Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 298
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० यही है जिंदगी ___ - अपने स्वयं के कुछ अच्छे रचनात्मक कार्य होने चाहिए और उन कार्यों को ज्यादा से ज्यादा सुन्दर बनाने का निरंतर प्रयत्न होना चाहिए। - अपने और अपने मित्रों के लिये सुन्दर भविष्य की कल्पनाएँ होनी चाहिए। केवल कल्पना नहीं, परंतु योजनाबद्ध कल्पनाएँ होनी चाहिए। - यदि हम हमारा छोटे से छोटा कार्य भी सुन्दर बनाने के लिये दत्तचित्त होंगे तो वे हीनभावनाएँ और उच्चता की भावनाएँ हमारे मन में प्रवेश ही नहीं कर पायेंगी। - हमारे छोटे-बड़े कार्यों में हमें मस्त रहना है। चाहे हमारे चारों ओर क्षुब्धता हो, कोलाहल हो या प्रपंच हो। है भी सही यह हमारे चारों ओर | फिर भी हमारे प्रिय कार्य में हमें मस्त रहना है। - हाँ, जहाँ प्रेम की अपेक्षा हो वहाँ हार्दिक प्रेम देना, परंतु ममता का खाली दिखावा नहीं करना। वैसे ही, दूसरों के प्रेम को केवल दिखावा नहीं मानना है, प्रेम को वक्रता से नहीं देखना है। - यदि हीनभावना से मन भरा हुआ होगा तो दूसरों का प्रेम केवल दिखावा लगेगा, दूसरों की ममता सिर्फ प्रवंचना लगेगी। ___- यदि श्रेष्ठता की भावना से मन भरा हुआ होगा तो खुद का प्रेम सच्चा लगेगा, दूसरों का प्रेम दंभ। ___ - परंतु ये दोनों प्रकार की असत् भावनाएँ निष्क्रियता में से पैदा होती हैं। जब मनुष्य के पास कोई अच्छा... प्रिय कार्य नहीं होता है, वह निष्क्रिय होता है... तब बैठे हुए ऐसी तुलनाएँ करता रहता है। इसलिए कहता हूँ कि बिना प्रयोजन दूसरों की संपत्ति मत देखो, दूसरों का परिवार मत देखो, दूसरों का व्यक्तित्व मत देखो, आप तो अपने ही कार्यों में निमग्न रहो जीवनपर्यंत! जब कार्य न हो तब परमात्मा के जाप-ध्यान में निमग्न हो जाना। स्वस्थ... प्रसन्न और संतुलित जिंदगी जीने का क्या यह सही रास्ता नहीं For Private And Personal Use Only

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