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यही है जिंदगी __- कभी ऐसा भी होता है कि एक कार्य करने के संयोग नहीं होते हैं तब दूसरा प्रिय कार्य कर सकते हैं। वह कार्य करने के संयोग नहीं हो तो तीसरा प्रिय कार्य कर सकते हैं। ___- एक महिला इसलिए दुःखी थी कि वह बीमारी की वजह से तपश्चर्या नहीं कर सकती थी और तपश्चर्या उसका प्रिय विषय था | मैंने उसको कहा : 'तुम परमात्मभक्ति करके अपनी आत्मा को संतुष्ट करती रहो।' परंतु परमात्मभक्ति उसका प्रिय विषय नहीं था! मैंने कहा : 'तुम अच्छी संस्कारपोषक किताबें पढ़ती रहो और प्रसन्नता से समय व्यतीत करो।' उसको किताबें पढ़ने में भी रस नहीं था। मैंने कहा : 'तुम परमात्मस्मरण-जाप करती रहो।' उसको जाप-ध्यान में भी रस नहीं था! उसको तो केवल तपश्चर्या में ही रस था और वह तपश्चर्या नहीं कर सकती थी। इसलिए उसका समय उदासी से व्यतीत होता था। अंत में मैंने कहा : 'धैर्य धारण करो, बीमारी दूर हो जायेगी और तुम पुनः तपश्चर्या करने में समर्थ बनोगी।' तब उसके मुख पर प्रसन्नता आ गयी! ___ - जिन लोगों के पास अच्छे कार्य नहीं होते हैं, घर का काम भी नहीं होता है, सामाजिक प्रवृत्ति या धार्मिक प्रवृत्ति में रस नहीं होता है, वैसे लोग 'टाइम पास' करने के लिये सिनेमा देखते हैं, विडियो देखते हैं, हॉटलों में जाते हैं, शराब पीते हैं... जुआ खेलते हैं और ऐसा करते हुए वे अपने मन-वचन-काया को नष्ट कर देते हैं। ___ - प्रिय कार्य भी अच्छा होना चाहिए। जीवन को ऊर्ध्वगामी बनानेवाला होना चाहिए। स्वयं के लिये और दूसरों के लिये हितकारी होना चाहिए। ऐसे कुछ अच्छे कार्यों में रसानुभूति होती रहे... तो जीवन सदैव, प्रतिक्षण आनंद से परिपूर्ण बना रह सकता है।
- अन्यथा, कोई भी उपाय नहीं है शांति और सुख पाने का | संसार में कोई एक विषय का आनंद सदैव प्राप्त नहीं हो सकता है। ___ संयोगों के परिवर्तन के साथ हमारे प्रिय कार्य बदलते रहने चाहिए । कार्य के परिवर्तन में कोई ग्लानि नहीं होनी चाहिए। कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। एक प्रिय कार्य छोड़कर दूसरा प्रिय कार्य अपनाने में हिचकिचाहट कैसी? भोजन करने के बाद आराम करने में क्या मनुष्य हिचकिचाता है?
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