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आदिदास्त' खांनदोरारो नाम आगै साबर हुतो, सु साहजिहां पातसाहरै विखै माहै नीसरियो हुतो। सु मालक मलकंबररै तो इतरो ठीक हुतो जु हिदुस्तांनी कोई गढमें राखतो नही । ढूढ काढतो, सु पैसण न पावै ।' ताहरां पछै खांनदोरा एकी तुरकणीनू जायनै मिळियो नै कह्यो -'जु मोन मलकंबर जायन वेच । ताहरा तुरकणी जायन वेचियो । गढ माहै वडियो।' सरव गढरो भेद लियो। लेयनै जद साहजिहां टोकै बैठो, तद जाय मिळियो । सरब हकीकत कही।'
1 याददाश्त (स्मरण रखनेके लिये नोट रूपमे लिखी हुई कोई बात)। 2 सो शाहजहा वादशाहके सकटकालमें निकल गया था। 3 मलिक अंबरके यही इतना ठीक था कि किसी हिन्दुस्तानीको गढमे नहीं रखता था। ढूंढ करके निकाल देता था जिससे कोई गढमें प्रवेश नहीं करने पाता था। 4/5 तब खानदोरा एक तुर्कनीसे जाकर मिला और उससे कहा कि मुझे मलिक अदरके यहा वेचदे। 6 गढमे घुस गया। 7 साहजहा जब गद्दी पर बैठा तब जाकर उससे मिला और सब हकीकत कह दी।