SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्री गणेशाय नमः ।। अथ परमारांरी वंसावली जुगाद r m आबू स्थान, अनळ कुंड निकासाय, पच प्रवराय । वच्छस गोत्राय, मादधुनी साखाय, सचियाय कुळ देव्याय ।।' प्रथम, प्राद राजा इद्र राजा चित्रांगद २० कमळ राजा गंद्रपसेन10 ब्रह्मा राजा वीरविक्रमादित्य २२ मरीच राजा विक्रमचरित २३ कश्यप राणो अजै भूपाळ11 २४ धूमरिख राणो महपाळ राजा उपळ रांणो मधुर राजा परूराई रांणो चंद राजा धर्मागद रांणो गोसील13 राजा धरणीवराह राजा सिंघलसेन14 राजा धारगिर राजा-भोज राजा धाहड राजा उदैकरण राजा धीरसेन राजा देवकरण राजा पोहपसेन' राजा सत15 राजा लखसेन' १६ राजा सिवर ३४ राजा बुद्धसेन राजा सालवाहण" राजा काळसेन ur 9 ० ० ३२ ३५ परमारोका गोत्रोच्चार इस प्रकार है-प्राबू स्थान, अग्निकुंडसे निकास, पंच प्रवर, वच्छस (वत्स व वशिष्ठ) गोत्र, माध्यंदिनी शाखा और सचियाय कुलदेवी। 2 आदि पुरुष (परब्रह्म)। 3 युगादि (विष्णु) 4 मरीचि । 5 धूम्रऋषि । 6 उत्पल । 7 पुरुरुवा। 8 पुष्पसेन । 9 लक्षसेन । 10 गंधर्वसेन । II अजय भूपाल । 12 महिपाल । 13 गोशील । 14 सिंहलसेन। 15 सत्य । 16 शिविर। 17 शक सम्वत् प्रवर्तक राजा शालिवाहन ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy