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________________ २०६ ] मुहता नैणसीरी ख्यात रावजी श्री कल्याणमलजीर कंवरां रा नाम१. महाराजा श्री रायसिंघजी ६. अमरो। २. रामसिंघजी। ७. गोपाळदास। ३. प्रिथीराजजी* । ८. राघवदास । ४. सुरताणजी। ६. डूगरसी (डूगरसिघ) ५. भांण । • राध कल्याणमलके दसवा भाखरसी और ग्यारहवां भगवानदास ये दो कुवर और पहे जाते हैं। * राठोड पृथ्वीराज कल्याणमलोत डिंगलके प्रसिद्ध रसिक और भक्त कवि हो गये है। ये काव्यमे 'पीथळ' उपनामसे भी प्रसिद्ध हैं। डिंगलके अतिरिक्त पिंगल छन्द शास्त्रके भी ये अच्छे ज्ञाता थे और दर्शन, ज्योतिष, सगीत, वाद्य और नृत्यकला इत्यादि शास्त्रो और सस्कृत तथा व्रज भाषाके वडे विद्वान थे । विद्वान और रसिक होनेके साथ यह वीर भी थे। अकबर बादशाहकी अोरसे इन्होने कई युद्ध भी लड़े थे। एक क्षत्रियमे ये तीनो गुराग एक साय इन्हींमे पाए जाते हैं। साहित्य ससारमे इनकी रची हुई 'वेलि किसन रुकमणीरी राठोड़ राज प्रिथीराजरी कही' साहित्य और काव्यको अद्वितीय कृति जगत्-प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त-. श्री गुरु प्रार्थना (गुरु विट्ठलनाथजीरा दूहा १२) श्री कृष्ण स्तुति (वसदेवरावउतरा दूहा १८५) श्री राम स्तुति (दशरथ रावउतरा दूहा ५४) और श्री गगा स्तुति (भागीरथी, जाह नवी और मंदाकिनी रा दूहा ८८) प्रादि अनेक गीत-छन्द, पद और प्रस्ताविक दूहे लोक-कठ पर खूब प्रसिद्ध हैं । 'प्रेम दीपिका' और 'श्याम लता' ग्रथ भी इनके रचे कहे जाते हैं, पर अभी प्राप्त नही हो सके हैं । पृथ्वीराजकी प्रथम पत्नी लालादेके मरनेके बाद उसकी बहन चापादेके साथ उन्होने दूसरा विवाह किया था । जैसलमेरकै रावल हरराज (नैणसीरी ख्यात, भाग २, पृ० ६२, ६७,६८, १०२ इत्यादि) की ये दोनो कन्याएँ विदुषी थी। पृथ्वीराजका जन्म वि० स० १६०६ मार्गशीर्ष कृष्ण १ को बीकानेरमे और मृत्यु वि० स. १६५७मे मथुरामे हुई थी। दपाळदाम सिंढायचने अपने लिखित 'दयाळदासरी त्यात' अथ मे इनका परिचय विस्तारसे लिखा है । 'नणसीरी ख्यात' प्रथम भाग, पृ० २५६ मे वादशाह अकबर द्वारा पृथ्वीराजको गागरोनगढ दिए जाने का उल्लेख किया गया है। विद्वानोफा अनुमान है कि 'वेलि'को रचना गागरोनगढ़मे हुई है ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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