छडाया-11 1 इस तरह। 2 याकूतखा। 3 इन सभी उमरावोको बादशाह जहांगीरने पंचहजारी बनाया। 4 मलिक अवर। 5 सो इसको मार दूगा। 6 मेरा। 7 तेरा। 8 परन्तु। 9 फिर मारा तो नही परतु कैद कर दिया। 10 इसको दीवानगीरी कभी नहीं देना, यदि देशो तो सिपाहीपनेकी जीविका देना। II पीछे मलिक अवर मर गया। 12 तन इनको दीवान बनाया। 13 जिसको टीका दिया। 14 फिर इतने उमरावोको नेदरे तुटाया।' Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २७७ मुकरबखां । सरफराजखां । साहबखां । दिलावरखां । अर साहजी मिळिया । सु एक वेळा मिळ नै पाछा जाय बैठा । 1 2 3 पर्छ जद छोकरो टीकै बैठो, ताहरां पातसाह फेर मुहिम कीवी । " सु मोहबतखां चत्रतोरथ दिसा मोरचो लगायो, सु दिन १५ में तोड़ियो । अर भीतरलो गढ छठे महीने लियो * श्रर बीजा उमराव बीजापुर गया । साहजी पछे बीजापुर गयो । सु दौलताबादरा गढांरी ४५ कूचियां हुती', सु सोहजहां प्रायो जद' अलावरदीखांनू मेल्हनै गढ १२ साहजीनूं दिया नै बाकीरा गढ लिया । 8 || इति दोलतावादरा उमरावांरी वात संपूर्ण ॥ ॥ शुभ भवतु ॥ कल्याणमस्तु || श्रीरस्तु ॥ 1 सो एक वार मिल करके वापिस जा बैठे । 2 तव वादशाहने फिर चढाई की । 3/4 मोहवतखानने चित्र ( ? ) तीर्थकी थोर मोर्चा लगाया जिसको १५ दिनो में तोड दिया, परंतु भीतरके महल पर छटे महीने जाते श्रधिकार हुआ । 5 दूसरे । 6 पी । 7 जब 8 भेज कर Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदिदास्त' खांनदोरारो नाम आगै साबर हुतो, सु साहजिहां पातसाहरै विखै माहै नीसरियो हुतो। सु मालक मलकंबररै तो इतरो ठीक हुतो जु हिदुस्तांनी कोई गढमें राखतो नही । ढूढ काढतो, सु पैसण न पावै ।' ताहरां पछै खांनदोरा एकी तुरकणीनू जायनै मिळियो नै कह्यो -'जु मोन मलकंबर जायन वेच । ताहरा तुरकणी जायन वेचियो । गढ माहै वडियो।' सरव गढरो भेद लियो। लेयनै जद साहजिहां टोकै बैठो, तद जाय मिळियो । सरब हकीकत कही।' 1 याददाश्त (स्मरण रखनेके लिये नोट रूपमे लिखी हुई कोई बात)। 2 सो शाहजहा वादशाहके सकटकालमें निकल गया था। 3 मलिक अंबरके यही इतना ठीक था कि किसी हिन्दुस्तानीको गढमे नहीं रखता था। ढूंढ करके निकाल देता था जिससे कोई गढमें प्रवेश नहीं करने पाता था। 4/5 तब खानदोरा एक तुर्कनीसे जाकर मिला और उससे कहा कि मुझे मलिक अदरके यहा वेचदे। 6 गढमे घुस गया। 7 साहजहा जब गद्दी पर बैठा तब जाकर उससे मिला और सब हकीकत कह दी। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदिदास्त जद प्राक्तखां नै मोहबतखां रीसायो, तद कह्यो-'तू खबर पोंहचावै छ ।'1 'प्राकृतखां पण दीठो-'गढ जावै ।' तद नीसर गयो । पछै दिन ५६ हुवा, तद दोपहररो नगारो देयनै चढियो । राव दूदैतूं लड़ाई कीवी । सु राव दूदो काम आयो । अर प्राकृतखां पण कांम आयो, घड़ी ५ तथा ६ दिन वांसलै थकै ।। खेलूजी मालूजी आया तद अाकूतखां प्रायो, तद अठेहीज आयो।' खांनखांना पर्छ अकबर पातसाहरै दीवाण सेख फरीद हुवो।। जहांगीर पातसाहनू प्रयागसू बुलायनै पातसाही दीवी, घडी दोय तद दीवांण हुवो।' पछ वरस दोय खानखाना हुवो। वरस २ दोय करनै, सु तोडरमल मरतो कहि गयो थो सु दफतर जोवाड़ियो।' खेलूजी मालूजी कनड़रा पाहाड मांहै कोळी रहै, त्यांरा चाकर हुता । तद मलबर कह्यो-'जु यां कोळियांनू मारो तो आ धरती थांनू देवां। ताहरां खेलूजी मालूजी कोळियांन मारने वा सारी ही धरती लीवी। पछै आकूतखां तद आइ मिळियो । पछै औ ही प्राय मिळिया।12 I जब याकूता और मोहवतखा परस्पर नाराज हो गये तव कहा कि तू खबर पहुचाता है। 2 याकूतखाने देखा कि गढ जा रहा है, तब वहासे निकल गया। 3 तव दुपहरको नगाडा वजवा कर चढा। 4 पाच-छ. घडी पिछला दिन शेष था तव याकूतखा भी काम अाया। 5 खेलूजी और मालूजी आये, तब याकूतखां भी यहा ही आ गया। 6 खानखानाके वाद अकबर बादशाहका दीवान शेख फरीद हुआ। 7 उसके समय केवल २ घडी दीवान रहा। 8 दो वर्ष तक खानखाना रहा। 9 दो वर्षके वाद टोडरमलने मरते समय कहा था, उस दफ्तरको ढुढवाया [ 10 खेलूजी मालूजी कनडके पहाडोमे रहने वाले कोलियोके चाकर थे। II मलिक अवरने इनसे कहा कि यदि तुम इन कोलियो को मार दो तो इनकी यह धरती तुमको देदू। 12 फिर याकूतखा भी पा मिला और उसके बाद ये भी पा मिले । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गणेशायनमः ॥ अथ सांगमराव राठोड़री वात लिख्यते 3 4 सांगमराव जोपसाहरो । राजा वीसळदे सोळकी गुजरातरै धणी परधांनगी करतो । ताहरां सांगमराव मांहै क्यूंहेक खायकी नीसरी । ताहरा गोरो वादळ सोनगरा परधांन थापिया वीसळदेजी । ताहरां गोरो वादळ सागमराव ऊपर साथ करने आया ।' वडो लड़ाई हुई । सागमराव नीसरियो । ग्रापरै देस में जाय महेवै, जाळोर वीच रह्यो । " यु रहतां थकां एक दिनरो समाजोग । सावत संढायच चारण थर पातसाहरै घोडे दरियाई ऊपर चरवादार हंतो ।' एक दिन सांवत घोड़ो लेने नीसरियो । दिन ३ तीन सारीखो वूहो, ताहरां युं करतां थाको हुवो। तद सागमरावर गांमरै ताळ मांहै प्रायन सूतो ।' ताहरां घोड़ने घोडियारी वास पडी । घोड़ो हाथसू ढळ गयो । " ताहरां घोड़ी ताळ माहै हुंती सु घोड़ो हेकण घोड़ीनूं लागो । " सांवत जागियो । देखे तो घोड़ो नही । घोड़ो गयो । दोड़ देखे तो घोड़ो हेके घोडीनू लागो छै । 