Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २६३ ११८. खुदी को जरा बुलंद करो जंगल में से एक यात्रीवृंद गुजर रहा था! रास्ते में एक विशालकाय वृक्ष गिरा हुआ पड़ा था। एक यात्रिक बोला : 'हवा का तूफान प्रचंड था... देखो, ऐसा विशालकाय वृक्ष भी धराशायी हो गया है...।' दूसरे यात्रिकों ने सहमति में कहा : 'सही बात है, तूफान भारी था...।' एक वनवासी यात्रिकों का वार्तालाप सुन रहा था, उसने कहा : 'आप की बात सही है, तूफान भारी था, परंतु इस वृक्ष की जड़ें खोखली हो गई थीं इसलिये धराशायी हो गया! यदि जड़ें मजबूत होती... तो घोर तूफान के बीच भी खड़ा रहता। देखो, दूसरे वृक्ष खड़े हैं न? उनकी जड़ें मजबूत हैं।' ० ० ० - संसार में आधि-व्याधि-उपाधियों की तेज हवा चलती ही रहती है। - कभी शारीरिक रोगों का तूफान आता है। - कभी आर्थिक नुकसान का तूफान आता है। - कभी सामाजिक बदनामी की आंधी उठती है। - कभी स्नेही-स्वजनों के मनमुटाव की आंधी चलती है। - आंधी और तूफान! आग और बाढ़...! - जो कमजोर हैं, वे मिट्टी में मिल जाते हैं। - जो खोखले हैं, वे हवा में उड़ जाते हैं। - जो अशक्त हैं, वे बाढ़ में बह जाते हैं। - जो भयभीत हैं, वे आग में जल जाते हैं...! मनुष्य की जड़ है उसका मनोबल । जिसका मनोबल दृढ़ होता है, जिसका मनोबल वज्र जैसा दृढ़ होता है, वह मनुष्य आंधी में धराशायी नहीं होता, तूफान में उड़ नहीं जाता, आग में जल नहीं जाता... बाढ़ में बह नहीं जाता! ___ महासती और महापुरुष वे कहलाये, जिनका मनोबल दृढ़ था! संकटों की भयानक आंधी उन पर से गुजर गयी... परंतु अडिग खड़े रहे! वे गिरे नहीं, जले नहीं, बहे नहीं, उड़े नहीं! हिमालय जैसे अडिग रहे । मेरु की तरह निश्चल रहे। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299