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________________ १०८ ] महता नैणसीरी ख्यात L 5 8 ताहरां नाथनू भांणो मेलियो । आदमी ले नाथरै प्रसण आायो । आयने पूछियो । ताहरां कह्यो - 'जी, नाथजी रमिया । " कहियो - ' रे ! करां ?" कह्यो - 'जी, आज रमिया ।' कह्यो - ' रे ! किस वासते ?' 4 कह्यो - जी, कुंवरां दुख दियो । अर जावतां यु कहि गया है । ताहरा इंदी बिना जीमी ऊभरांणे पगे दोडी । पगो पग गई । " आगे सात कोस लग' नाथ गयो । जायनै जाळ हे नाथ सूतो, सो नाथनूं तो नीद आ गई । इतरै ईंदी जाय पुहती | 20 देखे तो नाथ पोढिया छै । ताहरा ईदी जायने पगे हाथ दियो । 12 ताहरां नाथ | जागियो । को- 'माता ! तू क्यो आई ?' ताहरां कह्यो - 'नाथजी ! थे मोनूं बोयनं हालिया । 12 नाहरा नाथ को वेटी ! वचन फुरणेका नही । ताहरां कह्यो - 'नाथजी । म्हे केथ रहां ?14 म्हारी किसी गत हुसी ? " ताहरां नाथ कह्यो - 'बेटी ! तेरे आसा है" सो तेरै बेटा होगा। बड़ा सामंत होयगा । उसका नाम लूको देई । 12 जब बारह बरसोंका होयगा तब धरती आवेगी । पण इस जाळ से पैली आवेगी । 18 अब मैं और तरफ जाऊगा ।' - 19 ताहरा ईदी अपूठी आई। 29 ऊनाळो उतरियो", वरसाळो उतरियो,” सीयाळो" आयो । न्याळा" हुवै छे । रावनू न्याळारो बुलावो प्रायो । ताहरां राव न्याळे आवै । एक दिन श्रोगरास गांम तिकण माहे न्याळो हुवो। ताहरां बुलावो प्रायो रावनू । ताहरां राव तयार हुवो छै । प्रसवार ८० सू चढि राव कोट माहैसू I नित्य इम प्रकार करते, जव उस दिन भोजन तैयार हुआ तव नाथके लिए भारणा ( थाल) परोस कर भेजा । 2 नाथजी चले गये । 3 रे । कव ? 4 अरे । किस लिये ? 5 तब ईदी विना भोजन किए ही नगे पाँव उसके पीछे दोडी । 6 पैरोके चिन्ह देखती देखती गई । 7 तक 1 8 पीलू वृक्ष 9 नीचे । IO इतनेमे ई दी जा पहुँची । 11 तब ई दीने जाकर चरण स्पर्श किये । 12 नाथजी । आप तो हमको हटा कर चल दिए । 13 वचन पलटनेका नही । 14 हम कहाँ रहे ? 15 हमारी क्या गति होगी ? 10 वेटी । तेरे गर्भ है । 17 देना । 18 परन्तु इस जाल (वृक्ष) से उघर उबर तक ही मिलेगी । 21 वर्षा ऋतु बीत गई । 19 ईदी लौट आयी । 20 ग्रीष्म ऋतु समाप्त हुई । 22 शीत ऋतु । 23 मास गोष्ठी का एक विशेष प्रायोजन ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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