Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 297
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी & www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६. तुलना को भूलना होगा...! तुलना ! मनुष्य की आदत हो गई है तुलना करने की । वह अपने से बड़े के साथ अपनी तुलना करता है, वैसे अपने से छोटे के साथ भी अपनी तुलना करता है। जब बड़े के साथ तुलना करता है तब हीनभावना से भर जाता है और जब छोटे के साथ तुलना करता है तब श्रेष्ठता के अहंकार से भर जाता है । - हीनता की भावना और श्रेष्ठता की भावना - दोनों खतरनाक हैं । हीनता की भावना में से उदासी और निराशा पैदा होती है। कभी ईर्ष्या भी पैदा होती है। 'यह मेरे से ज्यादा धनवान है, यह मेरे से ज्यादा बुद्धिमान है, से ज्यादा लोकप्रिय है, यह मेरे से ज्यादा बलवान है...' - २७९ • कभी उसको गिराने की इच्छा होती है, कभी स्वयं गिर जाता है! - हीनभावना से प्रेरित होकर छोटे भाई ने बड़े भाई के घर में जाकर भोजन में जहर मिलाया है। ऐसे ही श्रेष्ठता की भावना के कटु परिणाम देखने में आते हैं। दूसरों को दुत्कारना, दूसरों के साथ अशिष्ट व्यवहार करना, अशिष्ट, असभ्य और कठोर भाषाप्रयोग करना, - • हीनभावना से प्रेरित होकर भाई ने बहन की जिंदगी में आग सुलगाई है। हीनभावना से प्रेरित होकर मनुष्य ने आत्महत्या कर ली है । हीनभावना से प्रेरित होकर मनुष्य ने दूसरों की हत्या करने के प्रयास किये हैं । यह मेरे For Private And Personal Use Only कभी दूसरों को कष्ट देना, दूसरों की हत्या करना । इस प्रकार दोनों प्रकार की भावनाओं के कटु परिणाम हैं, ऐसा जानकर, इन भावनाओं से मुक्त होना चाहिए। परंतु मन कहता है- 'कोई एक भावना तो आ ही जाती है । ' क्योंकि हम अपने जीवन - कार्यों में रस नहीं लेते हैं। हम अपनी सुन्दर कल्पनासृष्टि नहीं रच सकते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 295 296 297 298 299