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________________ ४० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात कहै-'मेघाजी ! आपां परतरी वेढ करस्यां, रजपूतांनूं क्युं मारा ? का दूदो मेघे, का मेघौ दूदै। प्रांपाहीज सांफळ हुसी। ताहरां साथ दोनां, सिरदारांरो अळगो ऊभो रह्यो। एकी तरफ मेघो आयो, एकी तरफसू दूदो आयो । ताहरां दूदै कह्यो-'मेघा ! कर घाव । ताहरां मेघो कहै-'दूदा ! थे करो घाव । ताहरां दूदै फेर' कह्यो-'मेघा ! थे घाव करो।' ताहरां मेधै घाव कियो, सु दूदै ढालतूं टाळ दियो । दूदै पाबूजीन समरन मेघैन घाव कियो सु माथो धडसू अळगो जाय पडियो । मेघो काम आयो। ताहरा मेधैरो माथो दूदो ले हालियो। ताहरां आपरा रजपूतां कह्यो-'मेघरो माथो धड़ ऊपरा मेलो। वडो रजपूत छै ।” ताहरां माथो दूदै धड़ ऊपर मेलियो। पछै दूदैजी कह्यो-'कोई गांमरो उजाड़ मतां करो।' आपणे मेघेसू काम हतो।'10 मेघेनूं मार दूदोजी अपूठा फिरिया ।11 प्रायन रावजी श्री जोधैजीनू तसलीम कीधी। रावजी बोहत राजी हुवा । रावजी दूदाने घोडो सिरपाव दियौ ।13 ॥ इति श्री दूदै जोधावतरी पात संपूर्ण ॥ I प्रपदी परस्परमे ही झडप होगी। 2 तव दोनोका साथ (राजपूत सैनिक समूह) दूर सडा रहा। 3 मेघा । तू प्रहार कर। 4 दूदा! तुम प्रहार करो। 5 फिर। 6 तब मेपेका सिर दूदा लेकर चला। 7 तव अपने (उनके) राजपूतोंने कहा-मेघेका निर घट ल्पर रख दो, वडा राजपूत है। 8 तव दूदाने सिरको घडके ऊपर रख दिया। कोई भी गांवफा युछ भी नुकसान नहीं करना । 10 अपना काम मेघेसे था। II मेघेको मार फर दूदानी वापिस लौटे। 12 पा करके रावजी श्री जोधाजीको प्रणाम किया। 13 रावजी (जोधाजी)ने दूदाको घोडा और सिरोपाव दिये ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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