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यही है जिंदगी
२१५ सुनना! मैं आज अपने अच्छे कार्य दूसरों को नहीं बताऊँगा... न ही प्रशंसा सुनने की इच्छा रखूगा । ___ आज मैं अपने परिचितों में से किसी के भी सत्कार्य की मुक्त मन से प्रशंसा करूँगा। प्रशंसा करूँगा, खुशामद नहीं। सत्कार्य की प्रशंसा, सदगुण की प्रशंसा करूँगा।
आज मैं सभी का प्रिय बनने का प्रयत्न करूँगा। मैं अपनी योग्यतानुसार वस्त्र पहनूँगा | मेरे परिचितों को मेरी कैसी वेशभूषा पसंद है, यह मैं जानता हूँ। मैं वैसी वेशभूषा पहनूँगा एवं सबके साथ विनय से और विवेक से व्यवहार करूँगा। किसी के सामने किसी की निन्दा नहीं करूँगा। किसी भी व्यक्ति के ऊपर दोषारोपण नहीं करूँगा। __ आज मैं अप्रिय नहीं बोलूँगा । अहितकारी नहीं बोलूँगा। किसी के हृदय को दुःखाने वाले शब्द नहीं बोलूँगा | यदि दूसरे के हित के लिये अप्रिय बोलने का प्रसंग आ गया तो मीठे शब्दों में बोलूंगा और क्षमायाचना भी कर लूँगा। यदि मौन रखना उचित होगा तो मौन रहूँगा।
आज मैं परमात्मा का विधिपूर्वक दर्शन-पूजन करूँगा। आज परमात्मा के प्रति प्रीति-भक्ति के भावों का संवेदन करूँगा | मन-वचन-काया की एकाग्रता से परमात्मा का ध्यान करूँगा। कुछ क्षणों के लिए भी मैं आज परमात्मस्वरूप में लीन बनने का प्रयत्न करूँगा।
आज मुझे आज का ही विचार करना है। आने वाले अनंत भविष्य की क्षणों का बोझ मुझे आज पर नहीं डालना है। मुझे पाँच-पचास साल की कोई परियोजना नहीं बनानी है, मुझे तो आज की ही योजना बनानी है और आज को ही भव्य, सुन्दर और आनंद से परिपूर्ण बनाना है। ___ अतीत की असंख्य, व्यथापूर्ण स्मृतियों को और अनागत की असंख्य चिन्ताओं को 'आज' पर मंडराने नहीं देना है। आज के एक-एक क्षण को आनंद का स्रोत बनाना है।
आज यदि किसी ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, तो मैं ज्ञाता-दृष्टा बनकर उस व्यवहार को देखूगा। राग-द्वेष से मन को कलुषित नहीं होने दूंगा। ___ आज यदि किसी ने अप्रिय शब्द सुनाये, तो मैं ज्ञाता-दृष्टा बनकर वे शब्द सुनूँगा। राग-द्वेष से मन को चंचल नहीं होने दूंगा।
मेरी 'आज' आत्मा की आज बन जाए ऐसे ही कार्य करूँगा।
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