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________________ मुहता नैणसी ख्यात वेसास मता करें ।' कह्यौ - वीरा ! इयैरो देख छू । 2 ताहरां रायमल कह्यो- 'जी, पिणं सीसोदणी कह्यो - 'वीरा ! इणरो वेसास मतां करे ।' [ ८३ हू इयैरी निजर भूडी तो आपणाहीज छै ।" 4 5 ताहरां रायमल दरीखांनैनू हालियो छै । ताहरां धाय भाई रेड़ै जांणियो ।' दरीखाने तो हजार आदमी छै । उठे तो रायमल मरसी नही ।" अठै कलो छै, मारूं ताहरां रेड़ें तो मारणरी घात कीनी, तरवार वाही । अर रायमल भाटो लेणनू नीचो हुप्रो, सवळी मेहलै वैठी हुती, तियैरै उडावणनू । ताहरां तरवार वाही, सो खाली पडी । थोड़ी-सी मोरै लागी ।' ताहरां रायमल पाछो फिर अरवाही सु रेडनू भोठ परहो कियो । 1° रेडो मारै रायमल ऊभी रह्यो ।" ताहरां वगड़ीरा लोक सारा नाठा सु उबरे गया । 22 12 17 .16 हिवै राव गांगोजी कहै - 'जैताजी ! कूपानू उरहो त्यो । 13 ताहरा जैतैजी कह्यो - 'राज ! हूं ही कागळ दईस, अर आपही कागळ द्यो । ' 14 तारा कागळ दे श्रादमी मूकियो । " कहाड़ियो- 'रे भाई । वीरमदेर छोरू'" नही छै; पछै ही जोधपुर ग्रावणो छे । अर लाख रुपियांरो पटो कूपैनूं रावळे" देवै छ । सखरा- सखरा गांम मारवाडरा कहै । 18 छै, ल्यो ।' ताहरां कूपही दीठो- “भलां कहै छै ।" जाहरां कूप राव गांगजीनू कहाड़ियो - ' जो एक वरस ताई सोझत ऊपर कटकी न करो तोह थाह आऊं । 2 ताहरां रावजीसौ कह्यो । ताहरा दीठो 17 20 121 । लौटते हुए रानीने रायमलको एकान्तमे लेकर कहा कि 'वीरा ! इसका विश्वास मत करना | 2 मैं इसकी नजर बुरी देख रही हू । 3 यह तो अपना ही है । 4 चला जा रहा है । 5 विचार किया । 6 वहाँ तो रायमल मारा नही जा सकेगा । 7 यहाँ केला है, मार दूं । 8 महल पर एक चील बैठी हुई थी उसको उडाने के लिये ककर लेनेको नीचे झुका, उस समय तलवारसे प्रहार कर दिया, परंतु वह खाली चली गई । 9 थोडी-सी पीठमे लग कर रह गई । TO तव रायमलने पीछेकी ओर मुड कर प्रहार किया सो रेडेका सिर दूर जा पडा । II रेडेको मार करके रायमल खडा रहा । 12 बगडीके सभी लोग भयके मारे बचने के लिये भाग गये । 13 कूपाको भी इधर ले लो । 14 में भी पत्र दूगा और आप भी पत्र दें । 15 तब पत्र देकर ग्रादमी भेजा । 16 पुत्र, सतान । 17 रावजीकी ओरसे । 18 अच्छे-अच्छे । 19 देखा, विचारा | 20 बात तो ठीक कह रहे हैं । 21 जो एक वर्ष तक सोजत पर आक्रमण नही करो तो मैं तुम्हारे पास श्रा जाऊ ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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