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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २४१ धण । सो ईयारो धण लोकांरा खेत खावै । वसीरा लोकांरा खेत ऊभा खाईजै ।' सु लोक वसीरो भाखरसी प्रागै नित-प्रत पुकार घालै । ताहरां भाखरसीन छाजू अोळा तो घणा ही दरावै, पण रुळियार धण हुवो सु रहै नही। लोक सारा पच थाका ।' तिण ऊपर छोजूसौ भाखरसी घणो बुरो मानियो, नै छाजूनू कहाड़ियोमै थाहरा घणा ही अोळभा टाळिया, थे मानो नही। थे म्हांसू कोस १० अाघेरा जायनै रहो। अठ रहितां था नै म्हां विगावो हुसी।' थे वेगा छोडणरी तयारी करज्यो । तिण ऊपर छाजू नै छाजूरो बेटो सिवो ईयां दीठो-'भाखरसी सबळ मांणस, नै काढण ऊपर आयो । रहियां थकां विगोवो हुसी। तिण ऊपरा छाजू छाडणरी तयारी कीवी नै ठोड जोवाड़ी सो औ बूदी चीत्रोड़, अांतरी विचै पठाररा गांव यांरी वसती; तठाथी छाडनै कोसे १२ प्रांतरीरो परगनो थो तिणरो कसबो थो, तिण कसवायी कोस १ नदी वेत वहै छै । तिण वेत नदी ऊपर वडो जगळ छ । तिण मे द्रोब, करड़री वडी ऊगम छै । तिका ठोड जोय आया 111 जांणियो-मांहरो हसम थाट अठ चरसी । सु नदीथा कोस १ ___ I घोडिया, साढिया, (ऊटनिया) गाये और भैसे इत्यादि वडा चौपद समूह इसके पास था और गायोके तो बड़े (बहुत) समूह थे । सो इनका यह चौपद-धन लोगोके खेतोको खा जाता है। 2 बसीके लोगोके खडे खेत खा लिये जाते हैं। 3 बसीकी प्रजा नित्य प्रति भाखरसीके आगे जाकर पुकार करती है। (बसी-१ निजकी बसाई हुई वस्ती या प्रजा। २ रियायतसे वसाये हुए लोग ।) 4 तब छाजू भाखरसीको उपालभ तो बहुत दिलवाता है, परन्तु छाजू क्या करे, धन (चौपद) ही ऐसा निषिद्ध हो गया कि रोकने पर भी रुकता नही। 5 सब लोग कोशिश करके थक गये। 6 जिस पर भाखरसीने छाजूसे बहुत बुरा माना और फिर छाजूको कहलवाया कि मैंने तुम्हारे अनेक अोलभे टाले, परन्त तुम मानते नही । सो अव तुम हमारेसे १० कोस दूर जाकर रहो। 7 यहा रहने से तुमारे और हमारे वीचमे टटा-फसाद होगा। 8 जिस पर छाजू और उसके बेटे शिवाने देखा कि भाखरसी जबरदस्त आदमी है और अपने को यहांसे निकालने पर तुल गया है, ऐसी दशामे यहां रहने पर फसाद होगा। इस पर छाजूने छोडनेकी तैयारी की और जगहकी तलाश करवाई। 10 उस कस्वेसे एक कोस दूर वेत नामकी नदी बहती है। 11 उसमे दूब और करड घासकी खूब उपज होती है। उस जगहको देख पाये। 12 विचारा कि हमारा चौपद-समूह यहां चर सकेगा।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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