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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ १६७ सु प्रो रोज नवी नवी जायगा बरछी खो है सु आगणा में वेडा - वेडा हुय रह्या 12 ताहरा रांणी एक दिन सात तवा लोहरा, सवा-सवा मणरो एक-एक तवो, कराय पर जठै सेतराम प्राय बैसतो तठे गचमें तवा गडाया । ऊपर विछावणा विछाया ।" ताहरा प्रभातरा सेतरामजी राजाजीरी हजूर मुजरे या ताहरां वैसतां बरछी दावी ज्यु भूय करड़ी लखाई, ताहरां जोर कर दाबी, सु बरछी हाथ दोय गडी । ताहरां सेतरांमजी मनमे जाणियो- 'आज तो बरछी बळ करायो । 14 पर्छ सेतरांमजी बैठा । ताहरा राणी जाणियो- 'जु तवा तो फोडिया पण बरछी काडसी किसी भांत ? पर्छ सेतरांमजी कित रीहिक जेजसू बोहडण लागा; बरछीनू हाथ घातनै ज्युं खांची सु तवा साते ही साथै आया बरछीरै ।" प्रांगणो पण खुल गयो अर विछायत पण ऊपडी । ' ताहरा राजा कह्यो - 'प्रो कासू ? ताहरां सेतरांम कही - 'महाराज ! हूं बैठतो तठै बरछी गडती, सु दीसै छे आज कोई म्हारी मसकरी कीवी छै ।" तद राजा विछावणा परहा कराय देख तो कासू ? सारे ही वेडा-वेडा छै । 10 ताहरा राजा बहोत महरवान हुआ । वडो कारण कियो अर रिजक पण वडो कर दियो 111 18 अठै सेतरांमजीरो पण एक जुदो ही राज हुआ। 12 ताहरां यु करतां राजा एक दिन सिकार चढियो सरव साथ लेयर 123 साथै I यह नित्य नई-नई जगहोमे वर्धी घुसेडत । है सो श्रागनमे खड्डे ही खड्डे हो रहे हैं । 2 तव रानीने सवा-सवा मनके लोहे के सात तवे करवाये श्रौर जहाँ सेतराम श्रा करके बैठा करता था वहा गच के अदर तवे गडवा दिये श्रौर ऊपर बिछौने विछवा दिये । 3 प्रभातके समय जव सेतरामजी राजाजीकी हजूरमे मुजरा करनेको प्राये तच बैठते हुए वछको दबाया सो भूमि कठिन मालूम हुई, तो जोर करके दबाया सो वर्धी दो हाथ गहरी गड गई । 4 आज 'तो बछने जोर मागा है । 5 तवे तो फोड दिए परन्तु वर्धी निकालेगा कैसे ? 6 कितनी देरके बाद जब सेतरामजी लोटने लगे तो बछको हाथ डाल कर ज्यो खींचने लगे त्योही बके साथ सातो तवे उखड़ श्राये । 7 प्रांगन खुल गया भोर विछायत भी साथ की साथ उठाई | 8 यह क्या ? 9 महाराज | जहाँ मैं बैठता था वहां वर्धी गड जाया करती थी सो श्राज ऐसा मालूम होता है कि किसीने मेरी मजाक कर दी है । IO तव राजा विछायतको दूर करके क्या देखता है कि सभी जगह खड्डे हो खड्डे बने हुए हैं । वडा सम्मान किया श्रोर जीविका भी वढा दी । 12 यहा सेतरामजीका भी एक अलग राज्य कायम हो गया । 13 एक दिन राजा सभीको साघमे लेकर शिकारको चढ़ा ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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