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________________ ११४ ] मुहता नैणसीरी ख्यात उठ गया।' उठाहू माथो लेनै पोकरण पाया ।' वांस सतियां हुई। पछै नरैरै टीके गोयद बैठी। हमै रोज लडायां पड़े। धरती वसै नही। ताहरां राव सूजैजी गोयदनू तेडायो। पोकरणान् तेडाया। धरती प्राधो-आध वैहच दीवी। कोट नरैरै माथै साटै कियो ।' उवै जाळसौ सीम पडी।' ___ अजेस पोकरणां कनै तदरी सीम छ । राव नरो सवत् १५५१ चैत्र वदे २ काम पायो । गोयदरै बेटा जैतमाल नै' हमीर हुवा। आधी फळोधीरी धरती हमीरनू दीवी । जैतमालनै सातळमेर दियो। पछै कितरेहेक दिने दोन्युई कनांसू गढ राव मालदेजी लिया । ॥ इति नर खीमैरी वात सपूर्ण ॥ I तब वहां गये। 2 वहांसे सिरको लेकर पोकरण आये। 3 घरती आवाद नहीं होती। 4 बुलाया। 5 वरावर प्राधी-साधी धरती दोनोंमे वांट दी। 6 गढको नरेको सिरके बदले दिया गया। 7 उस जाल वृक्षकी सीमा निर्धारित हुई। 8 पोकरणोके पास अभी तक उन समयकी निर्धारित सीमा है। 9 और । 10 पीछे कितने ही समयके बाद दोनोंके पाससे गव मालदेवने गढ ले लिये।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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