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________________ ४६ ] मुँहता नेणसीरी ख्यात 2 6 चढिया खडा छै । वरहेड सांमो श्रावै छै । वीद तोरण हेठ ऊभी छै ।' वरहेडौ आयो । इतरे माहै खेतसीह वाहीज । ताहरां वीदनू 'खमा' कहियौ । * ताहरा खेतसीह कहियौ - 'खमा मो खेतसीहनू ।" केही न वाहता दीठी न म्यान करता दीठो ।" इम हीज घोडो डकायो । ' कहियो - 'भाना | आवौ । हमें ज्यो उतरिया सु उतरिया । अर चढिया ऊभा हुता तिकै उवारे वास हालिया । कह्यो - 'हा, जावण न पावै, ग्रापड़िया । 8 खेतसीह तो मोहरै छै । " र भानैनू लोहडा हुवा | 10 भानो मारियो । मार अर पाछा श्राया । ग्राय ग्रर कह्यो - 'हो ठाकुरे । मांहरै कोई वैर नही । म्रो खेतसीह कुण ? ताहरा कह्यो - ' जी, श्र खेतसोह चूडावत । ग्रा सगाई इयै भांत कीवी हुती ।"" ताहरां कहियो'फिटो, या वात म्हानू पैहली कही हुवत, जु वीदणी प्रांट भरी है, ज्यु म्हे जतन करत । " पण हिवै म्हा खेतसीह मारियो छे । श्रवो जोवां 15 जाय अर जोयो । ताहरां कह्यो- 'जी, श्री भानो सोनगरो छ । प्रो खेतसीह न हुवै । 13 14 116 11י? 1 1 साम्हने से वरहेडा ग्रा रहा है । ( वरहेडो = वरके लिये स्वागत - पूजा श्रादिकी सामग्री | इसे वरवेडो या वरदेहडो भी कहते है | कही कही तोरन पर ग्राये हुए वरको पुखनेके लिये आरती आदि मांगलिक उपकरणो के साथ वरवेहडो भी होता है । वरके साथ बारातका स्वागत करनेके समय तो इसका उपयोग सर्वत्र होता है । वरवेहडो प्राय सुराही जितना मिट्टीका छोटा घडा होता है जिसके ऊपर एक इससे भी छोटी मिट्टीकी लुटिया रखी रहती है । वरवेह्डो अनेक रगोसे चित्रित होता है और उसमे दूव ग्रक्षत आदि मागलिक वस्तुएँ रखी रहती हैं । यह एक मंगल कलश है, जिसे विवाहादि अवसरो पर गीत गाती हुई अनेक स्त्रियोके साथ एक सधवा स्त्री इसे अपने सिर पर उठा कर मंगल शकुनोके रूपमे वर श्रर वारातका स्वागत करती है ।) 2 दुल्हा तोरनके नीचे खडा है । 3 इतनेमे खेतसोहने प्रहार कर ही दिया । 4 उम समय पासके खडे लोगोने दुल्हेको 'खमा' कहा । ('खमा' शब्दका श्रर्थ - क्षमा होता है, परंतु राजस्थानमे इसका 'आयुष्मान्' जैसा प्राशीर्वादात्मक अर्थ होता है । राजात्रोको अभिवादन के समय इसका प्रयोग किया जाता रहा है | ) 5 तव खेतसिंह ने कहा - खमा तो मुझ खेतसिंह को है । 6 किमीने न तो प्रहार न तलवारको म्यान करते ही किसीने देखा । 7 इसी प्रकार उसने घोडे को भी लॅघवा ( कुदवा ) दिया | 8 कहा- हा, जाने न पावे, पकड लेना । 9 खेतसिंह तो मव से आगे है । 10 और भानाको तलवारके प्रहार लगे । II यह खेत सिंह कौन ? 12 यह सगाई इस प्रकार इनके साथ की हुई थी । था सो हो गया, यह वात हमे पहले कह दी होती कि यह दुल्हिन टटेकी है तो हम प्रवन्ध 13 अस्तु, जो होना करते | 14 परंतु अव तो हमने खेतसिंहवो मार दिया है। 15 आयो देख लें । 16 यह मह नहीं है ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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