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यही है जिंदगी
२६६ __- उत्तम पुरुषों के गुणों की, सत्कार्यों की सुगंध, प्रायः उनकी मृत्यु के बाद ज्यादा फैलती है! ___- समताभाव से जिन्होंने कुचला जाना पसंद किया, उनके गीत हजारों वर्ष तक दुनिया गाती रही है और गाती रहेगी।
- समताभाव का स्रोत है, विधेयात्मक चिंतन-'पॉजीटीव थिंकिंग!' - वे खंधक मुनि!
राजा के सेवकों ने जाकर कहा : 'हमारे राजा की आज्ञा है आप के शरीर की चमड़ी उतार लेने की...।' ___- मुनिराज ने उसी समय कह दिया : 'भैया! तुम्हारा उपकार मानता हूँ। ऐसा उपकार तो सहोदर भी नहीं कर सकता। उतारो शरीर की चमड़ी... तुम कहो वैसे खड़ा रहूँ... तुम्हें चमड़ी उतराने में सरलता रहे...!
- यह था मुनिराज का Positive thinking! विधेयात्मक चिंतन! ऐसा चिंतन वही मनुष्य कर सकता है, जो हर परिस्थिति के लिये तैयार होता है। ___ - सुख और दुःख जिसको समान लगते हैं! सुख से लगाव नहीं, दुःख से द्वेष नहीं!
- हर बात में कोई शुभ अंश छुपा हुआ होता है... जो मनुष्य उस अंश को देख लेता है, वह निर्धान्त होकर, हर परिस्थिति को स्वीकार कर लेता है। ___- औरंगजेब की सेना मंदिरों का ध्वंस करती हुई गुजरात में पहुँची। एक मंदिर में वृद्ध पुजारी था। सेनापति ने कहा : 'हम मंदिर तोडेंगे।'
पुजारी ने सेना देखी। 'ये लोग मंदिर तोड़ेंगे ही,' समझ लिया और निर्भयता से कहा : 'तुम्हें तोड़ना है तो भले तोड़ो मंदिर, मुझे भी खुशी होगी!
क्योंकि एक मंदिर टूटेगा... अनेक मंदिर पैदा होंगे। एक-एक पत्थर में से एक-एक मंदिर पैदा होगा!'
- ऐसा ही हुआ। हजारों नये मंदिर बन गये! निषेधात्मक चिंतन, भय-चिंता-वेदना पैदा करता है। क्यों करें वैसे विचार? जीवन-व्यवहार में विधेयात्मक चिंतन का प्रयोग करेंगे!
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