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________________ ४८ ] मुहता नैणसीरी ख्यात ताहरा वीदणी दीठो, अर मा अर बापने कहियो - 'हे ठाकुरांरजपूता ! हू वैर खेतसीहरी छ; श्रर एकलीरें वास्तं घरणा जीव मरं छे, ते हूं सगरे साथ बळीस ।" वीदणी बाहिर प्राय सगरे साथै वळी ।" बाळ अर बालीसा हुता तिके नाडूल आया । सीधळ सीधळावटी ग्राया । ॥ इति खेतसीहरी वात सपूर्ण || 1 तत्र दुल्हिनने देखा और अपने माता-पिता से कहा ( और राजपूतोंसे भी कहा ) कि राजपूत ठाकुरो | मैं खेतसिंहकी पत्नी हूं, परंतु मुझ एकके लिये कई प्राणी मरनेको तैयार हुए हैं त मैं मगरेके साथमे जल जाऊगी | 2 सगरेके साथ मे जल गई । 3 जला करके वालीसा राजपूत थे दो नाडोलको चले गये ।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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