22 ताहरां घोड़ेनू जायने पकड़ियो ने सावत हेलो मारियो | कह्यो - 'जु भाई ! कोई घोड़ियांमें हुवै तो I सागमराव जोपसाहका लडका । ( जोपसाह राव श्रासथानका लड़का था ) 2 यह गुजरातके स्वामी वीसलदेव सोलकीके यहा दीवानगी करता था । 3 सागमरावने कुछ गवन कर लिया जिसका पता पड़ गया । 4 तव वीसलदेवने गोरा बादल सोनगरीको प्रधान बनाया । 5 गोरा बादल सांगमरावके ऊपर चढ करके आये । 6 सागमरराव वहा से निकल गया और अपने देश मारवाडमे महेवे और जालोरके बीच श्राकर रहा । 7 इस प्रकार यहा रहते हुए एक दिन यह प्रसग वना । सावत सढायच चारण जो थट्ट के वादशाह के दरियाई घोडे का चरवादार था । 8 तीन दिन तक चलता रहा सों थक गया । 9 तव सांगमरावके गांवके नजदीक तालमे आकर सो गया । 10 घोडा छूट गया । II तालमे घोडिया खड़ी थी उनमे से एक घोडीसे वह घोड़ा जा लगा । 12 दौड कर देखता है कि घोडा एक घोडीसे लग गया है । पाठान्तर -- * ' सांगमरावरे गाँव रे ताळ' केस्थान ' सागमरावरं गांम रैतळा' पाठ एक प्रति मे लिखा है । I Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [२८१ सांभळीज्यो । घोडी नू थटैरै पातसाहरो दरियाई घोडो लागो छ । बीज सभाळ लेज्यो ।'इतरो कहि चालतो रह्यो। घोड़ो दरयाई हुतो सु सांवत चीतोड़ रै' रांगनू लेजायनै निजर कियो। ताहरां राणे सावतसीनू गाम १ सांसण दियो ।' अर उण घोड़ीरै पेटरी वछेरी हुई । नाम बोर हुई, सांगमरावर घरै । न ते चढियां थकां घणो ही गुजरात देसरो उजाड़ कियो।' तिको सांगमराव कुडळ परणियो आचानणनै ।10 अर साळेरो नाम विसनदास । तिकै विसनदास सांगमरावजी पास वोर घोडी मांगी नै कह्यो-'म्हारै भाटियासू वैर छ। घोड़ी ईयै चढनै वैर लेवा ।11 ताहरा सागमरावजी विसनदासनू नीछो दियो ।1 पण आखर घोड़ी विसनदास ले गयो। विसनदास लेजायने घोड़ी बोरनै घोडो दिखायो ।13 वरस १नू व्याई । वछेरो जायो ।14 जवै बाध साबती कर बछेरी बोर विसनदास पाछी मेल्ह दीवी । कह्यो-'जी, घोड़ो थाहरी ल्यो । हाजर छै । वैर नीसरियो नहीं ।16 ___ताहरां सागमरावजी अमल कर घोडी ऊपर चढिया, ताहरा खुरी कीवी ।" घोड़ी हुती सु नही । ताहरा सांगमरावजी विसनदासनू कहायो। कह्यो-'घोड़ी व्याई। कूड कियो ? वेम उरहो I घोडियोमे कोई आदमी हो तो सुन लेना कि घोडीको थट्ट के बादशाहका दरियाई घोडा लगा है। 2 उसके वीज (नस्ल)को सम्हाल लेना। 3 इतना कह कर चलता बना। 4 था। 5 चित्तौड। 6 लेजा कर। 7 तब राणाने सावतसीको एक गाव शासनमे दिया। 8 सागमरावके घर उस घोडीके पेटसे बोर नामकी एक बछेरी उत्पन्न हुई। 9 उस पर चढ कर उसने गुजरात देशका बहुत विगाड़ किया। 10 सागमरावने कुडलमे प्राचानणसे विवाह किया। II इस घोडी पर चढ करके अपने वैरका वदला लू । 12 तव सागमरावजीने मना कर दिया। 13-14 विमनदासने लेजा कर बोरको घोडा दिखा दिया । एक वर्ष वाद व्या गई । बछेरा उत्पन्न हुआ। IS खूव जो खिला कर और पुष्ट बना कर वोरको विसनदासने वापिस भेज दी। 16 तुमारी घोडी लेओ । हाजिर है, वैर तो निकल नही सका है। 17 तब एक दिन अमल-पानी करके (अफीम लेकर के) घोडी पर चढे और उसको फिराया। 18 मालम या कि घोडी जैसी थी वैसी नही है । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ मुहता नैणसीरी ख्यात मेल्हो ।1 ताहरां विसनदास सांगमरावजीनू कहायो-'थे बेहनेई छो, तीयै कारण प्रासंगो कियो। वेम देवां नही । ताहरां सांगमराव मानी नही नै लडणनू चढियो। ताहरा आचानण सांगमरावजीनू कहियो-'जु राज ! चढीजै नही । घोड़ीरो वेम हू ले आईस । ताहरां आचानण पीहर गई। जायनै भाई विसनदास पासा बछेरो मागियो । कह्यो-'भाई ! हूं जांणीस म्हनै दायजै दियो ।4 ताहरां विसनदास तो वछेरो देवै नही। ताहरां चानण भाई विसनदासरै धरणे बैठी ।' आचानण दिन २ भूखी रही। पण विसनदास तो मांन नही। ताहरां आचानण अठैसूं वहीर हुई सो आगलै गांम उत्तरी । जीमण करोयो।' आपरा लोग हुंता सो सारा बोलाय वात पूछी। कह्यो-'अब हूं कासू करूं ?' मांटी छै सु तो साळसू टळे नहो । घोड़ो छोडै नही। ताहरां हूं मांटीनं वरज अर हूं पीहर घोड़ो लेवणनूं आई हुती, सु म्हारी वात पीहर भाई पण मांनी नही । हमै ह कासू करूं ?' ताहरां लोकां कह्यो-'थांहरै दाय ओवै सु करो। ताहरां भला-भला ठिकाणा रजपूतारा हुता तेथ गई, पण केही झाली नही । ताहरां गांम भेळू रामचंद इंदो रहै, तठे आचानण गई। ताहरा रामचद ईंदै कह्यो-'तू म्हारै माथै समी छै। तू भलाई नू ___I घोडी व्या गई है, हमने वोखा किया, वछडा भेज दो। 2 आप वहनोई है, इस मयको लेकर उसमे (अपनत्वकी) प्रासक्तिकी है, इसलिये वेम नही दूगा । 3 घोडीके वडेको मैं ले पाऊगी। 4 मैं जानूगी कि मुझे दहेजमे दिया है। 5 तव प्राचानण अपने भाई विसनदासके यहाँ घरना देकर बैठ गई। 6 तव आचानण यहासे रवाना होकर अगले गाव व्हगे। 7 वहा भोजन बनवाया। 8 अपने साथमे जो प्रादमी थे उन सवको अपने पास बुला कर पूछा। 9 अव मैं क्या करूं? 10 मेरा पति सो तो अपने मालेले चूकाता नही और घोडा छोडता नही । भाईके ऊपर चढ कर पाते हुए पतिको रोक ना मैं यहा पीहरी अपने भाईके पान घोडा लेनेको पाई थी, परन्तु पीहरमे मेरी बातको भी भाईने माना नहीं। II तृमारे जचे सो करो। 12 तब वह राजपूतोके अच्छेमन्टे टिकाने थे वहा गई, परन्तु किमीने इमे स्वीकार नहीं किया। 18 तव भेलू गावमे जहा गमचद ईदा रहता है, उसके यहा प्राचान गई। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २८३ आव । ताहरां रामचंद ईदै राखी। घरवास कियो ।' ताहरा आचानण दूहो कहै देसी बोर दबूकड़ा, केही* खलां सिरेह । कुंडलरै प्राचानणे, भेल रे ईदेह ॥ १३ ताहरां ईदा छै सु सारा ही हथखारै सातरा थका रहै । यु करतां छव मास हुवा । ___ ताहरां एक दिन सांगमराव गामरो एक जोगी ईंदार गाव गयो । जोगी, रामचद ईदारै घरै भिक्षायूँ गयो । ताहरां जोगो अलख जगायो । ताहरां जोगीनू आचानण ओळखियो।' ताहरा आचानण छोकरीनू मेल्हनै जोगीनू घर मांहै बुलायो। ताहरां जोगी कह्यो'अरी माई आचानण ! तू इहां कहां?' ताहरा आचानण बोली'आयसजी ! म्हारी खबर नही ?" ताहरां प्रायस कह्यो-'जु या खबर है जु घोड़े कू गई है पीहर, सो घोडा ले आवेगी।' ताहरां जोगी नौं रुपियो १), पडलो १ दियो। सोहरो राखियो । जीमायो । रात राख, जोगीनू सीख दीवी। अ समंचार कह्या-'ठाकुरांनू कह्या - म्हारोतो थां मुलायजो न कियो, जो म्हारै भाईनू मारणनै चढियो।10 ताहरां ठाकुरांनू राख हूं पीहर आई।1 ताहरा पीहर वाळां पण म्हारो कुरब राखियो नही । ताहरां म्हनै तो सासरै पीहर कठे ही ___I तू मेरे सिरके समान है, तू खुशीसे मेरे यहा श्रा जा। 2 तब रामचन्द इंदेने रख कर उससे घरवास किया। 3 दोहेका भावार्थ-अब वोर घोडी शत्रु अोके सिरो पर (शत्रुओ पर) दौड़े करना शुरू कर देगी। कुडल पर और आचानरणके कारण भेलूके ईदो (रामचद) पर तो निश्चय ही करेगी। 4 अब सभी ई दे (सागमरावके चढ कर पानेकी प्रतीक्षामे) हाथोका खार खाए हुए सज्ज होकर रहते है । इस प्रकार छ महीने बीत गये। 5 आचानणने जोगीको पहचान लिया। 6 प्राचानणने दासीको भेज कर जोगीको घरमे बुलवाया। 7 क्या मेरे यहाँ पाने की खबर नही है १ 8 तब जोगीको एक रुपया और एक वस्त्र दिया । अच्छी तरहसे रखा, भोजन कराया और रात भर रख करके (प्रातः) विदा किया। 9-10 ठाकुरको कहना कि मेरा तुमने कुछ भी मुलाहिजा नही रखा और मेरे भाईको मारनेके लिए चढ चले। II तव ठाकुरको बरज करके पीहर आई। 12 तब पीहर वालोने भी मेरा कुरव नही रखा। * पाठांतर - काही। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात 1 ठोड नही । तद है विचार यर रामचंद ईंदैरं पले ग्राई । हमें ठाकुर तो म्हें दिसिया गई कर जाय । " ताहरा जोगी पाछो गयो । जायनै सागमरावन् कह्यो - 'ग्राचानण कहा ?' ताहरां सागमराव कह्यो - " बछेरैनू गई छे ? 24 ताहरां जोगी को - 'बाबा ! वछेरा दिया नही । ताहरां प्राचानण रीस कर रामचद ईंदैरै घरमे बडी । " 6 तारा सांगमराव उठ श्रर नगारो करायो । सागमराव कूंडळ ऊपर चढियो । ताहरां भाईयां कह्यो - 'जी, हेकरसू तो बैररो वैर लेग्रो ।” ताहरा भेळू ऊपर चढिया । 8 प्राचानण जोगीनू सीख दीवी ताहरां पछै थाळी माहै मूंग घात बाजोट ऊपर राखिया हुंता । हेक दिन रातरा थाळी महिला मूग कूदण लागा ।" ताहरा प्राचानण रामचदरे पर्गे हाथ देअर जगायो । कह्यो - 'ठाकुरां ! उठो । कटक प्रायो ।' ताहरां रामचद कह्यो - 'जी, कठे छै कटक ? 1° म्हारा भाईयांनू कई दिन हुवा, जोनसाळिया थका रहै छै 111 कटक कोई नही ।' तद आचानण कह्यो - 'मूंगां साम्हां देखो ।'22 ताहरां रांमचदजी मूंग कूदता दीठा । ताहरां कह्यो–'कासू ं छै ?'13 ताहरां कह्यो - 'बोर घोडीरे पोडासू मूंग कूदे छ । घोड़ी थांरी सीममे आई । 24 ताहरा रामचंदजी कोटड़ी श्राया नै ढोल दरायो ।" लोग भेळो हुवो ।" इंदारै साथ नै सांगमरावरे साथ 14 16 1 तब मेरे लिये न तो ससुरालमे और न पीहरमे कही भी जगह नही । 2 तव इस दुविधाका विचार कर रामचदके पल्ले ग्रा लगी हू । 3 श्रव ठाकुर मेरी श्रोरका ख्याल छोड दें । 4 बछेरा लेनेको गई है । 5 इस पर चानण रीस कर रामचद ई देके घरमे घुम गई । 6 तव सागमरावने उठ कर चढाई करने के लिए नगाडा वजवाया । 7 पहले एक बार तो स्त्रीवा वैर लेयो । 8 तव थालीमे मूग डाल कर बाजोट ( पट्टे ) पर रखे 10 कहाँ है कटक ? II थे । 9 एक दिन रातको थालीके प्रदरके मूग कूदने लगे । मेरे भाइयोको कई दिन हुए, 13 यह वया वति है ? 14 आ गई । 15 तव रामचदने इकट्ठे हुए | कवच धारण ही किये रहते है । 12 भूगोकी श्रोर देखो । वोर घोडी की टापोसे मृग कूद रहे हैं । घोडी तुमारी हदमे कोटडी मे श्राकरके युद्धका ढोल वाजवाया । 16 लोग Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात लड़ाई हुई । सात-वीस रजपूतांस रामचंद ई दो खेत रह्यो । 2 2 3 ताहरां श्राचानण श्राप सांगमरावजीसू श्राय मुजरो कियो ने कह्यो - 'राज ! हाथ थांहरो छै । देह ईंदैरी छै ।' ताहरां प्राचानण हाथ जीमणो काट सांगमरावजीनू दीन्हो अर आप रांमचंद ईंदै साथै सती हुई । 4 पछै सांगमरावजी कुंडळ ऊपर चढिया ने कहायो - 'जु म्हांरो वछेरो देश्रो ।' ताहरां विसनदास वछेरो टीकै दियो । श्रर बीजी छोटी वहन हुती सु सांगमरावजीनू परणाई | 6 [ २८५ पछै विसनदास वीसळदेजी पासै चाकरीनू गयो । ताहरां वीसळदेजो विसनदासन कह्यो - 'लांणत छै थाने ! सागमराव थांमें घणी कीवी । ” ताहरां विसनदास कह्यो - ' राज । पहुच सगा नही ।" ताहरां राजा वीसळदेजी कह्यो - 'फोज हूं देईस । " 18 9 ताहरां विसनदास फोज लेअर वहीर हुवो 20 सांगमरावजी तो कुडळ मांहै सासरे हीज हुंता । 