Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 280
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २६२ - जानने... समझने में न रहेगा राग, न रहेगा द्वेष! - आत्मा को जानते हुए अनेक लोग परमात्मा बन गये। - पुण्य को जानते-जानते अनेक जीव सहजता से पुण्यशाली बन गये! - पापों को जानते हुए अनेक जीव निष्पाप बन गये! दूसरों को पापमुक्त करने की इच्छा है न? इसका भी यही सरल उपाय है : पाप करनेवालों को पापों के विषय में चिंतनशील बना दो। उनको चिंतन के लिये प्रेरित करते रहो। उनके ऊपर आक्रामक मत बनना। उनको नियंत्रित करने का प्रयास मत करना। - यह अधिकार तेरा नहीं है। - आक्रामक चिंतनशील नहीं होता है और जो चिंतनशील नहीं होता है... वह मूर्ख होता है। मूर्ख आक्रामक हो जाये तो? ___ - महावीर तीर्थंकर थे न? धर्मतीर्थ के प्रवर्तक थे न? फिर भी वे किसी के ऊपर आक्रामक नहीं बने। - आक्रामक शिष्य के प्रति भी आक्रामक नहीं बने... कई दिनों तक वे जमाली मुनि को समझाते रहे... कभी भी अपने अधिकार का उपयोग नहीं किया | जमाली को सोचने के लिये प्रेरित करते रहे। ठीक है, जमाली को नहीं समझना था, वह चला गया! - जमाली के चले जाने से दुनिया में कोई विप्लव नहीं हो गया... न कोई प्रलय आ गया! - मैं तुझे कहता हूँ : जिस पाप से तुझे मुक्त होना है, उस पाप के विषय में तू निरंतर अध्ययन कर, मनन कर | महीनों तक... वर्षों तक चिंतन करता रह... पाप स्वतः छूट जायेगा! पाप का राग टूट जायेगा! - निरंतर परिश्रमपूर्वक अध्ययन करते रहो, - अध्ययन की वार्षिक, द्विवार्षिक योजना बना लो, -- जिस ज्ञानी पुरुष का ग्रंथ पढ़ा, उसके हृदय तक पहुँचने का प्रयत्न करो। - अध्ययन के बाद मनन, चिंतन करने से अपूर्व आनंद की अनुभूति करोगे। जीवत्व के साथ तादात्म्य होता जायेगा... और तुम्हारा हृदय स्नेह-सहानुभूति से परिपूर्ण होता जायेगा। - दुनिया में बुराइयाँ दिखेगी, परंतु कोई बुरा नहीं लगेगा! For Private And Personal Use Only

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