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________________ ॥ श्रीगणेशाय नमः ।। अथ वात चंद्रोवतांरी . रांमपुरैरा धणी, रांणा मेवाड़रा धणी, तिणां रांणां मांहै मिळे । राणे भवणसीरै बेटो चांदरो। तियरा चंद्रावत कहीजै ।' पीढी ११८ हुई, पाछ रांणो भवणसी हुवो। तैरै पेटरा चंद्रावत कहीजै। संमत १६८१ रांणो मैहपो रावळ श्रीकरणसें बेटो। आगे ईयार घरे रावळाई हुती, मैहपै राणाई पाई ।' नै सीसोदै गांवरै नांव सीसोदिया कहांणा । अठासू दोय साखां हुई-एक रांणा सीसोदै धणी तिका साख, नै एक रावळ बीजो भाई कहाणो, तिणरै रावळरी पदवी ___ चांदरारै पेट टीकायत पाट हुवा । तिण पाटवियांरा नाम चद्रावतांरी पीढी चाली १. रांणो भवणसी (भीवसी) २. चांदरो। ३. सजन । ४. झांझणसी। ५. भाखरसी। पैहली चांदरार पोत्रां माहै भाखरसी पाटवी थो । भाखरसी माथै मुदार थी। ईंयार भोम परगनो प्रांतरी थी। ___I रामपुराके स्वामी मेवाड़के अधिपति-राणाप्रोमे जाकर मिलते है। 2 उनमे राणा भवणसी हुआ जिसका बेटा चादरा हुआ और चादराके वशज चद्रावत कहे जाते है । 3 ११८ पीढियोके वाद राणा भवरणसी हुआ । उसके पेटके चद्रावत कहे जाते है। 4 सम्वत् १६८१ मे रावल श्रीकर्णका बेटा राणा महपा हुआ। 5 पहले इनको रावलकी पदवी थी, किन्तु महपने राणाकी पदवी प्राप्त की। 6 और शिशोदा गावके नामसे शिशोदिया कहलाए। 7 यहासे दो शाखायें प्रसिद्ध हुई –एक राणा शिशोदाके स्वामी जिनकी शाखा शिशोदिया और एक दूसरा भाई जो रावल कहलवाया जिसको रावलकी पदवी प्राप्त हुई। 8 चादराके वशज टीकायत और पट्टाधिकारी हुए । उन पट्टाधिकारियो के नामसे चंद्रावतोकी पीढिया चली। 9 इनकी भूमि प्रातरीका परगना थी।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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