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________________ १३२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात पर्छ रिणधीरजी पण रागैरै गया, रिणमलजी पासै । रिणमलजीनू कह्यो - 'हालो, थाने मडोवररो टीको देराऊ ।" ताहरां रातरा रांणजी पास गया। रिणधीरजी रांणोजी मिळिया । ताहरां राजी को- 'मामोजी । क्यु श्राया ?' ताहरां रिणमलजी कह्यो'म्हानू मडोवर देण श्राया छे । ताहरां रांजी कह्यो- 'म्हे ई आवस्या ।' ताहरा राणजीनू ले 13 4 5 र सतै ऊपर गया । 16 ताहरा नरवदनू सतै कह्यो - 'तू पण नागोरीखांनन् ले आव | " नरवद कूच कर कोस १ गयो, ताहरां रात पडी । हेकलो ही फिर नै पूठो सतैजी पासै प्रायो ।' छानै लुक, ग्रर मा बापरी वात मुणणनू लागो । 8 9 J1 ताहरा सतो सोनगरान कहण लागो - 'सोनगरीजी । नरवद जांणियो, वाप कपूत हुवो, जु रिणधीरजीनू प्राध देवं । पण रिणधीर विना मडोहर रहै नही । 20 हमै ' 1 नागोरीखाननू लेवण गयो छै । सु नागोरीखांन हमे ग्रावै नही । रिणमलजीरा हाथ देख गयो छै ।" भली हुई, हूं कांम ग्राईस । 13 2 14 इतरै नरवद वोलियो - 'जु म्हनै नागोरीखांनरै किसै वास्तै मेल्हो ? हूई लडीस । " म्हें पण पण कियो छै, हूई काम ग्राईस । 15 ताहरां सतै कह्यो - 'हू ग्राही कहतो हुतो । 2" ताहरा नरबद प्राय नगारो दरायो । र लडाई कीवी । नरबद खेत पडियो । 18 साथै इतरा 17 8 छिप करके फिर रिणधीरजी भी रिणमलजीके पास राणाके यहाँ गये । मडोरका टीका दिलवाऊ । 3 मुझे मडोर देनेके लिए आये हैं । 5 तब राणाजीको साथमे लेकर मत्ते पर आक्रमण करनेको गये । को ले था । 7 अकेला ही लौट करके वापिस सत्ताजी के पास था गया । माता-पिता की बातें सुनने लगा । ० सोनगरीजी ! नरवदने जाना है कि उसका बाप भी ऐसा कुपून (कु वाप) हो गया सो रिणवीरको श्रावा राज्य दे रहा है । IO परन्तु रणरके दिना मंडोर ग्रविकारमे रहनेका नही । II श्रव । 12 नागोरीखान व ग्रानेका नहीं, क्योंकि वह रिणमलजीके हाथोका चमत्कार देख गया है । 13 प्रच्छा हुआ, में श्रव कान श्रा जाऊंगा | इननेमें नरवद प्रगट होकर बोला- तो फिर मुझे नागोरीखानके पास किसलिए भेज रहे हो ? 14 में भी लड़ूंगा ।' IS मैंने भी प्रतिज्ञा करली है कि मैं भी काम मा जाऊगा । 16 में यही कहता था । 17 तव नरवदने ग्राकर नगारा वडवाया । 18 नरवद घायल होकर धराशायी हुआ । 6 2 चलिये, आपको 4 हम भी आयेंगे । भी नागोरीखान तू
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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