11 ताहरां कुडळरा लोकां कुडळरा दरवाजा विसनदास रे कहे खोल दीन्हा । ताहरां सांगमरावजीसू लडाई हुई ताहरां सांगमरावजी घोड़ी वाढी अर आप काम प्राया । " " विसनदास सागमरावजीनूं कूड़ कर मारिया | 23 12 14 ता पछै सांगमरावजीर् वे मूळ वीस देजीस वैर कियो । हेक पुकार रोज पाटण दोळी वीसळदेजीर काने पड़े । वीसळदेजी फोजा घणी ही मेल्ही, पण मूळ हाथ प्रावै नही । 1 एक सौ चालीस राजपूतोके साथ रामचद ईदा खेत रहा ( मर गया ) 1 2 तव श्राचानरणने आकर सॉंगमरावको मुजरा किया । 3 ( पाणिग्रह तुमारे साथ किया था इसलिये) हाथ तुमारा है । 4 दाहिना । 5 और 1 6 विमनदासने प्राचानकी छोटी वहिन थी जिसे सागमरावके साथ व्याह दी और बछेरा टोकेमे दे दिया । 7 मागमरावने तुमारेमे वट्टत विताई, तुम्हे लानत है । 8 श्रीमान् | मैं उनसे पहुँच नही सकता । 9 सेना मैं दूगा । 10 विसनदास सेना लेकर रवाना हुआ । II सागमरावजी तो अपनी ममुराल कुडलमे ही थे । 12 तब सागपरावजीने अपनी घोटीको काट दिया और स्वयं काम श्रा गये । 13 विसनदासने नागमरावजीको धोखेने मारा । 14 एक न एक पुकार हमेशा पाटण मे वीसळदेजीके कानो गुनाई पढनी रहे। 15 वीमलदेजीने अनेक बार फौजें भेजो । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] मुहता नैणसीरो ख्यात ताहरा चारण विसोढो खीची धारू पानळोतरो निवाजियो राजा वीसळदेजी पासै आयो।' ताहरां वीसळदेजी आदर-सनमान बहोत कियो । ताहरां हेके दिन चोपडरो रांमत माडी। रुपिया हजार-हजाररी बाजी मांडी । जो राजा हारे तो रुपिया हजार एक चारण विसोढेनू देवै । अर जो चारण हारे तो राजा वीसळदेजीनू मूळू आखिया देखाळे ।* आ विध कर बाजी मांडी । ताहरां विसोढे कह्यो-'राज ! हू तो मूळूनू जाणू नही ।' ताहरा राजा कहियो—'मूळू भलो रजपूत छै । थारो बोलायो आसी। जो नावै तो नही।' तद चोपड़ रमिया। विसोढो हारियो। ___ ताहरां विसोढेरै साथै राजा माणस दिया ।' विसोढो मूळरै गांम गयो । मूळसू मिळियो। ताहरां मूळू आदर कर खीच कियो, ताहरा विसोढो जीमै नही । ताहरां मूळू पूछियो-'राज ! जीमो क्यु नहीं ?'10 ताहरां विसोढे कह्यो-'जु म्हें तनै राजाजी वीसळदेजी पासै रुपिया हजार माहै हारियो । जो तू हेकरसू वीसळदेजोनू मुजरो कर तो जीमू ।'31 ताहरां कह्यो-'भलो कियो । पण ते थोडैमे हारियो । वीसळदे तो म्हारा रुपिया लाख खरचै तो दूरा । हू हाथ न आऊं।12 पण थारे कहै हालीस ।13 ताहरा विसोढो जीमियो। रात उठ रह्यो। चारण पाछो वीसळदेजी पासै गयो। जायनै कह्यो-'बाप ! मूळू आवै नहीं। तद मूळूरा राजा विखोड किया । 1 खीची धारू पानलोतका कृपापात्र चारण विसोढा राजा वीसलदेजीके पास आया। 2 तब एक दिन चौपड खेलनी शुरू की। 3 हजार-हजार रुपयेकी शर्तकी बाजी लगाई। 4. यदि राजा हार जाये तो एक हजार रुपये विसोढा चारणको दे और जो चारण हार जाय तो वह सागमरावके वेटे मूलूको राजा वीसलदेको पाखोसे दिखादे। 5 इस प्रकार ते करके बाजी शुरू की। 6-7 तेरा वुलवाया पा जायगा और नहीं पाये तो नही सही। 8 तव विसोनाके साथमे राजाने मनुष्य दिये। 9 तव मूलूने (विसोढाका) आदर किया और भोजनके लिये खीच वनवाया। परन्तु विसोढी भोजन नही करता (खीच-बाजरी को ऊखलमें कूट कर पकाया हुआ एक भोजन)। 10 भोजन क्यो नही करते ? II तू एक वार वीसलदेजीको मुजरा करना मजूर करदे तो जीम लू । 12 परन्तु तूने मुझे थोडे मे हार दिया। वीसलदे तो लाख रुपये खर्च करे तो भी मैं' तो दूर, मैं उसके हाथ नही श्राऊं। 13 परन्तु तेरे कहनेसे चलूगा। 14 तब राजाने मूलूकी हँसी (निंदा) कीी Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २८७ ताहरां हेक दिन, सोमवाररै दिन राजा वीसळदेजी चौगान खेलणनू चढिया । ताहरां मूळू पण तयार हुवो, फोजां मांहै आय भिळियो अर पूछियो- 'जु, विसोढो चारण कठे छ ?' लोका बतायो-'जु, राज ! राजा हाथी असवार छ, त? वात करतो हालै छ । ताहरां मूळू चलाय घोड़ो पर विसोढेजीसू प्राय राम-रांम कियो। ताहरां विसोढो दूहो कहै वीसोढा ! प्रा वार, वीसलदे कहिजै विगत । ___ो मूळ असवार, सगळा देखे सांगउत ॥ १ ताहरां विसोढे कह्यो-'महाराज ! मूळ हाजर छ ।' तद राजा देखियो । मूळू मुजरो कियो । फेर दूहो जाडी फोजां जेथ, वीसल की चहुंचे वलां। सेल तुहारो तेथ, सुरतांण उर सांगउत ॥ २ कोई सुरतांण वीसळदेरी फोजां माहै हुतो, तिणनूं मार चालतो हुवो।' वांसैसू फोजां विदा हुई–'जु, जावण न पावै । आगै जावतां वीचमे हेक खाळ आयो', ताहरां मूळूरो घोड़ो तो पार हुवो। ___I एक बार सोमवारके दिन राजा वीसलदे मैदानमें खेलने के लिये चढा। 2 सेनामें प्राकर शामिल हुआ। 3 विसोढा चारण कहा है ? 4 जहा राजा हाथी पर सवार है वहां वह उससे बात करता हुआ चल रहा है। 5 (दोहेकी उक्ति मूलूकी है, विसोढाकी नही होनी चाहिये।) दोहेका भावार्थ मूळ की उक्तिमे हे विसोढा ! तू वीसलदेको इसी समय मेरे परिचय सम्बन्धी सब वृत्त कह दे और कह दे कि यह घोडे पर सवार सागमरावका पुत्र मूलू आ गया है और उसे अव सभी देख रहे है । (भावार्थ, विसोढाकी उक्तिमे-विसोढा कहता है कि हे वीसलदे | अब तुझे उसका परिचय दे रहा हूं। यह घोडे पर सवार सागमरावका पुत्र मूल तेरे सामने उपस्थित है और उसे अव सभी देख रहे है ।) 