Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यही है जिंदगी जो परिस्थिति आज हमारे सामने है - वही हमारी नियति है । - वर्तमान नियति को ही हम जान पाते हैं, वर्तमान क्षण की नियति को ही ! दूसरे क्षण की नियति से हम अनभिज्ञ हैं। हाँ, दूसरे क्षण नियति बदल सकती है ! • इस क्षण जीवन है, दूसरे क्षण मृत्यु हो सकती है। ● इस क्षण प्रिय का संयोग है, दूसरे क्षण वियोग हो सकता है। O इस क्षण निरोगिता है, दूसरे क्षण रुग्णता हो सकती है। • इस क्षण स्वाधीनता है, दूसरे क्षण पराधीनता हो सकती है। O इस क्षण शांति है, दूसरे क्षण अशांति हो सकती है। ० नियति निश्चित है ... प्रत्येक जीवात्मा की । भय, चिंता और उद्वेग से मुक्ति मिलेगी। - हर्ष-विषाद और रति- अरति से मुक्ति मिलेगी । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● उत्थान और पतन निश्चित है, प्रत्येक जीवात्मा के । • उन्नति और अवनति निश्चित है, प्रत्येक जीवात्मा की । प्रत्येक जीवात्मा अपनी-अपनी नियति से आबद्ध है । नियति के बंधन से कोई जीवात्मा मुक्त नहीं है ! - न रहेगा कर्तृत्व का अभिमान, न रहेगा निष्फलता का अवसाद ! २७० • परस्पर के संबंध - स्नेहसंबंध भी नियति के अधीन हैं । 'संबंधों का बननाबिगड़ना नियति के अधीन है' - इस सत्य को हजम करने पर संबंधजन्य रागद्वेष से मुक्ति मिलेगी... जीवसृष्टि के प्रति सहज मैत्री बन जायेगी । आशा, प्रतीक्षा और स्वप्न हमें कहीं नहीं ले जा सकते हैं, न हमें कुछ बनाते हैं, हमारी नियति ही हमें स्वर्ग में या नरक में ले जायेगी। हमें मनुष्य, पशु या देव, नियति बनायेगी । अदृश्य, अश्राव्य और अस्पृश्य है, यह नियति का तत्त्व! सभी आत्माओं के साथ जुड़ा हुआ है । हर एक मुकाम से आगे मुकाम है तेरा । जिंदगी नियति के खिलौने के सिवा और कुछ नहीं ! For Private And Personal Use Only

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