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________________ १२६ ] महता नैणसीरो ख्यात ताहरा वाभण बोलियो-'म्हे मांहरो धणी मरायो। रे वाप । तूं माडण कूपावत, म्है अोळखियो।' पण होणी ।। ताहरा माडण कटक भेळो होयनै सीहै ऊपर नांखिया । इतरैमें रजपूताणी गाडाहू उतर कहियो-'मनाया, मनाया, मनाया रे बाप !' ताहरा डोकरी आपरा वेटान कहियो-'वाला ! सीहो घणा रजपूतांरो ठाकुर छ, भाई । देखो । किसडा हुवो छो ?" ताहरा रजपूत सभिया। भली भात लडिया । सीहो काम प्रायो। राघो वालो ताहरा सीहै कनै हुतो।' पगै खोड़ो हुतो। काठरी घोडी चढियो फिरतो ।11 सु नव आदमी राधैरै हाथा रहिया। ताहरा वरछिये घायो,13 ताहरा घोड़ी नाख दियो । कहियो-'जी, इतरा दिन दाळपाहोरो इण घोडीनू म्है दियो छ, अवै थे देज्यो ।15 राघे वडो पराक्रम कियो। सीहैनू मार माडण कूपावत पाछो वळियो। उठे उदेसी देवडैरो डर । तितरैनू रजपूत चोथो प्रायो।" आयनै कहियो-'मा ! थारो कासू गयो ?'18 कहियो-'जी, महारो क्युही नही गयो, जे वेटा ! तू रहियो तो ?'19 ताहरा रजपूत कहियो-'थारो साबतो ही गयो। हू ____I-2-3 तव ब्राह्मण वोला-'अरे वाप रे 1 मैने अव पहिचाना तू माडरण कूपावत है । हमने हमारे स्वामीको मरवा दिया। लेकिन भवितव्यताको वात है। 4 माडणने अपने कटकके सामिल होकरके मीहाके ऊपर आक्रमण कर दिया। 5 गाडेसे । 6 अरे बाप । मनाना, मनाना, मनाना रे इन्हे (रोकना, रोकना, रोकना रे इन्हे)। 7 तव बुढियाने अपने वेटोसे कहा-रे प्रिय पुत्रो । सीहा अनेक राजपूतोका ठाकुर है, देखना इस वातका है भाई । कि तुम इस समय अपना कर्तव्य कैसा निभा रहे हो? 8 तव राजपूत । तैयार हुए। 9 राघव वाला उस समय मीहेके पास था। 10 लगडा था। I लकडेकी घोडी पर चढा फिरता (लकडीकी बनी हुई टागके सहारे चलता-फिरता था)। 12 नौ आदमी राघवके हायमे मारे गये। 13 तव वछियोके लगनेसे घायल हुअा। 15 तव उसकी घोडीने उसे नीचे डाल दिया। 15 इतने दिन घोडीको दालका पाहुरा मैने दिया है, अब तुम देना । (पाहोरो-बोडेको चनेकी दाल आदि खिलाने के लिए चमडेका वना हुया एक थैला, जिसमे दाल भर कर घोडेके मुह पर चढा दिया जाता है।) 16 पीछा लौटा। 17 इतनेमे चौथा (चौथसिंह) राजपूतं आया। 18 आकरके कहा'म । तेरे क्या गया ? 19 (माने व्यग्य मे) कहा-'वेटा तू वच गया तो मेरा तो कुछ नही गया | 20 'माँ ! अव तेरा सब कुछ गया।'
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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