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यही है जिंदगी
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आसपास के लोग तो उसको देखेंगे ही! अज्ञानी को घटना पसंद आती है ज्ञानी पुरुष घटना पसंद नहीं करते।
ज्यों-ज्यों ज्ञान की परिणति बढ़ती जाती है, त्यों-त्यों ज्ञानी मौन के महासागर में उतरता जाता है। दुनिया के लोगों से अलिप्त बनता जाता है। लोग उसको भूल जायँ, यह बात उसको पसंद आती है।
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- वे अपने जीवन को 'घटना' नहीं बनने देते। वे शांति से, मौन से जीना पसंद करते हैं, वैसे मृत्यु भी नीरव शांति में ही पाना चाहते हैं । मौन के महासागर में डूब जाना चाहते हैं ।
- दुनिया के लोग ऐसे ज्ञानी पुरुषों के आगे-पीछे शोर करते हैं, जयजयकार की ध्वनि करते रहते हैं । - दुनिया के लोग तो शोर करेंगे ही। उनको शोर मचाने में ही मजा आता है ।
- ज्ञानी शोर के बीच भी मौन रहते हैं । भीतर भी मौन और बाहर भी मौन ! भीतर भी शान्त और बाहर भी शान्त !
- मौन के महासागर में गोते लगाते हुए उनको भीतर में परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं। परमात्मा भीतर ही मिलते हैं न । अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है वहाँ ।
- फिर वे बाहर के क्षणिक आनंद की इच्छा भी क्यों करेंगे ? इच्छा उठने का सवाल ही नहीं रहता ।
वे समता-समाधि और ज्ञान - ध्यान में लीन रहते हैं । विश्व का अवलोकन भी वे मध्यस्थ भाव से करते रहते हैं।
आत्मना आत्मानमात्मनि पश्यति ।
आत्मा से आत्मा को वे देखते हैं।
आत्मा से बाहर कुछ भी नहीं! 'अणु' को देखने-परखने में भी विज्ञानी को कितनी सूक्ष्मता में उतरना पड़ता है ! तो फिर अणु-परमाणु से भी बहुत ही सूक्ष्म आत्मा में उतरने के लिये... कितनी गहराई में जाना पड़े?
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मौन से, शांति से... समता से ही भीतर की गहराई को छू सकते हैं.... कि जहाँ परमात्मा का दर्शन होता है, दिव्य आनंद की अनुभूति होती है।
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