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यही है जिंदगी संयम की राख डाल दी गयी थी, आग बुझी नहीं थी। कैसे बुझती वह आग? राग की आग सामान्य आग नहीं होती, दावानल होता है! दावानल को बुझाना सरल काम नहीं है।
स्त्रीराग या पुरुषराग ही प्रबल होता है, ऐसा नहीं है। पितृराग, भ्रातृराग इत्यादि भी उतने ही प्रबल होते हैं। श्रीराम को लक्ष्मण के प्रति कितना प्रगाढ़ राग था! लक्ष्मणजी के मृतदेह को अपने कंधे पर लेकर छ: महीने तक अयोध्या में श्रीराम भटके थे! ऐसे प्रबल राग-दावानल को जो बुझाते हैं, इस आग से जो विरक्त बनते हैं... वे ही महात्मा हैं, वे ही महावीर हैं, वे ही महापुरुष हैं। श्रीराम वैसे ही महावीर-महात्मा पुरुष थे। सीतेंद्र उनको ध्यानभ्रष्ट नहीं कर सका। श्रीराम वीतराग बन गए, सर्वज्ञ बन गए। सीतेंद्र ने वीतराग श्रीरामचन्द्र महामुनि के चरणों में विरक्त हृदय से वंदना की।
पूरा प्रसंग मेरे चिंतन का प्रदेश बन गया। सीतेंद्र के प्रति कुछ सहानुभूति जहाँ हुई, श्रीरामचन्द्रजी की वीतरागता के प्रति हृदय गद्गद हो गया, उनको अनंत-अनंत भाववंदना कर ली।
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