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________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २७१ बांधां? डंड जाट-गूजरां दाई भरां ?' ताहरां मा वोली-'बेटा ! हथियार नांख ना। हथियार सभाहि ।' बाई सदारो देवर हुतो, सु सदा अणायो, सो चूक छै । मृग घोड़ो कोई छ, तीये ऊपर उपाव हुसी। तू वेगो जाह । बैस ना। ताहिरा मोहण हथियार सबाहिनै ऊठियो। तितरै झै सिरदार घोडा मांडता-माडता मृग घोड़े आया। ताहरां कह्यो-'जी, मृग-घोडो छ, माडो।' ताहरा वनो गोंड बोलियो। कह्यो-'एक हजारमे मांडस्या ।' ताहरा कह्यो-'जी, मृग छ ।' वनो गौड़ बोलियो-'मृग छै तो कासू करां ? ताहरां कह्यो-'जी, वाध माडो। ताहरा वनो गौड कहै-सुण रे दहिया । का गाडर आपण भावसू मूडावे, नही तो पकड अर ऊधी नाखै, गुदी ऊपर पाव दै ऊंधी नांख मूडै, ताहरां मूडावै ।' ताहरा दोलो दहियो बोलियो-'सुण रे गौड ! का ? एक सेलो म्हाकै ही हाथको आवै छै । ताहरा कागळ-लेखण तो वनैरै हाथ माहै ही रहया ।' मृगघोडैरै पछाड्यां माहै पूदात्राणो जाय पडियो । 10 तितरै कूकवो हूवो। ताहरां घर माहैसू च्यार सै बगतरिया नीसरिया ।" लोह वाजियो । सारां ही नू झूड़ नांखिया । दूदैरो सारो ही साथ कूट मारियो । दूदै साभळियो'-'मारणहारा मारिया।' ताहरां हमीर दहियै साथ कर जायनै कह्यो-'म्हारा-म्हारा मारणहारा म्हां मारिया ।" हिवै दूदा तू परहो जायै, का म्हे तोनू 1 शस्त्र डाल मत, शस्त्र धारण कर 2 वाई सदा (सदा कुवरि)का देवर था जिसको सदाने बुला लिया है अत कोई धोखा है । कोइ मृग-घोडा है, जिसके ऊपर झगडा होगा, तू जल्दी जा, वैठ मत। 3 मोहन शस्त्र धारण करके खडा हुआ। 4 इतने मे सरदार भी घोडोका मूल्य लिखते-लिखते मृग-घोडेकी कीमत लिखनेके लिये उसके पास आये। 5 मृग है तो क्या करें? 6 अधिक (मूल्य) लिखो। 7 भेड़ या तो सीधी तरहसे मुडवा लेती है; नही तो पकड कर ओवी डाल देते है और गर्दन पर पाव देते है, इस प्रकार औधी डाल कर मूडते है तव मुडवाती है। 8 और नही तो ? यह देख, एक भाला हमारे हाथका भी प्राता है। 9 (ऐसा कह करके उसने भाला मार दिया सो) कागज कलम बनेके हाथ ही मे रह गये। 10 और मृग-घोडेकी पिछाडियोमे चूतडोके बल जा गिरा। (पिछाड़ी-घोडेको पिछले पांवोसे वाँधनेका रस्सा ।) II इतनेमे शोर हुया । 12 तव घरमेसे चार सौ कवचधारी निकले। 13 शस्त्रोके प्रहार हुए। 14 सबको मार डाला। 15 दूदेके सभी साथ वालोको मार कर खतम किया। 16 दूदेने सुना। 17 हमारे-हमारे मारनेके थे उनको हमने मार दिया।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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