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________________ मुंहता नैणसोरी ख्यात [ २०७ महाराजा श्री रायसिंघजीरै कंवरांरा नाम१. महाराजा श्री सूरसिंघजी। ३. भोपतजी (भूपतजी) । २. दळपतजी । ४. किसनसिंघजी। बीकानेरके महाराजा रायसिंहके द्वितीय पुत्र दलपतसिंहका जन्म वि० स० १६२१की फाल्गुन बदी ८को महाराणा उदयसिंहकी पुत्री जसमादेकी कोखसे हुआ था। यह बडी वीर प्रकृतिके थे। बचपनमे ही बडी वीरताके काम कर दिखाए थे । जावदीखाकी ८० हजार सेनाको सरसेमे इन्होने मार भगाया था। इनके चाची राठोड पृथ्वीराजने इनकी इस युद्ध वोरता पर बड़ा सुन्दर निम्न गीत-काव्य कहा है दला दियतां मोलभा जैतमालां दिसा , निस अरध जागवी थाट नमियो । साहिजादी तणे महल नवसाहसो , रायउत दुइ पहोर तेण रमियो ॥१ रौद घड़ राव रावल रमै प्राध रत , भाग सोभागणी कमध भीनो। मुगलणि प्रांगण प्रेम रस मांणवा , दल दीहां भलो मुहुत दीनो ॥२ हार सिणगार गजमीर खडत हुया , उर अरघ चुरिया लोह प्राडै । सेत संभ्रम तण तखत रार्यासघ सुव , लोद्र घड़ भोगवी भांजि लाडै ।। ३ जोर जोवण चढी अणी नख जोडली , पिलग पाधर पड़ी दलै पाली । जावदी तणी घड़ पूगड़ी जीव ले , होड ग्रहणा हसक छोड हाली ॥४ दलपतसिंहके पकड़े जाने पर, जो भाई बधु और सरदार आदि उनके साथमे थे, कुछ भी साहस न दिखा कर छोड कर भाग गए। इस पर एक कविने इन सरदारोको कितना अच्छा धिक्कारा है। फिट वीकां फिट कांवला, जगलधर लेडांह । दलपत हुड़ ज्यु पकड़ियो, भाज गई भेडाह ॥' • किसी अज्ञात लेखकने दलपतसिंहके वीर कृत्यो पर राजस्थानी गद्य में 'दलपत विलास' नामक एक पुस्तक लिखी है । अनूप संस्कृत लाइब्रेरीकी यह एक मात्र त्रुटित प्रति शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेरको पोरसे हिन्दी अनुवाद सहित अभी प्रकाशित ह चुकी है । ज्ञात होता है कि लेखक उसे पूर्ण नही कर सका है। भाषा-शैलीकी दृष्टिसे वह तत्कालीन (१७वी शतोकी) लिखी हुई प्रतीत होती है। राजस्थानी साहित्यकी सर्वोपरि व्यापक मारवाडी भाषाके गद्य-लेखनको परम्परा और प्राजलता पर यह छोटी ऐतिहासिक पुस्तक भी अच्छा प्रकाश डालती है।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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