Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 291
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २७३ [ १२३. कहाँ से कहाँ तक? | य चीन का प्राचीन तत्त्वचिंतक 'लाओत्से' रास्ते पर से गुजर रहा था। एक परिचित ने पूछा : 'आप कहाँ जा रहे हो?' लाओत्से ने कहा : 'मैं जहाँ से आया हूँ, वहाँ वापस जा रहा हूँ।' उस पुरुष ने कहा : 'लेकिन इस तरह अदृश्य हो जायेंगे तो लोग चिंता करेंगे आपके विषय में।' लाओत्से ने कहा : 'मेरा जन्म हुआ तब मैं अज्ञानी था, इसलिए जन्म के समय थोड़ी आवाज... थोड़ी हलचल... और थोड़ा शोर हुआ था। परंतु मेरी मृत्यु ज्ञानी की मृत्यु है। मृत्यु के समय कोई आवाज न हो - उसकी मैं सावधानी रखता हूँ। मेरी मृत्यु कोई घटना न बन जाए, इसका खयाल करता हूँ।' - अज्ञानी जनमता है तो शोर और आवाज! - अज्ञानी जीता है तो शोर और आवाज! - और अज्ञानी मरता है तो भी शोर और आवाज! - एक मात्र तीर्थंकरों को छोड़ कर, जो भी जीव जनमता है, अज्ञानी ही होता है और उसका रोना... चिल्लाना स्वाभाविक होता है। परंतु जो ज्ञानी होते हैं (तीर्थंकर) वे जनमते समय भी रोते नहीं हैं, चिल्लाते नहीं हैं। ___ - अज्ञानी को हँसना पसंद आता है, रोना और रुलाना भी पसंद आता है। बस, आवाज करना! बोलते रहना! चिल्लाते रहना! - ऐसे लोग मरते हैं तो भी चिल्लाते हुए! एक घटना बन जाती है उसकी मृत्यु | लोग याद रखते हैं उस मृत्यु की घटना को- 'अरेरे, बेचारा मरते समय कितना कराहता था? कितना चिल्लाता था? नरक की वेदना सहते हुए मरा।' - अज्ञानी को घटनाएँ ज्यादा पसंद आती हैं। घटना में लोगों की दिलचस्पी भी अधिक होती है। - मौन... शान्त... ध्यानस्थ व्यक्ति की ओर लोग नहीं देखते हैं, परंतु कोई गरज-गरज कर बोलता है, सड़क पर दौड़ता है, रोता है या गाता है... तो लोग उसको देखते हैं। कुछ नहीं तो जोर-जोर से खाँसता रहता है तो For Private And Personal Use Only

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