6 दोहेका भावार्थ विसोढाकी उक्ति सागमरावके पुत्र मूल । वीसलदेने जिस जगह पर बहुत सी फौजें चारों ओर खडी की है, उनमे वह फौजोका सरदार सुरतान खड़ा है, उसका उरस्थल तेरे सेलकी प्रतीक्षा कर रहा है। 7 (विसोढाके सकेतानुसार) वीसलदेकी फौजोंमें कोई एक मुरतान था उसको मार करके मूलू चलता बना। 8 पीछेसे फोजें चढी और उन्हें आजा हुई कि वह जाने न पावे। 9 आगे जाते हुए वीचमे एक नाला पाया। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ ] मुहता नैणसोरी ख्यात वीसळदेजीरा असवार उलै पार खडा रह्या ।' आ खवर राजानू आई-'जु मूळ साबतो गयो । ताहरां राजा फुरमायो-'म्हारा घोड़ासूं मूळूरो घोड़ो आगे नीसरियो तो म्हारा घोडारा कान काटो । ताहरा विसोढो दूहो कहै तेजालग तोखार, वाला वीसलदेव के। अपरला असवार, सांके भय सांगावत' ॥३ राजा घोडारा कान वाढता मन किया । ताहरां विसोढेनू कह्यो राजा-'विसोढा ! ते म्हानै कह्यो नही जु मूळू आसी।' ताहरां विसोढे कह्यो-'राज ! यो क्यांकर कही। मूळू म्हनै कह्यो-'जु, तू म्हनै थोड़ा रुपिया मे हारियो। जो म्हारा तो राजा लाख रुपिया देवै, जो हूं निजर पडतो।" ताहरा राजा फेर वाजी माडी । राजा कह्यो-'म्हे हारां तो लाख देवा । अर थे हारो तो म्हांन मूळू पासा कोट माहै मुजरो करावो।10 ताहरा विसोढे कह्यो-'कोट माहै किसी विध आवै ?' तद राजा कह्यो-'आवै तो पावै । नही तो भला । नही पावै ।' ताहरा विसोढो फेर हारियो। ताहरां विसोढो फेर मूळ पास गयो नै मूळून विसोढे कह्यो-'म्हैं तोनू लाख रुपियां माहै हारियो, अर कोट माहै प्रावणो।11 ताहरां मूळू कह्यो-'जु, म्हनै कोटमे श्रावण कुण देवै ?12 अर जे पायो जासी तो तलास घणो ही करीसू ।' ___I मूलका घोडा तो पार हो गया परन्तु वीसलदेजीके सवार तो इस पार खडे रह गये। 2 जब यह खवर राजाको मिली कि मूलू सकुशल निकल गया । 3 हमारे घोडोसे मूलूका घोड़ा आगे निकल गया। 4 हमारे घोडोके कान काट लो। 5 दोहेका भावार्थ विसोटाने कहा-हे वीसलदे | तेरे प्रिय घोडे तो बहुत तेज गति वाले है । किन्तु उनके कपरके सवार सगतावत मूलूके पातकसे डर गये हैं। (इसलिए वे आगे नही वढे ।) 6 तव राजाने घोडोके कान काटते हुयोको मना कर दिया। 7 तूने हमको कहा नही कि मलू पा जायगा। 8 राजन् । यह बात कैसे कही जाय ? 9 में यदि नजरमे आ जाऊ तो राजा तो मेरे लिए लाख रुपए भी शर्त पर लगा दे। 10 यदि तुम हार जानो तो मूलूमे मुझे कोटमे मुजरा कराओ। II तुमारे कोट में आनेकी बात पर लाख रुपयोकी शर्त पर मैंने तुमको हारा है। 12 मुझे कोटमे कौन आने दे ? । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २८६ मुँहता नैणसीरो ख्यात ताहरां विसोढो पाछो आयो । आयनै राजानू कह्यो– 'बाप ! मूळ कोटमें किसी तरह आवे ? म्है तो घणो ही कह्यो, पण आवै नही ।" ताहरां ठे गोरे वादळ मूळूरा विखोड किया- 'जु जाह रे, भला रजपूत ! श्रावणो हुतो । 2 ताहरां हेक दिन, भाद्रवैरा दिन हुंता । मूळू घोड़े चढ पाटण आयो, सो माळीर घररं पिछोकडे प्राय ऊभी रह्यो । पाछे परनाळी 3 4 हुतो र मेह बरसतो हुतो, ते परनाळा नीचे मूळू माथै ढाल देय ऊभो रह्यो ।' ताहरां माळीनू मालण कह्यो - 'देखो छो, परनाळो किसी विध वाजे छे ? " ताहरा माळी ऊठ अर देखे तो हेक असवार घोड़े चढियो ऊभो छै, ताहरां माळी मालणनू कह्यो - 'देख ! कोई असवार ऊभी छे । ताहरां मालण को- 'ओ तो म्हारे मूळ सारीखो छै, जु बापरै वेरनू धुखँ छे ।" माळी ऊठ देखे तो मूळू हीज छे । ताहरां मूळून माळी घर माहै भीतर लियो । घोडो भीतर लियो, बाधो ।' मूळूनूं जमायो । रात माळी मूळूनू घर मांहै राखियो । प्रभात हुवो तरां मालण भीतर राजानी सेवाना फूल ले हाली । ' ताहरा मूळू कह्यो-'हेकर सौ हों पण राजानै पण जनाना कपड़ा पहरिया । 21 फूलांरी छाब मे कटारी घाती अनै बेहू हजूर गया । 23 राजा भीतर बैठो थो । ताहरा चारण विसोढो पण हजूर मांहै छै । इतरेमे मालण छाब लेय भीतर गई । ताहरा वीच गोरो वादळ बैठा हुंता । 24 ताहरा मूळू 7 8 देखीस | 10 ताहरां मूळ माथै लीवी । 12 फूलां - 11 I मूल कोटमे किस प्रकार थाये ? मैंने तो बहुत कहा परतु वह नही आता । 2 तव यहाँ गोरे और बादलने मूलूकी हसी ( निंदा) की कि जारे भला रजपूत या जाना चाहिये था । 3 सो मालीके घरके पीछे की ओर आकर खड़ा रहा । 4 पीछे पनाला था और मेह बरस रहा था । मूलू उस पनाले के नीचे सिर पर ढालको लगा कर खड़ा रहा । 5 देखते हो ! यह पनाला ऐसी आवाज क्यो कर रहा है ? 6 यह तो मेरे मूलूके जैसा लगता है जो अपने बापके बैरका वदला लेनेके लिए खीज रहा है । 7 घोडेको प्रदर लिया और बाघ दिया । 8 मूलूको भोजन कराया । राजाकी सेवा-पूजाके लिये फूल ले कर चली । IO तब मूलूने भी जनाना कपडे कटारी रख दी और दोनो हुए थे । पहिने । 12 फूलोकी राजा की हुजूरमे गये । 9 प्रभात हुआ तव मालिन भीतरसे एक बार में भी राजाको देखूंगा । II छावडी सिर पर ली । 13 फूलो 14 तब बीचमे गोरा और बादल बैठे Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० मुहता नैणसीरी ख्यात गोरै वादळनू दीठा ।' ताहरा मूळूरा पग ठहै पड़े नहीं । ताहरां गोरै कह्यो-'वादळजी । देखो छो ! मालणरा पग ठाहै पड़े न छै । सु जाणा सागमरावरो बीज छै । ताहरां वादळ कहै-'हवै-हवे! माळीर घरै सागमरावजीरो डेरो हुतो ।' ताहरां इतरो सुणनै मूळू भीतर गयो । हजूर जायनै फूलारी छाब उतारी। मूळू उठ. विसोढेनू देख राम-राम कियो ।' ताहरा विसोढो ऊठ ऊभो हुवो। सुभराज कियो।' ताहरां विसोढे कह्यो-'महाराज ! मूळ मुजरो कियो छ ।' इतरै तो मूळू कटारी लेयनै राजा पास जाय बैठो।' कह्यो-'जो राज ऊठिया तो मारीस 110 ताहरां राजा कह्यो-'किही भात छाडै ही ?11 मूळू छाडै नहीं। ताहरां मूळ कह्यो-'थारी बेटी देवो तो छाडू । बिना वेटी दिया छाडै नही।12 ताहरां राजा कह्यो-'बेटी दियां बिना तू म्हनै छाडै नही ?' ताहरा राजा घणा ही जतन किया, पण मूळू माने नही । ताहरा राजा बेटी कबूली। मूळू राजारी बेटी उठेहीज परणी। श्री ठाकुरद्वारै माहै परणीज, उवैहीज घडी कुवरीरो हाथ पकड महल माहै जाय सूतो। ताहरां राजा वीसळदेजीनू वडो धोखो हुवो । जु मूळू घणी कीवी । ताहरां रात आधीरै समै गोरो वादळ हजूर आया। प्रायन कह्यो-'म्हासू तो आ बात सही न जाय । 'जु थाहरी बेटी मूळू जोरा ____1 तव मूलूने गोरा और वादलको देखा। 2 तव गोरेने कहा--बादलजी ! देखते हो । मालिनके पाव ठिकाने नही पड़ रहे है। 3 ऐसा मालूम होता है जैसे कोई सागमरावका वीज (सतति) है । 4 तर वादल कहता है कि-हा-हा, मालीके घर सागमरावजीका डेग था। 5 इतना। 6 मूलूने उधर विसोढाको देख करके राम-राम (जुहार) किया। 7 तव विसोढा खडा हुआ और शुभराज किया। (शुभराज याचकोकी अोरसे कहा जाने वाला एक आशीर्वादात्मक वचन ।) 8 महाराज | मूलूने मुजरा किया है। 9 इतनेमे तो मूल कटारी लेकर राजाके पास जा बैठा। 10 जो आप खडे हुए तो मार दृगा। II किसी भी प्रकार छोडे भी ? 12 तुमारी लडकी मुझे दो (व्याहो) तो छोड़ । वेटीको दिए विना छोड़ नही। 13 तव राजाने वेटी देना कबूल किया और वही पर राजाको वेटीको मूलूने व्याहा। 14 (महलोंके) श्रीठाकुरद्वारामें विवाह कर उसी समय कुबरीका हाथ पकड और महलमें लेजाकर सो गया। 15-16 तव राजा वीसलदेजीको वडा पश्चाताप हुआ कि मूलूते खूब की (गजवकी बात कर दी)। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरो ख्यात [ २६१ वरी परणी, सु म्हे तो मूळूनू मारसिया ।' बेटी किणी बीजैनू परणाविस्या । ताहरां राजा वीसळदे कह्यो-'थे जांणो। ताहरा झै दोनू ही मूळ ऊपर आया। आयनै कह्यो-'मूळ ! सभाय ।" ताहरा मूळ सोळ कणीन कह्यो-'जु तैसौ ऊबरू । ताहरा सोळकणो कह्यो-'हू हाजर छू।' तद मूळू कह्यो-'थांरा कपडा देवो ।' ताहरां मूळू जनाना कपडा पहर ऊभो रह्यो। ताहरां सोळकणी परधानांनू कह्यो-'जु म्हनै तो नीसरण देवो।" ताहरां गोरो वादळ दूर हुवा । मूळू नीसर गयो ।' सोळकणी भीतर किंवाड कुलफ कर लिया । गोरो वादळ किंवाड़रै बारै प्राण ऊभा रह्या ।' मळ तो जाय घोड़े चढ चालतो हुवो। इंयां किवाड खोलिया, तो भीतर सोळंकणी बैठी छै । ताहरा हाथ पीट ऊभा रह्या ।11 मूळ घरै गयो ! पछै मास २ दोयरो सोळकणीरै पेट आधान रह्यो मळूरो। ताहरा सोळंकणीनू परणावणी मांडी । सो जियेनू देवै सु कोई लेवै नही । ताहरां सांवतसिंघ सोनगरै जाळोररै धणी लोवी। ताहरां परणोय दीवी ।" ताहरां मूळू कह्यो-म्हारो वैर सोळकियांसू चूको जु ईयां वेटी परणाई। हमै मूळूरो वैर सोनगरांसू बाधो । ताहरा _I हमारेसे तो यह बात सहन नहीं की जाती कि तुमारी वेटीको मूलूने जोरावरीसे व्याह ली। सो हम तो मूलूको मार देंगे। 2 आपकी बेटी किसी दूसरेको व्याहेंगे। 3 तो तुम जानो। 4 तव ये दोनो मूलूके ऊपर पाये और कहा कि मूल सम्हल जाओ। 5 मूलने सोलकिनीको कहा कि अब तो तेरे बचाये ही वच सकता है। 6 मुझे तो निकलने दो। 7 मूलू निकल गया। 8 सोलकिनीने भीतरसे किंवाड ताला लगा कर वद कर दिये। 9 गोरा और वादल किंवाडके वाहिरकी ओर पाकर खडे रहे। 10 इन्होने किंवाड खोले तो भीतर तो सोलकिनी बैठी है। II तब ये हाथ पीट कर खडे रहे। 12 सोलकिनीको जव मूलका गर्भ दो मासका हो गया था, तब सोलकिनीका विवाह (पुनर्लग्न) करने लगे। 13 सो जिसको देनेका विचार करे वह उसे लेना स्वीकार नहीं करे। 14 तब जालोरके स्वामी सावतसिंह सोनगरेने लेना स्वीकार किया। उसके साथ उसका विवाह (पुनर्लग्न) कर दिया। 15 मूलूने कहा कि सोलकियोसे मेरा वैर चुकता हो गया क्योकि उन्होने तो अपनी बेटी मुझे व्याह दी। 16 अव मूलूका बैर सोनगरोसे बंधा। . Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ मुंहता नैणसीरी ख्यात मूळ रोजीना सोनगरां ऊपर दोड़े। पण जाळोरसूं पहुंच सगै नही । हेक दिन सोनगरारै देवीजी श्री प्रासापुरीजीरी पूजा हुती दसराहैरै दिन । सोनगरारी वडारण पूजण आई हुती । देवीजीरों द्वारो गढसू नीचे हुतो। सु मूळू देवी-द्वारा आगे आय बैठो। ताहरा वडारण पूजा करणन आई । ताहरा मूळू वडारणनू पकड़ नापरी दोवड़ माहै पोट वांध पर उवैरा कपड़ा पैहरनै कोट ऊपर चढियो । महल माहै भीतर तुळसीरो थाणो हुँतो तठे जाय बैठो।' कटारी हाथ माहै छै । तद पोहर १ एक रात गई । ताहरा सावतसी आपरें महल गयो। ताहरां जीमणन थाळ पायो। ताहरा सांवंतसी आप कह्यो-'मळ रै बेटनू उरहो ल्यावो ।' सोळकणीरै मळूरो बेटो हुवो हुतो। ताहरां सोळकणी कह्यो-'यो तो सोय रह्यो। ताहरां सांवतसीजी कह्यो'जगाय ले आवो, ज्यु भेळो जीमावू । भेळो जीमिया ईयैरी अोठ खावू तो म्है मे ही क ही सत आवै ।