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________________ १६२ ] मुहता नैणसीरी ख्यात वडी वात छ । तिण ऊपर राव जोधोजी आपरा भाई बंध भेळा करनै राणा वैरसल, नरबद ऊपर आया।' वैरसल नरबद रावजी जोधैजीनू आवता सुणनै आपरी वसी लेने नीसर गया। धको झालियो नही । राव जोधाजी द्रोणपुर छापर मारियो। सारी धरती पजाई । वडो अमल कियो ।। ___मोहिल रांणै वैरसल नरवद धरती छाड कानो लियो ।' कितराहेक दिन तो फतैपुर, जूझणू, भटनेर रहिया । तठा पछै मेवाड राणा कुभारी तीरै गया ।' उठे पण कितराइक दिन रह्या। पछे यां विचारियो-'म्हांसू धरती छूटी । सबळी ठोड़ आणी । नै म्हारै प्रांण तो धरती वळणरी नही ।' तरै मोहिल नरबद मेघावत नै राठोड़ वाघो काधळोत मांमा भाणेज व्है ।11 या भेळा होय आलोच कियो। आपासू धरती छूटी। काहेक धरतीरी वाहर कीजै ।13 तिण उपरां या दोन जणा पातसाह कन दिली जावणरो विचार कियो । अ मामा भाणेज दिलीन हालिया । ताहरा दिली माहै लोदिया-पठाणारी साहिवी थो।" सु औ जाय मिळिया । पातसाहजीसू फरियाद कर अरज कीवी । ताहरां वान - पातसाहजी घणी दिलासा दीनी ।' यां मास दस इगियारह चाकरी कीवी। पातसाह या सू महरवान हुआ । यांरी कुमुखनू घोडा हजार पांच दिया । यारै ____I बहे अवसरकी बात है। 2 अपने भाई-बवुओको इकट्ठा करके राणा वैरसल नरवद पर चढ कर पाये। 3 वैरसल और नरवद, राव जोघाजीको प्राया सुन करके अपनी बमी (वस्ती) लेकरके निकल गये। 4 अाक्रमणका सामना नहीं किया। 5 राव जोधाजीने द्रोणपुर छापर लूटा। 6 सारी धरतीको हैरान किया। 7 मोहिल राणा वैरसल और नरबदने धरतीको छोड कर किनारा लिया। 8 कितनेक दिन तो फतहपुर, झझनू और भटनेर रहे। 9 जिसके बाद मेवाडमे राणा कुभाके पास गये। 10 हमारे अधिकारसे धरती गई, नवल जगह थी सो राव जोधाने अपने अधिकारमे ले ली और अव हमारे बल पर तो यह घग्नी वापिस हाथ आनेकी नहीं। II-12 तव मोहिल नरवद मेघावत और वाघा काधनोत, जो परस्पर मामा भानजे हैं, इन्होने मिल कर विचार किया। 13 किसी प्रौर धरतीकी तलाश की जाय। 14 इस पर इन दोनो जनोने वादशाहके पास दिल्ली जाने का विचार किया। 15 ये मामा-भानजे दिल्लीको चले। 16 उन दिनो दिल्लीमे लोदी पठानोकी बादशाहत पी। 17 तव वादशाहने उनको वहत श्राश्वासन दिया । 18 उन्होंने दस-ग्यारह माम तक बादशाहकी चाफरी की। 19 इनकी सैनिक सहायताके लिए पाच हजार घोडे दिये।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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