SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४३ 2 वडो कायदो हुवो । 2 घोड़ा, रजपूतांरी पण कनारै वडी जोड हुई । " छाजूरो बेटो सिवो वडो रजपूत, वडो जवान सु ग्राठ पोहर नदीरी पाखती सिकार खेलतो रहे। श्रधूळा करें। 3 4 5 6 तद मांडवरी पातसाही पातसाह गौरी हुसंग भोगवै । नै दिली तद लोदी पठाणांरी साहिबी, सु लोदी दिलीरी पातसाही भोगवै । ' सु मांडवरो पातसाह हुसंग दिलीरं पातसाहरी बेटी परणियो थो । " सु साहिजादी दिली हुती नै मांडवर पातसाहरो लोक साहिजादीनू लेण दिली गयो हुतो । सु साहिजादी दिलीसू चाली थी सुप्रातरी₹ कसबैरी नदी आई | पैडे चाली सु दिन भाद्रवा ग्रासोजरा हुंता । ' नदियां जोर हुतो, सु उतरणरो को घाट नही । ताहरां साहिजादी नदी माहे डूडो नखायने उतरती हुती', सु वीच जावतां डूंडो फूटो, सुतखता जुदा-जुदा हुय गया । ताहरां साहिजादी डूबती थकीरे हाथ पाटियो १ डूडारो आयो । 2° तिको भालने बैठी सु नदीरी धार मांहें वूही जावती हुती । " सु नदी ऊपर पातसाही लोक हुतो सु कूक ऊठियो " - 'साहिजादी डूबी जाती है ।' 8 10 11 ताहरा सिवो छाजूरो बेटो नदी थी निजीक सिकार खेलतो हुतो, सु कूकवो सुणनै दोड प्रायो । 23 साहिजादी नदी माहै वूही जावती दीठी | सुसिवो आप वडो तेरू हुंनो ! 24 सु प्रवाहो होयने नदी मांहै कूद पडियो ।" ताहरां तिरतो - तिरतो साहिजादीसौ निजीक 1 I छाजू और शिवाकी साख जम गई और मान- रुतवा बहुत वढ गया । 2 घोडे और राजपूतोका भी वडा समूह पास में हो गया । 3 मौज करता है । 4 उस समय मांडवकी वादशाही का उपभोग वादशाह हुराग गौरी करता है । 5 और दिल्लीमे लोदी - पठानोका राज्य सो लोदी वहाकी बादशाही भोगते हैं । 6 सो माडवके वादशाह हुशगने दिल्लीके बादशाहकी लडकीसे विवाह किया था । 7 पैदल रवाना हुई थी और भादो असोजके (वर्षा) दिन थे । 8 नदियोमे पानीके पूरका जोर था सो पार उतरने का कोई साधन नही था । 9 इसलिए नदीमे डोगी डाल करके पार उतर रही थी । 10 सो डूबती हुई शाहजादीके ढोगीका एक पाटा हाथ था गया । II उसे पकड करके उस पर बैठी हुई नदी की धारामे वही जा रही थी । 12 नदी पर बादशाही लोग थे उन्होने शोर मचाया । 13 सो शोर सुन करके दोड आया । 14 शिव स्वयं वडा तैराक था । 15 सो प्राडी नदीको पार करता हुआ उसमे कूद पड़ा । ( ग्राड वहाव तैरनेके लिए नदीमे कूद पडा ।)
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy