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________________ ७८ ] मुंहतो नैणसीरी ख्यात तोई वडोजी माने नही। ताहरा लड़ाई हुई । बुडो काम आयो। __ ताहरां खीची आपरा' साथसू कही-'जो आज आपा पाबून मारियो नही तो पाछै पापांने नही छोडसी । ताहरां खीचीरो साथ पाछो फिरियो । सो कूडळ पमै घोरंधाररै आयो। ताहरा पमैन कही जु- 'ब, राठोड थारी धरती दबावता-दबावता आसी', सो जे तू आज म्हारै सांमल हुवै तो दाव छ, पावूजीनू मारां ।' ताहरां पमो पण चढ सामल हुवी। चढनै पावूजी ऊपर पाया । त' पाबूजी गायां पाइनै10 छोडी छै। इतरै खेह दीठी 17 ताहरा पाबूजी कह्यो- रे चांदा । श्रा खेह करी ?'12 ताहरां चांदै कह्यो-'राज ! खीची आयो।' अर पैहलडी लड़ाई माहै चांदै खीचीनू तरवार वाही हुती', तद पाबूजी तरवार आपड़ लीवी 14 कही-'मारो मतां, बाई राड हुसी।15 ताहरा चादै कही-'राज ! अाप तरवार आपडी सु बुरी कीवी।16 अ छोडै छै ?" मराया भला ताहरां चादै कही-'हरामखोर आयो।' ताहरा पाबूजी खेत वुहारनै लडाई कीवी 119 वडो -रोठ वाजियो।२० ताहरा पाबूजी काम आया। सात भाई आहेडी21 काम आया । जाना सात पाई ही, जिणमे सात-वीस आहेड़ी छा सो सर्व काम पाया । वडी लडाई हुई। खीचीरा पण माणस घणा I फिर भी वूडोजी मानते नही है। 2 अपने। 3 जो आज अपनने पावको मारा नही, तो फिर वह अपनेको नही छोडेगा। 4 सो वह कुडल में पमे घोरधारके पास आया। 5 ये। 6 तेरी। 7 श्रायेंगे। 8 यदि। 9 वहाँ। 10 पानी पिला करके। II इतनेमे गर्द उड़ती हुई देखी। 12 यह खेह किस बातकी ? 13 पहलेकी लडाईमे चादेने खीचीके ऊपर तलवारको प्रहार करनेके लिए उठाई थी। 14 तव पावजीने तलवार पकडली थी। 15 कहा कि मारो मत, बाई विधवा हो जायगी। 16 अापने तलवार पकडली यह बुरा किया। 17 ये अब कही छोडने वाले हैं ? 18 मार देना ही अच्छा था। 19 तव पावूजीने मैदान तैयार करके लडाई की। 20 बढे जो कि प्रहारोंमे लडाई हुई। 21 शिकारी (थोरी)। 22 सात वरातें आई थी, जिनमे १४० चोरी थे सो नभी काम आ गये । 'सात-वीसका प्रयोग प्राय 'सात-वीसीकी' भांति ही १४० के लिये ही होता है। केवल २७के लिए 'सात-वीस'का प्रयोग नहीं होता। बीनने पर दस या वीम समाहार मल्यायोंके योगके लिए उन ममाहार सख्यायोकी इकाईमे गुगिन कर अभिलपित नंख्याको बतानेको परम्परा आज भी अपठित समाजमे देखी जाती है। दशका ममाहार वीमका आधा, पांचको चौथाई और १५ को पौना समझा जाता है। पत्रानको 'अढाई-बीनी', पचपनको 'पूणा तोन-वीसी' और साठको 'तीन-बीसी'कहा जाता है। इपराठको 'तीन-धीमी ने एक' कहा जाता है। इसी प्रकार सत्ताईमको 'सात-वीस' न छह फर एक वीसी ने मात' कहा जाता है।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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