10 मळ वडो सावत छ।11 हेकरसू मो ऊपर जरूर अासी।1' मूळ रो घणोहीज सुकर सांवतसी बोलियो। ताहरां मूळ जांणियो-ईयेनू मारू नहीं ।14 मूळ ऊठ अर आय रामराम कियो। कह्यो-'न मारू । वैर भागो। तद सावतसो कह्यो-थारी वैर ले 116 तद मूळू कह्यो-'म्है तनै दीवी।17 ताहरां मूळ न दूजो __I अब मूलू हमेशा मोनगरोके ऊपर दौडता है, परतु जालोरसे पहु च नहीं सकता। (जालोरके मोनगरे कावूमें नहीं आते।) २ एक दिनका अवसर, दशहरेके दिन सोनगरोकी देवी श्री आशापुरीजीकी पूजा थी सो सोनगरोकी वडारण (दासी) पूजनेको आई थी। 3 देवीजीका मदिर गढके नीचे था। 4 तव मूलने वडारणको पकड करके अपनी दोवडमें उसकी गठरी वाध दी और उसके कपडे पहिन कर गढ पर चढा। 5 महलके अदर जहा तुलसीका थावला था उसकी अोटमें जा बैठा। 6 भोजनके लिए थाल परोसकर लाया गया। 7 मूलूके वेटोको ले पायो। 8 सोलक्निीको मृलूसे वेटा उत्पन्न हुआ था। 9 वह तो सो गया है। 10 जगा करके ले पायो सो अंपने सामिल विठा कर उसको खिलाऊ । सामिल बैठ कर खिलानेमे में भी इसकी जूठन खाऊं तो मेरेमें भी कुछ संत पाए (सत - १ मनुप्यत्व। २ रजस । ३ पराक्रम, वीरत्व)। I मूलू बड़ा सामत है। 12 एक बार मेरे पर जरूर चढ कर अायेगा। 13 सावतसीने मूलूके सवधमें बहुत ही अच्छे भाव व्यक्त किये। 14 तव मूलूने विचार किया कि इसको अब नहीं मारू। 15 मूलने वहासे उठ और मावतसीके पास आकर राम-राम (प्रणाम) किया। और कहा कि तुमको मारूंगा नहीं। वैर था सो मिट गया। 16 तुमारी स्त्रीको लेलो। 17 मूलने कहा कि मैंने तुमको देदी Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २६३ वीमाह दियो । तद मूळू आपरो बेटो मांगियो ।' पंण सांवतसी दियो नही । कह्यो-प्रो थांरों बेटो छे । म्हने घणी भीड़ पड़सी तद म्हारै वडे कांमं वसी ।" ताहरा मूळ बेटैनूं पण दे गयो 4 5 बेटे नांम कांधळ | तिको कांधळ सांवतसी पासै रहे । जनाने नावे | हथियार कपड़ो और ही वस्तु जनांने नांवे हुवै सु नही ढाबै । " यु करता कांधळ रोज सोनैरी थाळी मांहे जीमै । रोज गोळियैस थाळी भाजे । " क दिन कान्हड़देरी मा को - रोज थाळी भांज ना, भाठे ऊपर ठरकाय ।" ताहरां उवै ऊपर ऊहीज गोळियो वाह्यो । काँनरै लागो, कां तूटो | धड हुंती ढह पड़ी। रांणी क्यु ही कह्यो नही । " 1 इसड़े अलावदीन जालोर ऊपर आयो । सोनगरांसू लडाई हुई । कांधल खाडारै मुंह हुतो, सु लडतां सात - वीसी खांडा भागा | खांडा खुटा । कटारी पकड ग्रर कांम आयो* 1 20 10 3 I तव मूलूका दूसरा विवाह कर दिया । 22 फिर मूलूने अपने पुत्रको माँगा । कहा कि यह लडका तुम्हारा है, परतु मेरेमे प्रति संकट पडेगा तव यह मेरे बडा काम श्रायेगा । 4 तव मूलू अपने वेटेको भी दे गया । 5 बेटेका नाम काँधल जो सांवतसीके पास ही रहता है । जनानामे नही आता है । शस्त्र, वस्त्र ग्रादि कोई वस्तु स्त्री नामपरक होती है, उसे ग्रहण नही करता । 6 इस प्रकार रहते हुए कांधल नित्य सोनेकी थाली में भोजन करता है और (स्त्रीलिंग वस्तु होने के कारण ) नित्य गुलेल से तोड देता है । एक दिन कान्हड़देकी मा ने कहा कि इस प्रकार पत्थरसे ठरका कर नित्य थालीको मत तोड | 8 तव उसके ऊपर ही गुलेल मार दी । कानके लगा सो कान टूट गया और धड़ सहित गिर पडी, परतु रानीने कुछ भी नही कहा । 9 उन्ही दिनो अलाउद्दीन जालोर पर चढ कर श्राया । 10 कार्बल खाडो (शस्त्रो) के सम्मुख था, सो काधलके लडते हुए १४० खाँडे टूट गये, तब कटारी (स्त्रीलिंग शस्त्र) पकड कर काम श्रा गया । 7 *डाह्याभाई पीताम्वरदास देरासरी द्वारा गुजराती मे रूपान्तरित 'कान्हडदे प्रबन्ध' मे भी काधलके सर्व्वन्धमें कवि पद्मनाभने यही बात कही है संहु पहेला राये मोकल्यो, धिंगाणे कावल भडभडायो । २०६ कटक तुरक नु सूडयु भलु, ग्राठ पहोर धिंगाणु थय । ( २०७ - १) X X X वाळ हुमला हल्ला करतो, कावल लड़तो दीठो । २०६ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] मुहता नैणसीरी त्यात तद मा कह्यो-'बेटा काँधळ ! जो इम जाणती तो खाँडाँस घर भरावू ।' ताहरां कांधळ कहै-माजी ! न जाणो वीरमरी मा पर कान्हडदेरो महळ तैरै गोळियरी दूं हूँ ? म्है तो तेहीज दिन कही हुती ।' इति वात सागमराव राठोडरी सपूर्ण । ॥ शुभ भवतु । फल्याणमस्तु ।। - 1 तव मा ने कहा वेटा काधल । ऐसा जानती तो खांडोसे घर भरवा देती। 2 तव काधल कहता है कि माजी ! वीरमकी माता और कान्हडदेकी पत्नी इन्हे गुलेलकी में मारूं? (यह कैसे हो सकता है ? मेरी प्रतिज्ञाको खडित होती हुई देख कर क्रोधावेशमें इस आश्चर्यपूर्ण अघटित कामवो करके) मैने तो उसी दिन प्रापसे कह दिया था । फिर भी आपने नही जाना। [ शेष पृ० २६३ फा] राय कहे आगळ श्रम काघल, जोधो आम न जाण्यो कागरे कोठो भरी ज नाख, ग्रेव कही वखाण्यो। २१० चढी रसे वीर कापल बोले, रायजी जाण न जाण प्रथम थी अमे सहु दिन सेवा, आ वेळा न वखाण । २११ मुहता नैणसीरी स्यात (हमारे द्वारा सम्पादित) भाग १, पृ० २१६ से २२६ तकमे अलाउद्दीन द्वारा सोमइया महादेव (सोमनाथ महादेव) को गाड़ेमे डाल कर ले जाते हुए कान्हडदेसे जालोरमे जो युद्ध हुआ है, वहाँ भी काँधलकी वीरताका उल्लेख पठनीय है । 