SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २६३ बंधाया। कह्यो-'ऊठो मेळोजी ! किसी भांत जुधं करस्यां ?'2 ताहरां मेळोजी बोलिया-'घोड़े असवार हुयनै जुध करस्यां ।' तोहरां सिखरोजी,बोलिया-'मांहरै घोडो अपलांणो छ ।' पण थे कह्यो तो भलां, असवार हुवो। ताहरा मेळोजी घोड़े असवोर हुवा । घोड़ो तातो कर ताजणो लगायो नै मेळेजी तो आघा खड़िया ।' सिखरोजी देखता ही रह्यो । 'ऊ जाहि ! ऊजाहि !" ताहरां मेलेरै वांस सिखरै खड़िया ।' लारै घोड़ो लगाय फिटो कियो। घोड़ो सिखरैरो पहुचे नही, मेळेरै घोड़ेनू ।' सिखरैरै घोड़े लार वछेरी आई हुती, तिका वछरी दोड़ती-दोडती मेलेरै घोड़ेस आगै हयनै वळे वछेरी पूठी आई।' आय अर वळे वछेरी आधी जावै, अर वळे अंपूठी आवै । वार दोय वछेरी ईयै जिनस आई 111 ताहरां सिखरै दीठो-घोड़ो पहुंचै नहीं। ताहरां सिखरै बछेरी पाकड़ी, घोड़े कनारै आई ।। ताहरां लटी पकड़, सिखंरो वछेरी असवार हुवो। ताहरा वछेरी दोड़ी । जाय. मेळेरै घोड़े आगै नीसरी।14 ताहरां वछेरी अपूठी फिरी । ताहरा सिखरै साम्हां आय बरछो वाहो, सो मेळेरै बरछी दुसार हुई।15 मेळो घोड़ेसू खिर पड़ियो। सिखरोजी उतरिया । तितरै वाससू वाहर पण आई।" सिखरोजी ऊदैजीन वात कही। ताहरां ऊदैजो कह्यो-'मेलेनू दाग द्यो ।'18 ताहरा मेलेनू दाग दियो। I सिखराजीने आँखें छंटवाई और शस्त्र बंधवाये। 2 मेलाजी । उठो। किस प्रकार युद्ध करेंगे? 3 मेरा घोड़ा बिना जीनका है। 4 परतु तुमने कह दिया है तो अच्छी बात है, सवार हो जाओ। 5 घोडेको तांता करके चाबुक मारा और मेलोजीने तो दूर ही चला दिया। 6 वह जाय ! वह जाय । सिखरोजी तो देखते ही रह गये। 7 तव सिखराने भी मेलेके पीछे चलाया। 8 घोडा पीछे दे कर खूब जोर मारा, परन्तु सिखरेका घोडा मेलेके घोडेको नहीं पहुच पाता। 9 सिखरेके घोडेके पीछे जो बछेरी पाई थी, वह बछेरी दौडती-दौड़ती मेलेके घोडेसे आगे जाकर फिर बछेरी वापिस लौट आई। 10. आकर के फिर वछेरी (मेलेके घोडेसें) आगे निकल जायें और फिर लौट कर आ जाये। IT इस प्रकार बछरी दो बार आई और गई। 12 जव बछेरी घोडेके पास आई तो सिखरेने उसे पकड़ लिया। 13 तव (वछेरीकी) लटिया पकड करके सिखरा बछेरी पर सवार हो गया। 14 जाकरके मेलेके घोडेसे आगे निकल गई। 15 तब सिखरेने सामने आकर वर्चीका प्रहार किया सो मेलेके वर्ची प्रार-पार हो गई। 16 मेला घोडेसे गिर पड़ा। 17 इतनेमे पीछेसे वाहर भी आ गई। 18 मेलेका अग्नि संस्कार कर दो।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy