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________________ १३० ] " मुहता नैणसोरी ख्यात रिणमलजी फेर पाछा रांण मोकल हीज गया। सतो मंडोवर जाय बैठो। राज कियो। कितराहेक दिना दोन भायारै कुवर हुवा।' सतारै नरबद हुदो । रिणधीररै नापो हुवो । कुवर राज करै। ताहरा हेक दिन नरवद विचारियो जु-रिणधीर धरतीरो आध लेवे सो किस वास्तै ? रिणधीरन दूर करीस ।* ताहरा हेक दिन रुपिया ४००) आया। ताहरां नरवद प्राध दियो नहीं। नरबद दाव बैठो। ताहरा एक दिन नापो वैठो हुतो, ताहरा कमाण १ कठाई सौ पेस पाई ।' ताहरा कमाण नापै खांचन तोड नाखी । ताहरा नरबद कह्यो-'भाई! भांजी क्यु ?" ताहरां नापै कह्यो-'देसरो हासल आवे तेमे प्राध मांग । कालि थेली आई, ते मोनू दीवी क्यु नही ?" ताहरा नरबद थेली काढि वाट लीवी । ऊठ घरै गया। नरबद पालीरा सोनगरारो भाणेजो । नापो सोनगरार मुंवाई।13 ताहरां नरबद कह्यो-'मामाजी! थांन हूं व्हालो के नापो?'14 ताहरां कह्यो-'म्हारै तो थे बिन्है बराबर ।15 पिण तू विशेष, जु थारै वास रहा।16 ताहरा नरबद कह्यो-'नाप विस देवो ।' तद कह्यो-'म्हांसू तो ओ काम कोई हुवै नही।17 ताहरा एक छोकरी हुती । तिणनू नरबद लोभ दिखाय, विस दिरायो । नापोजी मुवा ।1 1 कितनेक दिनोके वाद दोनो भाइयोंके कुवर उत्पन्न हुए। 2 एक। 3 रिणवीर धरतीकी आमदनीमे प्राधा भाग लेता है सो किसलिए ? 4 रिणवीरको दूर करू गा। 5 एक कमान कहींसे भेट में आई। 6 नापाने कमानको खींच करके तोड डाला। 7 भाई । इसको क्यो तोडा? 8 उसमें। 9 कल थेली आई थी, उसमेंसे मुझको क्यो नही दिया ? 10 तब नरवदने थेली निकाल कर वांट ली। II फिर वहाँसे उठ कर घरको गये। 12 नरवद पालीके सोनगरोका भानजा। 13 नापा सोनगरोका दामाद। 14 तुमको मैं प्रिय हू कि नापा ? 15 मेरे तो तुम दोनो वरावर हो। 16 लेकिन तू विशेप है, क्योकि मैं तेरे यहाँ रह रहा हू। 17 मेरेसे यह काम नही होनेका । 18 तव एक दामी थी। 19 उसको। 20 विष दिलवाया। 21 नापाजी मारे गये।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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