'कई प्रतियोमे 'छ' पाठ है जो वर्तमानकालिक उत्तमपुरुपकी क्रियाका सूचक है। भतकालिक घटनाका उल्लेख होनेसे हू' पाठ ठीक जंचता है, जो सर्वनाम उत्तमपुरुपके कर्ताका रूप है। Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थ-माला प्रधान सम्पादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य १ कान्हडदे प्रबन्ध, महाकवि पद्मनाभविरचित, सम्पा० - प्रो० के. बी. व्यास, एम. ए. । मूल्य - १२.२५ २. क्यामखां - रोसा, कविवर जान - रचित, सम्पा० - डॉ दशरथ शर्मा और श्रीनगरचन्द मूल्य - ४७५ - श्रीमहताबचन्द खारैड | नाहटा । ३ लावा - रासा, चारण कविया गोपालदानविरचित, सम्पा० - १ मूल्य - ३.७५ ४. वांकीदासरी ख्यात, कविराजा वांकीदासरचित, सम्पा० - श्रीनरोत्तमदास स्वामी, एम ए., विद्यामहोदधि । मूल्य - ५. ५० ५ राजस्थानी साहित्य संग्रह, भाग १, सम्पा० - श्रीनरोत्तमदास स्वामी, एम ए. ६. राजस्थानी साहित्यसग्रह, भाग २, सम्पा० - श्रीपुरुपोत्तमलाल मेनारिया, एम. ए, । मूल्य - २.२५ साहित्यरत्न । मूल्य - २७५ ७. कवीन्द्र कल्पलता, कवीन्द्राचार्य सरस्वतीविरचित, सम्पा० - श्रीमती रानी लक्ष्मी 17 राजस्थानी और हिन्दी ग्रन्थ प्रकाशित कुमारी चूडावत । मूल्य - २०० ८. जुगलविलास, महाराज पृथ्वीसिंहकृत, सम्पा० - श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूडावत । ६. भगतमाळ, ब्रह्मदासजी चारण कृत, सम्पा० - श्री उदैराजजी उज्ज्वल । १०. राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिरके हस्तलिखित ग्रंथोंकी सूची, भाग १ | ११. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग २ | १२ मुंहता नेणसीरी ख्यात, भाग १, सम्पा० - श्रीबद्रीप्रसाद साकरिया । मूल्य - १.७५ मूल्य - १७५ मूल्य - ७५० मूल्य - १२.०० मूल्य - ८.५० मूल्य - ६५० मूल्य - ८ २, १३ 1 १४. ३, ०० 19 17 मूल्य - ८.२५ १५ रघुवरजसप्रकास, किसनाजी आढाकृत, सम्पा० - श्री सीताराम लाळस । १६. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग १, सम्पा० पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । 25 59 19 13 ܕܕ 17 19 "1 मूल्य - ४.५० १७ राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग २ – सम्पा० - श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया एम ए, साहित्यरत्न । मूल्य- २७५ १५ वीरवाण, ढाढी वादरकृत, सम्पा०-श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूडावत मूल्य - ४५० १६ स्व० पुरोहित हरिनारायण विद्याभूषण-प्रन्य-संग्रह-सूची, सम्पा० - श्रीगोपालनारायण वहुरा, एम. ए. और श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी दीक्षित । मूल्य - ६.२५ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [ 2 ] 2., सूरजप्रकास, भाग १-कविया करणीदानजी कृत, सम्पाo-श्री सीताराम लाळस मूल्य-८.०० 21. " , 2 , " मूल्य-६.५० 22 , , 3 , " मूल्य-६.७५ 23. नेहतरग, रावराजा बुधसिंहकृत-सम्पा०-श्रीरामप्रसाद दाधीच, एम.ए. मूल्य-४.०० 24. मत्स्यप्रदेश को हिन्दी-साहित्य को देन, डॉ. मोतीलाल गुप्त,एम.ए ,पी.एच डी. मूल्य-७०० 25. वसन्तविलास फागु, अज्ञातकर्तृक, सम्पा०-श्री एम. सी. मोदी। मूल्य-५.५० 26 राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज-एस प्रार. भाण्डारकर, हिन्दी-अनुवादक श्री ब्रह्मदत्त त्रिवेदी, एम ए, साहित्याचार्य, काव्यतीर्थ / मूल्य-३ 00 27 समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र, श्रीसुखलालजी सिंघवी, मूल्य-३.०० प्रेसो मे छप रहे ग्रन्थ 1 गोरा बादल पदमिणी चऊपई, कवि हेमरतनकृत सम्पा०-श्रीउदयसिंह भटनागर, एम ए / 3 सचित्र राजस्थानी भाषासाहित्यनन्यसूची, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय / 4. मोरां-बृहत्-पदावली, स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण द्वारा सकलित, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय / 5 राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग 3, संपादक-श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी। 6 रुक्मिणी-हरण, सायाजी झूला कृत, सम्पा० श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया, एम.ए.,सा.रत्न 7 मन्न कवि रज्जब : सम्प्रदाय और साहित्य, डॉ० व्रजलाल वर्मा / 8. पश्चिमी भारत की यात्रा, कर्नल जेम्स टॉड, हिन्दी अनु० और सम्पा० श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम ए / 6 स्थूलिभद्र प्रवन्धादि, डॉ० आत्माराम जाजोदिया / 10 वुद्धिविलास, बखतराम शाहकृत, सम्पा०-श्रीपद्मधर पाठक, एम. ए.। 11 प्रतापरासी, जाचीक जोवरण कृत, सम्पा०-डॉ० मोतीलाल गुप्त, एम. ए , पीएच.डी. / 12 भक्तमाल, राघवदासक्रत, चतुरदासकृत टीका सहित, सम्पा० श्री अगरचन्द नाहटा / पुस्तक-विक्रेताओ को 25% कमीशन दिया जाता है।