Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी - ११९. बोलो, पर सोच-समझकर पत्थर ने फूल से कहा : 'तू मेरी शक्ति जानता है? मेरे एक ही प्रहार से तुझे चूर-चूर कर सकता हूँ ।' फूल ने मुस्करा कर कहा : 'मित्र, तब तो तुम मुझ पर बड़ा उपकार करोगे! मेरी सुगंध चारों ओर फैलेगी !' www.kobatirth.org - न पत्थर बोलता है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न फूल जवाब देता है ! इस प्रकार के प्रतीकात्मक संवाद मनुष्य को अभिनव जीवनदृष्टि प्रदान करने के लिए रचे जाते हैं। २६५ जो पत्थर जैसे कठोर हृदय के लोग होते हैं, वे दूसरों को कुचलने में अपनी शक्ति की सार्थकता समझते हैं । - किसी के तन को कुचलते हैं, किसी के मन को । पत्थर नहीं जानता है कि उसको भी कोई तोड़नेवाला है ! उसको भी कोई पीसकर 'पावडर' बनाने वाला है! फूल के प्रत्युत्तर परंतु, आज मुझे पत्थर की बात नहीं करनी है, आज तो का विश्लेषण करना है । बहुत अच्छा लगा फूल का प्रत्युत्तर । फूल तो प्रिय लगता ही है, फूल का प्रत्युत्तर बहुत प्रिय लगा ! क्योंकि इस प्रत्युत्तर में Positive thinking भरा हुआ है । - विधेयात्मक चिंतन ! - पत्थर की बात सुनकर फूल घबराया नहीं, डर से मुरझाया नहीं । यदि वह निषेधात्मक चिंतन करता तो भय से मुरझा जाता । मैं मर वह कह देता - 'नहीं, नहीं, मुझ पर प्रहार मत करना... जाऊँगा...' अथवा अकड़ कर बोलता - 'कर तो सही प्रहार... कैसे करता है प्रहार... मैं भी देख लूँ... ।' यदि ऐसा प्रत्युत्तर देता, तो मैं समझता कि वह कागज का फूल है... पौधे का फूल नहीं ! For Private And Personal Use Only उसने कहा : 'तेरा प्रहार भी मेरे लिये उपकारी सिद्ध होगा । मेरे कुचल जाने से मेरी सुगंध ज्यादा तीव्र होकर चारों ओर फैलेगी । मेरा अस्तित्व इसीलिये तो है! दूसरों को सुगंध देना!'

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