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यही है जिंदगी
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६८. भीतर का सिंगार करो ई
अपने विचार अपनी दुनिया बनाते हैं। Our thoughts make our world. जैसे विचार वैसी दुनिया!
यदि विचार निम्न स्तर के होंगे तो दुनिया निम्न स्तर की बनेगी। यदि विचार उच्च स्तर के होंगे तो दुनिया भी उच्च स्तर की बनेगी। या तो जैसी दुनिया बनानी हो वैसे विचार करते रहो या तो अपने विचारों से जैसी दुनिया बने उसको स्वीकार करो। ___ अपनी वर्तमान दुनिया अपने ही विचारों से बनी हुई है। वर्तमान के अपने विचार अपनी भविष्य की दुनिया का निर्माण कर रहे हैं। __ जैसे बाहर की दुनिया है, वैसे अपने भीतर भी अपनी स्वतन्त्र दुनिया है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि हम बाहर की दुनिया को ही देखते हैं, बाहर की दुनिया को मानते हैं, भीतर की दुनिया का खयाल ही नहीं है। भीतरी दुनिया के विषय में घोर अज्ञान है। विचारों से आन्तर दुनिया तो बनती ही रहती है, चाहे मनुष्य जाने या न जाने। ___ बाहर की दुनिया अच्छी मिलने पर भी, यदि भीतर की दुनिया निम्न स्तर की होगी तो मनुष्य शांति का, प्रसन्नता का अनुभव नहीं कर सकेगा | बाहर की दुनिया निम्न स्तर की मिलने पर भी, यदि भीतर की दुनिया उच्च स्तर की होगी तो मनुष्य अत्यंत शांति और प्रसन्नता का अनुभव कर सकेगा।
दुनिया की, बाह्य दुनिया की शिकायत मत करो। भीतर की दुनिया का उच्चस्तरीय निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ो। सारे विचार विधेयात्मक - Positive बनाते चलो। निषेधात्मक विचारों को बदलने का प्रयत्न करो। __ बाहर की दुनिया को बदलने का प्रयत्न अभी नहीं करना है। तुम्हारा अस्तित्व
और तुम्हारा ही व्यक्तित्व ऐसा बनाते चलो कि स्वतः जिसको अपने आपको बदलना होगा वह बदल जायेगा। अपने समय पर ही जीवात्मा बदलता है। ___ अपने पवित्र, उदात्त और प्रशान्त विचारों से अपनी आन्तर दुनिया को बदलने का कार्य करते रहो। वर्तमान जीवन और पारलौकिक जीवन - दोनों जीवन आनंदप्रद बन जायेंगे।
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