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________________ २०७ ] महता नैणसीरी ख्यात महाराजा श्री सूरसिंघजीरै कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री करणसिंघजी ३ सत्रसाल । ' २. अरजुणजी। महाराजा श्री करणसिंघजीर कंवरांरा नाम१. महाराजा श्री अनोप ६. उदैसिघजी। सिंघजी*। ७ मदनसिघजो। २. केसरीसिंघजी । ८. अमरसिंघजी। ३. पदमसिंघजी। ६ देवीसिघजी। ४ माहेणसिंघजी। १० माळीदासजी। ५. अजबसिंघजी। महाराजा श्री अनोपसिंघजीरै कंवरांरा नाम१. सुजाणसिंघजी। ४. रुद्रसिंघजी। २. अणदसिंघजी। ५. रूपसिघजी। ३ सरूपसिंघजी। ६. गजसिंघजी। अणंदसिंघजीरै कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री १०८ श्री ३. तारासिंघजी । गजसिंघजी। ४. गूदड़सिघजी (गोदडसिघजी)। २ अमरसिंघजी। -00-00 * महाराजा मनूपसिंघजी वडे विद्या रसिक हए हैं । इन्होने सस्कृत, राजस्थानी और व्रजभापाके सभी विषयोके सहनो हस्तलिखित ग्रथोका संग्रह किया था, जो आज अनूप सम्पत लाइब्रेरीके नामसे प्रसिद्ध है । 'नैणसीरी ख्यात' की भी सुलेख्य विश्वस्त हस्तलिवित प्रति हम पुस्तक मारमे मौजूद है । असली प्रतिकी यही पहली प्रति होनेका अनुमान दिया जाता है। महाराजा अनूपसिंघजीके बादके राजानोंके नाम पीछेमे लिखे गये हैं जो अनूप सस्कृत लारीकी इस प्रतिमे वीच-चीन भिन्न भिन्न रक्षरोंसे स्पष्ट मालूम होता है।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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