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________________ सतियां हुई महाराजा श्री अनोपसिंघजी री सतियां, संमत १७५५ जेठ सुदी ६ नै हुई२. रांणियां दोय २. कपूरकळो। १. जेसळमेरी रतनकंवरजी। ७. सहेलियां सात सतियां हुई २. तुंवरजी अतरंगदेजी। ४. तैमे चार सहेलियां जेसळ____३. खवासां तीन मेरीजी साहिबां री१. सुघड़राय । १. रूपरेखा। २. रगराय । २. हररेखा (हरखरेखा) ३. गुलाबराय । ३. गुणजोत। ४. पातरियां च्यार ४ ४. मोतीराय । १. जैमोळा। १. तुवरजी साहिबां री २. नारगी। सहेली३. सरकसळी (सरसकळी) १. हरमाळा। ४. अनारकळी । २. खवासा री सहेलियां२. खालसा दोय २ १. कमोदी। १. रूपकळी। २. डगली। रावजी श्री कल्याणमलजीरै सतियां, समत १६३० मे हुई४. राणियां चार ४ ३. भटियाणियां तीन१. रांणी हांसांजी गहलोत । १. रामकवरजी। • एक प्रतिमे 'पवारजी अतरगदेजी' लिखा है। ___I वि० सं० १७५५ ज्येष्ठ शुक्ल को महाराजा श्री अनूपसिंहजी देवलोक हुए, तब उनके पीछे इस प्रकार (रानियाँ, खवासिने आदि १८ स्त्रिया जीवित जल कर) सतियें हुई। [पडदायत, पासवान, खवास, वडारण, डावडी, पोळगण, गायणी, पातर, खालसा और सहेली आदि दासियोके कई प्रकार और रिणयां है । इनमे पड़दायत और पासवानका दर्जा ऊंचा होता है । वे रानीकी तरह पर्दे मे रखी जाती है।] 2 वि० स० १६३० रावजी कल्याणमलजी देवलोक हुए तब उनके साथ इस प्रकार सतियें हुई।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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