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________________ १७२ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात परविड़यां जागै प्रथी, कळह सँवारे काम । जाळपरै हद जोमर, वीणो वस वरियांम' ॥ २४ सीगाळौ कुलमे सदा, जुध वेला खग-जैत । चाव न चूकै रामचद, वेणावत वानेत ॥ २५ ।। इति मोहिलां री वात संपूर्ण ।। ॥ कल्याणमस्तु । I पृथ्वीके लिये जब युद्ध प्रारभ होता है तो उसमें प्रवाडे गाये जाने जैसी वीरतासे युद्ध करके विजय प्राप्त करता है। 2 असीम शक्ति वाले जालपके कुलश्रेष्ठ वीणा उत्पन्न हुआ। 3 कुलमे वीर पुरुष और सदा युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला (सीगाळो-3 १. उच्चाशय २ वीर) 4 विरुदधारी वीणाका पुत्र रामचद्र कभी अवसरको नहीं चूकता । (वानेत = १. विरुदधारी २ ध्वजाधारी, ३.भालाघारी।) .
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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