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यही है जिंदगी
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- लेनेवाले पूज्य हैं तो भक्तिभाव से दो, लेनेवाले मित्र हैं तो प्रेमभाव से दो, लेनेवाले दु:खी हैं तो करुणाभाव से दो, लेनेवाले संकट में हैं तो सहानुभूति से दो!
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लेनेवाले लेते हैं... वे आप पर उपकार करते हैं!
- आप देकर उपकार नहीं करते, वे लेकर आप पर उपकार करते हैं- यह
बात बराबर याद रखना!
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क्या आपने ‘कर्मसिद्धांत' पढ़ा है?
दूसरों को सुख देनेवाला मनुष्य कौन - सा कर्म बाँधता है यह बात आपने 'कर्मशास्त्र' में पढ़ी है ? मैंने पढ़ी है... सिर्फ पढ़ी ही नहीं है, उस पर वर्षों तक चिंतन किया है। इसलिये कहता हूँ कि इस जीवन में हो सके उतना सुख दूसरों को दो।
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सुख पाने का सरल उपाय है : दूसरों को सुख देना ।
केवल मनुष्य को ही नहीं, पशु-पक्षी को भी सुख दिया करो । आप ऐसा पुण्यकर्म बाँधोगे... कि जब वह पुण्यकर्म अपना फल देने लगेगा... तब आपके पास सुखों का हिमालय जितना ढेर कर देगा ।
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- हाँ, कभी हमारे पास देने योग्य सुख न हो और हम न दे सकें, संभव है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम दूसरों को दुःख दें।
दूसरों को दुःख देने से,
दूसरों का सुख छीनने से,
दूसरों के सुख की ईर्ष्या करने से, आप स्वयं दुःखों से भर जाओगे। हमारे दुःखों का कारण यह है ।
दूसरे कोई हमें दुःखी नहीं करते हैं, हम ही दुःखों को निमंत्रण देते हैं। इस जीवन में इस भूल को दोहराना नहीं है ।
इस जीवन में तो दुःखों को स्वीकार करते हुए, दूसरों को सुख देने का ही काम करना है ।
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‘आईये हमारे पास, सुख को स्वीकार कर, हमें सुखी करने की कृपा कीजिए !'
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