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यही है जिंदगी
नौकर पर गुस्सा आया, मुन्ने पर गुस्सा नहीं आया! घटना दोनों समान थी - काँच का प्याला टूटने की।
नौकर के प्रति प्रेम नहीं था इसलिए उस पर क्रोध आया । मुन्ने के प्रति प्रेम था इसलिए उस पर गुस्सा नहीं आया।
पूर्णज्ञानी महापुरुषों ने इसीलिए कहा है कि संसार के सभी जीवों को अपना मित्र मानो।
प्रेम के बिना मित्रता नहीं। सभी जीवों के प्रति... उनके शुद्ध चैतन्य के प्रति हमें प्रेम होना चाहिए। शुद्ध चैतन्य को ज्ञानदृष्टि से देखते रहें तो समग्र चेतनसृष्टि के प्रति प्रेम के पुष्प खिलेंगे ही। वह प्रेम दिव्य होगा, वह प्रेम निष्काम होगा, वह प्रेम अद्वितीय होगा। प्रेममूला मैत्री बन जाने पर कभी किसी जीव के प्रति दुर्भाव पैदा नहीं होगा।
हम मैत्री की बातें करते हैं, परन्तु प्रेम नहीं करते। हम अशुद्ध चैतन्य को ही देखते रहते हैं, फिर मैत्री बनेगी कैसे?
कर्मों से अशुद्ध आत्मस्थिति का दर्शन हमें काम-क्रोध आदि विकारों में फँसाये रखता है। __जिस पर हमारा प्रेम होगा, हम उसके सभी अपराध सहन कर लेंगे। प्रेम हमें सहनशील बनाता है। प्रेम हमें अच्छाइयों का दर्शन कराता है। वह प्रेम होना चाहिए विशुद्ध आत्मस्वरूप से, चैतन्य से ।
जड़ पदार्थों के साथ राग करते-करते अनंतकाल निकल गया। आदत हो गई है जड़ से राग करने की! उस आदत से मुक्त होना ही है और उसका उपाय है चैतन्य का प्रेम! चैतन्य का प्रेम बढ़ता जायेगा और जड़ का राग घटता जायेगा।
अन्तःकरण से चाहता हूँ कि अब कभी भी किसी जीवात्मा के प्रति तनिक भी दुर्भाव न आ जाए। सभी जीवों के प्रति मेरी मैत्री अखंड रहे। सदैव मेरे हृदय में जीवहित की भावना प्रवाहित रहे। इसलिए परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि 'हे करुणासागर! शुद्ध चैतन्य का दर्शन करने की मुझे दिव्यदृष्टि प्रदान करो... प्राप्त दिव्यदृष्टि की आप रक्षा करो और मेरे जीवनपथ के प्रदर्शक बनो।'
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