SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ मुंहता नैणसीरी ख्यात मूळ रोजीना सोनगरां ऊपर दोड़े। पण जाळोरसूं पहुंच सगै नही । हेक दिन सोनगरारै देवीजी श्री प्रासापुरीजीरी पूजा हुती दसराहैरै दिन । सोनगरारी वडारण पूजण आई हुती । देवीजीरों द्वारो गढसू नीचे हुतो। सु मूळू देवी-द्वारा आगे आय बैठो। ताहरा वडारण पूजा करणन आई । ताहरा मूळू वडारणनू पकड़ नापरी दोवड़ माहै पोट वांध पर उवैरा कपड़ा पैहरनै कोट ऊपर चढियो । महल माहै भीतर तुळसीरो थाणो हुँतो तठे जाय बैठो।' कटारी हाथ माहै छै । तद पोहर १ एक रात गई । ताहरा सावतसी आपरें महल गयो। ताहरां जीमणन थाळ पायो। ताहरा सांवंतसी आप कह्यो-'मळ रै बेटनू उरहो ल्यावो ।' सोळकणीरै मळूरो बेटो हुवो हुतो। ताहरां सोळकणी कह्यो-'यो तो सोय रह्यो। ताहरां सांवतसीजी कह्यो'जगाय ले आवो, ज्यु भेळो जीमावू । भेळो जीमिया ईयैरी अोठ खावू तो म्है मे ही क ही सत आवै ।10 मळ वडो सावत छ।11 हेकरसू मो ऊपर जरूर अासी।1' मूळ रो घणोहीज सुकर सांवतसी बोलियो। ताहरां मूळ जांणियो-ईयेनू मारू नहीं ।14 मूळ ऊठ अर आय रामराम कियो। कह्यो-'न मारू । वैर भागो। तद सावतसो कह्यो-थारी वैर ले 116 तद मूळू कह्यो-'म्है तनै दीवी।17 ताहरां मूळ न दूजो __I अब मूलू हमेशा मोनगरोके ऊपर दौडता है, परतु जालोरसे पहु च नहीं सकता। (जालोरके मोनगरे कावूमें नहीं आते।) २ एक दिनका अवसर, दशहरेके दिन सोनगरोकी देवी श्री आशापुरीजीकी पूजा थी सो सोनगरोकी वडारण (दासी) पूजनेको आई थी। 3 देवीजीका मदिर गढके नीचे था। 4 तव मूलने वडारणको पकड करके अपनी दोवडमें उसकी गठरी वाध दी और उसके कपडे पहिन कर गढ पर चढा। 5 महलके अदर जहा तुलसीका थावला था उसकी अोटमें जा बैठा। 6 भोजनके लिए थाल परोसकर लाया गया। 7 मूलूके वेटोको ले पायो। 8 सोलक्निीको मृलूसे वेटा उत्पन्न हुआ था। 9 वह तो सो गया है। 10 जगा करके ले पायो सो अंपने सामिल विठा कर उसको खिलाऊ । सामिल बैठ कर खिलानेमे में भी इसकी जूठन खाऊं तो मेरेमें भी कुछ संत पाए (सत - १ मनुप्यत्व। २ रजस । ३ पराक्रम, वीरत्व)। I मूलू बड़ा सामत है। 12 एक बार मेरे पर जरूर चढ कर अायेगा। 13 सावतसीने मूलूके सवधमें बहुत ही अच्छे भाव व्यक्त किये। 14 तव मूलूने विचार किया कि इसको अब नहीं मारू। 15 मूलने वहासे उठ और मावतसीके पास आकर राम-राम (प्रणाम) किया। और कहा कि तुमको मारूंगा नहीं। वैर था सो मिट गया। 16 तुमारी स्त्रीको लेलो। 17 मूलने कहा कि मैंने तुमको देदी
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy