SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नेणसीरी स्यात ___ताहरा पाबूजी साथै माणस' देने कही-'ईयारे डेरै जाय खबर तो करो।' ताहरा थोरी माणसरै साथै डेरै जाय देखे तो काटूं ? जठे हाड पडिया हुता तठे सागे साढ कसाणो किया प्रोगाढ छै । तद अ जाय देखै तो काढूं ? साढ वैठो छै । तद थोपियां आपरी बैरानू' पूछियो । कह्यो-'या साढ अठै के विध ?3. ताहरा बैरा पण कही'राज ! आगै नो नही हती, माहरैही निजर हणां पाई । ताहरा थोरिया विचारी जु-'यो वडो करामाती रजपूत छ । प्रापान प्रो राखसी। तद अ सांढ लियां-लिया पावूजी पास आया। ताहरां पाबूजी कह्यो-'रे ! थे कहता साढ खाधी।' ताहरा थोरियां कह्यो'राज | समधा 111 म्हांनू राज परचो दिखायो ।12 ताहरा पाबूजी कह्यो-'तो थे रहस्यो ?13 ताहरा थोरिया कह्यो-'राज ! म्हे रहस्या।' . ताहरां थोरी पावूजी पासै चाकर रह्या । इयै भात रहतां हता। तद गोगजीन बूडैजीरी वेटी परणाई। ताहरां बाई₹14 दायजैरी15 वखत किहि 36 गायां सकळपो," किही क्युहो संकळपियो । ताहरां पाबूजी कह्यो-'बाई ! हू तोनू दोदै सूमरैरी साढारा वरग प्राण देईस।19 ताहरा गोगोजी हसिया। कही-'अाजै दोदो सूमरो वोढो-रावण कहीजै । तेरो साढा किसी भात ले आवसी ?' ताहरां पाबूजी वोलिया-'साढां ले आईस ।21 पछै गोगाजी तो हलांणो लेनै आपरै ठिकाणै गया ।' वांसें पाबूजी हरियै थोरीनूं कही-'रे हरिया ! दोदरी सांढिया हेर आव, ज्यु बाईनूं सांढियां प्रांण देवा ।“ बाईरा ___मनुप्य। 2 इनके। 3 यह क्या ? 4 जहा हड्डिया पडी थी वहा वही ऊटनी कनी हुई वैठी है और घास खा कर जुगाली कर रही है। 5 ये। 6 अपनी स्त्रियोको। 7 यह साढनी यहा किस प्रकार ? 8 हमारे भी नजरमे अव पाई है। 9 अपनेको यह रखेगा। 10 लिये-लिये। 1 समझ गये। 12 हमको आपने चमत्कार दिखाया। 13 तो तुम हमारे यहा नौकर रहोगे ? 14 कन्याके। 15 दहेजकी। 16 किमीने । 17 सकल्प की। 18 किसीने कुछ और वस्तु सकल्प की। 19 तव पावूजीने कहा'बाई ! मैं तेरेवो दोदे मूमरेकी साढनियोका वर्ग लाकर दूगा। 20 आज दोदा सूमरा एक दूसरा रावण वहा जाता है। 21 साढनिया ले पाऊगा। 22 फिर गोगोजी तो ववू और दहेज लेकर अपने स्यान गये। 23 पीछे, वादमे। 24 हरिया । तू जाकर दोदेकी साढनियोको घेर कर ले आ सो वाईको साढनिये लेजा कर देदें।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy