SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहता नैणसीरी ख्यात [ २५७ ईहड़ सोळंकी सींधळांरो चाकर । सु ईहरै ऊदोजी परणिया हुंता । सु कोई आवै नहीं। मारग न वहै। यु करतां वरस सात हुवा। एक दिनरो समाजोग छ । बाळसीसर तळाव ऊपर सिखरै ऊगमणावत गोठ कीवी छ । सारा ईंदा एकठा छ । अमल-पाणियां चाक हुवा छै ।" बाकरा मारिया छ । सोहिता हुवै छै । तिसै समईयै एक रजपूत बोलियो-'ऊदाजी ! कदै भाद्राजण ही जासो ?" ताहरां ऊदैजी कह्यो-'पाज जासां । जावणरी तो मन न हुती, पण थां कह्यो तो आज ही जावस्यां।" तद ऊदैरै चढणनूं काछण घोड़ी हुती तीयन रातब अणायो । जवांरो आटोअर गुळ घोड़ीनू दियो। ताहरां सिखरैजी उड़दावो देतां घोड़ीनू दीठो । ताहरां कह्यो-'घोडीनू उड़दावो क्युं ?'8 ताहरा कहियो-'जी, ऊदाजी भाद्राजण जावसी ।' ताहरां सिखरैजी कह्यो-'जेथ इवड़ो वैर पड़ियो, गाडां-गाडां मांटी मरे, तेथ क्यु जाईजै ?" ताहरां कह्यो-'जी, बोलिया तो दुगापचारी* ऑण छ। पाथवणरी विरिया, बीजै साथ तो घरानं खड़िया, ऊदैजी भाद्राजण- खड़िया । आधी रात आग, आधी रात पाछ, भाद्राजण जाय पुहुता। ताहरां उघाड फळसो मांहि हालिया। आगै सरगरै ___I सोलकी ईहड सीधलोका चाकर और इधर ईहड़के यहां ऊदोजी व्याहे थे। सो कोई आता जाता नही । मार्ग पर किसीका चलना भी बद हो गया। इस प्रकार सात वर्ष हो गये। 2 एक दिनका प्रसग है। 3 बालसीसर तालाबके ऊपर सिखर ऊगमणावत ( कदाका भाई) ने गोठ की है। 4 अफीम, शराव आदि लेकरके नशे में चूर हो गये है। 5 ऊदाजी ! कभी भाद्राजुन भी जानोगे ? 6 आज जायेंगे। जानेको तो मन में नही थी, परन्तु तुमने कह दिया है तो आज ही जायेंगे। 7 ऊदाके चढनेके लिए कच्छी घोडी थी उसके लिए रातिव मगवाई। 8 तव सिखरोजीने घोडीको अरदावा देते हुए देखा, तब कहा कि घोडीको अरदावा क्यो दिया जा रहा है ? 9 जहा इतनी अधिक शत्रु ता बनी हुई, गाडे-गाडे (अनेक गाडोंमें भरे जायें जितने, अर्थात् वहुत अधिक) मनष्य मरते हैं, वहा क्यो जाना चाहिये? 10 बोले तो (मना किया तो) आपको दगापचाकी (?) शपथ है। II संध्याके समय दूसरे सभी तो घरोको चले परन्तु ऊदाजी भाद्राजुनको रवाना हुए। 12 मध्य रात्रिको भाद्राजुन जा पहुचे। 13 फलसा खोल करके अदर चले। पाठान्तर-*दुगाय चा, दुर्गापंचा। 1 .
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy