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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ १०१ वळे' जैतसीजी बोलिया, कहियो - 'खीमाजी ! इतरी भाँय नहीं लाभो, जोधपुर नै समेळ विचै पावड़ी घणी छे ।" ताहरां खेमोजी हाथ मुरड़ने पाछा आया । ताहरां राव कहियो - 'भला, जिकी हुसी सु दीससी ।" ताहरां परभात' लड़ाई हुई । लोक कांम आयो ।
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ताहरा रावजी तो घूघरोटरा पहाड़ां मोह जायनै रह्या । सूर पातसाह जोधपुर आयो । ताहरां जोधपुर तिलोकसीह वरजांगोत किलेदार हुतो । सुतिको ३०० रजपूतासू कांम आयो । सूर पातसाह च्यार मास जोधपुर रह्यो । मालदेजी मेडतारा बावळ वाढिया ' ताहरां वीरमदेनूं कहियो । ताहरां वीरमदे कहै - ' जोधपुररा प्रांबा वाढीस ।" ताहरां लोके कह्यो - 'आ श्रापनू हैसाब नही ।" ताहरा छुरी लेने काबडी वासतै आंबारी एक डाहळी वाढी । " पछै सहु कोई आपो-आपरै ठिकाण गया । 12 अर पातसाह सूर दिली गयो ।
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पछे थांणो हरवाड़े राखियो । थांणो जिकैमे पठाण राखिया हंता" और वीरमदे दूदावत, कल्यांणमल दूणपुररो धणी । 13 ताहरा एक दिने ॐ चढनै घूघरोटरा पाहाड़ा मांहै राव मालदेजीरी वसी हुती, तिकैनू बध कीवी । 24 बंध करने हरवाडे आयो । ताहरां कोई डोकरी हुंती, - तिका कहण लागी - ' कुण छै ?" ताहरा कही - 'कल्याणमल दूणपुररो धणी ।' ताहरां डोकरी को - 'साबास, म्हारी दादिया- काकिया बंधाने भलो हालियो, माथा ऊपर ओढणो घातने । 26 ताहरा श्रो जाब कल्याणमल साभळियो ।” ताहरां धांनरो सूस घातियो | 128
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पीछे सभी कोई अपने-अपने
फिर 12 इतनी दूरी नही काट सकते, जोधपुर और समेळके बीच तर बहुत है । 3 मरोड करके | 4 जो होगी सो देख लेंगे । 5 दूसरे दिन प्रभातमे । 6 जोधपुरमे तिलोकसी वरजाग का पुत्र किलेदार था । 7 मालदेजीने मेड़तेके बबूलोको कटवा दिया । 8 मैं जोधपुरके नामके वृक्षोको कटवा दूगा । 9 यह आपको उचित नही । 10 तब छुरी लेकर एक श्रमकी टहनी छडीके लिये काट ली | 11 स्थानोको चले गये । 12 रखे थे । 13 द्रोणपुरका स्वामी । घूघरोटके पहाडोंमे जहाँ मालदेजीकी वसी थी उसे वद कर दिया । IS एक बुढिया थी सो कहने लगी- यह कौन है ?" 16 शाबाश है ! हमारी दादियो- काकियोको बँधवा कर और सिर पर श्रोढना डाल करके भला चला जा रहा है । 17 तब यह जवाब ( उपालभ, व्यग्य) कल्याणमलने सुना । 18 तव अन्न ग्रहण न करनेकी शपथ ली ।
14 तब एक दिन इन्होने