Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 296
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ यही है जिंदगी दूसरी बात : - दोषदृष्टि से जिसके भी दोष मनुष्य देखता रहता है, उसके प्रति द्वेष हो ही जाता है। - फिर दोष-प्रकाशन का काम होता है। - बाद में वैर बंध जाता है। - लड़ाई और खून-खराबा हो जाता है। - जिंदगी ऐसे ही व्यर्थ पूरी हो जाती है। - परन्तु जिंदगी का सार्थक्य, दोषदर्शी कहाँ समझता है? दूसरों से प्रेम... स्नेह... सहानुभूति रखने की बात उनके जड़ दिमागों में कहाँ उतरती है? उनको मजा आता है (क्षणिक) सिर्फ दूसरों के दोष देखने में, दूसरों की निन्दा करने में... और दूसरों से घृणा करने में। ___- यह सब करने के बाद ये लोग भोगते रहते हैं, अशांति और उद्वेग | सहते रहते हैं, त्रास और विडंबनाएँ। फिर भी वे अपनी दोष-दर्शन की भूल नहीं समझ पाते हैं। पुनः-पुनः यह भूल करते रहते हैं और.. ___- तीर्थंकरों ने और सभी आप्तपुरुषों ने 'गुणदर्शन' करने का उपदेश दिया है, मार्गदर्शन दिया है। - 'दोष अपने देखो, गुण दूसरों के देखो।' परन्तु कौन मानता है इस उपदेश को? कौन जीता है अपने जीवन में इस उपदेश को? उपदेश केवल शास्त्रों में रह गया है। - दूसरों के दोष देखनेवाले क्या स्वयं दोषरहित हैं? परन्तु दोषदर्शी की यह आदत होती है कि जो दोष उसमें होता है, वह दोष दूसरों में देखकर निन्दा करना! अरे, दूसरों में दोषारोपण भी करते हैं और निन्दा करते हैं। ___ - गुणदर्शन ही करते रहें। दोष देखनेवालों में भी हमें गुण दिखाई दें...| आत्मा के... विशुद्ध आत्मा के अनंत गुण दिखाई दें... बस, जीवन सार्थक बन जाए। For Private And Personal Use Only

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