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________________ २८६ ] मुहता नैणसीरो ख्यात ताहरा चारण विसोढो खीची धारू पानळोतरो निवाजियो राजा वीसळदेजी पासै आयो।' ताहरां वीसळदेजी आदर-सनमान बहोत कियो । ताहरां हेके दिन चोपडरो रांमत माडी। रुपिया हजार-हजाररी बाजी मांडी । जो राजा हारे तो रुपिया हजार एक चारण विसोढेनू देवै । अर जो चारण हारे तो राजा वीसळदेजीनू मूळू आखिया देखाळे ।* आ विध कर बाजी मांडी । ताहरां विसोढे कह्यो-'राज ! हू तो मूळूनू जाणू नही ।' ताहरा राजा कहियो—'मूळू भलो रजपूत छै । थारो बोलायो आसी। जो नावै तो नही।' तद चोपड़ रमिया। विसोढो हारियो। ___ ताहरां विसोढेरै साथै राजा माणस दिया ।' विसोढो मूळरै गांम गयो । मूळसू मिळियो। ताहरां मूळू आदर कर खीच कियो, ताहरा विसोढो जीमै नही । ताहरां मूळू पूछियो-'राज ! जीमो क्यु नहीं ?'10 ताहरां विसोढे कह्यो-'जु म्हें तनै राजाजी वीसळदेजी पासै रुपिया हजार माहै हारियो । जो तू हेकरसू वीसळदेजोनू मुजरो कर तो जीमू ।'31 ताहरां कह्यो-'भलो कियो । पण ते थोडैमे हारियो । वीसळदे तो म्हारा रुपिया लाख खरचै तो दूरा । हू हाथ न आऊं।12 पण थारे कहै हालीस ।13 ताहरा विसोढो जीमियो। रात उठ रह्यो। चारण पाछो वीसळदेजी पासै गयो। जायनै कह्यो-'बाप ! मूळू आवै नहीं। तद मूळूरा राजा विखोड किया । 1 खीची धारू पानलोतका कृपापात्र चारण विसोढा राजा वीसलदेजीके पास आया। 2 तब एक दिन चौपड खेलनी शुरू की। 3 हजार-हजार रुपयेकी शर्तकी बाजी लगाई। 4. यदि राजा हार जाये तो एक हजार रुपये विसोढा चारणको दे और जो चारण हार जाय तो वह सागमरावके वेटे मूलूको राजा वीसलदेको पाखोसे दिखादे। 5 इस प्रकार ते करके बाजी शुरू की। 6-7 तेरा वुलवाया पा जायगा और नहीं पाये तो नही सही। 8 तव विसोनाके साथमे राजाने मनुष्य दिये। 9 तव मूलूने (विसोढाका) आदर किया और भोजनके लिये खीच वनवाया। परन्तु विसोढी भोजन नही करता (खीच-बाजरी को ऊखलमें कूट कर पकाया हुआ एक भोजन)। 10 भोजन क्यो नही करते ? II तू एक वार वीसलदेजीको मुजरा करना मजूर करदे तो जीम लू । 12 परन्तु तूने मुझे थोडे मे हार दिया। वीसलदे तो लाख रुपये खर्च करे तो भी मैं' तो दूर, मैं उसके हाथ नही श्राऊं। 13 परन्तु तेरे कहनेसे चलूगा। 14 तब राजाने मूलूकी हँसी (निंदा) कीी
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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